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जेएनयू में दिया धरना तो लगेगा 20 हजार का जुर्माना, राष्ट्र विरोधी नारेबाजी करने वालों की भी खैर नहीं

#jnu_ban_protest_on_campus

जवाहलाल नेहरु विश्वविद्यालय में धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी जैसे घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं। कई बार तो विवाद इतना बढ़ जाता है कि वो देशव्यापी हो जाता है। लेकिन अब ऐसा करना छात्रों को भारी पड़ेगा। अब ऐसा करने पर छात्रों के ऊपर जुर्माना लगाया जाएगा।विश्वविद्यालय प्रशासन के इसको लेकर एक फरमान भी जारी कर दिया है।

जेएनयू ने नई नियमावली जारी की है। नए नियमों के मुताबिक एकेडमिक बिल्डिंग के 100 मीटर के दायरे में पोस्टर लगाना और धरना प्रदर्शन करने पर 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है या दोषी को संस्थान से निष्कासित भी किया जा सकता है।

एकेडमिक बिल्डिंग में कक्षाओं और प्रयोगशालाओं के अलावा विभिन्न स्कूलों के अध्यक्षों के कार्यालय, डीन और अन्य पदाधिकारियों के कार्यालय को शामिल किया गया है।

राष्ट्र विरोधी गतिविधि पर भी जुर्माना

वहीं, राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने और धर्म, जाति या समुदाय के प्रति असहिष्णुता भड़काने पर 10,000 रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।इसके साथ ही नए नियमों के अनुसार किसी छात्र पर शारीरिक हिंसा, किसी दूसरे छात्र, कर्मचारी या संकाय सदस्य को गाली देने और पीटने पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगेगा। इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने किसी भी प्रकार के अपमानजनक धार्मिक, सांप्रदायिक, जातिवादी या राष्ट्र-विरोधी टिप्पणियों वाले पोस्टर या पंफ्लेट को छापने, प्रसारित करने या चिपकाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

हाई कोर्ट पहले ही दे चुका है ऐसे आर्डर

बता दें इससे पहले हाई कोर्ट के आर्डर पर प्रशासनिक इमारतों - कुलपति, रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर सहित शीर्ष अधिकारियों के कार्यालय – के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर रोक लगाई गई थी। हालांकि, अब चीफ प्रॉक्टर कार्यालय (सीपीओ) की संशोधित नियमावली के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ने कक्षाओं के स्थानों के साथ-साथ एकेडमिक बिल्डिंग के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी है।

आदेश पर छात्रों में नाराजगी

कॉलेज प्रशासन के इस आदेश के बाद विरोध के स्वर उठने लगे हैं। एबीवीपी के मीडिया इंचार्ज अंबुज तिवारी का कहना है कि जेएनयू का यह तुगलकी फरमान पहले भी आ चुका है जिसके खिलाफ प्रदर्शन किया गया था। उनका कहना है, पहले भी इसे वापस लिया गया था। यह बिल्कुल गलत है क्योंकि यह हमारा संवैधानिक अधिकार है कि हम अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर सकें।

छत्तीसगढ़ और एमपी के बाद राजस्थान में भी बीजेपी देगी सरप्राइज! सीएम पर सस्पेंस से आज उठेगा पर्दा

#who_will_be_next_cm_in_rajasthan

राजस्थान का नया मुख्यमंत्री कौन होगा इस सस्पेंस से आज पर्दा उठेगा। राजस्थान बीजेपी की विधायक दल की बैठक आज शाम चार बजे होनी है और माना जा रहा है कि इसमें नए सीएम के नाम का एलान हो सकता है। राजनाथ सिंह जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय में शाम 4 बजे से 6:30 बजे तक भाजपा विधायक दल के साथ बैठक करेंगे। इसमें सीएम के नाम की चर्चा होगी।

भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भी सीएम के नाम का ऐलान कर चुकी है। अब सिर्फ राजस्थान को ही नए सीएम का इंतजार है।से में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां वसुंधरा को पार्टी फिर मौका देगी या रेस में शामिल किसी एक नाम पर सहमति बनेगी या फिर यहां भी एमपी और छत्तीसगढ़ की तरह अचानक ऐसा नाम सामने आएगा जो अब तक रेस में नहीं है।

