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संपादकीय: क्या 7 वीं की छात्रा मनीषा का पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के नाम मार्मिक पत्र उनके पॉजिटिव काम का इफेक्ट है......?

पलामू के सीएम ऑफ एक्सीलेंस स्कूल के 7 वीं क्लास की छात्रा मनीषा पांडेय ने पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन के नाम एक खत लिखी जो काफी वायरल हो रहा है। उसका वह खत काफी भावुक अंदाज़ में लिखा गया जिसमें उसने लिखा कि आप थे तो हम छात्राओं में हौसला था।उम्मीद थी कि हमलोग पढ़ लेंगें। हमने अब रोना छोड़ दिया है।

कहने को तो यह एक छात्रा की भावुकता में लिखा गया पत्र लगता है, लेकिन उसके साथ हीं इस पत्र से राज्य के बच्चों की एक पीड़ा भी झलकती है कि पिछले 24 सालों में कई सरकारें आयी।लेकिन राज्य में शिक्षा व्यवस्था सुधार के लिए कुछ नही किया गया।

अगर सच कहें तो राज्य सरकार के सरकारी स्कूलों में जो शिक्षा व्यवस्था थी उसपर उस स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी भरोसा नही था।वे भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं।जहां शिक्षा के नाम पर मोटी रकम की वसूली,तरह तरह के इवेंट के नाम पर अलग फीस ली जाती है।साथ ही फीस नही चुकता करने वाले बच्चों को जिस मानसिक प्रताड़ना से गुजड़ना पड़ता है उससे वे आत्म हत्या के लिए भी विवश हो जाते हैं।ऐसी कई घटनाएं सामने आई है।स्कूल संचालन करने वाले इतने रसूख वाले होते हैं जिनका इन घटनाओं के बाद बाल भी बांका नही होता है।

 मनीषा ने प्राइवेट स्कूल का दर्द महसुस किया है। उसने खत में लिखा भी किस तरह प्राइवेट स्कूल से सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस तक का सफर तय की।उसने किस तरह देखा कि उसकी कुछ दीदी ने प्राइवेट स्कूल का फीस नही चुका पाने के कारण स्कूल छोड़ दी।और इन पीड़ा से गुजर रही मनीषा जैसी छात्राओं में सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस से एक उम्मीद जगी।

हेमन्त सोरेन के फोटो स्कूलों से हटाए जाने पर पीड़ा महसूस की ओर संवेदनाओं से वशीभूत इस तरह के पत्र लिख कर अपनी पीड़ा व्यक्त की।

अब हम बात करें इस बार पूर्ण बहुमत से आये हेमन्त सरकार के काम काज की तो पिछले 24 सालों से आये सभी सरकारों से वे ठीक जा रहे थे।

 इसका दो कारण था। एक तो इतने दिनों से राजनीति के उठापटक और सियासत के मैदान में संघर्ष से एक परिपक्व राजनेता के रूप में उभर कर सामने आए थे। दूसरी बात मुख्यमंत्री बनने के बाद वे दिल्ली जाकर केजरीवाल मॉडल को भी समझने का प्रयास किया और शिक्षा , स्वास्थ्य जैसे बुनियादी व्यवस्था को बदलने के दिशा में काम करना शुरू किया।जिसके कारण यहां के प्रतिभाशाली बच्चों को उन्होंने सरकारी खर्च पर विदेश पढ़ने के लिए भेजा।सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस बनाकर एक मॉडल पर एक्सपेरिमेंट शुरू किया। और साथ हीं सरकार के विभिन्न योजनाओं को सीधे जनता तक पहुंचाने के लिए सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरुआत की।

हेमन्त सोरेन की सरकार ने राज्य की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने,स्थानीय उधोगो में 75 प्रतिशत स्थानीय युवाओं को रोजगार दिलाने,तथा रोजगार मेला लगाकर लोगों को ऑफर लेटर देकर उसे रोजगार उपलब्ध कराने जैसे कई पहल की सराहना की गई।

कुछ उनके करीबी,और कुछ अपनी राजनीति चमकाने में लगे लोगों ने1932 खतियान के नाम पर उन्हें सियासी पेंच में जरूर उलझाया, जिसको कई मौके पर हेमन्त सोरेन ने एक परिपक्व राजनेता के तरह अपने लोगों को समझाने का प्रयास भी किया कि यह व्यवहारिक नही है , आगे कानूनी पेंच में उलझ कर रह जाएगा,और ऐसा हुआ भी।

 इसके वावजूद हेमन्त सोरेन एक मैच्यूओर नेता के रूप में उभर रहे आदिवासी युवक के रूप में झारखंड का बागडोर संभाला और वे बेहतर कर रहे थे।लेकिन सियासी भवँर में उन्हें उलझा कर सत्ता से बेदखल कर दिया गया। जिसका पीड़ा मनीषा जैसे छात्रा को भी है।

इसीलिए हेमन्त सोरेन की गिरफ्तारी,और मुख्यमंत्री परिवर्तन के बाद चम्पई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद उक्त स्कूलों से पूर्व सीएम सोरेन की तस्वीर उतारी जा रही थी और उसके जगह चम्पई सोरेन का तस्वीर लगाया जा रहा था।

 7 वीं की वह अबोध छात्रा यह नही जानती है कि हेमंत को क्यों मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।वह यह भी नही जानती की उनकी गिरफ्तारी एक राजनीति का हिस्सा है या वास्तव में कथित घोटाले में उनकी कोई भूमिका है।

लेकिन वह सिर्फ यह जानती है कि उन्होंने यह स्कूल बनाया।और प्राइवेट स्कूल की फीस तथा अन्य खर्चों के बोझ तले दबे उनके अभिभावक इस स्कूल में भेज कर इस भार से मुक्त हुए।

 जिससे वे प्रभावित थे और उसके लिए यह असहनीय था। क्योंकि मनीषा ने देखी थी कि उसकी कई सहेली इस कारण पढ़ाई छोड़ दी थी।कि उसके अभिभावक प्राइवेट स्कूल के भार नही उठा पाए।

इसी लिए मनीषा ने अपने पत्र में लिखी कि आप के लिए अब मैं नही रोउंगी। लेकिन आप थे तो हौसला था। पढ़ाई की हिम्मत बढ़ी थी। हमारे जैसे लड़कियां पढ़ पा रही थी। लेकिन स्कूल से आप का तस्वीर उतारा जा रहा है इसका दर्द हमें है।

एक बच्ची की इस भावना से स्वाभाविक तौर पर हेमन्त सोरेन की लोकप्रियता और उनके काम से पॉजिटिव इम्पेक्ट झलकता है।

पिछले 24 साल हो गए झारखंड अलग राज्य गठन का।सरकार भाजपा की भी रही जेएमएम की भी रही।लेकिन सच पूछिए तो जिस उम्मीद और आकांक्षाओं को लेकर इस क्षेत्र को बिहार से अलग कर एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया था उस कसौटी पर कोई सरकार खड़ी नही उतरी।

पहली बार हेमंत सोरेन की सरकार कुछ खामियां को दरकिनार कर दें तो सही दिशा में जा रही थी।

फिलहाल मनीषा जैसे बच्ची के मार्मिक पत्र, आदिवासियों की सहानुभूति से हेमंत सोरेन का कद बरकरार है और अच्छे काम को जनता महसूस कर रही है।अब देखना है कि यह इफेक्ट अगले चुनाव में कितना काम आ सकता है....!

