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कोल्डड्रिंक में नशीली पदार्थ मिलाकर एक नाबालिग लड़की के साथ एक युवक ने किया दुष्कर्म,शिकायत पर आरोपी गिरफ्तार,

दिल्ली: एक 16 वर्ष की लड़की के साथ 22 वर्षीय सलमान नामक युवक द्वारा कथित दुष्कर्म का मामले में उक्त युवक को गिरफ्तार कर लिया गया है।

प्राप्त सूचनानुसार डीसीपी आउटर हरेंद्र सिंह के अनुसार आरोपी को , "पीएस मुंडका में आईपीसी रेप और पॉक्सो एक्ट की धारा के तहत 1 जुलाई को मामला दर्ज कर लिया गया है। 

सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने पीड़िता का बयान दर्ज किया गया। और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।"

 घटना के संबंध में बताया जा रहा है कि सलमान नामक 22 वर्षीय युवक ने उस 16 वर्षीय लड़की के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म किया। शिकायतकर्ता आरोपियों को जानती थी, क्योंकि वे दोनों एक खिलौना फैक्ट्री में काम करते हैं। 29 जून को, वह उसे गुरुग्राम में अपने भाई के घर ले गया और उसे कोल्ड ड्रिंक दी, जिसके बाद वह बेहोश हो गई और जब उठी तो उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। 

 उसने उसे यह बात किसी को न बताने की धमकी भी दी... उसने उसके साथ 2-3 बार ऐसा किया और उसे ब्लैकमेल किया।

एनसीपी की कहानी : इंदिरा गांधी से शरद पवार ने की थी बगावत, सोनिया गांधी के विरोध में बनाई थी नई पार्टी

कई दिनों से लिखी जा रही थी 'अजित पवार' की पटकथा, भतीजे ने इशारा भी किया,नहीं समझ सके शरद 'चाचा'

नई दिल्ली: आज हम आपको एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे इस पार्टी का गठन हुआ? कैसे शरद पवार ने इसे आगे बढ़ाया? आइए जानते हैं... 

महाराष्ट्र में एक बार फिर से सियासी हलचल तेज हो गई है। इसका कारण प्रमुख विपक्षी दल एनसीपी में फूट पड़ना है। 

एनसीपी के दिग्गज नेता और पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने एक बार फिर से अलग राह पकड़ ली है। उन्होंने अब एनडीए का दामन थाम लिया है। अजीत पवार ने दावा किया कि उनके साथ एनसीपी के 40 विधायकों का समर्थन भी है। इसके बाद उन्हें भाजपा-शिवसेना गठबंधन वाली सरकार में उप-मुख्यमंत्री बना दिया गया है। 

अजीत पहले भी ऐसा कर चुके हैं, जब उन्होंने अपने चाचा से बगावत करके भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। तब भी उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद मिला था। अब एक बार फिर से अजीत के इस बगावत से महाराष्ट्र की सियासत में नया भूचाल आ गया है। 

ऐसे में आज हम आपको एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे इस पार्टी का गठन हुआ? कैसे शरद पवार ने इसे आगे बढ़ाया? आइए जानते हैं... 

एनसीपी की कहानी से पहले शरद पवार की कहानी जान लीजिए

82 साल के शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को पुणे के बारामती में हुआ था। उनके पिता एक कोऑपरेटिव सोसायटी में वरिष्ठ पद पर थे। मां स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने वाली वह इकलौती महिला थीं। पूर्व क्रिकेटर सदाशिव शिंदे की बेटी प्रतिभा शरद पवार की पत्नी हैं। 

एक इंटरव्यू में प्रतिभा ने बताया था कि शादी से पहले शरद पवार ने एक ही संतान पैदा करने की शर्त रखी थी। 1967 से 90 तक शरद बारामती सीट पर काबिज रहे, उसके बाद से यह सीट उनके भतीजे अजीत पवार के पास है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले साल 2009 से बारामती की सांसद हैं।

केवल 27 साल की उम्र में बन गए थे विधायक

शरद पवार ने बेहद कम उम्र में ही राजनीति में अच्छी पकड़ बना ली थी। जब वह 27 साल के थे, तब पहली बार विधायक चुन लिए गए थे। साल 1967 में वह पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद शरद पवार सियासत की बुलंदियों तक पहुंचे। सियासत में उनके शुरुआती संरक्षक तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्हाण थे। 

इंदिरा से की बगावत

आपातकाल के दौरान शरद पवार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बगावत कर दी। इंदिरा से बगावत करने के बाद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी। साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई। राज्य के मुख्यमंत्री बने। साल 1980 में इंदिरा सरकार की जब वापसी हुई तो उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई। तब 1983 में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया। 

