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औरंगाबाद में जिउतिया व्रत का 6 को नहाय खाय, सात को उपवास व 8 को होगा पारण

औरंगाबाद : इस बार जिउतिया व्रत के उपवास को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है। कुछ 6 को उपवास तो कुछ सात को उपवास रखने की बात कह रहे हैं। जिसको लेकर व्रतियों में भ्रम है।लेकिन कामख्या के ज्योतिषाचार्य के अनुसार ग्रंथों के निर्णय के आधार पर जिउतिया व्रत 7 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय ने कहा कि माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत सप्तमी रहित अष्टमी यानी शनिवार को ही रखे। छह अक्टूबर को नहाय-खाय, सात को व्रत व आठ अक्टूबर को पारण करें।

बताया कि जीवित्पुत्रिका व्रत भविष्योत्तर पुराण की कथा के अनुकूल की जाती है, जिसमें स्पष्ट निर्देश है कि सप्तमी रहित अष्टमी का ही व्रत किया जाए। बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दो तरह के व्रत होते हैं। चंद्रोदय काल में जब अष्टमी हो तो महालक्ष्मी व्रत और जब सूर्योदय काल में अष्टमी हो तो जीवित्पुत्रिका व्रत होता है। भ्रांत अवधारणाओं में सप्तमीयुक्त अष्टमी का व्रत करना हर तरह से हानिकारक है। सप्तमीयुक्त अष्टमी के व्रत को निषेध किया है। अल्पकाल भी सूर्योदय काल में अष्टमी हो तो वही उपासना के योग्य है। उचित तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत के रूप में स्त्रियां करती हैं।

इस वर्ष सात अक्टूबर यानी शनिवार को जीवित्पुत्रिका व्रत तथा आठ अक्टूबर रविवार को सूर्योदय के पश्चात सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही पारण करना चाहिए। पंडित राकेश ने बताया कि व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। कुश से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप, चावल व पुष्प अर्पित करें। गाय के गोबर और मिट्टी से चील व सियारिन की मूर्ति बनाएं। इनके माथे पर सिंदूर से टीका लगाएं। पूजा करे। जीउतिया व्रत की कथा श्रवण करें। उसके बाद जिउतिया धारण करें।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

फसल देखने गए युवा किसान की बिजली करंट के चपेट में आने से मौत

औरंगाबाद : जिले नवीनगर प्रखंड के बड़ेम ओपी थानाक्षेत्र अन्तर्गत रहरा गांव में बिजली करंट के चपेट में आकर एक युवक की मौत हो गई। मृतक 38 वर्षीय जगत पासवान उसी गांव का रहने वाला था। 

जानकारी के अनुसार वह बाधार की ओर धान देखने गया था।जहां पहले से टूट कर कम ऊंचाई पर झूल रहे बिजली तार के चपेट में आकर उसकी मौत हो गई। 

घटना की सूचना मिलते ही बड़ेम ओपी थानाध्यक्ष सिमरन राज व एएसआई अरविंद प्रसाद दल बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे तथा शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। 

पोस्टमार्टम के बाद शव अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को सौंप दिया गया है। वहीं परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। 

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

चोरी गई बाइक पर बीमा कंपनी ने दिया लाभ, दावा कर्ता को हस्तगत किया चेक

औरंगाबाद - आज जिला उपभोक्ता आयोग औरंगाबाद के अध्यक्ष संजय कुमार और सदस्य बद्रीनारायण सिंह के उपस्थित में प्रबंधक बजाज आलियांज जेनरल एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड औरंगाबाद ने जिला उपभोक्ता आयोग में दावाकर्ता नन्द किशोर सिंह बेला औरंगाबाद तीस हजार रुपए का चेक हस्तगत कराया। 

यह अन्तरिम क्षतिपूर्ति राशि चेक से प्रदान किया गया, दावाकर्ता के अधिवक्ता भूषण जी ने 40 हजार क्षतिपूर्ति और जानबूझकर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के लिए एक लाख क्षतिपूर्ति राशि के लिए 01/04/21को केश दर्ज कराई थी। 

