क्या सपा की राह पर चल रहा राजद संदर्भ : राजद सुप्रीमो पर सिद्धांतों से समझौता और परिवारवाद का आरोप
( इन तीनों का भविष्य तय करेगा लोकसभा चुनाव 2024)
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल दोनों परिवारवाद की पोषक पार्टियां रही हैं । सियासी दांव के माहिर खिलाड़ी रहे मुलायम सिंह यादव ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी (समाजवादी पार्टी) की स्थापना उन्होंने 1992 में की थी , उससे उनका पुत्र ही निकाल बाहर कर देगा।
मालूम हो कि एक जनवरी , 2017 को अखिलेश के चचेरे चाचा रामगोपाल यादव ने पार्टी का विशेष अधिवेशन बुलाकर मुलायम सिंह यादव को अपदस्थ कर अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था । इसके बाद अखिलेश यादव धीरे-धीरे मुलायम सिंह यादव के करीबियों का टिकट काटने लगे ।
पिता - पुत्र के बीच विवाद काफी महीनों से चल रहा था। अखिलेश यादव की बढ़ती महत्वाकांक्षा को देखते हुए मुलायम सिंह यादव ने आखिरकार 13 सितंबर, 2016 को अखिलेश को पार्टी से बाहर कर दिया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने चाचा राम गोपाल यादव के साथ मिलकर पार्टी पर कब्जा कर लिया ।
लोकसभा चुनाव में सियासी पारा हाई हो चुका है। बीजेपी और बसपा के बड़े नेता पार्टी और उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार - प्रसार कर रहे हैं । वहीं इन सबके बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं।
दूसरी ओर बिहार में राजद का भी हाल सपा की तरह ही लग रहा है । क्या तेजस्वी भी लालू प्रसाद को अपदस्थ कर खुद राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना चाहते हैं । लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव 24 को लेकर काफी सक्रिय देखे जा रहे हैं । वे पार्टी प्रत्याशी के चयन और सीटों के बंटवारे में भी सक्रिय रहे । अपने आवास में भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं ।
इंडिया गठबंधन की जहां-जहां रैलियां हुईं, लालू प्रसाद उनमें शामिल हुए और एनडीए के खिलाफ खूब बोले । मगर तेजस्वी यादव लालू प्रसाद को चुनाव प्रचार के लिए घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं। हो सकता है वे अस्वस्थ हों।
पर लालू प्रसाद आज भी खुद को किंग मेकर ही समझ रहे हैं। उस समय कांग्रेस की सरकार थी। मगर आज माहौल दूसरा है। इंडिया गठबंधन में सीटों की शेयरिंग भी लालू प्रसाद की मनमर्जी से हुई। इसी अहंकार में लालू प्रसाद ने कुछ ऐसे गलत फैसला ले लिये , जिससे उनके करीब हतप्रभ और नाराज दिख रहे हैं।
एक ताजा घटनाक्रम में तेज प्रताप यादव के करीबियों द्वारा एक नयी पार्टी "जनशक्ति जनता दल" के नाम से बनायी गयी है। यह कुछ सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने चुनाव आयोग से "बांसुरी" चुनाव चिन्ह के रूप में मांग की है। इस मौके पर तेज प्रताप यादव भी मौजूद थे।
और अंत में राजद के स्टार प्रचारकों में लालू प्रसाद,राबड़ी देवी , अब्दुल बारी सिद्दीकी के साथ तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के नाम शामिल हैं। लेकिन सिर्फ तेजस्वी यादव ही चुनावी सभा में शामिल हो रहे हैं। मालूम हो की 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी ने अकेले ही चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला था । उस चुनाव में राजद का क्या हश्र हुआ, यह सभी को मालूम है । आज पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता और नेताओं की अवहेलना हो रही है, जिससे उनमें बगावती तेवर नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर तेज प्रताप यादव के करीब ने नयी पार्टी का गठन किया है जो कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है।

( इन तीनों का भविष्य तय करेगा लोकसभा चुनाव 2024)

इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां जानतीं हैं कि अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये तो भ्रष्टाचारियों की नकेल कस जायेगी। इसी घबराहट में गठबंधन की ओर से उल्टे-सीधे तर्क दिये जा रहे हैं।
पर, आज देश की स्थितियां भिन्न हैं। आज देश में निरक्षरता की दर 35 फ़ीसदी ही रह गयी है । पर ये कैसी विडंबना है कि आजाद भारत में नेता पढ़े लिखे थे और जनता निरक्षर थी परंतु आज स्थितियां इसकी उलट हैं। आज राजनीति ऐसा क्षेत्र बन गयी है, जहां आपको किसी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। हम देख सकते हैं कि कितने अशिक्षित और गैर योग्य प्रत्याशी सत्ता प्राप्त कर इसका दुरुपयोग करते हैं। आज जेल में बंद सजायाफ्ता व्यक्ति चुनाव में खड़ा होता है और जीत जाता है। वहीं ऐसे व्यक्ति भी राजनीति से चिपके हुए हैं, जिनकी बात जनता समझ ही नहीं पाती। राजनीति आज काजल की कोठरी बन गयी है, मगर उसमें रहने वाले लोगों के कपड़े बेदाग रहते हैं।
2024 लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेता करीब 10 साल से ( 2014 से 2024 ) सिर्फ और सिर्फ मोदी विरोध में ही लगे रहे। वहीं इतना तो इंडिया गठबंधन के नेता भी समझ चुके हैं कि 2024 में भी मोदी को सत्ता से बेदखल करना नामुमकिन है । तभी तो एक सभा में ''आप" प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि 2024 में तो नहीं लेकिन 2029 में मोदी को हम जरूर हरायेंगे।
अब 15 अप्रैल तक तिहाड़ जेल में रहेंगे केजरीवाल। कोर्ट में उनके वकील ने ईडी की दलीलों का कोई विरोध नहीं किया। दूसरी ओर ईडी की पूछताछ में भी केजरीवाल सहयोग नहीं कर रहे हैं। वहीं उन्होंने अभी तक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी नहीं दिया है।
Apr 17 2024, 11:51
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