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शिवलिंग पर बैठे बिच्छू हैं मोदी..', शशि थरूर की इस टिप्पणी के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को कांग्रेस सांसद शशि थरूर की उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसने उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था। मामला थरूर की उस टिप्पणी से जुड़ा है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना 'शिवलिंग पर बैठे बिच्छू' से की थी। हाई कोर्ट ने इस बयान के लिए उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 सितंबर को थरूर के खिलाफ निचली अदालत में चल रही मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और शिकायतकर्ता भाजपा नेता राजीव बब्बर और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इस मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ करेगी। थरूर ने हाई कोर्ट के 29 अगस्त के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें उनके खिलाफ कार्यवाही रद्द नहीं की गई थी। थरूर के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि शिकायतकर्ता को पीड़ित पक्ष नहीं माना जा सकता, और यह बयान मानहानि कानून के प्रतिरक्षा प्रावधान के तहत संरक्षित है। उन्होंने यह भी कहा कि थरूर ने यह टिप्पणी कारवां पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के संदर्भ में की थी, जो छह साल पहले प्रकाशित हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि 2012 में जब यह लेख प्रकाशित हुआ था, तब इसे अपमानजनक नहीं माना गया था। जस्टिस रॉय ने कहा कि यह एक रूपक है जो व्यक्ति (मोदी) की अपराजेयता को दर्शाता है, और समझ नहीं आता कि इस पर अब आपत्ति क्यों जताई जा रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने हालांकि कहा था कि थरूर की टिप्पणी पहली नजर में प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय है। कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2020 को थरूर के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाई थी, लेकिन निचली अदालत में मामले को जारी रखने का आदेश दिया था।

दिल्ली में 60 साल पुराने शिव मंदिर पर चलेगा बुलडोज़र, हाई कोर्ट ने दी मंजूरी, जानिए, क्या है पूरा मामला

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा एक पार्क में अवैध रूप से बनाए गए शिव मंदिर को हटाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता अवनीश कुमार ने डीडीए को रोकने की अपील की थी कि कोंडली सब्जी मंडी के शिव पार्क में 60 साल पुराने मंदिर को न हटाया जाए। उन्होंने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

जस्टिस तारा वी गंजू ने 4 अक्टूबर को दिए फैसले में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के पास उक्त जमीन पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं है। इसलिए, सार्वजनिक भूमि से अवैध निर्माण हटाने के डीडीए के फैसले में दखल देने का कोई कारण नहीं बनता। कोर्ट के आदेश में यह भी बताया गया कि मंदिर जिस भूमि पर स्थित है, वह डीडीए की स्वामित्व वाली सार्वजनिक पार्क की जमीन है। रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि याचिकाकर्ता और कुछ अन्य निवासियों ने पार्क के 200 वर्ग मीटर क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया है और मंदिर के चारों ओर चारदीवारी का निर्माण किया है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता कई वर्षों से इस सार्वजनिक पार्क पर बने अवैध निर्माण को गिराने से रोकने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अदालत अब इसे सहन नहीं करेगी। याचिकाकर्ता का दावा था कि वह मंदिर का भक्त है और मंदिर तोड़ने से उसके "पूजा के अधिकार" का हनन होगा। उसने यह भी कहा कि मंदिर का निर्माण 1969 में इलाके के जमींदारों द्वारा जमीन दान करने के बाद हुआ था। हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज करते हुए कहा कि "पूजा का अधिकार" एक नागरिक अधिकार हो सकता है, लेकिन मामले में याचिकाकर्ता को किसी वैध मंदिर में पूजा करने से नहीं रोका जा रहा है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अवैध रूप से बने मंदिर पर अपना अधिकार जताने की कोशिश कर रहा है, जो कानूनन गलत है। डीडीए ने अदालत में कहा कि याचिकाकर्ता के पास इस भूमि पर कोई अधिकार नहीं है, और वह न तो इस मंदिर का मालिक है और न ही पुजारी। उन्होंने बताया कि अनधिकृत अतिक्रमण हटाने के लिए डीडीए ने जून में पुलिस की सहायता मांगी थी।

तमिलनाडु में ट्रेन हादसा, मालगाड़ी से टकराई मैसूर-दरभंगा बागमती एक्सप्रेस, बोगियों में लगी आग, बाल बाल बचे यात्री

