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भारत ने बांग्लादेश के नेता की टिप्पणी पर ढाका के समक्ष 'कड़ा विरोध' दर्ज कराया

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने गुरुवार को कहा कि भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक प्रमुख सहयोगी महफूज आलम द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों पर ढाका के समक्ष 'कड़ा विरोध' दर्ज कराया है। पड़ोसी देश के नेताओं को आगाह करते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि नई दिल्ली "सभी संबंधित पक्षों को उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों के प्रति सचेत रहने की याद दिलाना चाहता है"। जायसवाल ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ संबंधों को बढ़ावा देने में भारत की रुचि की अभिव्यक्ति को दोहराया। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियां "सार्वजनिक अभिव्यक्ति में जिम्मेदारी की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं"।

बांग्लादेश की ओर से हम समझते हैं कि जिस पोस्ट का उल्लेख किया जा रहा है, उसे कथित तौर पर हटा दिया गया है। हम सभी संबंधित पक्षों को उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों के प्रति सचेत रहने की याद दिलाना चाहेंगे। जायसवाल ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "जबकि भारत ने बार-बार बांग्लादेश के लोगों और अंतरिम सरकार के साथ संबंधों को बढ़ावा देने में रुचि दिखाई है, ऐसी टिप्पणियां सार्वजनिक अभिव्यक्ति में जिम्मेदारी की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।" पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अब डिलीट हो चुके फेसबुक पोस्ट में आलम ने कहा कि भारत को उस विद्रोह को पहचानना चाहिए जिसने शेख हसीना को बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन का सामना करने के बाद हसीना को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। अगस्त में वह एक सैन्य विमान में ढाका से भाग गई, क्योंकि भीड़ ने राजधानी शहर में उसकी सुरक्षा को खतरा बताया था। देश से भागने के बाद, भीड़ ने उसके घर में तोड़फोड़ की। नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के गठन के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध तनावपूर्ण हैं।

नई दिल्ली ने गुरुवार को बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की और कहा कि ढाका में अंतरिम सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी उनके जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना है। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में यह टिप्पणी विदेश सचिव विक्रम मिस्री के बांग्लादेश दौरे के एक पखवाड़े से भी कम समय बाद की है, जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्यवाहक प्रशासन के सदस्यों को इस मुद्दे पर भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

सिंह ने कहा, "बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में भारत की चिंताओं को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के अधिकारियों को विभिन्न अवसरों पर, उच्चतम स्तर पर भी, अवगत कराया गया है और दोहराया गया है।"

43 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का कुवैत दौरा, पीएम मोदी की ये यात्रा कितनी अहम?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 और 22 दिसंबर को मुस्लिम देश कुवैत के दौरे पर रहेंगे. उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच पहले से ही अच्छे संबंधों में और मजबूती आएगी। मोदी कुवैत के अमीर शेख मिशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के न्योते पर वहां जा रहे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री 43 साल बाद कुवैत के दौरे पर जा रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी से पहले साल 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कुवैत के दौरे पर गई थीं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे पर दोनों देशों के अलावा दुनिया की भी नजर है। पीएम मोदी कुवैत में वहां के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के साथ बातचीत के साथ अलावा भारतीय समुदाय के लोगों से भी मुलाकात करेंगे। भारत के विदेश मंत्राैलय ने उम्मीद जताई है कि पीएम मोदी यह दौरा भारत और कुवैत के बीच संबंधों को बेहतर करेगा।

कुवैत इस समय गल्फ कॉर्पोरेशन काउंसिल (जीसीसी ) का अध्यक्ष है। जीसीसी में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सऊदी अरब, ओमान और कतर जैसे देश शामिल हैं। इनमें कुवैत ही अकेला जीसीसी सदस्य है, जहां नरेंद्र मोदी 2014 में पीएम बनने के बाद से अब तक नहीं गए हैं। कुवैत के लिए भारत शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है। भारत और कुवैत के बीच ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। कुवैत में भारतीय समुदाय सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। कुवैत में करीब 10 लाख भारतीय रहते हैं। ये दोनों देशों के बीच एक पुल की तरह काम करते रहे हैं।

कैसे हैं भारत-कुवैत संबंध?

