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केरल के लाल की अनोखी कहानी: थॉमस चेरियन का शव 56 साल तक बर्फ में रहा दबा,अब मिले अवशेष

केरल के पथानामथिट्टा निवासी 22 वर्षीय थॉमस चेरियन की साल 1968 में प्लेन दुर्घटना में मौत हो गई थी. वह भारतीय सेना के जवान थे.

उनका शव रोहतांग की बर्फ में सालों तक दबा रहा. अब जाकर उनके अवशेष मिले हैं. 56 साल बाद जाकर अब थॉमस चेरियन के शव को उनके अपने गांव की मिट्टी नसीब होगी.

7 फरवरी 1968 को चंडीगढ़ से लेह के लिए इंडियन एयरफोर्स के एक विमान ने उड़ान भरी थी. इस विमान में 102 लोग सवार थे. लेकिन हिमाचल के रोहतांग दर्रे के पास विमान का संपर्क टूट गया था और फिर आगे बातल के ऊपर चंद्रभागा रैंज में विमान क्रैश हो गया था. इसमें सभी की मौत हो गई थी. मरने वालों में एक थे केरल के रहने वाले थॉमस चेरियन. वो भारतीय सेना के जवान थे. क्रैश के बाद उनका शव कहां गया, किसी को पता नहीं लग सका. अब जाकर उनके अवशेष मिले हैं.

आखिरकार मौत के 56 साल बाद अब इस जवान को अपने गांव की मिट्टी नसीब होगी. थॉमस चेरियन के घर वालों ने कहा- हम खुशी मनाएं या गम समझ नहीं आ रहा. जब थॉमस चेरियन की मौत हुई तो उस समय वो महज 22 साल के थे.

जानकारी के मुताबिक, पथानामथिट्टा निवासी ओडालिल परिवार के ओम थॉमस के पांच बच्चों में से चेरियन दूसरे नंबर पर थे. वायु सेना से उनके लापता होने की सूचना मिलने के बाद परिवार ने दुख में 56 साल तक इंतजार किया. 30 सितंबर को परिवार को बताया गया कि उनके अवशेष बरामद कर लिए गए हैं.

उनके छोटे भाई थॉमस वर्गीस और भतीजे शैजू के मैथ्यू सहित परिवार के जीवित सदस्य अभी भी परिवार के घर में रहते हैं. वर्गीस, जो अपने भाई के लापता होने के समय केवल आठ वर्ष के थे, को वह दिन अच्छी तरह याद है, जब 7 फरवरी, 1968 को विमान के लापता होने की सूचना देने वाला टेलीग्राम आया था.

2003 में हुई हादसे की पुष्टि

2003 में, अधिकारियों ने पुष्टि की कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और कुछ शव बरामद किए गए थे. जिसके बाद अरनमुला से स्थानीय पुलिस ने थॉमस चेरियन के बारे में विवरण सत्यापित करने के लिए उनके घर का दौरा किया, जहां उनका परिवार रहता है. भाई थॉमस वर्गीस को समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसे समय क्या करें. हालांकि, उन्होंने दुख और राहत दोनों व्यक्त करते हुए कहा कि, यह उनके लिए दुखद भरा क्षण है लेकिन कब्र में दफनाने के लिए अपने भाई के अवशेषों को प्राप्त करने से कुछ शांति मिली है.

तीन शवों की पहचान

शैजू मैथ्यू ने बताया- परिवार 56 वर्षों के बाद भी उनकी निरंतर खोज के लिए सरकार और सेना के प्रति आभार व्यक्त करता है. केरल के कई अन्य सैनिक भी AN12 विमान में सवार थे, जिनमें कोट्टायम के केपी पनिकर, केके राजपन और आर्मी सर्विस कोर के एस भास्करन पिल्लई शामिल थे. इन सैनिकों के शव अभी तक नहीं मिले हैं. सितंबर में रोहतांग दर्रे में चार और शव मिले थे, और इनमें से तीन की पहचान हो गई है, जिसमें थॉमस चेरियन का शव भी शामिल है. स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि चौथा शव रन्नी के एक सैनिक पीएस जोसेफ का हो सकता है, जो विमान में भी था.

