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वक्फ विधेयक के खिलाफ आज प्रदर्शन, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मिला कांग्रेस समेत कई दलों का साथ

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वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर आज जंतर मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का धरना प्रदर्शन है। वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ धरने में विभिन्न मुस्लिम संगठनों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ ही विपक्ष के कई सांसदों को आमंत्रित किया गया है। इस धरने में कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी समेत कई दल शामिल हो रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई संगठनों का मानना है कि वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित बदलाव स्वायत्तता के लिए खतरा है। वक्फ बिल बोर्ड की वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता पर असर डालेगा। इसलिए पूरे देश में विरोध किया जा रहा है।

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नायडू-नीतीश को भी निमंत्रण

वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ जंतर मंतर पर होने वाला प्रदर्शन में सभी दलों, संगठनों और समुदाय के लोगों को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। बोर्ड के प्रतिनिधियों ने जनवरी और फरवरी में तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जद(यू) अध्यक्ष नीतीश कुमार से मुलाकात कर उनसे सहयोग मांगा था, लेकिन ये दोनों दल फिलहाल इस विषय पर सरकार के साथ नजर आ रहे हैं। आयोजकों ने साफ किया कि विरोध प्रदर्शन का मकसद किसी सरकार या पार्टी के खिलाफ नहीं बल्कि समुदाय के हक की रक्षा करना है।

सदन में भी हंगामे के आसार

वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन को लेकर भी सदन में हंगामा हो सकता है। विपक्षी दल इसको लेकर सरकार पर लगातार हमलावर है। वहीं, सरकार हर हाल में इस बिल को पास कराना चाहती है। हाल ही में संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि सरकार वक्फ संशोधन बिल को जल्द पारित कराना चाहती है। क्योंकि इससे मुस्लिम समुदाय के कई मुद्दे सुलझेंगे। संसद की संयुक्त समिति ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच इस बिल पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश की थी। इसलिए सरकार के लिए वक्फ संशोधन बिल को जल्द पारित कराना प्राथमिकता है।

पहले 13 मार्च को होना था प्रदर्शन

पर्सनल लॉ बोर्ड पहले 13 मार्च को धरना देने वाला था, लेकिन उस दिन संसद के संभावित अवकाश के चलते कई सांसदों ने अपनी उपस्थिति को लेकर असर्मथता जताई, जिसके बाद उसने कार्यक्रम में बदलाव किया। बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वक्फ संशोधन बिल अवकाफ को हड़पने की एक सोची समझी साजिश है, जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। मिल्लत-ए-इस्लामिया वक्फ संशोधन बिल को खारिज करता है।

मोहम्मद यूनुस ने अपने ही राजदूत का पासपोर्ट किया रद्द, सच बोलने की दी सजा

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बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार अपने ही राजदूत हारून रशीद का पासपोर्ट रद्द करने जा रही है। उनके साथ ही उनके परिवार के पासपोर्ट भी रद्द किए जाएँगे। दरअसल, मोरक्को में बांग्लादेश के राजदूत हारुन अल रशीद ने अपनी ही सरकार को घेरा था। राजदूत हारुन अल रशीद ने मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों का समर्थन करने और देश में अराजकता फैलाने का गंभीर आरोप लगाए थे। रशीद के इस फेसबुक पोस्ट से जब यूनुस सरकार ने अपनी पोल खुलती देखी, तो फिर दबाव में आ गए।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में दावा किया कि रशीद को दिसम्बर, 2024 में ही अपना पद छोड़कर बांग्लादेश वापस बुलाया गया था। विदेश मंत्रालय ने बताया कि रशीद इसमें आनाकानी करते रहे और फरवरी, 2025 में उन्होंने अपना पद भी छोड़ दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि रशीद अब कनाडा चले गए हैं।

मोहम्मद यूनुस सरकार की आलोचना को विदेश मंत्रालय ने एजेंडा करार दिया है। यूनुस सरकार ने कहा है कि रशीद के बयान सच्चाई से इतर हैं। विदेश मंत्रालय ने यूनुस सरकार की आलोचना को सिम्पथी बटोरने का एक साधन करार दिया है।

