कैसे हुई थी बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना,जाने रावण से क्या नाता है?
सावन में शिव जी पूजा अर्चना भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. वैसे तो भगवान शिव की पूजा हर सोमवार को होती है. सावन में भगवान शिव की पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. सावन में लोग भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के दर्शन भी करते हैं. मान्यता है कि ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. लेकिन आपको पता है कि भगवान शिव बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई थी और इसका लंकापति रावण से क्या नाता है?
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लंकापति रावण कठोर तपस्या कर रहा था. रावण भगवान शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अपना एक-एक सिर काटकर शिवलिंग पर अर्पित करने लगा. जब वह अपना दसवां और अंतिम सिर काटने जा रहा था, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर, उन्होंने सभी धड़ों को पहले की भांति ठीक कर दिया और रावण से वर मंगने के लिए कहा
रावण ने मांगा यह वरदान
भगवान शिव को अपने सामने देख रावण ने उन्हें अपने साथ चलने का वर मांगा और वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की. रावण की बात सुन भगवान शिव उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने शिवलिंग का रूप धारण कर लिया.
शिवजी ने रखी शर्त
शिवलिंग का रूप धारण करने के साथ भगवान शिव ने रावण के आगे यह शर्त रखी कि यदि रावण उन्हें बीच रास्ते में भूमि पर रख देगा तो वह उसके साथ लंका नहीं जाएंगे. रावण ने इस शर्त को स्वीकार किया और शिवलिंग को अपने कंधे पर उठाकर लंका की ओर बढ़ने लगा. रावण जब शिवलिंग को लेकर आगे बढ़ रहा था तभी बीच में उसे लघुशंका की अनुभूति हुई.
रावण ने लघुशंका के लिए जाने से पहले रास्ते में जा रहे एक अहीर को शिवलिंग पकड़ा दिया और उसे आदेश दिया कि वह इस शिवलिंग को भूमि पर न रखें. जिसके बाद महादेव ने लीला रची और शिवलिंग का वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगा. जब उस अहीर को यह वजन सहन नहीं हुआ, तब उसने विवश होकर शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और रावण द्वारा मारे जाने के भय से वहां से भाग गया.
शिवलिंग हुआ स्थापित
जब रावण वापस वहां आया तब शिवलिंग को भूमि पर रखा देख स्तब्ध हो गया और अहीर की इस हरकत पर बहुत क्रोधित हुआ, लेकिन उसने क्रोध को दबाकर फिर से शिवलिंग को पूरे बल से उठाने की कोशिश करता रहा, लेकिन महादेव वहां से टस से मस नहीं हुए जिसके बाद रावण निराश होकर वहां से चला गया. जाने से पहले उसने शिवलिंग पर अंगूठा गाड़ दिया. तब से यहां बैद्यनाथ महादेव वास करने लगे और इसी रूप में उन्हें पूजा जाने लगा.
कहां है बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड राज्य के संथाल परगना के पास स्थित है. भगवान शिव के इस बैद्यनाथ धाम को चिताभूमि कहा गया है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को नौवां स्थान प्राप्त है. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है. बैद्यनाथ धाम शक्तिपीठ को लेकर भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां माता का हृदय गिरा था. यही कारण है कि इस स्थान को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है.
Jul 29 2024, 12:45