दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने से भगवान शिव का मिलता है आशीर्वाद,धार्मिक और पौराणिक महत्त्व।
नयी दिल्ली : धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर ही नीलकंठ हैं. इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि और स्वरूप दोनों माना गया है. नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही रुप है. भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं. उड़ते हुए नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना सौभाग्य का सूचक माना जाता है।
विजय दशमी के इस मंगल पर्व पर आइए जानते हैं नीलकंठ पक्षी दर्शन का महत्व, कथा और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां. नीलकंठ दर्शन से बन जाते हैं सारे काम, दशहरे के दिन क्या है इस पक्षी का महत्व? जानिए यहां
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो... इन पंक्तियों के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ को भगवान शिव के प्रतीक के रूप में माना जाता है. ऐसा कहा गया है कि विजयादशमी यानी दशहरा के दिन अगर आपको यह नीलकंठ पक्षी नजर आ जाए तो आपके लिए यह काफी शुभ होता है. दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
नीलकंठ पक्षी को यह नाम उसके गले के नीले रंग की वजह से मिला था. भगवान शिव को भी नीलकंठ कहा जाता है क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया था, तब उसमें से निकले विष को पीकर भगवान शिव ने संसार का कल्याण किया था. लेकिन विष भगवान के गले में ही रह गया था, जिससे उनका गला नीला है और नीले गले की वजह से वे नीलकंठ कहलाए. आइए जानते हैं आखिर दशहरा पर्व पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन क्यों आपके भाग्य जगा सकते हैं?
क्यों शुभ माना गया है नीलकंठ पक्षी का दर्शन?
दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन करना भी बहुत शुभ माना गया. क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इस पक्षी को माता लक्ष्मी जी का ही एक स्वरूप माना गया है. लेकिन इस पक्षी का दर्शन इतनी आसानी से नहीं होता है, क्योंकि अन्य दिनों की तरह यह दशहरे के दिन भी बड़ी मुश्किल से दिखता है. एक जगह तो ये भी कहा गया है “नीलकंठ के दर्शन पाए, घर बैठे गंगा नहाए.” यदि आपको दशहरा पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाते हैं तो आपका भाग्य चमक जाता है और आपको हर कार्य में सफलता मिलती है.
नीलकंठ को सुख समृद्धि, शांति, सौम्यता और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है. दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं. सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है
नीलकंठ पक्षी के दर्शन पर इस मंत्र का जाप किया जाता है: कृत्वा नीराजनं राजा बालवृद्धयं यता बलम्, शोभनम खंजनं पश्येज्जलगोगोष्ठसंनिघौ। नीलग्रीव शुभग्रीव सर्वकामफलप्रद, पृथ्वियामवतीर्णोसि खञ्जरीट नमोस्तुते
नीलकंठ दर्शन का महत्व
खगोपनिषद् के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार नीलकंठ साक्षात् शिव का स्वरूप है तथा वह शुभ-अशुभ का प्रतीक भी है. नीलकंठ महादेव का मंगलकारी एवं शांत मूर्त के अंतर्गत एक सौम्य स्वरूप माना जाता है, इस सौम्य स्वरूप के विषय में श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में एक कथा आई है, जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र से हलाहल नामक विष निकला, उस समय सभी देवों की प्रार्थना तथा पार्वती जी के अनुमोदन से शिवजी ने हलाहल का पान कर लिया और हलाहल को उन्होंने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. नीलकंठ का जूठा फल खाने से मनवांछित लाभ, सौभाग्य वृद्धि एवं सुखमय वैवाहिक जीवन का योग बनता है.
क्या है कथा?
विजयादशमी के दिन ही भगवान राम ने रावण का संहार कर असत्य पर सत्य की विजय पताका लहरायी थी. अधर्म का नाश करने के बाद प्रभु श्री राम ने माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाया था. ऐसी मान्यता है कि अहंकारी रावण के साथ अंतिम युद्ध से पहले भगवान श्री राम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे. तभी से ये माना जाने लगा कि दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन करके अगर किसी काम के लिए निकला जाए तो निश्चित ही सिद्ध और सफल होता है.
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार रावण वध के बाद भगवान राम ने ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए लक्ष्मण के साथ महादेव भोलेनाथ की पूजा की थी तब शिव जी ने राम भगवान को नीलकंठ रूप में ही दर्शन दिए थे।
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि भगवान राम की बारात निकलते समय काफी सुंदर माहौल था, चारो तरफ शकुन होने लगे, जिसमें नीलकंठ पक्षी बायीं ओर दाना चुग रहा है. शकुन का अर्थ है अच्छा समय जो शुभ कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है. इसलिए नीलकंठ पक्षी का दिखना हमारे कार्यों के पूर्ण होने का संकेत है।
कब है दशहरा?
आश्विन मास की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है. दशहरे का शुभ मुहूर्त दशमी तिथि यानी 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होगा और 13 अक्टूबर 2024, सुबह 09 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. दशहरा पर्व शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इसके बाद प्रदोष काल में रावण दहन किया जाएगा. रावण दहन का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 54 मिनट से शाम 07 बजकर 26 मिनट तक है. जबकि पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 02 मिनट से दोपहर 2 बजकर 48 मिनट तक होगा।
Oct 12 2024, 13:06