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क्या बिहार में यूट्यूबर मनीष कश्यप पर हो रही करवाई सोशल मीडिया के लिए सबक है या चुनौती....?

(विनोद आनंद)

 बिहार निवासी यूट्यूबर मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी कुमार तिवारी,चर्चा में हैं। उन्हें अभी चर्चा में लाने वाले बिहार सरकार और बिहार सरकार की पुलिस प्रशासन है। यू तो अपने स्टाइल और कार्य पद्धति से वे हमेशा चर्चा में रहे लेकिन अभी की चर्चा से उन्हें सहानुभूति भी मिल रही है साथ हीं साथ इस कार्रवाई से जेल से निकलने के बाद मनीष कश्यप के कद और लोकप्रियता बिहार और बिहारी के लिए एक मिथक भी बन जायेगा।साथ हीं साथ यह बहस भी छिड़ जाएगा कि-क्या बिहार में यूट्यूबर मनीष कश्यप पर हो रही करवाई सोशल मीडिया के लिए सबक है या चुनौती....?े

यूँ तो मनीष सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी में नही गए। रोजगार की जो स्थिति है ऐसे हालात में बीटेक हो या एमटेक, एमबीए हो या कोई अन्य अन्य उच्च डिग्रीधारी।आज ये सारे युवा एक सपना लेकर ये डिग्रियां हासिल करते हैं। लेकिन रोजगार और सरकार की जो व्यवस्था है ये उच्च डिग्रीधारी विवशता में मज़दूरी कर रहे हैं,चाय बेच रहे,पकौडे तल रहे हैं, लिट्टी बेच रहे हैं। कुछ लोग अपने इस व्यवसाय में सफल हो रहें हैं तो कुछ हताश निराश होकर आत्महत्या भी करने को मजबूर हो रहे हैं। यह परिस्थिति सरकार पर एक बड़ा सवाल भी है। और भारत की पूरी व्यवस्था पर चोट भी ।

ऐसे हालात में मनीष ने अगर सिविल इंजीनियरिंग करके भी सड़को पर माइक और कैमरा लेकर जनता के इसी सवाल को उठाने का निर्णय लिया तो कोई गलत काम नही किया। कुछ लोगों को छोड़कर जनता भी यही मानती है और समझती है।

आज मनीष कश्यप जेल में है।उनपर आरोप है कि उसने तमिलनाडू में वहां के स्थानीय लोगों द्वारा बिहारी मज़दूरों पर हमला का झूठा खबर बनाकर अफवाह फैलाया था।जिसके कारण वहां मज़दूरों में भगदड़ मच गयी।

इस खबर में कितनी सच्चाई थी,क्या मज़दूरों के साथ मारपीट हुई या नही यह जांच का विषय है।जिसे दोनो राज्यों की सरकार को करनी चाहिए और सच जो भी हो उसे सामने लाना चाहिए।साथ हीं,अफवाह फैलाने वालों पर भी जो न्यायसंगत करवाई उसे करना चाहिए।इसमे ना तो मुझे आपत्ति है और नही और किसी और को होगी।

क्योंकि यह खबर सिर्फ मनीष कश्यप जैसे यूट्यूबर के वीडियो में नही आया था बल्कि देश भर के समाचार पत्रों में भी सुर्खियां बनी थी।अगर किसी तरह की कोई घटना नही घटी तो किस एजेंसी और किस सूत्र से यह इतना बड़ा खबर देश भर में फैला इसकी भी जांच होनी चाहिए, और उन सभी पर भी इसी तरह की कार्रवाई होनी चाहिए।तभी सरकार की निष्पक्षता,पारदर्शिता सामने आएगी।

   फिलहाल इस तरह की घटना के बाद दो सवाल उठना चाहूंगा कि क्या जो बिहारी मज़दूर पूरे देश के विकास और कल- कारखानों में उत्पादन के रीढ़ है उसका देश भर में उपहास नही उड़ाया जाता है...? 

