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प्रदूषण पर दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, दिए जरूरी दिशानिर्देश

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दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के हलफनामे पर नाराजगी जताई। जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सवाल किया कि दिन के समय भी ट्रकों की आवाजाही क्यों हो रही है? सुप्रीम कोर्ट ने एंट्री प्वाइंट पर लापरवाही को लेकर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस से 113 एंट्री प्वाइंट्स पर सख्त निगरानी सुनिश्चित करने को कहा है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि राजधानी में ट्रकों की एंट्री कैसे रोकी जा रही है। इस पर दिल्ली सरकार ने कहा कि सभी मालवाहक वाहनों को रोका जा रहा है। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वीडियो में ट्रक वाले कह रहे हैं कि पुलिस को 200 रुपये देकर एंट्री कर रहे हैं।

दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा कि पिछले आदेश का अनुपालन दिखाया जाए, जिसमें हमने कहा था कि आप टीमें बनाएं और सुनिश्चित करें कि इन चीजों की निगरानी हो और उन पर नियंत्रण रखा जाए। आपका हलफनामा बहुत अस्पष्ट है। यह भी नहीं बताया कि कितने चेकपोस्ट बनाए हैं। ⁠अगर वहां तैनात अधिकारियों को आवश्यक वस्तुओं की छूट के बारे में पता नहीं है तो आप जो प्रतिबंध बता रहे हैं वह पूरी तरह से मनमाना है। सभी कर्मचारियों को स्पष्ट बताया जाए कि क्या सामान लेकर जा रहे ट्रकों की एंट्री हो सकती है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में भयानक रूप ले रहे प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए कुछ दिशानिर्दश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि वे दिल्ली में प्रवेश के सभी 113 बिंदुओं पर तुरंत चेकपॉइंट स्थापित करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवेश बिंदुओं पर तैनात कर्मियों को आवश्यक वस्तुओं के अंतर्गत स्वीकार्य वस्तुओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 113 प्रवेश बिंदुओं में से 13 प्रमुख प्रवेश बिंदुओं पर निगरानी रखी जाती है ताकि ग्रैप चरण IV के खंड A और B का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लगभग 100 प्रवेश बिंदु मानव रहित हैं और ट्रकों के प्रवेश की जांच करने वाला कोई नहीं है।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर के दूसरे राज्यों से 3 दिन में हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह बताने को कहा था कि उन्होंने इस मामले में अब तक क्या कार्रवाई की है। कोर्ट ने एनसीआर के सभी राज्य के 12वीं तक की कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में चलाने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकार दफ्तरों में 50% कर्मचारियों के साथ काम करने पर भी विचार करें।

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों को बंद करने के आदेश

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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार गहराती जा रही है। दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट रूम के अंदर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 990 से ऊपर है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर एक्यूआई 400 से नीचे चला जाता है, तब भी जीआरएपी का चौथा चरण उसके अगले आदेश तक लागू रहेगा और उसने सभी एनसीआर राज्यों को जीआरएपी का चौथा चरण लागू करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलावा एनसीआर में भी सभी स्कूल कॉलेज बंद करने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राज्य और केंद्र का संवैधानिक दायित्व है कि नागरिक प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रैप चरण 3 और 4 के सभी खंडों के अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाने चाहिए कि स्थिति सामान्य हो जाए। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष गुरुवार तक आदेश के पालन को लेकर हलफनामा दाखिल करें। शुक्रवार को सुनवाई होगी।

ग्रैप 4 की निगरानी के लिए टीम गठित करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी एनसीआर सरकारों को ग्रैप चरण 4 को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने सभी एनसीआर राज्यों को ग्रैप 4 के तहत जरूरी कामों की निगरानी के लिए तत्काल टीमों का गठन करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि वे ग्रैप 4 में दिए गए कदमों पर तुरंत निर्णय लें और अगली सुनवाई की तारीख से पहले उन्हें उसके समक्ष रखें। कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर सरकारों को इस कदम के उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी निर्देश दिया।

12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए

कोर्ट ने एनसीआर राज्यों को आदेश दिया कि 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए और सभी कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में संचालित किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य प्राथमिकता होनी चाहिए और यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है कि वे प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करें।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग पर भी सवाल