बता दें कि राजस्थान में बीजेपी विधायक दल की बैठक आज होनी है। इसके लिए यहां के लिए नियुक्त तीनों पर्यवेक्षक सुबह 11 बजे जयपुर पहुंचेंगे और विधायकों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद सीएम के नाम पर चर्चा होगी और फिर पार्टी की तरफ से नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाएगी। राजस्थान के लिए चुने गए पर्यवेक्षकों में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े शामिल हैं।

सभी नवनिर्वाचित विधायकों को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी की ओर से बुलावा भेजा गया है। उन्होंने बताया कि दोपहर 1:30 बजे से भाजपा के सभी विधायकों का रजिस्ट्रेशन शुरू होगा। सभी विधायकों को अनिवार्य रूप से विधायक दल की बैठक में उपस्थित रहने के निर्देश दिए गए हैं। पिछले सात-आठ दिनों से नए मुख्यमंत्री के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सी.पी. जोशी, केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी एवं डॉ किरोड़ी मीणा तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम माथुर सहित कई नेताओं के नामों की चर्चा लोगों में चली कि इनमें से कोई अगला मुख्यमंत्री हो सकता है।

विधायक दल की बैठक से दो बार की मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे के तेवर से बीजेपी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। माना जा रहा है कि पिछले दिनों बीजेपी के करीब 60 विधायक वसुंधरा राजे से मुलाकात कर चुके हैं। ज्यादातर विधायक यही कह रहे हैं कि सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात थी। कुछ विधायक ये भी कहते हुए नजर आए कि वो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह पर कुछ विधायकों की कथित बाड़ेबंदी के भी आरोप लगे थे। वसुंधरा राजे लगातार आलाकमान को खुश करने में लगी हुई हैं। लगातार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ भी कर रही हैं।ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी किसे राजस्थान की कुर्सी पर बैठाती है।

छत्तीसगढ़ और एमपी के बाद राजस्थान में भी बीजेपी देगी सरप्राइज! सीएम पर सस्पेंस से आज उठेगा पर्दा

#who_will_be_next_cm_in_rajasthan

राजस्थान का नया मुख्यमंत्री कौन होगा इस सस्पेंस से आज पर्दा उठेगा। राजस्थान बीजेपी की विधायक दल की बैठक आज शाम चार बजे होनी है और माना जा रहा है कि इसमें नए सीएम के नाम का एलान हो सकता है। राजनाथ सिंह जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय में शाम 4 बजे से 6:30 बजे तक भाजपा विधायक दल के साथ बैठक करेंगे। इसमें सीएम के नाम की चर्चा होगी।

भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भी सीएम के नाम का ऐलान कर चुकी है। अब सिर्फ राजस्थान को ही नए सीएम का इंतजार है।से में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां वसुंधरा को पार्टी फिर मौका देगी या रेस में शामिल किसी एक नाम पर सहमति बनेगी या फिर यहां भी एमपी और छत्तीसगढ़ की तरह अचानक ऐसा नाम सामने आएगा जो अब तक रेस में नहीं है।

बता दें कि राजस्थान में बीजेपी विधायक दल की बैठक आज होनी है। इसके लिए यहां के लिए नियुक्त तीनों पर्यवेक्षक सुबह 11 बजे जयपुर पहुंचेंगे और विधायकों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद सीएम के नाम पर चर्चा होगी और फिर पार्टी की तरफ से नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाएगी। राजस्थान के लिए चुने गए पर्यवेक्षकों में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े शामिल हैं।

सभी नवनिर्वाचित विधायकों को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी की ओर से बुलावा भेजा गया है। उन्होंने बताया कि दोपहर 1:30 बजे से भाजपा के सभी विधायकों का रजिस्ट्रेशन शुरू होगा। सभी विधायकों को अनिवार्य रूप से विधायक दल की बैठक में उपस्थित रहने के निर्देश दिए गए हैं। पिछले सात-आठ दिनों से नए मुख्यमंत्री के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सी.पी. जोशी, केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी एवं डॉ किरोड़ी मीणा तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम माथुर सहित कई नेताओं के नामों की चर्चा लोगों में चली कि इनमें से कोई अगला मुख्यमंत्री हो सकता है।

