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अगर आप मंदिरों से जुड़े इतिहास में रुचि रखते हैं तो आपको मसरूर रॉक कट टेंपल के बारे में जरूर जानना चाहिए
भारत में एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल मौजूद है जो अपने इतिहास और खासियत की वजह से पहचाने जाते हैं। चलिए आज आपको पहाड़ की चट्टान को काटकर बनाएंगे मंदिर के बारे में बताते हैं। देशभर में एक से बढ़कर एक पर्यटक स्थल और धार्मिक स्थान मौजूद है जहां अक्सर पर्यटक पहुंचते हैं। हिमाचल प्रदेश एक ऐसी जगह है जो अपने बर्फ से ढके हुए पहाड़ों और खूबसूरत नजारों के लिए पहचानी जाती है। हिमाचल प्रदेश में कई प्राचीन मंदिर भी मौजूद है जिनका हिंदू धर्म में काफी ज्यादा महत्व माना गया है। अगर आप भी उन लोगों में से हैं जो मंदिरों से जुड़े इतिहास में रुचि रखते हैं तो आपको मसरूर रॉक कट टेंपल के बारे में जरूर जानना चाहिए। यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है और पहाड़ के एक पत्थर को तराश कर इसे बनाया गया है। जब आप इसे देखेंगे तो सच में पड़ जाएंगे कि बिना किसी टेक्नालॉजी के पुराने समय में आखिरकार किस तरह से मंदिर का निर्माण किया गया था। चलिए जानते हैं कि यहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है और इसकी खासियत क्या है। अगर आप इस मंदिर का दीदार करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको टिकट लेनी होगी जिसे आप ऑनलाइन बुक कर सकते हैं या फिर यहां पहुंच कर भी टिकट लिया जा सकता है। इंडियन एडल्ट के लिए यहां ₹20 टिकट लगती है। समुद्र तल से यह 2535 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है। इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था और इसे बनाने में किसी भी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया गया।
यह मंदिर बहुत ही दिलचस्प है और काफी खूबसूरत भी है। यहां आपको कई सुंदर नजारे देखने को मिलेंगे। मंदिर के ठीक सामने एक सुंदर झील है जो इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करती है। थोड़ी ही दूरी पर एक सुंदर व्यू प्वाइंट मौजूद है जहां प्रकृति के अद्भुत नजारे दिखाई देते हैं। यह मंदिर वैसे तो बहुत खूबसूरत है लेकिन लगभग 120 साल पहले यानी की 1905 में एक भयंकर भूकंप आया था जिस वजह से इसकी दीवारें डैमेज हो गई थी। हालांकि भूकंप मंदिर का ज्यादा नुकसान नहीं कर पाया पर आज भी यहां पर भगवान शिव विष्णु की प्राचीन मूर्तियां मौजूद है।

हम जब भी मंदिरों में जाते हैं तो वहां पर दान पत्र होता है जिसमें हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार कुछ ना कुछ डालता है। लेकिन इस मंदिर में पैसे चढ़ाने की अनुमति नहीं है। यहां पर आपको राम जी लक्ष्मण जी और सीता जी की मूर्ति देखने को मिलेगी। यह मंदिर क्लोज कल सर्वे आफ इंडिया के अंदर आता है इसलिए यहां पर पैसे चढ़ाने की मना है। यहां पर आपको माता दुर्गा, भगवान विष्णु, ब्रह्मा सूर्य और कई भगवानों की मूर्तियां खूबसूरत नक्काशी के रूप में देखने को मिलेगी। अगर आप मसरूर रॉक टेंपल का दीदार करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हिमाचल के कांगड़ जिले में जाना होगा। मंदिर तक पहुंचने के लिए हवाई, सड़क और रेल मार्ग का उपयोग किया जा सकता है। दिल्ली से यह 460 किलोमीटर दूर मौजूद है और धर्मशाला से इसकी दूरी 45 किलोमीटर पड़ती है। यहां का निकटतम एयरपोर्ट कांगड़ है जो मंदिर से 45 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। नजदीकी रेलवे स्टेशन नगरोटा सूरियां पड़ता है।
आईए जानते हैं नैनी झील का इतिहास

नैनी झील नैनीताल शहर में स्थित एक सुरम्य और अर्धचंद्राकार मीठे पानी की झील है। नैनी झील नैनीताल शहर के मध्य में स्थित है, जो चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है। झील नैनीताल के परिदृश्य की एक प्रमुख विशेषता है और स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु है। झील की विशेषता इसकी अद्वितीय अर्धचंद्राकार या गुर्दे की आकृति है, जो इसकी दृश्य अपील को बढ़ाती है। इसका क्षेत्रफल लगभग 48 एकड़ है और यह पहाड़ियों और इसके उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर से घिरा हुआ है। मल्लीताल झील के उत्तरी छोर का नाम है, जबकि तल्लीताल दक्षिणी छोर का नाम है। नैनी झील नैनीताल में एक प्रमुख आकर्षण है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, मनोरंजन के अवसरों और सांस्कृतिक महत्व के साथ आगंतुकों को आकर्षित करती है। शांत पानी और सुंदर परिवेश इसे पहाड़ियों में शांतिपूर्ण विश्राम चाहने वालों के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, नैनी झील को देवी पार्वती की पन्ना आंखों (नैना) में से एक माना जाता है जो भगवान शिव द्वारा किए गए ब्रह्मांडीय नृत्य तांडव के दौरान पृथ्वी पर गिरी थी। यही कारण है कि झील के किनारे नैना देवी मंदिर का भी निर्माण कराया गया है। नैना देवी मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर नैनी झील के उत्तर में स्थित है। मंदिर में पारंपरिक कुमाऊंनी वास्तुकला और डिजाइन है। इसमें लकड़ी की नक्काशी और पगोडा जैसी संरचना के साथ एक विशिष्ट शैली है। मंदिर के गर्भगृह में देवी नैना देवी की मूर्ति है। नैना देवी मंदिर एक प्रतिष्ठित तीर्थ स्थल है, और भक्त देवी नैना देवी का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं। देवी को नैनीताल की संरक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। ठंडी सड़क, जिसका अनुवाद "ठंडी सड़क" है, नैनी झील के किनारे पेड़ों से घिरा एक रास्ता है। यह इत्मीनान से टहलने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है, जहाँ से झील और आसपास की पहाड़ियों के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। वहीँ मॉल रोड, दुकानों, कैफे और होटलों से सजी एक हलचल भरी सड़क, नैनी झील के किनारे चलती है। यह एक जीवंत क्षेत्र है जहां आगंतुक खरीदारी, भोजन और झील के दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

