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केजरीवाल ने दिया इस्तीफा, आतिशी ने सरकार बनाने का पेश किया दावा, अब गेंद केंद्र के पाले में

नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार शाम 4.45 बजे उपराज्यपाल वीके सक्सेना को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफा देने के बाद अरविंद केजरीवाल अकेले ही एलजी दफ्तर से अकेले निकल निकल गए. इसके बाद आम आदमी पार्टी की नई विधायक दल की नेता आतिशी ने एलजी को नई सरकार बनाने का दावा पेश किया है, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ वे कब ग्रहण करेंगी, इस पर अब केंद्र राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने का इंतजार रहेगा.

दरअसल, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और इसलिए उपराज्यपाल तुरंत शपथ ग्रहण के लिए आदेश नहीं दे सकते. वह केजरीवाल से प्राप्त इस्तीफा को आगे की कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय के पास भेजेंगे. वहां से उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. फिर नए मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की अनुमति मिलने के बाद ही नई तारीख तय होगी. जिसमें कुछ वक्त लग सकता है.

नई सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद बोले AAP नेताः अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद आप नेता गोपाल राय ने कहा, "अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के एलजी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. सभी विधायकों ने मिलकर आतिशी को नया सीएम नामित करने का फैसला किया है. आतिशी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया है."

दरअसल, 17 सितंबर की सुबह अरविंद केजरीवाल ने विधायक दल की हुई बैठक में आतिशी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिस पर सभी विधायकों ने अपनी सहमति जताई. इसके बाद आतिशी का नाम नए सीएम के लिए ऐलान किया गया. आतिशी केजरीवाल के काफी भरोसेमंद हैं. 13 सितंबर को शराब नीति केस में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने 15 सितंबर को मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान किया था.

दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनेंगी आतिशी: आम आदमी पार्टी ने पहली बार वर्ष 2020 में आतिशी को कालकाजी विधानसभा से अपने तत्कालीन विधायक अवतार सिंह कालका का टिकट काटकर प्रत्याशी बनाया था. तब चुनाव जीतकर आतिशी पहली बार विधायक बनीं थी. फिर केजरीवाल ने सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद साल 2023 में इन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया. इसके बाद उन्हें शिक्षा, लोक निर्माण, कानून, राजस्व, बिजली, सर्विससेज जैसे महत्वपूर्ण 11 विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई. अब वह सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं.

"सावधान! आपकी रसोई में बनी रोटी हो सकती है कैंसर का कारण"


नयी दिल्ली : बिना रोटी के खाने की थाली अधूरी मानी जाती है. कहते है कि थाली पूरी तभी मानी जाती है. जब उसमें चावल, दाल, रोटी सलाद हो वरना थाली अधूरी होती है. खाना बनाते टाइम हम अपने परिवार के स्वाद का पूरा ख्याल रखते हैं।

रोटी तो हर कोई बनाता है. हालांकि रोटी बनाने का जो तरीका होता है वो हर किसी का अलग होता है. लेकिन फिर भी रोटी बनाते टाइम हम कुछ ऐसी गलती कर देते है. जिसका भुगतान हमारे परिवार को करना ही पड़ता है. हम रोटी बनाते वक्त कुछ ऐसी बातें होती है. जिन्हें हम भूल जाते है. आटा गूंथने से लेकर रोटी बनाने तक काफी सारी चीजें ऐसी होती है. जिनका हमें ध्यान रखना पड़ता है।वहीं अगर आप गलत तरीके से रोटी बनाते है तो इससे आपकी जान को खतरा हो सकता है।

कैंसर का खतरा

हाल ही में एक शोध से पता चला है कि रोटी को सीधे आंच पर पकाने से कैंसर हो सकता है. एक्सपर्ट के मुताबिक रोटी या किसी भी खाद्य पदार्थ को सीधे उच्च तापमान पर पकाने से कैंसर होने की संभावना अधिक होती है. इसके अलावा मांस को सीधे आंच पर भूनने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।आटा गूंथने से लेकर रोटी बनाते टाइम ना करें ये गलती 

आटा गूंथने के बाद

काफी लोग आटा गूंथने के बाद रोटी बनाना शुरु कर देते है. लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. दादी नानी को देखा होगा आटा गूंथकर वो थोड़ी देर रखती थीं. जिससे ये अच्छी तरह सेट हो जाए हल्का फर्मेंट हो जाए. ऐसे आटे से बनी रोटी मुलायम अच्छी बनती है. ये सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है.