दूसरा सवाल वर्तमान सरकार और पूर्व की सरकार जो मज़दूरों और दलितों के मसीहा हैं,क्या बिहारियों के लिए ऐसा रणनीति बनाने में सफल रहे जिस से बिहार के लोगों को अपने हीं राज्यों से भाग कर बाहर नही जाना पड़े उन्हें यहां हीं रोजगार मिल सके..?

ऐसा नही हो पाया। लाजमी है इस मामले में सरकार कटघडे में खड़ी हैं। सरकार को राज्य में ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि यहां उधोग लगे,लेकिन सुशासन सरकार के राज्य को आज भी अपराध मुक्त नही किया जा सका इसलिए कोई उधमी इस राज्य में निवेश का साहस नही जुटा पा रहें हैं। प्रशासनिक और सरकारी कर्मचारी की कार्यपद्धति में भी सुधार नही हो सका कि जो उधमी यहां आए तो उन्हें तुरंत सारी सुबिधाएं या उनकी कागजी प्रक्रिया आसानी से हो सके।

  कोरोना काल में बिहारी मज़दूरों का जो हश्र हुआ उसके बाद सरकार ने बड़ी - बड़ी घोषणाएं की जिला स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित करने का निर्देश दिया गया । बिहार के पान ,मखान ,आम ,लीची मछली और कई पारम्परिक उत्पाद को अंतरास्ट्रीय मार्केट में ब्रांडिग की योजना बनी,कृषि आधारित और कपड़ा उधोग को बढ़ावा देने और बाहर से आये कुशल-अकुशल मज़दूरों को श्रेणीबद्ध कर उसे रोजगार उपलब्ध कराने के अवसर की बात की गई। उसका क्या हुआ..? सरकार को इसका जवाब देना चाहिए।लेकिन इस दिशा में कुछ भी नही हो रहा है।

  इस में रत्तीभर संदेह नही कि जो बिहार के लोग भारत को मजबूत करने,देश के विकास की रीढ़ के रूप में बिहार और बिहार के बाहर देश भर में काम कर रहे हैं।उनको सम्मान दिए जाने के बजाय उसके साथ हमेशा गलत व्यवहार होता रहा है,उसे मारपीट कर भगाया जाता भी रहा है, उसे नीचा दिखाया जाता भी रहा है। और राजनेता भी उसके बारे में गाहे - बगाहे गलत टिप्पणी करने से नही चुके। इसके लिए अगर उसके सम्मान और हक की बात मनीष कश्यप जैसे लोग करते हैं तो उस पर गर्व होना चाहिए। साथ हीं पूर्वांचल के हर राज्यों के लोगों के लिए अपने राज्यों में हीं ऐसा इंफ्रास्ट्रक्टर डेवलप करना चाहिए कि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके ना कि सरकार अपनी ताकत मनीष कश्यप जैसे लोगों पर उपयोग करे।

 मनीष कश्यप के पत्रकारिता का स्टाइल का भी हम समर्थन नही कर सकते।लेकिन उसके काम और जज्बा को अनदेखा भी नही किया जा सकता।

मनीष महत्वाकांक्षी युवा है।और वह 2020 में विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका है। इस घटना के बाद कानूनी प्रक्रिया को उसे हंस कर कबूल कर लेना चाहिए और बिहार सरकार और बिहार पुलिस का शुक्रिया भी अदा करना चाहिए कि उसके लिए 2024 में विधानसभा में जाने का रास्ता साफ कर दिया है। इस घटना के बाद जिस तरह उसकी लोकप्रियता और उस पर देश भर में जिस तरह बहस छिड़ गई है।उसके बाद कुछ पार्टी उसके लिए अभी से टिकट लेकर विधानसभा मे उसे भेजने की योजना बनाने लगे हैं । और मनीष इसके लिए मेहनत कर भी रहे थे। 

   इस मामले में कोर्ट न्याय संगत फैसला लेगा।ये अकेले पत्रकार नही है जिनपर केस हुई है।देश भर में कई पत्रकार हैं जिनपर केस चल रहा है, जेल में हैं भी।लेकिन हमें गर्व है कि हमारी न्याय व्यवस्था इतनी मजबूत है कि देर सबेर ऐसे लोगों को न्याय मिलता है।और सबकुछ ठीक हो जाता है। इसके साथ ही सरकारों पर भी सवाल उठती है कि इसी तरह की तत्परता सभी मामले में उठाये जाये ..? 