नैनी झील विभिन्न त्योहारों और समारोहों का केंद्र बिंदु है। नैनीताल झील महोत्सव एक वार्षिक कार्यक्रम है जिसमें झील के पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व का जश्न मनाते हुए सांस्कृतिक गतिविधियाँ, नाव दौड़ और अन्य उत्सव शामिल हैं। नैनी झील मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है, विशेषकर सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान। आसपास की पहाड़ियों का प्रतिबिंब और आकाश के बदलते रंग एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला वातावरण बनाते हैं। नैनी झील के आसपास नैनीताल की सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई और उसे विकसित किया गया। झील शहर के लेआउट का केंद्र बिंदु बन गई, और इसके किनारों पर चर्च, स्कूल और आवासीय भवनों सहित विभिन्न संरचनाएं स्थापित की गईं।

आईए आज हम आपको झीलों का शहर नैनीताल के बारे में जानते हैं


खूबसूरत पहाड़ी वादियों में बसा नैनीताल हमेशा से एक लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन रहा है। यहां के ऊंचे और खूबसूरत पहाड़, झीलें, मंदिर और चारों तरफ फैली हरियाली आपको नैनीताल का दीवाना बना देगी। इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। अगर आप रोज के शोर शराबे से परेशान हो चुके हैं और कुछ दिन के लिए इन सबसे दूर जाना चाहते हैं तो फिर नैनीताल आपके लिए बेस्ट ऑप्शन है। राजस्थान दोस्तों और फैमिली के साथ घूमने के लिए सबसे रोमाचंक जगह है। यहां हर साल दुनिया के हर कोने से काफी संख्या में टूरिस्ट आते हैं।

आज हम आपको नैनीताल की कुछ ऐसी जगहों के बारे में बता रहे हैं, जहां आपको जरूर जाना चाहिए....

नैनी झील नैनीताल के दिल में बसी है खूबसूरत नैनी झील। नैनी झील में आसपास के सारे पहाड़ों का रिफ्लेक्शन पड़ता है जिससे इसका पानी बिल्कुल हरा दिखता है और यह दृश्य काफी मनोरम लगता है। इस झील में आप बोटिंग का भी लुत्फ उठा सकते हैं,इससे आप झील की खूबसूरती को करीब से महसूस कर पाएंगे।

इको केव
यहां के सबसे मशहूर जगहों में से एक है इको केव । इसमें कई सारी गुफाएं हैं। इस गुफा की सबसे खास बात ये है कि बाहर चाहे जैसा भी मौसम हो लेकिन इस गुफा में हमेशा ठंड ही रहती है। यहां से स्नो व्यू पॉइंट भी देखा जा सकता है। इस गुफा के आसपास कई सारी बॉलिवुड फिल्मों की शूटिंग भी हुई है।

सनसेट का खूबसूरत नजारा नैनीताल के मुक्तेशवर मंदिर से सनसेट का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। आप यहां शिवलिंग का दर्शन करने के बाद बाहर सनसेट का खूबसूरत नजारा भी देख सकते हैं। ज्यादातर लोग इस नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि एक खूबसूरत याद के तौर पर हमेशा इसे अपने साथ रखें।

नौकुचिया ताल जैसा कि सब जानते हैं कि नैनीताल को झीलों का शहर कहा जाता है। यहां आप घूमते घूमते थक जाएंगे लेकिन झीलों का सिलसिला खत्म नहीं होगा। यहां की नौकुचिया ताल काफी मशहूर है, भीमताल से 11 किमी. की दूरी पर स्थित नौकुचिया ताल की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस झील की गहराई तकरीबन 160 फीट है। यहां आप सूकून के पल बिता सकते हैं।

राज भवन राज भवन को गर्वनर हाउस के नाम से भी जाना जाता है। ये उत्तराखंड के गर्वनर का आवास है। हमारे देश में कुछ ही गर्वनर हाउस हैं जो आम जनता के लिए खुले हैं, ये भी उनमें से एक है। 220 एकड़ में फैला ये राज भवन देखने में बेहद खूबसूरत और भव्य है।
नदी किनारे कैंपिंग करने की 5 बेहतरीन जगह, जो अपने आप में ही किसी टूरिस्ट प्लेस से कम नहीं


कैंपिंग करने का ट्रेंड आजकल इतना नया चला है कि लोगों ने अपने ही पर्सनल टेंट खरीदकर घर में रख लिए हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो घर में ही टेंट खोलकर कैंपिंग करना चालू कर देते हैं, तो कभी अपने आसपास के पार्क में ही कैंपिंग का आनंद ले लेते हैं। अगर आप भी उन लोगों में से आते हैं, जिन्हें साल में एक बार कैंपिंग करने की इच्छा रहती है, और कुछ अच्छी जगह तलाश रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं।

