हेमंत सरकार के सर्वदलीय समिति जाएगी असम,वहां झारखण्ड से ले जाकर बसाये गए आदिवासी कि स्थिति का लेगी जयजा
झारखण्ड डेस्क
झारखण्ड में विधानसभा चुनाव के दौरान हिमंता विश्व सरमा चुनाव प्रभारी के रूप में लगातार हेमंत सोरेन पर हमलाबर रहे. हालांकि हिमांता का बयान भाजपा के लिए उल्टा दाव पड़ा और भाजपा झारखण्ड में बुरी तरह हार गए और हेमंत सोरेन की सरकार एक तिहाई बहुमत से वापस आयी. अब हेमंत सोरेन ने अपनी राजनितिक दाव चलते हुए असम को बड़ा झटका देने की तैयारी में लग गए हैं जिससे बबाल मच गया है.
नए सरकार में शपथ लेने के बाद झारखण्ड सरकार ने निर्णय लिया है कि असम की चाय बागानों में काम करने गए झारखंड के मजदूरों के हित को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया। हेमंत सोरेन सरकार ने असम में काम कर रहे झारखंडी मजदूरों की स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करने का फैसला लिया।आदिवासियों को असम, अंडमान और निकोबार में बसाया गया।
झारखंड कैबिनेट की बैठक के बाद समाप्त होने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मीडिया को बताया कि एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा हुई है। उन्होंने बताया कि झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों को देश के विभिन्न हिस्सों में बसाया गया। असम, अंडमान और निकोबार और अन्य जगहों में बसाया गया है।उन्हें अंग्रेज़ काम करने के लिए वहां ले गए थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन आदिवासियों की आबादी 15-20 लाख है, लेकिन उन्हें अभी तक वहां आदिवासी का दर्ज़ा नहीं मिला है। उनकी सरकार ऐसे सभी मूल निवासियों को झारखंड लौटने के लिए आमंत्रित कर रही है। इस मुद्दे के लिए एक मंत्री स्तर की समिति बनाई जाएगी। यह एक सर्वदलीय समिति होगी जिसके प्रतिनिधि उन सभी जगहों पर जाएंगे। वहां के मुद्दों का आकलन करेंगे और राज्य सरकार को बताएंगे।
चाय जनजातियों के लिए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण
कैबिनेट की बैठक समाप्त होने के बाद विभाग की सचिव वंदना दादेल ने बताया कि असम राज्य में झारखंड मूल की चाय जनजातियां को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने बताया कि इन चाय जनजातियों की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कल्याण सर्वेक्षण कराया जाएगा।
कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में कमेटी गठित होगी
चाय जनजातियों की आर्थिक और सामाजिक सर्वेक्षण के लिए एक समिति गठित की जाएगी। झारखंड के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के नेतृत्व में एक समिति गठित की जाएगी। झारखंड सरकार की ओर से आर्थिक सामाजिक सर्वेक्षण करा कर चाय जनजातियों को उनका हक-अधिकार दिलाने के लिए पहल की जाएगी।
क्या विधानसभा चुनाव के दौरान हिमांता विस्व सरमा द्वारा सोरेन परिवार पर प्रहार का है यह जवाब
राजनीतिक जानकारों के अनुसार असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरकार बार-बार झरखंड आ रहे हैं, इसलिए झारखंड कैबिनेट के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है। जानकरों के अनुसार असम की अर्थव्यवस्था में वहां के चाय बगान का 5000 करोड़ रुपए का योगदान है, जबकि तीन हजार करोड़ रुपये फॉरेन करेंसी की मिलती है। इतना ही नहीं वहां चाय बगानों में लगभग सात लाख मजदूर काम करते हैं, जिसमें 70 फीसदी झारखंड संताल परगना और राज्य के अलग-अलग इलाकों के आदिवासी-मूलवासी हैं।
ये 1840 में ले जाये गए असम
1840 के दशक के दौरान छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी ब्रिटिश नियंत्रण के विस्तार के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे और असम में चाय उद्योग के विस्तार के लिए सस्ते श्रमिकों की कमी हो रही थी। इस कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने मुख्य रूप से आदिवासियों और कुछ पिछड़ी जाति के हिन्दुओं को अनुबंधित मजदूरों के रूप में असम के चाय बागानों में काम करने के लिए भर्ती किया। इस तरह से धीरे-धीरे झारखंड के हजारों-लाख आदिवासी असम जाकर मजदूर बन गए।
अब झारखंड सरकार के इस फैसले से असम की राजनीति पर भी असर पड़ेगा। पहले तो वहां की सरकार पर झारखंड के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने की मांग के जोर पकड़ने की संभावना है। वहीं इन चाय मजदूरों को आर्थिक तौर पर उनके योगदान को सम्मान भी मिलने की उम्मीद है।
Dec 03 2024, 19:55