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि एक्यूआई 400 पार करने के बावजूद ग्रैप स्टेज 3 और स्टेज 4 को लागू करने में देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि 12 नवंबर को एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया था, लेकिन ग्रैप स्टेज 3, 14 नवंबर को लागू किया गया और स्टेज 4 आज सुबह ही प्रभावी हो पाया।

बता दें कि रविवार को ही दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर 460 एक्यूआई की सीमा को पार कर गया था। हालात को देखते हुए उसी समय केंद्र सरकार की समिति ने दिल्ली एनसीआर में ग्रैप-4 लागू करने के आदेश जारी कर दिए थे. यह आदेश आज सोमवार की सुबह आठ बजे से लागू किए गए हैं। इस आदेश के तहत दिल्ली एनसीआर में पहली से 6 वीं तक के स्कूलों को तत्काल बंद करने और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करने के आदेश दिए गए थे। साथ ही कई तरह की अन्य पाबंदियां भी लागू की गई थी।

कौन हैं मोजतबा खामेनेई? जो बन सकते हैं ईरान के अगले सुप्रीम लीडर

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दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देशों में से एक ईरान में बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। पहले तो ये देश इजरायल के साथ युद्ध में व्यस्त है। इजराइल से जंग के बीच ईरान की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत मल रहे हैं। अचानक से सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई द्वारा अपने बेटे मोजतबा को उत्तराधिकारी बनाए जाने की खबर ने सब को चौंका दिया है।

ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया है।बताया जा रहा है कि यह फैसला 26 सितंबर को हुई एक सीक्रेट बैठक में लिया गया। दरअसल, वर्तमान में अयातुल्लाह अली खामेनेई की उम्र 85 वर्ष है। वह लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहहे हैं। ऐसे में वह ईरान के सर्वोच्च नेता का पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं, ताकि मोजतबा उनके जीवनकाल में ही देश का नेतृत्व संभाल सकें।

सर्वसम्मति से नेता चुने गए मोजतबा

इजराइली मीडिया आउटलेट वाईनेट न्यूज ने ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को एक गुप्त बैठक के दौरान कथित तौर पर उनके पिता के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 सितंबर को सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के अनुरोध पर ईरान के विशेषज्ञों की सभा के 60 सदस्यों की बैठक बुलाई गई थी, जिन्होंने उन्हें अपने उत्तराधिकार के संबंध में तत्काल और गोपनीय निर्णय लेने का निर्देश दिया था। सर्वसम्मति से, सभा ने खामेनेई के बेटे मोजतबा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना।

सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए गुप्त बैठक

ईरान इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए इस फैसले को गुप्त रखा गया था। इसमें कहा गया है, व्यापक सार्वजनिक विरोध के डर से विधानसभा ने निर्णय पर अधिकतम गोपनीयता बनाए रखने का संकल्प लिया और सदस्यों को किसी भी लीक के लिए गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई थी।

परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी

ऐसा माना जा रहा है कि अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ संभावित सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर ने इन चरम उपायों को लागू किया गया। बैठक के बारे में कोई भी जानकारी लीक होने पर विधानसभा सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी।

एक महीने तक छिपाकर रखा गया फैसला

देश में अशांति को रोकने के लिए असेंबली के विचार-विमर्श का विवरण एक महीने से अधिक समय तक छिपाया गया था। मोजतबा के चयन ने उनके सरकारी अनुभव और आधिकारिक भूमिकाओं की कमी के कारण चिंताएं पैदा की हैं। हालांकि, पिछले दो वर्षों में, उन्हें शासन के आंतरिक कामकाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगातार तैनात किया गया है, जो सत्ता के सुचारू हस्तांतरण को सुनिश्चित करने के लिए अली खामेनेई द्वारा एक सुनियोजित प्रयास का संकेत देता है।

कौन है मोजतबा खामेनेई?

मोजतबा खामेनेई अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर, 1969, मशहद ईरान में हुआ था। उन्होंने धर्मशास्त्र की पढ़ाई की और 1999 में मौलवी बनने की पढ़ाई की। मोजतबा की पहचान एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में है। वह सर्वोच्च नेता के कार्यालय में एक कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका निभाते हैं। 2005 और 2009 में ईरान के चुनावों में मोजतबा महमूद अहमदीनेजाद के समर्थक थे और कथित तौर पर 2009 में अहमदीनेजाद की जीत में भी उनका हाथ था। अहमदीनेजाद की जीत के बाद जून 2009 में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें मोजतबा ने कथित तौर पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने वालों का नेतृत्व किया। हालांकि, बाद में अहमदीनेजाद के साथ उनके संबंध खराब हो गए जब उन्होंने मोजतबा खामेनेई पर सरकारी खजाने से धन के गबन का आरोप लगाया।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक पक्षपात कि की निंदा, संवेदनशीलता का किया आह्वान