त्वरित टिप्पणी: भाजपा की रणनीति हुई फेल झारखंड में महागठबंधन की मज़बूत सरकार के साथ हेमंत के प्रति उमड़ा जनता में भी सहानुभूति

(विनोद आनंद)

एक बार झारखंड में भाजपा की रणनीति फिर फेल हो गयी। चम्पई सोरेन की सरकार 43 के जगह 47 विधायकों के समर्थन से एक बार फिर मजबूत सरकार बन गयी जबकि भाजपा अपने 31 विधयकों को भी नही जुटा पाई । उनके मात्र 29 विधायक हीं फ्लोर टेस्ट में उपस्थित हुए।

झारखंड के इस एकजुटता और भाजपा की रणनीति के फेल होने से भाजपा की फजीहत हो गयी है।उन पर आदिवासी विरोधी होने का ठप्पा भी लग गया है। साथ ही झारखंड में लोगो का भाजपा के प्रति आक्रोश और हेमन्त सोरेन के प्रति जनता में सहानुभूति से आने वाले 2024 के चुनाव में भाजपा को क्षति भी उठानी पर सकती है।

भाजपा को उम्मीद थी कि हेमंत सोरेन के गिरफ्तारी से झारखंड में  मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर अंतर्कलह शुरु हो जाएगा ,जेएमएम और कांग्रेस के विधायक टूट जाएंगे और झारखंड में 2024 के चुनाव से पहले भाजपा की सरकार बन जाएगी।

ऐसा भाजपा सांसद दीपक प्रकाश और निशिकांत दुबे दावा भी कर रहे थे। यह भी सच था कि जेएमएम में अंतर्कलह भी है,सीता सोरेन, लोविंन हेम्ब्रम,की नाराजगी से सियासी गलियारों में यह कयास लगाया जा रहा था कि कुछ खेला होगा।लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ और गठबंधन एकजूट रही। 

राजभवन को चम्पई सोरेन ने 43 विधायकों के समर्थन का लिस्ट सौंपा लेकिन फ्लोर टेस्ट में चम्पई सोरेन को साथ 47 विधायकों का समर्थन मिला।

आज यह पहली बार हुआ है कि एक मुख्यमंत्री के पद पर आसीन व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। वह भी उस आरोप में जिसका कोई साक्ष्य उसके विरोध में नही है।ईडी एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में काम नही कर रही है यह धारणा भी आम लोगों में बनती जा रही है।

 हेमन्त सोरेन ने गिरफ्तारी के बाद भी यह दावा किया है कि जिस जमीन घोटले के नाम पर उन्हें गिरफ्तार किया गया अगर ईडी या भाजपा की सरकार यह सावित कर दे कि इस में मेरी कहीं संलिप्ता है तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा।

 हेमन्त सोरेन का दावा है कि उस जमीन का मेरे नाम से कोई डीड नही है,कोई भी साक्ष्य नही है।ईडी को पूछताछ में हमने सब बता दिया है।लेकिन मेरी गिरफ्तारी के लिए जाल बुना गया।उसके लिए सुनियोजित साजिश की गई।

उन्होंने इस में राजभवन की भी भूमिका होने का आरोप लगाया।  

बहरहाल हेमन्त सोरेन की गिरफ्तारी, और ईडी की भूमिका,पर सवाल उठ रहे हैं। इस सियासी घटना के बाद बीजेपी को 2024 के चुनाव में कितना लाभ मिलेगा यह तो समय तय करेगा।लेकिन इतना जरूर है कि हेमंत सोरेन के प्रति जनता में सहानुभूति है। और भाजपा के प्रति आक्रोश।यहां भाजपा के चाणक्य का रणनीति फेल होता दिख रहा है।

सम्पादकीय:आइये हम लें संकल्प, गुजरे वर्ष से सबक लेकर बनाएंगे नए वर्ष को बेहतर.....!


विनोद आनंद

हम नई आशाओं के साथ वर्ष 2024 में प्रवेश कर रहे हैं। गुजरे साल पूरी दुनियां टकराव, हिंसा और हादसों से गुजरा, रूस- यूक्रेन युद्ध, इज़राइल- पिलिस्तीन युद्ध ने पुरे दुनियां को प्रभावित किया ,साथ हीं वैश्विक महामारी के बाद उभर रही दुनियां को फिर एक नई आशंकाओं से घेर लिया कि कहीं विश्व युद्ध की संकट से ना पूरी दुनिया को गुजरना पड़े।

मगर भारत के लिए 2023 आर्थिक-राजनीतिक स्थिरता की दिशा में बढ़ने का साल रहा है।हमारी अर्थव्यवस्था संभली और ऊंची विकास दर पाने की राह पर लौटी है । इसका श्रेय केंद्र सरकार को जाता है।

 2023 में हमारे देश में कुछ हादसे और घटनाएं हमारे लिए दुखद रहा। उड़ीसा रेल हादसा में कई लोग मारे गये साथ ही साथ हमें यह सबक दिया कि सरकार इन हादसों से सबक ले और सभी विभाग के प्रबंधकीय व्यवस्था को दुरुस्त करे।चाहे उत्तरखंड का टनल में मज़दूरों को फंसने की घटना हो या रेल दुर्घटना यह सारी घटनाएं हमारे चूक का प्रतिफल था।

 पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा के दौर में कई सीमाएं टूटी है। राजनेताओं ने मर्यादा भी खोया है। यह सही नही है।इस से हमारी सहिष्णुता और हमारा संस्कार जिसे आज तक सराहा गया है उस पर सवाल उठने लगेगी। साथ हीं सत्ता पक्ष या विपक्ष को कोई ऐसा काम नही करना चाहिये जिससे हमारी संसदीय व्यवस्था पर अंगुली उठे।

भारत का पवित्र लोकतंत्र दुनियां के लिए एक उदाहरण है। उसकी मर्यादा और सीमाओं का उलंघन नही हो इस बात का ख्याल हमेशा रखा जाना चाहिए।क्योंकि देश के लिए जितना जरूरी सरकार है उतना विपक्ष भी।दोनों की अपनी अपनी भूमिकाएं होती है। और पूरी शासन व्यवस्था को संतुलित करने के लिए दोनों एक दूसरे के पूरक हैं

वर्ष 2024 में हमे इन सब चीजों को सुधारने की जरूरत है। जिसपर राजनेताओं को ध्यान देना चाहिए । साथ हीं हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि देश का विकास और आमजन की बेहतरी हमारे किसी कृत से प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करना सबका कर्तव्य है। 

यह गर्व की बात है कि हम दुनियां के पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। तेज़ी से बढ़ते अर्थव्यवस्था के इस दौर में यह भी सच है कि हमारे देश में बेरोजगारी बढ़ी है।हम गरीबी और भुखमरी के इंडेक्स में भी आगे हैं।हमारे ऊपर कर्ज़ का भार भी बढ़ा है। और आज भी लोगों को सस्ते अनाज देकर सरकार जिंदा रखने की जरूरत पड़ रही है।हमें इससे निकलना है।कैसे और क्यों ..? इस पर सरकार को मंथन करने की जरूरत है।

अब 2024 की बात करें तो हम एक संकल्प के साथ इस वर्ष को बेहतर बानाने की योजना कर लें।शांति सद्भाव और आपसी भाईचारा के साथ देश के विकास और अपनी स्थिति को सुदृढ बनाने के दिशा में हमारी कोशिश हो।गुजरे वर्ष से सबक लेने और नए वर्ष को बेहतर बनाने बनाने की कोशिश हीं हमे सफलता के मुकाम पर पहुंचा सकती है।

नववर्ष पर स्ट्रीटबज़्ज़ के पाठक,विज्ञापन दाता, अपने सहकर्मी सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं।साथ हीं हमारी कोशिश होगी कि स्ट्रीटबज़्ज़ आप के लिए तात्कालिक सूचनाओं को आप तक पहुंचा सके, आप के विचार और आपके आवाज को एक बेहतर मंच प्रदान कर सके।इन्ही आकांक्षाओं के साथ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर जरूरत है स्वास्थ्य विभाग को सजग होने और ठोस नियम बनाने की,नही तो यह बनेगा तबाही का कारण