ऋषिकेश
कैंपिंग की बात हो और ऋषिकेश का नाम सबसे ऊपर न आए, ऐसा कभी हो सकता है। ऋषिकेश में आए दिन यात्रियों की भीड़ लगी रहती है। इनमें कुछ लोग भगवान के दर्शन करने आते हैं, तो कुछ कैंपिंग और राफ्टिंग के लिए आते हैं। ऋषिकेश में नदी के किनारे कैंपिंग करना किसी जन्नत से कम नहीं है। यहां लोग नदी के किनारे कैंपिंग करते हैं, खेल खेलते हैं और सुबह के समय बहुत से लोग राफ्टिंग के लिए भी जाते हैं। नदी के किनारे ऋषिकेश में कैम्पिंग करना चाहते हैं, तो गर्मी के मौसम में ही करें, क्योंकि वहां मौसम रात के वक्त ठंडा रहता है।

शारावती, कर्नाटक अगर आप भी सोच रहे हैं कि शारावती एक जगह है, तो आप गलत हैं, कर्नाटक में शारावती एक नदी है, जो भारत के पश्चिमी तट में कर्नाटक से शुरू होती है और जोग वाटरफॉल  के नजदीक से गुजरती है। जोग वॉटरफॉल के 6 किलोमीटर दूर शारावती नदी के किनारे कैंपिंग के लिए यह जगह बहुत अच्छी है। हालांकि आपको वहां कैंपिंग की कोई सुविधा नहीं मिल सकती, इसलिए अपने साथ कैंपिंग बैग और उससे जुड़े सामान ले जाना न भूलें।

नैनीताल झील, उत्तराखंड उत्तराखंड के कुमाऊं जिले में मौजूद नैनीताल झील के बारे में किसने नहीं सुना, लेकिन आपने कभी ये सुना है कि यहां कैंपिंग भी की जा सकती है। कैंपिंग बैग को ले जाएं और साफ पानी की नैनीताल झील के पास कैंपिंग का मजा लें। कैंपिंग के साथ-साथ आप सुबह राफ्टिंग के लिए भी जा सकते हैं। नैनीताल में कैम्पिंग करने के अलावा आप भीमताल झील, मुक्तेश्वर, सत्तल जैसी खूबसूरत जगह भी देख सकते हैं। साथ ही वहां कई एडवेंचर्स एक्टिविटीज भी करवाई जाती हैं जैसे रैपलिंग, फ्लाइंग फॉक्स, डबल रोप, टायर कोर्स आदि।

करेरी झील, हिमाचल प्रदेश
करेरी झील हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में मौजूद है। अगर आपको एडवेंचरस चीजें करना बेहद पसंद है, तो ये टूरिस्ट प्लेस कैंपिंग करने के लिए परफेक्ट है। आपको बता दें, दिसंबर से अप्रैल तक वहां बेहद बर्फ पड़ती है, लेकिन इस समय में भी कैंपिंग करने का अपना ही मजा है। धर्मशाला से 10 कि.मी. दूर इस झील पर कैंपिंग करना चाहते हैं तो अपने साथ कैंपिंग बैग ले जाना न भूलें। साथ में गर्म चाय और मैगी हो, तो मजा ही आ जाए।


पैंगोंग झील, लेह पैंगोंग झील, लेह की बहुत प्रसिद्ध झील है। 3 इडियट्स मूवी का आमिर खान और करीना कपूर का आखिरी सीन यहीं फिल्माया गया था। शायद आपको याद आ गया होगा। इस जगह का लुत्फ उठाने के लिए आप यहां कैंपिंग करने के लिए आ सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखें कि लेह में आधा साल ठंड रहती है, तो सोच समझकर ही यहां के लिए प्लानिंग करें।




अगर आप जैसलमेर में घूमने के साथ-साथ कुछ मजेदार एक्टिविटीज की भी तलाश में हैं, तो चलिए आपको बताते हैं उन एडवेंचरस एक्टिविटी के बारे में
जैसलमेर राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। ये जगह अपने रेगिस्तान और कुछ अन्य पर्यटन आकर्षणों के लिए जानी जाती है। यहां के शानदार महल, रेगिस्तान, एडवेंचर स्पोर्ट, ऊंट की सवारी जैसी चीजें लोगों को बेहद खुश कर देती हैं।


रेगिस्तान में गाड़ी चलाना
डून बैशिंग जैसलमेर में सबसे लोकप्रिय साहसिक गतिविधियों में से एक है। अगर आप रेगिस्तान में गाड़ी चलाने का अनुभव लेना चाहते हैं, तो आपको दुबई या अन्य खाड़ी देशों में जाने की आवश्यकता नहीं है, आप अपनी इच्छा को जैसलमेर में भी पूरा कर सकते हैं। सैम सैंड ड्यून्स में डून बैशिंग साहसी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है। सैम सैंड ड्यून्स में डून बैशिंग करते हुए, आप काफी हद तक रोमांच का अनुभव कर सकते हैं। यहां सफारी रेत के टीलों से ऊपर और नीचे होकर आगे बढ़ती है।


पैरासेलिंग


पर्यटक, जो पक्षी की तरह उड़ना चाहते हैं, वे जैसलमेर में इस साहसिक खेल का अनुभव कर सकते हैं। इस एडवेंचर सपोर्ट का मजा डेजर्ट कैंप में लिया जाता है। इस एक्टिविटी के दौरान, आपके मित्र और परिवार के सदस्य उड़ान के दौरान कई खूबसूरत तस्‍वीरें ले सकते Sl AS असल में एक सुरक्षित एक्टिविटी है और जैसलमेर के दौरे पर आपको इसका अनुभव अवश्य करना चाहिए।


ऊंट की सफारी सैम सैंड ड्यून्स में अनुभव करने के लिए कैमल सफारी एक और रेगिस्तानी खेल है। जब भी हम जैसलमेर के बारे में सुनते हैं, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले यहां की फेमस ऊंट की सवारी आती है। इससे ज्यादा मजेदार और रोमांचकारी अनुभव आपको किसी और एक्टिविटी में नहीं सकता। साथ ही, ऊंट की दौड़ इस जगह का एक बड़ा आकर्षण है और यह वार्षिक डेजर्ट फेस्टिवल का भी एक हिस्सा है जो हर साल फरवरी में आयोजित किया जाता है।