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि नन्द किशोर सिंह 18/06/20 को इलाज के लिए डिहरी अवस्थित सुनील बोस के अस्पताल में गए थे। वहीं से अज्ञात चोरों ने उनकी बाइक चोरी कर ली। नन्द किशोर सिंह ने डिहरी थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई और अनुसंधानकर्ता ने घटना को सत्य पाया। इसकी लिखित जानकारी बीमा कंपनी को आवेदक ने दिया और बीमा समय संविदा के आधार पर क्षतिपूर्ति की मांग की। 

जिसपर बीमा कंपनी ने टालमटोल किया करते थे, आवेदक ने वकालत नोटिस भेजकर न्याय के लिए जिला उपभोक्ता आयोग में वाद दायर किया। 

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

दहेज की मांग किये जाने के मामले में कोर्ट ने पति और ससुर को दिया दोषी करार, सुनाई 3 साल कारावास की सजा

औरंगाबाद - आज़ व्यवहार न्यायालय औरंगाबाद में अनुमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी योगेश कुमार मिश्रा ने महिला थाना कांड संख्या-02/20 जी आर -177/20, टी आर -2408/23 में निर्णय पर सुनवाई करते हुए दो अभियुक्तों को दोषी ठहराया है और पांच अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी किया।  

सहायक अभियोजन पदाधिकारी विकास कुमार ने बताया कि अभियुक्त पियुस कुमार टंडवा दरिहट रोहतास को भादंवि धारा -498 ए/34 में तीन साल की सजा और तीन हजार जुर्माना लगाया है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 04 में एक साल की सजा और दो हजार जुर्माना लगाया है।  

वही विंध्याचल सिंह को भादंवि धारा -498 ए /34 में एक साल की सजा और दो हजार जुर्माना लगाया है तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 04 में एक साल की सजा और दो हजार जुर्माना लगाया है। दोनों सजाएं साथ साथ चलेंगी। 

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि प्राथमिकी सूचक कल्पनिक नाम राधा कुमारी गायत्री नगर मिशन रोड औरंगाबाद ने 09/01/20 को प्राथमिकी पति पियुस कुमार,ससुर विंध्याचल सिंह सहित परिवार के अन्य सदस्यों पर दहेज उत्पीड़न को लेकर कराईं थी जिसमें आरोप लगाया था कि अभियुक्तों ने कार ,सोना के चैन, रूपए की मांग करते हुए नैहर से बातचीत बंद करा दिया था और एक दिन मारपीट करते हुए घर से निकाल दिया था उसके बाद कभी वापस नहीं लाए थे। 

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

जिलाधिकारी ने टाउन हॉल और सम्राट अशोक भवन का किया निरीक्षण, दिए कई जरुरी निर्देश

औरंगाबाद : जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री द्वारा आज टाउन हॉल औरंगाबाद का निरीक्षण किया गया। जिसमें कार्यपालक पदाधिकारी औरंगाबाद को टाउन हॉल का जीर्णोद्धार एवं मरम्मती कराने का यथाशीघ्र दिशानिर्देश दिए गए। 

जिलाधिकारी द्वारा सम्राट अशोक भवन औरंगाबाद का भी निरीक्षण किया गया। सम्राट अशोक भवन के बाहर हरे पेड़–पौधे, पीसीसी कार्य, एवं सुयोग्य स्थान पर टॉयलेट बनाने और कार्य यथाशीघ्र संपन्न कराने का निर्देश कार्यपालक पदाधिकारी नगर पारिषद औरंगाबाद को दिया गया।

समाहरणालय औरंगाबाद का निरीक्षण किया गया, विभिन्न शाखों में पेंटिंग एवं सभी महत्वपूर्ण कागजात को सुसज्जित रखने हेतु तथा कार्यपालक अभियंता भवन प्रमंडल औरंगाबाद को समाहरणालय भवन औरंगाबाद की मरम्मती का निर्देश दिया गया।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

औरंगाबाद का जम्होर क्यों है प्रथम पिण्डदान का सबसे बड़ा केंद्र, जानिए स्ट्रीट बज्ज के इस रिपोर्ट में

