बकरा बाजार में सबसे महंगा सुल्तान: लंबे-चौड़े और खूबसूरत बकरे की अधिक डिमांड, 10 से 40 हजार रुपए तक कीमत
बेगुसराय: 17 जुलाई को ईद उल अजहा (बकरीद) को लेकर तैयारी तेज है। बकरे का बाजार सज गया है। कुर्बानी देने के लिए लोग बड़ी संख्या में बकरा खरीद रहे हैं। बेगूसराय में भी विभिन्न जगहों पर बकरा बिक रहा है। लेकिन सबसे बड़ा बाजार जिला मुख्यालय के कचहरी चौक मस्जिद के समीप लगता है। जहां जिले के विभिन्न हिस्से से 2 सौ से अधिक बकरा बिक्री के लिए आ रहा है। यहां 10 हजार से लेकर 40 हजार तक का बकरा उपलब्ध है।
सबसे बड़ा बकरा मटिहानी प्रखंड के रामपुर से सुल्तान आया है। सुल्तान को लेकर बेचने आए मो. सलीम ने बताया कि वह दो वर्षों से अपने इस बकरे को तैयार कर रहे थे। हम अपने बकरे को परिवार के सदस्य की तरह पालते हैं और हर एक साल इसी मार्केट में बेचने आते हैं। बकरे को हम चना, चोकर, अनाज से लेकर बादाम तक खिलाते हैं। जिससे बकरा काफी साफ-सुथरा और खूबसूरत रहता है।
स्थानीय मो. नूर आलम ने बताया कि कचहरी मस्जिद के समीप दशकों से बड़े पैमाने पर बकरे की बिक्री होती है। लंबे-चौड़े और चुस्त बकरे की अधिक डिमांड होती है। लोग अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार बकरा खरीद रहे हैं। यहां सभी धर्म-संप्रदाय के लोग दूर-दूर के गांव से अपना बकरा बेचने आते हैं। जिनका बकरा जितना अच्छा होता है, उनका दाम उतना ही बेहतर होता है। यहां सबसे अधिक 20 हजार के आसपास के बकरे की डिमांड होती है।
उन्होंने कहा कि ईद उल अजहा (बकरीद) पर बकरा की कुर्बानी दिए जाने का रिवाज है। जिसका बकरा खूबसूरत होता है, उसकी कुर्बानी अच्छी मानी जाती है, लोग वजन की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि खूबसूरती देखते हैं। अब तक यहां 2 सौ से अधिक बकरा की बिक्री हो चुकी है और 17 जून की सुबह तक बिक्री होगी। उन्होंने बताया कि बकरीद त्याग और कुर्बानी का प्रतीक पर्व है। इसमें सेवई के अलावा अन्य चीजों की भी काफी डिमांड है। मस्जिद और ईदगाह में नवाज की विशेष व्यवस्था की गई है।
बकरीद की नमाज के बाद कुर्बानी का सिलसिला होगा, जो जितना समर्थ है, वह उतने बड़े बकरे की कुर्बानी देगा। अपने रिश्तेदारों और गरीबों के बीच मांस का वितरण करेगा। जो कुर्बानी नहीं दे पाते हैं, वह सेवई अपने मित्रों को जरूर पड़ोसते हैं।
उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में एक हजरत इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम को औलाद नहीं थी, अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें बेटा हुआ। जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा।
कहा जाता है कि एक रात अल्लाह ने इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। वह अपने बेटे की ही कुर्बानी देने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और ऐसा करने से मना किया। शैतान ने इब्राहिम से पूछा कि वह अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं। इसे सुनकर इब्राहिम का मन डगमगा गया, लेकिन उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।
इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली, जिससे उन्हें दुख नहीं हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने आंख से अपनी पट्टी खोली तो बेटे को सही-सलामत सामने पाया और कुर्बानी वाले जगह पर भेड़ था, तभी से कुर्बानी दी जाने लगी है।
बेगूसराय से नोमानुल हक की रिपोर्ट
Jun 25 2024, 10:57