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पीएम मोदी को पाकिस्तान का आधिकारिक निमंत्रण, डिटेल में जानिए, आखिर क्या है पड़ोसी देश का प्लान





पाकिस्तान ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अक्टूबर के मध्य में इस्लामाबाद में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भाग लेने के लिए आधिकारिक तौर पर निमंत्रण दिया है। साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पाकिस्तान विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने पुष्टि की है कि प्रधानमंत्री मोदी सहित सदस्य देशों के नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। उन्होंने कहा कि कुछ देशों ने पहले ही अपनी भागीदारी की पुष्टि कर दी है, लेकिन किन देशों ने पुष्टि की है, इसका विवरण समय आने पर घोषित किया जाएगा। एससीओ शासनाध्यक्षों की बैठक 15-16 अक्टूबर को होने वाली है। इससे पहले, एससीओ सदस्य देशों के बीच वित्तीय, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और मानवीय सहयोग पर केंद्रित एक मंत्रिस्तरीय बैठक और वरिष्ठ अधिकारियों की कई दौर की बैठकें होंगी।

विश्लेषकों का सुझाव है कि भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए, इस आमंत्रण को स्वीकृति की अपेक्षा के बजाय कूटनीतिक प्रोटोकॉल के मामले के रूप में देखा जा सकता है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी इसमें भाग लेने के लिए एक मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधि को नियुक्त कर सकते हैं, क्योंकि पिछली एससीओ बैठकों में अक्सर भारत का प्रतिनिधित्व राष्ट्राध्यक्षों के बजाय मंत्रियों द्वारा किया जाता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस साल 3-4 जुलाई को कजाकिस्तान में आयोजित एससीओ के 24वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे, जबकि भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अस्ताना में किया था।

राजनीतिक विश्लेषक कामरान यूसुफ सहित पाकिस्तानी विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति के बारे में संदेह व्यक्त किया है, और इस निमंत्रण को राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के बजाय एक मानक कूटनीतिक प्रक्रिया के रूप में देखा है। यूसुफ ने जोर देकर कहा कि हालांकि यह निमंत्रण एक औपचारिकता है, लेकिन यह संभावना नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी बैठक के लिए इस्लामाबाद की यात्रा करेंगे। पिछले साल एक पारस्परिक इशारे में, पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए भारत का दौरा किया था।
'सिर्फ बेटी बचाओ से कुछ नहीं होगा..', महिला सुरक्षा को लेकर केंद्र पर भड़के खड़गे, बोले महिलाओं को देना होगा समान अधिकार


कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को मोदी सरकार की तीखी आलोचना की और आरोप लगाया कि वह महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है। खड़गे ने इस बात पर जोर दिया कि केवल "बेटी बचाओ" पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय महिलाओं के लिए समान अधिकारों की गारंटी देने की सख्त जरूरत है। अपने बयान में खड़गे ने सवाल उठाया कि क्या जस्टिस वर्मा समिति की सिफ़ारिशों और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू किया गया है।

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "हमारी महिलाओं के साथ किया गया कोई भी अन्याय असहनीय, दर्दनाक और अत्यधिक निंदनीय है। हमें सिर्फ़ 'बेटी बचाओ' नहीं बल्कि 'अपनी बेटियों के लिए समान अधिकार' सुनिश्चित करने की ज़रूरत है। महिलाओं को सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है; उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है। देश में हर घंटे महिलाओं के ख़िलाफ़ 43 अपराध दर्ज किए जाते हैं। हर दिन सबसे कमज़ोर दलित-आदिवासी समुदायों की महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ 22 अपराध दर्ज किए जाते हैं। डर, धमकी और सामाजिक कारणों से अनगिनत अपराध दर्ज नहीं किए जाते हैं।" खड़गे ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए गंभीर सुधारों का आह्वान किया। उन्होंने "लिंग संवेदीकरण पाठ्यक्रम", "लिंग बजट" और स्ट्रीट लाइट तथा सार्वजनिक महिला शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं जैसे उपायों की वकालत की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान महिलाओं को समान दर्जा तो देता है, लेकिन उनके खिलाफ अपराध एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है जिसके लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार प्रभावी और निवारक उपायों के अभाव में काम नहीं कर रही है। उन्होंने तर्क दिया कि दीवारों पर "बेटी बचाओ" के नारे लिखने जैसे सतही प्रयासों से सार्थक सामाजिक बदलाव नहीं आएगा। खड़गे ने सवाल किया, "प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से अपने भाषणों में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में बात की है, लेकिन उनकी सरकार ने पिछले एक दशक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए हैं। इसके बजाय, उनकी पार्टी ने पीड़ितों के चरित्र की शर्मनाक तरीके से हत्या की है। क्या ऐसे सतही उपायों से वास्तविक सामाजिक बदलाव आएगा या हमारी कानूनी व्यवस्था की दक्षता में सुधार आएगा?" खड़गे ने आगे आरोप लगाया कि सरकार और प्रशासन ने पीड़ितों का जबरन अंतिम संस्कार करके अपराधों को छिपाने की कोशिश की है। उन्होंने पूछा, "क्या सरकार और प्रशासन ने अपराधों को छिपाने की कोशिश की है? क्या पुलिस ने सच्चाई को दबाने के लिए पीड़ितों के अंतिम संस्कार को रोका है?"

दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया कांड पर विचार करते हुए खड़गे ने सवाल उठाया कि क्या जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों और 2013 में पारित कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से लागू किया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि क्या ये उपाय कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने में कारगर साबित हो रहे हैं। खड़गे की टिप्पणी 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला प्रशिक्षु डॉक्टर की हत्या और कथित यौन उत्पीड़न की घटना से उपजे राष्ट्रीय आक्रोश और अनेक रैलियों के बाद आई है।
एफआईआर रद्द करवाने दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे बृजभूषण सिंह, अदालत ने पूछा-किस आधार पर कर रहे मांग

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महिला पहलवानों से कथित यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी बृजभूषण सिंह को दिल्ली हाई कोर्ट से झटका लगा है। बृजभूषण ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर, चार्जशीट और निचली अदालत द्वारा आरोप तय करने के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।दिल्ली हाई कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह से गुरुवार को पूछा कि वे किस आधार पर अपने खिलाफ महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न से जुड़ी एफआईआर को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले में दर्ज प्राथमिकी और आरोप रद्द करने का अनुरोध वाली दलीलों पर नोट दाखिल करने का समय दिया है। कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 26 सितंबर तय की है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने बृजभूषण से कहा कि आप मामले में चार्ज फ्रेम होने के बाद कोर्ट क्यों आए। वहीं, सुनवाई के दौरान अदालत ने बृजभूषण सिंह के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देने तथा एफआईआर, आरोप पत्र और अन्य सभी कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध करने के लिए एक ही याचिका दायर करने पर उनसे सवाल किया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ‘हर चीज पर कोई एक आदेश लागू नहीं हो सकता।’ उन्होंने कहा कि वह मुकदमा शुरू होने के बाद हर बात को चुनौती दे रहे हैं। इसमें कहा गया कि ‘यह कुछ और नहीं बल्कि एक टेढ़ा रास्ता है।’

बृजभूषण शरण सिंह ने अपने खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के संबंध में निचली अदालत की कार्यवाही को रद्द करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सिंह ने एफआईआर और ट्रायल कोर्ट के आदेश सहित पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की है, जिसमें उनके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। उन पर यौन उत्पीड़न और पांच महिला पहलवानों का अपमान करने का आरोप लगाया गया है।

बता दें कि पिछले साल जनवरी के महीने में बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसे शीर्ष पहलवानों की अगुआई में देश के 30 पहलवान भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ धरने पर बैठ गए। पहलवानों ने बृजभूषण पर मनमाने तरीके से कुश्ती संघ चलाने, महिला पहलवानों और महिला कोच का यौन शोषण करने का आरोप लगाया। हालांकि, जांच की बात पर पहलवान मान गए और बृजभूषण को संक के कामकाज से दूर रहने को कहा गया। ओलंपिक संघ की समिति ने जांच की, लेकिन इसकी रिपोर्ट सबके सामने नहीं आई। ऐसे में पहलवान जून में दोबारा धरने पर बैठ गए। इस दौरान धरना लंबा चला और कई बार पहलवानों ने पुलिस के साथ संघर्ष भी किया। अंत में पहलवानों ने अपने मेडल भी लौटा दिए। बृजभूषण के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद धरना खत्म हुआ। इस मामले में अभी सुनवाई चल रही है। बृजभूषण का कार्यकाल पिछले साल ही खत्म हो गया था। ऐसे में वह कुश्ती संघ से हट चुके हैं।

“अलग तरह की राजनीति करने लगे हैं राहुल गांधी”, स्मृति ईरानी ने ऐसा क्यों कहा?