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Supreme court of India

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सार्वजनिक कार्यालयों में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, तथा महिला प्रतिनिधियों को कमतर आंकने के बजाय उनका समर्थन करने के लिए प्रशासनिक प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया। सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक आदेशों और विधायी प्रयासों के बावजूद प्रशासनिक संरचनाओं में महिलाओं को प्रणालीगत पक्षपात का सामना करना पड़ता है। 

इसने पूर्वाग्रह के एक परेशान करने वाले पैटर्न को नोट किया, विशेष रूप से महिला नेताओं के खिलाफ, टिप्पणी करते हुए: "एक देश के रूप में, हम सार्वजनिक कार्यालयों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधि हैं।"

अदालत ने कहा कि इस तरह की बाधाएं जड़ जमाए हुए भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाती हैं और अधिक समावेशी राजनीतिक परिदृश्य की ओर प्रगति को बाधित करती हैं। पीठ ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधि, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिला को हटाने को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उन महिलाओं के प्रयासों की अनदेखी करता है जो ऐसे पदों को हासिल करने और बनाए रखने के लिए करती हैं। हम दोहराना चाहेंगे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से संबंधित हो। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं जो ऐसे सार्वजनिक पदों पर कब्जा करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं" ।

अदालत ने कड़े बयान तब दिए जब उसने आदेश दिया कि मनीषा रवींद्र पानपाटिल को उनके कार्यकाल के अंत तक महाराष्ट्र के जलगांव जिले के विचखेड़ा की सरपंच के रूप में बहाल किया जाए। इसके फैसले ने स्थानीय अधिकारियों के फैसले को पलट दिया, जिन्होंने सरकारी जमीन पर रहने के दावे पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था - एक आरोप जिसे अदालत ने निराधार पाया। पानपाटिल फरवरी 2021 में निर्वाचित हुई थीं। 

अपने आदेश में, अदालत ने सरकारी अधिकारियों से शासन में महिलाओं के लिए अधिक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने का आह्वान किया, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसने प्रशासनिक निकायों के लिए “खुद को संवेदनशील बनाने और अधिक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काम करने” की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने पाया कि निजी शिकायतकर्ताओं की कार्रवाई, जिन्होंने पानपाटिल की अयोग्यता की मांग की थी, एक महिला सरपंच द्वारा गांव की ओर से निर्णय लेने और अधिकार का प्रयोग करने के प्रतिरोध से प्रेरित थी। इसने कहा, “यह हमें एक क्लासिक मामला लगता है, जहां गांव के निवासी इस तथ्य से सहमत नहीं हो सके कि अपीलकर्ता, एक महिला होने के बावजूद, उनके गांव के सरपंच के पद पर चुनी गई थी।” लिंग-आधारित बहिष्कार के एक पैटर्न पर प्रकाश डालते हुए, अदालत ने टिप्पणी की कि अस्पष्ट दावों के आधार पर और उचित तथ्य-जांच के बिना पानपाटिल को हटाना, स्थानीय शासन में महिलाओं की भूमिकाओं के प्रति आधिकारिक उदासीनता के एक व्यापक मुद्दे को रेखांकित करता है। 

Dynamic Start for UTSAV Interior & Furniture Expo MMRDA BKC: Over 10k Enthusiastic Visitors Thrilled by Premium Offerings

Mumbai, 10th August 2024: Utsav Exhibition (Consumer, Interior & Furniture Expo) at MMRDA BKC delighted more than 10,000 visitors on its opening day with a grand showcase of premium brands and the presence of prominent content creators. Organized by Expo India Exhibition Pvt Ltd, a stalwart in the exhibition industry for over 25 years, the event has become the epicenter of the International Furniture, Home Decor & Consumer Exhibition, boasting an extensive range of products from kitchenware and appliances to lifestyle, fashion, and health products.

The exhibition, which started on August 9th and will conclude on August 15th, 2024, has already garnered widespread attention and praise. As one of Maharashtra's largest trade fair events, Utsav has attracted participants from diverse industries, creating a dynamic platform for interaction and commerce.

