भागवत कथा में कृष्ण सुदामा कथा का भावपूर्ण वर्णन
खजनी गोरखपुर।सुदामा की निर्धनता और भगवान कृष्ण के ऐश्वर्य की तुलना नहीं हो सकती, द्वार पर खड़े गरीब सुदामा को गले लगा कर मित्रता का नहीं, भगवान् कृष्ण ने मानवता का भी संदेश दिया, जिसका गुणगान मानव समाज में युगों से होता रहा है और युगों तक होता रहेगा।
उक्त विचार रूद्रपुर खजनी कस्बे में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा में व्यासपीठ से अयोध्या धाम से पधारे कथाव्यास पंडित प्रदीप मिश्र ने उपस्थित श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि द्वारिका में सुदामा जी के आगमन की सूचना पर द्वारीकाधीश भगवान श्रीकृष्ण उनके स्वागत में स्वयं नंगे पांव दौड़ पड़े और अभूतपूर्व सम्मान दिया। अपने बाल सखा को पाकर द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन के बीते गुरुकुल के दिनों को याद करते हुए बहुत सी बातें की। कुछ दिन रहने के बाद घर विदा करने से पहले ही, उनके सभी दुख और दरिद्रता को दूर कर दिया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार बचपन में श्रापित चने खाकर सुदामा ने अपने मित्र श्रीकृष्ण को दरिद्रता के श्राप से बचाया।
कथा व्यास ने कहा कि-गरीब होते हुए भी सुदामा जी ने कभी धन के लिए गलत रास्ते को नहीं चुना। अपने कर्म और प्रभु पर अटूट विश्वास रखते हुए मानवता के मार्ग पर चलते रहे। जिसके कारण उन्हें दुख का भी उठाना पड़ा किन्तु कभी धर्म और मानवता के मार्ग से विचलित नहीं हुए।
दूसरी तरफ भगवान कृष्ण ने एक राजा और एक मित्र के रूप में एक साथ अपने दायित्वों का बखूबी से निर्वाह किया। जो कि आज भी समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।
राजा का कर्तव्य है कि वह अपने सभ्य और अच्छे नागरिकों का ध्यान रखें और उनकी समस्या को तत्काल दूर करें। दूसरे शब्दों में यदि मित्र गरीब हो तो भी आवश्यकता पड़ने पर उसकी मदद करना एक सच्चे मित्र का धर्म है। मनुष्य होने के नाते किसी मनुष्य की मदद करना उसका कर्तव्य भी है और धर्म भी है।
कृष्ण सुदामा की अनुपम मित्रता और मानवता का संदेश युगों तक मानव समाज को उसके कर्तव्य का बोध कराता रहेगा। इस अवसर पर मुख्य यजमान रमापति राम त्रिपाठी,शोभावती देवी, प्रेमशंकर मिश्र,सत्यवीर त्रिपाठी,नवीन श्रीवास्तव, प्रसिद्ध नारायण त्रिपाठी, अखिलेश त्रिपाठी, शिवनाथ, ब्रह्मनंद मिश्र,राम सजीवन, अमित आदि दर्जनों श्रद्धालु उपस्थित रहे।
Apr 23 2025, 17:15