चेन्नई के कावरपेट्टई इलाके में बड़ा रेल हादसा हुआ, जिसमें मैसूर-दरभंगा बागमती एक्सप्रेस के 12 से 13 डिब्बे पटरी से उतर गए। हादसा तब हुआ जब ट्रेन एक खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। हादसे के बाद चार डिब्बों में आग लग गई, जिससे हड़कंप मच गया। फिलहाल, किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है, लेकिन कुछ लोगों के घायल होने की आशंका है। रेलवे द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, ट्रेन संख्या 12578 शाम 8:27 बजे पोन्नेरी स्टेशन से गुजरी थी। इसके बाद ट्रेन के चालक दल को एक भारी झटका लगा और ट्रेन लूप लाइन में चली गई, जहां खड़ी एक मालगाड़ी से उसकी टक्कर हो गई। इस हादसे में किसी के जान गंवाने की सूचना नहीं है, लेकिन कुछ यात्रियों के घायल होने की पुष्टि की गई है। सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो और तस्वीरों में दुर्घटनाग्रस्त कोचों में से एक के नीचे आग की लपटें दिखाई दीं। नाटकीय दृश्यों में यात्रियों को बचाते हुए देखा जा सकता है। दुर्घटना के तुरंत बाद पुलिस, अग्निशमन विभाग, और स्थानीय निवासियों ने मिलकर बचाव कार्य शुरू किया। उनकी त्वरित प्रतिक्रिया ने हादसे में फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने में अहम भूमिका निभाई। हादसे के बाद, कावरपेट्टई के आस-पास के अस्पतालों को संभावित आपात स्थिति के लिए अलर्ट पर रखा गया है। हालांकि, दक्षिणी रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल किसी यात्री को गंभीर चोट नहीं आई है। मैसूर-दरभंगा एक्सप्रेस कर्नाटक के मैसूर जंक्शन और बिहार के दरभंगा जंक्शन के बीच चलती है। यह ट्रेन दोनों क्षेत्रों के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी है। फिलहाल, रेलवे अधिकारी दुर्घटना के कारणों की जांच कर रहे हैं और स्थिति का जायजा ले रहे हैं। बचाव अभियान अभी जारी है, और अधिक जानकारी जुटाने के बाद ही हादसे की असली वजह का पता चल पाएगा।
क्या बंद हो जाएगी मदरसों की फंडिंग?, NCPCR ने राज्यों से की रोक की मांग, बताई ये वजह*
#ncpcr_writes_to_states_recommending_to_stop_funding_madrasas *
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र लिख मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है। एनसीपीसीआरने मदरसा बोर्डों को बंद करने का भी सुझाव दिया है। दरअसल, एनसीपीसीआरकी तरफ से एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में मदरसों के इतिहास और "बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका" का उल्लेख किया गया है। इसमें ये भी लिखा गया है कि मदरसों को दिया जाने वाला सरकारी फंड बंद होना चाहिए। एनसीपीसीआर के प्रमुख प्रियांक कनूनगो ने कहा, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 में बताया गया कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को प्राप्त करना सभी के लिए शिक्षा के प्रावधान के माध्यम से ही संभव है। बच्चों के मौलिक अधिकार और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार के बीच एक विरोधाभासी तस्वीर बनाई गई है। उन्होंने आगे कहा, इस संबंध में आयोग ने आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे शीर्षक से एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में 11 अध्याय हैं, जिसमें मदरसों के इतिहास के विभिन्न पहलुओं और बच्चों के शैक्षिक अधिकारों के उल्लंघन में उनकी भूमिका का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किस तरह मदरसा जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भारत के संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार का लाभ नहीं मिल रहा है। इस रिपोर्ट को बनाने के बाद एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को खत लिखा है। जिसमें सिफारिश की गई है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मदरसों को राज्य की तरफ से दिया जाने वाला वित्त पोषण बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा मदरसा बोर्ड को बंद कर दिया जाना चाहिए। आयोग ने यह भी कहा कि केवल बोर्ड का गठन करने से या यूडीआईएसई कोर्ड लेने का मतलब यह नहीं कि मदरसा आरटीई अधिनियम 2009 के प्रावधानों का पालन कर रहा है। इसलिए आयोग ने रिपोर्ट के माध्यम से यह सिफारिश की कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मदरसा को राज्य वित्त पोषण बंद कर दिया जाना चाहिए। एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि सभी गैर मुस्लिम बच्चों को आरटीई अधिनियम 2009 के अनुसार मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मदरसों से बाहर निकाला जाए और स्कूलों में भेजा जाए।
हरियाणा हार पर ओवैसी ने कांग्रेस से किए सवाल, कहा- हम चुनाव नहीं लड़े तो मोदी कैसे जीते?

