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जोधपुर में घूमने के लिए अनेक ऐसे स्थान हैं जो शहर के शाही इतिहास और संस्कृति में डूबे हैं,जहां सबसे ज्यादा पर्यटकों की भीड़ देखी जाती है

जोधपुर में घूमने के लिए अनेक ऐसे स्थान हैं जो शहर के शाही इतिहास और संस्कृति में डूबे हैं। जोधपुर, नीले रंग में रंगे मकानों से भरा पड़ा है। मध्यकालीन इमारतें और इनके बीच से निकलती घुमावदार गलियां जोधपुर के मस्तक पर विराजमान मेहरानगढ़ किले के तल पर बसी हैं। भव्य महलों से लेकर मध्यकालीन किलों तक, जोधपुर के शाही अतीत के बारे में जानने के इच्छुक लोगों को इन स्थानों पर जरूर जाना चाहिए। यहां हम आपको जोधपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों की जानकारी दे रहे हैं।

जोधपुर का मेहरानगढ़ का किला विशाल परिसर, दिवारों पर जटिल नक्काशी, बलुआ पत्थर के बने शाही हॉल और अंदर राजसी सजावट मेहरानगढ किले को देश का सबसे बेहतरीन किला बनाती है। किला चारो ओर विशाल दिवारों से घिरा हुआ है जो एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, यहां से आप पूरा खूबसूरत शहर देख सकते हैं। किले में मौजूद संग्रहालय आपको शानदार अतीत की कहानी बताएगा। संग्रहालय में शाही पालकी, तलवारें, चित्र और पुराने संगीत वाद्ययंत्र प्रदर्शन के लिए रखे हुए हैं। किले को छोड़ने से पहले किले की छत पर बने चोकेलाओ रेस्तरां में जरूर जाएं, यहां पारंपारिक राजस्थानी थाली मिलती है। यहां आप अक्टूबर से मार्च के बीच जा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान मौसम ठंडा और सुखद रहता है।


भोपाल का मंडोर गार्डन मंडोर गार्डन एक धरोहर स्थल है जो ऐतिहासिक होने के साथ शहर की प्राकृतिक खूबसूरती को भी बढ़ाता है। इस गार्डन को छठी शताब्दी में बनाया गया था। जोधपुर से पहले मंडोर, मारवाड़ की राजधानी थी। मंडोर गार्डन जोधपुर से उत्तर दिशा में 9 किलोमीटर दूर है। यहां एक सरकारी संग्रहालय और मंदिर है। पत्थर की बनी छत के कारण वास्तुकला का यह अदभुत नमूना लोगों को आकर्षित करता है इसके साथ ही जोधपुर के शासकों की गहरे लाल रंग की छतरियां और शानदार ग्रीन गार्डन भी है जिसमें पेड़ो-पौधों की अनगिनत प्रजातियां हैं। अक्टूबर से मार्च तक सर्दियों के महीनों में मंडोर गार्डन की यात्रा करने का सही समय है।

जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस जोधपुर शहर में ऊंचाई पर स्थित उम्मेद भवन पैलेस कला का एक अदभुत उदाहरण है। यह अभी भी शाही परिवार का निवास स्थान होने के साथ-साथ एक होटल भी है। इसका निर्माण 1928 से 1943 के बीच जोधपुर के राजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। उस समय इलाके में भयंकर सूखा पड़ा था। आम लोगों को रोजगार देने के लिए इस महल का निर्माण करवाया गया था। इसके आसपास 26 एकड़ का खूबसूरत बगीचा भी है। आज, इस सुनहरे पत्थरों से बने महल में 64 लग्ज़री कमरे और सुइट के साथ एक संग्रहालय भी है। यहां आप अक्टूबर से मार्च के बीच जा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान मौसम ठंडा और सुखद रहता है।

जोधपुर का शीश महल जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में शीश महल, जिसे जोधपुर के ग्लास पैलेस के रूप में जाना जाता है, ऐतिहासिक वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है जिसे छत से फर्श तक डिजाइनदार शीशे से सजाया गया है। इसे 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच महाराजा अजीत सिंह का शयन कक्ष कहा जाता है। छत पर लटके नीले, हरे, चांदी और सोने के आभूषणों के साथ-साथ भव्य यूरोपीय झूमर बाद में इस हॉल में जोड़े गए हैं।

जोधपुर का घंटाघर जोधपुर में घंटा घर शहर के केंद्र में एक शानदार घंटाघर है, जिसे महाराजा सरदार सिंह ने लगभग 200 साल पहले बनवाया था। टॉवर से शहर का शानदार मनोरम दृश्य प्रस्तुत होता है। इस भव्य संरचना के आस-पास स्थानीय लोग रहते हैं, साथ ही यहां बाजार भी लगती है, जहां से आप खरीदारी कर सकते हैं। जो लोग जोधपुर की संस्कृति और आसपास के बाजार में घूमना चाहते हैं, उनके लिए ये जगह परफेक्ट है। अक्टूबर से फरवरी तक का समय घंटाघर घूमने का अच्छा समय है।


जोधपुर का खेजड़ला किला खेजड़ला किला पुराने समय के शाही राजाओं और रानियों के शानदार महल के रूप में जाना जाता है। जोधपुर के महाराजा द्वारा बनाये गए इस 400 साल पुरानी इमारत को अब एक होटल में बदल दिया गया है। इसका निर्माण ग्रेनाइट पत्थर और लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। जो लोग भारत की सांस्कृतिक विरासत में दिलचस्पी रखते हैं, उनके लिए ये जगह बिल्कुल सही है। गर्मियों के मौसम में यात्रा करने की बजाए अगस्त, सितंबर, फरवरी और मार्च के महीनों के दौरान यात्रा करें।



आज हम आपको राजस्थान की सबसे डरावनी और भूतिया जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां जाने पर पर्यटकों की रूह कांप उठती है

राजस्थान में जैसे खूबसूरत जगहों की कमी नहीं है, उसी तरह से यहां भूतिया जगहों की भी कमी नहीं है। ये जगह कई डरावने किस्से और भूतों की कहानियों को समेटे हुए है। आज हम आपको राजस्थान की सबसे डरावनी और भूतिया जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां जाने पर पर्यटकों की रूह कांप उठती है और रात को तो आप यहां जाने के बारे में बिल्कुल भी मत सोचियेगा।