लोहे के तवे पर पकाएं

आज के टाइम पर लोग नॉन स्टिक तवे पर रोटियां सेंकते हैं. जो कि आपकी सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है. अगर आप भी ऐसा करते हैं तो इस आदत को बदल दें। रोटी हमेशा लोहे के तवे पर ही सेकनी चाहिए. इससे शरीर को आयरन मिलता है सेहत को कोई नुकसान भी नहीं होता.

रोटी को जलाएं ना

आप रोटी को बनाते टाइम ज्यादा ना पकाएं. रोटी पकाते टाइम आप उसको जलाएं ना. आंच धीमी कर दें रोटी को जलने से बचाने के लिए बार-बार पलटें. बार-बार पलटने से आप देख सकते हैं कि यह जली नहीं है. खाने से पहले जले हुए काले हिस्से को हटाने की सलाह दी जाती है.

कपड़े में रखें रोटी

काफी लोग ऐसे होते है, जो कि रोटी को गर्म रखने के लिए टिफिन में एल्युमिनियम फॉयल पेपर का इस्तेमाल करते हैं, तो ये आपकी हेल्थ के लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है. 

सीधे आंच की रोटी

अगर आपको सीधे आंच पर पकी हुई रोटी पसंद है, तो डॉक्टर उन्हें कम रोटी खाने की सलाह देते हैं. इसके बजाय, आहार में संतुलित खाद्य पदार्थों को शामिल करने की सलाह दी जाती है.

आटा अच्छा हो

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आप सही अनाज को अपनी डाइट में शामिल करें. शहरों में रहने वाले लोगों ने अब चक्की से आटा पिसवाना बंद कर दिया है. इसकी जगह पैकेटबंद आटा खाने लगे हैं. ये आटा सेहत के लिए खतरनाक है. गेहूं के आटे की जगह आप मल्टीग्रेन आटे की रोटी खिलाएं.

जब साहित्य पर्दे पर उतरा,लेखक का आगरा का घर ही बन गया सेट

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हम आपको आज हिंदी के उस साहित्यकार और उसकी किताब के बारे में बताने जा रहे हैं, जिस पर बॉलीवुड ने फिल्म बनाई और ये फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई. हम यहां बात कर रहे हैं हिंदी के जाने-माने साहित्यकार राजेंद्र यादव और उनके उपन्यास सारा आकाश की. 

सारा आकाश का निर्देशन मशहूर निर्देशक बासु चटर्जी ने किया था. फिल्म 1969 में रिलीज हुई थी. इसमें राकेश पांडे, मधु चक्रवर्ती, नंदिता ठाकुर, ए.के. हंगल, दीना पाठक, मणि कौल, तरला मेहता और जलाल आगा प्रमुख किरदारों में थे. फिल्म की कहानी आगरा में पारंपरिक मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार की है और इसमें एक नवविवाहित जोड़े के आंतरिक संघर्षों को दर्शाया गया है, जो घर-गृहस्थी के लिए खुद को पूरी तरह तैयार नहीं समझता है।

हिंदी साहित्यकार राजेंद्र यादव के घर में ही शूट हुई थी फिल्म

इस फिल्म को राजेंद्र यादव के पैतृक आवास पर शूट किया गया था. उनका ये घर आगरा के राजा की मंडी इलाके में था. राजेंद्र यादव ने सारा आकाश उपन्यास के दूसरे संस्करण की प्रस्तावना में बताया था कि डायरेक्टर और सिनेमैटोग्राफर के साथ उस घर पर जाना रोमांचित कर देने वाला अनुभव था।

फिल्म के सिनेमैटोग्राफर ने बासु चटर्जी से कहा था कि ये घर तो रेडीमेड सेट है और ऐसा कुछ मुंबई में नहीं किया जा सकता. इस तरह राजेंद्र यादव ने शूटिंग के लिए अपना वो घर बासु चटर्जी को उपलब्ध कराया था. बताया जाता है कि इस फिल्म के लिए पहले जया बच्चन से संपर्क साधा गया था, लेकिन वह उन दिनों फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में थीं और इस वजह से उन्होंने इस रोल से इनकार कर दिया था.