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लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट से हार के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पहली बार खुलकर बात की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी की चर्चित नेता स्मृति इरानी ने एक हालिया पॉडकास्ट में राहुल गांधी के बारे में अपनी राय रखी। ईरानी ने माना कि राहुल गांधी अब अलग तरह की पॉलिटिक्स कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राहुल अब राजनीतिक पैंतरेबाजी की एक अलग शैली बना रहे हैं। जब वह जाति के बारे में बात करते हैं, जब वह संसद में सफेद टी-शर्ट पहनते हैं, तो उन्हें पता होता है कि यह युवाओं को किस तरह का संदेश देता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी के बारे में कहा कि कांग्रेस के नेता को मुगालता हो गया है कि उन्होंने सफलता का स्वाद चख लिया है।स्मृति ईरानी ने दावा किया कि राहुल गांधी आबादी के वर्ग विशेष को अपनी ओर खींचने के लिए सोच-समझकर कदम उठाते हैं। उन्होंने राहुल गांधी के हमले की इस शैली को कम आंकने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि ‘इसलिए हमें उनके कामों के बारे में गलत तरीके से धारणा नहीं बनानी चाहिए। चाहे आप उन्हें अच्छा, बुरा या बचकाना मानें- वे एक अलग तरह की राजनीति करने में लगे हैं।

नई राजनीतिक सफलता असफल रणनीति से विकसित हुई

ईरानी ने इस मौके पर कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘नरम हिंदुत्व’ की राजनीति अपनाने की पिछली कोशिशों की आलोचना भी की। जिसमें चुनावों के दौरान राहुल गांधी की हाई-प्रोफाइल मंदिर यात्राएं भी शामिल हैं।स्मृति ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी की ये कोशिश वोटरों को पसंद नहीं आई और उन्हें संदेह के साथ देखा गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि गांधी की तथाकथिक नई राजनीतिक सफलता इस असफल रणनीति से विकसित हुई थी। ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी को अपने मंदिर दौरों से कोई लाभ नहीं मिला। यह मजाक का विषय बन गया। कुछ लोगों को यह धोखा देने वाला लगा। इसलिए जब यह रणनीति काम नहीं आई, तो उन्होंने लाभ पाने के लिए जाति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। ईरानी के मुताबिक ये कदम भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की प्रासंगिकता बनाए रखने के मकसद से एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं।

राहुल गांधी को सामाजिक न्याय से कुछ लेना-देना नहीं-ईरानी

स्मृति ने ये भी कहा कि अगर राहुल गांधी को सामाजिक न्याय से सचमुच में कुछ लेना-देना होता तो यह पूरे राजनीतिक जीवन पर इसकी छाप दिखती। लेकिन ऐसा नहीं है। वो अचानक जाति-जाति करने लगे हैं और कई बार बेसिर-पैर की बातें भी करते हैं। मसलन, उन्हें पता है कि मिस इंडिया का चयन सरकार नहीं करती, फिर भी वो पूछ रहे हैं कि कोई दलित-पिछड़े वर्ग की लड़की मिस इंडिया क्यों नहीं बनती। राहुल को भी पता है कि ये बेतुकी बातें हैं, लेकिन वो ये भी जानते हैं कि इससे वो खबरों में रहेंगे और उनकी बातें हेडलाइन बनेंगी।

पश्चिम बंगाल में लॉ एंड ऑर्डर पर बवाल, क्या लगेगा राष्ट्रपति शासन?

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कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म व हत्या के मामले में पूरे देश में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। ट्रेनी डॉक्टर का रेप और हत्या का मामला सामने आने पर भी पश्चिम बंगाल पुलिस के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं, राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर आरोपियों का बचाव करने के आरोप लगा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के छात्र इस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं। जनता ने इस मुद्दे को पकड़ रखा और राज्य सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरी है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग कर रही है। 

तनावपूर्ण हालात के बीच बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने दिल्ली आकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद चर्चा तेज हो गई कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

इस बीच बुधवार को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कोलकाता की घटना को लेकर बयान दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए कहा कि ‘‘बस! बहुत हो चुका। अब वो समय आ गया है कि भारत ऐसी ‘विकृतियों’ के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘कम शक्तिशाली’, ‘कम सक्षम’ और ‘कम बुद्धिमान’ के रूप में देखती है।

पश्चिम बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं। यहां, पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हिंसा की खबरें आती हैं। कभी महिला को सरे आम सड़क पर पीटा जाता हैं तो कहीं पंचायत में कुछ नेता 'कंगारू कचहरी' लगातर इंसाफ करते है। हालांकि, कभी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग ने ऐसे जोर नहीं पकड़ा है। 

ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन कब और किन परिस्थितियों में लगता है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य की व्यवस्था में क्या-क्या बदल जाता है?

