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मारपीट के मामले में दोषी करार दिए गए तीन अभियुक्त को कारावास की सज़ा

औरंगाबाद: आज व्यवहार न्यायालय औरंगाबाद में एडिजे-4 ब्रजेश कुमार सिंह ने दाउदनगर थाना कांड संख्या- 133/2004 ,जी आर -1546/04 में निर्णय पर सुनवाई करते हुए तीनों अभियुक्त अक्षय पासवान,जनेश्वर पासवान, निर्भय पासवान को शमशेर नगर दाउदनगर को सज़ा सुनाई है।

एपीपी महेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि अक्षय पासवान को भादंवि धारा 324 में दो साल की सजा और दो हजार जुर्माना लगाया है तथा धारा 323 में दस माह की सजा और एक हजार जुर्माना लगाया है।

वही अभियुक्त जनेश्वर पासवान और निर्भय पासवान को सिर्फ भादंवि धारा 323 में दोषी पाते हुए दस माह की सजा और एक हजार जुर्माना लगाया है।

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि प्राथमिकी सूचक मलख पासवान शमशेर नगर दाउदनगर ने 12/07/04 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी। जिसमें कहा था कि अभियुक्तों ने सुचक सहित तीन को लाठी डंडे से मारपीट कर घायल कर दिया था। आरोप पत्र भी भादंवि धारा 307,323,324/34 में न्यायालय में पेश किया गया था।

आज सभी अभियुक्तों को भादंवि धारा 307 में साक्ष्य के अभाव मुक्त कर अन्य धाराओं में सज़ा सुनाई गई है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कार्यकर्ताओं से कैलाशपति मिश्र जन्म शताब्दी समारोह में व्यापक भागीदारी का किया आह्वान

औरंगाबाद : राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के पूर्व सदस्य सह भाजपा की बिहार इकाई के प्रदेश प्रवक्ता योगेन्द्र पासवान ने कहा है कि पार्टी राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए जातीय सर्वेक्षण के आंकड़ों का अध्ययन कर रही है। इसके बाद ही पार्टी द्वारा अधिकारिक रुप से वक्तव्य दिया जाएगा।

पार्टी द्वारा पटना के बापू सभागार में 5 अक्टूबर को आयोजित किए जाने वाले कैलाशपति मिश्र जन्म शताब्दी समारोह में भारी भागीदारी के लिए कार्यकर्ताओं को निमंत्रण देने मंगलवार को यहां आए श्री पासवान ने प्रेसवार्ता में कहा कि कैलाशपति मिश्र पार्टी में दधीचि और भीष्म पितामह के रूप में जाने जाते रहे है। उनकी लीक से हटकर अपनी अलग तरह की विचारधारा थी।

इसके बावजूद पार्टी की विचारधारा उनके लिए सर्वोपरि थी। यही वजह थी कि जब 1995 में बिहार में समता पार्टी से गठबंधन की बात होने से वे दुःखी होकर गुजरात चले गए थे लेकिन जब पार्टी ने गठबंधन का निर्णय कर लिया तो उन्होने निर्णय को स्वीकार कर लिया था।

कहा कि कैलाशपति मिश्र भाजपा के नेता नही विचारधारा थे। वें 1944 से आरएसएस से जुड़े रहे है। 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना होने पर पार्टी के वें प्रथम बिहार प्रदेश अध्यक्ष बने थे। 1977 में वें कर्पूरी ठाकुर मंत्रीमंडल में वित्त मंत्री रहे। 2012 में उनके निधन के बाद भाजपानित केंद्र सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आज उनके भी विचारों पर चल रही है। उनके विचारों पर चलते हुए ही पार्टी उनकी जन्म शताब्दी समारोह मनाने जा रही है।

समारोह में स्व. मिश्र से जुड़े कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया जाएगा। समारोह में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा एवं अन्य राष्ट्रीय नेता भाग लेंगे। इसी समारोह में व्यापक भागीदारी के लिए कार्यकर्ताओं को निमंत्रण देने यहां आए है। उम्मीद है कि औरंगाबाद से भारी संख्या में कार्यकर्ता भाग लेंगे।

प्रेसवार्ता में भाजपा के ओबरा विधानसभा क्षेत्र प्रभारी धर्मेंद्र शर्मा, पूर्व जिलाध्यक्ष पुरुषोत्तम सिंह एवं तीर्थनारायण वैश्य आदि भी मौजूद रहे।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

घरेलू विवाद में चाची ने मासूम भतीजी पर उड़ेल दिया था चावल का मांड़ : घटना के 16 दिन बाद भी पुलिस ने दर्ज नही की प्राथमिकी

