/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs1/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs4/_noavatar_user.gif/home/streetbuzz1/public_html/ajaydev/system/../storage/avatars/thumbs5/_noavatar_user.gif StreetBuzz कज़ाकिस्तान का स्लीपिंग विलेज, जहां चलते फिरते सो जाते है लोग Mamta kumari
कज़ाकिस्तान का स्लीपिंग विलेज, जहां चलते फिरते सो जाते है लोग

दुनिया में कई ऐसे गांव और स्थान होते हैं, जिनकी विचित्रताएं और रहस्य किसी को भी हैरान कर सकते हैं। ऐसा ही एक अनोखा गांव है कज़ाकिस्तान के उत्तर में स्थित "कलाईची" नामक गांव। इस गांव की खासियत यह है कि यहां के लोग चलते-फिरते या किसी भी सामान्य स्थिति में अचानक सो जाते हैं। यह समस्या इतनी गंभीर है कि इसे "स्लीपिंग सिकलनेस" कहा जाता है, और वैज्ञानिक भी अब तक इसका कोई ठोस कारण नहीं जान पाए हैं।

कलाईची गांव की अनोखी बीमारी

कलाईची गांव के लोग अचानक बिना किसी चेतावनी के कहीं भी सो जाते हैं, चाहे वे काम कर रहे हों, खाना खा रहे हों, या सामान्य जीवन जी रहे हों। यह नींद कभी-कभी घंटों से लेकर कुछ दिनों तक भी चल सकती है। इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति को कुछ भी याद नहीं रहता कि वह कब और कैसे सो गया था।

बीमारी के लक्षण

इस बीमारी के कुछ सामान्य लक्षणों में अत्यधिक नींद, चक्कर आना, सिरदर्द, और भूलने की समस्या शामिल हैं। कई बार लोग कई दिनों तक सोते रहते हैं, और जागने के बाद भी उन्हें थकान महसूस होती है। कुछ लोगों को यह समस्या बार-बार होती है, जबकि कुछ लोगों को यह केवल एक या दो बार ही हुई है।

वैज्ञानिक शोध और संभावित कारण

कलाईची गांव की इस रहस्यमयी बीमारी ने दुनिया भर के l का ध्यान आकर्षित किया है। कई शोध किए गए हैं, लेकिन अब तक इसका सटीक कारण ज्ञात नहीं हो पाया है। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समस्या गांव के पास स्थित यूरेनियम की खानों से हो सकती है, जिससे वातावरण में विषैले पदार्थ फैल रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह पानी या हवा में मौजूद रासायनिक तत्वों के कारण हो सकता है।

सरकार और चिकित्सा व्यवस्था की प्रतिक्रिया

स्थानीय सरकार और चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस समस्या को हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं। गांव के लोगों को विशेष चिकित्सा देखभाल और सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन इस बीमारी का स्थायी समाधान अब तक नहीं निकला है।

निष्कर्ष*

कलाईची गांव का यह रहस्य आज भी अज्ञात है, और वैज्ञानिक इस पर लगातार शोध कर रहे हैं। यह गांव एक उदाहरण है कि हमारी दुनिया में अभी भी कई ऐसी बातें और स्थान हैं जो विज्ञान की समझ से बाहर हैं। इस रहस्यमयी गांव की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि प्राकृतिक और मानवीय शक्तियों के बीच कितना गहरा संबंध है, जिसे समझने के लिए हमें और अधिक अनुसंधान और जानकारी की जरूरत है।

लक्खी पूजा आज, धन-धान्य के साथ पधारेंगी मां लक्ष्मी

नयी दिल्ली : 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है। विभिन्न समुदाय अपनी परंपराओं से पूजा करेंगे। बंगाली लोग कोजागरी लक्खी पूजा करेंगे, जबकि उड़िया समाज गजलक्ष्मी पूजा करेगा। पूजा की तैयारी जोरों पर है, और...

