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कुछ अलग हटकर : क्लीन शेव को लेकर लड़कियों ने निकाली रैली दाढ़ी हटाओ प्यार बचाओ! सोशल मीडिया में वायरल हो रहा वीडियो...


नयी दिल्ली : देश और दुनिया के अलग-अलग इलाकों में जो भी अतरंगी होता है, उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो ही जाता है। कभी-कभी तो कुछ ऐसा अतरंगी दिख जाता है जिसके बारे में लोगों ने कल्पना भी नहीं की होती है।

आप अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं तो फिर आप बखूबी इस बात को समझते होंगे। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो आपने देखे होंगे जिसने आपको पूरी तरह से हैरान कर दिया होगा। उन वीडियो की लिस्ट में आप एक नया वीडियो जोड़ लीजिए जो अभी वायरल हो रहा है। उसे देखकर आप हैरान होने वाले हैं।

ऐसी रैली कभी देखी है?

सोशल मीडिया पर अभी जो वीडियो वायरल हो रहा है उसमें नजर आ रहा है कि कुछ लड़कियों का एक ग्रुप रैली निकाल रही है मगर यह रैली बहुत ही अजीब रैली है। लड़कियां क्लीन शेव बॉयफ्रेंड के लिए रैली निकाल रही हैं। उनके हाथ में अलग-अलग तख्तियां हैं। एक पर लिखा है, 'No Clean Shave No Love' तो दूसरे पर लिखा है, 'दाढ़ी हटाओ प्यार बचाओ।' एक पर लिखा है, 'दाढ़ी रखो या गर्लफ्रेंड रखो, Choice तुम्हारी।' 

इसी तरह अलग-अलग तख्तियों पर अलग-अलग लाइन लिखी है और रैली के दौरान लड़कियां इन बातों को चिल्लाकर बोल भी रही हैं। मगर इस रैली को लेकर कुछ जानकारी नहीं दी गई है कि यह रील के लिए है, किसी प्रमोशन के लिए है या फिर किसी इवेंट के लिए है। मगर वीडियो अभी वायरल हो रहा है।

मध्य प्रदेश की निकिता पोरवाल बनीं फेमिना मिस इंडिया 2024, नंदिनी गुप्ता ने पहनाया ताज


 

फेमिना मिस इंडिया 2024 का ग्रैंड फिनाले एक स्टार-स्टडेड इवेंट था। मुंबई के वर्ली में फेमस स्टूडियो ने भारत की सबसे प्रतिष्ठित सौंदर्य प्रतियोगिता की 60वीं वर्षगांठ की मेजबानी की। आखिरकार अब फेमिना मिस इंडिया 2024 को अपना विजेता मिल गया। 

शानदार समारोह में मध्य प्रदेश की निकिता पोरवाल को फेमिना मिस इंडिया वर्ल्ड 2024 का ताज पहनाया गया। अब वह मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी।

दादरा और नगर हवेली (केंद्र शासित प्रदेश) की रेखा पांडे को फेमिना मिस इंडिया 2024 की फर्स्ट रनर-अप का ताज पहनाया गया और गुजरात की आयुषी ढोलकिया ने फेमिना मिस इंडिया 2024 की सेकंड रनर-अप का खिताब अपने नाम किया। निकिता पोरवाल, रेखा पांडे और आयुषी ढोलकिया को नेहा धूपिया ने फूलों का गुलदस्ता देते हुए किया सम्मानित।

शाम की शुरुआत 'टॉप 30 स्टेट विनर्स' के परिचय के साथ फैशन सीक्वेंस से हुई। इन हसीनाओं ने डिजाइनर निकिता म्हसालकर का कलेक्शन पहना था, जिसमें बेहतरीन ढंग से तैयार किए गए ग्लैमरस और बारीक कढ़ाई वाले कपड़े शामिल थे, जो प्रत्येक राज्य विजेताओं के अद्वितीय गुणों का बखान कर रहा था।

बैंड ऑफ बॉयज के प्रदर्शन से दर्शकों को 2000 के दशक की यादों की एक भरपूर खुराक दी गई। फेमिना मिस इंडिया की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर नारायण ज्वैलर्स द्वारा डिजाइन किए गए विजेताओं के लिए तीन नए मुकुटों का मंच पर अनावरण किया गया। 