भारत और कुवैत के रिश्ते प्राचीन काल से ही मजबूत रहे हैं, जब कुवैत का आर्थिक तंत्र समुद्री व्यापार पर निर्भर था। भारत से कुवैत आने-जाने वाले व्यापारिक जहाजों के माध्यम से लकड़ी, अनाज, कपड़े और मसाले कुवैत भेजे जाते थे, जबकि कुवैत से खजूर, अरब घोड़े और मोती भारत भेजे जाते थे। भारतीय रुपया कुवैत में 1961 तक कानूनी मुद्रा था, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों की स्थिरता का प्रतीक है।

भारत और कुवैत के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध 1961 में स्थापित हुए थे। इसके बाद से दोनों देशों के बीच कई उच्चस्तरीय दौरे हुए, जिनमें भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन (1965), प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1981) और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी (2009) शामिल हैं। कुवैत से भी कई महत्वपूर्ण दौरे हुए, जिनमें शेख सबा अल-आहमद अल-जाबेर अल-सबा (2006) और प्रधानमंत्री शेख जाबेर अल-मुबारक अल-हमद अल-सबा (2013) शामिल हैं। 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुवैत के क्राउन प्रिंस के बीच न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान मुलाकात हुई। इसके अलावा भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 18 अगस्त 2024 को कुवैत का दौरा किया।

कुवैत भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार

कुवैत भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में शामिल है। 2023-24 वित्तीय वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार 10.47 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। कुवैत भारत का 6वां सबसे बड़ा कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता है, जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का 3% पूरा करता है। कुवैत के लिए भारत का निर्यात पहली बार दो अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जबकि भारत में कुवैत निवेश प्राधिकरण का निवेश 10 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है।

तनाव भी हुआ, पर जल्द सुलझ गए मसले

हालांकि 1990 के दशक में कुवैत पर इराक के हमले के दौरान भारत के साथ उसके संबंधों में थोड़ा तनाव आया, क्योंकि इराक को भारत का समर्थन हासिल था। इसके अलावा अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद भी संबंधों पर असर पड़ा था। लेकिन भारत ने जल्द ही दोनों देशों के बीच बनी खाई को पाटने में कामयाबी पा ली। साल 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने कुवैत की मदद में उदारता दिखाई, उससे संबंधों को नई मजबूती मिली। भारत ने कोविड से निपटने के लिए 15 सदस्यों की क्यूआरटी यानी त्वरित प्रतिक्रिया टीम कुवैत भेजी। जवाब में मई, 2021 में कोविड की दूसरी लहर के दौरान कुवैत ने लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और वेंटिलेटर भारत भेजे।

वर्ल्ड मेडिटेशन डे पर श्री श्री रविशंकर का संयुक्त राष्ट्र में होगा संबोधन, 21 दिसंबर भारत के लिए होगा ऐतिहासिक दिन

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संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व ध्यान दिवस" पर भारत के मशहूर अध्यात्मिक संत श्री श्री रविशंकर को मुख्य व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया है। श्री श्री रविशंकर 21 दिसंबर दिन शनिवार को इस सबसे बड़े वैश्विक मंच पर दुनिया को भारत की अध्यात्मिक ताकत से अवगत कराएंगे। पूरी दुनिया के लिए वैश्विक ध्यान के लिहाज से श्री श्री रविशंकर का यह भाषण बेहद ऐतिहासिक होने जा रहा है। श्री श्री रविशंकर की दुनिया भर में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक के तौर पर उनकी ख्याति है।1982 में 10 दिनों के गहरे मौन के दौरान उन्होंने सुदर्शन क्रिया की खोज की, जो आर्ट ऑफ लिविंग का मूल आधार है।

न्यूयॉर्क स्थित यूनाइटेड नेशन में स्थित परमानेंट मिशन के ने वर्ल्ड मेडिटेशन डे से जुड़ा बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के मुताबिक 21 दिसंबर 2024 को पहली बार वर्ल्ड मेडिटेशन डे मनाया जाएगा। इस अवसर पर गुरुदेव श्री श्री रविशंकर का संबोधन होगा। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का विषय "वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए ध्यान" होगा। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर से लेकर यूरोपीय संसद और मलेशिया के दूतावासों तक, दुनिया में तमाम देशों में सभी को इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनने का खास अवसर है।

दुनिया के सबसे बड़े इस मंच पर संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस पर व्याख्यान देने के लिए आखिरकार श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना? इसके पीछे भी खास वजह है। संयुक्त राष्ट्र ने यह स्वीकार किया है कि विश्व कल्याण का नेतृत्व करने वाला भारत दुनिया का इकलौता देश है। क्योंकि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व कल्याण का नेतृत्व कर रहा है। भारत की छवि विश्व बंधु के रूप में उभरी है। किसी भी देश पर संकट, आपदा या आपातकाल की स्थिति में मदद करने वालों की लिस्ट में भारत प्रथम उत्तरदाता रहा है। इसलिए भारत के संत श्री श्री रवि शंकर को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस के मौके पर प्रमुख व्याख्यान के लिए चुना है। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में प्रथम विश्व ध्यान दिवस के उद्घाटन सत्र के दौरान आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मुख्य भाषण देंगे। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