औरंगाबाद : जिले के नवीनगर में टंडवा के पास से निकली आदि गंगा के रूप में वर्णित पुनपुन नदी को गया श्राद्ध तर्पण की प्रथम वेदी और प्रवेश द्वार माना गया है। यहां भारी संख्या में नेपाली पिंडदानी पितरों को खरमास में पिंडदान करने के लिए आते हैं। जम्होर के पुनपुन घाट पर प्रथम पिंडदान देना श्रेष्ठ माना गया है, जहां देश-विदेश के श्रद्धालु आकर पूजा एवं तर्पण करते हैं। 

 

वैदिक परंपरा और मान्यता के मुताबिक पितरों के लिए श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है। कहा जाता है कि पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता का सेवा करे और उनकी मृत्यु तिथि तथा महालय पितृपक्ष में उसका विधिवत श्राद्ध करे। कहा जाता है कि पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है।

खरमास का शुभांरभ होते ही पिंडदानियों का पुनपुन नदी घाट पर आने का सिलसिला निरंतर जारी हो जाता है। लोग दूर-दराज एवं देश-विदेश से अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु पुनपुन नदी में तर्पण करने आते हैं, ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

पुनपुन का नामकरण के बारे में बहुत सी कथाएं वर्णित हैं। 'गुरूड़ पुराण पूर्व खंड, अध्याय 84 में पुनः पुना महानद्यां श्राद्वों स्वर्ग निर्यत पितृन जो मगध के संबंध में यह भी कहा जाता है, 'कीकटेषु गया पुण्या, पुण्यं राजगृहं वनम् । च्यवनस्याज्ञश्रम पुण्यं नदी पुण्या पुनः पुना ।।'

मगध में गया, राजगृह का जंगल, च्यवन ऋषि का आश्रम तथा पुनपुन नदी पुण्य है 

 

जनश्रुति है कि प्राचीन काल में झारखंड राज्य के पलामू के जंगल में सनक, सुनन्दन, सनातन कपिल और पंचषिख घोर तपस्या कर रहे थे. जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हूए। ऋषियों ने ब्रह्माजी का चरण धोने के लिए पानी खोजा। नहीं मिलने पर ऋषियों ने अपने स्वेद् (यानि अपने शरीर का निकले पसीने जमा किये)। जब पसीना कमंडल में रखा जाता था तब कमंडल उलट जाता था।

इस तरह बार-बार कमंडल उलटने से ब्रह्मा जी के मुंह से अनायास ही निकल गया पुनः पुना। उसके बाद वहां से जल अजस्र धारा निकली। उसी से ऋषियों ने नाम रख दिया पुनः पुना, जो अब पुनपुन के नाम से मशहूर है। उस समय ब्रह्माजी ने कहा था कि जो इस नदी के तट पर पिंडदान करेगा, वह अपने पूवजों को स्वर्ग पहुंचायेगा। ब्रह्माजी ने पुनपुन नदी के बारे में कहा ''पुनःपुना सर्व नदीषु पुण्या, सदावह स्वच्छ जला शुभ प्रदा.' उसी के बाद से ही पितृपक्ष में पहला पिंड पुनपुन नदी के ही तट पर का विधान है। तब से पुनपुन में पहला पिंड देते हैं। 

कहा तो यहां तक जाता है कि जब प्रभु श्री रामचन्द्र जी का अपने पिता के आदेश पर चौदह साल का वनवास मिला था, उसी क्रम में कुछ दिनों बाद उनके पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो गयी, जिसकी सूचना प्रभु श्रीरामचन्द्र जी को आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हुआ।

ज्ञात होते ही प्रभु श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता से इच्छा जाहिर की कि इन्हें अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी के अशीर्वाद से उत्पन्न हुई पुनपुन नदी में पिंडदान करना है. तब प्रभु श्रीराम पुनपुन नदी के इसी तट पर आकर अपने पिता राजा दशरथ का सर्वप्रथम पिंडदान किया था और दूसरा पिंडदान माता सीता ने गया में जाकर किया था।