फैशन शोकेस के दूसरे दौर में फैशन की दुनिया की मशहूर हस्ती पोर्टिया और स्कारलेट द्वारा डिजाइन किए गए शीर्ष 30 राज्य विजेताओं को चुना गया और खास 60वीं वर्षगांठ के लिए मिस इंडिया संगठन ने एक विशेष संगीत 'राइज ऑफ क्वीन' भी लॉन्च किया।

इस अवसर पर फेमिना मिस इंडिया अरुणाचल प्रदेश 2024, ताडू लूनिया को प्रतिष्ठित टाइम्स मिस ब्यूटी विद अ परपज अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस बीच फेमिना मिस इंडिया मेघालय 2024, एंजेलिया मार्रवीन को टाइम्स मिस मल्टीमीडिया अवार्ड विजेता के रूप में सम्मानित किया गया, दोनों ने शीर्ष 15 में अपना स्थान सुनिश्चित किया। 

वहीं, संगीता बिजलानी ने ग्लैमरस अवतार में अपनी शानदार प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। नेहा धूपिया ने भी समारोह में चार चांद लगाए।

बेटे की बुरी आदतों से परेशान पिता ने बेटे के खिलाफ अखबार में जारी किया विज्ञापन,जानिए क्या है मामला....


पिता-पुत्र का रिश्ता बाहर से दिखने में एकदम शांत होता है मगर इनकी डोर काफी मजबूत होती है। भारत में पहले के दौर पर पिता-पुत्र आपस में ज्यादा बात भी नहीं करते थे। दोनों के बीच का पुल घर की महिला होती थी। समय बदला मगर अभी भी बेटे अपनी मां के करीब होते हैं। अधिकतर वे अपनी सारी बातें मां के साथ शेयर करते हैं। पिता अपने बेटे से कितना प्यार करते हैं वे जाहिर नहीं कर पाते, बेटा चाहकर भी पिता को आसानी से गले नहीं लगा पाता। हालांकि दोनों के बीच प्रेम बहुत होता है।

बेटे के सामने परेशानी आने से पहले पिता उसके सामने दीवार बनकर ढाल की तरह खड़ा होता है तो वहीं बेटे के सामने उसके पिता के बारे में कोई कुछ कह नहीं पाता। हालांकि इस पिता को अपने बेटे की वजह से जो दिन देखने पड़े भगवान न करें कि किसी को यह देखना पड़े।

चलिए बताते हैं कि पूरा मामला क्या है?

जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं अपनी जिम्मेदारिया समझने लगते हैं। कई बार वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए परिवार के लोगों की अनदेखी भी कर देते हैं। जैसे-जैसे पिता की उम्र ढलती हैं उन्हें अपने बच्चों की जरूरत होती है। हालांकि जब बच्चा बड़ा होकर बुरी आदतों में पड़ जाए तो एक पिता क्या कर सकता है?

बुजुर्ग पिता जब जवान बेटे को गलत संगति में देखता है, गलत आदतों में पड़े देखता है तो उसकी दिल टूट जाता है। वह अपनी परवरिश को कोसने लगता है। वह मन ही मन कुढ़ता है और खुद को ब्लेम करता है। वह बेटे को बुरी चीजों से निकालने की पूरी कोशिश करता है मगर आखिर में वह हार जाता है।

कहा जाता है कि अगर बढ़ते बच्चे को सही संस्कार न सिखाए जाएं तो वह अक्सर बुरी संगत का असर उस पर जल्दी होता है। माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छा बर्ताव करे, कभी किसी का अपमान न करें, अच्छे-बुरे में अंतर को पहचाने लेकिन कई बार बच्चे गलत चीजों में पड़कर माता-पिता के जिंदगी भर की मेहनत को मिट्टी में मिला देते हैं। 

ऐसे ही एक बेटे की गलती के कारण पिता के लिए अपने ही बेटे के खिलाफ विज्ञापन जारी करना पड़ा।

ऐसा क्या है विज्ञापन में?