क्वाड बाइकिंग इस रेगिस्तानी शहर में अनुभव करने के लिए क्वाड बाइकिंग एक अनूठा साहसिक खेल है। रेत के टीलों में चार पहियों वाली बाइक की सवारी करना एक अविश्वसनीय अनुभव है। ये स्पोर्ट काफी अनोखा है, जिसे हर एक व्यक्ति अपने जीवन में एक बार जरूर आजमाना चाहेगा। जैसलमेर में क्वाड बाइकिंग के लिए कई पैकेज हैं, तो आप अपने लिए उपयुक्त पैकेज का चयन कर सकते हैं।

डेजर्ट कैम्पिंग थार रेगिस्तान के बीच में डेजर्ट कैंपिंग जैसलमेर में एक अद्भुत अनुभव है। यह पर्यटकों के लिए रेगिस्तान की सुंदरता से घिरे थार रेगिस्तान के केंद्र में कई शानदार आवास प्रदान करता है। कपल्स के लिए शहर के जीवन से बाहर कुछ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए यह एक बेहतरीन एडवेंचर है। जैसलमेर में डेजर्ट कैंपिंग में कई मनोरंजन गतिविधियाँ शामिल हैं, जैसे नाच, गाना आदि। यह पर्यटकों को वन्य जीवन का अनुभव भी प्रदान करता है। डेजर्ट कैंपिंग के दौरान, आप डेजर्ट सफारी और डर्ट बाइक एडवेंचरस एक्टिविटीज भी कर सकते हैं।

गडीसर झील में बोटिंग गडीसर झील शहर के मध्य में स्थित एक आर्टिफिशियल झील है। जो लोग पानी आधारित खेलों से प्यार करते हैं, उन्हें इस झील पर नाव की सवारी के लिए जाना चाहिए। झील कई हिंदू मंदिरों से घिरी हुई है, इसलिए आप नौका विहार के दौरान मंत्रमुग्ध कर देने वाले कई अनुष्ठानों को सुन सकते हैं। सर्दियों के दौरान, झील कई प्रवासी पक्षियों के लिए एक अस्थायी घर बन जाती है, जो आपके नौका विहार के अनुभव को और अधिक सुंदर बना देती है।


आइए जानते है वह कौन सी 7 जगह है जो खूबसूरत जैसलमेर की रौनक बढ़ाती हैं
जैसलमेर शहर चारो तरफ से बंजर रेत और शुष्क थार रेगिस्तान से घिरा हुआ है जो दूर से पीले रंग में चमकता है क्योंकि यहां के किले हवेलियां, मंदिरों में पीले बलुआ पत्थर का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। बड़ी-बड़ी मूंछो और रंगबिरंगी पगड़ी पहने पुरुष, सितारे और शीशे लगे लहंगे पहने हुए महिलाएं, पीले बलुआ पत्थर से बने जाली और झरोखे की वास्तुकला, चमड़े की जूतियों की असंख्य दुकानें, ब्लॉक से छपाई किए हुए स्कार्फ और छोटी वस्तुओं पर कलाकारी ये सब चीजें पर्यटक को अपने आप में डूबाकर पुराने समय में ले जाती है।

पटवों की हवेली, जैसलमेर एक परिसर में पांच छोटी हवेलियों का एक शानदार समूह, पटवों की हवेली जैसलमेर में घूमने के स्थानों की सूची में सबसे ऊपर आती है। खिड़कियों और बालकनियों पर जटिल नक्काशी और उत्तम वॉल पेंटिंग और शीशे का काम हवेलियों की भव्यता को बढ़ाते हैं। इस विशाल हवेली में हवादार आंगन और 60 बालकनी हैं, जिनमें से प्रत्येक में विशिष्ट नक्काशी है जो इसके आकर्षण को बढ़ाती है। हवेली के संग्रहालय में आपको पटवा परिवार से संबंधित पत्थर के काम और कलाकृतियों का दुर्लभ संग्रह भी मिलेगा। पटवों की हवेली आने का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के बीच है।

जैसलमेर का किला थार रेगिस्तान की सुनहरी रेत पर स्थित और एक विशाल रेत के महल जैसा दिखने वाला जैसलमेर किला राजस्थानी वास्तुकला का प्रतीक है। भारत के इस सबसे बड़े जीवित किले में लगभग 5000 लोग रहते हैं और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है। इस पीले बलुआ पत्थर के किले में विभिन्न द्वारों - गणेश पोल, सूरज पोल, भूत पोल और हवा पोल से प्रवेश किया जा सकता है, आखिर में आप बड़े प्रांगण में जाएंगे जिसे दशहरा चौक कहा जाता है। किले के अंदर लक्ष्मीनाथ मंदिर, जैन मंदिर, कैनन प्वाइंट, पांच-स्तरीय मूर्तिकला महरवाल पैलेस और किला संग्रहालय जैसे कुछ प्रमुख आकर्षण हैं। इस किले में घूमने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च तक है।

गड़ीसर झील शहर के बाहरी इलाके में स्थित, खूबसूरत गडीसर झील शांति चाहने वालों के लिए एकदम परफेक्ट लोकेशन है। इसका इतिहास 14वीं शताब्दी का है, जब यह पूरे शहर के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत था। अब, गडीसर झील एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है जहाँ आप बोटिंग का मजा ले सकते हैं और निकटवर्ती जैसलमेर किले और इसके किनारे पर मौजूद मंदिरों के सुंदर दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। यदि आप सर्दियों में यहां घूमने आ रहे हैं, तो आपको यहां कई प्रवासी पक्षियों का भी जमावड़ा दिखाई दे सकता है। यहां आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है।