धन-धान्य के साथ माता लक्ष्मी घरों में पधारेंगी। शरद पूर्णिमा को अलग-अलग समाज के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।

बंगाली समुदाय के लोग कोजागरी लक्खी पूजा करेंगे। वहीं, मिथिलांचल के लोग कोजगरा पूजा और उड़िया समाज के लोग गजलक्ष्मी पूजा करेंगे। उड़िया समाज की महिलाएं गज लक्ष्मी की पूजा कर पति की लंबी आयु की कामना करेंगी। 

लक्खी पूजा को लेकर मूर्तिकार मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने में जुटे हैं। शहर के विभिन्न स्थानों पर पूजा पंडाल में माता लक्ष्मी की पूजा होगी। बाजार में मां कोजागरी की छोटी-बड़ी प्रतिमा 100 से लेकर 3000 रुपये में बिक रही है। घर-घर में लोग पूजा की तैयारी में जुटे हैं। बंगाली समाज के घर में मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी हो चुकी है। 

मां की प्रतिमाएं घरों व मंडपों में मंगलवार शाम लाई जाएगी। पूजा से पूर्व सुबह अल्पना से आंगन सजाया जाएगा। मां लक्ष्मी के पैरों के चिह्न और धान के शीष द्वार पर लगाए जाएंगे। परंपरा के अनुसार, षोला से कदम्ब बनाएं जाएंगे। द्वार को आम पल्लव के तोरण से सजाया जाएगा। इसके बाद विधिवत पूजा होगी। लक्ष्मी पूजा में मां को नारियल लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

पूजा मुहूर्त

पुरोहित संतोष त्रिपाठी ने बताया कि अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 16 अक्तूबर को रात 8 बजकर 40 मिनट पर होगा। 17 अक्तूबर को 4 बजकर 55 मिनट पर इसका समापन होगा। 16 अक्तूबर को ही शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा होगी। इस दिन कोजागरी पूजा का निशिता काल मुहूर्त 16 अक्तूबर की रात 11 बजकर 42 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। कोजागरी पूजा के दिन शाम 5 बजकर 5 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

सुरन या जिमिकंद की सब्जी औषधीय गुण से भरपूर स्वास्थ्य के लिए अमृत और दिवाली पर इसे खाने की है विशेष परंपरा

सुरन, जिसे जिमिकंद भी कहा जाता है, एक ऐसी सब्जी है जो भारतीय रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह न केवल अपने स्वाद के लिए मशहूर है, बल्कि इसके औषधीय गुण भी इसे विशेष बनाते हैं। खासकर दिवाली के समय, सुरन की सब्जी खाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसे विभिन्न संस्कृतियों में खास महत्व दिया जाता है।

सुरन के औषधीय गुण:

1 पाचन तंत्र के लिए लाभकारी: सुरन में मौजूद रेशे और अन्य पोषक तत्व पाचन को बेहतर बनाते हैं। यह कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है और पेट को साफ रखता है।

2 डायबिटीज में सहायक: सुरन का नियमित सेवन ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसमें मौजूद कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी माना जाता है।

3 हृदय रोगों से बचाव: सुरन में पाया जाने वाला पोटैशियम और फाइबर हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायक होता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है।

4 सूजन और जलन में राहत: सुरन में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो सूजन और शरीर की अन्य समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं। इसका उपयोग आयुर्वेद में सूजन और गठिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है।

5 वजन घटाने में सहायक: सुरन की सब्जी में कैलोरी की मात्रा कम होती है और यह फाइबर से भरपूर होती है, जो इसे वजन घटाने वाले आहार के लिए उपयुक्त बनाती है।

दिवाली पर सुरन खाने की परंपरा:

दिवाली पर सुरन की सब्जी खाने की परंपरा का एक खास महत्व है। प्राचीन समय से यह माना जाता है कि त्योहारों के समय शरीर को साफ और स्वस्थ रखने के लिए विशेष आहार की जरूरत होती है। सुरन, अपनी पाचन सुधारने और शरीर को डिटॉक्स करने वाली विशेषताओं के कारण, इस समय में खास रूप से खाई जाती है।

कई स्थानों पर दिवाली के दिन इसे खाने का धार्मिक महत्व भी है। ऐसी मान्यता है कि सुरन खाने से नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति मिलती है और यह घर में सुख-समृद्धि लाता है। साथ ही, इसके औषधीय गुण त्योहार के दौरान भारी और मसालेदार भोजन के बाद पेट को आराम देते हैं और पाचन को संतुलित रखते हैं।

कैसे बनती है सुरन की सब्जी:

सुरन की सब्जी को बनाने के कई तरीके होते हैं। सबसे सामान्य विधि में इसे छोटे टुकड़ों में काटकर उबाल लिया जाता है। इसके बाद इसमें हल्दी, धनिया, जीरा, अदरक-लहसुन का पेस्ट और अन्य मसाले डालकर इसे तेल या घी में पकाया जाता है। कुछ लोग इसे छौंक लगाकर या फिर दही में पकाकर भी बनाते हैं। सुरन का स्वाद थोड़ा तीखा और खास होता है, जिसे मसालों के साथ पकाने पर यह और भी स्वादिष्ट बन जाता है।

निष्कर्ष:

सुरन या जिमिकंद सिर्फ एक साधारण सब्जी नहीं है, बल्कि यह एक औषधि की तरह काम करती है। इसके नियमित सेवन से न केवल बीमारियों से बचाव होता है, बल्कि यह दिवाली जैसे त्योहारों पर इसे खाने की परंपरा भी हमारे स्वास्थ्य के प्रति हमारे पूर्वजों की समझदारी को दर्शाती है।

बौनों का गांव: चीन का रहस्यमयी गांव जहां अधिकांश लोग 3 फीट से भी कम हाइट के हैं।


चीन के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एक गांव आज भी एक रहस्यमयी पहेली बना हुआ है। इस गांव का नाम "यांग्सी" है, और इसे दुनिया भर में "बौनों का गांव" कहा जाता है। इस गांव की आधी से ज्यादा आबादी की हाइट 3 फीट से भी कम है, जिससे यह दुनिया के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक अध्ययन का केंद्र बना हुआ है। इस गांव के लोग सामान्य जीवन जीते हैं, लेकिन उनकी हाइट का रहस्य अब तक किसी को समझ नहीं आया है।

गांव का इतिहास और स्थान


यांग्सी गांव चीन के गुइझोउ प्रांत में स्थित है, जो पहाड़ियों और सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से घिरा हुआ है। यह गांव लगभग 80 से 100 लोगों का घर है, और यहां रहने वाले लोगों में से 40% की हाइट औसतन 2 फीट से 3 फीट के बीच है। इस गांव का रहस्य पहली बार 1950 के दशक में सामने आया, जब शोधकर्ताओं ने यहां की असाधारण भौतिक स्थिति का अध्ययन करना शुरू किया।

वैज्ञानिक और चिकित्सा अध्ययन


गांव की इस अनोखी स्थिति को लेकर कई वैज्ञानिक और डॉक्टर यहां शोध कर चुके हैं। उन्होंने कई सिद्धांत पेश किए हैं, जैसे कि आनुवंशिक समस्याएं, पर्यावरणीय कारक, या फिर किसी विषाणु का असर। हालांकि, इतने सालों के शोध के बावजूद, कोई ठोस कारण सामने नहीं आ पाया है। आनुवंशिकी के अध्ययन से भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है। कुछ लोग मानते हैं कि यहां की मिट्टी या पानी में कोई रासायनिक तत्व मौजूद हो सकता है, जो गांव के निवासियों की शारीरिक वृद्धि को प्रभावित करता है।