अखबार में एक पिता ने अपने बेटे को लेकर विज्ञापन प्रकाशित करवाया था। इस विज्ञापन में लिखी गई एक-एक लाइन को पढ़कर आप भी यही कहेंगे कि ऐसा समय किस पिता को न देखना पड़े। इस विज्ञापन में लिखा है “मेरा बेटा दीपक बालू मोरे (उम्र 22 साल, प्रभाकर वस्ती, बुधवार पेठ, सोलापुर) बुरे लोगों की संगति में रहकर बिगड़ गया है। वह लोगों से पैसे उधार लेकर शराब पीता है, जुआ खेलता है। वह इन चीजों में फंस गया है। इससे पहले भी हम उसके उधार के पैसे और कई गुना ब्याज चुका चुके हैं, लेकिन अब हम उसके लिए गए लेन-देन के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। किसी को भी उसके साथ लेनदेन नहीं करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि एक पिता के रूप में उसके ऊधार की जिम्मेदारी मुझपर या मेरे परिवार पर नहीं होगी। यह सार्वजनिक सूचना है”।

इस विज्ञापन को हर पिता को पढ़ना चाहिए और अपने बच्चों को भी पढ़ाना चाहिए। इसे एक बार नहीं बार-बार पढ़ें और बच्चों को पढ़ने को कहें। इस विज्ञापन को सोशल मीडिया पर laybhariofficial नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट से शेयर किया गया है।

इस विज्ञापन को पढ़ने के बाद नेटीजन भी भावुक हो गए हैं। कई लोगों अपने पिता पर बोझ डालने वाले इस लड़के की आलोचना की है। एक यूजर ने कहा, ‘भाई, मैं आपकी हरकतों के कारण आप पर कमेंट कर रहा हूं… कोई भी पिता नहीं चाहता कि उसका बेटा बर्बाद हो।’हर पिता चाहता है कि उसका बेटा अच्छा बने। 

आख़िरकार, वे पिता हैं और उन्होंने एकदम सही काम किया है।” दूसरे ने कहा, ”कोई पिता अपने बेटे के साथ बुरा नहीं करता। एक लड़के को सही और गलत का पता होना चाहिए।” इस वायरल पोस्ट पर आपकी क्या राय है।

आज का इतिहास:आज ही के दिन भारतीय क्रिकेटर कपिल देव ने की थी टेस्ट करियर की शुरुआत

नयी दिल्ली : देश और दुनिया में 16 अक्टूबर का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है और कई महत्वपूर्ण घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई हैं।

1978 में आज ही के दिन भारतीय क्रिकेटर कपिल देव ने पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी। 

1958 में आज ही के दिन अमेरिका ने नेवादा में न्यूक्लियर टेस्ट किया था।

1959 में 16 अक्टूबर को ही राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की स्थापना की थी। 

1964 में आज ही के दिन चीन ने अपना पहला परमाणु विस्फोट किया था।

2014 में आज ही के दिन न्यूजीलैंड, मलेशिया, अंगोला, स्पेन और वेनेजुएला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चुने गए थे।

2012 में 16 अक्टूबर के दिन ही सौर मंडल के बाहर एक नए ग्रह ‘अल्फा सेंचुरी बीबी’ का पता चला था।

2005 में आज ही के दिन जी-20 देश वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ़ में सुधार के लिए एकमत हुए थे।

2002 में 16 अक्टूबर के दिन ही 14वें एशियाई खेलों में एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक विजेता डोपिंट टेस्ट में असफल रहने के बाद भारत की सुनीता रानी का पदक छीना गया था।

1999 में आज ही के दिन अमेरिका ने सैन्य शासन के विरोध में पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाया था।

1982 में 16 अक्टूबर के दिन ही सोवियत संघ ने भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था।

1978 में आज ही के दिन भारतीय क्रिकेटर कपिल देव ने पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी।

1968 में 16 अक्टूबर के दिन ही हरगोविंद खुराना को चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

1964 में आज ही के दिन चीन ने अपना पहला परमाणु विस्फोट किया था।

1959 में 16 अक्टूबर के दिन ही राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की स्थापना की थी।

1958 में आज ही के दिन अमेरिका ने नेवादा में न्यूक्लियर टेस्ट किया था।

1942 में 16 अक्टूबर के दिन ही बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवाती तूफान से 40 हजार लोगों की मौत हुई थी।

1939 में आज ही के दिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटिश क्षेत्र पर पहला हमला किया था।

1923 में 16 अक्टूबर के दिन ही रॉय और वॉल्ट डिज्नी ने वॉल्ट डिज्नी कंपनी की स्थापना की थी।