उस साल हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार पहली बार बारामती से चुनाव जीते लेकिन साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को मिली 54 सीटों पर जीत ने उन्हें वापस प्रदेश की राजनीति की ओर खींच लिया। 

शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व किया। 

 राजीव के दौर में वापस कांग्रेस में आए

साल 1987 में वो वापस अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापस आ गए। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। पवार उन दिनों राजीव गांधी के करीबी बन गए। पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिली। चव्हाण को साल 1988 में केन्द्र में वित्त मंत्री बनाया गया।

 1990 के विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में 141 पर कांग्रेस की जीत पाई लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब रहे। इसके साथ पवार तीसरी बार सीएम बनने में कामयाब रहे। 

फिर पीएम पद के उम्मीदवार भी बन गए थे शरद पवार

बात साल 1991 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई। देशभर में अजीब स्थिति थी। प्रधानमंत्री पद को लेकर चर्चा होने लगी। तब शरद पवार का नाम उन तीन लोगों में आने लगा, जिन्हें कांग्रेस के अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था। पवार के अलावा इस दौड़ में नारायण दत्त तिवारी और पी वी नरसिम्हा राव शामिल थे। 

नारायण दत्त तिवारी साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार की वजह से पीएम बनने से रह गए। ये मौका दूसरे सीनियर नेता पी वी नरसिम्हा राव को मिल गया जबकि शरद पवार को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। लेकिन फिर शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति के लिए वापस भेजा गया। 

सोनिया गांधी से विवाद और बना ली खुद की नई पार्टी

ये बात है साल 1998 की। मध्यावधि लोकसभा चुनाव के बाद शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए, लेकिन साल 1999 में जब 12वीं लोकसभा भंग हुई तो शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए।

 पवार और कुछ अन्य नेता नहीं चाहते थे कि विदेशी मूल की सोनिया पार्टी का नेतृत्व करें। सोनिया का विरोध करने के चलते पार्टी से उन्हें निष्कासित कर दिया गया। कांग्रेस से निष्कासन के बाद शरद पवार ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ;(एनसीपी) का गठन किया।

 शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर पार्टी जरूर बनाई लेकिन साल 1999 के महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जनादेश न मिलने पर कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार भी बना ली। साल 2004 से साल 2014 तक पवार लगातार केंद्र में मंत्री रहे। साल 2014 का लोकसभा चुनाव शरद पवार ने ये कहकर नहीं लड़ा कि वो युवा नेतृत्व को पार्टी में आगे लाना चाहते हैं।

सबसे युवा मुख्यमंत्री, बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रहे

शरद पवार के नाम महाराष्ट्र का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है। वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। पवार 2005 से 2008 तक बीसीसीआई के चेयरमैन रहे और 2010 में आईसीसी के अध्यक्ष बने।

कैंसर से जंग जीते, डॉक्टर ने कहा था- केवल छह महीने जिंदा रहेंगे

शरद पवार ने कैंसर से जंग जीती है। एक टीवी चैनल में पवार ने बताया कि 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें कैंसर का पता चला था। इलाज के लिए न्यूयॉर्क गए। वहां के डॉक्टरों ने भारत के ही कुछ एक्सपर्ट्स के पास जाने को कहा। तब कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने 36 बार रेडिएशन का ट्रीटमेंट लिया। 

यह बहुत दर्दनाक था। उन्होंने इंटरव्यू में बताया था कि सुबह नौ से दो बजे तक वह मंत्रालय में काम करते। फिर 2.30 बजे अपोलो हॉस्पिटल में कीमोथेरेपी लेते। दर्द इतना होता था कि घर जाकर सोना ही पड़ता। इसी दौरान एक डॉक्टर ने उनसे कहा कि जरूरी काम पूरे कर लें। आप सिर्फ छह महीने और जी सकेंगे। पवार ने डॉक्टर से कहा कि मैं बीमारी की चिंता नहीं करता, आप भी मत करो। पवार ने लोगों को नसीहत दी कि कैंसर से बचना है तो तंबाकू का सेवन तुरंत बंद कर दें।

पत्नी के सामने रखी थी एक बच्चे की शर्त

शरद पवार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शादी से पहले उन्होंने अपनी पत्नी प्रतिभा पवार के सामने एक ही संतान पैदा करने की शर्त रखी थी। उन्होंने कहा था, 'हमारी एक ही संतान होगी, चाहे वह लड़का हो या लड़की।' इसके बाद 30 जून 1969 को पुणे में सुप्रिया का जन्म हुआ।