बताते चलें कि पुनपुन नदी के तट पर सन् 1909 में राजस्थान के खेतड़ी के सेठ राय सुर्यमलजी शिव प्रसाद झुनझुन वाला बहादुर ने भव्य धर्मशाला का निर्माण कराया था, ताकि दुर-दराज से आए राहगीर और पिंडदानी यहां विश्राम कर सकें। लेकिन आज यह धर्मशाला खुद उपेक्षित है।

आज जम्होर का यह स्थान प्रथम पिण्डदानिओं के लिए श्रेष्ठ है। पर , प्रशासनिक उपेक्षा का दंश यहां आज भी देखा जा सकता है। पिंडदानियों के लिए प्राप्त सुविधा की कमी रहती है। प्रचार-प्रसार की कमी के कारण अधिकांश लोग यहां पहली पिंड दान किए हुए बिना गया चले जाते हैं जिसका उन्हें पूरा फल नहीं मिल पाता। स्थानीय नेता भी यहां कुछ करने की जगह चुप रहते हैं।

सरकार को चाहिए कि इसे गया की तरह पिंडदानियों के लिए सुविधा उपलब्ध कराए और जम्होर को पर्यटन के मानचित्र पर लाये। वैसे, यहां कार्तिक पूर्णिमा पर भारी मेला लगता है और लोग पुनपुन में स्न्नान कर भगवान विष्णु मंदिर में दर्शन कर पुण्य की भागी बनते हैं।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र पाण्डेय

मारपीट के मामले में दोषी करार दिए गए तीन अभियुक्त को कारावास की सज़ा

औरंगाबाद: आज व्यवहार न्यायालय औरंगाबाद में एडिजे-4 ब्रजेश कुमार सिंह ने दाउदनगर थाना कांड संख्या- 133/2004 ,जी आर -1546/04 में निर्णय पर सुनवाई करते हुए तीनों अभियुक्त अक्षय पासवान,जनेश्वर पासवान, निर्भय पासवान को शमशेर नगर दाउदनगर को सज़ा सुनाई है।

एपीपी महेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि अक्षय पासवान को भादंवि धारा 324 में दो साल की सजा और दो हजार जुर्माना लगाया है तथा धारा 323 में दस माह की सजा और एक हजार जुर्माना लगाया है।

वही अभियुक्त जनेश्वर पासवान और निर्भय पासवान को सिर्फ भादंवि धारा 323 में दोषी पाते हुए दस माह की सजा और एक हजार जुर्माना लगाया है।

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि प्राथमिकी सूचक मलख पासवान शमशेर नगर दाउदनगर ने 12/07/04 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी। जिसमें कहा था कि अभियुक्तों ने सुचक सहित तीन को लाठी डंडे से मारपीट कर घायल कर दिया था। आरोप पत्र भी भादंवि धारा 307,323,324/34 में न्यायालय में पेश किया गया था।

आज सभी अभियुक्तों को भादंवि धारा 307 में साक्ष्य के अभाव मुक्त कर अन्य धाराओं में सज़ा सुनाई गई है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कार्यकर्ताओं से कैलाशपति मिश्र जन्म शताब्दी समारोह में व्यापक भागीदारी का किया आह्वान

औरंगाबाद : राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के पूर्व सदस्य सह भाजपा की बिहार इकाई के प्रदेश प्रवक्ता योगेन्द्र पासवान ने कहा है कि पार्टी राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए जातीय सर्वेक्षण के आंकड़ों का अध्ययन कर रही है। इसके बाद ही पार्टी द्वारा अधिकारिक रुप से वक्तव्य दिया जाएगा।

पार्टी द्वारा पटना के बापू सभागार में 5 अक्टूबर को आयोजित किए जाने वाले कैलाशपति मिश्र जन्म शताब्दी समारोह में भारी भागीदारी के लिए कार्यकर्ताओं को निमंत्रण देने मंगलवार को यहां आए श्री पासवान ने प्रेसवार्ता में कहा कि कैलाशपति मिश्र पार्टी में दधीचि और भीष्म पितामह के रूप में जाने जाते रहे है। उनकी लीक से हटकर अपनी अलग तरह की विचारधारा थी।