शास्त्री जी की ईमानदारी: जब प्रधानमंत्री ने अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया,वे फैसले जो बन गए मिसाल


आज देश के दो बड़े महापुरुषों का जन्मदिन है। गांधी जी के अलावा आज के ही दिन पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को यूपी के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी कद में छोटे थे लेकिन अपने बड़े फैसलों और उच्च विचारों के लिए याद किए जाते हैं। उन्होंने जीवन भर आम आदमी के हितों की वकालत की। शास्त्री ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के तीसरे प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

जय जवान, जय किसान का दिया नारा

शास्त्री को 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और उनके प्रतिष्ठित नारे जय जवान, जय किसान (सैनिक की जय, किसान की जय) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। वह भष्ट्राचार के खिलाफ लिए जाने वाले फैसलों और अपने विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति जगजाहिर है।

अपने बेटे का प्रमोशन रोका

लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने अपने ही बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया था। दरअसल, उन्हें जानकारी मिली की उनके बेटे का नौकरी में अनुचित तरीके से प्रमोशन दिया गया है। इससे वह नाराज हो गए और तुरंत पदोन्नति वापस लेने के लिए आदेश जारी कर दिया। बताया जाता है कि वह बेटे का प्रमोशन करने वाले अधिकारी से काफी नाराज हुए थे। शास्त्री जी का यह फैसला और भी नेताओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

ट्रैफिक में फंसे लेकिन आम लोगों को परेशानी नहीं होने दी

एक बार की बात है जब वह देश के गृह मंत्री थे तो एक सरकारी काम से कलकत्ता (अब कोलकाता) गए तो वापस आने के लिए देर गए हो गई। फ्लाइट छूटने का डर था। वह रोड के रास्ते एयरपोर्ट जा रहे थे तो ट्रैफिक जाम में फंस गए। पुलिस कमिश्नर चाह रहे थे कि सायरन वाला एस्कॉट काफिले के आगे कर दिया जाए ताकि जाम से वे निकल जाए। लेकिन शास्त्री ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि ऐसा करने से आम लोगों को परेशानी होगी।

एक टाइम भोजन करने की अपील की

साल 1965 में जब पाकिस्तान से जंग छिड़ गई तो देश में खाद्य संकट पैदा हो गया। इस दौरान उन्होंने पत्नी से कहा कि वह सिर्फ एक टाइम भोजन बनाएं। उन्होंने परिवार के सदस्यों से सिर्फ एक टाइम खाना खाने को कहा और बच्चों को दूध और फल देने को कहा।

आइए जानते है लाल बहादुर शास्त्री की बचपन की कहानी? और कब बने प्रधानमंत्री

एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके साहस और आत्मविश्वास के चलते विश्व को उनका लोहा मानना पड़ा था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी से भरपूर रहा, उनके विचारों ने समय-समय पर भारत के युवाओं का मार्गदर्शन करने का काम किया है। लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। वे एक महान नेता थे, जिन्होंने अपने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। लाल बहादुर शास्त्री जब महज ग्यारह साल के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर काम करने का मन बना लिया था। गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आग्रह किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री सिर्फ 16 साल के थे।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता का बचपन में ही निधन हो गया, और उनकी मां ने कठिन परिस्थितियों में उनका पालन-पोषण किया। पढ़ाई के लिए शास्त्री जी को गंगा नदी तैरकर पार करनी पड़ती थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1926 में काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद, वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हुए और कई आंदोलनों में भाग लिया। उनकी सादगी, अनुशासन और देशभक्ति ने उन्हें भारत का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया। उनका जीवन संघर्ष और साहस की मिसाल है।

लाल बहादुर शास्त्री की बचपन की कहानी

एक छोटा लड़का जिसके पास नदी पार करने के लिए नाव वाले को देने के लिए पैसे नहीं है। परंतु उसकी पढ़ाई को लेकर लगन इतनी है कि वह सर पर किताब किताबें बांध कर वह गंगा नदी को पार कर जाता है। उसको गंगा नदी को दिन में दो बार तैर कर पार करना होता था। यह साहस की दास्तान है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम रामदुलारी था। लाल बहादुर शास्त्री के पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था उसके बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उनकी मां उठाती थी।

लाल बहादुर शास्त्री बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे। वे अपने स्कूल में स्कॉलर थे जिस वजह से उन्हें स्कॉलरशिप के रूप में तीन रुपए भी मिलते थे। शास्त्री जे के बचपन की एक और कहानी कभी प्रचलित है कि वे अपने दोस्तो के साथ कई अपने स्कूल आते जाते थे और इस रास्ते के बीच में एक बाग पड़ता था। एक दिन बाग की रखवाली करने वाला वहां नहीं था तो उन्हें और उनके साथियों को लगा कि यह अच्छा मौका है और उन्होंने बाग में से उन्होंने कई फल- फूल तोड़े और इतने में माली अ गया।