राजस्थान का भानगढ़ का किला राजस्थान की सबसे डरावनी जगहों में से एक भानगढ़ का किला किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भानगढ़ किले को राजस्थान में सबसे प्रेतवाधित स्थानों में गिना जाता है। भानगढ़ किला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहां जाने के बाद आपको यहां की वीरान और सुनसान जगह को देखकर ही रूह कांप उठेगी। भले ही यह राजस्थान के प्रेतवाधित स्थानों की सूची में सबसे आखिर में आता हो, लेकिन जब भी लोग किसी जगह की भूत की कहानी के बारे में बात करते हैं, तो यह निश्चित रूप से शीर्ष पर ही आता है। इस किले के बारे में कहा जाता है कि रात में इस किले पर भूतों का साया रहता है। किले में चिल्लाने, रोने की आवाज़े, चूड़ियों के खनकने की आवाज और कई तरह की परछाइयां दिखाई देती हैं।


राजस्थान की राणा कुम्भ महल
चित्तौड़गढ़ का राणा कुंभा पैलेस एक ऐसी जगह है जहां आपकी मुलाकात भूत से हो सकती है। राजस्थान में एक प्रेतवाधित किला, इस स्थान को राज्य की सबसे डरावनी जगहों में से एक माना जाता है। गुप्त कक्ष और यहां की महिलाओं की चीखें, आपको बेहद खौफ में डाल सकती हैं। इस किले के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां रानी पद्मावती ने अपनी रानियों के साथ मिलकर जौहर कर लिया था। आपको बता दें, दिल्ली के सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी ने इस महल पर हमला कर दिया था और खुद को खिलजी से बचने के लिए रानी पद्मिनी ने 700 महिला अनुयायियों के साथ आत्मदाह कर लिया। तभी से यहां इस तरह की घटनाएं देखी जाती हैं।

राजस्थान का अजेमेर-उदयपुर हाइवे अजमेर उदयपुर हाइवे को खून का रास्ता भी कहते हैं। इस रास्ते से गुजरने वाले लोगो ने यहां कई भूतिया गतिविधियों का अनुभव किया है। कई लोगों का कहना है कि इस रास्ते एक औरत दिखाई देती है, जो दुल्हन का लाल जोड़ा पहने होती है। जब बाल विवाह प्रचलित था तब एक 5 साल की एक लड़की की शादी 3 साल के लड़के से होनी था, लेकिन मां इस रिश्ते से खुश नहीं थी और वो मदद मांगने के लिए हाइवे की और चली लेकिन गई, लेकिन तेज रफ़्तार गाड़ी ने मां और बेटी दोनों को टक्कर मार दी और उन दोनों की वही मौत हो गई।

राजस्थान का नाहरगढ़ किला नाहरगढ़ किला राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास अरावली पहाड़ियों के किनारे स्थित है। ये पीले रंग का जयपुर में बेहद आकर्षक लगता है। लेकिन इस किले को राजस्थान की भूतिया जगहों में लिया जाता है। इस किले को सवाई राजा मान सिंह ने बनवाया था। इस किले को उन्होंने अपनी बेटियों के लिए बनवाया था, लेकिन उनकी मृत्यु होने के बाद ही ये किला भूतिया कहा जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में राजा का भूत है।

राजस्थान का कुलधरा गांव राजस्थान का सबसे डरावना गांव कुलधरा राजस्थान की एक ऐसी जगह है, जो करीब 170 साल से वीरान पड़ी हुई है। इस जगह पर कोई इंसान अकेले जाने पर डरता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां की लोगों ने एक दुष्ट दीवान से अपनी बेटियों को बचाने के लिए इसको खाली कर दिया था। तब से अब तक यह जगह बीरन पड़ी हुई है। दिल्ली की परनोमल एजेंसी द्वारा कुलधरा गांव में डिटेक्टर और भूत बॉक्स में यहां के मरे हुए लोगों की आवाज रिकॉर्ड की गई है और उन्होंने अपना नाम भी बताया है
आईए जानते हैं सिटी पैलेस उदयपुर राजस्थान के बारे में

पिछोला झील के किनारे,उदयपुर में सिटी पैलेस राजस्थान में सबसे बड़ा शाही परिसर माना जाता है। इस शानदार महल का निर्माण वर्ष 1559 में महाराणा उदय सिंह  ने करवाया था जहाँ महाराणा रहते थे और राज्य का संचालन करते थे। इसके बाद महल को उसके उत्तराधिकारियों द्वारा और भी शानदार बना दिया गया,जिसने इसमें कई संरचनाएँ जोड़ीं। पैलेस में अब महल, आंगन, मंडप, गलियारे, छतों, कमरे और लटकते उद्यान हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जो राजपूत कला और संस्कृति के कुछ बेहतरीन तत्वों को प्रदर्शित करता है – जिसमें रंगीन चित्रों से लेकर राजस्थानी महलों में पाए जाने वाले विशिष्ट स्थापत्य शामिल हैं।

अरावली की गोद में बसा सिटी पैलेस का ग्रेनाइट और संगमरमर का किनारा प्राकृतिक परिवेश के विपरीत है। रीगल महल की जटिल वास्तुकला मध्ययुगीन, यूरोपीय और साथ ही चीनी प्रभावों का एक मिश्रण है और कई गुंबदों, मेहराबों और मीनारों से अलंकृत है। सिटी पैलेस खुद हरे भरे बगीचे पर बसा हुआ है और देखने के लिए काफी आकर्षक है।

बता दें कि सिटी पैलेस में ‘गाइड’ ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ और जेम्स बॉन्ड फिल्म ‘ऑक्टोपसी’ जैसी कई फिल्मों की शूटिंग की गई है। स्थापत्य प्रतिभा और समृद्ध विरासत का एक सौम्य संगम है उदयपुर का सिटी पैलेस। तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको यात्रा कराते हैं झीलों के बीचों-बीच बसे सिटी पैलेस की।

