आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास है कई बड़ी चुनौतियां , क्या भाजपा के लिए आसान है सत्ता में पुनर्वापसी..?
- विनोद आनंद
झारखण्ड विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर सभी राजनितिक दलों ने कमर कस ली है,इस बार सिर्फ इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए के बीच का टक्कर नहीं रहा बल्कि एक तीसरा राजनितिक शक्ति का भी उदय हुआ जो इंडिया और एनडीए दोनों के लिए चुनौती बनने जा रहा है.
वह तीसरा शक्ति होगा जयराम महतो, जिसके साथ इस बर लॉबीन हेमब्रम, सूर्य सिंह बेसरा सहित कोई छोटे दल संघटित होकर सामने आएंगे.
वैसे इस बार भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है कि झारखण्ड कि सत्ता पुनः उनके हाथ में आ जाये लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव मे ख़राब प्रदर्शन ने भाजपा कि चिंता बढ़ा दी है. इस बार भाजपा के सामने कई चुनौतियां है इन सभी चुनौतियों से भाजपा को गुजरना होगा,लेकिन भाजपा ने कोशिश पूरी शुरू कर दी है.
झारखण्ड में भाजपा के नैया को पार लगाने के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सरमा को दी गयी है. शिवराज सिंह चौहान ओबीसी के बड़ा चेहरा हैं, मध्य्प्रदेश में उनकी अच्छी पकड़ रही, सर्वाधिक वोटों से उनका जितना बताता है कि उनकी लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं आयी.
इस लिए उनकी रणनीति झारखण्ड में कितना कारगर सावित होगा यह तो समय बताएगा. वैसे दूसरे सेनानायक असम सीएम हेमंत विश्व सरमा बनाये गए, उनके किस प्रभाव का उपयोग झारखण्ड में किया जायेगा यह भाजपा के रणनीतिकार को पता है लेकिन इस चुनाव में भाजपा के सामने जो चुनौतीयाँ है उसके अनुसार भाजपा का डगर बहुत आसान नहीं है.
वर्तमान में झारखण्ड कि स्थितियां
झारखण्ड में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा कि जो स्थिति रही उसके अनुसार भाजपा के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता.
राज्य में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 11 सीट मिली थी और आजसू को 1 सीट. यानी झारखण्ड के 14 लोकसभा सीट में से 12 सीट हासिल करने में भाजपा सफल रही पिछले चुनाव में भाजपा 1 और झामुमो को एक सीट मिली थी.
लेकिन इसबार भाजपा को 8 सीट, कांग्रेस को 2 सीट झामुमो को 3 सीट मिली.इंडिया गठबंधन ने 5 सीटें झटका ली.
इस बार भाजपा कि वोट प्रतिशत भी गिरा है 2019 में भाजपा का वोट प्रतिशत 50.96फीसद थी जो 2024 के चुनाव में घट कर 44.60 पर आ गयी. वहीं कांग्रेस का 2019 में 15.63 प्रतिशत थी जो j2024 में बढ़कर 19.19 और झामुमो का 11.51%से बढ़कर 14.60 हो गयी.
आदिवासियों की सहानुभूति हेमंत के साथ,
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी सीटों पर अपने प्रदर्शन को सुधारने की है. क्योंकि ईडी द्वारा कि गयी करबाई का दाव भाजपा पर उल्टा पड़ गया. आदिवासियों को लग रहा है कि हेमंत सोरेन के राजनितिक अस्तित्व को समाप्त करने के लिए हीं भाजपा ने जेल में डाला. इस लिए आदिवासियों कि सहानुभूति झामुमो के साथ है.
इसी सहानुभूति के कारण भाजपा के बड़े आदिवासी चेहरा भी धाराशायी हो गए.
झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए लोकसभा की पांच सीटें आरक्षित हैं और इन सभी सीटों पर बीजेपी को इस बार चुनाव में हार मिली है. इन पांच लोकसभा सीटों में से चार सीटों पर बीजेपी की हार का अंतर 1.2 लाख वोटों से ज्यादा का रहा है.
पांच लोकसभा सीटों के अंदर विधानसभा की 29 सीटें आती हैं और निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन बीजेपी के लिए चिंता का विषय है.
झारखंड में बीजेपी के बड़े आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को भी लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा.
झारखंड में विधानसभा की 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का आंकड़ा 26 प्रतिशत है. बीजेपी को झारखंड में सरकार बनाने के लिए इन विधानसभा सीटों पर नए सिरे से रणनीति बनानी होगी.