इन सारे सवालों का जवाब सरकार को देनी चाहिए। साथ हीं साथ उन सभी सोशल मीडिया के पत्रकारों के लिये ये सबक भी है कि आप किसी भी खबर को पूरे तथ्य और प्रमाण के साथ हीं उठाएं ताकि इस तरह की परिस्थितियां सामने नही आये।आज देखा जा रहा कि लोग अपने सब्सक्राइबर बढ़ाने न्यूज़ के टीआरपी को बढ़ाने के लिए कई तरह के हथकंडा अपनाते हैं।गलत सही खबरों के जरिये अधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास करते हैं इस पर भी अंकुश लगना चाहिए।और इस तरह की कार्रवाई से ऐसे प्रवृति पर रोक लग सकती है।इस से सभी यूट्यूबर और सोशल मीडिया से जुड़े लोगों को सबक भी लेनी चाहिए।

सम्पादकीय:- आपसी भाईचारा और सौहार्द का पर्व है होली ! आइये मिलकर हम स्नेह का दीप जलाएं और अपनों के बीच की दूरियां मिटायें

(विनोद आनंद)

रंगों का त्योहार होली आज है ! यह पर्व उमंग, उल्लास, मस्ती और रोमांच का पर्व है। इस पर्व के बहाने समाज में आपसी भाईचारा और सौहार्द का वातावरण भी बनता है। यह पर्व हमारे भारतीय परंपरा का एक अनूठा पर्व है जो हमे एक दूसरे से जोड़ता है और और प्रेम का आह्वान करता है। 

हमारे भारतीय परंपरा और संस्कृति में हमें कई ऐसे पर्व विरासत में मिला है जो हमारे सामाजिक बंधन को मजबूत बनाता है। हमारे संस्कृति और पर्व के बीच एक ऐसा प्रगाढ संबंध है जो हमें और हमारी सामाजिक व्यवस्था को मजबूत करता आया है। इसलिए हम अलग अलग भाषा, संस्कृति, विभिन्न सामाजिक परिवेश के वाबजूद भी हम सब आज एक हैं।

होली के लेकर हमारी यह मान्यता रही है कि हमारे अंदर की कलुषित भावनाओं का होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाता है और नेह की ज्योति जलाते हुए हम सभी एक रंग में रंगकर बंधुत्व को बढ़ाते हैं । होली पर्व का यही संदेश भी है।इस भारतीय पर्व का धमक देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहुंच चुका है और पूरे जोश खरोश के साथ लोग इस पर्व को मना रहे हैं। भले हीं विदेशों में मनाई जाने वाली होली मौसम और समय अलग-अलग हो, पर संदेश सभी का एक ही है आपसी प्रेम और भाईचारा।

होली शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का सांकेतिक पर्व है। इस समय बसंत के बाद पतझड़ के कारण साख से पत्ते टूटकर दूर हो रहे होते हैं। महुए की गंध की मादकता, पलाश और आम की मंजरियों की महक से चमत्कृत कर देने वाला मौसम फाल्गुन मास की निराली बासंती हवाओं में संस्कृति के परंपरागत परिधानों में आंतरिक प्रेमानुभूति सुसज्जित होकर चहुंओर मस्ती की भंग आलम बिखेरती है, जिससे दु:ख-दर्द भूलकर लोग रंगों में डूब जाते हैं।