राजेंद्र यादव का साहित्यिक सफर

राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक थे, जिन्हें उनकी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कहानियों के लिए जाना जाता है. राजेंद्र यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था।

राजेंद्र यादव ने हिंदी साहित्य को कई महत्वपूर्ण उपन्यास, कहानियां और लेख दिए, जो भारतीय समाज की जटिलताओं और व्यक्तिगत संघर्षों को गहराई से चित्रित करते हैं. राजेंद्र यादव की प्रमुख कृतियों में सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, कुल्टा, शह और मात, ढोल और अपने पार और एक इंच मुस्कान शामिल हैं. राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे।

नई कहानी आंदोलन 1950 और 1960 के दशकों में हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जिसमें पारंपरिक कहानी की संरचनाओं और शैलियों से हटकर नई दृष्टिकोण और विषयवस्तु को शामिल किया गया।

इस आंदोलन ने साहित्यिक दृष्टिकोण को आधुनिकता और यथार्थवाद की ओर मोड़ा. राजेंद्र यादव को उनकी साहित्यिक पत्रिका हंस की वजह से भी पहचाना जाता है, जिसका संपादन उन्होंने लंबे समय तक किया.

आज का इतिहास:1956 में आज ही के दिन हुआ था भारतीय तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का गठन

नयी दिल्ली : 17 सितंबर का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 1957 में 17 सितंबर के दिन ही मलेशिया संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था। 1956 में आज ही के दिन भारतीय तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का गठन हुआ था। 1949 में 17 सितंबर के दिन ही दक्षिण भारतीय राजनीतिक दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की स्थापना हुई थी।

2017 में आज ही के दिन कोरिया ओपन सुपर सीरीज जीतने वाली पहली भारतीय शटलर पीवी सिंधु बनी थीं।

2011 में 17 सितंबर के दिन ही न्यूयॉर्क के जुकोट्टी पार्क में वॉल स्ट्रीट घेरो आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

2008 में आज ही के दिन जहाजरानी राज्यमंत्री के. एच. मुनियप्पा ने विश्वकर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार और राष्ट्रीय संरक्षा पुरस्कार-2006 प्रदान किए थे।

2006 में 17 सितंबर के दिन ही विश्व कप हॉकी में भारत को 11वां स्थान मिला था।

2006 में आज ही के दिन भारतीय वायु सेना की स्पेशल फ़ोर्स यूनिट गरुड़ कमांडो कांगो के शांति मिशन पर रवाना हुई थी।

2004 में 17 सितंबर के दिन ही यूरोपीय संसद ने मालदीव पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया था।

1983 में आज ही के दिन अमेरिका में पहली बार वेनेसा विलियम्स ने मिस प्रतियोगिता जीती थी लेकिन उन्हें बाद में यह खिताब लौटाना पड़ा था।

1982 में 17 सितंबर के दिन ही भारत और सिलोन (श्रीलंका) के बीच पहला क्रिकेट टेस्ट मैच खेला गया था।

1970 में आज ही के दिन जॉर्डन में गृह युद्ध शुरू हुआ था।

1957 में 17 सितंबर के दिन ही मलेशिया संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था।

1956 में आज ही के दिन भारतीय तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का गठन हुआ था।

1949 में 17 सितंबर के दिन ही दक्षिण भारतीय राजनीतिक दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की स्थापना हुई थी।

1922 में आज ही के दिन डच साइकिल चालक पीट मोस्कप्स विश्व चैंपियन बना था।

17 सितंबर को जन्में प्रसिद्ध व्यक्ति

1986 में आज ही के दिन भारत के स्पिनर रविचंद्रन अश्विन का जन्म हुआ था।

1950 में 17 सितंबर के दिन ही भारतीय राजनेता और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्म हुआ।

1922 में आज ही के दिन अमेरिकी लेखक, उपन्यासकार, नाटककार और निबंधकार वंस बॉर्जैली का जन्म हुआ था।

1915 में 17 सितंबर के दिन ही प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन का जन्म हुआ था।

1879 में आज ही के दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता ई वी रामास्वामी नायकर का जन्म हुआ था।

1872 में 17 सितंबर के दिन ही भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक वामनराव बलिराम लाखे का जन्म हुआ था।

अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाले जज कौन है, उन्होंने ने सीबीआई को लेकर क्या की टिप्पणी, पढ़िए पूरी खबर...