लोककथाएं और मान्यताएं


गांव के स्थानीय लोग इस स्थिति को एक अभिशाप मानते हैं। उनके अनुसार, सैकड़ों साल पहले गांव पर एक शाप लगाया गया था, जिसके चलते अगली पीढ़ियों में यह समस्या पैदा हुई। यह शाप उन्हें एक राजा या देवता की अवहेलना के कारण मिला था। गांव के बुजुर्ग इस शाप से मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान भी करते हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई प्रभाव नहीं देखा गया है।

पर्यटन और उत्सुकता


यांग्सी गांव की इस अद्भुत विशेषता के चलते, यह स्थान पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। कई लोग यहां आकर गांव के लोगों से मिलते हैं और उनकी अनोखी जीवनशैली को देखने का अनुभव करते हैं। हालांकि, गांव के लोग बाहरी दुनिया के संपर्क में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते और अपनी परंपराओं और रहन-सहन को बनाए रखने में विश्वास करते हैं।

निष्कर्ष


चीन का यांग्सी गांव अब भी विज्ञान और लोककथाओं के बीच फंसा हुआ है। यहां के निवासियों की हाइट का रहस्य आज भी अनसुलझा है, जो इसे और भी रोमांचक और रहस्यमयी बनाता है। आने वाले समय में, शायद विज्ञान इस पहेली को सुलझा सके, लेकिन फिलहाल यह गांव दुनिया भर के लोगों के लिए एक दिलचस्प कहानी और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

अमेजॉन के जंगलों में इंटरनेट की दस्तक: जनजाति की जीवनशैली में बदलाव,शिकार छोड़कर फोन चलाते रहते हैं लोग

इंटरनेट ने लोगों की जिंदगी को अच्छे और बुरे दोनों ही तरीकों से प्रभावित किया है। दूरस्थ अमेजॉन के जंगलों में रहने वाली जनजाति भी इसके प्रभाव से अपने आप को अछूता नहीं रख पाई है। 

अमेजॉन की मरूबो जनजाति के लोग पिछले दशक तक आधुनिक दुनिया से पूरी तरह से दूर रहते थे लेकिन पिछले कुछ समय में इंटरनेट ने उनकी दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है।

जंगलों में बहुत अंदर बसे होने के कारण 2023 तक इनके पास मोबाइल फोन तो थे लेकिन लेकिन नेटवर्क ना होने की वजह से वह आधुनिक तकनीकि से अधिक प्रभावित नहीं थे। लेकिन फिर एलन मस्क ने इस क्षेत्र में अपने सैटेलाइट इंटरनेट स्टारलिंक को लॉन्च करके पूरी कहानी पलट दी।

मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट कंपनी स्टारलिंक ने इस जनजाति के गांव में कुछ एंटीना लगाए और अमेजॉन वर्षावनों की गहराई में रहने वाली मोरुबो जनजाति तक भी इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित कर दी। सितंबर 2023 में इंटरनेट की पहुंच के बाद इस जनजाति के लोगों के जीवन में बहुत ही तेजी से बदल गया। एक जांच रिपोर्ट में इस गांव के बदले हुए हालातों को बताया गया है।

2023 तक फोन थे, लेकिन इंटरनेट नहीं था

रिपोर्ट के मुताबिक इस गांव में लोगों के पास पहले से फोन थे लेकिन इंटरनेट ना होने की वजह से वह इनका उपयोग केवल फोटो खींचने और कभी-कभार बात करने के लिए करते थे लेकिन जब स्टारलिंक यहां आया तो जिंदगी बदल गई। त्साइनमा मोरूबो ने टाइम्स को बताया कि हमारी जनजाति में पहले लोग बहुत खुश रहते थे। अब वह दिन भर अपना काम काज छोड़कर मोबाइल फोन पर ही लगे रहते हैं। 