बांग्लादेश की पहचान को नष्ट करने का आरोप

इससे पहले हारून रशीद ने 14 मार्च को फेसबुक पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट किया था। हारुन अल रशीद ने पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश आतंक और अराजकता की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के शासन में कट्टरपंथियों को खुली छूट दी गई है और मीडिया को दबा दिया गया है, जिससे अत्याचार की खबरें सामने नहीं आ रही हैं। रशीद ने लिखा, यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने में लगे हैं। ये लोग संग्रहालयों, सूफी दरगाहों और हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं।

कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन देने का आरोप

रशीद ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के बाद से मुहम्मद यूनुस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। वह अब एक सुधारक नहीं बल्कि एक अत्याचारी शासक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने जिस बांग्लादेश का निर्माण किया था, यूनुस ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि यूनुस के शासन के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। कट्टरपंथी संगठन जैसे हिजब-उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा खुलेआम इस्लामी शासन की मांग कर रहे हैं और इन्हें यूनुस का समर्थन मिल रहा है।

यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

रशीद ने आगे कहा कि, बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन अब कट्टरपंथी इस पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना दोनों ही चरमपंथियों के निशाने पर रहे हैं, और अब यूनुस भी इन्हें शह दे रहे हैं।

जीएसटी पर गरमाई राजनीति, पॉपकॉर्न के बाद डोनट्स को लेकर कांग्रेस के निशाने पर सरकार

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केंद्र सरकार की जीएसटी को लेकर कांग्रेस के निशाने पर है। कांग्रेस ने शनिवार को जीएसटी की अलग-अलग दरें लागू करने को लेकर केन्द्र पर एक बार फिर से तीखा प्रहार किया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार (15 मार्च) को कहा कि पॉपकॉर्न के बाद अब ‘डोनट’ पर भी जीएसटी का असर देखने को मिल रहा है। उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश को अब ‘जीएसटी 2.0’ की जरूरत है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सिंगापुर स्थित चेन मैड ओवर डोनट्स को अपने व्यवसाय को कथित रूप से गलत तरीके से वर्गीकृत करने और 5 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान करने के लिए 100 करोड़ रुपये का कर नोटिस का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी ने दावा किया कि यह एक रेस्टोरेंट सेवा है, जबकि बेकरी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत कर का भुगतान किया जा रहा है। इस वजह से कंपनी पर भारी टैक्स बकाया हो गया। अब ये मामला मुंबई हाई कोर्ट में पहुंच चुका है जहां इस पर कानूनी लड़ाई जारी है।

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की हकीकत यही- जयराम रमेश

जयराम रमेश ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये पूरा मामला बताता है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की असलियत क्या है। सरकार इस नारे का इस्तेमाल तो करती है, लेकिन हकीकत में व्यापारियों को बेवजह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रमेश ने कहा कि टैक्स प्रणाली में कई विसंगतियां हैं और इसलिए अब जीएसटी 2.0 की जरूरत महसूस हो रही है ताकि सभी व्यापारियों को समान अवसर और राहत मिल सके।

जीएसटी को लेकर पहले भी सवाल उठा चुकी कांग्रेस

पिछले साल दिसंबर में, कांग्रेस ने कहा था कि जीएसटी के तहत पॉपकॉर्न के लिए तीन अलग-अलग टैक्स स्लैब की "बेतुकी" व्यवस्था केवल सिस्टम की बढ़ती जटिलता को उजागर करती है और पूछा कि क्या मोदी सरकार जीएसटी 2.0 को लागू करने के लिए पूरी तरह से बदलाव करने का साहस दिखाएगी।

'मैं नहीं चाहता पीएम मोदी और दुनिया के दूसरे नेता राजधानी में गड्ढे देखें', आखिर ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा?