नयी दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने केजरीवाल की जमानत पर अपना फैसला सुनाया है. जस्टिस सूर्यकांत ने सीबीआई की गिरफ्तारी को सही बताया जबकि जस्टिस भुइयां ने इसे अनुचित ठहराया है. केजरीवाल को जमानत देते हुए जस्टिस भुइयां ने कहा कि सीबीआई की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि सीबीआई की छवि पिंजरे में बंद तोते वाली नहीं होनी चाहिए बल्कि सीबीआई की छवि आजाद तोते की होनी चाहिए. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं जस्टिस उज्जल भुइयां और उन्होंने केजरीवाल को जमानत देते वक्त क्या टिप्पणी की?

जस्टिस भुइयां ने क्या टिप्पणी की?

सबसे पहले ये जान लीजिए कि जस्टिस भुइयां की टिप्पणी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देते वक्त जस्टिस भुइयां ने सीबीआई को फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि सीबीआई देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी है. उसे निष्पक्ष होना चाहिए. लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है. एक जांच एजेंसी को ईमानदार होना चाहिए. उसे पक्षपातपूर्ण से दूर रहना चाहिए.

उन्होंने कहा कि कोशिश हो की गिरफ्तारी में मनमानी नहीं हो. सीबीआई संदेह से परे हो. सीबीआई को तोता वाली धारना खत्म करनी होगी. सीबीआई दिखाए कि वो पिंजरे में बंद तोता नहीं है. सीबीआई को हर संभव प्रयास करना चाहिए कि जांच निष्पक्षता से की गई है.

निष्पक्ष जांच किसी का मौलिक अधिकार है. जांच न केवल निष्पक्ष होनी चाहिए बल्कि यह दिखना भी चाहिए।

कौन हैं जस्टिस उज्जल भुइयां?

उज्जल भुइयां सुप्रीम कोर्ट के जज हैं. जस्टिस भुइयां का जन्म 02 अगस्त 1964 को गुवाहाटी में हुआ था. उनके पिता का नाम सुचेंद्र नाथ भुइयां था. जो असम के एक बहुत ही सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व महाधिवक्ता थे. भुइयां की शुरुआती कॉलेज तक की पढ़ाई गुवाहाटी से ही हुई. स्कूली शिक्षा उन्होंने गुवाहाटी के डॉन बॉस्को हाई स्कूल से की जबकि कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से की. इसके आगे की पढ़ाई के लिए वो दिल्ली आ गए. दिल्ली के किरोड़मल कॉलेज से आर्ट्स में उन्होंने ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वो फिर गुवाहाटी चले गए और वहां के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से LL.B. और बाद में गुवाहाटी विश्वविद्यालय से LL.M. की डिग्री हासिल की.

कानून की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1991 में असम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की बार काउंसिल में खुद को एनरॉल किया. इसके बाद वो गुवाहाटी हाई कोर्ट की मुख्य बेंच में प्रैक्टिस करने लगे और अगरतला, शिलॉन्ग, कोहिमा और ईटानगर में की पीठों के समक्ष पेश हुए. जस्टिस उज्जल भुइयां 16 साल तक आयकर विभाग के स्थायी वकील रहे. इसके बाद उन्होंने अगल-अलग जगहों पर कार्य किया. 03 मार्च 2010 को उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया.

17 अक्टूबर 2011 को उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया. मार्च 2013 में जस्टिस उज्जल भुइयां को गुवाहाटी उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया था. 2019 में जस्टिस भुइयां को बॉम्बे हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया. इसके बाद वो तेलंगाना हाई कोर्ट के जज बने. इस दौरान उन्हें तेलंगाना राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष की भी कमान सौंपी गई. 14 अगस्त 2023 को जस्टिस उज्जल भुइयां सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए थे।

2008 में आज ही के दिन भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के कर्मचारियों को विश्वकर्मा पुरस्कार दिया गया था