#asaduddinowaisitauntscongressoverbjpharyana_win

हरियाणा विधानसभा के चुनावी नतीजे आए चार दिन हो गए हैं। अब तो सरकार गठन की तारीख भी तय हो गई है। 17 अक्टूबर को हरियाणा में लगातार तीसरी बार बीजेपी सरकार का शपथ ग्रहण होने वाला है। हालांकि, अब तक राज्य में कांग्रेस की हार की चर्चा खत्म नहीं हुई है। इस बीच एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस को जमकर लपेटा। उन्होंने कहा कि हरियाणा में एआईएमआईएम चुनाव नहीं लड़ी फिर कैसे बीजेपी जीत गई?

ओवैसी ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा है कि मोदी जी हरियाणा का इलेक्शन गलती से जीत गए। अब कैसे जीत गए मैं तो वहां पर नहीं था। वरना बोलते बी टीम-बी टीम। ये लोग गए तो ऐसा किए वैसा किए। मगर ये वहां पर हार गए। हारने वालों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि क्यों हारे और किस वजह से हारे?

कांग्रेस को ओवैसी की नसीहत

ओवैसी ने आगे कहा, मैं कांग्रेस से कहना चाहता हूं कि पार्टी मेरी बात समझने की कोशिश करें। अभी भी समय है, अगर मोदी को हराना है तो सबको साथ लेकर चलना होगा। आप अकेले कुछ नहीं कर सकते।

हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार शानदार जीत हासिल की है। बीजेपी ने कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हरियाणा में बीजेपी ने 90 विधानसभा सीट में से 48 सीट जीतीं, जो सरकार बनाने के लिए 46 के जादुई आंकड़े से कहीं अधिक हैं।

कर्नाटक सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ केस वापस लिया, बीजेपी बोली- कांग्रेस कर रही आतंकवादियों का समर्थन*
#karnataka_govt_withdraws_2022_hubballi_riot_case
कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 2022 के हुबली दंगों से जुड़े मामले को वापस ले लिया है। इस केस में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता मोहम्मद आरिफ समेत 139 लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज था। इन पर पुलिस पर हमला करने और पुलिस स्टेशन में घुसने की धमकी देने का आरोप था। इस फैसले की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार के पास कुछ मामले वापस लेने की शक्ति है, जिसके तहत ही यह फैसला लिया गया है। गृहमंत्री के नेतृत्व में कैबिनेट उपसमिति की सिफारिश पर यह निर्णय किया गया है। बीजेपी के विरोध पर उन्होंने कहा कि उन लोगों की आदत है झूठे और गलत मुद्दों पर विरोध करने की। सरकार ने यह फैसला मुस्लिम संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम की मांग पर लिया है। इस फैसले के तहत सरकार ने 43 ऐसे केस वापस ले लिए हैं। *बीजेपी ने क्या कहा?* कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।बीजेपी का कहना है कि कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद यह केस वापस लिया गया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद पुराने हुबली पुलिस स्टेशन दंगा मामले को वापस ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि मामले को वापस ले लिया जाए। दंगे और उसके बाद हुए पथराव में कई पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कांग्रेस की गंदी राजनीति है। *क्या था मामला?* पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में हुबली शहर में एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक पोस्ट किया था। जिस कारण उसे पुलिस गिरफ्तार कर हुबली पुलिस स्टेशन ले आई थी। इस पोस्ट के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें से करीब 150 लोग उस शख्स पर हमले के लिए पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हो गए थे और पुलिसकर्मियों से आरोपी को सौंप देने की मांग कर रहे थे। भीड़ ने पुलिस को चेतावनी दी थी कि यदि उसे बचाने का प्रयास किया गया तो उन्हें भी नहीं छोड़ा जाएगा। भीड़ पुलिस स्टेशन में घुसने का प्रयास कर रही थी। इसके बाद भीड़ ने डंडों और पत्थरों से पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और कई सरकारी एवं निजी वाहनों को तोड़ फोड़ की गई थी। इस मामले में ओल्ड हुबली टाउन पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंगा, हत्या का प्रयास, सरकारी अधिकारियों पर हमला, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के तहत मामला दर्ज किया था।
कर्नाटक सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ केस वापस लिया, बीजेपी बोली- कांग्रेस कर रही आतंकवादियों का समर्थन