हमारे युवा जिन्हें काम करना चाहिए, वह इंटरनेट की वजह से आलसी हो रहे हैं। वे गोरे लोगों के तौर-तरीके सीख रहे हैं और लगातार अपनी जड़ों से कट रहे हैं। जनजाति के नेता अल्फ्रेडो मारुबो ने कहा कि युवा लोग अपने फोनों में अश्लील वीडियो देख रहे हैं

वहां पर लोग अपने फोन्स को चलाते हुए दिख रहे थे। कई लोग वहां पर नेमार जूनियर की वीडियो को भी देखते हुए मिले। वहां के आम लोगों के मुताबिक इंटरनेट से युवाओं और बच्चों की जीवनशैली में बदलाव हुए हैं और यह हमारी जनजाति के लिए खतरा है, इंटरनेट के आ जाने के बाद से युवाओं का मन ना तो खेती में ही लगता है और ना ही शिकार में।

जनजाति के लोगों ने बनवाए हैं कुछ नहीं

रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही इंटरनेट जनजातिय लोगों के लिए कई मददों के साथ आया है लेकिन इसके कई दुरुपयोग भी हैं। इस कारण से कंपनी की तरफ दिन के कुछ घंटों के लिए इंटरनेट को बंद कर दिया जाता है। जनजाति के नेताओं ने बताया कि कई बार इंटरनेट की वजह से हमारे लोगों के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं भी सामने आती हैं, उनको गलत सूचना दे दी जाती है। वह लगतार अश्लील वीडियो और हिंसक वीडियो गेम देख रहे हैं। युवा अपनी जनजाति जिंदगी से ज्यादा बाहर की जिंदगी में अपना आनंद खोज रहे हैं। वे जंगल छोड़ रहे हैं। इससे सबसे बड़ा खतरा हमारी संस्कृति के ऊपर ही है।

इंटरनेट चाहिए लेकिन सीमित मात्रा में- मोरुबो

जनजाति के नेता त्सैनामा मोरुबो ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि इंटरनेट की पहुंच को खत्म कर दिया जाए। क्योंकि इंटरनेट की ही मदद से हमारे साथियों की जान भी बच पाई है। हम जब भी कोई परेशानी में होते हैं तो हमें इंटरनेट काफी मदद भी करता है।

आज का इतिहास: 1965 में आज ही के दिन हुई थी धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना

नयी दिल्ली: 14 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 2008 में आज ही के दिन भारतीय रिजर्व बैंक ने म्युचुअल फंड्स की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त INR 200 अरब जारी करने की घोषणा की थी। 

2010 में 14 अक्टूबर को ही राजधानी दिल्ली में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल खेलों का समापन हुआ था।

2010 में आज ही के दिन राजधानी दिल्ली में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल खेल समाप्त हुए थे।

2008 में 14 अक्टूबर को ही भारतीय रिजर्व बैंक ने म्युचुअल फंड्स की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त INR 200 अरब जारी करने की घोषणा की थी।

2004 में आज ही के दिन पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ को सेना प्रमुख बनाए रखने वाला विधेयक पारित किया था।

 

2002 में 14 अक्टूबर को ही कतर में मिलने के वादे के साथ 14वें एशियाई खेलों का बुसान में रंगारंग समापन हुआ था।

2000 में आज ही के दिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान सहित 22 देशों में अपने दूतावास बंद कर दिए थे।

1981 में आज ही के दिन होस्नी मुबारक मिस्र के चौथे राष्ट्रपति बने थे।

1979 में 14 अक्टूबर को ही जर्मनी के बॉन में परमाणु ऊर्जा के खिलाफ 1 लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था।

1956 में आज ही के दिन डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने 3,85,000 अनुयायियों के साथ कोचांदा में बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।

1953 में 14 अक्टूबर को ही भारत में संपदा शुल्क अधिनियम प्रभाव में आया था।

1948 में आज ही के दिन इजरायल और मिस्र के बीच जबरदस्त लड़ाई शुरू हुई थी। 

1946 में 14 अक्टूबर को ही हालैंड और इंडोनेशिया के बीच संघर्ष विराम समझौते पर साइन किए गए थे। 