नयी दिल्ली : 16 सितंबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 1963 में आज ही के दिन मलया सिंगापुर ब्रिटिश नार्दन वौनियो से मलेशिया का गठन हुआ था। 1861 को 16 सितंबर को ही ब्रिटेन में पोस्ट ऑफिस में सेविंग अकाउंट खुलने की शुरुआत हुई थी। 

2008 में आज ही के दिन भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के कर्मचारियों को विश्वकर्मा पुरस्कार दिया गया था। 

1967 में 16 सितंबर के दिन ही सोवियत संघ ने पूर्वी कजाख में न्यूक्लियर टेस्ट किया था।

2014 में आज ही के दिन इस्लामिक स्टेट ने सीरियाई कुर्दिश लड़ाकों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा था।

2009 में 16 सितंबर के दिन ही दुनिया भर के समक्ष भारत के एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल के रूप में पेश करने वाले अतुल्य भारत विज्ञान अभियान को ब्रिटिश पुरस्कार मिला था।

2008 में आज ही के दिन भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के कर्मचारियों को विश्वकर्मा पुरस्कार दिया गया था।

2007 में 16 सितंबर को ही पाकिस्‍तान के मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने परवेज मुशर्रफ के राष्‍ट्रपति पद पर दोबारा चुनाव लड़ने के लिए चुनाव से जुड़े कानूनों में संशोधन किया था।

2003 में आज ही के दिन भूटान ने भारतीय हितों के विरुद्ध अपनी जमीन के इस्तेमाल नहीं होने देने का आश्वासन दिया था।

1975 में आज ही के दिन पापुआ न्यू गिनी ने ऑस्ट्रेलिया से स्वतंत्रता हासिल की थी।

1967 में 16 सितंबर के दिन ही सोवियत संघ ने पूर्वी कजाख में न्यूक्लियर टेस्ट किया था।

1963 में आज ही के दिन फेडरेशन ऑफ मलय में उत्तरी बोर्नेयो, सारावाक और सिंगापुर मिला कर नया देश बनाया गया था।

1963 में 16 सितंबर के दिन ही मलया सिंगापुर ब्रिटिश नार्दन वौनियो से मलेशिया का गठन हुआ था।

1848 में आज ही के दिन फ्रांसीसी उपनिवेेश से दास प्रथा खत्म की गई थी।

1821 में 16 सितंबर के दिन ही मैक्सिको की स्वतंत्रता को मान्यता मिली थी।

1810 में आज ही के दिन निगवेल हिदाल्गो ने स्पेन से मैक्सिको की फ्रीडम के लिए संघर्ष शुरू किया था।

16 सितंबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1977 में आज ही के दिन भारतीय अभिनेता सुशील आनंद का जन्म हुआ था।

1968 में 16 सितंबर को ही भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी का जन्म हुआ था।

1931 में आज ही के दिन भारतीय क्रिकेट अंपायर आर. रामचंद्र राव का जन्म हुआ था।

1920 में 16 सितंबर के दिन ही अमेरिकी कॉर्टूनिस्ट आर्ट सैनसम का जन्म हुआ था।

1893 में आज ही के दिन ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ के रचयिता श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ का जन्म हुआ था।

1882 में 16 सितंबर के दिन ही स्वतंत्रता सेनानी बलवंत सिंह का जन्म हुआ।

16 सितंबर को हुए निधन

2017 में आज ही के दिन भारतीय वायु सेना के सबसे वरिष्ठ और 5 सितारा वाले रैंक तक पहुंचने वाले मार्शल अर्जन सिंह का निधन हुआ था।

1965 में 16 सितंबर को ही परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैनिक ए. बी. तारापोरे का निधन हुआ था।

16 सितंबर विश्व ओज़ोन दिवस आज, आईए जानते है इतिहास और महत्त्व


नयी दिल्ली : 16 सितंबर को मनाया जाने वाला प्रमुख दिवस विश्व ओज़ोन दिवस है। यह दिन ओजोन परत की सुरक्षा और उसके संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। तारीखों से जुड़े सामान्य ज्ञान से परिचित रहना बहुत जरूरी है क्योंकि कई प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। विश्व ओज़ोन दिवस की जानकारी भी उन परीक्षाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। 

कब और क्यों मनाया जाता है विश्व ओज़ोन दिवस?