यूएन के अधिकारियों ने कहा कि भारत ने 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने की पहल का नेतृत्व करके वैश्विक कल्याण में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया। विश्व ध्यान दिवस का आगाज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुआ है। बता दें कि पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में किया गया यह ऐतिहासिक प्रयास, विश्व के साथ अपने प्राचीन ज्ञान को साझा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि यह तिथि भारतीय परंपरा के अनुसार उत्तरायण शुरू होने पर पड़ती है, जो वर्ष का एक शुभ समय है और 21 जून को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का पूरक है। ऐसे में श्री श्री रविशंकर द्वारा दिया जाने वाला यह व्याख्यान बेहद ऐतिहासिक होगा।

राहुल या ममता कौन है पीएम मोदी के टक्कर का राष्ट्रीय चेहरा?
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* लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहुर का रास्ता दिखान के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन हुआ था। साल 2023 में जुलाई के महीने में 'इंडिया' गठबंधन की नींव रखी गई थी। तब सबसे बड़ा सवाल था कि गठबंधन का चेहरा कौन होगा। कांग्रेस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी थी इसलिए राहुल गांधी का नाम पर सभी सहमत हुए। हालांकि, ममता बनर्जी भी अप्रत्यक्ष रूप से दावेदारी में पीछे नहीं थे। इस साल जून में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो यह सवाल कुछ दिनों के लिए उठना बंद हो गया था। हालांकि, हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद ये प्रश्न फिर से खड़ा हो गया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के खराब प्रदर्शन ने विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व संकट को और गहरा कर दिया। संसदीय चुनाव में इन दोनों राज्यों में 'इंडिया' गठबंधन का प्रदर्शन अच्छा रहा था।इंडिया गठबंधन ने 234 सीटें जीती थीं और कांग्रेस की इसमें 99 सीटों की हिस्सेदारी थी। इसके बाद कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर गठबंधन के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही हैं। *राहुल को लेकर बदल रहे सहयोगियों के सुर* पिछले बीस साल से कांग्रेस के सहयोगी रहे लालू यादव के तेवर भी बदल चुके हैं।लालू यादव का भी कहना है कि, ममता को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व दे देना चाहिए। पत्रकारों ने जब उनसे कहा कांग्रेस ने ममता को नेतृत्व देने की मांग पर आपत्ति जताई है तो उन्होंने कहा, कांग्रेस के विरोध से कुछ नहीं होने वाला है। ममता को नेतृत्व दिया जाना चाहिए। लोकसभा चुनाव से पहले लालू ने राहुल की शादी को लेकर कहा था कि आप दूल्हा बनिए, हम बाराती बनने के लिए तैयार हैं। राजनीति के जानकारों ने उस समय लालू के इस बयान को इंडिया गठबंधन के नेतृत्व से जोड़कर भी देखा था। वहीं लालू आज ममता बनर्जी की वकालत कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन में 37 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरा सबसे बड़ा दल है और अखिलेश यादव की ममता बनर्जी से राजनीतिक नज़दीकियां किसी से छिपी नहीं हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस और सपा के बीच तनातनी भी देखने को मिली थी। सपा ने भी ममता के नाम का समर्थन किया है।शरद पवार इस मुद्दे पर पहले ही ममता का समर्थन कर चुके हैं। टीम “इंडिया” में कैप्टन की कुर्सी को लेकर अंदरूनी झगड़े के बीच सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल गांधी और ममता बनर्जी में कौन प्रधानमंत्री मोदी की टक्कर में राष्ट्रीय चेहरा साबित हो सकता है। *बंगाल में मजबूत हुईं ममता* इंडिया गठबंधन के नाते के रूप में ममता बनर्जी के दावेदारी की बात करें तो, जहां कांग्रेस बीजेपी के मुक़ाबले कई मोर्चों पर कमज़ोर साबित हुई है वहीं ममता के नेतृत्व में टीएमसी ने बीजेपी को लगातार चुनौती दी है। 2014 में जब मोदी ने पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब बीजेपी बंगाल में सिर्फ़ दो सीटें जीत पाई थी। इस चुनाव में ममता ने 34 सीटें जीती थीं। 2016 में ममता ने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता और मुख्यमंत्री बनी रहीं। इसके बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल पर अपना फ़ोकस बढ़ाया और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका फायदा भी मिला। बीजेपी ने 18 सीट जीतीं और टीएमसी के खाते में 22 आईं। टीएमसी को 12 सीटों का नुक़सान हुआ लेकिन अब भी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी टीएमसी ही थी। दो साल बीद 2021 में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाया। चुनाव से पहले कई नेता तृणमूल कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में चले गए। इसमें सुवेंदु अधिकारी जैसे बड़े नेता भी शामिल थे।