सिटी पैलेस का इतिहास मेवाड़ राज्य से जुड़ा हुआ है,जो नागदा के इलाके के पास अपनी ऊंचाइयों तक पहुंच गया था। राज्य के संस्थापक गुहिल थे, जिन्होंने 568 ई. में महाराणा का प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद, उनके उत्तराधिकारी महाराणा उदय सिंह को 1537 में चित्तौड़ में मेवाड़ राज्य विरासत में मिला, लेकिन मुगलों के लिए राज्य का नियंत्रण खोने के खतरे ने उन्हें पिछोला झील के पास एक क्षेत्र में राजधानी स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया। जंगलों, झीलों और शक्तिशाली अरावली पहाड़ियों से घिरा, उदयपुर का नया शहर आक्रमणकारियों से सुरक्षित था और एक भोज की सलाह पर महल का निर्माण किया।


यहाँ बनाया जाने वाला पहला ढांचा ‘राय अंगन’ था, जहाँ से परिसर के निर्माण का काम पूरे जोश के साथ किया गया था और आखिरकार यह साल 1559 में पूरा हुआ। हालाँकि, तत्कालीन मौजूदा ढांचे में कई बदलाव किए गए थे, जो 400 साल की अवधि में पुरे हुए। उदय सिंह द्वितीय जैसे शासकों ने यहाँ कुछ संरचनाएँ जोड़ीं, जिनमें 11 छोटे अलग महल थे। महाराजा की मृत्यु के बाद, उनके बेटे महाराणा प्रताप ने उन्हें सफलता दिलाई लेकिन दुर्भाग्य से हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से हार गए। उदयपुर मुगलों से आगे निकल गया था लेकिन अकबर की मृत्यु के बाद महाराणा प्रताप के बेटे को लौटा दिया गया था।

मराठों द्वारा बढ़ते अपराधों ने महाराणा भीमसिंह को अपनी सुरक्षा स्वीकार करते हुए अंग्रेजों से संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता तक महल का नियंत्रण था और मेवाड़ साम्राज्य का 1949 में लोकतांत्रिक भारत में विलय कर दिया गया था।

महल में कई प्रवेश द्वार हैं,जिनकी शुरुआत बाईं ओर ‘बारी पोल’ से होती है, ‘त्रिपोलिया’,जो कि 1725 में बना एक तिहरा धनुषाकार द्वार है, केंद्र की ओर और दाईं ओर ‘हाथी पोल’ है। महल का मुख्य द्वार बारा पोल के माध्यम से है जो आपको पहले आंगन में स्वागत करता है। यह वह स्थान है जहाँ महाराणाओं का वजन सोने और चाँदी से किया जाता था और गहने गरीबों में बाँट दिए जाते थे। संगमरमर की मेहराबों का निर्माण यहाँ भी किया गया है और इसे तोरण पोल कहा जाता है।

अमर विलास एक ऊंचा बगीचा है जिसमें फव्वारे, मीनारें, छतों और एक चौकोर संगमरमर के टब से भरपूर एक अद्भुत टैरेस गार्डन है। महल के उच्चतम स्तर पर निर्मित, यह वह जगह थी जहां राजा अवकाश के समय यहां समय बिताते थे। अमर विलास बादी महल को भी रास्ता देता है।


फतेप्रकाश महल को अब एक होटल में बदल दिया गया है। क्रिस्टल की कुर्सियाँ, ड्रेसिंग टेबल, सोफा, टेबल, कुर्सियाँ और बिस्तर, क्रॉकरी, टेबल फव्वारे और गहना जड़ी कालीन जैसी दुर्लभ वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं। संयोग से, इनका इस्तेमाल कभी नहीं किया गया क्योंकि महाराणा सज्जन सिंह ने 1877 में इन दुर्लभ वस्तुओं का ऑर्डर दिया था, लेकिन यहां पहुंचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

यह तो आप सभी जानते होंगे कि सिटी पैलेस में बहुत सी रॉयल वेडिंग आयोजित हुई हैं। ये सभी वेडिंग सिटी पैलेस के जनाना महल में आयोजित की जाती है। यह महल उदयपुर सिटी पैलेस का ही एक प्रमुख हिस्सा है। इस महल को 1600 के दशक में बनाया गया था और यहां से अब तक अनगिनत शाही शादियां हो चुकी हैं। जनाना महल में 500 मेहमानों के बैठने की व्यवस्था है। रात के समय जेनाना महल मोमबत्तियों की रोशनी में चमक उठता है। देश के कई अरबपति रॉयल वेडिंग के लिए जेनाना महल की बुकिंग कराते हैं। यहां डेकोरेशन चार्जेस 6 लाख से शुरू होकर 35 लाख तक जाते हैं।

आईए जानते हैं फतेह सागर झील का इतिहास और घूमने की जानकारी

फतेह सागर झील उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक बहुत ही शानदार झील है जो इस शहर के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। अरावली पहाड़ियों से घिरे शहर उदयपुर में यह दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। यह झील अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है और अपने शांत वातावरण से यहां आने वाले पर्यटकों को एक अद्भुद शांति का एहसास कराती है। यहाँ मोती मगरी रोड पर पर्यटक गाड़ी से फतेह सागर झील की परिधि में आसानी से जा सकता है और यहां से पूरी झील के आकर्षक नजारे को देख सकता है। इस खास पर्यटन स्थल में दोपहर में शांत सुंदरता का आनंद लेने के बाद आप इसके अलवा बोटिंग भी कर सकते हैं और यहां पर्यटकों के लिए उपलब्ध अन्य पानी के खेलों में भी भाग ले सकते हैं।

फतेह सागर झील शहर की शहर की चार झीलों में से एक होने की वजह से यहाँ पर पर्यटकों की काफी भीड़ आती है। इस जगह पर लोग नीले पानी में बोटिंग का मजा लेने और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को देखने जरुर आते हैं। फतेह सागर झील की प्राकृतिक सुंदरता और आकर्षण ने इसको एक खास पर्यटन स्थल बना दिया है।