व्यास छत्री बड़ा बाग के अंदर स्थित व्यास छत्री जैसलमेर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। सुरुचिपूर्ण राजस्थानी वास्तुकला और जटिल नक्काशी के साथ सुनहरे रंग के बलुआ पत्थर की छतरियों की एक सरणी के साथ, ये संरचनाएं देखने लायक हैं। छतरियों की वास्तुकला को निहारने के अलावा, आप एक तरफ जैसलमेर किले और दूसरी तरफ रेत के टीलों के सुंदर दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। व्यास छतरी देखने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है।

सैम सैंड ड्यून्स देश के सबसे प्रामाणिक रेगिस्तानी स्थलों में से एक, सैम सैंड ड्यून्स सूर्योदय और सूर्यास्त के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य प्रस्तुत करता है। आप यहां रेगिस्तान सफारी पर भी जा सकते हैं या ऊंट की सवारी का आनंद ले सकते हैं। थार रेगिस्तान के केंद्र में कई कैम्पिंग पॉइंट भी हैं। लोक नृत्य, रात में संगीत, प्रामाणिक राजस्थानी व्यंजन और राजस्थान की संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करने वाली अन्य दिलचस्प गतिविधियाँ सैम सैंड ड्यून्स में देखी जा सकती हैं।

खाबा किला खाबा किला, कुलधरा गांव के पास, जैसलमेर में एक और असामान्य और अद्भुत संरचना है। किले और गांव में पालीवाल ब्राह्मण रहते थे, जिन्होंने एक रात अज्ञात कारणों से इसे छोड़ दिया था। अब यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण बन चुका है, इस किले से आप गांव के सुंदर मनोरम दृश्य देख सकते है, साथ ही कई खूबसूरत फोटोज भी खीच सकते हैं। किले का आकर्षण और सदियों पुरानी कलाकृतियों वाला एक संग्रहालय कई इतिहास प्रेमियों को भी आकर्षित करता है।

जोधपुर में घूमने के लिए अनेक ऐसे स्थान हैं जो शहर के शाही इतिहास और संस्कृति में डूबे हैं,जहां सबसे ज्यादा पर्यटकों की भीड़ देखी जाती है

जोधपुर में घूमने के लिए अनेक ऐसे स्थान हैं जो शहर के शाही इतिहास और संस्कृति में डूबे हैं। जोधपुर, नीले रंग में रंगे मकानों से भरा पड़ा है। मध्यकालीन इमारतें और इनके बीच से निकलती घुमावदार गलियां जोधपुर के मस्तक पर विराजमान मेहरानगढ़ किले के तल पर बसी हैं। भव्य महलों से लेकर मध्यकालीन किलों तक, जोधपुर के शाही अतीत के बारे में जानने के इच्छुक लोगों को इन स्थानों पर जरूर जाना चाहिए। यहां हम आपको जोधपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों की जानकारी दे रहे हैं।

जोधपुर का मेहरानगढ़ का किला विशाल परिसर, दिवारों पर जटिल नक्काशी, बलुआ पत्थर के बने शाही हॉल और अंदर राजसी सजावट मेहरानगढ किले को देश का सबसे बेहतरीन किला बनाती है। किला चारो ओर विशाल दिवारों से घिरा हुआ है जो एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, यहां से आप पूरा खूबसूरत शहर देख सकते हैं। किले में मौजूद संग्रहालय आपको शानदार अतीत की कहानी बताएगा। संग्रहालय में शाही पालकी, तलवारें, चित्र और पुराने संगीत वाद्ययंत्र प्रदर्शन के लिए रखे हुए हैं। किले को छोड़ने से पहले किले की छत पर बने चोकेलाओ रेस्तरां में जरूर जाएं, यहां पारंपारिक राजस्थानी थाली मिलती है। यहां आप अक्टूबर से मार्च के बीच जा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान मौसम ठंडा और सुखद रहता है।


भोपाल का मंडोर गार्डन मंडोर गार्डन एक धरोहर स्थल है जो ऐतिहासिक होने के साथ शहर की प्राकृतिक खूबसूरती को भी बढ़ाता है। इस गार्डन को छठी शताब्दी में बनाया गया था। जोधपुर से पहले मंडोर, मारवाड़ की राजधानी थी। मंडोर गार्डन जोधपुर से उत्तर दिशा में 9 किलोमीटर दूर है। यहां एक सरकारी संग्रहालय और मंदिर है। पत्थर की बनी छत के कारण वास्तुकला का यह अदभुत नमूना लोगों को आकर्षित करता है इसके साथ ही जोधपुर के शासकों की गहरे लाल रंग की छतरियां और शानदार ग्रीन गार्डन भी है जिसमें पेड़ो-पौधों की अनगिनत प्रजातियां हैं। अक्टूबर से मार्च तक सर्दियों के महीनों में मंडोर गार्डन की यात्रा करने का सही समय है।

जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस जोधपुर शहर में ऊंचाई पर स्थित उम्मेद भवन पैलेस कला का एक अदभुत उदाहरण है। यह अभी भी शाही परिवार का निवास स्थान होने के साथ-साथ एक होटल भी है। इसका निर्माण 1928 से 1943 के बीच जोधपुर के राजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। उस समय इलाके में भयंकर सूखा पड़ा था। आम लोगों को रोजगार देने के लिए इस महल का निर्माण करवाया गया था। इसके आसपास 26 एकड़ का खूबसूरत बगीचा भी है। आज, इस सुनहरे पत्थरों से बने महल में 64 लग्ज़री कमरे और सुइट के साथ एक संग्रहालय भी है। यहां आप अक्टूबर से मार्च के बीच जा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान मौसम ठंडा और सुखद रहता है।