न्याय के लिए दर दर भटक रहा बेटी का बाप

औरंगाबाद : घरेलू विवाद में चाची द्वारा मासूम भतीजी पर खौलते हुए चावल का मांड़ उड़ेल दिए जाने के बाद से बेटी का बाप न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है।

हद तो यह है कि घटना के 16 दिन बाद भी पुलिस ने घटना की प्राथमिकी दर्ज नही की है। घटना औरंगाबाद के मदनपुर थाना क्षेत्र के शिवगंज की है।

मासूम बेटी का औरंगाबाद सदर अस्पताल के शिशु वार्ड में इलाज करा रहे पिता अरूण कुमार ने बताया कि पिछले माह 17 सितंबर को घरेलु झगड़े में उसके भाई की पत्नी ने मेरी तीन साल की बेटी काजल को गर्म माड़ में धक्का दे दिया था, जिससे वह गंभीर रूप से झुलस गई है। उसी मासूम बेटी का वह सदर अस्पताल में इलाज करा रहे है।

बेटी अस्पताल के शिशु वार्ड में घटना के दिन से भर्ती है। इस मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने वें मदनपुर थाना गए थे लेकिन थानाध्यक्ष ने अबतक मामले की प्राथमिकी दर्ज नही की है। वह मासूम के साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ चाहते है। इसी वजह से न्याय के लिए दर दर भटक रहे है। पिता ने वरीय अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है।

थानाध्यक्ष ने कहा-जांच में झूठा पाया गया मामला, इसलिए दर्ज नही की गई प्राथमिकी-

इस बारे में पूछे जाने पर मदनपुर थानाध्यक्ष शशि कुमार राणा ने कहा कि मामले की शिकायत आई थी। शिकायत की जांच की गई तो मामला असत्य पाया गया। मासूम बच्ची पर उसकी चाची ने चावल का मांड़ नही उड़ेला था बल्कि बालिका की मां जब चावल पसा रही थी तो बच्ची पास में खेल रही थी। इसी दौरान वह मांड़ में गिरकर झुलस गयी।

गांव के सामाजिक कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों ने भी इस सच्चाई को पुलिस के समक्ष स्वीकार किया है। आप भी इसका गांव के लोगों से पता लगा सकते है।

कहा कि दरअसल बच्चीं की चाची विधवा महिला है। उसका एक बेटा सरकारी नौकरी में है। इसे लेकर ही दूसरे पक्ष में जलनखोरी है। इसी कारण हादसा को हिंसा का रंग देकर प्राथमकी दर्ज कराने की कोशिश की गई, जिसे पुलिस ने जांच कर विफल कर दिया। इसी वजह से पुलिस पर प्राथमिकी दर्ज नही करने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र पाण्डेय

पितृ पक्ष में कौवे का इतना महत्व क्यों है? जानिए क्यों खिलाया जाता है उन्हें खाना


गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौवा श्राद्ध के दिन भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। आइए जानते हैं इसका महत्व-

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो वह पितृदेव का रूप धारण करता है और वंशजों की रक्षा करता है। पितृ पक्ष में इन पैतृक देवताओं का आह्वान किया जाता है। पिंडदान पितृ पक्ष में पितरों के लिए किया जाता है। अगर आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो पितृ पक्ष के दौरान कुछ उपाय करने से वह दूर हो सकता है।

पितृ पक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कौवे को खिलाने की प्रथा है। ऐसा माना जाता है कि जब तक कौवा भोजन को नहीं ग्रहण करता है, वह पितरों तक नहीं पहुंचता। पितरों के लिए पिण्डदान केवल पितृ पक्ष में ही नहीं कभी भी किया जा सकता है। लेकिन पितृ पक्ष में किया गया पिंडदान बहुत महत्वपूर्ण होता है। पिंडदान पाकर पितृ संतुष्ट होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष में पिंड दान करने के बाद कौवे को प्रसाद चढ़ाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवे को मृत्यु के देवता यमराज का दूत माना जाता है। इसलिए कौवे को भोजन खिलाने से वह भोजन पितरों तक पहुंचने की मान्यता है। कौवे के अलावा गायों की भी अग्रासन दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है।

पितृपक्ष में कौवे को क्यों कराया जाता है भोजन?