लेकिन ममता ने राज्य में वापसी करते हुए 200 से ज़्यादा सीटें जीतीं और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी थीं। 2024 का लोकसभा चुनाव उन्होंने अकेले लड़ा और सबसे ज़्यादा 29 सीटें जीतीं। इसके बाद टीएमसी सीटों के मामले में चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। *तीन बार सीएम रहकर भी बंगाल का हाल* हालांकि, ऐसा नहीं है कि ममता अपने राज्य के बाहर भीड़ खींचने वाली नेता हैं। न ही ऐसा कोई सबूत है कि कोलकाता में पिछले 13 सालों में उनका शासन प्रेरणादायक रहा है। मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का इस्तेमाल खुद को कुशल प्रशासक के तौर पर स्थापित करने के लिए किया था। ममता के लंबे कार्यकाल से बंगाल की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। उनकी शानदार चुनावी सफलता के पीछे मुस्लिम समर्थन, दबंग रणनीति का हाथ है। खुशकिस्मती से यह फॉर्मूला भारत के ज्यादातर हिस्सों में काम नहीं कर सकता।तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव बंगाल से बाहर नहीं है। ममता दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेताओं के लिए खतरा नहीं मानी जाती हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन पर बनी जेपीसी में राज्यसभा से 12 सांसद शामिल, जानें किन्हें मिला स्थान
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* वन नेशन वन इलेक्शन को राज्यसभा में ध्वनि मत से मंजूरी मिल गई। साथ ही उससे संबंधित एक अन्य विधेयक पर विचार के लिए गठित की जाने वाली समिति में उच्च सदन के 12 सदस्यों को नामित करने के प्रस्ताव को भी ध्वनि मत से मंजूर किया गया है। एक देश, एक चुनाव से संबंधित बिल शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में आया और हंगामे के बीच डिवीजन के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया। जेपीसी को लेकर भी तस्वीर अब साफ हो गई है। एक देश, एक चुनाव के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक के लिए गठित जेपीसी में 39 सदस्य होंगे जिनके नाम सामने आ गए हैं।लोकसभा के 27 और राज्यसभा के 12 सदस्य जेपीसी में होंगे। इससे पहले, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने निम्न सदन, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले 129वां संशोधन विधेयक, 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि संशोधन विधेयक, 2024 को संसद की संयुक्त समिति के विचार के लिए भेजे जाने का प्रस्ताव रखा था। उच्च सदन से इस समिति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के घनश्याम तिवाड़ी, भुनेश्वर कलिता, के लक्ष्मण, कविता पाटीदार, जनता दल (यूनाइटेड) के संजय झा, कांग्रेस के रणदीप सिंह सुरजेवाला, और मुकुल वासनिक, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पी विल्सन, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, बीजू जनता दल के मानस रंजन मंगराज और वाईएसआर कांग्रेस के वी विजय साई रेड्डी को शामिल किया गया है। *जेपीसी में लोकसभा के ये 27 सदस्य* इस समिति में लोकसभा से जिन 27 सदस्यों को शामिल किया गया उनमें भारतीय जनता पार्टी से पीपी चौधरी, सीएम रमेश, बांसुरी स्वराज, पुरुषोत्तम रुपाला, अनुराग ठाकुर, विष्णु दयाल शर्मा, भर्तृहरि महताब, संबित पात्रा, अनिल बलूनी, विष्णु दत्त शर्मा, बैयजंत पांडा और संजय जायसवाल शामिल हैं। कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी और सुखदेव भगत को इस समिति का हिस्सा बनाया गया है। समाजवादी पार्टी से धर्मेंद्र यादव और छोटेलाल, तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी, द्रमुक से टी एम सेल्वागणपति, तेलुगु देशम पार्टी से हरीश बालयोगी, शिवसेना (उबाठा) से अनिल देसाई, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) से सुप्रिया सुले, शिवसेना से श्रीकांत शिंदे, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से शांभवी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के शामिल हैं। राधाकृष्णन, राष्ट्रीय लोक दल के चंदन चौहान और जन सेना पार्टी के बालाशौरी वल्लभनेनी को इस समिति में शामिल किया गया है। *भरतृहरि महताब होंगे अध्यक्ष* बीजेपी सांसद भरतृहरि महताब वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए गठित जेपीसी के अध्यक्ष होंगे। पहले इसमें लोकसभा से 21 सदस्यों और राज्यसभा से 10 सदस्यों को नामित किया गया था। इसे बाद में लोकसभ के 27 और राज्यसभा के 12 सदस्यों में बदल दिया गया। जेपीसी में नई सूची के अनुसार, दोनों सदनों से मिलाकर कुल 39 सदस्य होंगे।
बैग पॉलिटिक्सः बीजेपी सांसद ने प्रियंका गांधी को दिया 1984 लिखा बैग, जानें क्या है सियासी मतलब?