जोधपुर का शीश महल जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में शीश महल, जिसे जोधपुर के ग्लास पैलेस के रूप में जाना जाता है, ऐतिहासिक वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है जिसे छत से फर्श तक डिजाइनदार शीशे से सजाया गया है। इसे 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच महाराजा अजीत सिंह का शयन कक्ष कहा जाता है। छत पर लटके नीले, हरे, चांदी और सोने के आभूषणों के साथ-साथ भव्य यूरोपीय झूमर बाद में इस हॉल में जोड़े गए हैं।

जोधपुर का घंटाघर जोधपुर में घंटा घर शहर के केंद्र में एक शानदार घंटाघर है, जिसे महाराजा सरदार सिंह ने लगभग 200 साल पहले बनवाया था। टॉवर से शहर का शानदार मनोरम दृश्य प्रस्तुत होता है। इस भव्य संरचना के आस-पास स्थानीय लोग रहते हैं, साथ ही यहां बाजार भी लगती है, जहां से आप खरीदारी कर सकते हैं। जो लोग जोधपुर की संस्कृति और आसपास के बाजार में घूमना चाहते हैं, उनके लिए ये जगह परफेक्ट है। अक्टूबर से फरवरी तक का समय घंटाघर घूमने का अच्छा समय है।


जोधपुर का खेजड़ला किला खेजड़ला किला पुराने समय के शाही राजाओं और रानियों के शानदार महल के रूप में जाना जाता है। जोधपुर के महाराजा द्वारा बनाये गए इस 400 साल पुरानी इमारत को अब एक होटल में बदल दिया गया है। इसका निर्माण ग्रेनाइट पत्थर और लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। जो लोग भारत की सांस्कृतिक विरासत में दिलचस्पी रखते हैं, उनके लिए ये जगह बिल्कुल सही है। गर्मियों के मौसम में यात्रा करने की बजाए अगस्त, सितंबर, फरवरी और मार्च के महीनों के दौरान यात्रा करें।



आज हम आपको राजस्थान की सबसे डरावनी और भूतिया जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां जाने पर पर्यटकों की रूह कांप उठती है

राजस्थान में जैसे खूबसूरत जगहों की कमी नहीं है, उसी तरह से यहां भूतिया जगहों की भी कमी नहीं है। ये जगह कई डरावने किस्से और भूतों की कहानियों को समेटे हुए है। आज हम आपको राजस्थान की सबसे डरावनी और भूतिया जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां जाने पर पर्यटकों की रूह कांप उठती है और रात को तो आप यहां जाने के बारे में बिल्कुल भी मत सोचियेगा।

राजस्थान का भानगढ़ का किला राजस्थान की सबसे डरावनी जगहों में से एक भानगढ़ का किला किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भानगढ़ किले को राजस्थान में सबसे प्रेतवाधित स्थानों में गिना जाता है। भानगढ़ किला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहां जाने के बाद आपको यहां की वीरान और सुनसान जगह को देखकर ही रूह कांप उठेगी। भले ही यह राजस्थान के प्रेतवाधित स्थानों की सूची में सबसे आखिर में आता हो, लेकिन जब भी लोग किसी जगह की भूत की कहानी के बारे में बात करते हैं, तो यह निश्चित रूप से शीर्ष पर ही आता है। इस किले के बारे में कहा जाता है कि रात में इस किले पर भूतों का साया रहता है। किले में चिल्लाने, रोने की आवाज़े, चूड़ियों के खनकने की आवाज और कई तरह की परछाइयां दिखाई देती हैं।


राजस्थान की राणा कुम्भ महल
चित्तौड़गढ़ का राणा कुंभा पैलेस एक ऐसी जगह है जहां आपकी मुलाकात भूत से हो सकती है। राजस्थान में एक प्रेतवाधित किला, इस स्थान को राज्य की सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है। गुप्त कक्ष और यहां की महिलाओं की चीखें, आपको बेहद खौफ में डाल सकती हैं। इस किले के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां रानी पद्मावती ने अपनी रानियों के साथ मिलकर जौहर कर लिया था। आपको बता दें, दिल्ली के सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी ने इस महल पर हमला कर दिया था और खुद को खिलजी से बचने के लिए रानी पद्मिनी ने 700 महिला अनुयायियों के साथ आत्मदाह कर लिया। तभी से यहां इस तरह की घटनाएं देखी जाती हैं।

राजस्थान का अजेमेर-उदयपुर हाइवे अजमेर उदयपुर हाइवे को खून का रास्ता भी कहते हैं। इस रास्ते से गुजरने वाले लोगो ने यहां कई भूतिया गतिविधियों का अनुभव किया है। कई लोगों का कहना है कि इस रास्ते एक औरत दिखाई देती है, जो दुल्हन का लाल जोड़ा पहने होती है। जब बाल विवाह प्रचलित था तब एक 5 साल की एक लड़की की शादी 3 साल के लड़के से होनी था, लेकिन मां इस रिश्ते से खुश नहीं थी और वो मदद मांगने के लिए हाइवे की और चली लेकिन गई, लेकिन तेज रफ़्तार गाड़ी ने मां और बेटी दोनों को टक्कर मार दी और उन दोनों की वही मौत हो गई।

राजस्थान का नाहरगढ़ किला नाहरगढ़ किला राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास अरावली पहाड़ियों के किनारे स्थित है। ये पीले रंग का जयपुर में बेहद आकर्षक लगता है। लेकिन इस किले को राजस्थान की भूतिया जगहों में लिया जाता है। इस किले को सवाई राजा मान सिंह ने बनवाया था। इस किले को उन्होंने अपनी बेटियों के लिए बनवाया था, लेकिन उनकी मृत्यु होने के बाद ही ये किला भूतिया कहा जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में राजा का भूत है।

