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Pakistani opposition leader Shibli Faraz inside Pakistani Parliament praises
Pakistani opposition leader Shibli Faraz inside Pakistani Parliament praises “enemy country” #India for smooth, free and fair elections in largest democracy in the world.
The Ukrainian ambassador for Czech Republic visited me along with the army personnel
कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार, पॉक्सो मामले में गैर जमानती वारंट जारी
#b_s_yediyurappa_bengaluru_court_issued_a_non_bailable_arrest_warrant_pocso_case
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ पॉस्को मामले में बेंगलुरु की एक अदालत ने गुरुवार 13 जून को गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया।
पूर्व सीएम के खिलाफ एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। मामला 2 फरवरी को बेंगलुरु का है। सुनवाई में शामिल नहीं होने पर बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ वारंट जारी करने के लिए पुलिस ने बुधवार को फास्ट ट्रैक कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। अब कोर्ट ने वारंट जारी कर दिया है।
दरअसल, कुछ महीने पहले ही एक 17 वर्षीय एक लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि इस साल दो फरवरी को येदियुरप्पा ने अपने आवास पर मुलाकात के दौरान उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था। पुलिस ने महिला के बयान के आधार पर येदियुरप्पा के खिलाफ पॉक्सो और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न) के तहत मुकदमा दर्ज किया था। मुकदमा दर्ज किए जाने के कुछ ही घंटे बाद कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक ने इस मामले को तत्काल प्रभाव से जांच के लिए सीआईडी को सौंप दिया था। एफआईआर दर्ज करवाने वाली महिला (पीड़ित की मां) की 26 मई को मौत हो गई थी। वह लंग कैंसर की मरीज थीं।
बीएस येदियुरप्पा ने मामले को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया है। उन्होंने मामले में निरोधक आदेश जारी करने का अनुरोध किया है। सुनवाई में शामिल होने के लिए नोटिस का जवाब देने वाले बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि वह सोमवार, 17 जून को सुनवाई में शामिल होंगे।
कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा ने अपने ऊपर लगे आरोपों पर सामने आकर जवाब दिया था और सभी आरोपों को खारिज किया था। 81 साल के हो चुके येदियुरप्पा ने कहा था कि वह इन आरोपों के मामले में कानूनी तरीके से लड़ेंगे। उन्होंने अदालत से प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया है।
जी-7 समिट में शिरकत करने के लिए पीएम मोदी इटली रवाना, इन मु्द्दों पर रहेगा फोकस
#pm_modi_leave_for_italy_to_attend_g_7_summit
दुनिया के सात सबसे अमीर मुल्कों के नेता इटली में इकट्ठा हो रहे हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 समिट में शिरकत करने के लिए गुरुवार शाम को इटली के लिए रवाना हो गए हैं।मोदी एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ 14 जून को होने वाले शिखर सम्मेलन के संपर्क सत्र में भाग लेने के लिए गुरुवार को इटली रवाना हुए। तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री का पदभार संभालने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। इटली के अपुलिया क्षेत्र के बोर्गो एग्नाजिया के आलीशान रिसॉर्ट में 13 से 15 जून तक आयोजित होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन में चल रहे युद्ध और गाजा में संघर्ष का मुद्दा छाया रहने की संभावना है।
पीएम 14 जून को आउटरीच सत्र में भाग लेंगे, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ऊर्जा, अफ्रीका और भूमध्य सागर पर केंद्रित होगा। वह इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे।जानकारी के अनुसार, पीएम मोदी जी-7 से इतर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात कर सकते हैं।
जी 7 यानी 'ग्रुप ऑफ़ सेवेन' दुनिया की तथाकथित सात 'अत्याधुनिक' अर्थव्यवस्थाओं की एक संस्था है जिसका ग्लोबल ट्रेड और अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनेंशियल सिस्टम पर दबदबा है। ये सात देश हैं - कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका। 1973 के ऊर्जा संकट के जवाब में आर्थिक और वित्तीय सहयोग के लिए एक मंच के रूप में जी-7 की स्थापना की गई थी। पहला शिखर सम्मेलन 1975 में फ्रांस में आयोजित किया गया था जिसमें फ्रांस, अमेरिका, यूके, जर्मनी, जापान और इटली शामिल थे। हालांकि, 1976 में कनाडा भी शामिल हो गया जोकि जी-7 का वर्तमान स्वरूप भी है।
1997 से 2013 के बीच G7 का विस्तार G8 में हुआ। रूस को भी 1998 में इस गुट में शामिल किया गया था और तब इसका नाम जी-8 हो गया था पर साल 2014 में रूस के क्राइमिया पर कब्ज़े के बाद उसे इस गुट से निकाल दिया गया। एक बड़ी इकॉनमी और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद चीन कभी भी इस गुट का हिस्सा नहीं रहा है। चीन में प्रति व्यक्ति आय इन सात देशों की तुलना में बहुत कम है इसलिए चीन को एक एडवांस इकॉनमी नहीं माना जाता। लेकिन चीन और अन्य विकासशील देश जी 20 समूह में हैं। यूरोपीय संघ भी जी-7 का हिस्सा नहीं है लेकिन उसके अधिकारी जी-7 के वार्षिक शिखर सम्मेलनों में शामिल होते हैं।
पूरे साल जी-7 देशों के मंत्री और अधिकारी बैठकें करते हैं, समझौते तैयार करते हैं और वैश्विक घटनाओं पर साझे वक्तव्य जारी करते हैं। इस साल जी-7 की अध्यक्षता इटली कर रहा है।हर साल 1 जनवरी से शुरू होकर कोई एक सदस्य देश बारी-बारी से समूह का नेतृत्व संभालता है। 1 जनवरी, 2024 को इटली ने जापान के बाद अध्यक्षता संभाली और 31 दिसंबर, 2024 को इसे कनाडा को सौंप देगा।
तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाए गए अजित डोभाल, पीके मिश्रा भी बने रहेंगे प्रधान सचिव
#pm_modi_ajit_doval_get_third_term_as_national_security_advisor
नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में अजित डोवल को फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है। अजित डोवल तीसरी बार भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाए गए हैं। मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से यह कयास लगाए जा रहे थे कि डोभाल को फिर से यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलेगी या कोई और इस पद पर आएगा। हालांकि, मोदी ने एक बार फिर से अपने पुराने तुरुप के इक्के पर ही भरोसा जताया है। बता दें कि रिटायर्ड आईएएस अधिकारी पीके मिश्रा को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है।
अजित डोभाल और पीके मिश्रा का कार्यकाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही पूरा होगा। इस बाबत एक लेटर जारी कर कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने अजित डोवल को एनएसए के रूप में नियुक्ति दी है। बता दें कि 10 जून से यह आदेश प्रभावी होगा।अजित डोवल की नियुक्ति को लेकर जारी किए गए लेटर में आगे कहा गया है कि उनकी नियुक्ति पीएम मोदी के कार्यकाल के साथ या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, समाप्त हो जाएगी। कार्यकाल के दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्ज दिया जाएगा। साथ ही उनकी नियुक्ति की शर्तें और नियम अलग से अधिसूचित किए जाएंगे।
2014 में सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने डोभाल को पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था। 2019 में उन्हें एक बार फिर से पांच साल के लिए इस पद पर नियुक्ति दी गई थी। ब नई सरकार में अजीत डोभाल को लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त किया गया है। 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को कूटनीतिक सोच और काउंटर टेरेरिज्म का विशेषज्ञ माना जाता है।
पिछले एक दशक में डोभाल ने मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। 2014 में, अजीत डोभाल ने इराक के तिकरित में एक अस्पताल में फंसी 46 भारतीय नर्सों की रिहाई सुनिश्चित की। वे एक शीर्ष-गुप्त मिशन पर गए और 25 जून, 2014 को इराक गए, ताकि जमीनी स्थिति को समझ सकें। 5 जुलाई 2014 को नर्सों को भारत वापस लाया गया। भारत की तरफ से सितंबर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और फरवरी 2019 में पाकिस्तान में सीमा पार बालाकोट हवाई हमले डोभाल की देखरेख में किए गए थे। उन्होंने डोकलाम गतिरोध को समाप्त करने में भी मदद की। इसके अलावा पूर्वोत्तर में उग्रवाद से निपटने के लिए निर्णायक कदम उठाए।
उधर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह जिम्मेदारी पीके मिश्रा ही संभालते रहेंगे। केंद्रीय कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने अजीत डोभाल और पीके मिश्रा की पुनर्नियुक्ति पर मुहर लगा दी है। आईएएस (सेवानिवृत्त) पीके मिश्रा को 10 जून 2024 से प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। पीके मिश्रा 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह पिछले 1 दशक से प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रधान सचिव के तौर पर काम कर रहे हैं।
पीके मिश्रा प्रशासनिक मामले और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में नियुक्तियों का काम देखेंगे। इसके अलावा अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य मामले और इंटेलिजेंस की जिम्मेदारी संभालेंगे।
आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ करने से लोगों में खुशी की लहर, आतिशबाजी कर बांटी मिठाई
उत्तराखंड सरकार के जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ करते ही ज्योतिर्मठ में भक्तों का तांता लग गया. इस दौरान मठ में मौजूद संतों और स्थानीय लोगों ने नाम परिवर्तन होने पर एक दूसरे को मिठाई खिलाई. जमकर आतिशबाजी की गई. इस दौरान लोग काफी खुश नजर आए.
जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ हुआ
इससे पूर्व कई बार स्थानीय लोग और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य जोशीमठ का नाम परिवर्तन के पक्ष में रहे हैं. इस सम्बंध में कई बार सरकार से मांग भी की गयी थी. अब लोगों की इस मांग को मानते हुए जोशीमठ का नाम परिवर्तित कर ज्योतिर्मठ कर दिया गया है. ज्योतिर्मठ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.
क्या है ज्योतिर्मठ का इतिहास
उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ की अपनी एक धार्मिक महत्ता है. आदि गुरु शंकराचार्य की तप स्थली के साथ-साथ यहां का इतिहास बहुत प्राचीन है. मान्यता है कि 8वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य इस क्षेत्र में आए थे. उन्होंने अमर कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी. इस तपस्या के फलस्वरूप उन्हें दिव्य ज्ञान ज्योति की प्राप्ति हुई थी. दिव्य ज्ञान ज्योति और ज्योतेश्वर महादेव की वजह से इस स्थान को ज्योतिर्मठ का नाम दिया गया. लेकिन बाद में यह जोशीमठ के नाम से ही प्रचलित हो गया. इसके बाद नाम बदलने की मांग की बात प्रमुखता से उठती रही. हालांकि इस पर अमल नहीं हो सका. अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनभावनाओं को देखते हुए जोशीमठ तहसील को ज्योतिर्मठ नाम देने का फैसला किया है.
आदि शंकराचार्य की तप स्थली रहा है ज्योतिर्मठ
इस दौरान ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के शिष्य मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी द्वारा बताया गया कि ज्योतिर्मठ का इतिहास 2500 साल पुराना है. जब ज्योतिर्मठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. ये मठ हिन्दू धर्म का पवित्र स्थल है. इसे पहले से ही ज्योतिर्मठ के नाम से ही जाना जाता रहा है. पूर्व में भी कई बार नाम परिवर्तन की मांग उठाई गई थी. इस सम्बंध में नगर पालिका में कई बार प्रस्ताव भी लाये गए थे. लेकिन ये कार्य नहीं हो सका. अब उत्तराखंड सरकार ने नाम परिवर्तन कर दिया है. सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है. इससे पूरे जोशीमठ में खुशी का माहौल है.
अमेरिका ने रूस पर चलाया प्रतिबंधों का चाबुक, 100 मिलियन डॉलर का कारोबार होगा प्रभावित
#america_expands_sanctions_against_russia
दुनिया के दो ताकतवर देशों में शुमार अमेरिका और रूस के बीच के रिश्ते जगजाहिर है। यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद से ही मेरिका लगातार रूस को कमजोर करने की कोशिश में लगा है।अमेरिका ने रूस पर लगे प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाते हुए 300 से अधिक नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिनका मकसद मोटे तौर पर चीन, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की समेत विभिन्न देशों के व्यक्तियों व कंपनियों को रूस की सहायता करने से रोकना है। अमेरिका ने यह कदम इटली में होने वाले जी7 शिखर सम्मेलन से पहले उठाया है।बुधवार को लगाए गए प्रतिबंधों में उन चीनी कंपनियों को निशाना बनाया गया है, जो युद्ध में रूस की मदद कर रही हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग और वित्त मंत्रालय ने बुधवार को रूस और दूसरे देशों में 300 से ज्यादा रूस से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाया है। अमेरिका ने इन व्यक्तियों और संस्थाओं पर रूस की ‘वॉर इकोनॉमी’ में शामिल होने का आरोप लगाया हैवित्त मंत्रालय के मुताबिक नए प्रतिबंध उन व्यक्तियों और कंपनियों पर लगाए गए हैं, जिनके ऊपर पर मॉस्को को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने का शक है। विदेश मंत्रालय की सेक्रेटरी जेनेट येलेन ने कहा कि नई कार्रवाई अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों और उपकरणों के लिए रूस के बचे रास्तों पर नकेल कसने के लिए की गई है। इस कार्रवाई में अन्य देशों पर उनकी निर्भरता भी शामिल है।
अमेरिकी विदेश विभाग के आर्थिक प्रतिबंध नीति एवं कार्यान्वयन निदेशक एरन फोर्सबर्ग ने ‘एसोसिएटेड प्रेस’ से कहा, “पुतिन एक बहुत ही सक्षम प्रतिद्वंद्वी हैं, जो सहयोगियों को खोजने के लिए तैयार हैं।” उन्होंने कहा कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं। बुधवार को लगाए गए प्रतिबंधों में रूस और उसके युद्ध आपूर्तिकर्ताओं के बीच 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक के व्यापार को निशाना बनाया गया है। इन 300 से अधिक नए प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य चीन, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की समेत विभिन्न देशों के व्यक्तियों व कंपनियों को रूस की सहायता करने से रोकना है।
अमेरिका के इस रुख के बाद क्रेमलिन ने कहा है कि चीन अमेरिका के ब्लैकमेल से डरेगा नहीं। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि अमेरिका को अपनी इन कार्रवाइयों का जवाब जरूर मिलेगा। इस बीच मॉस्को स्टॉक एक्सचेंज ने ऐलान किया कि वह नए अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से गुरुवार से अमेरिकी डॉलर और यूरो में ट्रेड नहीं करेगा।
बता दें कि अमेरिका युद्ध शुरू होने के बाद से चार हजार रूसी कंपनियों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा चुका है, जिसका मकसद रूस को मिलने वाले धन और हथियारों पर रोक लगाना है।
Jun 14 2024, 07:05