उसके आते ही सभी वहां से भाग गए पर वहां पर सिर्फ शास्त्री जी खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्होंने उसी बाग से तोड़ा था। माली ने इस हालत में देख कर उन्हें एक तेज तमाचा मार दिया । तमाचा लगते ही वे तेजी से रोने लगे और उन्होंने मासूम लहजे में कहा कि तुम नहीं जानते, मेरा पिता जी नहीं हैं फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।

शास्त्री जी को लगा कि इस बात को कहने से माली की ओर से उन्हें सहानुभूति मिलेगी परंतु हुआ इसका उलटा, माली ने उनके एक और तेज तमाचा मारा और कहा कि जब तुम्हारे पिता जी नहीं हैं, तब तो तुम्हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। तुम्‍हें तो नेक और ईमानदार बनना चाहिए। यह बात उनके दिल में घर कर गई।

ऐसी रही लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की यात्रा

शास्त्री जी महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावित थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में 1920 में शामिल हुए। 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया जिसके लिए उन्हें दो साल से ज्यादा की जेल भी हुई।

भारत की आजादी के बाद शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बनें। इसके बाद वे 1947 में परिवहान मंत्री भी रहें। इस समय उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला भी लियाा। उन्होंने पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की थी। इसके बाद रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने 1955 में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली मशीन स्थापित की थी।

लाल बहादुर शास्त्री 9 जून, 1664 को भारत के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल में श्वेत क्रांति को प्रोत्साहन दिया। इसके साथ ही उन्होंने खेती को और बेहतर करने के लिए हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया।

लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री कब बनें?

1964 से 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। इससे पहले (1961 से 1963 तक) उन्होंने भारत के छठे गृह मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था।

जानें लाल बहादुर शास्त्री की उपलब्धियां के बारे में

1965 में भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया था।

1920 में ‘भारत सेवक संघ’ से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे।

1947 में वे पुलिस एवं परिवहन मंत्री भी बने।

1951 में शास्त्री को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया।

1952 में शास्त्री जी यूपी से राज्यसभा के लिए चुने गए

1955 में रेल मंत्री रहते हुए चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में पहली मशीन लगवाई।

1957 में शास्त्री जी फिर से परिवहन और संचार मंत्री और फिर वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने।

1961 में उन्हें गृह मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

1964 को लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधान मंत्री बने थे।

1966 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु

11 जनवरी, 1966 को लाल बहादुर शास्त्री का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। कहा जाता है की 1966 को ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में हुई, जहाँ वे पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने गए थे। उन्हें 1966 में मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया। यह पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।

गांधी जयंती विशेष- भारतीय नोट पर मुस्कुराती हुई छपी गांधी जी की तस्वीर का राज: जानें इसके पीछे की कहानी और रोचक तथ्य

भारतीय नोट या कहें इंडियन करेंसी पर महात्मा गांधी की तस्वीर तो आपने भी देखी होगी, लेकिन कभी सोचा है कि नोट पर मुस्कुराते हुए बापू की ये तस्वीर किसने क्लिक की थी? इसके साथ ही गूगल पर तो महात्मा गांधी की बहुत सारी तस्वीर हैं तो इसी तस्वीर को क्यों चुना गया। आज हम आपको गांधी जयंती के मौके भारतीय करेंसी पर छपी महात्मा गांधी की तस्वीर की कहानी बताने वाले हैं।

बापू की मुस्कुराती हुई तस्वीर का राज

नोट पर छपे महात्मा गांधी की तस्वीर को 1946 में ली गई एक फोटो से काटा गया है, जिसमें वह ब्रिटिश राजनीतिज्ञ लॉर्ड फ्रेडरिक विलियम पेथिक-लॉरेंस के साथ खड़े हैं। इस तस्वीर को इसलिए चुना गया क्योंकि इसमें गांधीजी की मुस्कुराती हुई सबसे उपयुक्त अभिव्यक्ति थी। हालांकि अभी तक उस फोटोग्राफर की पहचान नहीं हो पाई। जिसने महात्मा गांधी की इस तस्वीर को क्लिक किया था।