#trump_says_never_wanted_pm_modi_to_see_tent_and_graffiti_washington

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वाशिंगटन डीसी की साफ सफाई को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि वह नहीं चाहते थे कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनसे मिलने आए अन्य वैश्विक नेताओं को वाशिंगटन में संघीय भवनों के पास तंबू और भित्तिचित्र देखने को मिलें। यही कारण है कि वैश्विक नेताओं के दौरे के दौरान उनके रूट को डायवर्ट कराया था। बता दें कि पिछले महीने पीएम मोदी सहित कई नेताओं ने अमेरिका का दौरा किया था।

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हम अपने शहर की सफाई करने जा रहे हैं। हम इस महान राजधानी की सफाई करेंगे, और यहां अपराध नहीं होने देंगे। हम भित्तिचित्रों को हटाने जा रहे हैं, और हम पहले से ही टेंट्स को हटा रहे हैं। इसके लिए हम प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने वाशिंगटन डीसी के मेयर म्यूरियल बोसर की तारीफ की और कहा कि वे राजधानी की सफाई का अच्छा काम कर रहे हैं। ट्रंप ने कहा कि 'हमने कहा कि विदेश विभाग के ठीक सामने बहुत सारे टेंट हैं। उन्हें हटाना होगा और उन्होंने उन्हें तुरंत हटा दिया। हम एक ऐसी राजधानी चाहते हैं जिसकी दुनियाभर में तारीफ हो।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने आगे कहा कि जब भारत के प्रधानमंत्री मोदी, फ्रांस के राष्ट्रपति ये सभी लोग… ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सभी पिछले डेढ़ सप्ताह में मुझसे मिलने आए थे और जब वे आए… तो मैंने मार्ग परिवर्तित कराया था। मैं नहीं चाहता था कि वे तंबू लगे देखें। मैं नहीं चाहता था कि वे भित्तिचित्र देखें। मैं नहीं चाहता था कि वे सड़कों पर टूटे हुए बैरियर और गड्ढे देखें। हमने इसे सुंदर बना दिया।

ट्रंप ने आगे कहा कि हम एक अपराध मुक्त राजधानी बनाने जा रहे हैं। जब यहां लोग आएंगे तो उन्हें लूटा नहीं जाएगा, गोली नहीं मारी जाएगी या दुष्कर्म नहीं किया जाएगा। यह पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित, साफ और बेहतर राजधानी होगी और इसमें ज्यादा समय भी नहीं लगेगा।

41 देशों पर ट्रैवल बैन लगाने की तैयारी में ट्रंप, क्या लिस्ट में भारत का नाम भी?

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दुनिया के अलग-अलग देशों पर अधिक टैरिफ लगाने की बात करने के बाद अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 41 देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने की भी तैयारी कर रहे हैं। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने कुल 41 देशों की कुल 3 लिस्ट बनाई है। जिन्हें तीन अलग-अलग समूहों में विभाजित किया गया है. इस सूची में पाकिस्तान का भी नाम है।

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तीन ग्रुप में बांटे गए देश

-पहले ग्रुप में 10 देशों का नाम शामिल है. इन देशों में अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, क्यूबा और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं। पहले ग्रुप के देशों के वीजा पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी।

-दूसरे समूह में पांच देश यानी इरिट्रिया, हैती, लाओस, म्यांमार और दक्षिण सूडान शामिल हैं। इन्हें आंशिक निलंबन का सामना करना पड़ेगा। पर्यटक और छात्र वीजा के साथ-साथ अन्य आप्रवासी वीजा प्रभावित होंगे, लेकिन कुछ अपवाद भी होंगे।

-तीसरे समूह में कुल 26 देश शामिल हैं। लिस्ट में बेलारूस, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देश हैं. इन देशों के नागरिकों के लिए वीजा जारी करने पर आंशिक प्रतिबंध लगाया जा सकता है। हालांकि इन देशों को 60 दिनों में कमियों को दूर करने का प्रयास करना होगा। यह सुरक्षा से जुड़े हो सकते हैं।