हर साल दुनियाभर में 16 सितंबर को ओज़ोन परत के क्षय को रोकने के लिए और इससे निपटने के लिए किये जाने वाले वैश्विक प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘विश्व ओजोन दिवस’ मनाया जाता है।

ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल में एक सुरक्षात्मक परत है, जो सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकती है। अगर ओजोन परत क्षतिग्रस्त होती है, तो यह त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और पौधों और समुद्री जीवन पर प्रभाव डाल सकती है। 

आपको बता दें कि ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल के समतापमंडल में पाया जाता है। यह परत पृथ्वी की सतह से लगभग 15 से 35 किलोमीटर (9 से 22 मील) की ऊँचाई पर होती है। 

विश्व ओज़ोन दिवस का इतिहास

विश्व ओज़ोन दिवस का इतिहास, ओजोन परत की सुरक्षा और इसके संरक्षण के लिए किये गए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से जुड़ा है। आपको बता दें कि इस दिन की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1994 में की गई थी, जब 16 सितंबर 1987 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक वैश्विक समझौता जिसमें ओजोन की संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। 

वहीं यह दिवस पहली बार 16 सितंबर, 1995 को मनाया गया था। तब से यह दिवस हर साल मनाया जा रहा है।

विश्व ओज़ोन दिवस का महत्व

यह दिवस हमें ओज़ोन परत के महत्व को समझने और इसके संरक्षण के लिए जागरूक होने का अवसर प्रदान करता है। 

यह दिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए किए गए प्रयासों को याद करने और सराहने का अवसर देता है।

यह दिवस पर्यावरण संरक्षण के प्रति वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने का एक माध्यम है। 

इस दिवस का उद्देश्य न केवल वर्तमान पीढ़ी को, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करना है।

दिल्ली के मशहूर पराठे जो बनते हैं शुद्ध देसी घी में रणवीर कपूर भी है इस दुकान के पराठे के दीवाने


दिल्ली का नाम लेते ही कई ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ वहां का शानदार स्ट्रीट फूड भी याद आता है। खासकर पुरानी दिल्ली के पराठे, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि देश-विदेश से आए पर्यटकों के बीच भी काफी मशहूर हैं। दिल्ली के पराठे शुद्ध देसी घी में बनाए जाते हैं, जो उन्हें एक अनोखा स्वाद और सुगंध देते हैं। 

दिल्ली में ऐसी कई दुकान हैं, जहां पर बड़े-बड़े राजनेता और सेलिब्रिटीज अक्सर कुछ ना कुछ खाने के लिए आते रहते हैं. लेकिन, पुरानी दिल्ली (Old Delhi) की पराठे वाली गली (Paranthe Wali Gali) में एक ऐसी दुकान है, जिसे राजनेताओं और सेलिब्रिटी के खाने का अड्डा माना जाता है. आइए इस दुकान के बारे में जानते हैं.

दरअसल, इस दुकान का नाम पंडित कन्हैया लाल दुर्गा प्रसाद दीक्षित पराठे वाले हैं. इसके मालिक गौरव तिवारी ने बताया कि वह अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी हैं, जो इस दुकान को चला रहे हैं. 

उन्होंने आगे कहा कि इस दुकान पर बाबू जगजीवन राम जी, रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor), इम्तियाज अली, अक्षय कुमार और ऐसे ही कई बड़े राजनेता और सेलिब्रिटीज आ चुके हैं।

रणबीर भी खा चुके हैं यहां के पराठे

गौरव ने आगे बताया कि इस दुकान पर जब इम्तियाज अली और रणबीर कपूर पराठे खाने आए थे. तब रणबीर ने पराठे खाकर कहा था कि मजा आ गया. उन्होंने कहा कि इस दुकान पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कपिल देव और जडेजा तक पराठे खाने आ चुके हैं.

मिलते हैं इतने प्रकार के पराठे

इस दुकान पर 30 प्रकार के पराठे बनाए जाते हैं, जिसमें आलू पराठा, गोभी पराठा, प्याज पराठा, मूली पराठा, मटर पराठा, पनीर पराठा और अन्य तरह के पराठे खाने के लिए मिल जाएंगे. 