पहली बार कब नोट पर छपी थी बापू की तस्वीर

महात्मा गांधी की तस्वीर पहली बार 1969 में उनकी 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में भारतीय मुद्रा नोटों पर दिखाई दी थी। इसके बाद, 1996 में भारतीय रिजर्व बैंक ने महात्मा गांधी की तस्वीर वाले नोटों की एक नई श्रृंखला जारी की।

दरअसल आरबीआई ने 1990 के दशक तक देखा कि नकली नोट बनाने की तकनीक बहुत उन्नत हो गई है। डिजिटल प्रिंटिंग, स्कैनिंग, फोटोग्राफी और ज़ेरोग्राफी जैसी तकनीकों से नकली नोट बनाना आसान हो गया था।

RBI का मानना था कि मानव चेहरे की तुलना में निर्जीव वस्तुओं की कॉपी करना आसान है। इसलिए RBI ने नए नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर लगाने का फैसला किया। गांधी जी को उनकी राष्ट्रीय अपील के कारण चुना गया था। नए नोटों में सुरक्षा के कई नए फीचर भी जोड़े गए। इनमें विंडो सिक्योरिटी थ्रेड, गुप्त छवि और दृष्टिबाधितों के लिए इंटैग्लियो सुविधाएं शामिल थीं। उसके बाद RBI ने 2016 में एक बार फिर नए नोट जारी किए। इन नोटों को 'महात्मा गांधी नई सीरीज' कहा गया। इन नोटों में भी गांधीजी की तस्वीर है।

महात्मा गांधी की ये तस्वीर दे रही खास संदेश

यह तस्वीर महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को भी दर्शाती है। वो हमेशा शांति और अहिंसा का संदेश देते थे। उनकी मुस्कान उनके दयालु और करुणामय स्वभाव को दिखाती है। आज गांधीजी की तस्वीर सिर्फ भारतीय नोटों पर ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में शांति और अहिंसा के प्रतीक के रूप में जानी जाती है।

महात्मा गांधी की 155वीं जयंती: जानें उनके 7 महत्वपूर्ण आंदोलनों के बारे में, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

समूचे भारत में आज यानी 2 अक्टूबर 2024 को महात्मा गांधी की 155वीं जयंती मनाई जा रही है। हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ लेकिन ये आजादी का फल यूं ही नहीं मिल गया था। देश को यह आजादी दशकों की कड़ी तपस्या के बाद मिली थी। आज ही के दिन हमारे देश ने अपनी परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ा था। यूं तो इस आजादी में बहुत से लोगों का अहम किरदार रहा लेकिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कुछ अलग ही रहा। हमारे देश के राष्ट्रपिता की अहिंसावादी सोच का पूरे विश्व में बोलबाला है और समूचे जगत में इस पथ को नमन किया जाता है। उन्होंने हमारे देश को आजाद कराने के लिए कई आंदोलन किए। आज हम महात्मा गांधी की 155वीं जयंती पर आपको उनके सात ऐसे आंदलनों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने इस देश से अंग्रेजों के पैर उखाड़ दिए थे, जिससे वे हमारे देश को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे।

महात्मा गांधी के आंदोलन

नीचे दी गई लिस्ट के माध्यम से आप महात्मा गांधी के उन सात आंदोलनों से अवगत हो सकेंगे जिसकी वजह से अंग्रेजों को हमारे देश से भागने पर मजबूर होना पड़ा था।

-चंपारण सत्याग्रह: यह आंदोलन 1917 में बिहार के चंपारण जिले में शुरू हुआ था, जहां किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर किया जा रहा था। गांधी जी ने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और सरकार को इस पद्धति को समाप्त करने के लिए मजबूर किया ।

खेड़ा आंदोलन: 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में शुरू हुआ, यह आंदोलन किसानों के कर माफी की मांग के लिए था। गांधी जी ने किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और सरकार को कर माफी के लिए मजबूर किया।

रॉलेट ऐक्ट का विरोध: 1919 में गांधी जी ने रॉलेट ऐक्ट के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसने ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के खिलाफ सPECIAL पावर दिए थे। गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन भारत भर में फैल गया और सरकार को इस ऐक्ट को वापस लेने के लिए मजबूर किया।

असहयोग आंदोलन: 1920 में शुरू हुआ, यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने से इनकार करने के लिए था। गांधी जी ने लोगों से सरकारी नौकरियों, स्कूलों और अदालतों का बहिष्कार करने का आह्वान किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन: 1930 में शुरू हुआ, यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा का आह्वान था। गांधी जी ने लोगों से सरकारी कानूनों का उल्लंघन करने और सत्याग्रह करने का आह्वान किया।