एक किंवदंती के अनुसार, इंद्रपुत्र जयंत ने एक बार एक कौवे का रूप धारण किया और माता सीता के पैर पर चोंच मारकर उन्हें घायल कर दिया। इससे भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने आंखें फाड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र उठा लिया। जयंत ने तब भगवान राम से क्षमा मांगी। तब भगवान राम ने उन्हें क्षमादान देते हुए वरदान दिया। श्री राम ने जयंत से कहा कि किसी के द्वारा आपको दिया गया भोजन उनके पूर्वजों तक पहुंच जाएगा। इसलिए कौवे को खाना खिलाना बहुत ही शुभ कार्य माना जाता है। एक धार्मिक मान्यता है कि कौवे द्वारा ग्रहण किया गया भोजन पितरों तक पहुंचता है और वे संतुष्ट होकर अपना आशीर्वाद देते हैं। साथ ही अगर पितृ पक्ष में कौवा नैवेद्य लेकर गाय की पीठ पर अपनी चोंच रगड़ता है तो ऐसा माना जाता है कि आपका काम पूरा होगा।

पितृ पक्ष में नहीं कर पा रहे हैं श्राद्ध? तो पितरों की आत्मशांति के लिए अपनाएं ये उपाय पितृदोष से मिलती है मुक्ति

पितृ पक्ष में कौवे को खिलाने से न केवल पितरों को प्रसन्नता होती है बल्कि यह आपकी कुंडली से पितृदोष को भी दूर कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो पितृ पक्ष में पिंड दान करने और कौवे को छूने से आपको पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। यह भी माना जाता है कि यदि कौवा आपके द्वारा रखी गई भेंट को स्वीकार कर निगल लेता है, तो मृत्यु के देवता यमराज भी प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा अगर कौवे भोजन को ग्रहण करते हैं तो यह भी माना जाता है कि कुंडली में पितृदोष के साथ-साथ कालसर्प दोष भी दूर होता है।

दाउदनगर में पूरे 9 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है जिउतिया पर्व


जिउतिया पर्व पुत्रों के जीवन कामना को लेकर माताएं करतीं हैं। यह एक लोक पर्व है। यह अन्य पर्व और त्योहार से अपना अलग और खास महत्व रखता है। इस पर्व के दौरान माताएं अपनी संतान के दीर्घायु, स्वास्थ्य, खुशहाली और मंगल की कामना को लेकर 36 घंटे तक निर्जला उपवास करतीं हैं। यह पर्व प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस वर्ष 6 अक्टूबर को मनाया जाना है। इस दिन महिलाएं भगवान जिमुत वाहन की पूजा कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करतीं हैं।

9 दिनों में नकल की अलग-अलग विधाओं को कर्म के रूप में प्रदर्शित किया था

बिहार के दाउदनगर का जिउतिया पर्व आज देश ही नहीं विश्व में भी काफी प्रसिद्ध और प्रचलित हो चुका है। इस पर्व को दाउदनगर में पूरे 9 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान नकल के कलाकारों की ओर से बहुरंगी प्रतिभाओं को प्रदर्शित किया जाता है। पर्व को लेकर एक लोकोक्ति भी प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि कभी यह शहर फ्लैग जैसी महामारी से ग्रसित हुआ था। स्थिति यह हो गई थी कि यहां मौत के आंकड़े बढ़ते चले जा रहे थे। लोग इसे कोई दैवीय प्रकोप भी मान रहे थे। प्रकोप को शांत करने के लिए पूजा-पाठ किए गए। लेकिन मौत में कमी नहीं हो रही थी। तभी किसी दक्षिण भारत के तांत्रिक, ओझा, गुणी और महा पंडित से संपर्क साधा गया और उन्हें बुलाकर इस दैवीय प्रकोप को शांत करने का आग्रह किया गया। दैवीय प्रकोप को शांत करने में ओझा गुणीजन को एक माह लगे। लेकिन उसमें से 9 दिन काफी महत्वपूर्ण रहे। इस 9 दिनों में नकल की अलग-अलग विधाओं को कर्म के रूप में प्रदर्शित कर प्रकोप से मुक्ति दिलाई गई थीI तब से आज तक वह विद्या यहां की लोक संस्कृति बनकर लोगों के जीवन में बस गई है।