जब बात होली की हो, तो ब्रज की होली को भला कैसे भुला जा सकता है? ढोलक की थाप और झांझों की झंकार के साथ लोकगीतों की स्वर-लहरियों से वसुधा के कण-कण को प्रेममय क्रीड़ाओं के लिए आकर्षित करने वाली होली ब्रज की गलियों में बड़े ही अद्भूत ढंग से मनाई जाती है। 

फागुन मास में कृष्ण और राधा के मध्य होने वाली प्रेम-लीलाओं के आनंद का त्योहार होली प्रकृति के साथ जनमानस में सकारात्मकता और नवीन ऊर्जा का संचार करने वाला है। 

होली में नायक और नायिका के बीच बढ़ रही चुहलपन,प्रेम और प्रगाढ सम्बन्धों को हिन्दी के कई रचनाधर्मी कवियों ने अपनी रचनाओं में बहुत ही प्रभावी ढंग से ढाला है, वाकई यह सभी प्रसंग बहुत ही अद्भूत है। अनुराग और प्रीति के त्योहार होली का भक्तिकालीन और रीतिकालीन काव्य में सृजनधर्मी रचना प्रेमियों ने बखूबी से चित्रण किया है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन कवि सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीरा, कबीर और रीतिकालीन कवि बिहारी, केशव, घनानंद सहित सगुन साकार और निर्गुण निराकर भक्तिमय प्रेम और फाल्गुन का फाग भरा रस सभी के अंतस की अतल गहराइयों को स्पर्श करके गुजरा है।

 सूफी संत अमीर खुसरो ने प्रेम की कितनी उत्कृष्ट व्याख्या की है-

 'खुसरो दरिया प्रेम का, सो उल्टी वाकी धार। जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा हुआ पार।।'

 बेशक, होली का त्योहार मन-प्रणय मिलन और विरह-वेदना के बाद सुखद प्रेमानुभूति के आनंद का प्रतीक है। राग-रंग और अल्हड़पन का झरोखा, नित नूतन आनंद के अतिरेकी उद्गार की छाया, राग-द्वेष का क्षय कर प्रीति के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरने वाला होली का त्योहार कितनी ही लोककथाओं और किंवदंतियों में गुंथा हुआ है।

प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा जनमानस में सर्वाधिक प्रचलित है। बुराई का प्रतीक होलिका अच्छाई के प्रतीक ईश्वर-श्रद्धा के अनुपम उदाहरण प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर सकी। बुराई भले कितनी ही बुरी क्यों न हो, पर अच्छाई के आगे उसका मिटना तय है।

लेकिन इसके विपरीत आज बदलते दौर में होली को मनाने के पारंपरिक तरीकों की जगह आधुनिक अश्लील तरीकों ने ले ली है जिसके फलस्वरूप अब शरीर के अंगों से केसर और चंदन की सुगंध की बजाय गोबर की दुर्गंध आने लग गई है। लोकगीतों में मादकता भरा सुरमय संगीत विलुप्त होने लगा है और अब उसकी जगह अभद्र शब्दों की मुद्राएं भी अंकित दिखलाई पड़ने लगी हैं।

हमे बस यही ख्याल रखना है कि होली के इस महान पर्व को अपने विरासत में मिली परम्परा का निर्वहन करते हुए जिस उधेश्य से इस पर्व को हमारे पूर्वज मानते आए हैं उसे हम बरकरार रखें।

भाईचारा, सौहार्द वातावरण कायम करते हुए हम समाज को संदेश दें कि हमारी संस्कृति हमारी सोच और हमारा समृद्ध परंपरा महान है।

  पिछले दो सालों से वैश्विक महामारी के कारण हम होली या अन्य पर्व को नही ढंग से मना पाए,अपनो से हम कटे रहे,इस बीच थोड़ी दूरी भी बनी ,हम इस होली के अवसर पर हम अपने संबंधों,अपने प्रेम और अपनी भाईचारा के रंगों में रंग कर मज़बूत बनाएं। इसी कामनाओं के साथ होली के अवसर पर स्ट्रीटबज़्ज़ पाठकों को ढेर शुभकामनाएं।