भारत छोड़ो आंदोलन: 1942 में शुरू हुआ, यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए था। गांधी जी ने लोगों से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का आह्वान किया।

सत्याग्रह आंदोलन: यह आंदोलन गांधी जी के सत्याग्रह की अवधारणा पर आधारित था, जिसका उद्देश्य अहिंसा और सत्य के माध्यम से सरकार को बदलना था।

उक्त में से क्विट इंडिया मूवमेंट

का प्रभाव जनता पर इस कदर पड़ा था कि पूरा देश ही 'भारत छोड़ो आंदोलन' की मुहिम में शामिल था। आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस आंदोलन के दौरान ही महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' का नारा दिया था। इन नारे से जनता पर ऐसा प्रभाव ऐसा पड़ा कि अंग्रेजों के पैर उखड़ गए और उन्हें हमारे देश को छोड़कर भागना पड़ा।

सावधान,वॉट्सऐप पर इंटरनेशनल जॉब ऑफर हो सकते हैं फर्जी,आप हो सकते हैं साइबर ठगी का शिकार

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वॉट्सऐप पर इंटरनेशनल जॉब ऑफर

आपको वॉट्सऐप पर अक्सर इंटरनेशनल कंपनियों से जॉब ऑफर मिलते होंगे. मैसेज करने वाले दावा करते हैं कि वे आपको विदेश में काम करने का मौका देंगे. लेकिन इन पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस तरह के ऑफर फर्जी होते हैं. इंटरनेशनल जॉब का लालच देकर साइबर क्रिमिनल्स आपको अपने शिकंजे में फंसाने की कोशिश करते हैं.

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कोलकाता मर्डर केस: सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश, पीड़िता की पहचान की सुरक्षा,सोशल मीडिया पर नाम और फोटो शेयर करने की इजाजत नहीं


कोलकाता आरजी कर अस्पताल रेप एंड मर्डर केस में पीड़िता की पहचान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपने आदेश को दोहराया है. कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इस मामले में सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म को पीड़िता का नाम और फोटो शेयर करने की इजाजत नहीं है. विकिपीडिया ही नहीं सभी प्लेटफॉर्म पर पीड़िता की तस्वीरों और वीडियो के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है. ये टिप्पणी कोर्ट ने पीड़िता के माता-पिता की उस चिंता पर जाहिर की, जिसमें उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया में बार-बार उसके नाम और तस्वीरों का खुलासा करने वाली क्लिप से परेशान हैं. इन्हें बनाने के लिए AI का इस्तेमाल किया जा रहा है. मामले में अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को होगी.

सुनवाई शुरू होते ही वकील वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता के माता-पिता सोशल मीडिया में बार-बार उसके नाम और तस्वीरों का खुलासा करने वाली क्लिप से परेशान हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले ही आदेश पारित किया जा चुका है कि आदेश को लागू करना एजेंसियों का काम है. कोर्ट का आदेश सभी प्लेटफॉर्म पर लागू होता है. SG तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि ऐसे प्रकाशनों को हटाने के लिए सोशल मीडिया की निगरानी के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा.

सीबीआई की जांच में मिले हैं ठोस सुराग

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की जांच में ठोस सुराग मिले हैं. रेप, हत्या और वित्तीय अनियमितताओं दोनों पहलुओं पर बयान दिए हैं. कोर्ट ने 17 सितंबर को कहा था कि वह रेप एंड मर्डर केस में सीबीआई द्वारा दाखिल रिपोर्ट में दिए गए निष्कर्षों से परेशान है. मगर, विवरण देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी खुलासे से जांच खतरे में पड़ सकती है

22 अगस्त को बंगाल पुलिस को लगाई थी फटकार

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को रेप और हत्या की शिकार महिला डॉक्टर की अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज करने में देरी पर राज्य पुलिस को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने इसे बेहद परेशान करने वाला बताया था. कोर्ट ने डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सुरक्षा के लिए प्रोटोकॉल तैयार करने को लेकर 10 सदस्यीय एनटीएफ का गठन भी किया था.