Ace journalist and renowned content creator Rajveer Singh on Instagram) immersed himself in the exhibition, engaging with exhibitors and organizers to gain insights into the showcased brands and the overall event experience.

Utsav Exhibition witnessed visitors and also brands interacting & clicking pictures with several prominent instagram content creators who attended the exhibition on August 9th. These creators included Bollywood actress winning photographer and some very creative & renowned influencers like and exhibition also featured an impressive lineup of exhibitors, showcasing renowned brands such as Shree Guruji Products, Kytes India, Andros India, Ruchira Exports, Ammarzo, Rajasthan Hastakala Bedsheets, Orient Ceramics, Hakim Afghan Dryfruits from Afghanistan, D’Sunnar Jewellery, Being You Cosmetics, Rajasthani Jewellery, Shabreen Designer, Usha International, Dimple Creation, Jutie Pie, Mangalam Organics, Fashion Icon, Humaira Collection, Mojari Master, Punjabi Jutti, Nature’s Bell, Timeless Treasure, Magic Steam Iron, Cristalli Jewellery, Nakshi Art, Jimmy Bags, Swad Foods, Supreme Foods, Borges India, Sunpure Oil, Chitale Bandhu, Gadre Foods, Home Interiors, Comfy Living, INWOFU, PureWoods Furniture, Om Artifacts, SpaceMagic, Carpet Home Décor, Aasif Handicraft, Vintage Art, Chisti Marble, Devis Modular Kitchen, Indian Handicraft, Veer Fitness, and Godrej Security Solutions.

Rajveer's interactions with Utsav's Organisers, Mr Javed (Director), Kruti Galia, Bini Prajapati, and Altaf Shaikh, revealed their gratitude to visitors and exhibitors for making the exhibition a resounding success. With over 10,000 visitors on the opening day, the event witnessed families flocking in for a delightful shopping experience.

As Utsav Exhibition enters its final week, exclusive and exciting offers tempt you to visit the exhibition for purchasing unique products. Attendees are encouraged to experience the excellence showcased by premium brands. With huge discounts on a diverse range of products catering to various lifestyle needs, the exhibition promises an unparalleled shopping experience for all.

One more exciting week awaits you to grab the opportunity to visit Utsav Exhibition at BKC, MMRDA Grounds, near Asian Heart Hospital, from 12 noon to 9 pm.

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ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణపై సుప్రీం కీలక తీర్పు

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది..

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది. 6:1 మెజారిటీతో సీజేఐ జస్టిస్ డి.వై. చంద్రచూడ్ నేతృత్వంలోని రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఈ తీర్పును వెల్లడించింది. గురువారం నాడు వర్గీకరణపై సుదీర్ఘ విచారణ జరిపిన ఏడుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం.. ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణ సమర్థనీయమని స్పష్టం చేసింది. కాగా.. ఈ వర్గీకరణను మెజారిటీ సభ్యులు సమర్థించగా.. జస్టిస్‌ బేలా త్రివేది మాత్రం వ్యతిరేకించారు. ఎస్సీలు చాలా వెనుకబడిన వర్గాలుగా ఉన్నారని.. విద్య, ఉద్యోగాల్లో రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణ అవసరం ఉందని.. వర్గీకరణచేసే వెసులుబాటు రాష్ట్రాలకు ఉండాలని సుప్రీం స్పష్టం చేసింది. ఈ మేరకు 2004లో ఐదుగురు సభ్యులు ఇచ్చిన తీర్పును తాజా తీర్పు తర్వాత ధర్మాసనం పక్కనబెట్టింది. ఈ తీర్పును అనుసరించి తదుపరి మార్గదర్శకాలను అనుసరించాలని ప్రభుత్వాలకు న్యాయస్థానం సూచించింది.