कब लगता है राष्ट्रपति शासन

दरअसल राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में दी हुई है। अनुच्छेद 355 कहता है कि केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए। केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार काम करें। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को शक्ति प्राप्त है कि वो राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन ले सकता है।

राष्ट्रपति शासन की सिफारिश में राज्यपाल की भूमिका

किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने के लिए अक्सर इन दो अनुच्छेदों का एक साथ इस्तेमाल होता है। अगर राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करने में विफल रहती है तो राज्यपाल इस संबंध में एक रिपोर्ट भेज सकता है। राज्यपाल की सिफारिश को जब कैबिनेट की सहमति मिल जाती है तो किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

जरूरी नहीं कि राष्ट्रपति शासन हमेशा कानून व्यवस्था बिगड़ने पर ही लागू हो, जब किसी राज्य में किसी दल के पास बहुमत ना होने और गठबंधन की सरकार भी ना बन पाने की स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।

राष्ट्रपति शासन में सबसे खास बात ये है कि इस अवधि के दौरान राज्य के निवासियों के मौलिक अधिकारों को खारिज नहीं किया जा सकता। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्री परिषद को भंग कर देता है। राज्य सरकार के कामकाज और शक्तियां राष्ट्रपति के पास आ जाती हैं। इसके अलावा राष्ट्रपति चाहे तो यह भी घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल संसद करेगी।

हिंद महासागर में चीन की हर चाल होगी नाकाम, भारतीय नेवी की ताकत बढ़ाने आ रही आईएनएस अरिघात

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हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की नौसेना लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है। भारत के लिए ये चिंता का विषय है। हालांकि, देश अपने दुश्मनों को नजरअंदाज नहीं करता, यही कारण है भारत लगातार अपनी सेना को मजबूत करने में लगा है। इसी क्रम में भारतीय नौसेना के बेड़े में आज आईएनएस अरिघात की एंट्री होने जा रही है।अरिघात को 2017 में लॉन्च किया गया था। तब से इसकी टेस्टिंग जारी रही। अब फाइनली इसे कमीशन किया जाएगा। आईएनएस अरिघात भारत की दूसरी न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है। यह स्वदेशी परमाणु पनडुब्बियों की अरिहंत क्लास की दूसरी पनडुब्बी है। परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पहली स्वदेशी पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत है जिसे 2009 में नौसेना में शामिल किया गया था।

अरिघात शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब है ‘शत्रु का नाश करने वाला’। जैसा इसका नाम वैसा ही इसका काम भी है। यह किलर पनडुब्बी पानी की सतह पर 22 से 28 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है और समंदर की गहराई में भी 44 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। इसके अलावा यह महीनों तक पानी में रह सकती है।

लगभग 112 मीटर लंबी इस पनडुब्बी में K-15 मिसाइलें लगी हैं, जो 750 किलोमीटर तक मार कर सकती हैं। 6,000 टन वजन की INS अरिघात लंबे ट्रायल्स और टेक्नोलॉजिकल अपग्रेड्स के बाद पूरी तरह से तैयार है। विशाखापत्तनम में एक गोपनीय कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में इस पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया जाएगा।

आईएनएस अरिहंत के साथ-साथ अब आईएनएस अरिघात के नौसेना में आने से भारतीय नेवी और मजबूत होगी। अरिघात, अरिहंत का एडवांस वर्जन है। दोनों ही समंदर के भीतर से परमाणु बम दागने की क्षमता रखते हैं। बस अंतर है मिसाइलों के अधिक कैरी करने का। अरिघात K15 मिसाइलों को अधिक ले जा सकता है। यह दुश्मनों को छिपकर ध्वस्त कर सकता है। भारत की ये ताकत दुश्मन देशों के लिए काल बन चुकी है। चीन के समुद्री विस्तार को लगाम लगाने के लिए भारत का हर एक कदम उसे पीछे खदेड़ेगा।

