कंसीव करने में हों रही है परेशानी तो रोजाना करे ये योगासन,बढ़ेगी प्रजनन क्षमता
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महिलाओं में प्रजनन क्षमता की कमी का कारण तनाव और चिंता है। जिसकी वजह से वो मां बनने के सुख से वंचित रह जाती हैं। तमाम तरह के इलाज के साथ ही सही खानपान और जीवनशैली की मदद से भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। योग प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। इस बात का दावा तमाम शोध में भी किया जाता है।
महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए योग एक प्रभावी और प्राकृतिक तरीका हो सकता है। यहां पांच ऐसे योगासन दिए जा रहे हैं जो प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं:
1. भ्रामरी प्राणायाम
 
Bhramari Pranayama)
भ्रामरी प्राणायाम एक ऐसा प्राणायाम है जो मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। यह मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है और प्रजनन तंत्र को सुधारता है।
विधि: आरामदायक स्थिति में बैठें। आंखें बंद करें और अपने कानों को अंगूठों से बंद करें। अब गहरी सांस लें और छोड़ते समय मधुमक्खी की आवाज निकालें।
लाभ: तनाव को कम करता है, हार्मोनल संतुलन बनाता है।
2. बद्ध कोणासन (Baddha Konasana)
यह आसन हिप्स और जांघों को खोलता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन में सुधार होता है और प्रजनन अंगों को मजबूत बनाता है।
विधि: फर्श पर बैठें और पैरों को सामने की ओर फैलाएं। दोनों पैरों के तलवों को एक साथ लाएं और उन्हें हाथों से पकड़ें। अपनी एड़ी को शरीर के पास लाएं और धीरे-धीरे अपने घुटनों को नीचे दबाएं।
लाभ: जांघों और हिप्स की मांसपेशियों को मजबूत करता है, रक्त प्रवाह में सुधार करता है।
3. विपरीत करनी (Viparita Karani)
विपरीत करनी एक रिवर्स पोज है जो प्रजनन अंगों में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है और मानसिक तनाव को कम करता है।
विधि: दीवार के पास लेटें और पैरों को दीवार के साथ ऊपर की ओर उठाएं। अपने हाथों को बगल में रखें और आराम से सांस लें।
लाभ: रक्त प्रवाह में सुधार करता है, तनाव कम करता है।
4. मालासन (Malasana)
यह आसन हिप्स और पेल्विक क्षेत्र को खोलता है, जो प्रजनन क्षमता के लिए लाभदायक होता है।
विधि: खड़े होकर अपने पैरों को चौड़ा करें। धीरे-धीरे नीचे की ओर बैठें, जैसे कि एक स्क्वाट पोजिशन में। अपने हाथों को सामने की ओर जोड़ें।
लाभ: हिप्स और पेल्विक क्षेत्र को खोलता है, लचीलेपन में सुधार करता है।
5. शिशुआसन (Balasana)
यह आरामदायक आसन तनाव को कम करने और प्रजनन अंगों को आराम देने में मदद करता है।
विधि: घुटनों के बल बैठें और अपने पैरों को पीछे की ओर फैलाएं। अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं और माथे को फर्श पर रखें। अपने हाथों को सामने की ओर फैलाएं।
लाभ: मानसिक शांति और आराम देता है, तनाव को कम करता है।
इन योगासनों को नियमित रूप से करने से महिलाओं की प्रजनन क्षमता में सुधार हो सकता है। ध्यान रखें कि किसी भी योगासन को करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें, खासकर यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।