1915 में आज ही के दिन ब्रिटेन ने बुल्गारिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी।

1905 में 16 अक्टूबर के दिन ही लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का प्रथम विभाजन हुआ था।

16 अक्टूबर का इतिहास को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1995 में आज ही के दिन भारतीय महिला क्रिकेटर वेद कृष्णमूर्ति का जन्म हुआ था।

1948 में 16 अक्टूबर को ही ओडिशा के 14वें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का जन्म हुआ था।

1944 में आज ही के दिन भारत के जानेमाने तबला वादक लच्छू महाराज का जन्म हुआ था।

1896 में 16 अक्टूबर को ही सेनानी, सांसद और हिंदी के साहित्यकार सेठ गोविन्द दास का जन्म हुआ था।

16 अक्टूबर को हुए निधन

1994 में आज ही के दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानी गणेश घोष का निधन हुआ था।

1938 में 16 अक्टूबर को ही गुजरात के प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्त्ता प्रभाशंकर पाटनी का निधन हुआ था।

कज़ाकिस्तान का स्लीपिंग विलेज, जहां चलते फिरते सो जाते है लोग

दुनिया में कई ऐसे गांव और स्थान होते हैं, जिनकी विचित्रताएं और रहस्य किसी को भी हैरान कर सकते हैं। ऐसा ही एक अनोखा गांव है कज़ाकिस्तान के उत्तर में स्थित "कलाईची" नामक गांव। इस गांव की खासियत यह है कि यहां के लोग चलते-फिरते या किसी भी सामान्य स्थिति में अचानक सो जाते हैं। यह समस्या इतनी गंभीर है कि इसे "स्लीपिंग सिकलनेस" कहा जाता है, और वैज्ञानिक भी अब तक इसका कोई ठोस कारण नहीं जान पाए हैं।

कलाईची गांव की अनोखी बीमारी

कलाईची गांव के लोग अचानक बिना किसी चेतावनी के कहीं भी सो जाते हैं, चाहे वे काम कर रहे हों, खाना खा रहे हों, या सामान्य जीवन जी रहे हों। यह नींद कभी-कभी घंटों से लेकर कुछ दिनों तक भी चल सकती है। इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति को कुछ भी याद नहीं रहता कि वह कब और कैसे सो गया था।

बीमारी के लक्षण

इस बीमारी के कुछ सामान्य लक्षणों में अत्यधिक नींद, चक्कर आना, सिरदर्द, और भूलने की समस्या शामिल हैं। कई बार लोग कई दिनों तक सोते रहते हैं, और जागने के बाद भी उन्हें थकान महसूस होती है। कुछ लोगों को यह समस्या बार-बार होती है, जबकि कुछ लोगों को यह केवल एक या दो बार ही हुई है।

वैज्ञानिक शोध और संभावित कारण

कलाईची गांव की इस रहस्यमयी बीमारी ने दुनिया भर के l का ध्यान आकर्षित किया है। कई शोध किए गए हैं, लेकिन अब तक इसका सटीक कारण ज्ञात नहीं हो पाया है। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समस्या गांव के पास स्थित यूरेनियम की खानों से हो सकती है, जिससे वातावरण में विषैले पदार्थ फैल रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह पानी या हवा में मौजूद रासायनिक तत्वों के कारण हो सकता है।

सरकार और चिकित्सा व्यवस्था की प्रतिक्रिया

स्थानीय सरकार और चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस समस्या को हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं। गांव के लोगों को विशेष चिकित्सा देखभाल और सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन इस बीमारी का स्थायी समाधान अब तक नहीं निकला है।

निष्कर्ष*

कलाईची गांव का यह रहस्य आज भी अज्ञात है, और वैज्ञानिक इस पर लगातार शोध कर रहे हैं। यह गांव एक उदाहरण है कि हमारी दुनिया में अभी भी कई ऐसी बातें और स्थान हैं जो विज्ञान की समझ से बाहर हैं। इस रहस्यमयी गांव की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि प्राकृतिक और मानवीय शक्तियों के बीच कितना गहरा संबंध है, जिसे समझने के लिए हमें और अधिक अनुसंधान और जानकारी की जरूरत है।

लक्खी पूजा आज, धन-धान्य के साथ पधारेंगी मां लक्ष्मी

नयी दिल्ली : 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है। विभिन्न समुदाय अपनी परंपराओं से पूजा करेंगे। बंगाली लोग कोजागरी लक्खी पूजा करेंगे, जबकि उड़िया समाज गजलक्ष्मी पूजा करेगा। पूजा की तैयारी जोरों पर है, और...