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कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 2022 के हुबली दंगों से जुड़े मामले को वापस ले लिया है। इस केस में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता मोहम्मद आरिफ समेत 139 लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज था। इन पर पुलिस पर हमला करने और पुलिस स्टेशन में घुसने की धमकी देने का आरोप था। इस फैसले की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।

राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार के पास कुछ मामले वापस लेने की शक्ति है, जिसके तहत ही यह फैसला लिया गया है। गृहमंत्री के नेतृत्व में कैबिनेट उपसमिति की सिफारिश पर यह निर्णय किया गया है। बीजेपी के विरोध पर उन्होंने कहा कि उन लोगों की आदत है झूठे और गलत मुद्दों पर विरोध करने की। सरकार ने यह फैसला मुस्लिम संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम की मांग पर लिया है। इस फैसले के तहत सरकार ने 43 ऐसे केस वापस ले लिए हैं।

बीजेपी ने क्या कहा?

कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया है।बीजेपी का कहना है कि कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद यह केस वापस लिया गया है। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कानून और पुलिस विभाग के विरोध के बावजूद पुराने हुबली पुलिस स्टेशन दंगा मामले को वापस ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि मामले को वापस ले लिया जाए। दंगे और उसके बाद हुए पथराव में कई पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कांग्रेस की गंदी राजनीति है।

क्या था मामला?

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में हुबली शहर में एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक पोस्ट किया था। जिस कारण उसे पुलिस गिरफ्तार कर हुबली पुलिस स्टेशन ले आई थी। इस पोस्ट के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे जिसमें से करीब 150 लोग उस शख्स पर हमले के लिए पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हो गए थे और पुलिसकर्मियों से आरोपी को सौंप देने की मांग कर रहे थे।

भीड़ ने पुलिस को चेतावनी दी थी कि यदि उसे बचाने का प्रयास किया गया तो उन्हें भी नहीं छोड़ा जाएगा। भीड़ पुलिस स्टेशन में घुसने का प्रयास कर रही थी। इसके बाद भीड़ ने डंडों और पत्थरों से पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और कई सरकारी एवं निजी वाहनों को तोड़ फोड़ की गई थी। इस मामले में ओल्ड हुबली टाउन पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दंगा, हत्या का प्रयास, सरकारी अधिकारियों पर हमला, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के तहत मामला दर्ज किया था।

हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस में “तकरार”, पार्टी के ही नेता खड़े कर रहे सवाल

#reason_congress_defeat_in_haryana_ajay_yadav_express

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐसी हार का सामना करना पड़ा है कि वो इस जख्म को भूल नहीं सकेही। वो पार्टी जिसे एग्जिट पोल में हाथों हाथ लिया जाता है, जो रूझानों में बहुमत पार कर लेती है लेकिन रिजल्ट उसके विपरित आता है। इस हार को लेकर कांग्रेस में सिर फुटव्वल जारी है। खुद राहुल गांधी भी ये मान चुके हैं कि हरियाणा में नेताओं का इंटरेस्ट ऊपर रहा, जबकि पार्टी का इंटरेस्ट नीचे चला गया। राहुल गांधी के बाद कांग्रेस ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव ने भी कांग्रेस की हार को लेकर गुटबाजी और मिस मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहराया है।

लालू यादव के समधी और हुड्डा के कट्टर विरोधी कैप्टन अजय यादव ने एक एक करके हार के कारण भी गिनाए हैं। हालांकि, उन्होंने सीधे तौर पर तो हुड्डा का नाम नहीं लिया, लेकिन सीएम पोस्ट के बहाने उन्हें घेरा। अजय सिंह यादव ने कह कि जब चुनाव होते हैं तो सबसे बड़ा गोल जीत होती है। लेकिन इस दौरान सीएम की पोस्ट के लेकर लगातार खींचतान होती रही। जो कि मीडिया में लगातार सुर्खियां बनी रही और यह पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं था। वह कहते है कि पहले जीत हासिल करनी चाहिए थे और फिर सीएम के पद पर दावा ठोका जा सकता था। यह अकेले तय नहीं होता है और विधायक तय करते हैं।

