बेगूसराय में सिमरिया घाट पर सामा-चकेवा को किया विसर्जित
बेगूसराय में छठ से शुरू मिथिला की लोक संस्कृति के उत्सव सामा-चकेवा का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर शुक्रवार रात हो गया। समदाउन गाते हुए विसर्जन के लिए समूह में घर से निकली टोली नदी किनारे पहुंची और चुगला के मुंह में आग लगाने के वाद वृंदावन से बुझाकर सामा-चकेवा सहित अन्य मूर्ति को अगले साल आने की कामना के साथ विसर्जित कर दिया। सिमरिया घाट में रात एक सौ से अधिक सामा-चकेवा का विसर्जन किया गया। चौड़ा में सजे सामा-चकेवा को विसर्जन के लिए भाई आगे-आगे लेकर चल रहा था।
जबकि पीछे से महिलाएं गीत गाती चल रही थीं। महिलाओं ने बताया कि एक सप्ताह से हमलोग रोज गाते थे 'सामा खेले चलली भौजी संग सहेली, जुग जुग जियो हो, हो भैया जिओ हो।' बदलते परिवेश के बाद सामा-चकेवा खेलने वालों की संख्या में कमी आई, बावजूद इसके लोगों का उत्साह चरम पर रहा। भाई-बहन के कोमल और प्रगाढ़ रिश्ते को बेहद मासूम अभिव्यक्ति देने वाला यह लोक उत्सव मिथिला संस्कृति के समृद्धता और कला का एक अंग है, जो सभी समुदायों के बीच व्याप्त बाधाओं को भी तोड़ता है। सामा, चकेवा, चुगला, सतभईयां, टिहुली, कचबचिया, चिरौंता, हंस, सतभैंया, वृंदावन सहित अन्य मूर्ति को बांस से बने दउरा में सजाकर तैयार किया था और रात में इसे ओस चाटने के लिए घर के बाहर छोड़ दिया जाता था। रात के समय एक दूसरे के साथ हंसी ठिठोली करती लगातार आठ दिनों तक सामा खेलते रहे। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री श्यामा और पुत्र शाम्ब के बीच अपार स्नेह था। कृष्ण की बेटी श्यामा का विवाह ऋषि कुमार चारूदत्त से हुआ था। श्यामा ऋषि मुनियों की सेवा करने बराबर उनके आश्रमों में सखी डिहुली के साथ जाया करती थी। भगवान कृष्ण के दुष्ट स्वभाव के मंत्री चुरक को यह रास नहीं आया और उसने श्यामा के विरुद्ध राजा के कान भरना शुरू किया। जिससे क्रुद्ध होकर श्रीकृष्ण ने बगैर जांच पड़ताल के ही श्यामा को पक्षी बन जाने का शराप दे दिया। पत्नी को पक्षी रूप में देखकर श्यामा का पति चारूदत्त ने भी भगवान भोले शंकर की अर्चना कर पक्षी का रूप प्राप्त कर लिया। श्यामा के भाई और भगवान श्रीकृष्ण के बेटे शाम्भ ने जब यह देखा तो बहन और बहनोई की दशा से मर्माहत होकर अपने पिता की आराधना शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने वरदान मांगने को कहा तो उसने बहन-बहनोई को मानव रूप में वापस लाने का वरदान मांगा। तब श्रीकृष्ण को पूरी सच्चाई का पता लगी और शाप मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा कि श्यामा रूपी सामा और चारूदत्त रूपी चकेवा की मूर्ति बनाकर उनके गीत गाएं और चुरक की कारगुजारियों को उजागर करें तो दोनों फिर से अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त कर सकेंगे। तभी से बहनें भाई के दीर्घायु होने की कामना के लिए सामा-चकेवा पर्व मनातीं हैं।
बेगूसराय से नोमानुल हक की रिपोर्ट
Nov 22 2024, 18:20