   -:विनोद आनंद


चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आनेवाले दिनों में एक बहुत बड़ी संकट आनेवाली है। अगर हम आज सजग नही हुए,सरकार और चिकित्सक इस मामले को लेकर गंभीर नही हुए, और जनता को भी जागरूक नही किया गया, तो इस संकट से बहुत बड़ी तबाही हो सकती है। 

क्योंकि जिस तरह लोगों के  शरीर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिसेस्टेंस विकसित हो रहा है उससे साधारण इंफेक्टशन से भी लोगों की मौत हो सकती है। 

क्योंकि इससे शरीर में प्रवेश किये हुए बैक्टेरिया इतना मजबूत हो जाएगा कि ।एंटिवयेटिक दवाएं बेअसर हो जाएगी । साधारण इंफेक्शन से भी लोगों की मौत हो जाएगी।इस लिए इन दवाओं के उपयोग और डोज को लेकर ठोस नियम बनाने की जरुरत है।

आज हम विज्ञान की खोज और नवीन तकनीकी से आगे बढ़ने की कवायद में जितना व्यस्त हो जाएं लेकिन प्रकृति के कुछ ठोस सिद्धान्त है उसका उलघन नही किया जा सकता है। मानव शरीर की सरंचना भी प्रकृति ने अपने अनुकूल किया है।उसके अंदर भी अपनी इम्युनिटी है किसी बीमारी और बैक्टेरिया से लड़ने का। लेकिन आज जैसे चिकित्सक अंधाधुंध एन्टीवायोटिक् का उपयोग कर रहे हैं और जरूरत से ज्यादा एन्टीवायोटिक किसी मर्ज में दे रहे हैं, केमिस्ट के लिए भी कोई ठोस नियम नही है, बिना प्रिस्क्रिप्शन के धड़ल्ले से एन्टीवायोटिक बेचा जा रहा है। लोग भी बिना चिकित्सक के सलाह के एंटीवायोटिक का उपयोग कर रहे हैं। यह प्रकृति द्वारा प्रदत मानव शरीर पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।और इसका असर दिखना शुरू हो गया है।
 
इसके साथ हीं साथ चिकन या अन्य फशुओं के खाद्य पदार्थों में एन्टीवायोटिक मोल्युकूल का उपयोग किया जा रहा है,और हम उस मीट, दूध का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं इसके प्ररिणाम स्वरूप हमारे शरीर में सुपरबग्ग डेवलप हो रहा है और हमारे शरीर के अंदर जाने वाले कोई भी वायरस इतना मजबूत हो रहा है कि कोई भी एन्टीवायोटिक दवा किसी वायरस से लड़ने के लिए बेअसर हो जाएगी।

इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संघठन का चौकाने वाला रिपोर्ट भी सामने आया है। एक अनुमान के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल रेजिसेस्टेंस यानी दवाओं के बेअसर होने की वजह से हर साल दुनिया में 10 लाख से ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं। 

दक्षिण एशियाई देशों में 4 लाखx लोगों की मौत ऐसे खतरनाक इंफेक्शन से हो रही है जिन पर कोई दवा असर नहीं कर रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आंकलन किया है कि जिस स्तर पर आज समस्या नजर आ रही है। अगर इन परिस्थियों को हल नहीं किया गया तो 2050 तक दुनिया में एक करोड़ लोग इस वजह से मारे जाएंगे क्योंकि उन पर दवाएं असर नहीं कर रही होंगी। आज एंटीमाइक्रोबियल रेजिसेस्टेंस इंसान की जान पर बने दस सबसे बड़े खतरों में शामिल है।

वर्ल्ड बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने की वजह से अगले पच्चीस सालों में ग्लोबल एक्सपोर्ट में 3.8% की कमी आ सकती है, हर साल पैदा होने वाला लाइव स्टॉक जैसे मीट और डेयरी प्रॉडक्टस सालाना 7.5% की दर से कम हो सकते हैं और स्वास्थ्य पर आने वाले खर्च में 1 ट्रिलियन डॉलर की बढ़त हो जाएगी। एंटीमाइक्रोबियल रेजिसेस्टेंस का मतलब है इंफेक्शन से लड़ने वाली ज़रुरी दवाओं का बेअसर हो जाना है।

इन दवाओं को बेअसर होने के पीछे जो कारण है वह यह है कि सर्जरी के दौरान होने वाले इंफेक्शन, कैंसर के इलाज के दौरान चल रही कीमोथेरेपी से होने वाले इंफेक्शन को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की एक तय डोज दी जाती है लेकिन लंबे समय तक बार बार इन दवाओं को इस्तेमाल करते रहने से इन दवाओं का असर कम होने लगता है।

इस मामले में भारत के बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स ने भी एनालिसिस किया है जिसके अनुसार देश भर के आईसीयू में भर्ती गंभीर इंफेक्शन के शिकार कई मरीजों पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही है। ऐसे मरीजों के बेमौत मारे जाने का खतरा बढ़ गया है।

एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होते चले जाने का हाल ये हो गया है कि सबसे लेटेस्ट दवा जिसे विश्व स्वास्थय संगठन ने रिजर्व कैटेगरी में रखा है वो भी अब कई बार काम नहीं कर रही। रिजर्व कैटेगरी की दवा का मतलब होता है कि इसे चुनिंदा मौकों पर ही इस्तेमाल किया जाए।

लेकिन देखा गया कि सबसे असरदार एंटीबायोटिक भी केवल 20 परसेंट मामलों में ही कारगर पाए जा रहे हैं। यानी बाकी बचे 60 से 80 परसेंट मरीज खतरे में हैं और उनकी जान जा सकती है। इसकी वजह धड़ल्ले से मरीजों और डॉक्टरों का मनमर्जी से एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना है। 

भारत की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने पिछले वर्ष जनवरी से लेकर दिसंबर तक देश के 21 अस्पतालों से डाटा इकट्ठा किया। इन अस्पतालों में आईसीयू में भर्ती मरीजों के 1 लाख सैंपल्स इकट्ठे किए गए। इस जांच में 1747 तरह के इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया मिले। इन सभी में दो बैक्टीरिया - ई कोलाई बैक्टीरिया और क्लैबसेला निमोनिया के बैक्टीरिया सबसे ज्यादा जिद्दी हो चुके हैं। इन बैक्टीरिया के शिकार मरीजों पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही थी। 

2017 में ई कोलाई बैक्टीरिया के शिकार 10 में से 8 मरीजों पर दवाओं ने काम किया था लेकिन 2022 में 10 में से केवल 6 मरीजों पर दवाओं ने काम किया। 2017 में क्लैबसेला निमोनिया इंफेक्शन के शिकार 10 में से 6 मरीजों पर दवाओं ने काम किया लेकिन 2022 में 10 में से केवल 4 मरीजों पर दवाएं काम कर रही थी। इंफेक्शन मरीजों के ब्लड तक पहुंच कर उन्हें बीमार से और बीमार कर रहा है।

एंटीबायोटिक दवाओं के काम ना करने की समस्या केवल अस्पताल में भर्ती गंभीर मरीजों तक सीमित नहीं है। पेट खराब होने के मामलों में ली जाने वाली कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं भी मरीजों पर बेअसर साबित हो रही हैं।

स्थिति तो यह पैदा हो गयी है कि बैक्टेरिया फैलने के मामले में अस्पताल भी कमजोर इम्युनिटी वालों के लिए सुरक्षित नही है। आईसीयू में, मरीज को लगाए जाने वाले कैथेटर, कैन्युला और दूसरे डिवाइस में भी कई बैक्टीरिया और जीवाणु पनपते रहते हैं। ये इंफेक्शन पहले से बीमार और कमजोर इम्युनिटी वाले मरीजों को और बीमार करने लगते हैं। लंबे समय तक आईसीयू में भर्ती मरीजों को ऐसे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। 

अब ये इंफेक्शन खून में पहुंच रहे हैं। खून में पहुंचने का मतलब है कि पूरे शरीर में सेप्सिस होने का खतरा - इस कंडीशन के गंभीर होने पर धीरे धीरे मरीज के अंग काम करना बंद करने लगते हैं। जिसे मल्टी ऑर्गन फेल्यर कहा जाता है। कैसे हो सकता है एंटीबायोटिक रेजिसटेंस की समस्या का हल?