సామాజిక న్యాయం లక్ష్యంగా భారత రాజ్యాంగం దేశంలో విడిపోయి ఉన్న కులాలను చాలా శాస్త్రీయంగా అంటే ఎస్సీ, ఎస్టీ, బీసీ, ఎఫ్.సి.లుగా వర్గీకరించింది. షెడ్యూల్ కులాలకు సంబంధించి అంటరానితనానికి గురవుతున్న కులాలను ఒకే గొడుగు కిందికి తీసుకొచ్చి వారికి రిజర్వేషన్ అవకాశాలు కల్పించింది. అయితే ఇలా కులపరంగా రిజర్వేషన్ పొందుతున్న తరగతుల్లో మాలలే అగ్ర భాగాన ఉన్నారని ఆరోపిస్తూ, ఈ తేడాను సవరించాలని ఎమ్మార్పీఎస్ ఉద్యమం చేస్తూ ఎ, బి, సి, డి కేటగిరీల వారీగా ఎస్సీలను వర్గీకరించాలని కొన్నేళ్లుగా ప్రభుత్వాలు, న్యాయస్థానాలను కోరుతూ వస్తోంది. ఇదిలా ఉంటే.. పంజాబ్‌ ప్రభుత్వం తీసుకువచ్చిన ‘ద పంజాబ్‌ షెడ్యూల్డ్‌ క్యాస్ట్స్‌ అండ్‌ బ్యాక్‌వర్డ్‌ క్లాసెస్‌ (రిజర్వేషన్‌ ఇన్‌ సర్వీసెస్‌) యాక్ట్‌-2006’ను సవాలు చేస్తూ పదుల సంఖ్యలో ధర్మాసనంకు పిటిషన్లు వచ్చాయి. ఇందులో ఎమ్మార్పీఎస్‌ వ్యవస్థాపక అధ్యక్షుడు మందకృష్ణ మాదిగ పిటిషినర్‌గా ఉన్నారు.

ప్రస్తుతం కేంద్ర ప్రభుత్వం ఎస్సీలకు 22.5% రిజర్వేషన్‌ కల్పిస్తుండగా.. పంజాబ్‌లో అది 25శాతంగా ఉంది. పంజాబ్‌ రిజర్వేషన్ల చట్టంలోని సెక్షన్‌ 4(5) ప్రకారం.. ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో వాల్మీకి, మజ్హబీ సిక్కులు పోటీలో ఉంటే.. వారికి ప్రాధాన్యతనిస్తూ 50% కోటాను కేటాయించాలి. ఈ చట్టం వల్ల ఎస్సీల్లోని ఇతర కులస్థులు ఉద్యోగావకాశాలను కోల్పోతున్నారని, ఇది రాజ్యాంగ విరుద్ధమంటూ పంజాబ్‌-హరియాణా హైకోర్టులో పిటిషన్లు దాఖలయ్యాయి. 2010లో పంజాబ్‌ సర్కారుకు వ్యతిరేకంగా హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది. 2011లో పంజాబ్‌ సర్కారు దీనిపై సుప్రీంకోర్టులో అప్పీల్‌కు వెళ్లగా.. ఇతర పిటిషనర్లు సైతం వ్యాజ్యాలను దాఖలు చేశారు. 2020 ఆగస్టు 27న జస్టిస్‌ అరుణ్‌ మిశ్రా(ప్రస్తుతం రిటైర్‌ అయ్యారు) నేతృత్వంలోని త్రిసభ్య ధర్మాసనం ఈ విషయాన్ని పరిశీలించేందుకు విస్తృత రాజ్యాంగ ధర్మాసనం అవసరమని స్పష్టం చేశారు. అసలు.. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల వర్గీకరణ చేయొచ్చా? అనే అంశంపై న్యాయపరమైన ప్రశ్నలను పరిశీలించేందుకు ఏడుగురు సభ్యుల సుప్రీంకోర్టు రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఏర్పాటైంది. ఇందులో చీఫ్‌ జస్టిస్‌ డీవై చంద్రచూడ్‌తోపాటు.. జస్టిస్‌ బీఆర్‌ గవాయి, జస్టిస్‌ విక్రమ్‌నాథ్‌, జస్టిస్‌ బేలా.ఎం.త్రివేది, జస్టిస్‌ పంకజ్‌ మిత్తల్‌, జస్టిస్‌ మనోజ్‌ మిశ్రా, జస్టిస్‌ సతీశ్‌చంద్ర మిశ్రాల ధర్మాసనం ఈ విచారణను ప్రారంభించింది.