इसके बावजूद पार्टी की विचारधारा उनके लिए सर्वोपरि थी। यही वजह थी कि जब 1995 में बिहार में समता पार्टी से गठबंधन की बात होने से वे दुःखी होकर गुजरात चले गए थे लेकिन जब पार्टी ने गठबंधन का निर्णय कर लिया तो उन्होने निर्णय को स्वीकार कर लिया था।

कहा कि कैलाशपति मिश्र भाजपा के नेता नही विचारधारा थे। वें 1944 से आरएसएस से जुड़े रहे है। 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना होने पर पार्टी के वें प्रथम बिहार प्रदेश अध्यक्ष बने थे। 1977 में वें कर्पूरी ठाकुर मंत्रीमंडल में वित्त मंत्री रहे। 2012 में उनके निधन के बाद भाजपानित केंद्र सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आज उनके भी विचारों पर चल रही है। उनके विचारों पर चलते हुए ही पार्टी उनकी जन्म शताब्दी समारोह मनाने जा रही है।

समारोह में स्व. मिश्र से जुड़े कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया जाएगा। समारोह में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा एवं अन्य राष्ट्रीय नेता भाग लेंगे। इसी समारोह में व्यापक भागीदारी के लिए कार्यकर्ताओं को निमंत्रण देने यहां आए है। उम्मीद है कि औरंगाबाद से भारी संख्या में कार्यकर्ता भाग लेंगे।

प्रेसवार्ता में भाजपा के ओबरा विधानसभा क्षेत्र प्रभारी धर्मेंद्र शर्मा, पूर्व जिलाध्यक्ष पुरुषोत्तम सिंह एवं तीर्थनारायण वैश्य आदि भी मौजूद रहे।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

घरेलू विवाद में चाची ने मासूम भतीजी पर उड़ेल दिया था चावल का मांड़ : घटना के 16 दिन बाद भी पुलिस ने दर्ज नही की प्राथमिकी

न्याय के लिए दर दर भटक रहा बेटी का बाप

औरंगाबाद : घरेलू विवाद में चाची द्वारा मासूम भतीजी पर खौलते हुए चावल का मांड़ उड़ेल दिए जाने के बाद से बेटी का बाप न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है।

हद तो यह है कि घटना के 16 दिन बाद भी पुलिस ने घटना की प्राथमिकी दर्ज नही की है। घटना औरंगाबाद के मदनपुर थाना क्षेत्र के शिवगंज की है।

मासूम बेटी का औरंगाबाद सदर अस्पताल के शिशु वार्ड में इलाज करा रहे पिता अरूण कुमार ने बताया कि पिछले माह 17 सितंबर को घरेलु झगड़े में उसके भाई की पत्नी ने मेरी तीन साल की बेटी काजल को गर्म माड़ में धक्का दे दिया था, जिससे वह गंभीर रूप से झुलस गई है। उसी मासूम बेटी का वह सदर अस्पताल में इलाज करा रहे है।

बेटी अस्पताल के शिशु वार्ड में घटना के दिन से भर्ती है। इस मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने वें मदनपुर थाना गए थे लेकिन थानाध्यक्ष ने अबतक मामले की प्राथमिकी दर्ज नही की है। वह मासूम के साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ चाहते है। इसी वजह से न्याय के लिए दर दर भटक रहे है। पिता ने वरीय अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है।

थानाध्यक्ष ने कहा-जांच में झूठा पाया गया मामला, इसलिए दर्ज नही की गई प्राथमिकी-

इस बारे में पूछे जाने पर मदनपुर थानाध्यक्ष शशि कुमार राणा ने कहा कि मामले की शिकायत आई थी। शिकायत की जांच की गई तो मामला असत्य पाया गया। मासूम बच्ची पर उसकी चाची ने चावल का मांड़ नही उड़ेला था बल्कि बालिका की मां जब चावल पसा रही थी तो बच्ची पास में खेल रही थी। इसी दौरान वह मांड़ में गिरकर झुलस गयी।