राजस्थान का कुलधरा गांव राजस्थान का सबसे डरावना गांव कुलधरा राजस्थान की एक ऐसी जगह है, जो करीब 170 साल से वीरान पड़ी हुई है। इस जगह पर कोई इंसान अकेले जाने पर डरता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां की लोगों ने एक दुष्ट दीवान से अपनी बेटियों को बचाने के लिए इसको खाली कर दिया था। तब से अब तक यह जगह बीरन पड़ी हुई है। दिल्ली की परनोमल एजेंसी द्वारा कुलधरा गांव में डिटेक्टर और भूत बॉक्स में यहां के मरे हुए लोगों की आवाज रिकॉर्ड की गई है और उन्होंने अपना नाम भी बताया है
आईए जानते हैं सिटी पैलेस उदयपुर राजस्थान के बारे में

पिछोला झील के किनारे,उदयपुर में सिटी पैलेस राजस्थान में सबसे बड़ा शाही परिसर माना जाता है। इस शानदार महल का निर्माण वर्ष 1559 में महाराणा उदय सिंह  ने करवाया था जहाँ महाराणा रहते थे और राज्य का संचालन करते थे। इसके बाद महल को उसके उत्तराधिकारियों द्वारा और भी शानदार बना दिया गया,जिसने इसमें कई संरचनाएँ जोड़ीं। पैलेस में अब महल, आंगन, मंडप, गलियारे, छतों, कमरे और लटकते उद्यान हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जो राजपूत कला और संस्कृति के कुछ बेहतरीन तत्वों को प्रदर्शित करता है – जिसमें रंगीन चित्रों से लेकर राजस्थानी महलों में पाए जाने वाले विशिष्ट स्थापत्य शामिल हैं।

अरावली की गोद में बसा सिटी पैलेस का ग्रेनाइट और संगमरमर का किनारा प्राकृतिक परिवेश के विपरीत है। रीगल महल की जटिल वास्तुकला मध्ययुगीन, यूरोपीय और साथ ही चीनी प्रभावों का एक मिश्रण है और कई गुंबदों, मेहराबों और मीनारों से अलंकृत है। सिटी पैलेस खुद हरे भरे बगीचे पर बसा हुआ है और देखने के लिए काफी आकर्षक है।

बता दें कि सिटी पैलेस में ‘गाइड’ ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ और जेम्स बॉन्ड फिल्म ‘ऑक्टोपसी’ जैसी कई फिल्मों की शूटिंग की गई है। स्थापत्य प्रतिभा और समृद्ध विरासत का एक सौम्य संगम है उदयपुर का सिटी पैलेस। तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको यात्रा कराते हैं झीलों के बीचों-बीच बसे सिटी पैलेस की।

सिटी पैलेस का इतिहास मेवाड़ राज्य से जुड़ा हुआ है,जो नागदा के इलाके के पास अपनी ऊंचाइयों तक पहुंच गया था। राज्य के संस्थापक गुहिल थे, जिन्होंने 568 ई. में महाराणा का प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद, उनके उत्तराधिकारी महाराणा उदय सिंह को 1537 में चित्तौड़ में मेवाड़ राज्य विरासत में मिला, लेकिन मुगलों के लिए राज्य का नियंत्रण खोने के खतरे ने उन्हें पिछोला झील के पास एक क्षेत्र में राजधानी स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया। जंगलों, झीलों और शक्तिशाली अरावली पहाड़ियों से घिरा, उदयपुर का नया शहर आक्रमणकारियों से सुरक्षित था और एक भोज की सलाह पर महल का निर्माण किया।


यहाँ बनाया जाने वाला पहला ढांचा ‘राय अंगन’ था, जहाँ से परिसर के निर्माण का काम पूरे जोश के साथ किया गया था और आखिरकार यह साल 1559 में पूरा हुआ। हालाँकि, तत्कालीन मौजूदा ढांचे में कई बदलाव किए गए थे, जो 400 साल की अवधि में पुरे हुए। उदय सिंह द्वितीय जैसे शासकों ने यहाँ कुछ संरचनाएँ जोड़ीं, जिनमें 11 छोटे अलग महल थे। महाराजा की मृत्यु के बाद, उनके बेटे महाराणा प्रताप ने उन्हें सफलता दिलाई लेकिन दुर्भाग्य से हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से हार गए। उदयपुर मुगलों से आगे निकल गया था लेकिन अकबर की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप के बेटे को लौटा दिया गया था।

मराठों द्वारा बढ़ते अपराधों ने महाराणा भीमसिंह को अपनी सुरक्षा स्वीकार करते हुए अंग्रेजों से संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता तक महल का नियंत्रण था और मेवाड़ साम्राज्य का 1949 में लोकतांत्रिक भारत में विलय कर दिया गया था।

महल में कई प्रवेश द्वार हैं,जिनकी शुरुआत बाईं ओर ‘बारी पोल’ से होती है, ‘त्रिपोलिया’,जो कि 1725 में बना एक तिहरा धनुषाकार द्वार है, केंद्र की ओर और दाईं ओर ‘हाथी पोल’ है। महल का मुख्य द्वार बारा पोल के माध्यम से है जो आपको पहले आंगन में स्वागत करता है। यह वह स्थान है जहाँ महाराणाओं का वजन सोने और चाँदी से किया जाता था और गहने गरीबों में बाँट दिए जाते थे। संगमरमर की मेहराबों का निर्माण यहाँ भी किया गया है और इसे तोरण पोल कहा जाता है।

अमर विलास एक ऊंचा बगीचा है जिसमें फव्वारे, मीनारें, छतों और एक चौकोर संगमरमर के टब से भरपूर एक अद्भुत टैरेस गार्डन है। महल के उच्चतम स्तर पर निर्मित, यह वह जगह थी जहां राजा अवकाश के समय यहां समय बिताते थे। अमर विलास बादी महल को भी रास्ता देता है।