अस्पतालों और डॉक्टरों के लिए आईसीएमआर की गाइडलाइंस हैं कि किन मामलों में एंटीबायोटिक दवाएं इस्तेमाल की जाएं और किन मामलों में नहीं, लेकिन इनका पालन नहीं किया जाता। पोल्ट्री यानी मुर्गे, बकरे और गाय भैंस से मिलने वाले मीट, दूध और अंडों के जरिए एंटीबायोटिक अंजाने में लोगों को मिल जाते हैं। अस्पताल और इंडस्ट्री के वेस्ट के जरिए ग्राउंड वॉटर में एंटीबायोटिक घुलने की पुष्टि भी कई रिसर्च में हो चुकी है।

खुद मरीजों के केमिस्ट से सीधे एंटीबायोटिक दवाएं लेकर खा लेने और आधा कोर्स करके उसे छोड़ देने की वजह से भी ये दवाएं बेअसर हो रही हैं। अस्पतालों में इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया जिन्हें सुपरबग्स का नाम भी दिया गया है, उन पर लगाम लगाने के लिए इंफेक्शन कंट्रोल पर भी काम किया जा रहा है। हालांकि पूरे देश के छोटे बड़े अस्पतालों में उस नेटवर्क को तैयार होने और पूरी तरह से काम करने में कई साल लग सकते हैं। इसी प्रत्येक देश की सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस मामले में कुछ ठोस नियम और गाइड लाइन जारी करने की जरूरत है।
सम्पादकीय:- क्यों दो बक्त के रोटी के लिए बिहार के लोगों को राज्य से बाहर करना पड़ता है पलायन...?

- विनोद आनंद

पिछले कुछ दिनों से उत्तरकाशी के टनल में फंसे 41 मज़दूरों को लेकर चर्चा हो रही है। ये जिंदगी मौत के बीच कई दिनों से झूल रहे हैं।इन 41 मज़दूरों में 5 बिहार के और 15 झारखंड के भी मज़दूर हैं। 

इस बीच एक खबर गुजरात के सूरत से आयी जहां 5 बिहारी मज़दूर कपड़ा रंगाई करने वाले फैक्टरी में रंग के टंकी में काम करने के लिए उतरे और उसमें जहरीली गैस के कारण मौत के आगोश में चले गए। यह मात्र एक छोटा सा उदहारण है।

इस तरह की घटना सिर्फ गुजरात और उत्तरकाशी से हीं नही देश के विभिन्न भागों से आती रहती है जहां बिहारी मज़दूर दो बक्त के रोटी और अपने परिवार के पालन पोषण के लिए जोखिम उठाकर मज़दूरी करते हैं। और अपने जिंदगी से हाथ भी धो बैठते हैं।

जो बच रहे हैं वे अपने परिवार और बच्चों से दूर.....। जिंदगी के जद्दोजहद से संघर्ष करते....बंजारा सा जिंदगी जीते हैं। ये महज़ 15 से 20 हज़ार की नौकरी के लिए जिस हालात और परिस्थियों से गुजरते हैं अगर उसे देखकर रूह कांप जाता है। ये बिहार के लोग अपनी मेहनत और श्रम से महानगरों के विकासके लिए तकदीर जरूर गढ़ते हैं लेकिन इसके वाबजूद इन्हें जिस प्रताड़ना, उपेक्षा ,हेय दृष्टि से महानगर के अभिजात्य वर्गों द्वारा देखा जाता है।जिन नामों से इन्हें सम्बोधित किया जाता है यह देखकर आत्मग्लानि होने लगता है।

 गुजरात हो या तमिलनाडु, दिल्ली हो या मुम्बई कश्मीर हो या असम देश का कोई हिस्सा नही है जहां बिहारी मज़दूर आप को नही मिल जाएंगे।इन सभी जगह गाहे बगाहे ऐसी घटनाएं भी आती हैं जहां बिहार के लोग बेमौत मारे जाते हैं।

इन सारे परिस्थियों में एक सवाल तो बनता है कि - क्यों यह परिस्थिति पैदा हुई कि बिहार के लोगों को अपने राज्य अपने घर और क्षेत्र से बाहर जाकर, घर परिवार से दूर होकर पलायन करना पड़ता है...?

 क्यों बिहार में बिहार सरकार पिछले 70 सालों में इस तरह का कोई इंफ्रास्ट्रक्टर खड़ा नही कर पाई कि इन मज़दूरों को अपने राज्यों से बाहर जाने की जरूरत ना हो , इन्हें अपने राज्य में ही रोजगार मिल जाये ताकी अपने बच्चे और परिवार के साथ ये रहकर दो बक्त का रोटी जुटा पाए।

 कोरोना त्रासदी के समय जब लॉकडाउन लगा तो बिहार के मज़दूरों का क्या हालत हुए, किस तरह बिहार सरकार ने हाथ पर हाथ धर कर बैठ गयी और मज़दूर दिल्ली मुम्बई और देश के सुदूरवर्ती इलाकों से पैदल चलने को विवश हुए।

रास्ते में कहीं पुलिस की लाठी तो कहीं किसी राज्य में नही घुसने देने की कवायद,कहीं रेल के पटरी पर लाश के चीथड़ों में तब्दील होते तो कहीं भूख और अभाव में बच्चे समेत पूरा परिवार फांसी के फंदे पर झूलते नज़र आये।

उस समय पूरी दुनिया के सामने बिहारी मज़दूरों की हकीकत, बिहार सरकार के विकासनीति और पिछले 70 सालों में भारत किस मुकाम पर है इसकी पोल खुल गयी।

जब प्रवासी बिहारी मज़दूरों ने कसम खायी थी कि भूखे मर जायेंगे लेकिन बिहार से बाहर नही जाएंगे।तत्काल बिहार सरकार ने भी यह दिखाने का प्रयास किया कि बाहर से आये मज़दूरों के स्किल के हिसाब से कुटीर  उधोग के लिए उन्हें आर्थिक सहयोग कर अपने क्षेत्र में हीं उसे रोजगार दिलाया जाएगा।कुछ जगहों पर जहां के अधिकारी ईमानदार थे इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए।

उस समय बड़ी बड़ी बातें की गई।मखाना का ब्रांडिंग कर उसे देश भर में बेचा जाएगा।उसका निर्यात भी किया जाएगा। फ़ूड प्रोसेसिंग के जरिये कृषि उत्पाद को  उधोग के रूप में डेवेलोप किया जाएगा। लेकिन बिहार सरकार कुछ दिन में हीं शिथिल हो गयी।मज़दूरों का पलायन फिर शुरू हो गया।

 इतने दिनों में मैने जो महसूस किया कि बिहार सरकार के पास नही तो कोई इक्क्षा शक्ति है और नही यहां उधमी को निवेश कराकर रोजगार सृजन कराने के लिए कोई योजना है।बस सत्ता में बने रहना सत्ता का सुख भोगना, जाति धर्म की राजनीति करना। यही उधेश्य है।

     अगर बिहार को आगे बढ़ना है ,आर्थिक रूप से मजबूत करना है तो सरकार को ठोस उधोगनीति बंनानी होगी। ईमानदारी से राज्य में निवेश और रोजगार सृजन के लिए अनुकूल बनाना होगा।राज्य में अफसरशाही खत्म करनी होगी।भरस्टाचार पर अंकुश लगाना होगा।और राज्य में गुंडातंत्र पर अंकुश लगाना होगा। और अगर सरकार इस पर ठोस नीति नही बनाती है तो जनता को सोचना होगा कि हम किसे अपने राज्य का दायित्व सौंपे जो इस दिशा में पहल करे।