स्वस्थ रहने के लिए अच्छी नींद आवश्यक है। बिना बाधा रात की नींद लेने से सेहतमंद रह सकते हैं। लेकिन अक्सर कई लोग रात में किसी कारण से जाग जाते हैं। कभी पेशाब जाने या फिर कभी प्यास लगने पर नींद टूटना आम बात है। इस तरह के नींद खुलना कोई चिंता की बात नहीं है लेकिन अगर रोजाना रात में एक ही समय पर आपकी आंख खुलती है तो इसकी कुछ वजह हो सकती है। रोज रात में एक तय समय पर नींद खुलने की समस्या कई लोगों में देखने को मिलती है। कई लोग एक फिक्स समय पर जाग जाते हैं, हालांकि हर व्यक्ति के लिए रात में उठने का समय अलग अलग ही होता है।
मनोचिकित्सक के मुताबिक, रात में सोते समय नींद खुलने के कई कारण हो सकते हैं। लोग नींद खुलने की एक वजह इंसोमनिया की समस्या मान लेते हैं। लेकिन इंसोमनिया में नींद ही नहीं आती है। वहीं रोजाना एक ही समय पर नींद खुलने की समस्या में आपको दोबारा नींद आ जाती है।
अगर रोजाना रात में जागने की समस्या से परेशान है तो यह स्थिति चिंताजनक तब हो जाती है जब एक बार जागने के बाद आपको दोबारा नींद न आए। ऐसी स्थिति में एंग्जाइटी, निराशा, थकान जैसी शिकायत हो जाती है और सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिवेट जा सकता है। इस तरह की स्थिति में नींद खुलने के बाद दिमाग काफी ज्यादा सक्रिय हो जाता है और हृदय गति तेज हो जाती है। इस वजह से दोबारा नींद आने में दिक्कत होने लगती है। चिंता के कारण इंसोमनिया की समस्या हो जाती है।
इसके अलावा आपको स्लीप एपनिया भी हो सकता है। स्लीप एपनिया में आपको नींद में सांस लेने में दिक्कत आने लगती है। इस बीमारी में सांस की दिक्कत के कारण आपकी अचानक नींद खुल जाती है। फेफड़ों और शरीर के बाकी हिस्सों में ऑक्सीजन का फ्लो काफी कम होने लगते है। स्लीप एपनिया के लक्षणों में अचानक नींद खुलना, सांस न आना, खर्राटे मारना, थकान और दिन भर सुस्ती आना शामिल है।
नींद की समस्या होने पर किसी स्लीप एक्सपर्ट से संपर्क करें। स्लीप एपनिया या इंसोमनिया का सही समय पर इलाज न होने के कारण हृदय संबंधी समस्या, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारी हो सकती है।

उम्र बढ़ना प्रकृति का नियम है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, त्वचा से लेकर पूरे शरीर पर इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। 50 की उम्र आते-आते त्वचा की कसावट कम होने लगती है, चेहरे पर झुर्रियां हो जाती हैं, बाल सफेद होने लगते हैं, मसलन आप बूढ़े दिखने लगते हैं। इसे रोका नहीं जा सकता है पर जीवनशैली के कुछ उपाय हैं जो इन लक्षणों को कुछ साल के लिए आगे बढ़ा सकते हैं।
इसलिए संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करें। फलों, सब्जियों, अनाज और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ आपको स्वस्थ और जवां बनाए रखने में सहायक हैं।
शारीरिक गतिविधि की कमी जैसे लंबे समय तक बैठे रहने, व्यायाम की कमी और कम चलने की आदत कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों की प्रमुख वजह मानी जाती है। इससे मोटापा, हृदय रोग, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। ये बीमारियां शरीर को अंदर-अंदर खोखला बनाती जाती हैं जिसका असर आपकी लुक पर भी दिखने लगता है।
गड़बड़ आदतों से बचाव करके आप न केवल अपनी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं, बल्कि एक स्वस्थ और लंबा जीवन भी जी सकते हैं।
ब्लड ग्रुप मुख्यरूप से चार प्रकार का- ए, बी, एबी और ओ होता है। ब्लड ग्रुप ओ को यूनिवर्सल डोनर भी माना जाता है। यानी कि इस ब्लड ग्रुप वाले लोग किसी दूसरे ब्लड ग्रुप वाले लोगों को रक्तदान कर सकते हैं। दुर्घटनाओं के समय जब समान ब्लड ग्रुप नहीं मिल पाता है तो ब्लड ग्रुप ओ वाला रक्त देकर किसी भी रोगी की जान बचाई जा सकती है।
एक अन्य अध्ययन में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को कई प्रकार के कैंसर का भी जोखिम कम हो सकता है। ब्लड ग्रुप ए, एबी और बी वाले लोगों में ओ ब्लड ग्रुप की तुलना में पैट के कैंसर का अधिक जोखिम देखा गया हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि एच. पाइलोरी संक्रमण ए रक्त समूह वाले लोगों में अधिक आम है। यह एक बैक्टीरिया है जो आमतौर पर पेट में पाया जाता है और यह सूजन और अल्सर का कारण बन सकता है।
ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का जोखिम भी कम देखा जाता रहा है। अध्ययन में पाया गया कि टाइप ए ब्लड वाले लोगों के शरीर में कॉर्टिसोल (स्ट्रेस हार्मोन) का स्तर अधिक होता है, जबकि टाइप ओ वाले लोगों में कॉर्टिसोल की मात्रा सबसे कम पाई गई है। जब एड्रेनल ग्रंथि रक्त में अधिक मात्रा में कॉर्टिसोल रिलीज करती है तो लोगों की तनाव की समस्या अधिक होती है। ब्लड ग्रुप ओ वाले लोगों को इससे भी सुरक्षित पाया गया है।
Jul 28 2024, 14:12
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