गांव के सामाजिक कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों ने भी इस सच्चाई को पुलिस के समक्ष स्वीकार किया है। आप भी इसका गांव के लोगों से पता लगा सकते है।

कहा कि दरअसल बच्चीं की चाची विधवा महिला है। उसका एक बेटा सरकारी नौकरी में है। इसे लेकर ही दूसरे पक्ष में जलनखोरी है। इसी कारण हादसा को हिंसा का रंग देकर प्राथमकी दर्ज कराने की कोशिश की गई, जिसे पुलिस ने जांच कर विफल कर दिया। इसी वजह से पुलिस पर प्राथमिकी दर्ज नही करने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र पाण्डेय

पितृ पक्ष में कौवे का इतना महत्व क्यों है? जानिए क्यों खिलाया जाता है उन्हें खाना


गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौवा श्राद्ध के दिन भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। आइए जानते हैं इसका महत्व-

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो वह पितृदेव का रूप धारण करता है और वंशजों की रक्षा करता है। पितृ पक्ष में इन पैतृक देवताओं का आह्वान किया जाता है। पिंडदान पितृ पक्ष में पितरों के लिए किया जाता है। अगर आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो पितृ पक्ष के दौरान कुछ उपाय करने से वह दूर हो सकता है।

पितृ पक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कौवे को खिलाने की प्रथा है। ऐसा माना जाता है कि जब तक कौवा भोजन को नहीं ग्रहण करता है, वह पितरों तक नहीं पहुंचता। पितरों के लिए पिण्डदान केवल पितृ पक्ष में ही नहीं कभी भी किया जा सकता है। लेकिन पितृ पक्ष में किया गया पिंडदान बहुत महत्वपूर्ण होता है। पिंडदान पाकर पितृ संतुष्ट होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष में पिंड दान करने के बाद कौवे को प्रसाद चढ़ाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवे को मृत्यु के देवता यमराज का दूत माना जाता है। इसलिए कौवे को भोजन खिलाने से वह भोजन पितरों तक पहुंचने की मान्यता है। कौवे के अलावा गायों की भी अग्रासन दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है।

पितृपक्ष में कौवे को क्यों कराया जाता है भोजन?

एक किंवदंती के अनुसार, इंद्रपुत्र जयंत ने एक बार एक कौवे का रूप धारण किया और माता सीता के पैर पर चोंच मारकर उन्हें घायल कर दिया। इससे भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने आंखें फाड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र उठा लिया। जयंत ने तब भगवान राम से क्षमा मांगी। तब भगवान राम ने उन्हें क्षमादान देते हुए वरदान दिया। श्री राम ने जयंत से कहा कि किसी के द्वारा आपको दिया गया भोजन उनके पूर्वजों तक पहुंच जाएगा। इसलिए कौवे को खाना खिलाना बहुत ही शुभ कार्य माना जाता है। एक धार्मिक मान्यता है कि कौवे द्वारा ग्रहण किया गया भोजन पितरों तक पहुंचता है और वे संतुष्ट होकर अपना आशीर्वाद देते हैं। साथ ही अगर पितृ पक्ष में कौवा नैवेद्य लेकर गाय की पीठ पर अपनी चोंच रगड़ता है तो ऐसा माना जाता है कि आपका काम पूरा होगा।

पितृ पक्ष में नहीं कर पा रहे हैं श्राद्ध? तो पितरों की आत्मशांति के लिए अपनाएं ये उपाय पितृदोष से मिलती है मुक्ति

पितृ पक्ष में कौवे को खिलाने से न केवल पितरों को प्रसन्नता होती है बल्कि यह आपकी कुंडली से पितृदोष को भी दूर कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो पितृ पक्ष में पिंड दान करने और कौवे को छूने से आपको पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। यह भी माना जाता है कि यदि कौवा आपके द्वारा रखी गई भेंट को स्वीकार कर निगल लेता है, तो मृत्यु के देवता यमराज भी प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा अगर कौवे भोजन को ग्रहण करते हैं तो यह भी माना जाता है कि कुंडली में पितृदोष के साथ-साथ कालसर्प दोष भी दूर होता है।