सम्पादकीय:- सामाजिक परम्परा और रूढ़िवाद की भेंट चढ़ी बुधनी मझियाइंन पर संथाल समाज को गर्व कर अपने भूल सुधारने की है जरूरत

 - विनोद आनंद

बुधनी नही रही! शुक्रवार को उसने अंतिम सांस ली। शनिवार को उसके शव को फूलों से सुसज्जित कर वाहन से पंचेत डेम के आसपास क्षेत्रो में घुमाया गया। फिर सीआईएसएफ के जवानो , डीवीसी के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ आसपास के गणमान्य लोगों ने श्रद्धांजलि दी। उसके बाद शनिवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया।

बुधनी मझियाइंन की मौत के बाद यह सम्मान और उनकी चर्चा पर आप के मन में यह जिज्ञासा जग गया होगा कि यह बुधनी मझियाइंन कौन है...? जिसकी इतनी चर्चा हो रही है।देश भर की मीडिया में उसकी मौत की खबर को जगह मिली। बुधनी के इस सम्मान से सभी अभिभूत हैं लेकिन अभिभूत नही है तो उसका समाज, जिसने उसे तिरस्कृत कर दिया।

यह कोई नई बात नही है।आज हमारे देश के लोगों की रूढ़िवादी सोच,समाज की परम्पराएं और मान्यताएं इतनी गहरी पैठ बना ली है कि कई समाज की बुधनी इसके शिकार होते रहे।

   बुधनी की बात करें तो यह आदिवासी संथाल समाज की बेटी थी। बात 6 दिसम्बर 1959 की है। अमेरिका के टीनेसी घाटी परियोजना से प्रभावित होकर भारत में भी बाढ़ पर नियंत्रण के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दामोदर नदी पर बांध बनाकर एक तरफ बाढ़ पर नियंत्रण की योजना बनाई तो दूसरी तरफ उसी बांध से बिजली उत्पादन शुरु कर दिया इसके तहत दामोदर वैली कारपोरेशन का गठन किया गया

इस परियोजना के तहत पंचेत डेम और मैथन डेम तैयार हुआ। 6 दिसम्बर 1959 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पंचेत डेम के उद्घाटन करने पहुंचे। इस अवसर पर अधिकारियों ने पीएम के स्वागत के लिए तत्कालीन विस्थापित परिवार की सदस्या तथा दैनिक मज़दूर 15 वर्षीय बुधनी मझियाइंन को चुना। उसने पारम्परिक ढंग से पीएम को टिका लगाया और गले में माला पहना कर उसका स्वागत किया।पीएम नेहरू भी अभिभूत हो गए उस बुधनी के गले में भी माला पहना कर उसका स्वागत किया और पंचेत डेम का स्विच ऑन बुधनी से कराकर डेम का उद्धाटन बुधनी से कराया।

उस समय भी देश में मीडिया के लिए बुधनी एक चर्चित विषय बनी।बुधनी के भाग्य,नेहरू जी की उदारता पर चर्चा हुई।लेकिन बुधनी के इस शौभाग्य से उनका समाज खफा हो गया। किसी पर पुरुष के गले में इस 15 वर्षीय बच्ची द्वारा माला पहनाया जाना आदिवासी समाज को रास नही आया।गांव में समाज की बैठक हुई और समाज के प्रमुख ने फैसला सुना दिया कि अब बुधनी का विवाह नेहरू जी से हो गया। दूसरे जाति से विवाह के लिए उसे समाज और गांव से निष्काषित कर दिया गया।

उसकी जमीन पंचेत डेम के डूब क्षेत्र में चली गयी और उसका परिवार और कहीं चला गया।एक तरफ विस्थापन का दंश तो दूसरी तरफ समाज का तिरस्कार।

बुधनी का यह दुर्भाग्य बन गया। बुधनी 15 साल की उम्र में भी डेम निर्माण के समय दैनिक मज़दूर के रूप में काम किया था, लेकिन सरकारी नियमों के बंधन के कारण उसे  डीवीसी में नौकरी नही मिली । उसे 1962 में उसे4 काम से निकाल दिया गया।  

दूसरी तरफ समाज के तिरस्कार के कारण समाज मे जगह भी नही मिला। इसके बाद उसकी अभिशप्त जीवन की शुरुआत हो गयी । काम के तलाश में वह भटकने लगी। बेसहारा स्थिति में उसे सहारा दिया सुधीर दत्ता नामक एक युवक, उससे बुधनी की विधिवत शादी तो नही हुयी लेकिन बुधनी उसके साथ पत्नी की तरह रहने लगी । उससे एक बेटी हुई। रत्ना दत्त, जिसकी भी शादी हो चुकी है।

बाद में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सज्ञान में बुधनी के दुर्भाग्य और उसकी स्थिति की जानकारी किसी ने राजीव गांधी को दी। उन्होंने 1985 में डीवीसी को अधिकारी को निर्देश दिया गया कि बुधनी जहां भी है उसे खोज कर नौकरी दिया जाए। तब उसे डीवीसी में नौकरी मिली तो जिंदगी आसान हुआ।

बुधनी आज नही रही लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज भी उसके संथाल समाज ने उसके समाज से निष्काषन वापस नही लिया । समय बदला, लोगों की सोच बदली। आज आदिवासी समाज के लोग संवेधानिक पदों पर भी आसीन हैं।आईएएस और आईपीएस भी हैं लेकिन समाज मे आज भी कई परम्पराए हैं जिस आदिवासी समाज नही निकल पाई।

  बुधनी इसी सामाजिक परम्परा की भेंट चढ़ी। कितने मुसीबत और मानसिक प्रताड़न से वह गुजरी। जिस घटना को लेकर समाज और इस क्षेत्र के लोगों को अभिमान करना चाहिए वह बुधनी के जीवन में ग्रहण बनकर रह गया।आज मौत के बाद भी यह सम्मान अभिभूत करने वाला है।डीवीसी के अधिकारियों और क्षेत्र के लोगों को इसके लिए जितनी सराहना की जाए कम है।

इसके साथ हीं संथाल समाज से भी हमारी गुजारिश है कि आप को अपनी सोच से बाहर निकल कर बुधनी की मौत के बाद भी उसका निष्काषन वापस लें और समाज के एक ऐसी बेटी के रूप में स्वीकार कर उसका सम्मान करें कि समाज की एक बेटी जिसका स्वागत माला पहना कर नेहरू ने किया और दामोदर घाटी निगम का उद्घाटन कराया। निसंदेह झारखंड सरकार, बंगाल सरकार , संथाल समाज और डीवीसी को यह भी पहल करनी चाहिए कि बुधनी की एक प्रतिमा स्थापित कर उसे वह सम्मान दिया जाना चाहिये जिसकी वह हकदार है।उसने डीवीसी के प्राम्भिक मज़दूर के रूप में इसके निर्माण में योगदान दिया, इसके उद्धाटन में सहयोग कर अपने समाज का तिरस्कार झेला।अपना जमीन और घर खोकर विस्थापन का दर्द झेला। इसी लिए उसकी त्याग,श्रम और सम्मान को एक प्रतीक के रूप में जिंदा रखने के लिए प्रतिमा स्थापित कर नई पीढ़ी के बीच उसे जिंदा रखा जाना जरूरी है। इसके लिए संथाल समाज को पहल कर अपनी भूल सुधारने की है जरूरत है।

संपादकीय:-नीतीश जी बिहार को जनसंख्यां नियत्रण पर आपके दर्शन की नही,राज्य के विकास के लिए ठोस नीति की जरूरत है...?

