ब्रिटेन ने मॉरीशस को वापस दिया चागोस द्वीप समूह, इस फैसले में भारत का है अहम भूमिका
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ब्रिटेन ने चागोस द्वीप पर मॉरीशस को संप्रभुता सौंपने का फैसला लिया है। इस फैसले में भारत ने अहम भूमिका निभाई है। यह द्वीपों का एक समूह है जो 19वीं शताब्दी की शुरुआत से ब्रिटिश नियंत्रण में था। अब भारत की पहल से ये द्वीप समूह ब्रिटेन से मॉरीशस को मिल रहा है। भारत ने इन द्वीपों का अधिकार मॉरीशस को वापस दिलाने में मध्यस्थ के तौर पर एक असरदार भूमिका निभाई।
भारत ने हमेशा से ही औपनिवेशीकरण के अंत का समर्थन किया है। मॉरीशस के साथ अपने मजबूत रिश्तों के चलते चागोस द्वीप समूह पर उसके दावे का भी सपोर्ट करता रहा। भारत का मानना है कि यह समझौता सभी पक्षों के लिए फायदेमंद है। भारत के इस कूटनीतिक पहल का सबसे बड़ा असर वैश्विक उपनिवेशीकरण खत्म होने की दिशा में पड़ेगा।इससे हिंद महासागर की सुरक्षा भी बेहतर हो सकेगी।
भारत को आजादी मिलने के करीब 21 साल बाद मॉरीशस को ब्रिटेन से आजादी मिली थी। हालांकि ब्रिटेन ने चागोस द्वीप समूह को नहीं छोड़ा। अगले कुछ सालों में अंग्रेजों ने वहां के स्थानीय लोगों को भी भगा दिया। बाद में अमेरिका से डील कर ली। मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में गया और मॉरीशस के पक्ष में फैसला आया। अब जाकर ब्रिटेन इलाका छोड़ने को राजी हुआ है।
मॉरिशस को चागोस द्वीप समूह की संप्रभुता का ऐतिहासिक हस्तांतरण दिलाने में भारत ने चुपचाप बड़ी भूमिका निभाई। भारत ने यूके से बातचीत के दौरान उपनिवेशवाद के 'अंतिम अवशेषों' को खत्म करने की जरूरत को पूरी दृढ़ता से रखा था। ब्रिटेन और मॉरीशस की तरफ से जो संयुक्त बयान जारी हुआ है, उसमें भी नई दिल्ली की भूमिका को स्वीकार किया गया है।बयान में जिक्र किया गया है, आज के राजनीतिक समझौते पर पहुंचने में, हमें अपने करीबी सहयोगियों अमेरिका और भारत का पूरा समर्थन और सहायता प्राप्त हुआ। संयुक्त बयान में कहा गया है, अंतिम परिणाम सभी पक्षों की जीत है और यह हिंद महासागर क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा को मजबूत करेगा।
इस ऐतिहासिक समझौते में डिएगो गार्सिया में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे को लेकर भी 99 साल की लीज का प्रावधान है। इस समझौते से डिएगो गार्सिया में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 99 साल की लीज के प्रावधान से यह सुनिश्चित होता है कि अमेरिका का यह अड्डा यहां बना रहेगा।
यह समझौता भारत और अमेरिका के समर्थन से दो साल की बातचीत के बाद हुआ है। चागोस द्वीपसमूह के जरिए अवैध एंट्री की बढ़ती आशंकाओं के बीच यह कदम उठाया गया है। डिएगो गार्सिया हिंद महासागर में सबसे महत्वपूर्ण अमेरिकी सैन्य अड्डा है, जहां बड़े युद्धपोत और लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं।
चागोस विवाद क्या है और किस बारे में है?
60 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ 58 द्वीपों का एक द्वीपसमूह है, जिसे चागोस द्वीपसमूह के नाम से जानते हैं। ये मॉरीशस से लगभग 2,200 किलोमीटर उत्तर-पूर्व और भारत के तिरुवनंतपुरम से 1,700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। ये द्वीप 18वीं शताब्दी से मॉरीशस का हिस्सा रहे हैं, जब यह फ्रांसीसी उपनिवेश था और तब इसे आइल डी फ्रांस के नाम से जाना जाता था। बाद में ब्रिटेन का इस पर कंट्रोल हो गया। 1965 में ब्रिटेन ने मॉरीशस को तो आजादी दे दी लेकिन ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र बनाने के लिए चागोस द्वीपसमूह को अपने पास ही रखा।
दरअसल ब्रिटेन को ये द्वीप समूह सामरिक लिहाज से काफी अहम लगा। वह चागोस के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया पर एक सैन्य अड्डा स्थापित करना चाहता था। इसके लिए उसने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक गुप्त सौदा किया हुआ था। लिहाजा 1960 के दशक में यहां रह रहे स्वदेशी चागोसी लोगों को द्वीपों से जबरन हटा दिया गया, तब से ये विवाद और अंतरराष्ट्रीय कानूनी चुनौतियों का विषय रहा है। फिर मॉरीशस इस पूरे मामले को इंटरनेशनल कोर्ट तक लेकर गया।
Oct 05 2024, 11:11