दाउदनगर में जिमूतवाहन भगवान की पूजा की जाती

उस वक्त ओझा और पंडितों ने भगवान जिमूतवाहन को दाउदनगर के पटवा टोली, नया शहर चौक, कसेरा टोली और पुराना शहर चौक पर स्थापित किया गया था और तब से लेकर आज तक उन चौक पर प्रतिवर्ष महिलाएं संतान के दीर्घायु की कामना को लेकर पूजा करने लगी। दाउदनगर में जिमुत वाहन भगवान की पूजा की जाती है। वे सूर्यवंशी राजा शालिवाहन के पुत्र थे और शालिवाहन ने ही शक संवत की शुरुआत की थी। दाउदनगर की जिउतिया एक लोक उत्सव के रूप में न सिर्फ प्रसिद्ध हुई बल्कि काफी समृद्ध भी हुई। इस उत्सव में स्थानीय कलाकार कई विधाओं को प्रदर्शित करते हैं। इन विधाओं में साहित्य भी है, सृजन भी है, दर्शन भी है जिसमें जीवन के विभिन्न रूप दृष्टिगोचर होते है। पर्व के मौके पर साहस, पराक्रम का खुला प्रदर्शन किया जाता है। अनूठे अजूबे करतब दिखाए जाते हैं। जिसमें युवा अपनी कमर, बांह, हथेली, चेहरा एवं हाथ में चाकू, त्रिशूल और तलवार आदि को आर पार कर देते हैं। इसके अलावा भूत पिशाच, दम-दमाड़, डाकिनी आदि के नकल आदि प्रमुख है।

16 दिनों से न्याय के लिए दर भटक रहा 3 वर्षीय मासूम का यह पिता, जानिए क्या है मामला

औरंगाबाद : जिले के सदर अस्पताल मे चावल के गर्म माड़ से झुलसी 3 वर्षीय बच्ची काजल का इलाज करा रहा शिवगंज का अरुण पिछले 16 दिनों से दर दर भटक रहा है परंतु उसे न्याय नहीं मिल पा रहा है. 

आज मंगलवार की सुबह सदर अस्पताल के शिशु वार्ड में बच्ची को लेकर इलाज करा रहे अरुण ने बताया कि पिछले 17 सितंबर को घरेलु झगड़े में उसके भाई की पत्नी ने गर्म माड़ में धक्का दे दिया.जिससे यह गंभीर रूप से झुलस गई.  

मदनपुर थानाध्यक्ष इस मामले की प्राथमिकी ही नही दर्ज कर रहे हैं. जिसके कारण उसकी बच्ची को न्याय नहीं मिल पा रहा है. उसने वरीय अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है.

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

जातिगत गणना के रिपोर्ट पर बनारस वाला इश्क फेम के चर्चित लेखक प्रभात बांधुल्य की आई त्वरित प्रतिक्रिया, जानिए...

औरंगाबाद : 'बनारस वाला इश्क' फेम बिहार के चर्चित लेखक प्रभात बांधुल्य की त्वरित प्रतिक्रिया आई हैं। प्रतिक्रिया के लिए औरंगाबाद के रहने वाले इस लेखक ने कविता का सहारा लिया है। काव्य की शैली में लेखक ने व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया दी है।हालांकि प्रतिक्रिया के पहले उन्होने भूमिका भी बांधी है।

कविता के पहले लेखक ने बांधी तार्किक भूमिका-

भूमिका में लेखक ने कहा है कि जब जातीय गणना की बात आई थी तो मैंने कहा था कि दशरथ मांझी के इस राज्य में जात कोड की जरूरत नही, प्रेम के कोड की जरूरत है। मुहब्बत की जरूरत है। आपसी भाईचारें और प्रेम की जरूरत है और भव्य बिहार बनाने की जरूरत है। खैर, सरकार का अपना दलील है। आज जातीय आंकड़ा, जातीय गणना का आंकड़ा हम सभी के सामने आ चुका है। तो ऐसी स्थिति में जो मैं समझ पा रहा हूं, जातीय गणना के इस आंकड़ा से, आंकड़ा के सामने आ जाने से हमारा और आपका क्या बदलेगा। राजा को सबकुछ मिलेगा।

कविता के पहले अपनी ही कविता की भूमिका में लेखक ने की चर्चा-

कविता के पहले लेखक ने अपनी ही कविता की चर्चा भूमिका में की। कहा कि मेरी एक कविता है। दो लाइन है कि "नेताजी का बेटा लंदन पढ़ रहा है। लाठी ले के सोनुआं इहां लंठ बन रहा है।

पढ़े लेखक की जातीय गणना के आंकड़े के आने के बाद की यह कविता-

अपनी पुरानी कविता की दो लाइन कहने के बाद लेखक ने कहा है:, तो आम जन को क्या मिल रहा है। यहा मेरी एक कविता है-

"यहाँ एक राजा रहता है,

राजा की जात,

कुम्हार, लोहार, यादव,

कुर्मी, कायस्थ,

ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत नहीं है...