 (विनोद आनंद)

 कुछ दिन पहले बिहार विधानसभा में नीतीश जी द्वारा जनसंख्यां नियंत्रण पर जिन शब्दों और जिस लहजे में माननीय सदस्यों को समझाने का प्रयास किया गया वह आश्चर्यजनक था।

उसकी आलोचना हो रही है,लोग दो पाटों में बंट गए हैं। उनके शब्दों को तो हर कोई गलत बता रहा है लेकिन कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि उनका इंटेंशन गलत नही था, बल्कि गवई भाषा में थोड़ी शब्दो में ब्लागरता आ गयी थी।

लेकिन फिर उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को लेकर भी विधानसभा में आपा खोया और जो कुछ कहा वह भी सही नही था।

पता नही नीतीश जी ऐसे तो थे नही।गंभीर और संयम भाषाओं का प्रयोग करते रहे।ऐसा भी नही है कि वे पढ़े लिखे नही हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। कई संवैधानिक पदों पर भी रहे । इतने लंबे राजनीतिक जीवन में वे आज इस तरह मर्यादाहीन शब्दों के कारण बिहार के लोगों का छवि तो खराब किया हीं खुद का छवि भी खराब कर लिया।

आज महिलाएं नाराज ,दलित नाराज, साथ हीं जातीय जनगणना में ,आंकड़े को लेकर उनके समुदाय के करीब, या यूं कहें धानुक जाति जिनके वोट बैंक से अब तक वे सत्ता में काबिज रहने में सफल रहे वे नाराज।

इन सब का प्रभाव उनके राजनीतिक कैरियर पर क्या असर पड़ेगा यह तो बक्त बतायेगा लेकिन उन्हें इस विषय पर चिंतन करने की जरूरत है। 

आज बिहार का दुर्भाग्य रहा है कि आजादी के बाद से बिहार में सरकार का नेतृत्व किसी ऐसे हाथ में नही आया जो बिहार को विकास के उस आयाम तक पहुंचा सके कि राज्य की जनता खुशहाल हो।यहां युवाओं को रोजगार मिले। राज्य की जनता के लिए ऐसी नीति बने कि उन्हें बाहर जाने की जरूरत नही हो।

चार दशक पहले यहां के लोगो को रोजगार की तालाश में कोलकाता, असम, दिल्ली और मुम्बई जाना पड़ता था ,और आज बिहारी मज़दूर और युवा आप को देश विदेश भर में फैले मिलेंगे। 

ऐसा नही है कि बिहारी युवाओं में प्रतिभा नही है । वे हर क्षेत्र में अपनी क्षमता और प्रतिभा सिद्ध किया है। बिहार के लोग भारत के शीर्ष प्रशासनिक पद हो, पत्रकारिता हो, साहित्य हो, इंजीनियरिंग हो, चिकित्सा हो या वैज्ञानिक हर जगह अपनी योग्यता को साबित किया है।

इसके साथ ही देश भर में मज़दूर और कारीगर के रुप मे बिहारी लोगों ने अपनी क्षमताओं से भारत के तकदीर को गढ़ने में अपना योगदान दिया। लेकिन दुख इस बात की है  कि इन प्रतिभाशाली बिहारियों की क्षमता और योग्यता से बिहार का तकदीर बिहार के भाग्यविधाता गढ़ने में नाकामयाब रहे।

इसका कारण है कि बिहार के राजनीति में आने वाले लोगों का मकसद ही रहा राजसुख का भोग करना, धन और एश्वर्य कमाना।

बिहार में जिस तरह बाहुबलियों ने खून खराबा कर अपहरण, हत्या,सरकारी ठीका पर कब्ज़ा को एक उधोग का रूप दिया।अपराध और राजनीति के बीच एक प्रगाढ़ रिश्ता बनाकर बिहार का नाम देश ही नही दुनिया भर में बदनाम किया। इसका भी कारण रहा राजनीतिक नेतृत्वकर्ताओं की कमियां।

यहां ना तो उधोग लगे और नही व्यापार फला -फुला,सरकारी तंत्र में भष्ट्राचार,अधिकारी कर्मचारी बेलगाम, और हताश-निराश युवाओं में आक्रोश और अपराध की ओर प्रवृत्त होना यह सब बिहार सरकार की विफलता है।

ऐसे हालात में बिहार के राजनेताओं को अपना पूरा ध्यान इस पर केंद्रित करना चाहिए कि बिहार के विकास के लिए क्या ठोस नीति बने जिस से यहां उधोग पनपे, रोजगार बढ़े, युवाओं का पलायन रुके। ना कि विधान सभा में यह कहने की जरूरत है कि हमने उसे मुख्यमंत्री बनाया,या जनसंख्यां पर रोक के लिए सेक्स एजुकेशन के लिए क्लास देने की जरूरत है।

नेताओं को अपने शब्दों की मर्यादा, अपने कार्यों के प्रति गंभीरता और अपने अंदर के अहंकार को त्यागने की जरुरत है।

और जनता को भी यह समझने की जरूरत है कि हम जात, धर्म और समुदाय के नाम पर ऐसे लोगो का अपना सेवक चुनकर नही भेजें जो वहां जाकर यह समझने लगे कि हम जनता का सेवक नही मालिक हैं।

त्वरित टिप्पणी: धनबाद में फिर आग ने ली जान ,लापरवाही या अव्यवस्था...? फिर उठा सवाल...!

(विनोद आनंद)

धनबाद में फिर आग ने ली तीन लोगों की जान । इसके पहले आशीर्वाद अपार्टमेंट और डॉक्टर हाजरा क्लीनिक में लगी आग और उसमें हुई मौत ने पृरे देश को दहला दिया था। कई सवाल भी उठे थे।कटघरे में सरकारी तंत्र के कई विभाग भी थे ...! 

जिसमें बिल्डिंग निर्माण , नक्शा पास करने वाले विभाग,नगर निगम, अग्निशमन विभाग सहित कई ऐसे विभाग थे जो अपार्टमेंट बनाने के अनुमति से लेकर एनओसी देने वाले विभाग हैं।

आशीर्वाद अपार्टमेंट की घटना के बाद कुछ दिनों तक तो यह विभाग एक्टिव रही, जांच की, कई खामियां पाई लेकिन कारबाई कुछ नही हुआ। क्यों नही हुआ...? कहीं मैनेज तंत्र काम किया या लापरवाही इस पर तो सरकार को सज्ञान लेने की जरूरत है । लेकिन 9 महीने बाद फिर लगी आग लोगों के मन मे डर पैदा कर दिया है।साथ हीं इस विभाग पर प्रश्नचिन्ह भी खड़ा कर दिया।

कल रात लगी केंदुआ में यह आग जिन लोगों की जान ले ली अगर सरकारी व्यवस्था सजग होती तो शायद इन्हें बचाया जा सकता था।स्थानीय लोगों का आरोप है कि आग एस जेनरल सिंगार स्टोर में साढ़े 9 बजे के आस-पास लगी। लोगों ने ज्योही आग लगा देखा भीड़ जुट गयी।तत्काल अग्निशमन विभाग, और 108 एम्बुलेंस को खबर किया लेकिन अग्नि शमन विभाग की दमकल गाड़ी 2 घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंची।लापरवाही एम्बुलेंस सेवा द्वारा किया गया।तब तक आस पास के स्थानीय नागरिकों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए आग बुझाया

और अपने हिसाब से रेस्क्यू किया।सबसे बड़ी बात यह है कि यह बिल्डिंग जहां था वहां संकरी गली है जहां आसानी से गाड़ी नही पहुंच सकते । दूसरी सबसे बड़ी बात है। सरकारी तंत्र की शिथिलता के कारण रेस्क्यू भी समय पर नही हो पाया। एम्बुलेंस सेवा 108 को फोन करने के बाद भी समय पर घटना स्थल पर नही पहुंची ताकि प्रभावित लोगों को अस्पताल पहुंचाया जा सके।जिससे स्थानीय लोगों में गुस्सा भी है और पूरी व्यवस्था पर सवाल भी उठाया जा रहा घटना का कारण...!