1943 में आज ही के दिन जापान ने फिलीपींस की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

1933 में 14 अक्टूबर को ही जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के समूह से बाहर आने की घोषणा की थी।

1882 में आज ही के दिन शिमला में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

14 अक्टूबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1981 में आज ही के दिन भारत के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी गौतम गंभीर का जन्म हुआ था।

1979 में 14 अक्टूबर को ही भारत के स्कवेश खिलाड़ी रित्विक भट्टाचार्य का जन्म हुआ था।

1931 में आज ही के दिन भारत के प्रमुख सितार वादकों में से एक निखिल रंजन बैनर्जी का जन्म हुआ था।

1930 में 14 अक्टूबर को ही जैरे के राष्ट्रपति मोबुतु सेस सीको का जन्म हुआ था।

14 अक्टूबर को हुए निधन

2013 में आज ही के दिन भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मोहन धारिया का निधन हुआ था।

1947 में 14 अक्टूबर को ही लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सहयोगी पत्रकार और मराठी साहित्यकार नरसिंह चिन्तामन केलकर का निधन हुआ था।

हमीरपुर में अनोखा रावण दहन:14 साल से सौतन को झेल रही महिला ने अपने पति का किया पुतला दहन बोली रावण है मेरा पति इसलिए किया दहन


 

हमीरपुर:- विजयादशमी पर लोगों ने रावण का दहन किया, वहीं जिले में एक महिला ने अपने पति को रावण बताकर उसका पुतला जलाया. पति के साथ ही महिला ने अपने ससुरालीजनों की भी फोटो पुतलों पर लगाकर दहन किया. 

महिला का कहना था कि भगवान राम ने 14 वर्ष का वनवास काटा था, जबकि उसका पति पिछले 14 साल से दूसरी महिला के साथ रह रहा है. जिस तरह रावण पराई स्त्री को ले आया था, उसी तरह उसका पति भी दूसरे की पत्नी को घर ले आया है. इसीलिए वह रावण रूपी पति और ससुरालीजनों के पुतले का दहन कर रही है.

यह मामला हमीरपुर के मुस्करा थाना कस्बे का है. यहां की रहने वालीं प्रियंका ने बताया कि उरई उसका मायका है. वह अभी बाबा ससुर के मकान में रहती है. उसकी शादी 14 साल पहले हुई थी।

आरोप है कि उसका पति दूसरी महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहता है. कोर्ट से पति तलाक का मुकदमा हार चुका है. कोर्ट ने मुझे साथ रखने का आदेश दिया है, लेकिन पति कोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं कर रहा है. पति अब भी उसी महिला के साथ रह रहा है. प्रियंका का आरोप है कि इसमें पति के परिवार वाले भी उसका ही साथ दे रहे हैं.

प्रियंका का कहना है कि उसका पति और ससुराल के लोग उसके लिए रावण के समान हैं. त्रेता युग में रावण पराई महिला को घर लेकर आया था और इस युग में उसके पति ने किसी और की पत्नी को घर में रखा हुआ है. ऐसे में पति को रावण का प्रतीक मानते हुए उसका दहन किया है।

ससुराल के लोगों की भी फोटो लगा कर पूरे परिवार का प्रतीकात्मक दहन कर दिया है. इसके पहले प्रियंका ने घर के पास एक छोटी सी झोपड़ी बनाई और उसमें पुतले-फोटो लगाकर आग लगा दी.प्रियंका ने पति और उसके परिजनों पर उसे संपत्ति से बेदखल करने का भी आरोप लगाया है. फिलहाल, महिला के अपने ही पति का पुतला बनाकर दहन करने का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।