बीजेपी के सहयोगी दलों का झारखण्ड में चुनाव लड़ने का एलान
केंद्र में बीजेपी कमजोर होने से हर सहयोगी छोटे दल भी उन पर हावी होना चाहता है. भाजपा के सामने यह दूसरी बड़ी चुनौती है कि अपने सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे कैसे करें.
इसके पूर्व भाजपा अकेले चुनाव लड़ती थी, सीट कि बटवारें से भाजपा झारखण्ड में कमज़ोर हो जाएगी साथ हीं टिकट नहीं मिल पाने से भाजपा कार्यकर्त्ता भी नाराज होंगे.
इस बीच एनडीए में बीजेपी के सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने कहा है कि वह राज्य में 5-6 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है और इसके लिए एनडीए से बात की जाएगी.
पार्टी ने कहा है कि अगर बात नहीं बनी तो अकेले चुनाव लड़ने पर भी विचार किया जाएगा.
पड़ोसी राज्य बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कहा है कि वह झारखंड में 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
सरयू राय का जदयू में शामिल होने से जदयू के सीट के लिए बढेगा दवाब
जेडीयू ने विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा दाव खेला, झारखण्ड में अपनी स्थिति को मज़बूत करने और चुनाव लड़ने के लिए सरयू राय को पार्टी में शामिल कर लिया है. सरयू राय जमशेदपुर के इलाके में लोकप्रिय हैं और 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हरा दिया था।. सरयू राय बीजेपी में ही थे लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था तो उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए थे.
सरयू राय के आने से निश्चित रूप से जेडीयू को मजबूती मिलेगी और जेडीयू सीटों के बंटवारे को लेकर बीजेपी पर दबाव बना सकता है.ऐसे हालत मे भाजपा को सरयू राय के आगे हथियार डालना होगा.
भाजपा के पास नही है हेमंत को टककर देने वाला कोई नेता
बीजेपी के सामने एक बड़ी मुश्किल उसके पास राज्य में किसी ऐसे नेता का ना होना भी है जिसकी लोकप्रियता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टक्कर देती हो. हेमंत सोरेन झारखंड में प्रभावशाली आदिवासी समुदाय से आते हैं और इस समुदाय में उनकी पकड़ है। उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को दिशोम गुरु के नाम से जाना जाता है. दिशोम गुरु का मतलब होता है देश का गुरु.
5 महीने तक जेल में रहने के बाद हेमंत सोरेन ने बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त किलेबंदी शुरू कर दी है. उन्होंने आदिवासी कार्ड को भुनाने की कोशिश की है और कहा है कि वह आदिवासी के बेटे हैं और बीजेपी के सामने कतई नहीं झुकेंगे.
हेमंत को जेल भेज कर कल्पना सोरेन को भी भाजपा ने बना दिया बड़ा नेता
हेमंत सोरेन को गैर जेल भेज कर कल्पना सोरेन के रूप में झारखण्ड को एक ऐसा मज़बूत नेता डे दिया जिसकी लोकप्रियता कि डंका आज झारखण्ड में बोल रही है.
कल्पना सोरेन ने जिस तरह दिल्ली से लेकर मुंबई तक दहाड़ी भाजपा के लिए मुसीबत बन गयी. आज झारखंड में कल्पना एक बड़ा चुनावी चेहरा बनकर उभरी हैं और उन्होंने लोकसभा के चुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार किया था. कल्पना ने विधानसभा का उपचुनाव 26000 वोटों से जीता था.
हालांकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी आदिवासी समुदाय से आते हैं और बीजेपी के पास अर्जुन मुंडा जैसे बड़े आदिवासी चेहरे भी हैं. लेकिन लोकप्रियता के मामले में बीजेपी को किसी ऐसे नेता की तलाश जरूर करनी होगी जो हेमंत सोरेन का मुकाबला कर सके.
इसके साथ ही विपक्ष के द्वारा संविधान और आरक्षण को बचाने की बात को जिस तरह मुद्दा बनाया जा रहा है, यह भी एक एक चुनौती बीजेपी के सामने है. विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी यह कहा था कि बीजेपी सत्ता में आएगी तो संविधान को बदल देगी और आरक्षण को खत्म कर देगी. इसका असर भी चुनाव नतीजों में देखने को मिला था.
देखना होगा कि बीजेपी इतनी सारी चुनौतियों का मुकाबला किस तरह करेगी.
Aug 10 2024, 00:23