विधायक दल की बैठक से दो बार की मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे के तेवर से बीजेपी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। माना जा रहा है कि पिछले दिनों बीजेपी के करीब 60 विधायक वसुंधरा राजे से मुलाकात कर चुके हैं। ज्यादातर विधायक यही कह रहे हैं कि सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात थी। कुछ विधायक ये भी कहते हुए नजर आए कि वो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह पर कुछ विधायकों की कथित बाड़ेबंदी के भी आरोप लगे थे। वसुंधरा राजे लगातार आलाकमान को खुश करने में लगी हुई हैं। लगातार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ भी कर रही हैं।ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी किसे राजस्थान की कुर्सी पर बैठाती है।

कश्मीर को कब मिलेगा राज्य का दर्जा? अमित शाह ने दिया जवाब

#jammu_kashmir_statehood_amit_shah_reaction

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना वैध माना है।सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे हटाने की शक्ति थी। अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास बाक़ी राज्यों से अलग कोई संप्रभुता नहीं है। साथ ही कोर्ट ने जल्द से जल्द चुनाव कराने का भी निर्देश दिया।कोर्ट के फैसले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को देश को आश्वस्त किया कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद से मुक्त 'नए और विकसित कश्मीर' के निर्माण की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुई है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।राज्यसभा में उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के सोमवार के फैसले को 'ऐतिहासिक' बताया और कहा कि अब केवल 'एक संविधान, एक राष्ट्रीय ध्वज और एक प्रधानमंत्री' होगा।

फिर नेहरू की गलती की तरफ खींचा ध्यान

जम्मू कश्मीर के संदर्भ में लाए गए दो नए विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए राज्यसभा में गृह मंत्री ने कश्मीर समस्या के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहराया। शाह का कहना था कि गलत समय पर युद्धविराम का आदेश देकर और मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जा कर भारी गलती हुई। शाह ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि वह अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं देख पा रहा है। जबकि पूरा देश समझ गया है कि कश्मीर मुद्दे से निपटने में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलती थी। 

पीओके के लोगों के लिए 24 सीटों का आरक्षण

शाह ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) भारत का अभिन्न अंग है और कोई भी इसे छीन नहीं सकता। अमित शाह ने यहां तक कहा कि जब देश की एक इंच जमीन भी छोड़ने की बात आएगी तो भाजपा कोई बड़ा दिल नहीं दिखाएगी। साथ ही नई व्यवस्था के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लोगों के लिए 24 सीटों के आरक्षण की भी बात शाह ने की।

क्या था अनुच्छेद 370, जानें सरकार की इसे हटाने की पीछे की वजह

#whatwasarticle_370

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय पर आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा है कि 5 अगस्त 2019 का निर्णय वैध था और यह जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए था।

केन्द्र की मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए साल 2019 को देश से विवादित अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया गया था। आर्टिकल 370 भारतीय संविधान का एक प्रावधान था। जो जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता था। आर्टिकल 370 के प्रावधान ऐसे थे कि भारतीय संविधान भी जम्मू कश्मीर में सीमित हो जाती थी, जिससे देश के सरकारें राज्य के फैसले को लेकर हमेशा बंधी रहती थीं। 

अनुच्छेद 370 क्या था?

अनुच्छेद 370 से जुड़े मामले की शुरुआत कश्मीर के राजा हरि सिंह से हुई थी। अक्टूबर 1947 में, कश्मीर के तत्कालीन महाराजा, हरि सिंह ने एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा।मार्च 1948 में, महाराजा ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधान मंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की। जुलाई 1949 में, शेख अब्दुल्ला और तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर बातचीत की, जिससे अनुच्छेद 370 को अपनाया गया।

अनुच्छेद-370 के प्रावधान क्या थे?