सूची में बदलाव संभव

रिपोर्ट के अनुसार एक अज्ञात अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि इस सूची में बदलाव संभव है। यानी कुछ नए देशों को जोड़ा जा सकता है, जबकि कुछ देशों को हटा दिया जा सकता है। अंतिम सूची प्रशासन की मंजूरी के बाद ही जारी होगी। अगर ट्रंप प्रशासन वीजा प्रतिबंध लगाता है, तो यह नई नीति नहीं होगी। अपने पहले कार्यकाल में, डोनाल्ड ट्रंप ने सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया था, जिसे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था।

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही 20 जनवरी को एक कार्यकारी आदेश जारी किया था, जिसमें अमेरिका में प्रवेश चाहने वाले किसी भी विदेशी की सुरक्षा और जांच को और भी सख्त करने की बात कही गई थी। आदेश में कैबिनेट के कई सदस्यों को 21 मार्च तक उन देशों की लिस्ट देने को कहा गया था, जिनके नागरिकों की यात्रा को आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करना चाहिए। इन देशों का नाम इस आधार पर शामिल करना था, जहां जांच और स्क्रीनिंग की प्रक्रिया में भारी कमियां हैं।

भाषा विवाद के बीच पवन कल्याण का तंज, बोले-हिंदी का विरोध करेंगे और कमाई के लिए फिल्में डब भी करेंगे

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केंद्र सरकार और तमिलनाडु के बीच चल रहे भाषा विवाद के बीच जनसेना पार्टी के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने बड़ा बयान दिया। आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने इस विवाद पर तमिलनाडु के नेताओं पर पाखंड करने का आरोप लगाया। उन्होंने आश्चर्य जताया कि कुछ लोग हिंदी का विरोध क्यों कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि वही लोग फिल्मों को हिंदी में डब कर लाभ कमाने की अनुमति भी दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने भारत की भाषाई विविधता को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि देश को सिर्फ दो नहीं, बल्कि तमिल सहित कई भाषाओं की जरूरत है।

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एनडीए के सहयोगी दल जनसेना पार्टी प्रमुख और तेलुगु एक्टर रहे पवन कल्याण ने कहा, तमिलनाडु राज्य हिंदी को आखिर क्यों खारिज करता है? जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोग तमिल फिल्मों को इतना पसंद करते हैं। वे लोग तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करके देखते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा के लिए दुश्मनी वाला नजरिया रखना बिल्कुल ही नासमझी है।

पवन कल्याण अपनी पार्टी 'जनसेना' के 12वें स्थापना दिवस के मौके पर अपने विधानसभा क्षेत्र 'पीथापुरम' में आयोजित एक सभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुसलमान अरबी या उर्दू में दुआ करते हैं, मंदिरों में संस्कृत मंत्रों से पूजा-पाठ होता है, क्या इन प्रार्थनाओं को तमिल या तेलुगु में पढ़ा जाना चाहिए?

डीएमके पर सीधे नाम लिए बिना कटाक्ष करते हुए पवन कल्याण ने तमिलनाडु के राजनेताओं पर पाखंड का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वे हिंदी का विरोध करते हैं, लेकिन वित्तीय लाभ के लिए तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति देते हैं। वे बॉलीवुड से पैसा चाहते हैं, लेकिन हिंदी को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। यह किस तरह का तर्क है?

उपमुख्यमंत्री ने तमिलनाडु के हिंदी विरोधी रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ये वाकई में गुमराह करने वाला बताया। उन्होंने बताया कि किसी चीज को तोड़ना आसान है, लेकिन उसको फिर से बनाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है। उन्होंने देश से उत्तर-दक्षिण विभाजन से आगे बढ़कर एकता और अखंडता को प्राथमिकता और महत्व देने की गुजारिश की। उन्होंने जनता को एक ऐसे राजनीतिक दल को चुनने की सलाह दी जो वास्तव में देश के फायदे के लिए काम करता हो और उसकी प्राथमिकता में राष्ट्र के हितों की रक्षा करना हो। उपमुख्यमंत्री ने ये सवाल इस समय उठाए हैं जब भारत में भाषा की राजनीति को लेकर अलग विचारधाराओं के लोगों के बीच विवाद की स्थिति बनी हुई है।