धन-धान्य के साथ माता लक्ष्मी घरों में पधारेंगी। शरद पूर्णिमा को अलग-अलग समाज के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।

बंगाली समुदाय के लोग कोजागरी लक्खी पूजा करेंगे। वहीं, मिथिलांचल के लोग कोजगरा पूजा और उड़िया समाज के लोग गजलक्ष्मी पूजा करेंगे। उड़िया समाज की महिलाएं गज लक्ष्मी की पूजा कर पति की लंबी आयु की कामना करेंगी। 

लक्खी पूजा को लेकर मूर्तिकार मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। शहर के विभिन्न स्थानों पर पूजा पंडाल में माता लक्ष्मी की पूजा होगी। बाजार में मां कोजागरी की छोटी-बड़ी प्रतिमा 100 से लेकर 3000 रुपये में बिक रही है। घर-घर में लोग पूजा की तैयारी में जुटे हैं। बंगाली समाज के घर में मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी हो चुकी है। 

मां की प्रतिमाएं घरों व मंडपों में मंगलवार शाम लाई जाएगी। पूजा से पूर्व सुबह अल्पना से आंगन सजाया जाएगा। मां लक्ष्मी के पैरों के चिह्न और धान के शीष द्वार पर लगाए जाएंगे। परंपरा के अनुसार, षोला से कदम्ब बनाएं जाएंगे। द्वार को आम पल्लव के तोरण से सजाया जाएगा। इसके बाद विधिवत पूजा होगी। लक्ष्मी पूजा में मां को नारियल लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

पूजा मुहूर्त

पुरोहित संतोष त्रिपाठी ने बताया कि अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 16 अक्तूबर को रात 8 बजकर 40 मिनट पर होगा। 17 अक्तूबर को 4 बजकर 55 मिनट पर इसका समापन होगा। 16 अक्तूबर को ही शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा होगी। इस दिन कोजागरी पूजा का निशिता काल मुहूर्त 16 अक्तूबर की रात 11 बजकर 42 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। कोजागरी पूजा के दिन शाम 5 बजकर 5 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

सुरन या जिमिकंद की सब्जी औषधीय गुण से भरपूर स्वास्थ्य के लिए अमृत और दिवाली पर इसे खाने की है विशेष परंपरा

सुरन, जिसे जिमिकंद भी कहा जाता है, एक ऐसी सब्जी है जो भारतीय रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह न केवल अपने स्वाद के लिए मशहूर है, बल्कि इसके औषधीय गुण भी इसे विशेष बनाते हैं। खासकर दिवाली के समय, सुरन की सब्जी खाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसे विभिन्न संस्कृतियों में खास महत्व दिया जाता है।

सुरन के औषधीय गुण:

1 पाचन तंत्र के लिए लाभकारी: सुरन में मौजूद रेशे और अन्य पोषक तत्व पाचन को बेहतर बनाते हैं। यह कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है और पेट को साफ रखता है।

2 डायबिटीज में सहायक: सुरन का नियमित सेवन ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसमें मौजूद कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी माना जाता है।

3 हृदय रोगों से बचाव: सुरन में पाया जाने वाला पोटैशियम और फाइबर हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायक होता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है।

4 सूजन और जलन में राहत: सुरन में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो सूजन और शरीर की अन्य समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं। इसका उपयोग आयुर्वेद में सूजन और गठिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है।

5 वजन घटाने में सहायक: सुरन की सब्जी में कैलोरी की मात्रा कम होती है और यह फाइबर से भरपूर होती है, जो इसे वजन घटाने वाले आहार के लिए उपयुक्त बनाती है।

दिवाली पर सुरन खाने की परंपरा:

दिवाली पर सुरन की सब्जी खाने की परंपरा का एक खास महत्व है। प्राचीन समय से यह माना जाता है कि त्योहारों के समय शरीर को साफ और स्वस्थ रखने के लिए विशेष आहार की जरूरत होती है। सुरन, अपनी पाचन सुधारने और शरीर को डिटॉक्स करने वाली विशेषताओं के कारण, इस समय में खास रूप से खाई जाती है।

