पुण्यतिथि विशेष: जानिए कौन थे डॉ. शांति स्वरूप भटनागर, जिनके नाम पर दिया जाता है प्रतिष्ठित पुरस्कार
नयी दिल्ली : हर साल विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्रालय द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को डॉ. शांति स्वरूप भटनागर पुरुस्कार दिया जाता है. PM Modi ने शुक्रवार को वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की सालाना बैठक को संबोधित किया.
इस दौरान उन्होंने इस लंबे सफर में वैज्ञानिकों के कई शानदार कामों का जिक्र किया. साथ ही कोरोना के समय में देश में जिस तरह से रिसर्च का काम हुआ है, पीएम ने उसकी सराहना की.
लेकिन पीएम के इस लंबे संबोधन के दौरान उन्होंने एक ऐसे शख्स का जिक्र किया, जिसके बिना भारत की हर खोज का बड़ा हिस्सा अधूरा है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं भारत के महान वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर की, जिनका पीएम ने जिक्र किया है।
इस वैज्ञानिक के नाम पर मिलते हैं पुरस्कार
हर साल विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्रालय द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है. भटनागर का जन्म 21 फरवरी 1894 को हुआ था, जिन्हें भारत की शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है. उन्होंने भारत के रिसर्च में बड़ा योगदान किया है.
बचपन में ही पिता को खोया
भारत की इस महान प्रतिभा का जन्म पंजाब के भेड़ा गांव में हुआ था. यह जगह अब पाकिस्तान में है. शांति भटनागर महज आठ महीने के ही थे जब उन्होंने अपने पिता को खो दिया. इसके बाद उनकी परवरिश उनके इंजीनियर नाना ने की. नाना की संगत में ही शांति स्वरुप की विज्ञान और प्रोद्यौगिकी में दिलचस्पी जगी. वे खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और खोजों में लग गए.
वैज्ञानिक ही नहीं कवि हृदय भी
शांति स्वरूप ने 1911 में लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज में दाखिला ले लिया. इस दौरान पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने उर्दू और हिंदी में लेखन कार्य किया.
उन्होंने उर्दू में ‘करामाती’ नामक एक नाटक लिखा. इस नाटक के अंग्रेजी अनुवाद ने उन्हें ‘सरस्वती स्टेज सोसाइटी’ का साल 1912 का ‘सर्वश्रेष्ठ नाटक’ पुरस्कार और पदक दिलवाया.
शांति स्वरुप भटनागर ने 1913 में पंजाब यूनिवर्सिटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. इसके बाद उन्होंने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया. यहां से उन्होंने 1916 में बीएससी और फिर एमएससी की परीक्षा पास की.
फिर शांतिस्वरूप भटनागर को विदेश में पढने के लिए ‘दयाल सिंह ट्रस्ट’ से छात्रवृति मिली और वे अमेरिका के लिए रवाना हो गए लेकिन पहुंच नहीं पाए. इसकी वजह यह थी कि उन्हें लंदन से अमेरिका जाने वाले जहाज़ पर सीट नहीं मिल सकी. वे लंदन में ही रुक गए.
बीएचयू में बने प्रफेसर
अगस्त 1921 में शांति स्वरूप लंदन से पढ़ाई करके भारत वापस आए. यहां वे नए-नए स्थापित हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक (प्रोफेसर) नियुक्त हो गए और तीन साल तक अध्यापन कार्य किया. बाद में वे पंजाब यूनिवर्सिटी से जुड़ गए और एक अध्यापक के रूप में उन्होंने कुल 19 साल तक शिक्षा जगत की सेवा की.
कई संस्थाओं के जन्मदाता*
डॉ भटनागर को ‘भारत की शोध प्रयोगशालाओं का जनक’ कहा जाता है. उन्होंने भारत में कई बड़ी रासायनिक प्रयोगशालाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनआरडीसी) और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना के लिए भी उन्हें याद किया जाता है.
डॉ भटनागर ने भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित कीं, इनमें मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रोसेसिंग प्रौद्योगिकी संस्थान भी शामिल है.
भारत में विज्ञान के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उनके देहांत के बाद सीएसआईआर ने उनकी स्मृति में उनके नाम पर पुरस्कार की घोषणा की. यह पुरस्कार हर क्षेत्र के कुशल वैज्ञानिकों को दिया जाता है. रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए शांति स्वरूप भटनागर को ब्रिटिश सरकार ने भी सम्मानित किया.
1943 में वे मशहूर रॉयल सोसायटी के फेलो भी चुने गए.
शांति स्वरूप भटनागर तेज दिमाग वैज्ञानिक होने के साथ एक कोमल ह्रदय कवि भी थे. हिंदी और उर्दू के बेहतरीन जानकार इस दिग्गज ने अपने नाटकों और कहानियों के लिए कॉलेज के समय में अनेक पुरस्कार भी जीते. लेकिन बतौर लेखक उनकी ख्याति कॉलेज परिसर से आगे नहीं जा पाई.
डॉ. शांति स्वरूप ने बीएचयू का कुलगीत भी लिखा था जो हिंदी कविता का बेहतरीन उदाहरण है. यह अलग बात है कि शायद इस विश्वविद्यालय के ही कई छात्र इस बात को न जानते हों.
Jan 03 2025, 13:05