बता दें कि भारतीय नौसेना अब तक 3 न्यूक्लियर सबमरीन तैयार कर चुकी है। इसमें से एक अरिहंत कमीशंड है, दूसरी अरिघात मिलने वाली है और तीसरी S3 पर टेस्टिंग जारी है। इन सबमरीन के जरिए दुश्मन देशों पर परमाणु मिसाइल दागी जा सकती हैं।

*मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल के फैसलों पर बार बार क्यों ले रही यू टर्न, मजबूरी या खास रणनीति?*
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केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बने एनडीए सरकार को अभी ढाई महीने हुए हैं। इस दौरान सरकार ने ऐसे 5 बड़े फैसले लिए, जिसे मील का पत्थर माना जा रहा है। हालांकि, मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में एक के बाद एक फैसलों पर पलटती दिखी है। इनमें लेटरल एंट्री, ब्रॉडकास्टिंग बिल के ड्राफ्ट से लेकर वक्फ संशोधन एक्ट जैसे मुद्दे शामिल हैं। खास बात है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सरकार के यू-टर्न पर खूब खुश नजर आ रही है। कांग्रेस यह संदेश देने की भी कोशिश कर रही है कि किस तरह से नरेंद्र मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में में विपक्ष और अपने सहयोगी दलों के दबाव में अपने फैसलों पर पीछे हटने को मजबूर हो रही है। *फैसलों से पीछे हटने के पीछे बीजेपी की रणनीति!* अब सवाल है कि क्या सचमुच नरेंद्र मोदी की विपक्ष के विरोध के आगे झुकी है? विपक्ष के रवैये के कारण की तीन मौकों पर सरकार झुकी और उसने यू टर्न किया है? या किसी खास रणनीति के तहत जान बूझकर सरकार की ओर से विवादित मसले आगे किए जा रहे हैं और फिर पीछे हटा जा रहा है ताकि देश के मतदाताओं में यह मैसेज बने कि भाजपा को बहुमत नहीं देने का क्या नुकसान हो रहा है? एक दूसरी चर्चा यह कि लैटरल एंट्री पर जान बूझकर विवाद कराया गया ताकि उसमें आरक्षण लागू किया जा सके। इसी तरह वक्फ बोर्ड कानून को भी जेपीसी के पास इसलिए भेजा गया ताकि यह मैसेज बने कि सभी पार्टियों से सलाह मशविरा करके इसे लागू किया जा रहा है। सरकार ने इस तरह कुछ समय भी हासिल किया है ताकि राज्यसभा में उसका बहुमत हो जाए। बहरहाल, परदे के पीछे कारण चाहे जो हो लेकिन यह सरल मामला नहीं है। इसे उस तरह देखने की जरुरत नहीं है, जैसे दिखाया जा रहा है। न्यूज 18 की रिपोर्ट की मानें तो, सरकार से जुड़े लोगों का भी कहना है कि सरकार की तरफ से यह कदम जनता की प्रतिक्रिया के प्रति जागरूक होने के का प्रतीक है। साथ ही सरकार कांग्रेस की रणनीति को ध्वस्त करती जा रही है। बीजेपी में कई लोगों का मानना है कि यह लोकसभा चुनावों में जीत के बाद पॉलिटिकल नैरेटिव को फिर से अपने पक्ष में करने का हिस्सा है। इसके अलावा पीएम मोदी की तरफ से दिखाई गई राजनीतिक व्यावहारिकता का एक उदाहरण है। *पूर्ण बहुमत की सरकार में भी बीजेपी ने पलटे फैसले* केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पहले भी अपने फैसले पलट चुकी है या यू टर्न कर चुकी है। जिस समय भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी तब भी पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव का बिल वापस लिया था। दूसरे कार्यकाल में किसानों के आंदोलन की वजह से तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लिया गया। लोकतंत्र में यह कोई अनहोनी नहीं है। जन दबाव में सरकारों को फैसले पलटने होते हैं। लेकिन तीसरी बार सरकार बनाने के बाद जितनी जल्दी जल्दी सरकार फैसले पलट रही है, वह हैरान करने वाला है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात को लेकर है कि सरकार को इन मामलों की संवेदनशीलता का पता है फिर भी क्यों फैसले हो रहे हैं और क्यों वापस हो रहे हैं? *क्या सहयोगियों का दबाव बना यू टर्न का कारण?