धनबाद में बिल्डिंग और अपार्टमेंट बनाने में भी सरकार द्वारा तय सुरक्षा मानकों का लगातार अवहेलना किया जा रहा है । लेकिन सम्बंधित विभाग को कोई मतलब नही है।

पिछले दिन जब आशीर्वाद अपार्टमेंट हादसा हुआ था तो सरकारी विभाग रेस हुई थी। जांच के बाद कई अपार्टमेंट में खामियां भी पाई गई थी। लेकिन कार्रवाई क्या हुई नही तो इसकी जानकारी आम आदमी को है, और नही सरकार को।लेकिन इस घटना के बाद प्रशासन और सरकार को एक बार फिर सजग होने की जरूरत है। 

लगातार धनबाद में अग्निकांड से हो रही हादसा और लोगों की जा रही जान चिंता का विषय है।अब इसी आशंका से भय बना रहता है कि अब यह घटना कहाँ हो जाये और किनकी जान चली जाए।

नियम है किसी भी अपार्टमेंट में उसके आसपास इतनी जगह हो जहां इस तरह के हादसा में वाहन जा सके।बचाव के लिए ऑपरेशन किया जा सके।हर अपार्टमेंट में अग्निशमन व्यवस्था हो।इन विभागों द्वारा एनओसी दिए जाने के पूर्व ईमानदारी से पड़ताल हो। आम लोग भी जब मकान बनाये तो अपने आस पास जगह छोड़ कर बनाये ताकि सुरक्षा के सारे इंतजाम हो सके।

अब लगातार हो रही इन घटनाओं के बाद प्रशासन को सजग हो जाना चाहिए, जिले के आला अधिकारियों को सज्ञान लेकर फिर से सर्वे कराकर इस में जो भी त्रुटि हो उसे दूर करने के लिए शख़्त कदम उठाना चाहिए।और अग्निशमन तथा एम्बुलेंस सेवा को दुरुस्त कर हमेशा अलर्ट मोड़ नें रखने के लिए शख़्त निर्देश देना चाहिए ताकि इस तरह की हादसा में किसी की जान नही जा सके।

अब देखना है कि प्रशासन सजग होकर इस दिशा में ठोस कदम उठाती है या नही।और जिन लोगों ने नियम को ताक पर रख कर घर या अपार्टमेंट बनाया है उस पर नियम संगत करबाई करती है या नही। ताकि इस तरह घटना को रोका जा सके।

संपादकीय: अंधकार के विरुद्ध मनुष्य के अदम्य आकांक्षा का उद्घोष है दीपावली...! यह आपके जीवन में उजाला लाये और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे ,...!

:- विनोद आनंद

आज दीपावली है ..! सनातन संस्कृति में हर पर्व के पीछे कुछ न कुछ उधेश्य छिपा होता है।उस उधेश्य के निहितार्थ पर्व मनाया जाता है। हमारे भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत रही है कि पर्व को हम जिस कसौटी पर परखने की कोशिश करें कुछ न कुछ वैज्ञानिकता,उधेश्य और सामाजिक परिवेश के लिये कई जरूरी कारण होते हैं। दीपावली को भी हम इसी कसौटी पर परख सकते हैं।

यू तो कहा जाता है कि दीपावली सत्य, शील और धैर्य के प्रतीक श्रीराम के अभिनंदन का पर्व है।  

 इस परम्परा की शुरुआत तब हुई जब श्री राम 14 वर्ष वनबास काट कर लंका विजय और रावण बध के बाद अयोध्या लौटे । उसी समय उनकी प्रजा ने दीपोत्सव का आयोजन कर उनका अभिनदंन किया। लेकिन और भी कई किंबन्दतियां इस पर्व से जुड़ी है। जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिक्ख धर्म में भी भी इसको लेकर कहानियां है। सभी में इस प्रकाश उत्सव का उधेश्य है अंधकार पर विजय।

 दीपावली उत्सव अंधकार के विरुद्ध मनुष्य के अदम्य आकांक्षा का उद्घोष है। अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो प्रकाश के आगे नही टिक सकता।

   इस पर्व का मकसद हीं रहा कि हमारे जीवन में कई रूपों में प्रवेश किये अंधकार को जड़ से मिटाना।

आज हमारे बीच आपसी मतभेद,असत्य,कपट, छल घर कर गया है। लोगों के बीच आपसी भरोसा टूट रहा है,लोगों में असुरक्षा और अनादर का भाव बढ़ रहा है।निजी स्वार्थ में लोग किसी के भी हित और उसकी भावनाओं को अनदेखा कर रहे हैं ऐसी स्थिति में यह प्रकाश रूपी उजास हमारे अंदर के अंधकार को दूर करे। इसी उधेश्य से यह परम्परा हमारी संस्कृति को विरासत में मिली है। हम सदियों से इस परम्परा का निर्वहन करते आ रहे हैं।

आज दीपावली के पूर्व हम अपने घरों के साथ अपने घर के आस पास भी स्वच्छ करते हैं, अपने व्यस्त समय में से थोड़ा सा समय निकाल कर अपने बच्चों परिवार और इष्ट मित्रों के बीच मिठाई बांट कर गले मिलते हैं।यह पर्व कुछ क्षण के लिए हीं सही हमें सकून, भाईचारा,बच्चों के प्रति स्नेह, परिवार के बीच खुशियों का माहौल देता है। लक्ष्मी पूजन से हमारे अंदर भक्ति भाव को जागता है।आस्था के कारण हमारे मन में भक्ति और भरोसा का भाव जगाता है।

अंधकार पर विजय, स्वच्छ परिवेश ,स्वच्छ मन ,स्वस्थ जीवन के साथ हम इस परम्परा को आत्मसात करें।और जिस उधेश्य से यह दीपोत्सव मनाया जाता है उसे समझें।

साथ हीं साथ संपादकीय और प्रबंधकीय टीम की ओर से सभी स्ट्रीट बज्ज के पाठक, सुवेक्षु,विज्ञापन दाता और हमारे संस्थान के सभी सहयोगी सहकर्मी को दीपावली की ढेर बधाई देता हूँ और  

आप सभी पर मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहे।आप के मन का अंधेरा दूर हो जीवन में प्रकाश का उजास फैले यह कामना करता हूँ...!

गाज़ा-इज़रायल युद्ध क्या तीसरे विश्वयुद्ध की आहट है..? दुनिया को एक दूसरे के समर्थन में गुटबंदी के बजाय इसे रोकने के लिए आगे आने की जरूरत है..!