बता दें कि केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषीय फार्मूले पर तमिलनाडु में बवाल जारी है। आए दिन राज्य से हिंदी विरोध में कोई न कोई बयान आ रहा है। सीएम स्टालिन खुद हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। वह लगातार केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए तमिलनाडु पर हिंदी थोपने के आरोप लगा रहे हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन इस हद तक पहुंच गया है कि वहां हाल ही में बजट लोगो से भी रुपये का देवनागरी सिंबल हटाकर तमिल अक्षर कर दिया गया है।

कर्नाटक उपमुख्यमंत्री को कौन कर रहा ब्लैकमेल? जानें डीके शिवकुमार के इस बड़े आरोप की पूरी वजह

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कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बड़ा आरोप लगाया है। शिवकुमार ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि विभिन्न राजनीतिक दलों के विधायक बेंगलुरू के कचरा संकट को लेकर सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं। शिवकुमार ने विधान परिषद में उन्हें ‘ब्लैकमेलर' बताते हुए उन्होंने दावा किया कि ये विधायक विकास निधि में 800 करोड़ रुपये की मांग कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि शहर के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को एक बड़ा माफिया नियंत्रित कर रहा है।

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उपमुख्यमंत्री शहर में कूड़े के मुद्दे पर विधान पार्षद एम. नागराजू के सवाल का जवाब दे रहे थे। नागराजू ने बताया कि कचरा निस्तारण सुविधाओं की कमी के कारण कई कचरा परिवहन वाहन सड़कों पर फंसे हुए हैं। उन्होंने शहर से कचरा साफ न होने पर भी चिंता जताई। इस पर बेंगलुरु विकास मंत्री शिवकुमार ने विधान परिषद में कहा, मैंने मीडिया में कचरे की समस्या के बारे में खबरें देखी हैं। यहाँ एक बड़ा माफिया है। कचरा निस्तारण ठेकेदारों ने एक गिरोह बना लिया है और मानक दरों से 85 प्रतिशत अधिक कीमत लगाई है। अब, उन्होंने हमें कार्रवाई करने से रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

कचरे के प्रबंधन में कहां है पेंच?

शिवकुमार ने आगे दावा किया कि कानूनी बाधाओं के कारण ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को कारगर बनाने के सरकारी प्रयासों में देरी हो रही है। उपमुख्यमंत्री ने खुलासा किया कि सरकार ने शहर के कचरा निपटान कार्य को चार पैकेजों में विभाजित करने और कचरे को 50 किलोमीटर दूर ले जाने की योजना बनाई थी, लेकिन यह पहल रुकी हुई है।

'बंगलूरू के विधायक हमें ब्लैकमेल कर रहे हैं'

उन्होंने कहा, 'हमारे बंगलूरू के विधायक हमें ब्लैकमेल कर रहे हैं। मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता। मैं आपको सच्चाई बता रहा हूं। वे सभी पार्टियों से हैं। वे विकास निधि के रूप में 800 करोड़ रुपये चाहते हैं। मैं यहां उनका नाम नहीं ले सकता।' उन्होंने परिषद को बताया कि पिछले तीन दिनों से शहर के महादेवपुरा में वाहन फंसे हुए हैं।

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाक को लताड़ा, बताया आतंकवाद का केंद्र