* वहीं, कई मीडिया रिपोर्ट में ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा अपने सहयोगियों के दबाव कारण फैसले से पलटी है। अब सवाल ये है कि क्या कोई सहयोगी सरकार को इस समय गिराने की कोशिश करेगा? नीतीश कुमार ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि केवल भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाए रख सकती है। चंद्रबाबू नायडू भी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें चुनाव से पहले किए गए अपने वादों को पूरा करना है और अपने बेटे लोकेश को उत्तराधिकारी बनाने के लिए ठोस मंच देना है, इससे पहले कि टीडीपी के प्रमुख नई दिल्ली में किंगमेकर बनने के बारे में सोचें। ऐसा चिराग पासवान भी नहीं करेंगे, जो अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान के योग्य उत्तराधिकारी साबित हुए हैं। बिहार में दलितों के बीच अपना आधार मजबूत करने के लिए चिराग मोदी की लोकप्रियता उनके “हनुमान” बनकर भुना रहे हैं। वे इतने व्यावहारिक राजनेता हैं कि एक मुद्दे को अपने राम, नरेंद्र मोदी के साथ अपने समीकरणों को खतरे में डालने नहीं देंगे। एनडीए में भाजपा के अन्य सहयोगी, जैसे कि शिवसेना के एकनाथ शिंदे या अपना दल की अनुप्रिया पटेल, अगर भाजपा से अलग होने के बारे में सोचते हैं, तो उनके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। *बीजेपी के यू टर्न* अब उन फैसलों की बात करें जिस पर सरकार ने यू टर्न लिया है।लैटरल एंट्री के जरिए केंद्र सरकार में 45 पदों पर सीधी नियुक्ति की बात करें तो सरकार इस बात से अनजान नहीं थी कि इस समय आरक्षण का मुद्दा तूल पकड़े हुए है और अगर बिना आरक्षण के 45 पदों पर बहाली होती है तो उसका विरोध होगा? फिर भी 17 अगस्त को नियुक्ति का विज्ञापन निकला। तीन दिन तक इसका विरोध हुआ और फिर 20 अगस्त को कार्मिक मंत्रालय ने विज्ञापन वापस लेने के आदेश दिया। ठीक इसी तरह सरकार निश्चित रूप से वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव की पहल से पहले को अच्छी तरह जानती होगी कि इसका विरोध होगा। फिर भी सरकार ने बिल पेश किया। संसद के पिछले सत्र में इसे पेश किया गया और विपक्षी पार्टियों के साथ साथ सहयोगियों के विरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेज दिया गया। उससे भी पहले सरकार ने ब्रॉडकास्ट रेगुलेशन बिल का मसौदा तैयार किया था, जिसे सभी संबंधित पक्षों यानी मीडिया समूहों को दिया गया था। लेकिन वह भी रहस्यमय तरीके से वापस हो गया। जिनको ड्राफ्ट की कॉपी भेजी गई थी उनको इसे लौटाने के लिए कहा गया। इस मामले में भी सरकार को पता था कि अभिव्यक्ति की आजादी का मामला उठेगा। फिर भी इसका मसौदा बंटवाया गया।
ममता के यूपी-बिहार-असम भी जलेंगे वाले बयान पर मचा सियासी घमासान, भाजपा नेताओं ने साधा निशाना*
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा द्वारा बुलाए गए बंद के विरोध में ऐसा बयान दे दिया है कि सियासी तूफान खड़ा हो गया है।ममता ने 28 अगस्त को तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद के स्थापना दिवस कार्यक्रम में कहा था कि अगर पश्चिम बंगाल को जलाया तो असम, उत्तर-पूर्व, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे।उनके इस बयान पर भाजपा नेताओं ने आपत्ति जताई है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भाषण पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने जोरदार हमला बोला है। पूनावाला ने ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस, समा और आप नेताओं को भी घेरा है। बीजेपी नेता ने कहा हैं, ''140 करोड़ भारतीय पश्चिम बंगाल की बेटी के लिए न्याय मांग रहे हैं। ममता बनर्जी की प्राथमिकता न्याय नहीं बल्कि बदला है। जब एक सीएम कहतीं हैं, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पूर्वोत्तर और ओडिशा जलेंगे, मैं पूछना चाहता हूं कि क्या अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, आप या गौरव गोगोई इस बयान का समर्थन करते हैं? क्या जो लोग न्याय की मांग कर रहे हैं वे अशांति पैदा कर रहे हैं? यह प्रदर्शनकारियों और डॉक्टरों का अपमान है जब ममता बनर्जी का कहना है कि न्याय की मांग करना अशांति पैदा करने जैसा है। वह संविधान विरोधी बयान दे रही हैं और राहुल गांधी, जो संविधान की प्रति लेकर घूमते हैं, इस पर एक शब्द भी नहीं बोलते हैं।'' *सरमा ने पूछा- आपकी हिम्मत कैसे हुई असम को धमकाने की?* ममता के इस बयान को लेकर असम के सीएम हिमंत विस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि दीदी, आपकी हिम्मत कैसे हुई असम को धमकाने की? हमें लाल आंखें मत दिखाइए। आपकी असफलता की राजनीति से भारत को जलाने की कोशिश भी मत कीजिए। आपको विभाजनकारी भाषा बोलना शोभा नहीं देता। *बंगाल भाजपा अध्यक्ष का गृह मंत्री को लिखा पत्र* सुकांत ने अमित शाह के नाम पत्र में लिखा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज कोलकाता में TMC के छात्र विंग को संबोधित करते हुए भीड़ को उकसाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि 'मैंने कभी बदला नहीं चाहा, लेकिन अब, जो करना है वह करो।' ममता का यह बयान राज्य के सर्वोच्च पद से बदले की राजनीति का स्पष्ट समर्थन है। उन्होंने बेशर्मी से राष्ट्र-विरोधी बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि 'याद रखें, अगर बंगाल जलता है, तो असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, और दिल्ली भी जलेंगे।' यह संवैधानिक पद पर बैठने वाले व्यक्ति की आवाज नहीं हो सकती है, यह राष्ट्र-विरोधी की आवाज है। उनका बयान स्पष्ट रूप से धमकाने, हिंसा भड़काने और लोगों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास है। अब वे इतने महत्वपूर्ण पद पर बने रहने की हकदार नहीं हैं। उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिए। जनता के हर सेवक का, खासतौर से ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य है कि वह शांति को बढ़ावा दे और किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ने से रोके। ममता के विचार चिंताजनक हैं और यह पश्चिम बंगाल के नागरिकों की सुरक्षा और राज्य की अखंडता को कमजोर करता है। मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं कि आप इस गंभीर मामले पर संज्ञान लें और स्थिति को संबोधित करने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करें। मैं पश्चिम बंगाल के नागरिकों के हितों की रक्षा करने और हमारे राष्ट्र के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए आपकी तरफ से तुरंत और निर्णायक कार्रवाई का इंतजार कर रहा हूं। *ममता ने क्या कहा* ममता ने कहा था, "कुछ लोगों को लगता है कि यह बांग्लादेश है। वे हमारी तरह बात करते हैं और हमारी संस्कृति भी एक जैसी है, लेकिन याद रखिए कि बांग्लादेश अलग देश है और भारत अलग देश है। मोदी बाबू कोलकाता के मामले में अपनी पार्टी का इस्तेमाल करके बंगाल में आग लगवा रहे हैं। अगर आपने बंगाल को जलाया तो असम, उत्तर-पूर्व, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे। हम आपकी कुर्सी गिरा देंगे।" दरअसल, कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेड में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना के विरोध में छात्र संगठनों ने 27 अगस्त को 'नबन्ना अभियान' विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था।इस दौरान छात्र सचिवालय तक रैली निकाल रहे थे, जहां प्रदर्शन हिंसक हो गया और पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस घटना के विरोध में भाजपा ने 28 अगस्त को 12 घंटे बंद का ऐलान किया था।ममता ने इसी बंद को लेकर भाजपा पर निशाना साधा था।
बारिश में धुलीं गुजरात मॉडल की सड़कें! अब वीडियो शेयर कर कांग्रेस ने कसा तंज