राजा की जात है "राजगद्दी"

वह राजा था और रहेगा

हर जाति का अपना एक राजा है

जिसने अपने लिए महल बनवाए..

चार-पाँच बड़े मॉल

कुछ पेट्रोल-पम्प,

कुछ शहरों में अपना फार्म हाउस

देश और राज्य की राजधानी में अपना रंगीन ठिकाना!!

राजा का बेटा "राज कुँवर" अब तैयार है,

तुम किसी भी जात के हो,

तुम भी तैयार रहो

ताली बजाने के लिए

झंडा उठाने के लिए

और नारा लगाने के लिए

खूब ज़ोर से "राजगद्दी ज़िंदाबाद"

कविता के बाद निष्कर्ष की भी चर्चा-

लेखक ने कविता के बाद निष्कर्ष पर भी चर्चा की। कहा कि मेरा कहना है कि जो भी आंकड़ा आ जाएं, जातिगत आंकड़ें आ जाएं, आर्थिक सर्वेक्षण कर लिया जाए, लेकिन सत्ता के इर्द गिर्द वही राजा नजर आएगा। अब हर

जात में एक राजा है, जो पूंजीपति है, बाहुबलि है और वही राजा आपको सत्ता के केंद्र में नजर आएगा और आम जनमानस सोनुआं जैसे लोग सिर्फ ताली बजा सकते है, लाठी उठा सकते है, नारा लगा सकते है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

बिहार सरकार की ओर से जारी जाति जनगणना की रिपोर्ट पर सियासत जारी, बीजेपी ने विपक्ष पर लगाया यह गंभीर आरोप

औरंगाबाद: बिहार सरकार की ओर से जारी जाति जनगणना की रिपोर्ट पर सियासत जारी है।इस सियासी विवाद के बीच भाजपा नेता आदित्य श्रीवास्तव ने प्रेस बयान जारी करते हुए विपक्ष पर देश को जाति के नाम पर बांटने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।

उन्होंने जनगणना की रिपोर्ट और किसी पार्टी का नाम लिए बगैर विपक्ष पर गरीबों की भावनाओं के साथ खेलने का आरोप लगाया है।

आदित्य श्रीवास्तव ने कहा- वे तब भी गरीबों की भावनाओं से खेलते थे और आज भी वही खेल खेल रहे हैं। पहले उन्होंने देश को जाति के नाम पर बांटा... आज भी वही पाप कर रहे हैं।

पहले भ्रष्टाचार किया, आज इसमें और डूबे गए हैं। नीतीश कुमार अपनी सत्ता के सुख के लिए समाज को जाति समीकरण में बाट कर तोड़ना चाहते हैं। जातीय जनगणना कर के समाज में उन्माद फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।

बिहार की गिरती शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था और बिहार मे बढ़ते अपराध पर लगाम लगाना चाहिए। बिहार में बड़े-बड़े उद्योग लगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिससे बिहार के युवाओं को रोजगार मिल सके दूसरे राज्यों में जाने की जरूरत ना हो।

जदयू जातीय समीकरण की राजनीति कर के जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।

कांग्रेस ने वादा किया है कि यदि वह देश की सत्ता में लौटती है तो जाति आधारित जनगणना कराएगी। राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की जरूरत बता रहे हैं।

उन्होंने हाल ही में कहा था कि सत्ता में आने के बाद, कांग्रेस सबसे पहले जाति-आधारित जनगणना कराएगी। जाति के आधार पर समाज में विभाजन के प्रयास को 'पाप' करार दिया।

उन्होंने कहा- कुछ लोगों को देश की प्रगति और विकास से नफरत है। वो तब भी जात-पात के नाम पर समाज को बांटते थे, आज भी यही पाप कर रहे हैं। वो तब भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे रहते थे, आज तो एक से बढ़कर एक घोर भ्रष्टाचारी हो गए हैं। वो पहले एक परिवार का गौरव गान करते थे, आज भी वही कर रहे हैं।

ये केवल अपना भविष्य देखते हैं इसलिए उनको देश का गौरव गान पसंद नहीं आता है,जिनके पास सोच नहीं वे विकास नहीं कर सकते हैं। उनके (विपक्ष के) पास कोई सोच या 'रोडमैप' नहीं है। भाजपा की अगुवाई वाली सरकार में देश की प्रगति उनको (विपक्ष) अच्छी नहीं लगती है। उनको (विपक्ष) वैश्विक मंचों पर देश की प्रशंसा पसंद नहीं है।