  

- (विनोद आनंद)

युद्ध का परिणाम कभी भी अच्छा नही होता।दो शक्तियां लड़ती जरूर लेकिन मारे जाते हैं निरीह लोग जिनका युद्ध से कोई वास्ता नही होता।

भूख, प्यास और अपनों के बिछड़ने का गम क्या होता है ?यह जाकर यूक्रेन,इज़राइल और गाज़ा के लोगों से पूछिये।दुर्भाग्य तो यह है कि इस युद्ध को रोकने के बजाय दुनिया के सभी देश एक दूसरे के समर्थन में जुटकर गोलबंद हो जाते हैं । इसे रोकने या तटस्थ होकर बीच वचाव के वजाय इस युद्ध को अपने लिए अवसर के रूप में देखते हैं। और उसे सह देकर बढ़ाते हैं।

आज युद्ध में किया हो रहा है ..? लोग मरे...! तबाही हो...! कोई देश खंडर बन जाये..! इस से वास्ता नही , लेकिन आज इस युद्ध में भी हर देश अपनी अपेक्षाएं ढूंढते हैं।उनके हथियार बिके, उनके लिए व्यवसाय का मौका बढ़े।यही उनकी अपेक्षा होती है । उस शक्ति के बिरुद्ध कई देशों को एकजूट होकर उसे नीचे दिखाया जा सके जो देश उनका दुश्मन है या उनके लिए चुनौती बना हुआ है।

 अपने इस हित को साधने के लिए किसी देश के कंधे पर बंदूक रख कर चलाना शुरु कर देते हैं । लेकिन बर्बादी होती है उस देश की जिनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाया जाता है। बर्बाद होने वाले देश से उनकी कोई सहानुभूति नही होती। बल्कि उनके हित और आकांक्षाओं की पूर्ति हो रही कि नही उसे सिर्फ इस बात से मतलब होता है। यूक्रेन के साथ भी यही हुआ, और आज गाजा इज़राइल के साथ भी यही हो रहा है।

दुर्भाग्य तो ये रहा कि द्वतीय विश्वयुद्ध के बाद जो सयुंक्त राष्ट्रसंघ बना जिसकी जिम्मेबारी थी की दुनिया में जब कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जिससे पूरा विश्व अशांत हो जाये, किसी निरीह देश पर किसी ताकतबर देश हमला कर दे तो वह अंतराष्ट्रीय कानून का पालन करते हुए अमन शांति स्थापित करे,दोषी को अंतराष्ट्रीय कानून के तहत दंडित करे।लेकिन दुर्भाग्य ...! ऐसा नही हो पा रहा है। इसका बजह है इन अंतरष्ट्रीय संघठन में बने कुछ त्रुटिपूर्ण नीतियां,

आज इन संस्था के कुछ गिने चुने देशों के पास वीटो पावर है।अगर वीटो पावर वाले देश कुछ गलतियां भी करे तो उसे अपने विरोध में लगे किसी आरोप या किसी भी कारबाई को रोकने का हथियार उनके लिए ये वीटो पॉवर बन जाता है।

 आरोप या हर कारबाई को इस पावर का उपयोग कर वह रोक सकते हैं ।आश्चर्य तो यह है कि अगर 5 देश के पास वीटो पावर है , चार किसी भी गलती के विरोध में है तो वीटो वाला अकेला देश भी अपने वीटो का इस्तेमाल कर अपने को निर्दोष सावित कर किसी कारबाई को रोक सकता है।

पता नही इस तरह नियम बनाने वाले नीति निर्धारकों का उधेश्य क्या रहा होगा लेकिन इस से इस संस्था के उधेश्य और कार्य पद्धति से आज विश्व में जो परिस्थिति पैदा हो रही है उस पर अंकुश लगाना संभव नही है।इसमें भी सुधार होनी चाहिए।

अब रही वर्तमान संकट इजराइल और हमास युद्ध तो यह युद्ध आज लगभग 20 दिन हो गए।

अब तक गाज़ा के अंदर 4137 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 12,500 लोग घायल हैं। वहीं, इजराइल ने बीती रात गाजा में 100 जगहों पर बम गिराए, इन हमलों में हमास के एक नेवी कमांडर की भी मौत हो गई। जो 7 अक्टूबर को इजराइल में नरसंहार का दोषी था। 

इस युद्ध में मैं नाम तो नही लूंगा लेकिन जिस तरह दुनिया के कई देश एक दूसरे के समर्थन में ताल ठोंक रहे है। वह दुनिया के सामने एक संकट बनता जा रहा है।आज इज़राइल और फिलिस्तीन के युद्ध में यही हुआ।चरमपंथी हमास के समर्थन में कई और देश आ गए और इजराइल से भी सहानुभूति रखने वाले देश भी गोलबंद हो रहे हैं। आज हालात यह है कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के ओर बढ़ रहा है।इस युद्ध से कितना तबाही होगा इसकी कल्पना करके ही रूह कांप जाता है।

जबकि आज जरूरी था कि पहले सम्मलित शक्ति का प्रयोग कर इस युद्ध को रोके और जो इस युद्ध के लिए दोषी है उसे सम्मिलित रूप से दंडित किया जाय।

यहूदी फिलस्तीन विवाद कोई नया नही है पिछले सात दशक से यह विवाद जारी है लेकिन किसी विवाद के निपटारे के लिये आतंक या खून खराबा का सहारा लेना आज के सभ्य समाज के लिए उचित नही है। आज हमास या कोई भी आतंकी संघटन किसी न किसी देश द्वारा सम्पोषित संस्था है और इन गतिविधि के लिए वह देश जिम्मेवार है। उस देश के विरुद्ध ईमानदारी के साथ दुनिया के सभी देश सर्वसम्मत से एक कानूनी दायरा में कदम उठाए और जो भी देश इस तरह के गतिविधि को बढ़ावा दे रहा है उसके विरुद्ध भी कार्रवाई करे तो इसे रोका जा सकता है।

साथ हीं साथ पीड़ित देश, समुदाय या अन्य कोई कारक जिसके कारण इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है उसे भी न्याय दिलाने का निरपेक्ष भाव से कदम उठाए तो सारे समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।

 आज दुनियां कई आसन्न संकटों से गुजर रही है, हाल में वैश्विक महामारी कोरोना ने दुनिया के करोड़ो लोगों को निगल लिया, कई देश भुखमरी और अभाव से गुजर रहा है। मानव के सामने कई संकट है जिसका हल हमें ढूंढना है।इस लिए अमन जरूरी है। हमें सभी देश को मिलकर सिर्फ अमन के लिए काम करना है।हिंसा करने वाले आतंकी मुख्य धारा से जुड़े,अपने हित साधने के सोच रखने वाले देश पूरी दुनिया का हित को सोचे,अहंकार त्याग कर उदार सोच को विकसित करें और पूरी दुनिया एक दूसरे के परस्पर सहयोग से आगे बढ़े । बस यही कामना के साथ... पूरी दुनिया से अपील करना चाहूंगा कि आप अपने देश या किसी भी देश में उस आतंकी संघटन या आतंकी गतिविधि में संलग्न व्यक्ति या संस्था को कभी भी बढ़ावा या सम्पोषित नही करें।और इसके लिए एकजूट होकर पूरी दुनिया पहल करे।

    मौजूदा हालात में इज़राइल का गुस्सा अपने जगह सही है।जिस तरह हमास ने 7 अक्टूबर को इजराइल में कत्ले आम मचाया, लोगों को बंधक बनाया, छोटे छोटे निरीह बच्चों की हत्या की, महिलाओं के साथ जो कुछ किया इसे कतई माफ नही किया जा सकता लेकिन इसके लिए धैर्य की जरूरत है और अंतराष्ट्रीय संघटन को उस ढांचा को मजबूत करने की जरूरत है जो ऐसे कुकृत्य करने वाले को दंडित कर सके, ना कि एक दूसरे के समर्थन में ताल ठोंक कर आगे आये।

धैर्य इस लिए भी जरूरी है कि आज गाजा में भी इस कारबाई से दोषी के अलावे निर्दोष लोग भी मारे जा रहे है ।

 गुटबंदी इस लिए जरूरी नही है कि इस से विश्व युद्ध की पुनरावृत्ति ना हो।क्योंकि युद्ध से सिर्फ विनाश होता है।हमने पिछले दो विश्वयुद्ध और जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर विनाशकारी परमाणु अटैक को देखा है। इसका हश्र क्या हुआ , तबाही, मौत,हाहाकार.बस हम यह नौबत नही आने दें। नही तो अब जो स्थिति होगी वह कल्पना से परे होगा। क्योंकि अब कई देश परमाणु अस्त्रों से सम्पन्न है।

 इसीलिए हमें सतर्क, सजग,और धैर्य से काम लेने की जरूरत है।और गाजा हो या यूक्रेन या अन्य कोइ देश वहां युद्ध को रोकना है ताकि एक अमन और शांतिपूर्ण विश्व की परिकल्पना हम कर सकें।