औरंगाबाद शहर के महादलित टोला के इस स्कूल में बच्चों को नहीं मिलती कोई सरकारी सुविधा, जानिए इस विद्यालय की पूरी स्थिति
औरंगाबाद : शहर के गांधी मैदान के पास स्थित राजकीय बापू प्राथमिक विद्यालय की हालत बिहार सरकार के बयानवीर शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव केके पाठक के लिए देखने लायक है। इसके पीछे माकूल वजह है। वजह यह कि महादलित टोला में स्थित बिहार का यह एकमात्र ऐसा विद्यालय है, जहां बच्चे ड्रेस में तो आते हैं लेकिन यह ड्रेस उन्हें सरकारी व्यवस्था से नही मिली है। ये पोशाक उन्होने माता-पिता के पैसे से खरीदे है।
अभिभावक शौक से बच्चों को अपने पैसे से खरीदी गई पोशाक पहनाकर स्कूल भेजते है। इस दलित बस्ती के अधिकांश अभिभावक भंगी हैं और शहर की गंदगी साफ करना इनका रोजमर्रा हैं। इनमें बच्चों को पढ़ाने के प्रति इच्छाशक्ति सरकार की इच्छाशक्ति से ज्यादा दृढ़ है।
विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों ने बताया कि न तो विद्यालय की चहारदीवारी है और न ही पानी का नल। अगर प्यास लगती है तो बच्चे विद्यालय के पास ही लगे सरकारी नल से पानी पीते हैं। विद्यालय में बिजली का कनेक्शन भी नहीं है। इस कारण बच्चें स्कूल के कमरों में गर्मी में पसीने से तर बतर होकर पढ़ने को मजबूर है। हद यह कि स्कूल के शौचालय में हमेशा ताला लगा रहता है। ऐसे में बच्चे शौच के लिए इधर उधर भटकते हैं।
विद्यालय में चहारदीवारी नही होने के कारण शाम होते ही यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा हो जाता है। इस कारण विद्यालय के नल और हैंडपंप के हैंडल चोरी हो गए है और प्रतिदिन सफाई के बाद भी यहां गंदगी का अंबार लगा है। बच्चों के माता-पिता ने बताया कि उन्हें पोशाक की राशि नहीं मिलती है। इस कारण उन्होने अपने पैसे से बच्चों के ड्रेस बनवाए है। जिसे पहनाकर वें बच्चों को विद्यालय भेजते हैं। अभिभावको ने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से विद्यालय की स्थिति में सुधार लाने की मांग की है।
विद्यालय चहारदीवारी निर्माण के लिए अभिभावकों से मांगे जाते हैं पैसे
अभिभावकों ने बताया कि विद्यालय की चहारदीवारी निर्माण के लिए हमलोगों से पैसे की मांग की जाती है। विद्यालय की प्रभारी प्रधानाध्यापिका कैमरे के सामने बोलने से इंकार कर गई। लेकिन मौखिक तौर पर बताया कि यह विद्यालय पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था और नया बना है और पिछले वर्ष के जून माह से ही यहां विद्यालय संचालित हो रहा है। यहां बच्चों की संख्या 95 है जहां कक्षा 5 तक की पढ़ाई कराई जाती है। स्कूल में कमरे पांच है लेकिन तीन कमरों में ही सभी बच्चों को बैठाना पड़ता है।
यू डायस कोड नहीं होने से सरकारी लाभ से वंचित हैं बच्चे
विद्यालय का यू डायस कोड नही होने के कारण बच्चे सरकारी लाभ नहीं ले पाते है।इसका खामियाजा यहां के शिक्षकों को भी भुगतना पड़ता है। यू डायस कोड नहीं होने के कारण विद्यालय का अपना कोई खाता नहीं है।इस कारण बैठने के लिए टेबल और कुर्सी तक शिक्षकों के द्वारा चंदा कर के मंगाए गए हैं।विद्यालय की अधिकतर सामग्रियां असामाजिक तत्वों के द्वारा चोरी कर ली गई लेकिन विद्यालय का अपना फंड नहीं होने के कारण यहां किसी भी प्रकार के कार्य नहीं हो पाते। विभाग द्वारा जो प्राप्त होता है, वही बच्चों को मिल पाता है। यू डायस कोड नहीं होने के कारण बच्चे सरकारी लाभ से वंचित हैं।
उन्होंने बताया कि सितंबर माह में कोड जेनरेट होता है। यदि कोड मिल जाता है तो खाते में डेवलपमेंट के लिए आए पैसे से विद्यालय की स्थिति सुधर जाएगी।
औरंगाबाद से धीरेन्द्र
Sep 21 2023, 19:31