काशी के जलपुरूष प्रो. अशोक कुमार सोनकर ने कहा कि जल है तो कल है
श्रीप्रकाश यादव
चन्दौली।इतिहास विभाग सामाजिक विज्ञान संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका विषय भारतीय संस्कृति में जल संरक्षण: एक विमर्श था। इस एक दिवसीय कार्यशाला का रूपरेखा एवं संयोजन काशी के जलपुरूष अशोक कुमार सोनकर द्वारा की गयी।
जिसमें मुख्य अतिथि एवं वक्ता प्रो. उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी, समन्वयक, वैदिक विज्ञान केन्द्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, विशिष्ट वक्ता डॉ. ज्ञानेन्द्र नारायण राय, शताब्दी फेलो, भारत अध्ययन केन्द्र, विशिष्ट अतिथि कृष्ण मोहन संयोजक पर्यावरण संरक्षण गतिविधि रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. आर. पी. पाठक पूर्व संकाय प्रमुख, सामाजिक विज्ञान संकाय ने किया, अतिथियों का स्वागत एवं विषय की स्थापना प्रो. प्रवेश भारद्वाज, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय ने किया तथा कार्यशाला संयोजक अशोक कुमार सोनकर सहायक प्रोफेसर इतिहास विभाग रहें। सर्वप्रथम काशी के जलपुरूष अशोक कुमार सोनकर ने भारतीय संस्कृति में जल स्रोत्र संरक्षण पर चर्चा करते हुए बताया कि यदि कोई भी व्यक्ति तालाब, कुण्ड, पोखरा, कुआं, झील, नदी आदि का संरक्षण करता है तो वह वास्तव में जल संरक्षण की श्रेणी आता है। इनका नारा है "जल है तो कल है जल स्रोत है तो जल है"। प्रो. प्रवेश भारद्वाज ने विषय स्थापना के साथ ही काशी के महत्वपूर्ण जल स्रोत तालाब, कुण्ड, पोखरा, आदि पर प्रकाश डाला और प्राचीन भारत में निर्मित जल स्रोत की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने जूनागढ़ अभिलेख का हवाला देते हुए सुदर्शन झील को भारत की सर्वप्रथम वास्तु धरोवर बताया, जिसका निर्माण 2600 वर्ष पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया था।
इसी कडी में मुख्य वक्ता प्रो. उपेन्द्र त्रिपाठी ने भारतीय संस्कृति में जल संरक्षण पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारे वैदिक साहित्य में जल संरक्षण पर विशेष बल दिया जाता था। जल की महत्ता केवल प्यास बुझाने के लिए नही था बल्कि जल का प्रयोग औषधि के रूप में भी होता था, इसलिए कहा गया है कि जल ही जीवन है। विशिष्ट वक्ता डॉ. ज्ञानेन्द्र नारायण राय ने जल संरक्षण के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए तालाब, कुण्ड, पोखरा, कुआ आदि की महत्ता पर चर्चा की। इसी कड़ी में विशिष्ट अतिथि कृष्ण मोहन जी ने जल संरक्षण हेतु सभी से अपील करते हुए कम से कम जल उपयोग पर बल दिया। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. आर. पी. पाठक ने भारतीय संस्कृति में जल संरक्षण पर बोलते हुए वैदिक साहित्य में उल्लेखित श्लोकों का उदाहरण देते हुए। जल संरक्षण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वृक्ष और जल संरक्षण एक दूसरे के पूरक है। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद सहायक प्रो. अशोक कुमार सोनकर, इतिहास विभाग ने दिया। अन्त काशी के जलपुरूष ने सभी को जल स्रोत संरक्षण का संकल्प दिलवाया।
इस अवसर प्रो. एच. के. सिंह संकाय प्रमुख वाणिज्य संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, प्रो. शरद श्रीवास्तव, पूर्व प्राचार्य हिन्दू कालेज जमनिया गाजीपुर, डॉ. मनोज मिश्रा, कृषि वैज्ञानिक, कृषि केन्द्र, प्रो. श्रवण कुमार शुक्ला, डॉ. भूपेन्द्र श्रीवास्तव, पूर्व प्राचार्य, डॉ. अशोक सिंह, प्रो. केशव मिश्रा, डॉ. गंगेश शाह गोंडवाना, सहायक कुलसचिव आई, आई, टी. डॉ. सीमा मिश्रा, डॉ. सत्यपाल यादव, डॉ. राजेश कुमार वर्मा, डॉ. अनुराधा सिह, डॉ. जय लक्ष्मी कौल, डॉ. अमित यादव डॉ., ताबिर कलाम आदि शिक्षक उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त बडी संख्या में शोध छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे।
Oct 29 2024, 14:55