गुजरात का अनोखा उत्सव:50 करोड़ के शुद्ध घी का अभिषेक,बहती है घी की नदिया

गुजरात : पल्ली जहां से भी गुजरी वहां घी की नदियां बहने का दृश्य निर्मित हो गया. गांव की परंपरा के अनुसार इस घी का उपयोग गांव के ही विशेष समुदाय के लोग करते हैं. इस समाज के लोग पल्ली से गुजरते ही बर्तनों में घी भर लेते हैं।कई श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी करने के लिए घी चढ़ाया गया. पांडव काल से चली आ रही पल्ली की यह परंपरा आज भी कायम है।

असल में हर साल की तरह इस साल भी रूपाल गांव में घी की नदियां बहती नजर आईं. पल्ली की विशेषताओं में घी अभिषेक प्रमुख है. पल्ली में लाखों श्रद्धालुओं द्वारा लाखों लीटर घी चढ़ाया गया।

हजारों सालों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक पल्ली आसु सूद नोम के दिन निकलती है. पांडवों के वनवास काल की कहानी से जुड़ी यह परंपरा आज भी कायम है. पल्ली पूरे गांव के 27 चौराहो पर होते हुए पुन: मंदिर पहुंचती है।

गांव के सभी चौराहों पर पल्ली पर घी का अभिषेक किया जाता है. हजारों श्रद्धालु पल्ली पर भी का अभिषेक कर अपनी मन्नत पूरी करते हैं. हालांकि इस बार माताजी के गोख में कबूतरों को देखकर श्रद्धालुओं में एक 

अलग ही खुशी देखने को मिली.

रखा जाता है।

क्या होता है पल्ली

 पल्ली एक प्रकार का लकड़ी का ढ़ांचा है जिसमें 5 ज्योत होती हैं, इस पर घी का अभिषेक किया जाता है। सामान्य तौर पर माता की ज्योत में घी अर्पण किया जाता है, लेकिन पल्ली उत्सव में जिस तरह घी का चढ़ावा चढ़ता है वो अनोखा है। नवरात्र के नवमी-दशमी की रात मां वरदायिनी की रथ यात्रा पूरे गांव में घूमती है। इस दौरान श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं और बाल्टियां और बैरल भर घी माता पर अर्पित करते हैं।

रूपाल गांव में 27 चौराहे हैं जहां बड़े-बड़े बर्तनों, बैरल में घी भरकर रखा जाता है,

जैसे ही पल्ली वहां आती है, लोग इस घी को माता की पल्ली पर अभिषेक करते हैं। अभिषेक करते ही ये घी नीचे जमीन पर गिर जाता है, जिसपर इस गांव के एक खास समुदाय का हक रहता है। इस समुदाय के लोग इस घी को इकट्ठा कर इसे पूरे साल इस्तमाल करते हैं।

कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान कुछ दिन इसी मंदिर में रुके थे।

पांडवों से जुड़ी है कहानी

रुपाल गांव की वरदायिनी माता की कहानी पांडवों से जुडी हुई है। कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञातवास में यहीं आकर रुके थे और अपने शस्त्र छुपाने के लिए उन्होंने वरदायिनी मां का आह्वान किया था। घी का अभिषेक करने पर वरदायिनी मां उत्पन्न हुईं और पांडवों को वरदान दिया था। 

पांडवों ने तब संकल्प किया था कि हर नवरात्रि की नवमी की रात को वरदायिनी माता के रथ को निकालकर उसे घी का अभिषेक करवायेंगे, तब से यह परंपरा चली आ रही है।

हरिद्वार के जेल में रामलीला का हो रहा था मंचन,वानर बने 2 कैदी सीता माता को ऐसा खोजने गए, अभी तक वापस नहीं लौटे,अब पुलिस कर रही तलाश


हरिद्वार : हरिद्वार की रोशनबाद जेल से दो कैदियों के फरार होने का मामला सामने आया है. खबर है कि ?वहां रामलीला का आयोजन किया गया था. जेल के कैदियों ने ही रामलीला में अलग-अलग किरदारों का रोल निभाया.इसी दौरान वानर बने दो कैदी मौका देखकर जेल की बाउंड्री फांदकर भाग निकले.