मौजूदा वक्त में पूरी दुनिया भारत का गौरव गान कर रही है। मौजूदा वक्त में दुनिया को भारत में भविष्य नजर आता है, लेकिन वे (विपक्ष) राजनीति में इस कदर उलझे हैं कि कुर्सी के सिवाय उनको कुछ नजर नहीं आता है। उन्हें (विपक्ष) हिंदुस्तान का डंका बजना भी नहीं अच्छा लगता है।

औरंगाबाद से धीरेन्द्र

सनातन धर्म शास्त्रों में पित्तरों को मोक्ष दिलाने के लिए पितृपक्ष में पिंडदान किए जाने धार्मिक विधान की सदियों से चली आ रही परंपरा

औरंगाबाद: सनातन धर्म शास्त्रों में पित्तरों को मोक्ष दिलाने के लिए पितृपक्ष में पिंडदान किए जाने का धार्मिक विधान सदियों से चला आ रहा है। इसी धार्मिक विधान के तहत श्रद्धालु पित्तरों को मोक्ष दिलाने के लिए पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान किया करते है। 

पुनपुन नदी में पित्तरों को प्रथम पिंड देने के बाद ही श्रद्धालु मोक्षदायिनी अंतर्राष्ट्रीय धर्म नगरी गया जाकर श्राद्ध तर्पण का कर्मकांड विधि विधान से पूरा किया करते है। 

इसी वजह से पुराणों में पुनपुन नदी को गया श्राद्ध का प्रवेश द्वार कहा गया है। यह भी कहा गया है कि पुनपुन नदी में पित्तरों को प्रथम पिंड दिए बिना गयाजी में पूरक विधान से कराया गया पितृ तर्पण अपूर्ण रह जाता है और पित्तरों को भी वह स्वीकार नही होता है। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि गया श्राद्ध करने के पहले हरहाल में पुनपुन में पित्तरो को प्रथम पिंडदान करना अनिवार्य है। यह अनिवार्यता भी सदियों से चली आ रही है।

बात त्रेतायुग की है। अयोध्या के राजकुमार श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास दे दिया गया था। श्रीराम के वनवास के दौरान ही पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गई। इसकी सूचना श्रीराम को आकाशवाणी से मिली। पिता की मौत की सूचना के बाद वनवासी जीवन जी रहे श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता से इच्छा जाहिर किया कि उन्हे अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी के आशीर्वाद से उत्पन्न हुई पुनपुन नदी में पिंडदान करना है। तब प्रभु श्रीराम ने पुनपुन नदी के तट पर आकर अपने पिता राजा दशरथ का सर्वप्रथम पिंडदान किया था। इसके बाद दूसरा पिंडदान माता सीता ने गया में किया था। हालांकि सनातन धर्म में पिता को पुत्र के हाथों ही पिंडदान का विधान है। इसके बावजूद गया में सीता द्वारा बहु की हैसियत से अपने ससुर महाराज दशरथ के लिए पिंडदान किया जाना परिस्थितिजन्य रहा है, जिसकी चर्चा वाल्मिकी रामायण में है। 

वाल्मिकी रामायण में जिक्र है कि सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था और उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। कहा गया है कि प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृपक्ष के दौरान पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने गया पहुंचे थे। इस बीच श्राद्ध की जरूरी सामग्री जुटाने के लिए भगवान राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए। इसी दौरान माता सीता ने दशरथ का पिंडदान किया था। एक पौराणिक कहानी के मुताबिक राजा दशरथ की मौत के बाद भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार की हर विधि को पूरा किया था लेकिन राजा दशरथ को सबसे ज्यादा प्यार अपने बड़े बेटे राम से था। इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की बची हुई राख उड़ते-उड़ते गया में नदी के पास पहुंची। 

इसी राख में माता सीता को राजा दशरथ के दर्शन हुए। उन्होंने सीता से कहा कि वे स्‍वयं उन्ही के हाथों अपने लिए पिंडदान करवाना चाहते हैं। राजा दशरथ की इस इच्‍छा को पूरा करने के लिए माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया और अपने पिता समान ससुर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए और उन्‍हें आशीष देकर मोक्ष को प्राप्‍त हो गए। 