कई स्थानों पर दिवाली के दिन इसे खाने का धार्मिक महत्व भी है। ऐसी मान्यता है कि सुरन खाने से नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति मिलती है और यह घर में सुख-समृद्धि लाता है। साथ ही, इसके औषधीय गुण त्योहार के दौरान भारी और मसालेदार भोजन के बाद पेट को आराम देते हैं और पाचन को संतुलित रखते हैं।

कैसे बनती है सुरन की सब्जी:

सुरन की सब्जी को बनाने के कई तरीके होते हैं। सबसे सामान्य विधि में इसे छोटे टुकड़ों में काटकर उबाल लिया जाता है। इसके बाद इसमें हल्दी, धनिया, जीरा, अदरक-लहसुन का पेस्ट और अन्य मसाले डालकर इसे तेल या घी में पकाया जाता है। कुछ लोग इसे छौंक लगाकर या फिर दही में पकाकर भी बनाते हैं। सुरन का स्वाद थोड़ा तीखा और खास होता है, जिसे मसालों के साथ पकाने पर यह और भी स्वादिष्ट बन जाता है।

निष्कर्ष:

सुरन या जिमिकंद सिर्फ एक साधारण सब्जी नहीं है, बल्कि यह एक औषधि की तरह काम करती है। इसके नियमित सेवन से न केवल बीमारियों से बचाव होता है, बल्कि यह दिवाली जैसे त्योहारों पर इसे खाने की परंपरा भी हमारे स्वास्थ्य के प्रति हमारे पूर्वजों की समझदारी को दर्शाती है।

बौनों का गांव: चीन का रहस्यमयी गांव जहां अधिकांश लोग 3 फीट से भी कम हाइट के हैं।


चीन के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एक गांव आज भी एक रहस्यमयी पहेली बना हुआ है। इस गांव का नाम "यांग्सी" है, और इसे दुनिया भर में "बौनों का गांव" कहा जाता है। इस गांव की आधी से ज्यादा आबादी की हाइट 3 फीट से भी कम है, जिससे यह दुनिया के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक अध्ययन का केंद्र बना हुआ है। इस गांव के लोग सामान्य जीवन जीते हैं, लेकिन उनकी हाइट का रहस्य अब तक किसी को समझ नहीं आया है।

गांव का इतिहास और स्थान


यांग्सी गांव चीन के गुइझोउ प्रांत में स्थित है, जो पहाड़ियों और सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है। यह गांव लगभग 80 से 100 लोगों का घर है, और यहां रहने वाले लोगों में से 40% की हाइट औसतन 2 फीट से 3 फीट के बीच है। इस गांव का रहस्य पहली बार 1950 के दशक में सामने आया, जब शोधकर्ताओं ने यहां की असाधारण भौतिक स्थिति का अध्ययन करना शुरू किया।

वैज्ञानिक और चिकित्सा अध्ययन


गांव की इस अनोखी स्थिति को लेकर कई वैज्ञानिक और डॉक्टर यहां शोध कर चुके हैं। उन्होंने कई सिद्धांत पेश किए हैं, जैसे कि आनुवंशिक समस्याएं, पर्यावरणीय कारक, या फिर किसी विषाणु का असर। हालांकि, इतने सालों के शोध के बावजूद, कोई ठोस कारण सामने नहीं आ पाया है। आनुवंशिकी के अध्ययन से भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है। कुछ लोग मानते हैं कि यहां की मिट्टी या पानी में कोई रासायनिक तत्व मौजूद हो सकता है, जो गांव के निवासियों की शारीरिक वृद्धि को प्रभावित करता है।

लोककथाएं और मान्यताएं


गांव के स्थानीय लोग इस स्थिति को एक अभिशाप मानते हैं। उनके अनुसार, सैकड़ों साल पहले गांव पर एक शाप लगाया गया था, जिसके चलते अगली पीढ़ियों में यह समस्या पैदा हुई। यह शाप उन्हें एक राजा या देवता की अवहेलना के कारण मिला था। गांव के बुजुर्ग इस शाप से मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान भी करते हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई प्रभाव नहीं देखा गया है।

