क्या लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा मुख्तार की मौत का असर? पूर्वांचल के चार-पांच जिलों में बोलती थी माफिया का तूती
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पूर्वांचल का दिल कहे जाने वाले मऊ जिले में सदर के पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी की गुरुवार देर शाम बांदा में हार्ट अटैक से मौत हो गई। वह बांदा जेल में बंद था और काफी बीमार था।मुख्तार अंसारी मऊ से रिकॉर्ड पांच बार विधायक रहा। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल को माफिया मुख्तार का गढ़ मना जाता रहा है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के लगभग दो दर्जन लोकसभा और 120 विधानसभा सीटों पर माफिया मुख्तार अंसारी का सीधा या आंशिक प्रभाव माना जाता रहा है। कभी पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और मऊ में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी। इन जिलों में मुख्तार अंसारी और इसके कुनबे का दबदबा माना जाता रहा। यही वजह थी कि कभी मुलायम तो कभी मायावती ने मुख्तार को अपनाया। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुख्तार की मौत का लोकसभा चुनाव पर असर पड़ेगा?
मुख्तार अंसारी का असर पूर्वांचल के चार-पांच जिलों पर बहुत मजबूती से है। मुख्तार अंसारी भले ही मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं, लेकिन सियासी तूती पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस और आजमगढ़ की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बोलती है। पूर्वांचल के इस इलाके की राजनीति में पिछले पच्चीस सालों से मुख्तार अंसारी अहम भूमिका अदा करते आ रहे हैं।
मऊ वह जगह है, जहां से मुख्तार लगातार पांच बार विधायक रहा। मुख्तार अंसारी 1996 में पहली बार बसपा से मऊ सदर से विधायक बना और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुख्तार ने मऊ को अपना गढ़ बनाया और यहां से लगातार पांच बार 2022 तक विधायक रहा। मुख्तार अंसारी ने 2002 में बसपा से टिकट न मिलने पर निर्दल मऊ सदर से चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीत हासिल की उसके बाद उसने अपनी खुद की पार्टी का गठन किया और कौमी एकता दल के नाम से चुनाव मैदान में उतरा और लगातार 2 बार जीत हासिल की।फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने एक बार फिर बसपा का दामन थामा और अपने पार्टी कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर लिया। इस चुनाव में भी उसे आसानी से जीत मिली। 2022 के विधानसभा चुनाव में उसने किन्हीं कारणों से चुनाव लड़ने से मना कर दिया और इस सीट पर अपने बेटे अब्बास अंसारी को मैदान में उतारा और मुख्तार की विरासत मऊ सदर पर अब्बास ने जीत हासिल कर ली।
मुख्तार अंसारी का अपराध जगत में ही नहीं सियासी गलियारों में भी सिक्का चलता था। साल 2014 के आम चुनावों में मोदी लहर का बोलबाला था। मगर इसके बावजूद यूपी की कुछ सीटों पर मुख्तार अंसारी का दबदबा कायम रहा। मोदी लहर भी मुख्तार के खौफ को कम ना कर सकी। ऐसे में मुख्तार की मौत पर सियासी दलों ने सरकार को घेरने की कवायद शुरू कर दी है। बसपा, आरजेडी, कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और एआईएमआईएम तक ने पांच बार के विधायक और बाहुबली मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। मायावती से लेकर अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी तक न्यायिक जांच की मांग उठा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो मुख्तार अंसारी की मौत के सहारे विपक्षी दलों की कोशिश मुस्लिम वोटों के विश्वास को जीतना है, क्योंकि मुख्तार मुस्लिम समुदाय से आते हैं। पूर्वांचल के कई जिलो में मुस्लिम वोटर काफी बड़ी संख्या में है। अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक मुस्लिम वोटों को सियासी संदेश देने के लिए ही मुख्तार की मौत पर सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार को घेर रहे. इसके बहाने यह बताने की कोशिश हो रही है कि मुख्तार अंसारी की मौत स्वाभाविक नहीं है बल्कि एक साजिश के तहत उन्हें मारा गया। ऐसा ही मुस्लिम समुदाय के लोग मान भी रहे हैं, जिसे समझते हुए विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं।
वहीं, मुख्तार अंसारी के मामले में विपक्ष के लिए रिवर्स पॉलराइजेशन का भी खतरा है।इसीलिए सपा, बसपा और आरजेडी तक मुख्तार अंसारी के परिवार के आरोपों को ही अपनी ढाल बना रहे हैं। मुख्तार की मौत से सहानुभूति का फायदा गाजीपुर और मऊ सीट पर मिल सकता है, लेकिन बाकी जगह पर चुनाव लाभ की बहुत ज्यादा संभावना नहीं है। मुख्तार अंसारी दो दशक से जेल में बंद है और योगी सरकार के आने के बाद कानून व्यवस्था मजबूत हुई है। इसीलिए मुख्तार अंसारी का सियासी ग्राफ बहुत ज्यादा बढ़ नहीं पाया और न ही उनके परिवार का।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में क्या बीजेपी मुख्तार की हुकूमत वाली यूपी की इन सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब होगी या मुख्तार की मौत के बाद भी गाजीपुर, जौनपुर और आजमगढ़ की सीट बीजेपी की पहुंच से दूर ही रहेंगी।
Mar 29 2024, 15:38