बता दें मूल रूप से फतेह सागर झील का निर्माण महाराणा जय सिंह ने वर्ष 1687 में किया था। हालांकि, लगभग 200 साल बाद 1888 में बाढ़ में नष्ट हो जाने के बाद महाराणा फतेह सिंह ने 1889 में कनॉट बांध बनाया, जिसने वर्तमान झील को आकार दिया और उन्हें सम्मानित करने के लिए इसका नाम बदलकर फतेह सागर झील रखा गया। फतेह सागर झील तीन अलग- अलग द्वीपों में विभाजित है। जिसमें से सबसे बड़ा द्वीप नेहरु पार्क कहलाता है। इस जगह पर नाव के आकार का एक रेस्टोरेंट और बच्चों के लिए एक छोटा चिड़ियाघर भी स्थित है जो एक पिकनिक स्पॉट के रूप में काफी लोकप्रिय है। इस झील के दूसरे द्वीप में एक सार्वजनिक पार्क है जिसमें वाटर-जेट फव्वारे लगे हुए हैं। तीसरे द्वीप में उदयपुर सौर वेधशाला स्थित है।

फतेह सागर झील में बोटिंग करे बिना आपकी यहां की यात्रा पूरी नहीं हो सकती इसलिए अगर आप इस झील को घूमने के लिए आ रहे हैं तो आपको यहाँ के खास वाटरस्पोर्ट्स जैसे झील के पानी बोटिंग का मजा जरुर लेना चाहि

शहर का खास पर्यटन स्थल होने की वजह से फतेह सागर झील की यात्रा करने के लिए हर तरह के पर्यटक आते हैं। इस प्राकृतिक जगह पर आकर आप यहाँ नाव से सैर कर सकते हैं और यहां दोपहर के समय बैठकर झील के पास स्थानीय पक्षियों को देख सकते हैं। आप यहां की फोटोग्राफी भी कर सकते हैं और अपने परिवार के लोगों के साथ सैर सपाटा भी कर सकते हैं। यहां झील के पास से सूर्यास्त को देखना काफी खास साबित हो सकता है। यहाँ कई संगीत कार्यक्रम और त्योहार भी आयोजित किये जाते हैं जिनमें शामिल होना बेहद यादगार साबित हो सकता है।

गर्मियों का मौसम फतेह सागर झील की यात्रा करने के लिए अनुकूल नहीं होता क्योंकि इस मौसम में उदयपुर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसलिए मार्च से लेकर जून के बीच यहां की यात्रा करने से आपको बचना चाहिए। मानसून का मौसम जलाई से शुरू होता है और सितंबर तक रहता है। इस मौसम में आप फतेह सागर झील के शानदार नजारों का मजा ले सकते हैं। मानसून के मौसम में उदयपुर का तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्यिस के बीच रहता है, इसलिए यह समय झील की यात्रा करने का एक आदर्श समय है। झील के पास जाने का सबसे अच्छा समय शाम का है क्योंकि इस दौरान आप यहां सूर्यास्त के लुभावने दृश्य को देख सकते हैं।

आईए हम जानते हैं की पिछोला झील का इतिहास और घूमने की पूरी जानकारी


पिछोला झील एक कृत्रिम झील है जो राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर केंद्र में स्थित है। यह झील शहर की सबसे बड़ी और पुरानी झीलों में से एक है। पिछोला झील यहाँ आने वाले लाखों पर्यटकों को अपनी शांति और सुंदरता वजह से आकर्षित करती है। बुलंद पहाड़ियों, विरासत इमारतों और स्नान घाटों से घिरी यह जगह शांति और प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। अगर घूमने के लिए जा रहे हैं तो यहाँ नाव की सवारी के बिना इस झील की यात्रा अधूरी है। शाम के दौरान यहाँ पर बोटिंग करना बेहद खास साबित हो सकता है क्योंकि यहां इस समय ऐसा लगता है कि मानो पूरी जगह सुनहरे रंग में डूबी हुई है।

यहाँ का मनमोहक दृश्य आपको एक अलग ही दुनिया में ले जायेगा और आपको रोमेंटिक बना देगा। इस खूबसूरत जगह पर आप अपने परिवार वालों के अलावा अपने दोस्तों के साथ भी यात्रा कर सकते हैं।

पिछोला झील का निर्माण 1362 ई में महाराणा लाखा के शासन काल के दौरान पिचू बंजारा ने करवाया था, जिसकी लंबाई 3 मील, चौड़ाई 2 मील और गहराई 30 फीट है। बाद में इस झील के आकर्षण से मंत्रमुग्ध होकर महाराणा उदय सिंह ने इस झील को बड़ा किया और इसके तट पर बाँध का निर्माण भी करवाया। पिछोला झील का निर्माण 1362 ई में महाराणा लाखा के शासन के दौरान अनाज परिवहन करने वाले एक जिप्सी आदिवासी पिच्छू बंजारा ने बनवाया था। पिछोला’ शब्द का मलतब होता है ‘पिछवाड़े’ है और झील का नाम पास के एक गांव ‘पिछोली’ के नाम पर रखा गया था। बता दें कि महाराणा उदय सिंह इस झील की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे, इसलिए उन्होंने पिछोला झील के किनारे उदयपुर शहर का निर्माण करवाया था। झील के परिवेश में महल, संगमरमर के मंदिर, हवेली, चबूतरा या स्नान घाट स्थित हैं जो कई सदियों पहले बनाये गए थे। इस झील के पास कुछ प्रसिद्ध पैलेस में जग निवास, मोहन मंदिर और जग मंदिर महल हैं।

बता दें कि अब जग निवास को एक हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है, जो जग द्वीप पर स्थित है। मोहन मंदिर झील के उत्तर-पूर्व में स्थित है जिसका निर्माण जगत सिंह ने 1628 और 1652 के बीच करवाया था। यहाँ एक अर्शी विलास द्वीप भी है जिसको उदयपुर के महाराजा ने सूर्यास्त का आनंद लेने के लिए बनाया गया था। झील के पास कई तरह के पक्षियों के लिए एक अभयारण्य भी है।