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बारिश और बाढ़ के कारण गुजरात में हालात बिगड़े हुए हैं। गुजरात में पिछले दो से तीन दिनों से भारी बारिश हो रही है। स्थिति यह है कि, सड़कें जलमग्न है और कई नदी-नाले उफान पर हैं। बाढ़ की चपेट में आने से अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है। 

बाढ़ के दर्दनाक मंजर के बीच देश का सियासी पारा भी हाई है। कांग्रेस ने गुजरात में बाढ़ में बह रहे एक घर का वीडियो अपने एक्स अकाउंट से पोस्ट करते हुए लिखा है, 'मोदी का तैरता हुआ गुजरात मॉडल।' कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में बाढ़ से जानमाल के नुकसान पर दुख जताते हुए बुधवार को पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आह्वान किया कि वे राहत एवं बचाव कार्य में हर संभव सहयोग करें। 

वहीं, बाढ़ का वीडियो शेयर करते हुए कांग्रेस नेता मनोज मेहता ने लिखा है कि “मोदी द्वारा विकसित शहर ए फौलाद हूं, जी हां मैं ही गुजरात का अहमदाबाद हूं।”

कांग्रेस नेता विनय कुमार दोकानिया ने लिखा है “अपनी तरह का पहला, दुनिया में पहली बार अहमदाबाद गुजरात में, अब कहीं भी स्वचालित अंडरग्राउंड पार्किंग सुविधा उपलब्ध है, (सिमित अवधी की पेशकश, सुविधा केवल मानसून के दौरान, कोई शुल्क नहीं, कोई कर नहीं) धन्यवाद मोदी जी।”

बता दें कि पिछले चार दिनों से लगातार हो रही बारिश ने लोगों का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है। भारी बारिश के कारण कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हैं। वडोदरा में स्थिति चिंताजनक है। यहां के कुछ इलाके 10 से 12 फीट पानी में डूबे हुए हैं। 40 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 17000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।

जम्मू कश्मीर के राजौरी-कुपवाड़ा में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़, तीन आतंकियों के मारे जाने की खबर*
#encounter_between_security_forces_and_terrorists_3_terrorists_killed *
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा और राजौरी में दो अलग-अलग मुठभेड़ की खबर है। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में सुबह-सुबह एनकाउंटर हुआ है। कुपवाड़ा जिले में दो अलग-अलग जगहों पर हुए एनकाउंटर में तीन आतंकवादी मारे गए हैं। तंगधार और माछिल सेक्टर में ये एनकाउटंर हुए हैं।राजौरी में मुठभेड़ खेड़ी मोहरा लाठी और दंथल इलाके में बुधवार (28 अगस्त) देर रात शुरू हुई। इलाके में दो से तीन आतंकी छिपे होने की आशंका है। भारतीय सेना के अनुसार घुसपैठ की आशंका के बारे में खुफिया जानकारी के आधार पर, 28-29 अगस्त की रात तंगधार, कुपवाड़ा के सामान्य क्षेत्र में भारतीय सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने संयुक्त घुसपैठ विरोधी अभियान शुरू किया। उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के कुमकडी इलाके और तंगधार सेक्टर में कथित तौर पर तीन आतंकवादी मारे गए हैं। वहीं, राजौरी में हुई मुठभेड़ में भी आतंकियों की मौत हो सकती है। हालांकि, मुठभेड़ और सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है और सेना ने आतंकियों के शव बरामद नहीं किए हैं। विधानसभा चुनाव में गड़बड़ी फैलाने की साजिश के तहत सीमा पार से आतंकियों को धकेलने की कोशिश की गई थी। पूरे इलाके में सतर्कता बढ़ा दी गई है। ऐसा इनपुट था कि आतंकियों का ग्रुप एलओसी से तंगधार सेक्टर में घुसपैठ कर सकता है। इस सूचना पर एलओसी पर सतर्क सेना के जवानों ने मोर्चा लगाया था। देर रात खुशहाल पोस्ट के पास संदिग्ध गतिविधियां देखने के बाद जवानों ने ललकारा तो दूसरी ओर से आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई से मुठभेड़ शुरू हो गई। जवानों की ओर से पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी गई है ताकि अंधेरे का लाभ उठाकर आतंकी घुसपैठ करने में सफल न हो जाएं। जम्मू-कश्मीर में अगले महीने ही विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावों की तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में चुनाव होंगे. इसमें पहला चरण 18 सितंबर, दूसरा चरण 25 सितंबर और तीसरे चरण के लिए एक अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। जिसके बाद चार अक्टूबर को मतों की गिनती होगी। बता दें कि राज्य में 2014 के बाद अब चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे चुनावी माहौल के बीच घाटी में आतंकियों की नापाक हरकतों का बढ़ना चिंता का विषय बनता जा रहा है।