गरूड़ पुराण में कहा गया है कि पितरों को मोक्ष दिलाने के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा है। पूर्वज आपके भोजन के नहीं बल्कि श्रद्धाभाव के भूखे हैं। शास्‍त्रों में श्राद्ध का पहला अधिकार पुत्र को दिया गया है लेकिन जिस परिवार में कोई पुत्र नहीं है, उस परिवार की कन्‍या पित्तरों के श्राद्ध को अगर श्रद्धापूर्वक करती है और उनके निमित्त पिंडदान करती है तो पित्तर उसे स्वीकार कर लेते हैं। इसके अलावा पुत्र की अनुपस्थिति में बहू या पत्नी को भी श्राद्ध करने का अधिकार है। इसी अधिकार से माता सीता ने अपने ससुर का पिंडदान परिस्थितिवश किया था।

गरूड़ पुराण में कहा गया है कि प्राचीन काल में कीकट(मगध) प्रदेश के दक्षिण भाग(वर्तमान झारखंड) के पलामू जंगल में सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल और पंचषिख ऋषि घोर तपस्या कर रहे थें। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हूए। ऋषियों ने ब्रह्माजी का चरण धोने के लिए पानी खोजा। पानी नही मिलनें पर ऋषियों ने अपने स्वेद्(यानी अपने शरीर का निकला हुआ पसीना) जमा किया। जब पसीना कमंडल में रखा जाता तब कमंडल उलट जाता था। 

इस तरह बार-बार कमंडल उलटने से ब्रह्मा जी के मुंह से अनायास निकल गया पुनः पुना। इसके बाद वहां से अजस्र जल की धारा निकली। इसी से ऋषियों ने नाम रख दिया पुनः पुना, जो अब पुनपुन के नाम से मशहूर है। उसी समय ब्रह्माजी ने कहा था कि इस नदी के तट पर जो पिंडदान करेगा, वह अपने पूवजों को स्वर्ग पहुंचाएगा। ब्रह्माजी ने पुनपुन नदी के बारे में कहा था कि ‘‘पुनःपुना सर्व नदीषु पुण्या, सदावह स्वच्छ जला शुभ प्रदा’’। इसके बाद से ही पितृपक्ष में पुनपुन नदी के तट पर ही प्रथम पिंडदान का विधान सदियों से चला आ रहा है।  

झारखंड की सीमा पर पुराणों में पुनपुन नदी को आदि गंगा कहा गया है। मान्यता हैं कि यह पवित्र गंगा नदी से भी प्राचीन है। इसका वर्णन पुराणों में-"आदि गंगा पुनै-पुनै ......." के रूप में मिलता है, जो इसे गंगा से भी प्राचीन होने को बल प्रदान करता है। यह आदि गंगा यानि पुनपुन नदी औरंगाबाद से ही निकली है और बिहार की राजधानी पटना के पास गंगा इस नदी से जा मिली है। गंगा बड़ी नदी है। 

इस कारण वहां से पुनपुन को गंगा अपने आगोश में समेट लेती है। वहां से इस नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और गंगा की अविरल धारा आगे की ओर बढ़ जाती है। औरंगाबाद में पुनपुन नदी का उद्गम स्थल झारखंड की सीमा पर नबीनगर के टंडवा के इलाके में जंगलों में अवस्थित है। अब चूंकि पुनपुन नदी औरंगाबाद में अवस्थित है तो यह स्वाभाविक है कि पितृपक्ष में पितृ तर्प विधान के अनुसार पित्तरो को प्रथम पिंड देने के लिए लोगो को पुनपुन नदी के घाटों की शरण लेनी होगी।

 इसी वजह से लोग पितृ पक्ष में औरंगाबाद से लेकर पटना तक जहां-जहां से होकर पुनपुन नदी गुजरी है, वहां गया श्राद्ध के लिए पितृ तर्पण की प्रथम वेदी पुनपुन नदी में अपनी सुविधा के अनुरूप घाटों पर पित्तरो को प्रथम पिंडदान कर ही गया की पिंडदान वेदियों की ओर रुख करते है। अयोध्या-गया का पौराणिक जंगली रास्ते के बीच औरंगाबाद से ही पुनपुन नदी गुजरी है। इस कारण पिता का श्राद्ध करने जाने गया के दौरान पितृ तर्पण के लिए श्रीराम का औरंगाबाद से होकर गुजरना तथा यहां अपने पिता राजा दशरथ को पुनपुन नदी में प्रथम पिंड देना, तथ्यामक और तार्किक रूप से समीचीन प्रतीत होता है। 

हालांकि राम की पत्नी सीता द्वारा परिस्थितिवश राजा दशरथ को पिंडदान किए जाने का वर्णन वाल्मिकी रामायण में मिलता है लेकिन श्रीराम द्वारा पुनपुन नदी में पिता को प्रथम पिंडदान करना इतिहास का ओझल पहलु है। 