दुकान की सबसे खास बात यह है कि यह सारे पराठे देसी घी में बनाए जाते है. इसके साथ पुदीना और कई तरह की चटनी भी मिलती है. यहां पर पराठे कीमत 90 रुपये से लेकर 150 रुपये तक है.

पराठे खाने हैं तो ऐसे पहुंचे

अगर आप भी पराठा खाने के शौकीन हैं, तो येलो मेट्रो लाइन से चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पहुंच जाइए. गेट नंबर-1 से बाहर निकलकर किसी भी रिक्शा से पराठे वाली गली में आसानी से पहुंच सकते हैं. पराठे वाली गली में थोड़ा अंदर जाते ही यह दुकान मिल जाएगी. यह दुकान हफ्ते में सातों दिन खुली रहती है. यहां पर सुबह 07:30 बजे से लेकर रात 10:30 बजे तक कभी भी आ सकते हैं।

खाटू श्याम जा रहे मध्यप्रदेश के 6 श्रद्धालुओं की मौत, राजस्थान के बूंदी में भीषण सड़क हादसा, सीएम मोहन यादव ने किया आर्थिक सहयोग देने का ऐलान


मध्य प्रदेश के देवास के रहने वाले 6 लोगों की राजस्थान में एक सड़क हादसे में दर्दनाक मौत हो गई है. यह हादसा राजस्थान के बूंदी में उस समय हुआ जब उनकी गाड़ी एक अज्ञात वाहन से टकरा गई. यह लोग दर्शन के लिए खाटू श्याम जी जा रहे थे.

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस घटना पर दुख जताया है और मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है. अपने ऑफिशियल एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट संदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने लिखा, "मध्य प्रदेश के देवास जिले के 6 दर्शनार्थियों की खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए जाते समय राजस्थान के बूंदी जिले में सड़क हादसे में असमय मृत्यु का दुखद समाचार मिल रहा है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आगे लिखा, "वे हादसे में घायलों के समुचित उपचार के लिए राजस्थान सरकार के संपर्क में हैं." उन्होंने लिखा, "बाबा महाकाल दिवंगतों की आत्मा को श्री चरणों में स्थान और शोकाकुल परिजनों को यह असीम दुख सहने की शक्ति प्रदान करें। 

सीएम ने किया आर्थिक सहायता का ऐलान

मृतक के परिजनों को मुख्यमंत्री मोहन यादव आर्थिक सहायता देने का भी ऐलान किया है. सीएम मोहन यादव ने इस पोस्ट में लिखा, "मध्य प्रदेश सरकार की ओर से मृतकों के परिवार को 2- 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं. दुख की इस घड़ी में शोकाकुल परिवारों के प्रति अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता हूं."

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, रविवार (15 सितंबर) की सुबह बूंदी जिले में जयपुर नेशनल हाईवे पर हिंडोली थाना क्षेत्र में गलत दिशा से आ रहे एक अज्ञात वाहन ने श्रद्धालुओं की कार को टक्कर मार दिया. यह टक्कर इतनी भीषण थी कि मौके पर ही 6 लोगों की मौत हो गई, जबकि तीन घायल हो गए. सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया है. 

इस हादसे में सभी मृतक मध्य प्रदेश के देवास जिले के रहने वाले थे. यह खाटू श्याम जी की दर्शन के लिए गए थे, इसी दौरान यह सड़क हादसा हो गया. पुलिस ने सभी घायलों और मृतकों की पहचान कर ली है. बूंदी पुलिस और प्रशासन इस मामले में आगे की कार्रवाई में जुट गया है.

भारतीय साहित्य का 'आवारा मसीहा' शरतचंद्र चट्टोपाध्याय: एक युगप्रवर्तक लेखक, जिनसे प्रेम किए बिना नहीं रह सकेंगे


जब भी भारतीय साहित्य के महानतम लेखकों का ज़िक्र होता है, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका जीवन और साहित्यिक कृतियां आज भी पाठकों को गहराई से प्रभावित करती हैं। शरतचंद्र को उनके सरल, मार्मिक और यथार्थवादी लेखन के लिए जाना जाता है। उन्हें समाज के उस वर्ग की आवाज़ बनने का श्रेय जाता है जिसे अक्सर साहित्य में नज़रअंदाज़ किया जाता था।