अगर आप पिछोला झील घूमने के लिए आ रहे हैं तो बता दें कि आपकी यह यात्रा पिछोला झील के निर्मंल पानी में नाव की सवारी करे बिना अधूरी रह जाएगी। यहाँ के पानी में नाव की सवारी करना आपको एक यादगार अनुभव दे सकता है। नाव सवारी के लिए आपको फीस देनी पड़ती है जिसका टिकट आप सिटी पैलेस से प्राप्त कर सकते हैं। व्यस्क के लिए नाव सवारी की एक टिकट की कीमत 400-600 रुपये और बच्चों के लिए 200 रूपये है। यहां नाव में लगभग आठ सीट होती है और यह छतरी के साथ कवर होती है। नाव की सवारी रामेश्वर घाट से शुरू होती है और यह आपको सबसे पहले लेक पैलेस होटल लेकर जाती है। फिर यह जगमंदिर के लिए आगे बढ़ती है जहाँ पर आप कुछ समय के लिए रुक सकते हैं और यहाँ के सुंदर दृश्यों को देख सकते हैं। नाव की सवारी के दौरान सूर्यास्त का नजारा बहुत ही मनोरम होता है। गर्मियों का मौसम पिछोला झील की यात्रा करने के लिए अनुकूल नहीं होता क्योंकि इस मौसम में उदयपुर में का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसलिए मार्च से लेकर जून के बीच इस पर्यटक स्थल की यात्रा करने से आपको बचना चाहिए। यहां मानसून का मौसम जलाई के महीने से शुरू होता है और सितंबर तक रहता है। इस मौसम में आप पिछोला झील के शानदार नजारों का मजा ले सकते हैं। मानसून के मौसम में उदयपुर का तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्यिस के बीच रहता है इसलिए यह समय झील की यात्रा करने का एक आदर्श समय है। झील के पास जाने का सबसे अच्छा समय शाम का है, क्योंकि इस दौरान आप यहां सूर्यास्त के लुभावने दृश्य को देख सकते हैं।

पिछोला झील राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित है। यहाँ आप ऑटोरिक्शा या टैक्सी लेकर झील तक आसानी से पहुँच सकते हैं।

अगर आप उदयपुर हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है जो शहर के केंद्र से लगभग 20 किलोमीटर दूर है और इस हवाई अड्डे से पिछोला झील की दूरी लगभग 24 किलोमीटर है। इस हवाई अड्डे के लिए आप दिल्ली, मुंबई, जयपुर और कोलकाता जैसे बड़े शहरों सहित भारत के सभी प्रमुख शहरों से फ्लाइट पकड़ सकते हैं। इस हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद आप पिछोला झील की यात्रा करने के लिए कैब या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं।

अगर आप उदयपुर की यात्रा सड़क मार्ग द्वारा करना चाहते हैं तो बता दें कि यह शहर बहुत अच्छी तरह रोड नेटवर्क द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, जयपुर, इंदौर, कोटा और अहमदाबाद से अच्छी तरह से जुड़ा है। बस से यात्रा के लिए भी आपके सामने कई विकल्प होते हैं। आप डीलक्स बसें, वातानुकूलित कोच और राज्य द्वारा संचालित बसों से आप उदयपुर आसानी से पहुंच सकते हैं। उदयपुर रेलवे स्टेशन से पिछोला झील की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है। उदयपुर रेल के विशाल नेटवर्क पर स्थित है जो इसे भारत के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, दिल्ली, कोलकाता, इंदौर, मुंबई और कोटा से जोड़ता है। उदयपुर के लिए कई ट्रेन प्रतिदिन चलती हैं। जब आप स्टेशन पहुंच जाते है तो आप एक टैक्सी या एक ऑटो-रिक्शा किराए पर ले सकते हैं और पिछोला झील की यात्रा कर सकते हैं।

कुंभलगढ़ किले के पास के 10 प्रमुख पर्यटन स्थल कौन-कौन से हैं आईए जानते हैं
कुंभलगढ़ किला राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास और आकर्षण की वजह से राजस्थान में सबसे ज्यादा घूमी जाने वाली जगहों में से एक हैं। वैसे तो कुंभलगढ़ किले में घूमने लायक कई जगह है लेकिन इस लेख में हम आपको कुंभलगढ़ किले के पास उदयपुर में घूमने की 10 अच्छी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं।

*बागोर की हवेली* बागोर की हवेली पिछोला झील के पास स्थित कुंभलगढ़ किले के पास के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। इस हवेली का निर्माण 18 वीं शताब्दी में मेवाड़ के शाही दरबार में मुख्यमंत्री अमीर चंद बड़वा द्वारा किया गया था। इसके बाद यह हवेली वर्ष 1878 में बागोर के महाराणा शक्ति सिंह का निवास स्थान बन गई जिसकी वजह से इसका नाम बागोर की हवेली पड़ा। इस हवेली को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है जो मेवाड़ की संस्कृति को प्रस्तुत करता है, यहां के एंटीक संग्रह में राजपूतों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कई सामान जैसे कि आभूषण बक्से, हाथ के पंखे, तांबे के बर्तन शामिल हैं। इस विशाल संरचना में 100 से अधिक कमरे हैं और यह अपनी वास्तुकला की अनूठी शैली के साथ शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। अगर आप कुंभलगढ़ किले या उदयपुर की यात्रा करने जा रहे हैं तो इस पर्यटन स्थल को देखने के लिए जरुर जाएँ।

*सहेलियों की बाड़ी*


सहेलियों की बाड़ी का निर्माण संग्राम सिंह II द्वारा रानी और उनकी सहेलियों को उपहार के रूप में करवाया गया था। राजा ने स्वयं इस बगीचे को डिजाइन किया और इसे एक आरामदायक जगह बनाने का प्रयास किया, जहां रानी अपने 48 सहेलियों के साथ आराम कर सकती थी। यह गार्डन आज भी कई मायनों में अपने उद्देश्य को पूरा करता है और शहर की भीड़ भाड़ से बचने के लिए लोग इस स्थान पर आते हैं। यह कुंभलगढ़ किले के पास और उदयपुर में घूमने वाली सबसे अच्छी जगहों में से एक है।