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संसद के शीतकालीन सत्र में इस बार बैग पर खूब सियासत देखने को मिली। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी सत्र के दौरान लगातार नए-नए बैग लेकर संसद पहुंच रही थीं। पहले कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने फिलिस्तीन का मुद्दा उठाने के लिए एक बैग पर उसके समर्थन का नारा लिख संसद पहुंची। उसके बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के समर्थन जताते हुए स्लोगन लिखे बैग के साथ संसद पहुंची। इस बीच बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी ने प्रियंका गांधी को एक बैग दिया है। भाजपा ने इस बैग जरिए प्रियंका गांधी और कांग्रेस पार्टी को घेरने की कोशिश की है।

संसद परिसर के अंदर प्रियंका गांधी को बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी ने एक बैग गिफ्ट किया जिसमें 1984 लिखा हुआ था। आज संसद सत्र का आखिरी दिन था। सभी सांसदों की तरह वायनाड सांसद प्रियंका गांधी भी संसद परिसर के अंदर थीं। जैसे ही वह संसद के गलियारे में पहुंचीं, पीछे से भुवनेश्वर सीट से बीजेपी सांसद अपराजिता सांरगी पहुंचीं। उन्होंने आगे चल रहीं प्रिंयका को एक बैग थमाया। उस बैग में खून से 1984 लिखा हुआ था। पहले तो प्रिंयका इसे लेने में हिचकिचाईं, फिर इसे लेकर छिपा लिया।

अपराजिता ने कहा कि वह संसद में नए-नए बैग लेकर आती हैं तो मैंने भी सोचा कि उन्हें एक बैग गिफ्ट करूं।प्रियंका जी को बैग्स का इतना शौक है,इसलिए मैंने उन्हें 1984 के सिख विरोधी दंगों का यह बैग दिया। पहले तो उन्होंने लेने में झिझक दिखाई,लेकिन फिर उन्होंने इसे ले लिया और छिपा लिया। उन्होंने आगे कहा कि हम उन्हें उनकी पार्टी की ओर से की गई ऐतिहासिक गलती की याद दिलाना चाहते थे।

बता दें कि साल 1984 में कांग्रेस के ही राज में सिख दंगे हुए थे,जिसे लेकर अक्सर बीजेपी उसे कटघरे में खड़ी करती रहती है। भाजपा ने इस बैग के जरिए सिख दंगों को याद दिलाने की कोशिश की।

प्रियंका गांधी के दो अलग-अलग बैग, उसपर लिखे 'फिलिस्तीन' और 'बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ खड़े रहो' जैसे मैसेज पर भारतीय जनता पार्टी खूब हमलावर है। माना जा रहा है कि यह बीजेपी की ओर से प्रियंका गांधी को कथित बैग पॉलिटिक्स का जवाब था। हालांकि, इससे पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने फिलस्तीन लिखा बैग संसद परिसर में लेकर जाने पर प्रियंका गांधी पर कटाक्ष किया था। आदित्यनाथ ने विधानसभा में शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन कहा था कि कांग्रेस की एक नेता संसद में फिलिस्तीन का बैग लेकर घूम रही थीं और हम उप्र के नौजवानों को इजराइल भेज रहे हैं।

पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल के खिलाफ क्यों हो गया अमेरिका, खुद के लिए किस खतरे की कर रहा बात?

