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सरायकेला : ईचागढ़ के खुंडीह गांव में अब तक 10 लोग डायरिया की चपेट में आ चुके हैं,।...
सरायकेला : जिला  के ईचागढ़ प्रखंड अंतर्गत  गुदड़ी पंचायत क्षेत्र के खूनडीह गांव में डायरिया फैलने की खबर है। अब तक 10 लोग डायरिया की चपेट में आ चुके हैं, जिनमें से 7 लोग अभी भी बीमार हैं। चार लोगों का इलाज अस्पताल में चल रहा है, जबकि तीन लोग निजी चिकित्सक से इलाज कराकर स्वस्थ हो चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव का दौरा किया और आवश्यक कदम उठाए। ग्रामीणों को स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी गई। स्वास्थ्य विभाग ने डायरिया के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया है।
सरायकेला : ईचागढ़ के विधायक सविता महतो ने कुकड़ू और नीमडीह में पांच महत्वपूर्ण योजनाओं का भूमिपूजन किया।
सरायकेला : ईचागढ़ के विधायक सविता महतो ने कुकड़ू और नीमडीह में पांच महत्वपूर्ण योजनाओं का भूमिपूजन किया। मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत इन योजनाओं को मंजूरी दी गई थी। इन योजनाओं में शामिल हैं ।

डेरे से रेलवे लाइन तक सड़क निर्माण: 1.5 किमी लंबी सड़क का निर्माण 94 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा।

लेटेमदा से जारगो सड़क निर्माण*: 2.8 किमी लंबी सड़क का निर्माण 1 करोड़ 78 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा।

रुपरु से सिरुम सड़क निर्माण: 2.06 किमी लंबी सड़क का निर्माण 1 करोड़ 28 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा।
छातारडीह से जारगो सड़क निर्माण*: 4.5 किमी लंबी सड़क का निर्माण 2 करोड़ 81 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा।

रामनगर बांदू पथ से हेवन से लावा होते हुए आंडा तक सड़क निर्माण: 9.8 किमी लंबी सड़क का निर्माण 7 करोड़ 11 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा।