पर्यटन और उत्सुकता


यांग्सी गांव की इस अद्भुत विशेषता के चलते, यह स्थान पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। कई लोग यहां आकर गांव के लोगों से मिलते हैं और उनकी अनोखी जीवनशैली को देखने का अनुभव करते हैं। हालांकि, गांव के लोग बाहरी दुनिया के संपर्क में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते और अपनी परंपराओं और रहन-सहन को बनाए रखने में विश्वास करते हैं।

निष्कर्ष


चीन का यांग्सी गांव अब भी विज्ञान और लोककथाओं के बीच फंसा हुआ है। यहां के निवासियों की हाइट का रहस्य आज भी अनसुलझा है, जो इसे और भी रोमांचक और रहस्यमयी बनाता है। आने वाले समय में, शायद विज्ञान इस पहेली को सुलझा सके, लेकिन फिलहाल यह गांव दुनिया भर के लोगों के लिए एक दिलचस्प कहानी और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

अमेजॉन के जंगलों में इंटरनेट की दस्तक: जनजाति की जीवनशैली में बदलाव,शिकार छोड़कर फोन चलाते रहते हैं लोग

इंटरनेट ने लोगों की जिंदगी को अच्छे और बुरे दोनों ही तरीकों से प्रभावित किया है। दूरस्थ अमेजॉन के जंगलों में रहने वाली जनजाति भी इसके प्रभाव से अपने आप को अछूता नहीं रख पाई है। 

अमेजॉन की मरूबो जनजाति के लोग पिछले दशक तक आधुनिक दुनिया से पूरी तरह से दूर रहते थे लेकिन पिछले कुछ समय में इंटरनेट ने उनकी दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है।

जंगलों में बहुत अंदर बसे होने के कारण 2023 तक इनके पास मोबाइल फोन तो थे लेकिन लेकिन नेटवर्क ना होने की वजह से वह आधुनिक तकनीकि से अधिक प्रभावित नहीं थे। लेकिन फिर एलन मस्क ने इस क्षेत्र में अपने सैटेलाइट इंटरनेट स्टारलिंक को लॉन्च करके पूरी कहानी पलट दी।

मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट कंपनी स्टारलिंक ने इस जनजाति के गांव में कुछ एंटीना लगाए और अमेजॉन वर्षावनों की गहराई में रहने वाली मोरुबो जनजाति तक भी इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित कर दी। सितंबर 2023 में इंटरनेट की पहुंच के बाद इस जनजाति के लोगों के जीवन में बहुत ही तेजी से बदल गया। एक जांच रिपोर्ट में इस गांव के बदले हुए हालातों को बताया गया है।

2023 तक फोन थे, लेकिन इंटरनेट नहीं था

रिपोर्ट के मुताबिक इस गांव में लोगों के पास पहले से फोन थे लेकिन इंटरनेट ना होने की वजह से वह इनका उपयोग केवल फोटो खींचने और कभी-कभार बात करने के लिए करते थे लेकिन जब स्टारलिंक यहां आया तो जिंदगी बदल गई। त्साइनमा मोरूबो ने टाइम्स को बताया कि हमारी जनजाति में पहले लोग बहुत खुश रहते थे। अब वह दिन भर अपना काम काज छोड़कर मोबाइल फोन पर ही लगे रहते हैं। 

हमारे युवा जिन्हें काम करना चाहिए, वह इंटरनेट की वजह से आलसी हो रहे हैं। वे गोरे लोगों के तौर-तरीके सीख रहे हैं और लगातार अपनी जड़ों से कट रहे हैं। जनजाति के नेता अल्फ्रेडो मारुबो ने कहा कि युवा लोग अपने फोनों में अश्लील वीडियो देख रहे हैं

वहां पर लोग अपने फोन्स को चलाते हुए दिख रहे थे। कई लोग वहां पर नेमार जूनियर की वीडियो को भी देखते हुए मिले। वहां के आम लोगों के मुताबिक इंटरनेट से युवाओं और बच्चों की जीवनशैली में बदलाव हुए हैं और यह हमारी जनजाति के लिए खतरा है, इंटरनेट के आ जाने के बाद से युवाओं का मन ना तो खेती में ही लगता है और ना ही शिकार में।

