कब बना पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर ?, जाने इस मंदिर की पौराणिक इतिहास
हमारा देश भारत कई विविधताओं का संग्रह है। यहां कई अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है और विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख देवताओं में से हैं ब्रह्मा ,विष्णु और महेश यानी शिव। वैसे तो मुख्य रूप से विष्णु और शिव की पूजा करने का विधान है। लेकिन कभी आपने सोचा है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्म देव की पूजा क्यों नहीं की जाती है?
ब्रह्म देव के नाम पर पूरे विश्व में कुछ ही मंदिरों का निर्माण किया गया है। जिनमें से सबसे पुराना मंदिर है पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर। आइए जानें इस मंदिर से जुड़ी कुछ ख़ास बातों और ब्रह्मा की पूजा न करने के कारणों के बारे में।
कब हुआ था मंदिर निर्माण
भगवान ब्रह्मा को समर्पित कुछ मंदिरों में से एक, इस पुष्कर मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें एक सुंदर नक्काशीदार चांदी का कछुआ है, जो विभिन्न आगंतुकों द्वारा दान किए गए चांदी के सिक्कों के साथ संगमरमर के फर्श पर स्थापित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में उनकी दुल्हन, गायत्री के साथ ब्रह्मा जी की चार मुखी मूर्ति है। पुष्कर में कई मंदिर हैं जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं। वराह मंदिर एक जंगली सूअर (वराह) के अवतार में विष्णु को समर्पित है। आप्टेश्वर मंदिर एक भूमिगत शिव मंदिर है जिसमें एक लिंगम है। अंत में, ब्रह्मा की पत्नी सावित्री को समर्पित सावित्री मंदिर, ब्रह्मा मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर स्थित है, और झील के सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।
मंदिर की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर भक्तों की भलाई के लिए यज्ञ का विचार किया। यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिए उन्होंने अपने एक कमल को पृथ्वी लोक भेजा और जिस स्थान पर कमल गिरा उसी जगह को ब्रह्मा ने यज्ञ के लिए चुना। ये जगह राजस्थान का पुष्कर शहर था, जहां उस पुष्प का एक अंश गिरने से तालाब बन गया था। उसके बाद ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने के लिए पुश्कर पहुंचे, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री ठीक पर नहीं पहुंची।
यज्ञ का शुभ मुहूर्त बीतता जा रहा था, लेकिन सावित्री का कुछ पता नहीं था। सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच चुके थे। ऐसे में ब्रह्मा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ शुभ समय पर शुरू किया। कुछ देर बाद सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंची और ब्रह्मा जी के बगल में किसी और स्त्री को देख क्रोधित हो गई। सावित्री ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि इस पृथ्वी लोक में आपकी कहीं पूजा नहीं होगी। इस श्राप को देखते हुए सभी देवी -देवताओं ने जब सावित्री से आग्रह किया तब उन्होंने श्राप वापस लिया और कहा कि, धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। तब से इस मंदिर का निर्माण किया गया।
पुष्कर झील के किनारे स्थित
यह मंदिर पुष्कर लेक के किनारे स्थित है और ब्रह्म देव के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर हर साल पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। कहा जाता है कि पुष्कर की खूबसूरती देखते हुए ब्रह्म देव ने स्वयं ही इस मंदिर को चुना था। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक, पुष्कर दुनिया की इकलौती जगह है, जहां ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है और इस जगह को हिंदुओं के पवित्र स्थानों के राजा के रूप में वर्णित किया गया है।
कैसी है मंदिर की संरचना
पुराणों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण करीबन 2000 वर्ष पूर्व सम्पन्न हुआ था । लेकिन मंदिर की मौजूदा वास्तुकला के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। पुष्कर को मंदिर की नगरी भी कहा जाता है, लेकिन औरंगजेब के शासन के दौरान यहां अमूमन हिन्दू मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया, लेकिन आज भी पुष्कर झील के किनारे ब्रह्मा मंदिर और अन्य मन्दिर ज्यों के त्यों स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि पुष्कर झील ब्रह्मा जी के कमल की एक पत्ती से बनी है, जो हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र झील है।
कई विशेषताओं को अपने आप में समेटे हुए ये मंदिर वास्तव में बेहद खूबसूरत है और आप सभी को इस मंदिर के दर्शन हेतु अवश्य जाना चाहिए।
Aug 02 2024, 13:07