*मोती मगरी* मोती मगरी फतेह सागर झील की एक अनदेखी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जिसका निर्माण महाराणा प्रताप और उनके प्रिय घोड़े चेतक की स्मृति में एक श्रद्धांजलि करवाया गया है। यहां जगह आपको कई आकर्षक दृश्यों को देखने के लिए लुकआउट प्वाइंट प्रदान करता है। अगर आप महाराणा प्रताप से जुड़ी घटनाओं की आश्चर्यजनक विरासत को जानना चाहते हैं तो मोती मगरी की यात्रा जरुर करें। मोती मगरी फतेह कुंभलगढ़ किले के पास के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है जहां आपको एक बार जरुर जाना चाहिए।

*शिल्पग्राम*
शिल्पग्राम लगभग लगभग 70 एकड़ भूमि में फैला हुआ और अरावली पर्वतमाला की गोद में स्थित राजस्थान की पारंपरिक कला और शिल्प को बढ़ावा देने के लिए लिए स्थापित एक एक ग्रामीण कला और शिल्प परिसर है। यह स्थान कई कारीगरों को रोजगार देता है और कई सांस्कृतिक त्योहारों का एक केंद्र है, जो इस स्थान पर नियमित रूप से आयोजित किये जाते हैं। यहाँ का एक अन्य प्रमुख आकर्षण ओपन एयर एम्फीथिएटर है जो कई कला उत्सवों के लिए केंद्र का काम करता है। अगर आप ग्रामीण जीवन की सादगी का अनुभव करना चाहते हैं तो एक बार शिल्पग्राम को देखने के लिए जरुर जाएँ। अगर उदयपुर घूमने के लिए आ रहे हैं तो आपको एक बार अगर आप कुंभलगढ़ किले को देखने के लिए आये हैं तो आपको उदयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल शिल्पग्राम की सैर जरुर करना चाहिए।

*कार संग्रहालय*
विंटेज कार संग्रहालय उदयपुर कुंभलगढ़ किले के पास घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है, जो मोटर और कार में दिलचस्पी करने वाले लोगों के लिए स्वर्ग के सामान है। इस म्यूजियम का उद्घाटन फरवरी साल 2000 में किया गया था, जिसके बाद यह बहुत की लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया। इस म्यूजियम में कई पुरानी कारों जैसे 1934 के रोल्स-रॉयस फैंटम जो बॉन्ड फिल्म ऑक्टोपुसी में इस्तेमाल हुई थी और कई दुर्लभ रोल्स रॉयस मॉडल की कारों का घर है। यह स्थान आपको शहर की भीड़ से दूर लाकर एक शांतिपूर्ण वातावरण करवाता है।

*लेक पैलेस*


लेक पैलेस उदयपुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है इसके साथ ही कुंभलगढ़ किले के पास घूमने के सबसे अच्छे स्थानों में से एक है। यह एक प्रसिद्ध विवाह स्थल भी है जो उदयपुर शहर में वास्तुकला का एक चमत्कार है। लेक पैलेस लेक पिछोला झील के द्वीप पर स्थित है जिसका निर्माण महाराणा जगत सिंह द्वितीय द्वारा 1746 में करवाया गया था और 1960 के दशक में इसको एक लक्जरी होटल में बदल दिया गया। अब यह ताज लक्जरी रिसॉर्ट्स का एक हिस्सा है। इस शानदार होटल को कई हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में भी दिखाया गया है।

*जगदीश मंदिर*


जगदीश मंदिर उदयपुर के सिटी पैलेस परिसर में बना हुआ एक बहुत ही आकर्षक मंदिर है जो भगवान विष्णु के समर्पण में बनवाया गया है। इस मंदिर को लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर में सुंदर नक्काशी, कई आकर्षक मूर्तियाँ और यहाँ का शांति भरा माहौल पर्यटकों और तीर्थयात्रियों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जो भी इंसान एक बार इस मंदिर में आता वो इसकी सुंदरता, वास्तुकला और भव्यता को देखकर हर कोई इसकी तरफ आकर्षित हो जाता है। कुंभलगढ़ किले के पास के अन्य पर्यटक स्थलों को भी देखना चाहते हैं तो इस मंदिर के दर्शन के लिए भी जरुर जाना चाहिए।

*फतेह सागर झील*
फतेह सागर झील उदयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक बहुत ही आकर्षक झील है, जब भी आप कुंभलगढ़ किला घूमने के लिए आये हैं तो आपको इस झील को देखने के लिए भी अवश्य जाना चाहिए। यह झील उदयपुर की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है, जो अपनी सुंदरता से पर्यटकों को मोहित करती है। इस झील के पास का शांत वातावरण यात्रियों को एक अद्भुद शांति का एहसास करवाता है। फतेह सागर झील एक वर्ग किलोमीटर के में फैली हुई है जो तीन अलग अलग द्वीपों में विभाजित है, इसका सबसे बड़ा द्वीप नेहरु पार्क कहलाता है जिस पर एक रेस्टोरेंट और बच्चो के लिए एक छोटा चिड़ियाघर भी बना हुआ है, जो एक पिकनिक स्पॉट के रूप में भी काफी प्रसिद्ध है। इस झील के दूसरे द्वीप में एक सार्वजानिक पार्क है जिसमें वाटर-जेट फव्वारे लगे हुए हैं और तीसरे में उदयपुर सौर वेधशाला स्थित है। फतेह सागर झील शहर की खास झीलों में से एक होने की वजह से यहां पर्यटकों की काफी भीड़ रहती है। इस जगह पर लोग बोटिंग करना बेहद पसंद करते हैं।


*सिटी पैलेस*


सिटी पैलेस उदयपुर शहर में पिछोला लेक के किनारे स्थित एक शाही संरचना है जो उदयपुर शहर कुम्भगढ़ किले के पास घूमने की सबसे अच्छी जगहों में से एक है, सिटी पैलेस का निर्माण 1559 में महाराणा उदय सिंह ने करवाया था। इस महल में महाराजा रहते थे और उनके उत्तराधिकारियों ने इस महल को और भी शानदार बना दिया और इसमें कई संरचनाएं जोड़ी। इस पैलेस में अब कमरे, आंगन, मंडप, गलियारे और छत्त शामिल है। इस जगह पर एक संग्राहलय भी स्थित है जो राजपुत कला और संस्कृति को प्रदर्शित करता है।