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पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल विकसित कर रहा है। वह ऐसी मिसाइलें बनाने में लगा है जिसमें दक्षिण एशिया के बाहर अमेरिका पर भी हमला करने की क्षमता हो। जिसके बाद अमेरिका ने एक अहम फैसले में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम में शामिल चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार जॉन फाइनर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां उसके इरादों पर गंभीर सवाल उठाती हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक भाषण के दौरान जॉन फाइनर ने कहा, 'साफ तौर पर हमें पाकिस्तान की गतिविधियां अमेरिका के लिए एक उभरते हुए खतरे के रूप में ही दिखाई देती हैं।'

फाइनर के मुताबिक ऐसे सिर्फ तीन ही देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार और अमेरिका तक मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया शामिल हैं। ये तीनों ही देश अमेरिका के विरोधी हैं। ऐसे में पाकिस्तान के ये कदम अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनते जा रहे हैं।

फाइनर ने कहा,पाकिस्तान का ये कदम चौंकाने वाला है, क्योंकि वह अमेरिका का सहयोगी देश रहा है। हमने पाकिस्तान के सामने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। हमने उसे मुश्किल समय में समर्थन दिया है और आगे भी संबंध बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का ये कदम हमें ये सवाल करने पर मजबूर करता है कि वह ऐसी क्षमता हासिल क्यों करना चाहता है, जिसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है।

एक दिन पहले ही अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। विदेश विभाग की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय पाकिस्तान की लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास से होने वाले खतरे को देखते हुए लिया गया है।अमेरिका ने गुरुवार को बताया कि चार संस्थाओं को कार्यकारी आदेश 13382 के तहत प्रतिबंधित किया गया है, जो विनाशकारी हथियारों और उनके वितरण के साधनों के प्रसार से जुड़े लोगों पर लागू होता है। बयान के मुताबिक पाकिस्तान की 'नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स' और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं जैसे अख्तर एंड संस प्राइवेट लिमिटेड और रॉकसाइड एंटरप्राइज पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम के लिए उपकरण आपूर्ति करने का आरोप है।

पाकिस्तान ने बैन को बताया पक्षपातपूर्ण

अमेरिका के प्रतिबंधों की पाकिस्तान ने कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपाती करार दिया है और कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक परिणाम लाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा, 'पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमताएं उसकी संप्रभुता की रक्षा और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं। प्रतिबंध शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को विफल करते हैं।

चीन की 3 कंपनियों पर लगाया था बैन

इससे पहले इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए तकनीक सप्लाई करने पर चीन की 3 कंपनियों पर बैन लगा दिया था। इस लिस्ट में बेलारूस की भी एक कंपनी शामिल थी।

80 के दशक में शुरू हुआ पाकिस्तान का मिसाइल प्रोग्राम

पाकिस्तान ने 1986-87 में अपने मिसाइल प्रोग्राम हत्फ की शुरुआत की थी। भारत के मिसाइल प्रोग्राम का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।

हत्म प्रोग्राम में पाक रक्षा मंत्रालय को फौज से सीधा समर्थन हासिल था। इसके तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले हत्फ-1 और फिर हत्फ-2 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्फ-1 80 किमी और वहीं हत्फ-2 300 किमी तक मार करने में सक्षम थी।

यह दोनों मिसाइलें 90 के दशक में सेना का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद हत्फ-1 को विकसित कर उसकी मारक क्षमता को 100 किलोमीटर बढ़ाया गया। 1996 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की।

फिर 1997 में हत्फ-3 का सफल परीक्षण हुआ, जिसकी मार 800 किलोमीटर तक थी। साल 2002 से 2006 तक भारत के साथ तनाव के बीच पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा मिसाइलों की टेस्टिंग की थी।

फडणवीस का महाराष्ट्र चुनाव में विदेशी दखल का दावा, सोनिया के सोरोस कनेक्शन के बाद राहुल की भारत जोड़ों यात्रा पर सवाल

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भाजपा ने कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी का नाम अमेरिका कारोबारी जॉर्ज सोरोस से जोड़ा है। भाजपा ने आरोप लगाया कि जॉर्ज सोरोस की एक संस्था में सोनिया गांधी को-चेयरपर्सन हैं। जॉर्ज सोरोस वही व्यक्ति हैं जो कश्मीर को भारत से अलग एक स्वतंत्र देश की बात करते हैं। भाजपा ने कहा कि ऐसे में सोनिया गांधी देश विरोधी लोगों के साथ काम करती हैं। अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में अर्बन नक्सल का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को विधानसभा में बड़ा खुलासा किया। उन्होंने कहा कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में आतंकी फंडिंग का इस्तेमाल हुआ है। इस मामले की जांच एटीएस कर रही है। फडणवीस ने यह भी दावा किया कि भारतीय चुनावों में विदेशी दखलअंदाजी के सबूत मिले हैं। उन्होंने नेपाल में हुई एक बैठक का भी जिक्र किया, जिसमें ईवीएम की जगह बैलेट पेपर लाने की बात हुई थी।

चुनाव में आतंकी फंडिंग?