परंपरा : मेक्सिको के मेयर ने मगरमच्छ से की शादी, वजह जान चौंक जाएंगे आप

मेक्सिको : सैन पेड्रो हुआमेलुला के मेयर की इस अनोखी शादी में हजारों लोग शामिल हुए. ये अनोखी शादी इसलिए रखी, क्‍योंकि मेयर ने एक मादा मगरमच्‍छ को पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार किया. लोग तालियां बजा रहे थे और नाच रहे थे, तभी दक्षिणी मेक्सिको के एक छोटे शहर के मेयर ने समारोह स्‍थल में प्रवेश किया, जिनके हाथों में एक मगरमच्‍छ था. इस मादा मगरमच्‍छ को दुल्‍हन की तरह तैयार किया गया था. हॉल में मौजूद हजारों लोगों की मौजूदगी में मेयर ने इस मादा मगरमच्‍छ से शादी की. 

मेक्सिको के तेहुन्तेपेक इस्थमस में स्वदेशी चोंटल लोगों के एक शहर, सैन पेड्रो हुआमेलुला के मेयर विक्टर ह्यूगो सोसा ने एक पैतृक अनुष्ठान को फिर से लागू करते हुए, एलिसिया एड्रियाना नामक एक मगरमच्‍छ को अपनी पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार किया.

 यह एक कैमन है, जो मेक्सिको और मध्य अमेरिका में पाया जाने वाला एक मगरमच्छ जैसा दलदली जमीन पर रहनेवाला जीव है.

सोसा ने शादी समारोह के दौरान कहा, "मैं जिम्मेदारी स्वीकार करता हूं, क्योंकि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं. यही महत्वपूर्ण है. आप प्यार के बिना शादी नहीं कर सकते... मैं 'राजकुमारी लड़की' से शादी के लिए तैयार हूं." बता दें कि यहां बीते 230 वर्षों से एक पुरुष और एक मादा कैमन के बीच विवाह होता आ रहा है. ये प्रथा तब शुरू हुई, जब दो स्वदेशी समूहों में शांति स्‍थापित करने के लिए विवाह हुआ था. 

परंपरा यह है कि जब एक चोंटल राजा, जिसे आजकल मेयर के रूप में जाना जाता है, ने हुआवे स्‍वदेशी समूह की एक राजकुमारी से शादी की, जिसका प्रतिनिधित्व मादा मगरमच्छ करती थी, तब दोनों समूहों के बीच मतभेद दूर हो गए थे. हुआवे तटीय ओक्साका राज्य में रहते हैं, जो इस अंतर्देशीय शहर से ज्यादा दूर नहीं है.

विवाह समारोह से पहले, मगरमच्‍छ को घर-घर ले जाया जाता है, ताकि निवासी उसे अपनी गोद में ले सकें और नृत्य कर सकें. मगरमच्छ को एक हरे रंग की स्कर्ट, एक रंगीन हाथ से कढ़ाई वाला अंगरखा और रिबन और सेक्विन से बना एक हेडड्रेस पहनया जाता है. विवाह पूर्व किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए जीव का मुंह बंद कर दिया जाता है. बाद में, उसे सफेद दुल्हन की पोशाक पहनाई जाती है और कार्यक्रम के लिए टाउन हॉल में ले जाया जाता है. 

बता दें कि मेक्सिको में ऐसी शादी का आयोजन इंसान के रिश्तों को पर्यावरण और जानवरों से मजबूत करने के लिए किया जाता है. इस तरह की शादी होना यहां पर आम बात है. लोग मानते हैं कि ऐसा करने से भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देंगे.

अतीक अहमद हत्या की स्वतंत्र जांच मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 14 जुलाई को करेगी सुनवाई

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह 14 जुलाई को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा जिनमें गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और अशरफ की 'हिरासत' और 'न्यायेतर मौत' के मामलों की जांच के लिये शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग गठित किए जाने की मांग की गई है. 

इन याचिकाओं में अतीक व अशरफ की बहन की याचिका भी शामिल है. अहमद से संबंधित दो अलग-अलग याचिकाएं न्यायमूर्ति एस. आर. भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आईं.

उत्तर प्रदेश की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि राज्य ने शीर्ष अदालत के 28 अप्रैल के आदेश के संदर्भ में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है, जो वकील विशाल तिवारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया था, जिन्होंने अहमद और उनके भाई की हत्या की स्वतंत्र जांच की मांग की है. 