1. इस अनुच्छेद में प्रावधान किया गया कि रक्षा, विदेश, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर भारतीय संसद को राज्य में किसी कानून को लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी।  

2. इसके चलते जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग था। अनुच्छेद-370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। अनुच्छेद-370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति नहीं थी।

3. अनुच्छेद-370 (1) (सी) में उल्लेख किया गया था कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 अनुच्छेद-370 के माध्यम से कश्मीर पर लागू होता है। अनुच्छेद 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि यह अनुच्छेद-370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है।  

4. जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है। 

क्या था जम्मू और कश्मीर का संविधान?

इसके लिए पहले साल 1951 में जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा का गठन किया गया। इसमें कुल 75 सदस्य थे। सभा को जम्मू और कश्मीर के संविधान का अलग मसौदा तैयार करने को कहा गया। जो नवंबर, 1956 पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया, इसके बाद जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व ख़त्म हो गया था। 5 अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी करके जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया था। इसे 'संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश, 2019 (सीओ 272)' नाम दिया गया था।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बौखलाया पाकिस्तान, जानें क्या रही प्रतिक्रिया

#pakistanupsetoversupremecourtsdecisiononarticle_370

सुप्रीम कोर्ट की ओर से सोमवार को अनुच्छेद 370 से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया। केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला दिया गया।कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति का फैसला संवैधानिक तौर पर वैध था। अनुच्छेद 370 अस्थायी था। संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू होंगे। सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद पाकिस्तान बौखला गया है।पाकिस्तान की अंतरिम सरकार के विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर दिए गए फ़ैसले पर टिप्पणी की है। 

भारत की ओर से उठाया गया अवैध- जलील अब्बास जिलानी

जिलानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा है, “अंतरराष्ट्रीय क़ानून, पांच अगस्त, 2019 को भारत की ओर से उठाया गया अवैध और एकतरफ़ा कदम स्वीकार नहीं करता है। भारत के सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मुद्दे पर दिए गए न्यायिक समर्थन का कोई क़ानूनी मूल्य नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत कश्मीरियों के पास आत्म निर्णय का अधिकार है।

शहबाज शरीफ ने कहा-अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्वीट कर कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के खिलाफ फैसला देकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।उन्होंने कहा कि अदालत ने लाखों कश्मीरियों के बलिदान को धोखा दिया है और इस फैसले को न्याय की हत्या को मान्यता देने के तौर पर देखा जाएगा। 

विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

पाकिस्तान सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर एक विस्तृत बयान जारी किया है। इस बयान में कहा गया है – “पिछले सात दशकों से संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के एजेंडे में शामिल रहा जम्मू-कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विवाद है. जम्मू-कश्मीर का अंतिम समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रावधानों और कश्मीरी अवाम के आकाँक्षाओं के अनुरूप किया जाना है। भारत को कश्मीरी अवाम और पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत इस विवादित क्षेत्र की स्थिति के बारे में एकतरफ़ा फ़ैसले करने का अधिकार नहीं है।पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संविधान की सर्वोच्चता स्वीकार नहीं करता है। भारतीय संविधान के अधीन किसी भी प्रक्रिया का कोई क़ानून महत्व नहीं है। भारत अपने क़ानूनों और न्यायिक फ़ैसलों के दम पर अंतरराष्ट्रीय दायित्वों से पीछे नहीं हट सकता।

बता दें कि जब अनुच्छेद 370 को साल 2019 में हटाया गया था, तो पाकिस्तान ने इसका विरोध किया था। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान ने इसका जिक्र किया था। इस साल भारत ने जी-20 की कुछ बैठकों का आयोजन कश्मीर में भी किया था।

बीजेपी ने फिर चौंकाया, मध्यप्रदेश के सीएम होंगे मोहन यादव, जगदीश देवड़ा और राजेश शुक्ला बनेंगे डिप्टी सीएम

#mohan_yadav_will_be_the_cm_of_madhya_pradesh

छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश के सीएम फेस से बी पर्दा उठ गया है। नए सीएम का ऐलान हो गया है। मोहन यादव को जिम्मेदारी दी गई है। मोहन यादव का नाम सीएम के रूप में काफी चौंकाने वाला है। शिवराज सिंह ने मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव रखा था। 

