जानिए ओडिशा के लिंगराज मंदिर का इतिहास,और रहस्य
दसवीं-ग्यारहवीं सदी में बना ओडिशा का लिंगराज मंदिर भारत के विशाल और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। आस्था और पर्यटन दोनों ही दृष्टियों से यह इस राज्य की राजधानी भुवनेश्वर का एक सबसे बड़ा आकर्षण है।
भारत के कुछ बेहतरीन हिंदू मंदिरों में से एक यह मंदिर लगभग 55 मीटर ऊंचा है, जिस पर बेहद सुंदर नक्काशी की गई है। बाहर से देखने पर यह चारों ओर से फूलों का गजरा पहना हुआ-सा दिखता है।
भगवान हरिहर को समर्पित है यह मंदिर
लिंगराज का अर्थ होता है ‘शिव’, लेकिन लिंगराज मंदिर में प्रतिष्ठित देवता ‘हरिहर’ के रूप में पूजित हैं। इस रूप में ‘हरि’ यानी भगवान विष्णु और ‘हर’ यानी भगवान शिव की पूजा-अर्चना एकसाथ होती है।
बता दें, भगवान हरिहर का एक सबसे प्रसिद्ध मंदिर बिहार के सोनपुर में गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित है, जहां कार्तिक मास में भारत का एक सबसे प्रसिद्ध पशुमेला लगता है।
भुवनेश्वर है भगवान लिंगराज
लिंगराज मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थापित है। ‘भुवनेश्वर’ भगवान लिंगराज का ही एक नाम है। भुवनेश्वर का अर्थ है ‘संसार के स्वामी’।
भगवान लिंगराज के रूप में भगवान शिव की उपस्थिति यहां होने के कारण भुवनेश्वर को ‘भगवान शिव का शहर’ कहा जाता है।
मां पार्वती ने किया था राक्षसों का वध
पौराणिक मान्यता के अनुसार, लिट्टी और वसा नामक दो राक्षसों ने लिंगराज क्षेत्र में अपने अत्याचारों से जनता को आतंकित और त्रस्त कर रखा था।
इन दोनों दुर्दांत राक्षसों के नाश के लिए लोगों ने मां पार्वती का आह्वान किया। भक्तों की पुकार से द्रवित होकर मां पार्वती ने लिट्टी और वसा का वध यहीं पर किया था।
बिन्दुसागर सरोवर में है पवित्र नदियों का जल
मान्यता के अनुसार, लडाई के बाद मां पार्वती को जब प्यास लगी, तो भगवान शिव ने यहां पर एक जलाशय का निर्माण कर सभी नदियों का आह्वान किया। उनके आह्वान पर जलाशय में भारत की सभी पवित्र नदियों का जल भर गया था।
बताया जाता है कि यहां स्थित बिन्दुसागर या बिन्दुसार सरोवर उसी दिव्य जलाशय का अंश है, जिसमें आज भी पवित्र नदियों का जल भरा है। लिंगराज का विशालकाय मंदिर इसके निकट ही स्थित है।
लिंगराज मंदिर का इतिहास
लिंगराज मंदिर ‘कलिंग वास्तुकला’ की उत्कृष्टता का सर्वोच्च प्रतिनिधि है। इस भव्य और विशाल मंदिर के निर्माण का श्रेय सोमवंशी राजवंश के राजा ययाति प्रथम को दिया जाता है।
जिसे बाद में जजाति केशरी ने और विकसित और पूरी तरह से स्थापित किया। मंदिर के विकास और साज-सज्जा में गंगवंश के राजाओं ने काफी योगदान दिया।
प्राचीन ‘एकाम्र क्षेत्र‘ में बना है यह मंदिर
ब्रह्म पुराण में ओडिशा के लिंगराज क्षेत्र को “एकाम्र क्षेत्र” के रूप में वर्णित किया गया है। कहते हैं, भगवान लिंगराज का विग्रह एक आम (एकआम्र/एकाम्र) वृक्ष के नीचे स्थापित था।
यहां के प्रथम मंदिर का उल्लेख सातवीं शताब्दी के कुछ संस्कृत ग्रंथों में मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, लिंगराज मंदिर का एक भाग छठी शताब्दी ईस्वी के दौरान बनाया गया था। एक सोमवंशी रानी ने मंदिर के लिए एक गाँव दान में दिया था और मंदिर से जुड़े ब्राह्मणों को भी काफी अनुदान मिला था।
लिंगराज मंदिर का रहस्य
हजारों सालों से भुवनेश्वर पूर्वोत्तर भारत में ‘शैव सम्प्रदाय’ का मुख्य केन्द्र है। मध्यकाल में यहां सात हजार से अधिक मंदिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब लगभग पांच सौ ही शेष बचे हैं।
लिंगराज मंदिर का संबध ‘शैव सम्प्रदाय’ के कापालिकों से भी रहा है, जो अनेक रहस्यमय अनुष्ठानों के जाने जाते हैं।
संतान से जुड़ी परेशानियां होती हैं दूर
लिंगराज मंदिर की दायीं ओर एक छोटा-सा कुंड है। इसे मरीची कुंड कहते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, इस कुंड के जल से स्नान करने से महिलाओं की संतान से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
मंदिर से होकर गुजरती है नदी
मान्यताओं के अनुसार, लिंगराज मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है। मंदिर का बिन्दुसागर सरोवर में इसी नदी का जल आता है। यही कारण है कि यह सरोवर कभी सूखता नहीं है।
दूर होती हैं शारीरिक और मानसिक बीमारियां
बिन्दुसागर सरोवर के जल में चमत्कारिक औषधीय गुण होने की बात की जाती है। कहते हैं, इस सरोवर के जल में स्नान करने से मनुष्य की शारीरिक और मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस जल से स्नान करने पर मनुष्य के सभी पापों का नाश (पापमोचन) हो जाता है।
Aug 01 2024, 12:23