फडणवीस ने नासिक के मालेगांव जिले में चल रही एक जांच का जिक्र किया। फडणवीस ने बताया कि इस साल मालेगांव में कुछ युवाओं ने पुलिस में शिकायत की कि उनके खातों में 114 करोड़ रुपये बेनामी जमा किए गए हैं। आरोपी सिराज मोहम्मद ने 14 लोगों के आधार और पैन विवरण का इस्तेमाल करके नासिक मर्चेंट्स कोऑपरेटिव बैंक, मालेगांव में 14 खाते खोले। सीएम ने कहा कि इस तरह जमा किए गए 114 करोड़ रुपये को सिराज मोहम्मद और 21 अन्य खातों में भेज दिया गया। यह मामला सिर्फ मालेगांव तक सीमित नहीं है। बल्कि 21 राज्यों में फैला है। 201 खातों में 1000 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ है। इस 1000 करोड़ में से 600 करोड़ रुपये दुबई भेजे गए और 100 करोड़ रुपये महाराष्ट्र चुनाव में अलग-अलग कामों के लिए इस्तेमाल किए गए। फडणवीस ने आगे कहा कि एटीएस आतंकी फंडिंग के तहत इसकी जांच कर रही है।

भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल

महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने एक और बड़ा हमला बोला। गंभीर आरोप लगाते हुए फडणवीस ने कहा कि इस साल 15 नवंबर को नेपाल में एक बैठक हुई थी। जिसमें ईवीएम का विरोध करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। बैठक में महाराष्ट्र और अन्य बीजेपी शासित राज्यों में बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए अभियान चलाने का फैसला लिया गया। इस बैठक में 40 अर्बन नक्सन संगठनों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि इससे पहले महाराष्ट्र चुनाव को लेकर 180 संगठनों ने बैठक की थी। इन संगठनों के संबंध भारत जोड़ो अभियान से है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इन 40 संगठनों ने राज्य चुनाव के दौरान कार्यक्रम आयोजित किए और पर्चे भी प्रकाशित किए। फडणवीस ने पूर्व राज्य गृह मंत्री आर. आर. पाटिल का हवाला देते हुए कहा कि इन संगठनों को पहले भी फ्रंटल संगठन के रूप में नामित किया गया था। उन्होंने अपने इस दावे के सबूत होने की भी बात कही।

देवेंद्र फडणवीस ने 72 फ्रंटल संगठनों का किया जिक्र

देवेंद्र फडणवीस ने आगे कहा, 18 फरवरी 2014 को मनमोहन सिंह सरकार के दौरान केंद्र सरकार ने लोकसभा में 72 फ्रंटल संगठनों का जिक्र किया था, जिनमें से 7 संगठन आपके भारत जोड़ो के हैं। एंटी-नक्सल ऑपरेशन में जिन 13 संगठनों के नाम लिए गए, उनका संबंध भारत जोड़ो से है।

हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला का निधन, 89 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

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हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का शुक्रवार को निधन हो गया। गुरुग्राम मेदांता में उन्होंने दोपहर करीब 12 बजे अंतिम सांस ली। शुक्रवार को अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें मेदांता की इमरजेंसी में लाया गया था। मेदांता प्रशासन ने उनके निधन की पुष्टि की है। डॉक्टरों ने उनकी मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट बताई है।

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के निधन की पुष्टि की और कहा कि हरियाणा की राजनीति में ओमप्रकाश चौटाला का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। उधर, ओमप्रकाश चौटाला के पार्थिव शरीर को शनिवार सुबह 8:00 बजे से चौटाला गांव में उनके फार्म हाउस पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। फिर दोपहर 3:00 बजे चौटाला गांव में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

जानकारी के अनुसार, पूर्व सीएम ओपी चौटाला बीते कुछ समय से गुरुग्राम में रह रहे थे। इस दौरान शुक्रवार सुबह साढ़े 11 बजे के करीब उन्हें गुरुरग्राम के मैंदाता अस्पताल लाया गया था और यहां पर उन्होंने 12 बजे बाद अंतिम सांस साल ली। सांस लेने में दिक्कत के चलते उन्हें अस्पताल ले जाया गया था।