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संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है। एक बार फिर दुनिया के सामने उसकी किरकिरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पार्वथानेनी हरीश ने जमकर लताड़ लगाई है। भारत ने साफ शब्‍दों में कह दिया कि पाकिस्‍तान ही दुनिया भर में फैल रहे आतंकवाद का एक प्रमुख केंद्र है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पार्वथानेनी हरीश ने कहा, केंद्र शासित प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है। अपनी आदत से मजबूर पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव ने भारतीय संघ शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर का अनुचित संदर्भ दिया। बार-बार ऐसी बेतुकी बाते करने से न तो उनके झूठ और पाखंड को सच मान लिया जाएगा और न ही सीमा पार आतंकवाद के उनके कुकृत्य को सही ठहराया जा सकेगा। इस देश की कट्टरपंथी मानसिकता जगजाहिर है। साथ ही कट्टरता का उसका रिकॉर्ड भी पूरी दुनिया के सामने है। इस तरह के प्रयासों से यह वास्तविकता नहीं बदलेगी कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और हमेशा रहेगा।

हरीश पार्वथानेनी ने यूएन सत्र में बताया, 'भारत विविधता और बहुलवाद की धरती है। भारत में 20 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम है और यह दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी में से एक है। भारत मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं की निंदा करने में यूएन के सदस्य के तौर पर एकजुट है। हरीश ने यह भी कहा कि धार्मिक भेदभाव, घृणा और हिंसा से मुक्त दुनिया को बढ़ावा देना भारत के लिए हमेशा से ही जीवन जीने का एक तरीका रहा है।

एक दिन पहले ही पाकिस्‍तान ने बलूचिस्‍तान ट्रेन हाईजैस केस के लिए भारत पर उंगली उठाई थी। इसपर करारा जवाब भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से भी दिया गया था। भारत ने कहा कि दुनिया अच्छी तरह से जानती है कि वैश्विक आतंकवाद का असली केंद्र कहां है। यूएन में भारत के स्थायी मिशन ने बाद में एक बयान जारी कर संयुक्त राष्ट्र सत्र में हरीश के मजबूत भाषण की सराहना की।

भारत में मस्क की इस कंपनी की एंट्री से पहले सरकार ने रखी बड़ी शर्त, जानें क्या कहा

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एलन मस्क की स्टारलिंक कंपनी भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने वाली है। देश की दिग्गज टेलीकॉम कंपनी एयरटेल और एलन मस्क की फर्म स्पेसएक्स ने स्टारलिंक की हाई-स्पीड इंटरनेट सर्विसेज को भारत में लाने के लिए एग्रीमेंट किया है। इसके पहले केंद्र सरकार ने स्टारलिंक के सामने कुछ शर्तें रखी हैं।केंद्र सरकार ने एलन मस्क के सैटेलाइट वेंचर स्टारलिंक को भारत में एक कंट्रोल सेंटर स्थापित करने को कहा है, ताकि कानून और व्यवस्था बनाए रखा जा सके।

न्यूज वेबसाइट टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह कंट्रोल सेंटर कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करेगा क्योंकि यह संवेदनशील क्षेत्रों में जरूरत पड़ने पर संचार सेवाओं को सस्पेंड करने या बंद करने में सक्षम होगा। सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि जब भी जरूरत होगी, सुरक्षा एजेंसियों के पास कुछ निर्धारित अधिकार होंगे, जो उन्हें आधिकारिक चैनलों के माध्यम से कॉल्स को इंटरसेप्ट करने की इजाजत देगा।

रिपोर्ट में कंट्रोल सेंटर के महत्व पर जोर देते हुए कहा गया है कि यह बहुत जरूरी है क्योंकि देश के किसी भी हिस्से में कानून और व्यवस्था की स्थिति में अचानक बदलाव के कारण संचार सेवाओं, जिसमें सैटेलाइट के जरिए दी जाने वाली सेवाएं भी शामिल हैं, को बंद करने की जरूरत पड़ सकती है। सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया कि हर बार इमरजेंसी के समय पर उनके दरवाजे खटखटाने या अमेरिका में उनके मुख्यालय से संपर्क करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। स्टारलिंक ने सरकार को इस मामले को देखने का आश्वासन दिया है।

टेलीकॉम कानून के तहत एक प्रावधान है कि सार्वजनिक आपातकाल के मामले में, जिसमें आपदा प्रबंधन या सार्वजनिक सुरक्षा शामिल है, केंद्र और राज्य सरकार किसी अधिकृत संस्था से किसी भी टेलीकॉम सेवा या नेटवर्क का अस्थायी रूप से अपने कंट्रोल में ले सकती है।

यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब सैटेलाइट कम्युनिकेशन लाइसेंस के लिए स्टारलिंक की एप्लिकेशन लास्ट स्टेज में है। इसमें कंपनी मार्केटिंग, तैनाती और नेटवर्क बढ़ाने के लिए रिलायंस जियो और एयरटेल के साथ समझौते कर रही है।

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइड करने के लिए देश की दो बड़ी टेलिकॉम कंपनियां जियो और एयरटेल ने इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के साथ करार किया है। समझौते के तहत, स्पेसएक्स और एयरटेल बिजनेस, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य सेवा केंद्रों और दूरदराज के क्षेत्रों में स्टारलिंक सर्विसेस देने के लिए मिलकर काम करेंगे। एयरटेल के मौजूदा नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर में स्टारलिंक टेक्नोलॉजी इंटीग्रेट करने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।

बांग्लादेशी राजदूत ने अपनी ही सरकार को घेरा, मोहम्मद यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

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शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ है। मोहम्मद यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरता अपने चरम पर है। मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों और कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से दुनिया भर में यूनुस सरकार की निंदा हुई है। भारत ने भी हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर कई बार बांग्लादेश सरकार को कड़े कदम उठाने को लेकर बोल चुका है। लेकिन यूनुस सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इस बीच मोरक्को में बांग्लादेश के राजदूत हारुन अल रशीद ने अपनी ही सरकार को घेरा है।

राजदूत हारुन अल रशीद ने मोहम्मद यूनुस पर कट्टरपंथियों का समर्थन करने और देश में अराजकता फैलाने का गंभीर आरोप लगाया है। रशीद का कहना है कि यूनुस बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष संरचना को तोड़ने और शेख हसीना की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं।

हारुन अल रशीद ने फेसबुक पर पोस्ट कर मोहम्मद यूनुस पर जमकर निशाना साधा। हारुन अल रशीद ने पोस्ट में लिखा कि बांग्लादेश आतंक और अराजकता की गिरफ्त में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के शासन में कट्टरपंथियों को खुली छूट दी गई है और मीडिया को दबा दिया गया है, जिससे अत्याचार की खबरें सामने नहीं आ रही हैं। रशीद ने लिखा, यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने में लगे हैं। ये लोग संग्रहालयों, सूफी दरगाहों और हिंदू मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं।

कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन देने का आरोप

रशीद ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के बाद से मुहम्मद यूनुस ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। वह अब एक सुधारक नहीं बल्कि एक अत्याचारी शासक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने जिस बांग्लादेश का निर्माण किया था, यूनुस ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। यहीं नहीं उन्होंने आगे कहा कि यूनुस के शासन के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। कट्टरपंथी संगठन जैसे हिजब-उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा खुलेआम इस्लामी शासन की मांग कर रहे हैं और इन्हें यूनुस का समर्थन मिल रहा है।

यूनुस पर चरमपंथियों को शह देने का आरोप

रशीद ने आगे कहा कि, बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन अब कट्टरपंथी इस पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना दोनों ही चरमपंथियों के निशाने पर रहे हैं, और अब यूनुस भी इन्हें शह दे रहे हैं।

कौन हैं हारुन अल रशीद?

बांग्लादेश सरकार ने अक्टूबर, 2023 में मोहम्मद हारुन अल रशीद को मोरक्को में बांग्लादेश का राजदूत नियुक्त किया था। मोहम्मद हारुन अल रशीद बांग्लादेश सिविल सेवा (विदेश मामले) कैडर के 20वें बैच से आते हैं। उन्होंने 2001 में सेवा में शामिल होने के बाद कनाडा में बांग्लादेश उच्चायोग में मंत्री और उप उच्चायुक्त के रूप में भी काम किया है। वह रोम, काहिरा, मैक्सिको सिटी और मैड्रिड में बांग्लादेश मिशनों में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं।