कृष्ण की नगरी मथुरा में है जाटों का दबदबा, जिसने उन्हें साधा, उसने जीता “रण”
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कृष्ण की नगरी कही जाती है “जाट लैण्ड”
मथुरा में 18 लाख से ज्यादा हैं मतदाता
मथुरा की राजनीति जाटों का दबदबा
सबसे अधिक साढ़े चार लाख जाट वोटर्स
जाट वोटरों के इर्दगिर्द बुने जाते रहे सियासी समीकरण
16 बार जाट जाति के प्रत्याशी ने जीता चुनाव
“जाट लैण्ड” में अब तक कोई स्थानीय जाट नेता उभरा
भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा को भी राजनीतिक रूप से अहम माना जाता है। धर्म नगरी होने की वजह से मथुरा जिले पर सभी की नजर रहती है। इन दिनों श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के कारण मथुरा सुर्खियों में बना हुआ है। ऐसे में स्वाभाविक हैं, इस सीट पर भी धर्म और जाति का प्रभाव चुनावों में अपना असर जरूर दिखाता है। ऐसे में सबसे पहले हम यह जानते हैं कि आखिर मथुरा की राजनीति में किन जातियों का दबदबा है। यहां के सियासतदानों की किस्मत कौन तय करते हैं। मथुरा लोकसभा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आती है। इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का दबदबा माना जाता है। कहा जाता है कि 2014 में इस सीट के जाट और मुस्लिम वोट अलग-अलग बंट गए थे, जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला।
मथुरा सीट के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें
मथुरा लोकसभा के अंतर्गत मथुरा जिले की पांच विधानसभा – छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा एवं बलदेव (सु.) आती हैं। मथुरा लोकसभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा में से चार विधानसभा सीटों पर वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है।
सीट का जातीय समीकरण
आंकड़ों के मुताबिक मथुरा में 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। मथुरा लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक साढ़े चार लाख जाट वोट है। ऐसे में हर राजनीतिक दल की नजर जाट वोट बैंक पर टिकी है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाता हैं। ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख के आसपास है। ठाकुर मतदाताओं की संख्या भी लगभग 3 लाख है। जाटव मतदाता करीब डेढ़ लाख हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी करीब डेढ़ लाख के बराबर है। वैश्य मतदाता की बात करें तो मथुरा लोकसभा सीट पर करीब एक लाख हैं। यादव मतदाताओं की संख्या करीब 70 हजार है। अन्य जातियों के करीब एक लाख वोटर हैं
अब तक 16 बार जाट जाति के प्रत्याशी ने चुनाव जीता
लोकसभा के लिए हुए चुनाव में मथुरा लोकसभा सीट से 16 बार जाट जाति का प्रत्याशी चुनाव जीता है। तीन बार मानवेन्द्र सिंह और एक बार चकलेश्वर सिंह चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे। ये दोनों ठाकुर जाति से आते हैं। 1991 में साक्षी महाराज भी मथुरा से चुनाव जीते हैं, जो लोधी राजपूत हैं। ब्राह्मण, वैश्य अथवा किसी दूसरी जाति के प्रत्याशी को कभी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने का सौभाग्य नहीं मिला है। यही वजह है कि मथुरा लोकसभा सीट को जाट लैण्ड कहा जाता है। यहां से चुनाव कोई भी पार्टी जीते लेकिन राजनीतिक दलों के समीकरण जाट वोटरों के इर्दगिर्द ही बुने जाते रहे हैं।
कोई स्थानीय जाट नेता नहीं उभरा
इतना सबकुछ होने के बाद भी लम्बे समय से यहां से कोई स्थानीय जाट नेता उभर कर नहीं आ पाया है। इसकी एक वजह यह भी रही है कि रालोद जाट वोटरों पर अपना हक समझता रहा है। रालोद अक्सर यह मानकार चलता रहा है कि उसे जाट वोट तो मिलेंगे ही इसलिए जातीय समीकरण साधने के लिए वह दूसरी जाति के प्रत्याशी पर दांव आजमाता रहा है। रालोद के पास दूसरा विकल्प अपने परिवार के किसी सदस्य को इस सीट पर लोकसभा पहुंचाने का रहा है। यही वजह है कि 2009 में जयंत चैधरी यहां से चुनाव लड़े और जीत कर लोकसभा पहुंचे। इससे पहले उनकी बुआ ज्ञानवती भी मथुरा लोकसभा सीट से भाग्य अजमा चुकी थीं लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई थी। चौधरी परिवार की काट निकालने के लिए 2014 में भाजपा ने हेमा मालिनी को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की पत्नी के नाते जाट होने का दावा किया और जीत कर लोकसभा पहुंची।
Apr 04 2024, 10:21