मध्य प्रदेश में तीन दिसंबर को चुनावी नतीजे आए थे। राज्य में मिली बंपर जीत के बाद भी सीएम के नाम को लेकर ऊहापोह की स्थिति बरकरार थी। पिछले आठ दिन के मंथन के बाद पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री का नाम फाइनल कर दिया है।ओबीसी समाज से आने वाले मोहन यादव के नाम पर बीजेपी विधायक की बैठक में मुहर लगी।इससे पहले मध्य प्रदेश सीएम का नाम तय करने के लिए पर्यवेक्षकों ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से बात की। इसके बाद पर्यवेक्षक हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, भाजपा सांसद के लक्ष्मण और पार्टी नेता आशा लकड़ा ने भोपाल स्थिज राज्य मुख्यालय में विधायकों के साथ बैठक की। इसी में सीएम के नाम पर मुहर लगी।

सीएम पद की रेस में शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सामने आया था लेकिन मोहन यादव को सीएम बनाए जाने से सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया है। शुरू से ही ऐसी खबरें थीं कि भाजपा इस बार शिवराज के बजाय किसी अन्य को सीएम पद पर बैठा सकती है। मध्य प्रदेश के नए सीएम मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव खुद राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। बता दें कि मोहन यादव शिवराज सिंह चौहान सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।

साल 2013 में वह पहली बार उज्जैन दक्षिण सीट से विधायक बने थे। 2018 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में एक बार फिर उज्जैन दक्षिण सीट से जनता ने उनको विधायक चुना। 2 जुलाई 2020 को शिवराज सिंह चौहान सरकार में वह कैबिनेट मंत्री बने और उनको उच्च शिक्षा मंत्री का कामकाज सौंपा गया। उनकी छवि हिंदुवादी नेता की रही है और मोहन यादव आएसएस के भी करीबी माने जाते हैं।

सीएम मोहन यादव के दो डिप्टी सीएम होंगे। जगबीर देवड़ा और राजेश शुक्ला डिप्टी सीएम चुने गए हैं।ओबीसी सीएम के साथ दलित और ब्राह्मण का समीकरण बनाया गया है।वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालेंगे।

आज का फैसला सिर्फ कानूनी फैसला नहीं, उम्‍मीद की किरण", अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर बोले पीएम मोदी

#pm_modi_bjp_reaction_on_supreme_court_verdict_on_article_370

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना वैध माना है।आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा जम्मू-कश्मीर के लोगों को बेहतर भविष्य का आश्वासन दिया। उन्होंने इस फैसले को आशा की किरण बताया।

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पोस्‍ट में कहा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है और 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद द्वारा लिए गए फैसले को संवैधानिक रूप से बरकरार रखता है। यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है, जि हम भारतीय होने के नाते बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं।

पीएम मोदी ने आगे लिखा, मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि आपके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटूट है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि प्रगति का लाभ न केवल आप तक पहुँचे, बल्कि इसका लाभ हमारे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले वर्गों तक भी पहुँचे, जो अनुच्छेद 370 के कारण पीड़ित थे।

पोस्‍ट के अंत में पीएम मोदी ने ‘नया जम्मू-कश्मीर’ हैशटैग के साथ लिखा, “आज का फैसला सिर्फ कानूनी फैसला नहीं है; यह आशा की किरण है, उज्जवल भविष्य का वादा है और एक मजबूत, अधिक एकजुट भारत के निर्माण के हमारे सामूहिक संकल्प का प्रमाण है।

बता दें कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज (11 दिसंबर 2023) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गईं थी। उन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार यानी 11 दिसंबर को अपना फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को संवैधानिक तौर पर वैध माना है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 अस्थायी तौर पर लागू था और जम्मू कश्मीर का अपनी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

सांसदी जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची महुआ मोइत्रा, लोकसभा निष्कासन को दी चुनौती

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तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कैश फॉर क्वेश्चन मामले में महुआ मोइत्रा को शुक्रवार को लोकसभा ने सदस्यता से वंचित कर दिया था। अब उन्होंने इस निर्णय को देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।बता दें कि इस मामले में शुक्रवार 8 दिसंबर को महुआ की सदस्यता रद्द कर दी गई थी।