टेलीकॉम सेवाएं बेहतर होंगी! 1 अक्टूबर से लागू होंगे ट्राई के नए नियम, कॉल ड्राप और अनचाही कॉल्स पर रोक

मंगलवार 1 अक्टूबर से टेलीकॉम सेवाएं आपके लिए बेहतर हो सकती है. कॉल ड्राप और अनचाही कॉल्स से जुड़े ट्राई के 2 नए नियम 1 तारीख से लागू होने जा रहे हैं. इससे टेलीकॉम सेवाएं अब पहले से बेहतर होंगी. कॉल ड्राप और अनचाही कॉल्स पर रोक लगेगी. ऐसे में उपभोक्ताओं के लिए ये किसी खुशखबरी से कम नहीं है. अक्सर कॉल ड्राप अनचाही कॉल्स की वजह से लोगों को परेशानी होती है, लेकिन अब इस नियम के लागू होने के बाद इन पर रोक लग सकेगी.

जानकारी के मुताबिक 10 साल बाद क्वालिटी ऑफ सर्विस नियमों में बदलाव होने जा रहा है. टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) की वजह से अब टेलीकॉम सेवाएं बेहतर होंगी. नए नियमों के तहत अब टेलीकॉम सेवाएं खराब होने पर कपंनियों पर 5 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

अनचाही कॉल्स से जुड़े फिल्टर एक्टिवेट करना जरूरी

वहीं सेवाओं की गुणवत्ता ठीक नहीं होने पर 1 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके अलावा कंपनियों को अनचाही कॉल्स से जुड़े फिल्टर भी एक्टिवेट करने होंगे. जो भी कंपनी अनचाही कॉल करती है उसे 2 साल तक के लिए ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. नए नियमों के तहत मैसेज भेजने के लिए ‘Whitelist’ में शामिल होना जरूरी होगा. Whitelist’ में शामिल नहीं रहने वाली कंपनियों को ब्लॉक करना होगा. बताया जा रहा कि अभी तक 30,000 कंपनियां ‘Whitelist’ हुई हैं. इस बदलाव से लोगों को कई मामलों में काफी सहूलियत मिलेगी

TRAI ने की नए नियमों की घोषणा

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने मोबाइल यूजर्स की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नए नियमों की घोषणा की है. यूजर्स की सिक्योरिटी के मुद्दे को लेकर TRAI काफी सतर्क है. TRAI ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने का फैसला लिया है जो URL को ऐड करके यूजर्स को मैसेज में भेजते हैं. बताया जा रहा है कि TRAI ने जियो, वोडा, एयरटेल और BSNL को इससे संबंधित आदेश भी दे दिया है.

नेटवर्क की मिलेगी जानकारी

अब तक अपने इलाके में नेटवर्क का पता लगाने को लेकर यूजर्स को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. लेकिन अब इससे छुटकारा मिल जाएगा. अब सभी टेलीकॉम कंपनियों को अपनी वेबसाइट पर इस बात की जानकारी देनी होगी कि वो किस इलाके में कौन-सी सर्विस दे रही है.

पंजाब के गुरदासपुर जिले में भीषण सड़क हादसा, प्राइवेट बस का ब्रेक फेल, 4 की मौत, 15 से अधिक घायल

पंजाब के गुरदासपुर जिले में सोमवार को एक दर्दनाक सड़क हादसा हो गया. शाहबाद गांव के पास से गुजर रही एक प्राइवेट बस का ब्रेक फेल हो गया. इस वजह से बस सड़क किनारे बने स्टॉपेज में जा घुसी. हादसे के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई. आनन-फानन में पहुंचे स्थानीय लोगों ने बस में फंसे यात्रियों को बाहर निकाला और पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने सभी को अस्पताल में भर्ती कराया. यहां डॉक्टरों ने चार यात्रियों को मृत घोषित कर दिया, जबकि 15 से अधिक घायल का इलाज चल रहा है.

प्राइवेट बस बटाला से मोहाली जा रही थी. गांव शाहबाद के बस स्टैंड के पास अचानक बस के ब्रेक फेल हो गया. इससे बस स्टॉपेज में घुस गई और स्टॉपेज का लेंटर बस पर गिर गया. बस राजधानी कंपनी की थी. इस हादसे में बाइक और स्कूटर भी बस के नीचे फंस गए. घटना के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने घायलों को बस से बाहर निकालना शुरू कर दिया और पुलिस को सूचना दी.