मीडिया से बातचीत के दौरान खुद को पत्रकार बताने वाले तीन लोगों ने 15 अप्रैल को अहमद (60) और अशरफ को बहुत करीब से गोली मार दी थी. यह वारदात तब हुई जब पुलिसकर्मी दोनों को प्रयागराज के एक मेडिकल कॉलेज ले जा रहे थे. 

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, "फिलहाल, हम व्यक्तिगत मुद्दों पर गौर नहीं कर रहे हैं. हम प्रणालीगत समस्या पर गौर कर रहे हैं."

तिवारी ने अपनी याचिका में 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 पुलिस मुठभेड़ों की जांच की भी मांग की है. उन्होंने पीठ को बताया कि उन्होंने राज्य द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट पर एक संक्षिप्त प्रत्युत्तर तैयार किया है. उन्होंने दावा किया कि राज्य की स्थिति रिपोर्ट में भौतिक तथ्य को दबाया गया था. अहमद की बहन की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि उन्होंने एक अलग याचिका दायर की है और इसे आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. पीठ ने कहा कि वह इन मामलों पर 14 जुलाई को सुनवाई करेगी. 

शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी स्थिति रिपोर्ट हलफनामे में, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि राज्य अहमद और अशरफ की मौत की संपूर्ण, निष्पक्ष और समय पर जांच सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.

तंज : वंदे भारत को ले जाता दिखा रेलवे इंजन! कांग्रेस का दावा- 9 सालों के झूठ को खींच रहा 70 सालों का इतिहास

नयी दिल्ली : कांग्रेस ने वंदे भारत ट्रेन के एक वीडियो के जरिए केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावारू ने शुक्रवार (29 जून) को एक वीडियो ट्वीट किया है, जिसमें वंदे भारत ट्रेन को रेलवे का एक पुराना इंजन खींच कर ले जाता नजर आ रहा है. 

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि वंदे भारत ट्रेन को रेलवे का इलेक्ट्रिक इंजन खींच कर ले जा रहा है. 

कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावारू ने ट्वीट में लिखा है कि पिछले 9 सालों के झूठ को खींच कर ले जाता 70 सालों का इतिहास. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (27 जून) को मध्य प्रदेश के भोपाल से 5 नई वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई थी. 

रेलवे का शाइनिंग स्टार है वंदे भारत

वंदे भारत ट्रेनों को भारतीय रेलवे का शाइनिंग स्टार कहा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (27 जून) को भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन से पांच वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई. इन नई ट्रेनों को जोड़कर अब भारत में कुल 23 वंदे भारत हो गई हैं. सेमी-हाईस्पीड ट्रेन वंदे भारत रेलवे की प्रीमियम ट्रेनों में से एक है.

इन सबके बीच वंदे भारत ट्रेन से कई बार मवेशियों के भिड़ने के कई मामले सामने आ चुके हैं. वहीं, पश्चिम बंगाल समेत कई जगहों पर वंदे भारत ट्रेनों पर पत्थरबाजी की घटनाएं भी सुर्खियों में आती रहती हैं.

 हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमपी के भोपाल में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर 5 वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई थी. इनमें रानी कमलापति-जबलपुर वंदे भारत, खजुराहो से भोपाल के रास्ते इंदौर, गोवा के मडगांव से मुंबई, धारवाड़ से बेंगलुरू और झारखंड के हटिया से बिहार के पटना के बीच पांचों ट्रेनें चलेंगी.

देशभर की 450 बेटियां बनीं शिवप्रिया, संयम के पथ पर चलते हुए ईश्वरीय सेवा में समर्पित किया जीवन


नई दिल्ली: ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में एक दिव्य अलौकिक विवाह हुआ। विवाह भी ऐसा जिसमें एक दूल्हा (परमात्मा शिव) थे और 450 दुल्हनें थी।

इन दुल्हनों में किसी ने सीए किया तो कोई डॉक्टर, इंजीनियर, एमटेक, एमएससी, फैशन डिजाइनर, स्कूल शिक्षिका थी। 15 हजार बाराती इस दिव्य विवाह के साक्षी बने।

 खुशी में भावुक माता-पिता बोले-आज हमारा जीवन धन्य हो गया। परमात्मा से यही कामना है कि हर जन्म में ऐसी शक्ति स्वरूपा, कुल उद्धार करने वाली बेटी मिले। खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं कि आज मेरी बेटी समाज कल्याण के लिए संयम का मार्ग अपना रही है। अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन मेरी बेटी अब विश्व कल्याण के लिए जिएगी।

