उज्जैन की गढ़कालिका मंदिर, जहाँ होती है पूजा से भक्तों की मनोकामना पूरी, महाकवि कालिदास पर भी थी माँ की कृपा, तभी हुए थे जीवन में सफल
सनातन डेस्क
महाकाल कि धार्मिक नगरी उज्जैन का नाम आते हीं श्रद्धा से सर झुक जाता है. इस नगरी में शिव सक्षात् विराजमान हैं. उनकी जीवंत शक्तियां को लेकर लोगों में आस्था है जनके दर्शन मात्र से लोगों का कल्याण होता है. वहीँ इस नगरी में शिव के साथ माँ शक्ति भी विराजमान हैं.
इसी उज्जैन में महाकवि कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका का भी मंदिर है। वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है.
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। नवरात्रि के समय यहां पर तांत्रिक पूजा का बड़ा महत्व है. अष्टमी और नवमी पर यहां रात्रि में तंत्र मंत्र द्वारा पूजा-पाठ अर्चना की जाती है.
महाकवि कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वह इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा. कालिदास रचित 'श्यामला दंडक' महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है. ऐसा कहा जाता है कि महाकवि कालिदास के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था. यहां प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व मां कालिका की पूजा आराधना कर कलश यात्रा निकाली जाती है.
यहां विराजमान मूर्ति सतयुग के समय की मानी जाती है
नवरात्रि में गढ़ कालिका के मंदिर में मां कालिका के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी मूर्ति सतयुग काल के समय की है. बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है.
बाद यह कहा जाता है कि ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
लिंग पुराण में भी कथा है कि जिस समय रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर अयोध्या जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट ठहरे थे. इसी रात्रि को भगवती कालिका भक्ष्य की खोज में निकली हुईं इधर आ पहुंचीं और हनुमान को पकड़ने का प्रयत्न किया, परंतु हनुमान ने महान भीषण रूप धारण कर लिया.
तब देवी डरकर भागीं। उस समय अंश गालित होकर पड़ गया. जो अंश पड़ा रह गया, वही स्थान कालिका के नाम से विख्यात है.
इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है. इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है. खेत के बीच में गोरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है. गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है. इस घाट पर अनेक सती की मूर्तियां हैं। उज्जैन में जो सतियां हुई हैं; उनका स्मारक स्थापित है. नदी के उस पार उखरेश्वर नामक प्रसिद्ध श्मशान-स्थली है.
यहां पर नवरात्रि में लगने वाले मेले के अलावा भिन्न-भिन्न मौकों पर उत्सवों और यज्ञों का आयोजन होता रहता है. मां कालिका के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
कालिका माता से क्षम
अगर किसी मानसिक कलह, तनाव या परेशानी से जूझ रहे हैं तो शुक्रवार के दिन मां कालिका के मंदिर में जाकर उनसे अपने द्वारा किए गए सभी जाने-अनजाने पापों की क्षमा मांग लें और फिर कभी कोई बुरा कार्य नहीं करने का वादा कर लें. ध्यान रहे, वादा निभा सकते हों तो ही करें अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। यदि आपने ऐसा 5 शुक्रवार को कर लिया तो तुरंत ही आपके संकट दूर हो जाएंगे.
11 या 21 शुक्रवार कालिका के मंदिर जाएं और क्षमा मांगते हुए अपनी क्षमता अनुसार नारियल, हार-फूल चढ़ाकर प्रसाद बांटें.
माता कालिका की पूजा लाल कुमकुम, अक्षत, गुड़हल के लाल फूल और लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करके भी कर सकते हैं. भोग में हलवे या दूध से बनी मिठाइयों को भी चढ़ा सकते हैं.
अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं. अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं, तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है.
Jul 01 2024, 08:29