विधायक सविता महतो ने कहा कि इन सड़कों के निर्माण से ग्रामीणों को यातायात में सुविधा होगी। उन्होंने सड़क निर्माण करने वाले संवेदक को सड़क का निर्माण कार्य गुणवत्तापूर्ण और समय पर करने का निर्देश दिया।
सरायकेला : नीमडीह के दर्जनों गांव में हाथी की आतंक । कादला के अरुण सिंह का घरों को किया ध्वस्त खाए अनाज । देशी शराब की चुलाईं जारी नही हो पा रहा
सरायकेला : जिला के नीमडीह थाना अंतर्गत इन पंचायत ,चातरमा, तिल्ला, हेवेन,लाकड़ी पंचायत के दर्जनों गांव में  आज दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी चांडिल के गजों की झुंड से परेशान रहा जनजीवन साम ढलते ही गजों का झुंड जंगल छोड़ कर गांव में प्रवेश कर जाते ओर उद्र्व मचाने लगते ।एक विशाल ट्रास्कर गज कादला गांव के निवासी अरुण सिंह का मिट्टी का घर को ध्वस्त कर दिया,घर में रखे अनाज को अपना निवाला बना लिया।किसी तरह  भाग कर आपने परिवार के लोगो की जाना बचाया । एक तरफ  विजय दशमी का धुन ओर दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन था। सूर्य ढलते ही सिंगल गज जंगल से उतर कर गांव में घुस गया और उद्रव मचाने लगा ।यह सिंगल ट्रास्कर गज जुगिलोग, पुड़ियारा, कादला , के साथ आदि गांव में सेकोड़ो की संख्या में अभेद रूप से देशी शराब महुआ की भाटी संचालक हो रहा हे। जिसके कारण यह दांतल हाथी दारू बनाने वाले बास्कि खाने के बाद मस्त हो कर उपद्रव मचाने लगते ।चांडिल वन क्षेत्र के अधीन कदला, चातरमा पहाड़ आदि जंगल की तराई में यह देशी मिनी फैक्ट्री महुआ शराब भाटी का संचालक हो रहा हे ।जिसके कारण गजों का झुंड इस क्षेत्र में बारों महीना डेरा डाला हुआ हे। इस गांव में धड़ल्ले से देशी महुआ भाटी का  उत्पाद बेहिचक रूप से पुरियारा, जुगिलोंग, मुरु, तिलाईटांड़, हेंसालोंग, लाकड़ी, हुंडरू, बनडीह , आगईटाड़, चातरमा आदि गांव के गलियां इन दिनों अवैध महुआ शराब की दुर्गंध से महकने लगा है. इन गांवों में एक दर्जनों अवैध महुआ शराब की भट्टियां संचालित हो रहा है. इन गांवों में अवैध महुआ शराब चुलाई कुटीर उद्योग का रूप धारण किया है. इन गांवों से प्रतिदिन हजारों लीटर महुआ शराब नीमडीह, चांडिल व तिरूलडीह थाना क्षेत्र के विभिन्न गांवों में पहुंचाया जाता है। कम कीमत पर मिलने के कारण मजदुर एवं युवा वर्ग महुआ शराब के लत से जकड़ कर मौत को करीब बुला रहे हैं। अनेक लोग अकाल मृत्यु के शिकार भी होते हैं और परिवार को दुःख की दरिया में डाल देते हैं ।अवैध शराब के कारण आए दिन गांव में अशांति भी फैलती है। कादला,जुगिलोंग , चातरमा आदि जंगल की तराई में देशी दारू की चुलाई हो रहा हे । चांडिल वन क्षेत्र के पदाधिकारी द्वारा अबतक कोई कदम नहीं उठाया गया। क्युकी देशी महुआ शराब की सामग्री खाने के बाद गजों का झुंड मस्त होकर दिन के उजाले में भ्रमण करते नजर आते हे। ओर उपद्रव मचाते हे,  सरायकेला खरसावां जिला मद उत्पाद विभाग द्वारा संचालित दारू माफिया के ऊपर आज तक कोई कारवाई नही किया ,जो खुलेआप यह गोरख धंधा संचालित रहा । पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर कोई कारवाई होता हे परंतु नीमडीह थाना पुलिस द्वारा अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस संबंध में पूछे जाने पर मद उत्पाद विभाग मौन बना लिया ।ग्रामीणों ने कहा सरकार ओर प्रशासन सवाल किया कर रहे हे कब्तक इन माफिया के ऊपर करवाई होगा।   
सरायकेला  : स्मार्त वैष्णव समुदाय आज रखेगा पापांकुशा एकादशी का व्रत ।..
पापांकुशा एकादशी इस बार 13 अक्‍टूबर को है। इस दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा करके विधिपूर्वक व्रत रखेंगे। सनातन धर्म में सभी एकादशियों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय आश्विन महीना चल रहा है। इस महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग पूरे विधि-विधान से व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्‍यता है कि इस दिन भगवाव विष्‍णु को सबसे प्रिय तुलसी भी उनके लिए व्रत करती हैं। यही वजह है कि इस दिन तुलसी को जल नहीं दिया जाता है। कहते हैं कि इस दिन तुलसी को जल देने से उनका व्रत खंडित हो जाता है, इसलिए पापांकुशा एकादशी के दिन तुलसी में जल नहीं देना चाहिए। इस दिन भगवान विष्‍णु को तुलसी दल अर्पित करने से वह बेहद प्रसन्‍न होते हैं और मनचाहा फल देते हैं।

पापांकुशा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त । हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 13 अक्टूबर को है। इस दिन पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। एकादशी तिथि 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 08 मिनट से शुरू होकर 14 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत का पारण 14 अक्‍टूबर को किया जाएगा।

