खेलने की उम्र में सर पर ढिबरा लेकर बेच रहे हैं नाबालिग बच्चे, प्रशासन से लेकर सामाजिक संस्थानों को मुंह चिढ़ा रही है ये तस्वीरें
गिरिडीहगिरिडीह जिले के तिसरी एवं गावां प्रखंड में दस वर्ष से लेकर 16 वर्ष तक उम्र के बच्चे अगर अपने सर पर ढीबरा की टोकरी ले जाते हुए कहीं नजर आ जाएं, तो यह कोई हैरानी की बात नहीं होगी। क्योंकि कल के देश के भविष्य कहे जाने वाले इन बच्चों को चंद रुपए कमाने के लिए अपने बचपन से सौदा करना पड़ रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि इन प्रखंडों में कई सामाजिक संस्थाएं कार्यरत है, लेकिन जैसे उनके आंखों पर भी कोई काली पट्टी बंधी नजर आ रही है। और अगर बात करें प्रशासन या अधिकारियों की तो साहब उन्हे इन मासूमों की जिंदगी से क्या लेना देना। अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कार्यों में वे इतने व्यस्त हैं कि उन्हें इन बच्चों के भविष्य की ओर कोई ध्यान भी नहीं है।
विद्यालयों में पढ़ाई छोड़ ढिबरा चुनते हैं मासूम बच्चे बता दें इन दिनों तिसरी और गावां के सुदूरवर्ती इलाकों में आदिवासी नाबालिक बच्चे अब शिक्षा और खेल से दूर होते जा रहे है। कई सरकारी विद्यालयों में जहां 150 और 200 बच्चों का नामांकन है, वहां अब मात्र गिने चुने बच्चे ही पढ़ने आते हैं। अगर इन बच्चों को कहीं खोजना है तो आप आसपास के क्षेत्र के किसी ईट भट्ठे और छोटे बड़े ढीबरा खदानों के आसपास उन्हे खोज सकते हैं, जहां वे आसानी से ढीबरा चुनते या काम करते नजर आ जायेंगे।
प्रखंड में संचालित है कई सामाजिक संस्थानें, फिर भी बच्चे को नहीं मिल रहा उनका अधिकार बताते चलें कि क्षेत्र में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन, सवेरा फाउंडेशन, जागो फाउंडेशन, चाइल्ड लाइन समेत कई सरकारी और गैरसरकारी सामाजिक संस्थाएं सक्रिय है, जो दिखाती तो है कि उनके रहते क्षेत्र में बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो रहा है। लेकिन इन तस्वीरों को देख कर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सभी सामाजिक संस्थानों का दावा शतप्रतिशत सही नहीं है।
वन विभाग और पुलिस करती है क्षेत्र में ढिबरा बंद करने का दावा, सच्चाई कुछ और अगर हम बात करें क्षेत्र में ढिबरा व्यवसाई की तो यहां की ना सिर्फ पुलिस बल्कि वन विभाग के कर्मी भी अपने और से दावा करते है कि उनके क्षेत्र में ढिबरा का अवैध व्यवसाई नहीं चल रहा है। लेकिन इसके बावजूद उनके द्वारा की गई कार्यवाई उनके ही दावों को खोखली साबित कर देती है। हालांकि यह कहना गलत होगा कि यहां कि पुलिस और वन विभाग की टीम इस मामले में एक्टिव नहीं है। क्योंकि वजह कुछ भी हो उनके द्वारा कई बार ढिबरा लदे वाहनों को जब्त भी किया गया है। हालांकि ये अलग बात है कि यहां के ढिबरा व्यवसाई इन दोनों को अंगूठा दिखाने में कभी बाज नहीं आते हैं।
ऐसे होती है ढिबरा की अवैध खरीद बिक्री प्राप्त जानकारी के अनुसार तिसरी एवं गावां के पंचरुकी, मनसाडीह, कोदईबांक, सिरसिया, खटपोंक, करणपुरा, भुराई, हरलाघाटी, चरकी, धरवे नवाडीह सहित कई इलाकों में नाबालिग बच्चे, महिला व पुरुष द्वारा ढीबरा का अवैध खनन किया जाता है। जिसके बाद ढिबरा व्यवसाई इन लोगों के घर ढीबरा खरीदने आते हैं। यहां से ढिबरा लेने के बाद वे सभी ट्रैक्टर या बाइक के माध्यम से इसे कई जगह बनाए गए डंपिंग स्थान में डंप करते हैं। जहां से ट्रक और पिकअप के माध्यम से इन्हे अलग अलग रास्तों से रात के अंधेरे में गिरिडीह व कोडरमा भेजा जाता है।
सरकार से लगातार होती रही है ढिबरा को वैध करने की मां
ग बता दें तिसरी और गावां के लोगों का जीवन ढिबरा पर आश्रित है। यहां के ग्रामीणों से लेकर कई राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा कई बार ढीबरा को वैध करने को लेकर आवाज भी उठाया गया है। बीच में हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा इसके लिए नियम बना कर खरीदारी भी शुरू की गई थी। पर यह सिर्फ खोखली हो साबित हुई। अगर सरकार इस पर ध्यान दे और कड़े नियम लाकर इसे वैध करे तो इससे ना सिर्फ नाबालिक बच्चों की जिंदगी बचेगी बल्कि यहां के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। साथ ही सरकार को अच्छे राजस्व की प्राप्ति भी होगी।
Jul 30 2024, 10:09