ओबीसी समाज का वोट बैंक भाजपा को जाने पर अजय यादव ने कहा, कांग्रेस कार्यसमिति, पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति या हरियाणा प्रदेश कांग्रेस समिति में अहीरवाल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। पार्टी ने मुझे ओबीसी राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया है, जिसका कोई फायदा नहीं है, क्योंकि यह शक्तिहीन है। हम चुनाव हार गए, क्योंकि राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ कोई समन्वय नहीं था। उन्होंने कहा कि ओबीसी के नाम पर हमें झुनझुना पकड़ाया हुआ है। कांग्रेस में ओबीसी समाज की कोई वैल्यू नहीं है। जब कोई वैल्यू नहीं है तो वह कांग्रेस को वोट क्यों देगा। यादव ने कहा कि पंजाबी समाज, वैश्य समाज, ब्राह्मण समाज इनकी भी अनदेखी हुई। इनके नेताओं के फोटो तक पोस्टरों पर नहीं लगाए गए। पार्टी केवल चार लोगों के नाम से नहीं चलेगी।

अजय यादव ने पार्टी नेतृत्व पर भी विफलता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, जब पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया अस्पताल में भर्ती थे, तो उनका कार्यभार किसी दूसरे नेता को क्यों नहीं सौंपी गई। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान खुद चुनाव लड़ रहे थे, इसलिए वे उचित फीडबैक लेने और रणनीति को अंतिम रूप देने में उम्मीदवारों की मदद करने में विफल रहे। अजय यादव ने आगे कहा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेताओं ने उनसे राहुल गांधी के रोड शो की व्यवस्था करने को कहा था, लेकिन नेता कभी उनके क्षेत्र में नहीं आए।

बता दें कि कैप्टन अजय यादव रेवाड़ी से लगातार विधायक बनते रहे हैं और वह मंत्री भी रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में उनका बेटा चिरंजीवी राव भी हार गया। लालू यादव के दामाद चिरंजीवी बीते 2019 के चुनाव में यहां से जीते थे।

हाइड्रोलिक सिस्टम फेल होने पर आया एयर इंडिया का बयान, जानें कैसे 2 घंटे तक चक्कर लगाती रही फ्लाइट
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* एअर इंडिया एक्सप्रेस की तिरुचलापल्ली से शारजाह जाने वाली फ्लाइट की शुक्रवार को इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई। शुक्रवार की शाम 5.40 पर उड़ान भरते ही प्लेन के हाइड्रोलिक सिस्टम फेल हो गया था। इसके बाद से ही प्लेन करीब 2 घंटे आसमान में चक्कर काटता रहा। इसके बाद करीब 8.15 बजे प्लेन की सुरक्षित लैंडिंग करा ली गई।इस विमान में कुल 141 यात्री सवार थे।अब एयर इंडिया एक्सप्रेस की ओर से इस पूरी घटना पर पहला बयान सामने आ गया है। तकनीकी खराबी की इस घटना पर एयर इंडिया एक्सप्रेस ने कहा कि वह तिरुचिरापल्ली-शारजाह मार्ग पर संचालित होने वाले उड़ान से संबंधित मीडिया रिपोर्टों से अवगत हैं। कंपनी ने कहा कि विमान के ऑपरेटिंग क्रू द्वारा किसी इमरजेंसी की घोषणा नहीं की गई थी। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने ये भी बताया है कि विमान को बार-बार चक्कर क्यों लगवाया गया था। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने बताया कि तकनीकी खराबी की सूचना देने के बाद सुरक्षित लैंडिंग से पहले विमान ने एक निर्दिष्ट क्षेत्र में कई बार चक्कर लगाए। ऐसा रनवे की लंबाई को ध्यान में रखते हुए विमान के ईंधन और वजन को कम करने के लिए किया गया है। एयर इंडिया एक्सप्रेस ने आगे कहा कि इस घटना या गड़बड़ी के कारणों की पूरी जांच की जाएगी। इसके साथ ही कंपनी ने बताया है कि यात्रियों के लिए एक वैकल्पिक विमान की व्यवस्था की जा रही है। तमिलनाडु के त्रिची से शारजाह जा रही एयर इंडिया की एक उड़ान में अचानक हाइड्रॉलिक सिस्टम में गंभीर खराबी आ गई। इसके बाद 2 घंटे तक इस फ्लाइट की लैंडिंग नहीं हो पाई।इस फ्लाइट की सुरक्षित लैंडिंग त्रिची एयरपोर्ट पर रात 8:14 बजे कराई गई। फ्लाइट की नॉर्मल लैंडिंग कराई गई है। इसमें सवार सभी 140 यात्री सुरक्षित हैं। बताया गया कि पहले विमान को हल्का बनाने के लिए ईंधन डंपिंग पर विचार किया जा रहा था। लेकिन आवासीय क्षेत्रों के ऊपर चक्कर लगाने की वजह से ऐसा नहीं किया गया। डीजीसीए पूरी स्थिति पर नजर रख रहा था। लैंडिंग गियर खुल रहा था। फ्लाइट सामान्य रूप से लैंड से हो गई है। इस दौरान एयरपोर्ट को भी अलर्ट मोड पर रखा गया था।
क्या ईरान के मिलिट्री चीफ ने की ‘दगाबाजी’, इजरायल को हसन नसरल्लाह की जानकारी देने का आरोप