पापांकुशा एकादशी की पूजाविधि ।एकादशी के दिन सुबह सबसे पहले नहा धोकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने के बाद लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति रखें। विधि विधान से पूजा करें और भगवान को पंचामृत से स्‍नान करवाएं। उसके बाद पीले फूल और पीली मिठाई भगवान को चढ़ाएं। पूरे दिन व्रत रखें और रात में भगवान विष्णु के विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। अगले दिन, यानी द्वादशी को सुबह ब्राह्मण को भोजन और दान-दक्षिणा देकर ही व्रत खोलना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी का महत्‍व ।मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ यज्ञ और हजार सूर्य यज्ञ के बराबर फल मिलता है। इस व्रत को रखने वाले को 1000 अश्वमेघ यज्ञ और 1000 सूर्य यज्ञ के समान फल प्राप्‍त होते हैं। इससे साधक के जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा का विधान है। भक्तों को इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और पीले वस्त्र धारण करके पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको मनवांछित फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पापांकुशा एकादशी पर क्‍या करें क्‍या न करें ========================= पापांकुशा एकादशी के दिन तुलसी पूजा के कुछ ख़ास नियम हैं। मान्यता है कि इस दिन माता तुलसी, भगवान विष्णु के लिए व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन तुलसी में ना तो जल चढ़ाना चाहिए और ना ही दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से माता तुलसी के व्रत में बाधा आ सकती है। एकादशी के दिन तुलसी माता की पूजा से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। इस दिन तुलसी माता को सुहाग की चीजें चढ़ाने और 11 परिक्रमा करने का विधान है। ऐसा करने से जीवन में अच्छे परिणाम मिलते हैं। मान्यता है कि सुहाग का सामान चढ़ाने से और परिक्रमा करने से तुलसी माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं। इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

सरायकेला : चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा के बीच शांति पूर्वक सभी पंडाल,मंदिर से मां दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन हुआ ।
सरायकेला : जिला के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में विजय दशमी के दिन मां दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन  कड़ी सुरक्षा के बीच जुलूस निकाला गया और महिलाएं श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित थीं। विभिन्न मंदिरों और पंडालों से दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया गया। जिला प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। विसर्जन के दौरान महिलाएं बाजागाजा के साथ नृत्य और गाते हुए दिखीं।
सरायकेला : 5 करोड़ की लागत से होगा नए बार एसोसिएशन भवन का निर्माण*।
*बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद व अधिवक्ता राजा राम गुप्ता ने मंत्री दीपक बिरुवा का जताया आभार*

चाईबासा: जिला बार एसोसिएशन चाईबासा के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद व अधिवक्ता राजा राम गुप्ता ने संयुक्त रूप से झारखंड सरकार के मंत्री दीपक बिरुवा से आवास में भेंट वार्ता की। व बार एसोसिएशन के नए भवन के निर्माण को लेकर स्वीकृति दिलाने को लेकर पुष्प गुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया। रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि बार एसोसिएशन चाईबासा अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर हुआ है। पिछले 70 वर्ष से बार एसोसिएशन चाईबासा कई समस्याओं से जूझ रहा था। जिसमें सबसे बड़ी समस्या थी अधिवक्ताओं के बैठने तथा महिला अधिवक्ताओ को अपने दिनचर्याओं से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। मंत्री दीपक बिरुवा के अथक प्रयास से अब जिला बार एसोसिएशन में 5 करोड़ की लागत से नए बार भवन का निर्माण होगा। जिसकी प्रशासनिक स्वीकृति कुछ दिनों पूर्व कैबिनेट की बैठक में की जा चुकी है। बहुत ही जल्द कार्य की प्रगति को लेकर आगे की टेंडर की प्रक्रिया होने जा रही है। इस बार भवन के बनने से अधिवक्ताओं के साथ-साथ आम लोगों को इसका फायदा मिलेगा। मंत्री श्री बिरुवा ने पुनः आश्वस्त किया कि बार और भी जो समस्याएं हैं उनको मैं व्यक्तिगत रूप से दूर करने का कार्य करूंगा। और अधिवक्ताओं से सीधे तौर पर संपर्क रखूंगा।
सरायकेला : मान्यता है कि आज के दिन सुहागन महिलाएं मां दुर्गा को चढ़ाया हुआ सिंदूर नाक के ऊपर से सिंदूर लेने से अखंड सौभाग्यवती का वरदान महिलाओं
रायकेला : दुर्गा पूजा के अवसर पर सरायकेला खरसावां जिले में आयोजित सिंदूर खेला की है। बिजय दशमी के दिन महिलाओं ने पूजा अर्चना करने के बाद एक दूसरे को मांग में सिंदूर भरने के बाद उसके शंकर में सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला खेली। मान्यता है कि आज के दिन सुहागन महिलाएं मां दुर्गा को चढ़ाया हुआ सिंदूर नाक के ऊपर से सिंदूर लेने से अखंड सौभाग्यवती का वरदान महिलाओं को मिलता है और उनके पति दीर्घ्यावु होता है। इस अवसर पर महिलाओं में उत्साह देखा गया और उन्होंने एक दूसरे के साथ गला मिलकर विजयदशमी की शुभकामनाएं दी।


चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के चांडिल बाजार ,कदमडीह,स्टेशन बस्ती आदि दुर्गा मंदिर पूजा पंडाल सह विभिन्न जगह में आज सुबह से बंगाली समुदाय के श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी । महिलाओ में खासा उत्साह देखा गया । नवरात्र के विजय दशमी के दिन सुबह से ही महिलाएं दुर्गा मंदिर पहुंच कर पूजा अर्चना कर रहे हे। कलश घट विसर्जन के दौरान ढक बजाकर महिलाए बामनी नदी पहुंचते ओर विसर्जन करते हे। उसके प्रश्चात बंगाली समुदाय के सिंदूर खेल खेला जाता हे ।ओर सभी श्रद्धालु भक्त महिला द्वारा मां दुर्गा को झलकते आंखो भरी से मां को विदाई करते हे।

सरायकेला : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व आज ।

दशहरा - जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के नौ दिवसीय त्योहार के बाद, अश्विन के हिंदू महीने के दसवें दिन मनाया जाने वाला दशहरा पूरे भारत में सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्व रखता है। दशहरा भगवान राम की राक्षस राजा रावण पर विजय का स्मरण करता है, जो प्राचीन महाकाव्य रामायण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह दिन बुराई (अधर्म) पर अच्छाई (धर्म) की जीत का प्रतीक है। यह त्यौहार न केवल इस महाकाव्य विजय का सम्मान करता है, बल्कि सार्वभौमिक संदेश को भी पुष्ट करता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में हमेशा धर्म की ही जीत होती है।

कब है दशहरा ?   दशमी तिथि का आरंभ: 12 अक्तूबर प्रातः 10 बजकर 58 मिनट पर तिथि का समापन: 13 अक्तूबर 2024, प्रातः 09 बजकर 08 मिनट पर ऐसे में दशहरा 12 अक्तूबर 2024 को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी के दिन श्रवण नक्षत्र का होना बहुत शुभ होता है, और इस साल इसका संयोग बन रहा है। बता दें श्रवण नक्षत्र 12 अक्तूबर को सुबह 5:00 बजकर 25 मिनट से प्रारंभ होकर 13 अक्तूबर को सुबह 4:27 मिनट पर समाप्त हो रहा है।

दशहरा की पूजा विधि ।  दशहरा की पूजा सदैव अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है। अपने घर के ईशान कोण में शुभ स्थान पर दशहरा पूजन करें। पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके चंदन का लेप करें और आठ कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र निर्मित करें। इसके पश्चात संकल्प मंत्र का जप करें तथा देवी अपराजिता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। अब अष्टदल चक्र के मध्य में 'अपराजिताय नमः' मंत्र द्वारा देवी की प्रतिमा स्थापित करके आह्वान करें। इसके बाद मां जया को दाईं एवं विजया को बाईं तरफ स्थापित करें और उनके मंत्र “क्रियाशक्त्यै नमः” व “उमायै नमः” से देवी का आह्वान करें। अब तीनों देवियों की शोडषोपचार पूजा विधिपूर्वक करें। शोडषोपचार पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम और हनुमान जी का भी पूजन करें। सबसे अंत में माता की आरती करें और भोग का प्रसाद सब में वितरित करें।

दशहरा पर संपन्न होने वाली पूजा ।स्त्र पूजा: दशहरा के दिन दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ और शस्त्र पूजा करने की परंपरा है। प्राचीनकाल में विजयदशमी पर शस्त्रों की पूजा की जाती थी। राजाओं के शासन में ऐसा होता था। अब रियासतें नहीं है, लेकिन शस्त्र पूजन को करने की परंपरा अभी भी जारी है।