*पिछोला झील*
पिछोला लेक एक मानव निर्मित झील है जिसको वाले एक आदिवासी पिच्छू बंजारा ने करवाया था। महाराणा उदय सिंह पिछोला झील की सुंदरता से मुग्ध थे इसलिए उन्होंने इस झील के किनारे उदयपुर शहर का निर्माण करवाया था। पिछोला झील उदयपुर की सबसे बड़ी और पुरानी झीलों में से एक है। यह झील यहां आने वाले यात्रियों को अपनी सुंदरता और वातावरण से आकर्षित करती है। बड़ी पहाड़ों, इमारतों और स्नान घाटों से घिरा यह स्थान शांतिप्रिय लोगों के लिए स्वर्ग के सामान है। उदयपुर के इस पर्यटन स्थल पर आप बोटिंग भी कर सकते हैं। शाम के समय यह जगह सुनहरे रंग में डूबी हुई दिखाई देती है। यहां का खूबसूरत दृश्य पर्यटकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। पिछोला लेक परिवार के लोगों और दोस्तों के साथ घूमने की एक बहुत अच्छी जगह है। अगर आप कुंभलगढ़ किले को देखने के लिए उदयपुर शहर आये हैं तो इस पर्यटन स्थल को देखने जरुर जाएँ।
कुंभलगढ़ किले के अंदर कई स्मारक स्थित हैं जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण स्मारकों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं

*गणेश मंदिर*

गणेश मंदिर को किले के अंदर बने सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है, जिसको 12 फीट (3.7 मीटर) के मंच पर बनाया गया है। इस किले के पूर्वी किनारे पर 1458 CE के दौरान निर्मित नील कंठ महादेव मंदिर स्थित है।

*वेदी मंदिर*
राणा कुंभा द्वारा निर्मित वेदी मंदिर हनुमान पोल के पास स्थित है, जो पश्चिम की ओर है। वेदी मंदिर एक तीन-मंजिला अष्टकोणीय जैन मंदिर है जिसमें छत्तीस स्तंभ हैं, जो राजसी छत का समर्थन करते हैं। बाद में इस मंदिर को महाराणा फतेह सिंह द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।

*पार्श्वनाथ मंदिर*

पार्श्व नाथ मंदिर (1513 के दौरान निर्मित) पूर्व की तरफ जैन मंदिर है और कुंभलगढ़ किले में बावन जैन मंदिर और गोलरा जैन मंदिर प्रमुख जैन मंदिर हैं।

*बावन देवी मंदिर*

बावन देवी मंदिर का नाम एक ही परिसर में 52 मंदिरों से निकला है। इस मंदिर में  केवल एक प्रवेश द्वार है। बावन मंदिरों में से दो बड़े आकार के मंदिर हैं जो केंद्र में स्थित हैं। बाकी 50 मंदिर छोटे आकार के हैं।

*कुंभ महल*

गडा पोल के करीब स्थित कुंभ महल राजपूत वास्तुकला के बेहतरीन संरचनाओं में से एक है। यह एक दो मंजिला इमारत है जिसमें एक सुंदर नीला दरबार है।

*बादल महल*

राणा फतेह सिंह (1885-1930 ईस्वी) द्वारा निर्मित यह कुंभलगढ़ किले का उच्चतम बिंदु है। इस महल तक पहुंचने के लिए संकरी सीढ़ियों से छत पर चढ़ना पड़ता है। यह दो मंजिला इमारत है जिसमें पेस्टल रंगों को चित्रित किया गया है।
उदयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कुंभलगढ़ किला, आईए जानते हैं इसके बारे में

कुंभलगढ़ किले के इतिहास में एक बहुत ही रोचक कहानी सामने आती है। जिसके अनुसार जब राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया तो उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था जिसके बाद उन्होंने इसके निर्माण का कार्य छोड़ देने का विचार किया। लेकिन एक दिन उन्हें एक पवित्र व्यक्ति से मिला जिसने उन्हें इस किले के निर्माण को न छोड़ने की सलाह दी और कहा कि एक दिन उसकी सारी समस्या दूर हो जाएगी। बशर्ते कोई भी पवित्र व्यक्ति स्वेच्छा से अपने जीवन का बलिदान कर दे।

यह सुनकर राजा निराश हो गया जिसके बाद उस पवित्र व्यक्ति ने अपना जीवन राजा को अर्पित कर दिया। उन व्यक्ति ने राजा से कुंभलगढ़ किले के प्रवेश द्वार का निर्माण करने के लिए कहा। उस व्यक्ति की सलाह के बाद राणा कुंभा ने वही किया जो उन्हें बताया गया था और वो इस राजसी किले के निर्माण में सफल रहे।

कुंभलगढ़ ने मेवाड़ और मारवाड़ के बीच अलग-अलग क्षेत्रों को चिह्नित किया और जब भी कोई हमला हुआ है तो इससे बचने के लिए इस जगह का इस्तेमाल किया गया था। राजकुमार उदय भी ने कुंभलगढ़ फोर्ट पर शासन किया और वे उदयपुर शहर के संस्थापक थे। यह किला अंबर के राजा मान सिंह, मारवाड़ के राजा उदय सिंह और गुजरात के मिर्जों के बीच अस्तित्व बना रहा। कुंभलगढ़ किले को उस स्थान के रूप में भी जाना जाता है जहां पर महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था और इस किले पर 1457 में गुजरात के अहमद शाह प्रथम ने हमला किया था। यहां के स्थनीय लोगों का मानना है कि किले में बाणमाता देवी मौजूद थी जो इस किले की रक्षा करती थी, जिनके मंदिर को अहमद शाह ने नष्ट कर दिया था। इसके बाद मोहम्मद खिलजी ने 1458-59 और 1467 में इस किले को हासिल करने के लिए कई प्रयास किये गए। लेकिन अकबर के सेनापति शंभाज खान ने 1576 में किले पर अधिकार हासिल कर लिया था। इसके बाद मराठों और भवनों के साथ मंदिरों पर भी कब्जा कर लिया गया था।