हर साल की तरह इस बार भी जेल में रामलीला का प्रोग्राम रखा गया. जेल प्रशासन के सारे कर्मचारी प्रोग्राम में लगे हुए थे. इस दौरान जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक बनाने का काम भी चल रहा था. खबर है कि शुक्रवार रात सीता माता की खोज के बहाने दोनों कैदी दीवार फांदकर भाग गए. वहां मौजूद सीढ़ी के सहारे ही दोनों कैदी दीवार फांदकर भागे।

आज का इतिहास:2002 में आज ही के दिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए एक भारतीय छात्र का चयन हुआ था


नयी दिल्ली : 13 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 2002 में आज ही के दिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए एक भारतीय स्टूडेंट्स का चयन हुआ था। 

2002 में 13 अक्टूबर के दिन ही जर्मनी ने स्वीडन को हराकर पहली बार विश्व कप फ़ुटबाल टूर्नामेंट जीता था।

2011 में आज ही के दिन होम मिनिस्ट्री के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए थे।

2011 में 13 अक्टूबर के दिन ही दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह उर्दू, सामान्य हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए थे।

2005 में आज ही के दिन जर्मनी के प्रख्यात नाटककार हेराल्ड पिंटर को उसी साल का साहित्य का नोबल पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी।

2002 में 13 अक्टूबर को ही नई दिल्ली में इंटरपोल सदस्य देशों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन शुरू हुआ था।

2002 में आज ही के दिन पहली बार मानव को लेकर चीनी अंतरिक्ष यान लांग मार्च 2 एफ़ उड़ा था।

2002 में 13 अक्टूबर के दिन ही जर्मनी ने स्वीडन को हराकर पहली बार विश्व कप फ़ुटबाल टूर्नामेंट जीता था। 

2002 में आज ही के दिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए एक भारतीय छात्र का चयन हुआ था।

1999 में 13 अक्टूबर के दिन ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री प्रो. राबर्ट मुंडेल को नोबेल पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा था।

1999 में आज ही के दिन अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे।

1988 में आज ही के दिन अमेरिका ने नेवाडा में न्यूक्लियर टेस्ट किया था।

1943 में 13 अक्टूबर को ही इटली ने जर्मनी के पूर्व मित्र राष्ट्रों के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की थी।

1914 में आज ही के दिन गैरेट मोर्गन ने गैस मास्क की खोज की और उसका पेंटेट कराया था।

1773 में 13 अक्टूबर को ही चार्ल्स मेसीयर ने व्हर्लपूल गैलेक्सी की खोज की थी।

1760 में आज ही के दिन रूस और ऑस्ट्रिया की सेना जर्मनी की राजधानी बर्लिन से हटी थी।

13 अक्टूबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1934 में आज ही के दिन ग्रीक गायिका और राजनीतिज्ञ- ऐननमस कूरी का जन्म हुआ था।

1925 में 13 अक्टूबर को ही युनाइटेड किंगडम की प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर का जन्म हुआ था।

1911 में आज ही के दिन ही भारतीय अभिनेता अशोक कुमार का जन्म हुआ था।

1895 में 13 अक्टूबर को ही भारत की क्रिकेट टीम के प्रथम टेस्ट कप्तान सीके नायडू का जन्म हुआ था।

1542 में आज ही के दिन मुगल बादशाह अकबर का सिंध के अमरकोट में जन्म हुआ था।

13 अक्टूबर को हुए निधन

1987 में 13 अक्टूबर को ही भारतीय गायक किशोर कुमार का निधन हुआ था।

2004 में आज ही के दिन प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेत्री निरुपा रॉय का निधन हुआ था।