शामी पूजा: इस दिन शामी पूजा करने का भी विधान है जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से शामी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पूजा को मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में किया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से योद्धाओं या क्षत्रिय द्वारा की जाती थी।

अपराजिता पूजा: दशहरा पर अपराजिता पूजा भी करने की परंपरा है और इस दिन देवी अपराजिता से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए पहले विजय की देवी, देवी अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह पूजा अपराहन मुहूर्त के समय की जाती है, साथ ही आप चौघड़िये पर अपराहन मुहूर्त भी देख सकते हैं।

दशहरा का महत्व । दशहरा से जुड़ीं ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। वहीँ, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का संहार किया था इसलिए इसे कई स्थानों पर विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दशहरा तिथि पर कई राज्यों में रावण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन देश में कई जगह मेले आयोजित किये जाते है। दशहरे से 14 दिन पहले तक पूरे भारत में रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण एवं सीता जी के जीवन की लीला दर्शायी जाती है। विभिन्न पात्रों के द्वारा मंच पर प्रदर्शित की जाती है। विजयदशमी तिथि पर भगवान राम द्वारा रावण का वध होता है, जिसके बाद रामलीला समाप्त हो जाती है। वर्ष के शुभ मुहूर्तों में से एक दशहरा ========================= दशहरा की गिनती शुभ एवं पवित्र तिथियों में होती है, यही कारण है कि अगर किसी को विवाह का मुहूर्त नहीं मिल रहा हो, तो वह इस दिन शादी कर सकता हैं। यह हिन्दू धर्म के साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो इस प्रकार है- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आधा मुहूर्त माना गया है। यह अवधि किसी भी कार्यों को करने के लिए उत्तम मानी गई है। दशहरा कथा ========== अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम अपनी अर्धागिनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे। वन में दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण से मुक्त कराने के लिए दस दिनों के भयंकर युद्ध के बाद भगवान राम ने रावण का वध किया था। उस समय से ही प्रतिवर्ष दस सिरों वाले रावण के पुतले को दशहरा के दिन जलाया जाता है जो मनुष्य को अपने भीतर से क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का संदेश देता है। महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव दुर्योधन से जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। उस समय एक शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा था, ओर एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास पर भी रहना पड़ा था। अज्ञातवास के समय उन्हें सबसे छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलना पड़ता। इसी वजह से अर्जुन ने उस एक वर्ष के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक पेड़ पर छुपा दिया था और राजा विराट के महल में एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण करके कार्य करने लग गए थे। एक बार जब विराट नरेश के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा के लिए सहायता मांगी तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को पराजित किया था।


सरायकेला : नीमडीह के उगडीह गांव में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजा के दिन उर्मिला सिंह पर चामुंडा का रूप सवार होता हे।ओर यह महिलाए रक्त पान करते हे
सरायकेला : जिले के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में स्थित सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति पुराना पेट्रोल पंप उगडीह स्टेशन बस्ती में , जहां 8 वर्षों से मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जा रही है। इस मंदिर में उर्मिला सिंह नामक महिला पर मां चामुंडा का रूप सवार होता है, जो दुर्गाष्टमी और महानवमी के दिन बकरे की बलि के दौरान पुजारी द्वारा मंत्र उच्चारण के के बाद बकरा का बली होता हे जिसका रक्त पान करती हैं और नृत्य करती हैं। यह घटना धार्मिक महत्व के साथ-साथ श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी और नवमी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन को इस मंदिर परिसर एक बकरा का बली चढ़ावा दिया जाता उस दौरान उर्मिला सिंह के ऊपर मां चामुंडा का रूप सवार होता हे । ओर बकरा बली करने की प्रश्चात उर्मिला सिंह मंदिर से दौड़ते हुए मिट्टी की प्याला में रखे गए खून को तत् प्रश्चात यह महिला चामुंडा रूपी धारण करके रक्त पान करने लगता हे, साथ ही ढाक ढोल की बाजा के साथ नृत्य करते हे जिसको देखने के लिए सेकोडो की संख्या में भक्त श्रद्धालु का भीड़ उमड़ पड़ती, ओर नृत्य करते हुए मंदिर पहुंच जाते वही पुजारी द्वारा उसे पुष्पांजलि देकर शांत करते हे। यह रूप देखकर लोगो को मां के प्रति भक्ति और श्रद्धा और भी जाग जाते हे । कहा जाता हे की इस महिलाए स्टेशन बस्ती उगडीह गांव के कार्तिक सिंह की धर्म पत्नी हे। जिसके ऊपर 8 बर्ष पूर्व में मां दुर्गा जी की स्वप्न मिला था ओर मां उसे पूजा अर्चना करने को कहा गया । आज भी इस परिवार द्वारा पूजा अर्चना करते आए ।उर्मिला सिंह को मां शारदीय विंदेश्वरी की आर्शीवाद प्राप्त हे।इस मंदिर में सभी भक्तो का मांगे गए मन्नत पूरा होता हे। मां शारदीय की पूजा अर्चना के प्रश्चात महिलाए आपने मांग में एक दूसरे के साथ सिंदूर लगाते है ,जिसे सिंदूर खेल कहते मां दुर्गा को इस प्रकार हंस कर महिलाए बिदाई देते हे ,कहना यह परंपरागत से चले आ रहे हे।
सरायकेला : अष्टमी और नवमी तिथि का उससे भी ज्यादा महत्व है।
दुर्गाष्टमी व महानवमी आज ।