महुआ पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद एथिक्स कमिटी का गठन किया गया और फिर एथिक्स कमिटी ने लोकसभा में लंबी जांच-पड़ताल के बाद शुक्रवार को रिपोर्ट सौंपा था।रिपोर्ट में एथिक्स कमिटी ने लोकसभा अध्यक्ष से महुआ मोइत्रा को सदन से निष्कासित करने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट पेश होने के बाद लोकसभा में चर्चा के बाद महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित करने का प्रस्ताव जारी किया गया।

कृष्णानगर लोकसभा सीट से पहली बार संसद पहुंचीं मोइत्रा को लोकसभा की आचार समिति की रिपोर्ट में उन्हें ‘अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण’ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया जिससे उनके निष्कासन का रास्ता बना। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने हंगामेदार चर्चा के बाद लोकसभा में मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पेश किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। चर्चा में मोइत्रा को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।

वहीं, संसद सदस्यता खत्म होने के बाद महुआ मोइत्रा ने कहा, मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले। मैंने अडाणी का मुद्दा उठाया था, मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए मेरी सदस्यता रद्द की गई है। समिति ने अच्छे से जांच नहीं की। अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए मोइत्रा ने इस फैसले की तुलना ‘कंगारू अदालत’ द्वारा सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को, विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है। महुआ मोइत्रा ने कहा कि ये सरकार के अंत की शुरुआत है।

क्या कर्नाटक में गिर रही है कांग्रेस की सरकार? जानें कुमारस्वामी के दावों की सच्चाई

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दक्षिणी राज्य कर्नाटक में सियासी हलचल तेज होती दिख रही है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या कर्नाटक में कांग्रेस सरकार गिरने वाली है? ये सवाल उठ रहे हैं जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. कुमारस्वामी के दावों के बाद।राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने दावा किया है कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ज्यादा समय तक नहीं चलने वाली है और वह बहुत जल्द गिर जाएगी। उन्होंने दावा किया है कि प्रदेश के एक प्रभावशाली मंत्री 50 से अधिक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल होने की तैयारी में हैं।

अपने खिलाफ दर्ज मामलों से बचने के लिए मंत्री का बड़ा कदम- कुमारस्वामी

जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने संवाददाताओं से कहा, कांग्रेस सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है। मुझे नहीं पता कि यह सरकार कब गिर जाएगी। एक प्रभावशाली मंत्री अपने खिलाफ दर्ज मामलों से बचने के लिये बेताब हैं। कुमारस्वामी ने कहा कि केंद्र ने उनके खिलाफ ऐसे मामले दर्ज किए हैं, जिनसे ‘बच’ निकलने की कोई संभावना नहीं है।

छोटे नेताओं से ऐसे निर्भीक कदम की उम्मीद नहीं- कुमारस्वामी

जब कुमारस्वामी से नेता का नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा कि छोटे नेताओं से ऐसे निर्भीक कदम की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि केवल प्रभावशाली लोग ही ऐसा कर सकते हैं। जद (एस) के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कर्नाटक में किसी भी समय महाराष्ट्र जैसा कुछ हो सकता है। उन्होंने कहा मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए कुछ भी हो सकता है। कुमार स्वामी ने महाराष्ट्र का जिक्र करते यह बयान ऐसे वक्त पर दिया है जब इसी महीने महाराष्ट्र में शिवसेना के विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर फैसला लेंगे।

कोई भी नेता ईमानदार नहीं- कुमारस्वामी

पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने कहा, मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए यहां कुछ भी हो सकता है। साथ ही यह भी कहा कि कोई भी नेता अब पार्टी के प्रति ईमानदार या प्रतिबद्ध नहीं है। वे अपने व्यक्तिगत लाभ को भी देखते हैं। राजनीति में ऐसा हमेशा होता आया है। जब कोई राजनेता अपनी सुविधा के लिए दलबदल कर लेते हैं तो विचारधाराएं पीछे रह जाती हैं