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इजरायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष ने मिडिल ईस्ट देशों में तनाव की स्थिति पैदा कर दी है। इजराइल पिछले कुछ महीनों में ईरान को बड़े-बड़े झटके दे चुका है। इजरायल ने ईरान की सबसे सुरक्षित जगहों में सेंध लगाई है। हमास नेता इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत ने दिखा दिया है कि इजरायल की पहुंच कितने अंदर तक है। हालांकि, ईरान भी चुप नहीं बैठा है। ईरान हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की हत्या के मामले की जांच कर रहा है। 

इस बीच इससे ईरान की सिक्योरिटी पर सवाल उठे हैं। इस वजह से ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) के कुद्स फोर्स के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल इस्माइल कानी पर शक की सुई घुमी। कहा जाने लगा है कि कहीं उन्होंने ही तो इजरायल की मदद करके गद्दारी तो नहीं की।

मिडिल ईस्ट आई (MME) ने सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा कि ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड के विशिष्ट कुद्स फोर्स के नेता इस्माइल कानी हाउस अरेस्ट रखा गया है। पहले खबर थी कि बेरूत में हुए एक धमाके के बाद से इस्माइल कानी लापता हैं, आशंका जताई जा रही थी कि कहीं इजराइली हमले में ईरान के टॉप कमांडर इस्माइल कानी भी मारे गए, लेकिन ‘मिडिल ईस्ट आई’ की एक रिपोर्ट में कई सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि इस्माइल कानी जिंदा और सुरक्षित हैं। ईरान के जांच अधिकारी नसरल्लाह की मौत के मामले में कानी से पूछताछ कर रहे हैं।

कानी को हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत के बाद से पब्लिक में नहीं देखा गया है। 27 सितंबर को इजरायल ने बेरूत में एक एयर स्ट्राइक में नसरल्लाह को ढेर कर दिया था। यह हिजबुल्लाह के साथ ईरान को एक बड़ा झटका था। तब से IRGC ने इस बात की जांच शुरू कर दी है कि इजरायल को हसन नसरल्लाह की लोकेशन का पता कैसे चला। क्योंकि हसन नसरल्लाह की लोकेशन बेहद गुप्त रही है। वह किसी भी जगह पर ज्यादा दिन नहीं रुकता था। इसके बाद 4 अक्टूबर को हिजबुल्लाह के उत्तराधिकारी हाशेम सैफुद्दीन को भी इजरायल ने एक बंकर में मिसाइल से मार दिया। इन घटनाओं ने ईरान और हिजबुल्लाह के सुरक्षा तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं कि इजरायल को इन गुप्त स्थानों की जानकारी कैसे मिली।

इस्माइल कानी ईरान के टॉप कमांडर में से एक हैं। जनवरी 2020 में अमेरिका के हमले में कासिम सुलेमानी की मौत के बाद कानी को कुद्स फोर्स का चीफ बनाया गया था। इससे पहले वह ईरान की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट का हिस्सा थे। सुलेमानी की मौत के बाद उन्हें ईरान की सैन्य रणनीति को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा गया था लेकिन अब सामने आ रहीं रिपोर्ट्स से शक जताया जा रहा है कि कहीं इस्माइल कानी मोसाद के एजेंट तो नहीं हैं।