वैदिक पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। वैसे तो प्रत्येक साल 4 नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रकट नवरात्रि आती है। प्रकट नवरात्रि एक आश्विन माह में आती है, जिसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है और एक प्रकट नवरात्रि चैत्र माह में आता है, जिसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार, शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो लोग नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन में किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसे तो नवरात्रि के नौ दिनों का विशेष महत्व है, लेकिन अष्टमी और नवमी तिथि का उससे भी ज्यादा महत्व है। मान्यता है कि जो इस दिन पूजा और व्रत रखने से पूरे नवरात्रि का फल मिल जाते हैं।

कब है अष्टमी-नवमी तिथि?

वैदिक पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार को दोपहर 12 बजकर 31 मिनट पर हो रही है और समाप्ति अगले दिन यानी 11 अक्टूबर 2024 दिन शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 6 मिनट पर होगी। इस मुहूर्त के बाद नवमी तिथि लग जाएगी, जो अगले दिन यानी 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 57 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। पंचांग के अनुसार, अष्टमी और नवमी तिथि का व्रत 11 अक्टूबर को रखा जाएगा।

अष्टमी-नवमी शुभ मुहूर्त ।चर मुहूर्त – सुबह 6 बजकर 20 मिनट से सुबह 07 बजकर 47 मिनट लाभ मुहूर्त– सुबह 07 बजकर 47 मिनट से सुबह 09 बजकर 14 मिनट अमृत मुहूर्त– सुबह 09 बजकर 14 मिनट से सुबह 10 बजकर 41 मिनट

अष्टमी-नवमी का महत्व । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अष्टमी और नवमी का महत्व सनातन धर्म में विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाष्टमी के दिन कन्या पूजन के साथ ही साथ माता दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन संधि पूजा भी की जाती है। यानी अष्टमी तिथि के अंतिम चौबीस मिनट और नवमी तिथि से पहले 24 मिनट होती है। उसे ही संधिकाल पूजा कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि के अष्टमी व नवमी तिथि के दिन पूजा करने से सारी परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही साथ माता रानी का आशीर्वाद भी मिलता है।

शारदीय नवरात्रि व्रत पारण।

इस साल शारदीय नवरात्रि व्रत का पारण आप कन्या पूजन के बाद कर सकते हैं। हालांकि, नवरात्रि व्रत के पारण के लिए सबसे उपयुक्त समय नवमी की समाप्ति के बाद माना जाता है, जब दशमी तिथि प्रचलित हो।


कन्या पूजन कब है?

इस साल अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन ही है, जिसके कारण केवल 11 अक्टूबर 2024 को ही कन्या पूजन करना शुभ रहेगा। 11 अक्टूबर 2024 को कन्या पूजन करने का शुभ मुहूर्त प्रात: काल से लेकर सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक है। इसके बाद दोपहर 12 बजकर 08 मिनट तक राहुकाल रहेगा, जिस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।