यह पहलु परिस्थितिजन्यता और पितृ तर्पण विधान में गया श्राद्ध के पहले पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान के प्रावधान के रूप में उजागर होता है। तार्किक रूप से यह स्थापित है कि पुनपुन नदी में जम्होर के घाट पर ही श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ को प्रथम पिंडदान किया था। इसके बाद ही गया जाकर श्राद्ध तर्पण का विधान संपन्न किया था। गया में सीता द्वारा पिंडदान किया जाना वाल्मिकी रामायण में वर्णित है। वही पितृ तर्पण विधान में गया श्राद्ध के पूर्व पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान की अनिवार्यता है। 

चूंकि वनवास के दौरान श्रीराम बक्सर के जंगल से होकर ही पिता का श्राद्ध करने गया गए थे और पुनपुन नदी का जम्होर घाट इसी रास्ते के बीच पड़ता है। इस स्थिति में विधान के अनुरूप श्रीराम द्वारा जम्होर में पुनपुन नदी के घाट पर पिता को प्रथम पिंडदान करना सत्य के करीब प्रतीत होता है।

पितृपक्ष में जम्होर के पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान और श्राद्ध तर्पण कराने के काम में लगे पंडित कुंदन पाठक कहते है कि उनके पूर्वज उन्हे बताते थे कि जहां पर बाहर से आनेवाले पिंड़दानियों के ठहरने के लिए कोलकात्ता के सेठ सुरजमल बड़जात्या द्वारा बनवाएं गए धर्मशाला के सामने स्थित पुनपुन नदी के घाट का दो हिस्सा राम घाट और सीता घाट के नाम से जाना जाता रहा है। राम ने इसी स्थान पर राजा दशरथ को विधान के अनुसार प्रथम पिंडदान किया था। पिंडदान के पहले राम और सीता ने अगल बगल ही दो घाटों पर स्नान किया था। 

इसी वजह से दोनो घाट आज भी राम घाट और सीता घाट के नाम से जाने जाते है। 1976 के प्रलयंकारी बाढ़ के पहले तक पित्तरों को प्रथम पिंडदान करने आने वाले श्रद्धालु इसी प्राचीन राम घाट और सीता घाट पर पिंडदान किया करते थे। उस वक्त तक यहां पत्थर के दो पक्के घाट बने हुए थे, जो प्रलयंकारी बाढ़ में बह गए लेकिन उसके अवशेष आज भी वहां मौजूद है। 

बारिश और बाढ़ का समय होने के कारण वे अवशेष बरसात के दिनों में नदी के पानी में ही ड़ूबे होते है लेकिन बरसात का मौसम खत्म होते और पानी कम होते ही ये अवशेष दिखने लगते है। 

राम घाट और सीता घाट के बाढ़ में बह जाने के बाद से यहां बने वैकल्पिक घाट पर ही पिंडदानी पित्तरों को प्रथम पिंड दिया करते है। साथ ही राम द्वारा अपने पिता को यही पिंड दिए जाने की बात जानने पर उस राम घाट और सीता घाट की भी खोज करते है।

बजरंग दल की शौर्य जागरण यात्रा का औरंगाबाद जिले में हुआ भव्य स्वागत

औरंगाबाद: बजरंग दल की शौर्य जागरण यात्रा का औरंगाबाद जिले में भव्य स्वागत हुआ। यात्रा ने दाउदनगर से जिले में प्रवेश किया। इसके बाद यात्रा ओबरा से होती हुई औरंगाबाद जिला मुख्यालय पहुंची। यात्रा में शामिल विहिप- बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और साधु संतों ने रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों में पूजा अर्चना की। 

इस दौरान यात्रा का जगह जगह स्वागत किया गया। यात्रा के यहां पहुंचने पर आयोजित प्रेसवार्ता में विश्व हिंदु परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री आनंद कुमार ने हिंदुत्व एकता पर जोर दिया। 

कहा कि यात्रा का उद्देश्य लव जिहाद लैंड जिहाद और अलगाववाद को समाप्त करना और हर व्यक्ति में रामत्व जगाना है। उन्होने हिन्दू समाज के संस्कार, आदर्शो के पालन एवं संस्कृति और मानबिंदुओ की रक्षा के लिए अपील की। 

हिन्दू समाज की वर्तमान स्थिति, समाज पर हो रहे लव जेहाद, धर्मांतरण जैसी गतिविधियों से धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा के प्रति जागरुकता की आवश्यकता जताई। प्रेसवार्ता में अधिवक्ता सिद्धेश्वर विद्यार्थी, एवं आदित्य श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।