फतेप्रकाश महल को अब एक होटल में बदल दिया गया है। क्रिस्टल की कुर्सियाँ, ड्रेसिंग टेबल, सोफा, टेबल, कुर्सियाँ और बिस्तर, क्रॉकरी, टेबल फव्वारे और गहना जड़ी कालीन जैसी दुर्लभ वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं। संयोग से, इनका इस्तेमाल कभी नहीं किया गया क्योंकि महाराणा सज्जन सिंह ने 1877 में इन दुर्लभ वस्तुओं का ऑर्डर दिया था, लेकिन यहां पहुंचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

यह तो आप सभी जानते होंगे कि सिटी पैलेस में बहुत सी रॉयल वेडिंग आयोजित हुई हैं। ये सभी वेडिंग सिटी पैलेस के जनाना महल में आयोजित की जाती है। यह महल उदयपुर सिटी पैलेस का ही एक प्रमुख हिस्सा है। इस महल को 1600 के दशक में बनाया गया था और यहां से अब तक अनगिनत शाही शादियां हो चुकी हैं। जनाना महल में 500 मेहमानों के बैठने की व्यवस्था है। रात के समय जेनाना महल मोमबत्तियों की रोशनी में चमक उठता है। देश के कई अरबपति रॉयल वेडिंग के लिए जेनाना महल की बुकिंग कराते हैं। यहां डेकोरेशन चार्जेस 6 लाख से शुरू होकर 35 लाख तक जाते हैं।

आईए जानते हैं फतेह सागर झील का इतिहास और घूमने की जानकारी

फतेह सागर झील उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक बहुत ही शानदार झील है जो इस शहर के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। अरावली पहाड़ियों से घिरे शहर उदयपुर में यह दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। यह झील अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है और अपने शांत वातावरण से यहां आने वाले पर्यटकों को एक अद्भुद शांति का एहसास कराती है। यहाँ मोती मगरी रोड पर पर्यटक गाड़ी से फतेह सागर झील की परिधि में आसानी से जा सकता है और यहां से पूरी झील के आकर्षक नजारे को देख सकता है। इस खास पर्यटन स्थल में दोपहर में शांत सुंदरता का आनंद लेने के बाद आप इसके अलवा बोटिंग भी कर सकते हैं और यहां पर्यटकों के लिए उपलब्ध अन्य पानी के खेलों में भी भाग ले सकते हैं।

फतेह सागर झील शहर की शहर की चार झीलों में से एक होने की वजह से यहाँ पर पर्यटकों की काफी भीड़ आती है। इस जगह पर लोग नीले पानी में बोटिंग का मजा लेने और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को देखने जरुर आते हैं। फतेह सागर झील की प्राकृतिक सुंदरता और आकर्षण ने इसको एक खास पर्यटन स्थल बना दिया है।

बता दें मूल रूप से फतेह सागर झील का निर्माण महाराणा जय सिंह ने वर्ष 1687 में किया था। हालांकि, लगभग 200 साल बाद 1888 में बाढ़ में नष्ट हो जाने के बाद महाराणा फतेह सिंह ने 1889 में कनॉट बांध बनाया, जिसने वर्तमान झील को आकार दिया और उन्हें सम्मानित करने के लिए इसका नाम बदलकर फतेह सागर झील रखा गया। फतेह सागर झील तीन अलग- अलग द्वीपों में विभाजित है। जिसमें से सबसे बड़ा द्वीप नेहरु पार्क कहलाता है। इस जगह पर नाव के आकार का एक रेस्टोरेंट और बच्चों के लिए एक छोटा चिड़ियाघर भी स्थित है जो एक पिकनिक स्पॉट के रूप में काफी लोकप्रिय है। इस झील के दूसरे द्वीप में एक सार्वजनिक पार्क है जिसमें वाटर-जेट फव्वारे लगे हुए हैं। तीसरे द्वीप में उदयपुर सौर वेधशाला स्थित है।

फतेह सागर झील में बोटिंग करे बिना आपकी यहां की यात्रा पूरी नहीं हो सकती इसलिए अगर आप इस झील को घूमने के लिए आ रहे हैं तो आपको यहाँ के खास वाटरस्पोर्ट्स जैसे झील के पानी बोटिंग का मजा जरुर लेना चाहि

शहर का खास पर्यटन स्थल होने की वजह से फतेह सागर झील की यात्रा करने के लिए हर तरह के पर्यटक आते हैं। इस प्राकृतिक जगह पर आकर आप यहाँ नाव से सैर कर सकते हैं और यहां दोपहर के समय बैठकर झील के पास स्थानीय पक्षियों को देख सकते हैं। आप यहां की फोटोग्राफी भी कर सकते हैं और अपने परिवार के लोगों के साथ सैर सपाटा भी कर सकते हैं। यहां झील के पास से सूर्यास्त को देखना काफी खास साबित हो सकता है। यहाँ कई संगीत कार्यक्रम और त्योहार भी आयोजित किये जाते हैं जिनमें शामिल होना बेहद यादगार साबित हो सकता है।

गर्मियों का मौसम फतेह सागर झील की यात्रा करने के लिए अनुकूल नहीं होता क्योंकि इस मौसम में उदयपुर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसलिए मार्च से लेकर जून के बीच यहां की यात्रा करने से आपको बचना चाहिए। मानसून का मौसम जलाई से शुरू होता है और सितंबर तक रहता है। इस मौसम में आप फतेह सागर झील के शानदार नजारों का मजा ले सकते हैं। मानसून के मौसम में उदयपुर का तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्यिस के बीच रहता है, इसलिए यह समय झील की यात्रा करने का एक आदर्श समय है। झील के पास जाने का सबसे अच्छा समय शाम का है क्योंकि इस दौरान आप यहां सूर्यास्त के लुभावने दृश्य को देख सकते हैं।