जनजाति के लोगों ने बनवाए हैं कुछ नहीं

रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही इंटरनेट जनजातिय लोगों के लिए कई मददों के साथ आया है लेकिन इसके कई दुरुपयोग भी हैं। इस कारण से कंपनी की तरफ दिन के कुछ घंटों के लिए इंटरनेट को बंद कर दिया जाता है। जनजाति के नेताओं ने बताया कि कई बार इंटरनेट की वजह से हमारे लोगों के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं भी सामने आती हैं, उनको गलत सूचना दे दी जाती है। वह लगतार अश्लील वीडियो और हिंसक वीडियो गेम देख रहे हैं। युवा अपनी जनजाति जिंदगी से ज्यादा बाहर की जिंदगी में अपना आनंद खोज रहे हैं। वे जंगल छोड़ रहे हैं। इससे सबसे बड़ा खतरा हमारी संस्कृति के ऊपर ही है।

इंटरनेट चाहिए लेकिन सीमित मात्रा में- मोरुबो

जनजाति के नेता त्सैनामा मोरुबो ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि इंटरनेट की पहुंच को खत्म कर दिया जाए। क्योंकि इंटरनेट की ही मदद से हमारे साथियों की जान भी बच पाई है। हम जब भी कोई परेशानी में होते हैं तो हमें इंटरनेट काफी मदद भी करता है।

आज का इतिहास: 1965 में आज ही के दिन हुई थी धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना

नयी दिल्ली: 14 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 2008 में आज ही के दिन भारतीय रिजर्व बैंक ने म्युचुअल फंड्स की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त INR 200 अरब जारी करने की घोषणा की थी। 

2010 में 14 अक्टूबर को ही राजधानी दिल्ली में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल खेलों का समापन हुआ था।

2010 में आज ही के दिन राजधानी दिल्ली में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल खेल समाप्त हुए थे।

2008 में 14 अक्टूबर को ही भारतीय रिजर्व बैंक ने म्युचुअल फंड्स की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त INR 200 अरब जारी करने की घोषणा की थी।

2004 में आज ही के दिन पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ को सेना प्रमुख बनाए रखने वाला विधेयक पारित किया था।

 

2002 में 14 अक्टूबर को ही कतर में मिलने के वादे के साथ 14वें एशियाई खेलों का बुसान में रंगारंग समापन हुआ था।

2000 में आज ही के दिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान सहित 22 देशों में अपने दूतावास बंद कर दिए थे।

1981 में आज ही के दिन होस्नी मुबारक मिस्र के चौथे राष्ट्रपति बने थे।

1979 में 14 अक्टूबर को ही जर्मनी के बॉन में परमाणु ऊर्जा के खिलाफ 1 लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था।

1956 में आज ही के दिन डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने 3,85,000 अनुयायियों के साथ कोचांदा में बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।

1953 में 14 अक्टूबर को ही भारत में संपदा शुल्क अधिनियम प्रभाव में आया था।

1948 में आज ही के दिन इजरायल और मिस्र के बीच जबरदस्त लड़ाई शुरू हुई थी। 

1946 में 14 अक्टूबर को ही हालैंड और इंडोनेशिया के बीच संघर्ष विराम समझौते पर साइन किए गए थे। 

1943 में आज ही के दिन जापान ने फिलीपींस की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

1933 में 14 अक्टूबर को ही जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के समूह से बाहर आने की घोषणा की थी।

1882 में आज ही के दिन शिमला में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

14 अक्टूबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1981 में आज ही के दिन भारत के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी गौतम गंभीर का जन्म हुआ था।

1979 में 14 अक्टूबर को ही भारत के स्कवेश खिलाड़ी रित्विक भट्टाचार्य का जन्म हुआ था।

1931 में आज ही के दिन भारत के प्रमुख सितार वादकों में से एक निखिल रंजन बैनर्जी का जन्म हुआ था।

1930 में 14 अक्टूबर को ही जैरे के राष्ट्रपति मोबुतु सेस सीको का जन्म हुआ था।

14 अक्टूबर को हुए निधन

2013 में आज ही के दिन भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मोहन धारिया का निधन हुआ था।

1947 में 14 अक्टूबर को ही लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सहयोगी पत्रकार और मराठी साहित्यकार नरसिंह चिन्तामन केलकर का निधन हुआ था।