ओम प्रकाश चौटाला सात बार के विधायक, पांच बार के सीएम रहे चुके हैं। दो दिसंबर 1989 को चौटाला पहली बार मुख्यमंत्री बने थे और वे 22 मई 1990 तक इस पद पर रहे। 12 जुलाई 1990 को चौटाला ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद को शपथ ली थी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को दो माह में ही पद से हटा दिया गया था। हालांकि चौटाला को भी पांच दिन बाद ही पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। 22 अप्रैल 1991 को तीसरी बार चौटाला ने सीएम पद संभाला, लेकिन दो हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) के नाम से नई पार्टी बनाई। 1998 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में बसपा से गठबंधन कर हरियाणा में पांच लोकसभा सीटें जीती। इसके बाद उनके दल को मान्यता मिली। इसके बाद उनकी पार्टी का नाम बदलकर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) कर दिया गया। 24 जुलाई 1999 में चौटाला ने चौथी बार सीएम पद संभाला था और दिसंबर 1999 में उन्होंने विधानसभा भंग करवा दी और विधानसभा चुनाव के बाद दो मार्च 2000 को चौटाला पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने। उसके बाद चौटाला पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे।

ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के बेटे हैं। ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को हरियाणा के सिरसा जिले के चौटाला गांव में हुआ था। उनके पिता चौधरी देवीलाल चौटाला ने हरियाणा राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बाद में देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री और भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे

सरकारी शटडाउन पर ट्रंप समर्थित बिल को नहीं मिला पूर्ण बहुमत, 38 रिपब्लिकंस ने भी विरोध में की वोटिंग

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अमेरिका पर इस समय आर्थिक संकट आ गया है। उसके पास इतना पैसा नहीं बचा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दे सके। हालात शटडाउन जैसे हो चुके हैं। सरकार को फंड जुटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थित बिल गुरुवार रात अमेरिकी संसद में गिर गया।इससे बचने के लिए अमेरिका के पास 24 घंटे से भी कम का समय बचा है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की फेडरल ऑपरेशन को फंड देने और गवर्नमेंट शटडाउन से एक दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने या सस्पेंड करने के प्लान को खारिज कर दिया है। गुरुवार रात अमेरिकी संसद में सरकारी शटडाउन से बचने के लिए बिल लाया गया था। इस बिल को ट्रंप का समर्थन था। करीब 3 दर्जन रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट्स के साथ मिलकर ट्रंप समर्थित इस बिल के खिलाफ वोटिंग की। संसद में यह बिल 174-235 से गिर गया और बहुमत वोट भी हासिल करने में विफल रहा।

दरअसल, डेमोक्रेट्स ट्रंप को उनके नए कार्यकाल के पहले साल के दौरान बातचीत का फायदा नहीं देना चाहते। इस वजह से उन्होंने इस बिल का विरोध किया। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से जीते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी शटडाउन को रोकने के लिए देश की कर्ज सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने का प्रावधान को कानून में शामिल किए जाने की मांग की थी, खास बात यह है कि इस कदम का उनकी अपनी पार्टी नियमित तौर पर विरोध करती रही है। उन्होंने बुधवार को एक बयान में कहा कि इसके अलावा कुछ भी हमारे देश के साथ विश्वासघात है।

क्या होता है सरकार का शटडाउन?

अमेरिकी सरकार में शटडाउन तब होता है, जब सरकार के खर्च संबंधी विधेयक अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले लागू नहीं हो पाते हैं। शटडाउन के चलते संघीय सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ती है और गैर जरूरी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना पड़ता है। इस दौरान सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली जरूरी एजेंसियों के कर्मचारी ही काम करते हैं। शटडाउन के चलते संघीय और राज्य सरकारों के बीच का समन्वय भी बाधित होता है। फंडिंग में अंतराल के चलते साल 1980 में अमेरिका में शटडाउन को लेकर पहली बार कानूनी राय दी गई थी। साल 1990 से शटडाउन लागू होने लगे और फरवरी 2024 तक अमेरिका में 10 फंडिंग शटडाउन हो चुके हैं।

क्यों जरूरी है इसका पास होना?

दरअसल, अमेरिका को अपने खर्च चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। यह फंड कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इसके लिए एक बिल अमेरिकी संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में लाया जाता है। मौजूदा बिल को ट्रंप की ओर से लाया गया था, जिसे विपक्ष से खारिज कर दिया। इसका सीधा का मतलब है कि अमेरिका को खर्च के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अमेरिका इस पैसे से ही न केवल सरकारी अधिकारियों को सैलरी देती है बल्कि दूसरे खर्च भी चलते हैं।

तो अमेरिका में हो जाएगा शटडाउन

इस बिल को पास कराने के लिए शुक्रवार रात तक का ही समय है। यानी अमेरिकी सरकार के पास 24 घंटे खर्च चलाने लायक पैसा भी नहीं है। अगर यह पास नहीं हो पाया तो अमेरिका में शटडाउन लग जाएगा। ऐसा होने पर अमेरिका पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। इसका सबसे ज्यादा असर ट्रंप पर पड़ेगा