संस्थान के इतिहास में पहली बार एक साथ 450 बेटियों ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर ब्रह्माकुमारी के रूप में आजीवन समाजसेवा का संकल्प लिया। इन बेटियों को खुशी में नाचते देख हर कोई भावुक हो उठा। इनके चेहरों पर कुछ पाने की खुशी को साफ देखा जा सकता था। समारोह में बेटियों के माता-पिता ने अपनी-अपनी लाडलियों का हाथ संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी मुन्नी दीदी, राजयोगिनी संतोष दीदी के हाथों में सौंपा।

 परमात्मा पर अपना जीवन समर्पण करने वालीं सभी बहनों की दिनचर्या अलसुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे से शुरू हुई। सबसे पहले सभी बहनों ने परमपिता शिव परमात्मा, शिव बाबा का एक घंटे ध्यान किया। इसके बाद सुबह 7 बजे से आठ बजे तक सत्संग (मुरली क्लास) में भाग लिया। इसके बाद दिनभर में अपने साथ आए नाते-रिश्तेदारों के साथ बिताया। 

एक-दूसरे को बधाइयों का दौर चलता रहा। शाम 4 बजे से दिव्य अलौकिक समर्पण समारोह में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। समारोह में देशभर से आए लोगों को खाने में स्पेशल पनीर, हलुवा आदि का ब्रह्माभोजन कराया गया।

समारोह में संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि आज एक साथ इतनी बहनों का समर्पण देखकर मन खुशी से झूम रहा है। ये बेटियां बहुत भाग्यशाली हैं। महासचिव बीके निर्वैर भाई ने कहा कि सभी बहनों जीवन में अपने कर्मों से समाज में नए उदाहरण प्रस्तुत करें। अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन भाई ने कहा कि अपना जीवन परमात्मा पर अर्पण करने से बड़ा भाग्य कुछ नहीं हो सकता है। 

कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय भाई ने कहा कि आपकी वाणी दुनिया के कल्याण का माध्यम बने। आपका एक-एक कर्म उदाहरणमूर्त हो। धरती से अंधकार मिटाने और ज्ञान प्रकाश फैलाने में शिव की शक्ति, भुुजा बनकर, साथी बनकर सदा जीवन में आगे बढ़ते रहें। मधुरवाणी ग्रुप के कलाकारों ने गीत प्रस्तुत किया। समारोह में विशेष रूप से कटक से आए कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। खासतौर पर एंजल ग्रुप की आठ साल की बालिकाओं की प्रस्तुतियों ने सभी का मन मोह लिया। 

समर्पण समारोह डायमंड हॉल में आयोजित किया गया। समारोह के लिए खासतौर पर सौ फीट लंबी और 40 फीट चौड़ी स्टेज तैयार की गई। इसमें समर्पित होने वालीं वरिष्ठ बहनों को स्टेज पर बैठाया गया, वहीं छोटी बहनों को सामने बैठाया गया। सभी 450 बहनें श्वेत वस्त्रों में चुनरी ओढक़र, माला पहनकर, बिंदी के साथ सज-धजकर पहुंचीं। जहां एक-एक बहनों ने अपने परिजनों के साथ मुलाकात कर फोटो निकलवाई। साथ ही खुशी में डांस किया। ब्रह्माकुमारीज से जुडऩे की शुरुआत राजयोग मेडिटेशन के सात दिवसीय कोर्स से होती है। जो संस्थान के देश-विदेश में स्थित सेवाकेंद्रों पर नि:शुल्क सिखाया जाता है। 

राजयोग ध्यान ब्रह्माकुमारीज की शिक्षा का मुख्य आधार है। राजयोग की शिक्षा ही संस्था का मूल आधार और उद्देश्य है। संस्थान का मुख्य नारा है-स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन। हम बदलेंगे, जग बदलेगा। नैतिक मूल्यों की पुरुत्र्थान और भारत की पुरातन स्वर्णिम संस्कृति की स्थापना करना।

राजयोग मेडिटेशन कोर्स के बाद छह माह तक नियमित सत्संग, राजयोग ध्यान के अभ्यास के बाद सेंटर इंचार्ज दीदी द्वारा सेवाकेंद्र पर रहने की अनुमति दी जाती है। तीन साल तक सेवाकेंद्र पर रहने के दौरान संस्थान की दिनचर्या और गाइडलाइन का पालन करना जरूरी होता है। बहनों का आचरण, चाल-चलन, स्वभाव, व्यवहार देखा-परखा जाता है। इसके बाद ट्रॉयल के लिए मुख्यालय शांतिवन के लिए माता-पिता का अनुमति पत्र भेजा जाता है। ट्रॉयल पीरियड के दो साल बाद फिर ब्रह्माकुमारी के रूप में समर्पण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। समर्पण के बाद फिर बहनें पूर्ण रूप से सेवाकेंद्र के माध्यम से ब्रह्माकुमारी के रूप में अपनी सेवाएं देती हैं। 

वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारीज की नींव रखी गई। तब से लेकर अब तक 87 वर्ष में संस्थान में 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों ने अपनी जीवन मानव सेवा के लिए समर्पित किया है। ये बहनें तन-मन-धन के साथ समाजसेवा, विश्व कल्याण और सामाजिक, आध्यात्मिक सशक्तीकरण के कार्य में जुटी हैं। संस्थान द्वारा संपूर्ण भारतवर्ष को 12 विभिन्न जोन में बांटा गया है। इन जोन में एक मुख्य निदेशिका और फिर स्थानीय सेवाकेंद्र में जिला स्तर पर मुख्य निदेशिका होती हैं जो अपने-अपने जिलों में सेवाएं देती हैं। शुरुआत में नई बहनें बड़ी बहनों के मार्गदर्शन में रहती हैं फिर उन्हें नया सेवाकेंद्र खोलने की अनुमति प्रदान की जाती है। 

ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय शांतिवन में साल एक बार ही बहनों का समर्पण समारोह आयोजित किया जाता है। इसके अलावा जोनल सेवाकेंद्रों, सबजोन सेवाकेंद्रों पर समय प्रति समय अलग से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिनमें 11, 21, 51 बहनों का समर्पण किया जाता है। सभी जगह समर्पण के कार्यक्रम में एक ही प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिसमें संस्थान के मुख्यालय से वरिष्ठ दीदी-दादियां शामिल होती हैं। जिस सेवा स्थान से यह बहनें आती हैं वहीं पर ही वह समर्पण होने के बाद अपनी सेवाएं देती हैं। ब्रह्माकुमारी बहनों के लिए विशेष शैक्षणिक योग्यता का नियम नहीं है।

 जो भी बहन संस्थान के नियमों का पूरी तरह से पांच साल तक पालन करती हैं तो वह समर्पित हो सकती हैं।

अद्भुत : एक नदी ऐसा जिसमें पानी की जगह होते हैं पत्थर, जानिए कहां बहती है ये अनोखी स्टोन रिवर


नयी दिल्ली : आपको दुनिया में बहने वाली विभिन्न नदियों के बारे में जानकारी होगी. कुछ नदियाँ विशाल हैं, जबकि कुछ नदियाँ छोटी हैं. हर नदी का अपना अत्यंत महत्वपूर्ण इतिहास और महत्व होता है. हालांकि, क्या आपको दुनिया की एक अनोखी पत्थरों से भरी नदी के बारे में जानकारी है? यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस नदी के बारे में थोड़ा और ज्यादा जानेंगे, जहां पानी की जगह पत्थर ही पत्थर होते हैं. यह नदी अन्य नदियों से अलग है और इसकी लंबाई कई किलोमीटर तक फैली हुई है.

पानी की जगह नदी में बहते हैं पत्थर

दुनियाभर के देशों में बहुत-सी नदियां बहती हैं. भारत की बात करें, तो यहां प्रमुख नदियों की संख्या लगभग 200 है. इसके अलावा, देश के विभिन्न राज्यों में छोटी से लेकर बड़ी नदियों का प्रवाह होता है. अब तक आपने देखा होगा कि नदियों में पानी के साथ विभिन्न आकार के पत्थर देखने को मिलते हैं. लेकिन रूस में एक ऐसी नदी है जहां पानी के बजाय नदी में पत्थरों का प्रवाह होता है. यहां पर नदी में बहुत सारे पत्थर भरे हुए हैं.

स्टोन रिवर

यह अद्वितीय नदी रूस में "स्टोन रिवर" या "स्टोन रन" के नाम से भी प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां नदी में पत्थरों का नदी में प्रवाह होने की वजह से उनका अधिकारिक नाम रखा गया है. इस नदी के आसपास देवदार के वृक्षों के घने जंगल भी हैं और इसके पास एक वन क्षेत्र है, जिसमें विविध प्राणियों की एक अद्वितीय जीवन-पद्धति है.

मिलते हैं 10 टन तक वजनी पत्थर

इस अनोखी नदी की लंबाई लगभग छह किलोमीटर है. कुछ जगहों पर इसकी चौड़ाई 20 मीटर तक है, जबकि कुछ जगहों पर इसकी चौड़ाई 200 मीटर से भी अधिक है. इस नदी में मौजूद पत्थरों का वजन 10 टन तक होता है और इन पत्थरों का आकार भी अलग-अलग होता है. इसलिए, लोग इस नदी को देखने के लिए विभिन्न भूभागों से यहां पहुंचते हैं.

