ईसा पूर्व प्रथम सदी से रही है छठ की परंपरा,आइए जानते हैं महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में
नयी दिल्ली:- बिहार में छठ का विशेष महत्व है, छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है।
वैसे तो छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है, लेकिन षष्ठी और सप्तमी तिथि पर सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है. चार दिवसीय अनुष्ठान आज से शुरू हो रहे हैं, जानते हैं महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.
छठ की विकास यात्रा मगध से :
मगध क्षेत्र के इतिहास के जानकार अरविंद महाजन कहते हैं कि आदिकाल से मगध में सूर्य पूजन की पद्धति रही है. ऐसी मान्यता है कि छठ का विकास पहले-पहल मगध से ही शुरू होकर आज पूरी दुनिया में फैला. औरंगाबाद की सूर्य स्थली देव को सूर्य पूजन की लोक परंपरा का जन्मदाता माना जाता है।
साम्ब पुराण व भविष्य पुराण में इन बातों का जिक्र मिलता है कि किस प्रकार सूर्य की उपासना से कृष्ण के पुत्र साम्ब सूर्य की किरणों के सामने यज्ञ करने से ठीक हो गये थे.
वह कुष्ठ से ग्रसित थे. अरविंद महाजन कहते हैं कि कि मगध अंचल में छठ सदियों से मनाया जा रहा है।
मगध सम्राट जरासंध के किसी पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था. उन्होंने भी शाक द्वीप से आगत मग द्विज के एक शाखा मिहिर को अपने प्रदेश (कीकट) में लाकर सूर्य चिकित्सा से आरोग्य की प्राप्ति की और राजा की पत्नी ने सूर्यव्रत प्रारंभ किया.
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महाजन ने बताया कि शाक द्वीप से साम्ब द्वारा आगत मगद्विजों के आचार्य की प्रेरणा से राजा अभयपाल और वर्गवंश राजाओं ने छठ का प्रचलन बढ़ाया. मगध में सूर्य की प्रधानता का कम से कम प्रथम शती ईसा पूर्व से प्रमाण मिलने लगता है, जब बोधगया में शुंग कालीन रेलिंग पर सूर्य का अंकन दिखता है. साथ ही प्रथम धर्मोपदेश के बाद बुद्ध का गया आगमन होता है तो उनका उद्देश्य होता है कस्सप बंधुओं को दीक्षित करना. ये कस्सप बंधु सूर्य के उपासक थे।
Nov 20 2023, 15:42