स्टॉपेज का लेंटर बस पर गिर गया

सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने घायलों को एंबुलेंस से बटाला सिविल अस्पताल में भर्ती कराया. यहां डॉक्टरों ने चार यात्रियों को मृत घोषित कर दिया, जबकि 15 से अधिक का अस्पताल में इलाज चल रहा है. इस दर्दनाक बस हादसे का CCTV फुटेज भी सामने आया है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि कैसे बस तेज रफ्तार से आती है और अनियंत्रित होकर बस स्टैंड से टकरा जाती है.

हादसे में बस ड्राइवर की भी मौत

इस हादसे में मरने वाले सभी लोग आसपास के गांव के रहने वाले बताए जा रहे हैं. जानकारी के मुताबिक, बस में 40 से ज्यादा लोग सवार थे. हादसे में चार लोगों की मौत हो गई. शवों को बटाला पोस्टमार्टम हाउस में रखा गया है. मृतकों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है. मृतकों में बस ड्राइवर भी शामिल है. गुरदासपुर पुलिस हादसे की जांच-पड़ताल में जुटी है

CM भगवंत मान ने हादसे पर दुख जताया

वहीं इस हादसे पर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दुख जताया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर इस दुखद घटना पर अफसोस जताया और पीड़ितों को हर संभव मदद देने का आश्वासन भी दिया. इस बीच गुरदासपुर पुलिस की तरफ से भी हादसे को लेकर बयान जारी किया गया है. पुलिस का कहना है कि हादसे की जांच-पड़ताल की जा रही है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस में बड़ा फेरबदल: सेना के कर्नल विक्रांत पराशर बने नए एसएसपी, विरोध शुरू

जम्मू-कश्मीर पुलिस में एक बड़ा फेरबदल किया गया है. कर्नल विक्रांत पराशर को को अब यहां का नया वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक यानी एसएसपी बनाया गया है.

वह सेना की एलीट पैरा रेजिमेंट के कर्नल हैं. दिलचस्प बात ये है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि सेना के किसी अफसर की जम्मू-कश्मीर पुलिस में एंट्री हुई है और उसे पूरे इलाके के पुलिस प्रमुख का कार्यभार सौंपा गया है. हालांकि उनकी इस नियुक्ति को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है. पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने कर्नल विक्रांत पराशर की नियुक्ति को गलत करार दिया है

जम्मू-कश्मीर का एसएसपी बनाए जाने से पहले कर्नल विक्रांत पराशर हाई वारफेयर स्कूल गुलमर्ग में तैनात थे. उन्हें दो साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर जम्मू-कश्मीर पुलिस में लाया गया है. अधिकारियों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए उनकी नियुक्ति की गई है. कर्नल पराशर को एसएसपी रैंक से जुड़े सभी भत्ते और अधिकार मिलेंगे. जम्मू-कश्मीर गृह विभाग के प्रधान सचिव चंद्राकर भारती द्वारा जारी आदेश में इसकी पुष्टि की गई है.

आदेश में कहा गया है, ‘प्रशासन के हित में भारतीय सेना से कर्नल विक्रांत पराशर की नियुक्ति को मंजूरी दी जाती है. उन्हें तत्काल प्रभाव से प्रतिनियुक्ति के आधार पर जम्मू-कश्मीर पुलिस में एसएसपी (प्रशिक्षण) और स्पेशल (ऑप्स) के रूप में नियुक्त किया गया है’.

कौन हैं कर्नल विक्रांत पराशर?

कर्नल विक्रांत पराशर कई आतंकवाद विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. उन्हें एक अनुभवी आर्मी ऑफिसर कहा जाता है. साल 2018 में हाई-प्रोफाइल आतंकियों के खिलाफ चले अभियान में उन्होंने सेना को लीड किया था और आतंकवादियों के मंसूबों को नाकाम कर दिया गया था, जिसके बाद उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था.

क्या थी कहानी?

साल 2018 की बात है. कर्नल विक्रांत पराशर को पता चला कि सेंट्रल कश्मीर के एक खास इलाके में खूंखार आतंकी अपने साथियों के साथ छिपा हुआ है, जिसके बाद उन्होंने कुछ सैनिकों के साथ जाकर उस जगह पर मोर्चा संभाल लिया. हालांकि वहां के हालात काफी चुनौतियों से भरे हुए थे, क्योंकि उन्हें इस बात का सही अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था आतंकी कहां छिपे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने और उनकी टीम ने आतंकियों को मार गिराया. इस मुठभेड़ के दौरान भीड़ भी हिंसक हो गई थी, जिसे कर्नल विक्रांत पराशर ने अपनी सूझबूझ से संभाला था.