कहां से आए ये पत्थर?

वैज्ञानिकों ने इस नदी के बारे में अध्ययन किए हैं, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. कुछ शोधार्थी विचार करते हैं कि करीब 10,000 साल पहले पर्वतों की ऊंचाइयों से टूटे ग्लेशियर के पत्थर पानी के साथ यहां बहकर जमा हो गए.

जानकारी : दुनिया के सबसे मीठे आम का नाम कैसे पड़ा `लंगड़ा`? बड़ी दिलचस्प है कहानी

 नयी दिल्ली : लंगड़ा आम को दुनिया सबसे मीठा आम बताया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस आम का नाम लंगड़ा आम क्यों रखा गया?

 भारत में आम की 1500 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. लंगड़ा और दशहरी जैसे आम लोगों को खूब पसंद होते हैं. लंगड़ा आम का नाम सुनकर आपको बहुत हंसी आती होगी लेकिन क्या आपको पता है कि इसका नाम लंगड़ा ही क्यों हैं? इस आम का नाम लंगड़ा आम कैसे पड़ा? दावा किया जाता है कि लंगड़ा आम का इतिहास करीब 300 साल पुराना है. लंगड़ा आम का कनेक्शन यूपी के वाराणसी से बताया जाता है. लंगड़ा आम के नाम का इतिहास बेहद दिलचस्प है, आइए इसके बारे में जानते हैं.

सबसे मीठे आम का नाम लंगड़ा क्यों?

बताया जाता है कि बनारस में साधु रहते थे. उन्होंने एक आम की बाग लगाई थी. इसकी देखभाल की जिम्मेदारी उन्होंने एक पुजारी को दी थी. पुजारी दिव्यांग थे. इलाके के लोग उन्हें लंगड़ा पुजारी कहकर बुलाते थे. और शायद इसी वजह से उनके बाग के आमों को लोग लंगड़ा आम कहने लगे. इसीलिए आम की इस प्रजाति को लंगड़ा आम या बनारसी आम कहते हैं.

लंगड़ा आम के नाम का इतिहास

बता दें कि लंगड़ा आम दुनिया भर में फेमस है. भारत से इसका बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट होता है.एन एफ। लंगड़ा बेहद रसीला और स्वादिष्ट होता है. भारत में हर साल लाखों टन लंगड़ा आम का उत्पादन होता है. यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश में लंगड़ा प्रजाति का आम प्रमुख तौर से उगाया जाता है.

लंगड़ा आम की कैसे करें पहचान?

लंगड़ा आम अंडाकार आकार का होता है. लंगड़ा आम नीचे से हल्का नुकीला होता है. इस कारण से इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है. लंगड़ा आम पकने के बाद भी हरे रंग का ही रहता है. लंगड़ा आम की गुठली चौड़ी और पतली होती है.

फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय ने की ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि शुनक से मुलाकात,पीएम शुनक के साथ उनकी तस्बीर हो रही है वायरल


नई दिल्ली: यूके के पीएम द्वारा लंदन में दिए गए रिसेप्शन में सोनम कपूर और विवेक ओबेरॉय ने भाग लिया है। उन्होंने यूके-इंडिया वीक कार्यक्रम के सम्मान में इस रिसेप्शन का आयोजन किया था। इस अवसर पर विवेक ओबेरॉय ने यूके के पीएम ऋषि सुनक से मुलाकात की और थैंक्स कहा।

पीएम ऋषि शुनक के साथ अभिनेता विवेक ओबरॉय की तस्वीरें वायरल हो रही है। इसमें उन्होंने यूके के प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास और कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट में देखा जा रहा है।

अभिनेता विवेक ओबरॉय ने यूके के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के साथ तस्वीरें शेयर की और अपने अनुभव के बारे में बताया है। विवेक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी सम्मान करने के लिए ऋषि सुनक का आभार व्यक्त किया है। इंडिया यूके वीक 2023 जून महीने के 26 से 30 के बीच आयोजित किया गया था।

विवेक ओबरॉय इस कार्यक्रम में भाग लेने डार्क ब्लू कुर्ता और कलरफुल जैकेट पहने पहुंचे थे। वह फोटो में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के पास खड़े होकर मुस्कुराते हुए नजर आ रहे हैं। तस्वीरें शेयर करते हुए विवेक का लिखा है,