कुंभलगढ़ किला एक पहाड़ी पर स्थित है जो समुद्र तल से करीब 1100 मीटर ऊपर है। इस किले के गेट को राम गेट या राम पोल के नाम से भी जाना जाता है। इस किले में लगभग सात द्वार हैं और कुल 360 मंदिर हैं, जिनमें से 300 प्राचीन जैन और बाकी हिंदू मंदिर हैं। इस किले में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है जिसके अंदर एक विशाल शिवलिंग स्थापित है।

इस किले से थार रेगिस्तान में टिब्बा का एक सुंदर दृश्य भी देखा जा सकता। कुंभलगढ़ किले की दीवारें 36 किमी व्यास की हैं, जो इसे दुनिया की सबसे लंबी दीवारों में से एक बनाती है। इस किले की ललाट दीवारे काफी मोटी हैं जिनकी मोटाई 15 फीट है। इस किले के अंदर एक लाखोला टैंक मौजूद है जिसका निर्माण राणा लाखा ने 1382 और 1421 ईस्वी के बीच किया था।

कुंभलगढ़ किले की भव्य दीवार जो पूरे किले से गुजरती है, जो ‘द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना’ के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार माना जाता है। इसलिए इसे ‘द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। यह दीवार 36 किमी तक फैली हुई है और 15 मीटर चौड़ी है जो कि आठ घोड़ों के एक साथ चलने के लिए चलने पर्याप्त है।

यूं तो विश्व विरासत कुंभलगढ़ किसी पहचान का मोहताज नहीं है,क्षेत्र की इसी सुंदरता और ठंडक के चलते पर्यटक गर्मी के दौर में भी यहां खींचे चले आते
जनवरी के बाद क्षेत्र के पर्यटन में एकदम सुस्ती छा गई, जिसमें गत 15 मई के बाद फिर रौनक लौटती दिखाई दे रही है। वर्तमान में क्षेत्र की अधिकांश होटलें, नेशनल पार्क, दुर्ग, फिश प्वाइंट सहित अन्य पर्यटन स्थल पर्यटकों से गुलजार हैं। होटल व्यवसाइयों का मानना है कि, जनवरी और फऱवरी तो फिर भी ठीक था, लेकिन मार्च और अप्रेल तो बिल्कुल खाली गए हैं। इस दौरान पर्यटन बाजार वीरान सा रहा। हालांकि जहां ब्याव-शादी का अयोजन था वहां फिर भी चहल-पहल बनी रही। लेकिन, शेष जगहों पर सूनापन ही दिखाई दिया। यूं तो विश्व विरासत कुंभलगढ़ किसी पहचान का मोहताज नहीं है। लेकिन, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ ही कुंभलगढ़ क्षेत्र अरावली पर्वतमालाओं के बीच होने से इसका प्राकृतिक सौंदर्य भी लोगों को बरबस अपनी ओर खींचता है। क्षेत्र की इसी सुंदरता और ठंडक के चलते पर्यटक गर्मी के दौर में भी यहां खींचे चले आते हैं। वे यहां आने के बाद सिर्फ दुर्ग ही नहीं, बल्कि यहां के अन्य रमणीय स्थलों तक भी पहुंचते हैं। *यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल*

दुर्ग और दुर्ग परिसर में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर, दुनिया की दूसरी सबसे लंबी ऐतिहासिक दीवार के आलावा यहां परशुराम महादेव का प्राक्रतिक गुफ़ा मंदिर, बनास नदी का उद्गम स्थल वेरों का मठ, कुंभलगढ नेशनल पार्क, फिश प्वाइंट, वन विभाग की ओर से व्यू प्वाइंट पर लगाया गया स्पोट्र्स एडवेंचर जिप लाइन औरम्यूजियम आदि प्रमुख हैं। वैसे तो सालभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन, गत जनवरी से अप्रेल तक क्षेत्र के पर्यटन में सुस्ती कुछ ज्यादा रही, लेकिन इस माह से क्षेत्र में पर्यटकों की चहल-पहल बढऩे से क्षेत्र की होटलें भी पर्यटकों से गुलजार होने लगी है।

कम पैसों और कम समय में करे सिद्धार्थनगर की यात्रा

उत्तर प्रदेश के कुछ जिले पर्यटन के लिहाज से विश्व प्रसिद्ध हैं। यूपी में रहने वाले आगरा, वाराणसी, अयोध्या और मथुरा तो घूम ही लेते हैं लेकिन इस बार नेपाल सीमा पर बसे जिले सिद्धार्थ नगर की सैर कर सकते हैं। सिद्धार्थ नगर राजधानी लखनऊ से 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जिले का नाम महात्मा बुद्ध के बचपन के नाम सिद्धार्थ पर रखा गया है। सिद्धार्थ नगर का संबंध महात्मा बुद्ध से जुड़ा है। सिद्धार्थनगर में कई पर्यटन स्थल हैं, जो धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं।
सिद्धार्थनगर के सबसे सुंदर स्थलों में से एक शोहरतगढ़ पैलेस है। इतिहास पसंद लोग महल घूमने आ सकते हैं। यहां महल के राजा के साथ ही शाही परिवार से जुड़ी कई तस्वीरें देखने को मिल जाएंगी।

सिद्धार्थ नगर के जोगिया गांव में योगमाया मंदिर स्थित है। मान्यता है कि सोमवार और शुक्रवार को देवी योगमाया माता के दर्शन करने और प्रसाद चढ़ाने से क्या होती है। आसपास के लोग मुंडन संस्कार के लिए इस मंदिर में आते हैं और मंदिर परिसर में मौजूद पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। महामाया मंदिर के नाम से भी यह जगह प्रसिद्ध है, जो कि गौतम बुद्ध की मां के नाम रखा गया था।

सिद्धार्थनगर में बुद्ध विहार नाम का सुंदर पार्क है। यह नौगढ़ में स्थित है। इस पार्क में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित हैं। बच्चों के लिए झूले, सुंदर फूलों वाले पौधे छुट्टी का मजा बढ़ा देंगे।