आवारा मसीहा: शरतचंद्र का जीवन

शरतचंद्र का जन्म 15 सितंबर 1876 को बंगाल के देवानंदपुर में हुआ था। उनका बचपन बेहद संघर्षपूर्ण था, क्योंकि उनके पिता ज्यादातर समय साहित्य में ही व्यस्त रहते थे और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। इस कठिनाइयों से भरे जीवन ने शरतचंद्र के मन में समाज के पीड़ित और हाशिये पर खड़े लोगों के प्रति गहरी संवेदना पैदा की।

शरतचंद्र को 'आवारा मसीहा' का खिताब उनके जीवन और लेखन में दिखने वाली स्वतंत्र और बंधनहीन प्रवृत्ति के कारण दिया गया। उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाईयों का सामना किया, लेकिन उनका लेखन हमेशा समाज के निम्न वर्ग, महिलाओं और पीड़ितों की आवाज़ बना रहा।

शरतचंद्र की प्रसिद्ध कृतियां और उनका प्रभाव

उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में देवदास, परिणीता, श्रीकांत, और चरित्रहीन शामिल हैं। शरतचंद्र का लेखन समाज की उन कुरीतियों पर तीखा प्रहार था, जिन्हें उस समय के लेखकों ने नजरअंदाज किया था। उनके उपन्यासों में प्रेम, दर्द, संघर्ष और समाज के अन्याय की झलक मिलती है।

शरतचंद्र की कृतियों में विशेषकर देवदास का नाम सबसे पहले आता है। देवदास न केवल एक उपन्यास था, बल्कि यह एक ऐसी कहानी थी जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है। इस उपन्यास पर कई बार फिल्में बनीं, और हर बार इसने दर्शकों का दिल जीता। सबसे प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय की 1955 में बनी फिल्म देवदास और संजय लीला भंसाली की 2002 में बनी देवदास इस कहानी को एक नए आयाम पर ले गईं।

देवदास: एक अमर प्रेम कहानी

देवदास एक ऐसा चरित्र है जो न केवल भारतीय साहित्य में अमर है, बल्कि भारतीय सिनेमा में भी। देवदास की त्रासदी, उसकी विफल प्रेम कहानी और समाज के साथ उसका संघर्ष, आज भी पाठकों और दर्शकों के लिए उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था जब इसे लिखा गया था। देवदास का चरित्र एक ओर प्रेम की गहराई दिखाता है, तो दूसरी ओर उसकी असमर्थता उसे एक दर्दनाक नायक बना देती है।

इस उपन्यास पर आधारित कई फिल्मों ने भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान बनाया है। चाहे वह दिलीप कुमार द्वारा निभाई गई भूमिका हो, या शाहरुख खान द्वारा, हर अभिनेता ने इस चरित्र को अपनी अद्वितीय शैली में जीवंत किया है।

समाज और साहित्य के प्रति योगदान

शरतचंद्र ने अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, विशेष रूप से महिलाओं के प्रति अन्याय और शोषण पर गहरी चोट की। उनका साहित्य समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण माध्यम था, जिसमें उन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग, महिलाओं और विधवाओं के जीवन को केंद्रीय भूमिका दी।

उनके साहित्य में न केवल समाज की बुराइयों का पर्दाफाश होता है, बल्कि उनके पात्रों के माध्यम से एक बेहतर, न्यायपूर्ण और स्वतंत्र समाज की कल्पना भी उभरती है। शरतचंद्र की कृतियों ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी और उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

निष्कर्ष

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय भारतीय साहित्य के उस युग के लेखक थे, जिन्होंने अपनी कृतियों से समाज की गहरी समस्याओं को उजागर किया। उनके उपन्यासों में व्यक्त उनकी संवेदना और समाज के प्रति उनका दृष्टिकोण उन्हें अपने समय से कहीं आगे का लेखक बनाता है। उनकी रचनाएं आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं और यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके जीवन और साहित्य से परिचित होने के बाद कोई भी उनके व्यक्तित्व और उनके लेखन से प्यार कर बैठेगा।

शरतचंद्र का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है, और उनके जीवन के संघर्षों और उनके विचारों से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि साहित्य एक सशक्त माध्यम है समाज में बदलाव लाने का।