"थैंक्यू प्राइम मिनिस्टर ऋषि सुनक। आपने 10 डाउनिंग स्ट्रीट में बहुत ही अच्छे से स्वागत किया है। आप, आपका परिवार और पूरी टीम बहुत ही अच्छे मेजबान हो। आपने भारत और इंडिया के रिश्ते को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की है। आपने दो देशों के बीच हमें एक पुल बताया है जो कि बहुत बड़ी बात है। जब आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहते हुए प्राइम मिनिस्टर मोदी जी कहते हैं तो यह हमारे दिल को छू लेता है क्योंकि आप भारतीय संस्कार दर्शाते हो। मुझे पूरा विश्वास है कि सभी भारतीय और भारतीय मूल के लोग इस बात से खुश होंगे। मैं अक्षत मूर्ति और सुधा मूर्ति जी का भी विशेष आभार व्यक्त करता हूं।"

देविका नदी को बोला जाता है गंगा की बहन,जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले की पहाड़ी स्थित महादेव मंदिर से निकलती है यह नदी

नयी दिल्ली : भारत की किस नदी को बोला जाता है गंगा की बहन, जानें भारत की सबसे लंबी नदी की बात करें, तो वह गंगा नदी है। इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है, जो कि पहाड़ों से लेकर मैदानों से होते हुए बंगाल की खाड़ी तक का सफर पूरी करती है। भारत में गंगा की कई सहायक नदियां हैं, जो कि इसके बहाव में मिलकर इसे बहाने में मदद करती हैं। ये नदियां देश के अलग-अलग राज्यों के जिलों से होकर निकलती हैं। हालांकि, क्या आपको पता है कि भारत की किस नदी को गंगा की बहन बोला जाता है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे

भारत में यदि प्रमुख नदियों की बात करें, तो करीब 200 प्रमुख नदियां हैं। इन नदियों में यदि भारत की सबसे लंबी नदी की बात होती है, तो सबसे ऊपर नाम गंगा नदी का आता है, जो कि पहाड़ों से होते हुए मैदानी इलाकों को पार कर 2525 किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद बंगाल की खाड़ी में जाकर गिर जाती है।

वहीं, गंगा की कई सहायक नदियां हैं, जो कि इसे बहने में सहायता प्रदान करती हैं। ये नदियां भारत के अलग-अलग राज्यों के जिलों से होते हुए गंगा में मिलती हैं। हालांकि, क्या आपको भारत की ऐसी नदी के बारे में पता है, जिसे गंगा की बहन कहा जाता है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम गंगा की बहन कहे जाने वाली नदी के बारे में जानेंगे। कौन-सी है यह नदी और कहां से कहां तक बहती है, जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़ें। 

इस नदी को कहा जाता है गंगा की बहन


भारत में नदियां हिंदू धर्म में लोगों की आस्था का केंद्र हैं। इन्हीं नदियों में शामिल है देविका नदी, जिसे पौराणिक मान्याताओ के मुताबिक गंगा नदी की बहन के रूप में जाना जाता है। 

कहां से निकलती है यह नदी देविका नदी जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले की पहाड़ी सुध महादेव मंदिर से निकलती है। यहां से निकलने के बाद यह नदी पश्चिमी पंजाब(वर्तमान पाकिस्तान) में जाकर रावी नदी में जाकर मिल जाती है। यहां से इसका पानी रावी नदी में मिलकर बहता है। इस तरह देविका नदी रावी की सहायक नदी बन जाती है। 

क्या है देविका नदी परियोजना


देविका नदी को लेकर मार्च 2019 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत काम शुरू किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य नदी के तटों को विकसित करने के साथ इसके तट पर मौजूद दाह संस्कार स्थल, प्राकृतिक पानी की निकासी और स्नान घाटों का विकास के साथ सीवेज उपचार संयंत्र, जलविद्युत संयंत्र और सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करना था। 

गुप्त गंगा के नाम से जानी जाती है यह नदी


देविका नदी का धार्मिक महत्व अधिक है। यही वजह है कि जहां से यह नदी निकलती है, उसे देवकनगरी के रूप में भी जाना जाता है। वहीं, अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद यह नदी कई जगहों पर लुप्त और कई जगहों पर प्रकट होती है।

ऐसे में इस नदी को गुप्त गंगा के नाम से भी जाना जाता है। पौरणाकि मान्याताओं में इस नदी को गंगा की बड़ी बहन देविका बताया गया है। 

बैसाखी की पूर्व संध्या पर लगता है मेला


इस नदी के किनारे पर बैसाखी की पूर्व संध्या पर मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें जगह-जगह से लोग पहुंचते हैं।

वहीं, इस नदी के तट पर अंतिम संस्कार का भी अधिक महत्व है। इस वजह से यहां लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने के लिए भी आते हैं।