ఈ కేసులో పిటిషనర్లు 2004 నాటి ‘ఈవీ చిన్నయ్య వర్సెస్‌ స్టేట్‌ ఆఫ్‌ ఆంధ్రప్రదేశ్‌’ కేసులో సుప్రీంకోర్టు ఐదుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం తీర్పును ఉటంకించారు. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల్లో వర్గీకరణ చేయడం రాజ్యాంగ విరుద్ధమని, అలాంటి నిర్ణయాలు భారత రాజ్యాంగంలోని 14వ అధికరణ(చట్టం ముందు అంతా సమానులే)ను ఉల్లంఘిస్తోందని 2004 నాటి తీర్పు స్పష్టం చేస్తోంది. దీనికి తోడు.. ఎస్సీ కులాల గుర్తింపు బాధ్యత పార్లమెంట్‌కు మాత్రమే ఉంటుందని, ఆయా కులాలను రాజ్యాంగంలోని ఆర్టికల్‌ 341 మేరకు రాష్ట్రపతి మాత్రమే నోటిఫై చేస్తారని పిటిషనర్లు తమ వ్యాజ్యాల్లో పేర్కొనడం జరిగింది. ఇదంతా ఈ ఏడాది ఫిబ్రవరిలో జరిగింది. ఈ క్రమంలోనే.. ఇవాళ 2004 నాటి ఈవీ చిన్నయ్య తీర్పును వ్యతిరేకిస్తూ.. రాష్ట్రాలు ఉపవర్గీకరణ చేసుకునేందుకు అనుమతి కల్పిస్తున్నట్లు సీజేఐ ధర్మాసనం స్పష్టంచేసింది.

ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో క్యాటగిరి చేసుకునే అంశంపై పంజాబ్ ప్రభుత్వం, తెలుగు రాష్ట్రాల నుంచి ఎమ్మార్పీఎస్ సుప్రీంకోర్టు ఆశ్రయించిన విషయం తెలిసిందే. తాజా తీర్పుతో ఆయా వర్గాలు, నేతలు సంతోషం వ్యక్తం చేస్తున్నారు. ఈ తీర్పును కేంద్ర మంత్రి కిషన్ రెడ్డి స్వాగతిస్తున్నట్లు తెలిపారు. పేదలకు న్యాయం జరగాలన్నదే మోదీ సర్కార్ ఉద్దేశమని.. ప్రభుత్వ ఫలాలు అందరికీ అందాలని చెప్పుకొచ్చారు.

మరోవైపు.. సుప్రీంకోర్టు తీర్పుపై ఎమ్మార్పీఎస్ అధినేత మంద కృష్ణ మాదిగ స్పందిస్తూ భావోద్వేగానికి లోనయ్యారు. మీడియా ఎదుటే ఆయన కంటనీరు పెట్టుకున్నారు. ‘మా 30 ఏళ్ల పోరాటానికి న్యాయం జరిగింది. సుప్రీంకోర్టు తీర్పు న్యాయాన్ని బతికించింది. ఈ ప్రక్రియ వేగవంతానికి ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ చొరవ తీసుకున్నారు. అమిత్‌షా, వెంకయ్యనాయుడు, కిషన్‌రెడ్డికి ధన్యవాదాలు. వర్గీకరణ చేసిన ఆంధ్రప్రదేశ్ ముఖ్యమంత్రి నారా చంద్రబాబుకు ప్రత్యేక ధన్యవాదాలు. ఈ విజయాన్ని అమరులకు అంకితం ఇస్తున్నాం. రిజర్వేషన్ల సిస్టమ్ ఇప్పుడు రెండో అడుగు వేయబోతుంది. తెలుగు రాష్ట్రాల్లో వర్గీకరణ అనివార్యం. వర్గీకరణకు సంబంధించిన జీవోలు వచ్చిన తర్వాతే ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి. ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు సరిచేసుకోవాల్సిన అవసరం ఉంది. రీ-నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి’ అని కేంద్ర, రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలను మందకృష్ణ మాదిగ కోరారు. వర్గీకరణకు జనాభా లెక్కలతో పనిలేదని మరోసారి గుర్తు చేశారు. త్వరలో విజయోత్సవ సభ.. ఇందుకు సహకరించిన వారికి కృతజ్ఞత సభలు ఉంటాయని మందకృష్ణ వెల్లడించారు.

प्रदूषण पर दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, दिए जरूरी दिशानिर्देश

#supreme_court_not_happy_with_delhi_govt_answer_on_pollution

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के हलफनामे पर नाराजगी जताई। जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सवाल किया कि दिन के समय भी ट्रकों की आवाजाही क्यों हो रही है? सुप्रीम कोर्ट ने एंट्री प्वाइंट पर लापरवाही को लेकर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस से 113 एंट्री प्वाइंट्स पर सख्त निगरानी सुनिश्चित करने को कहा है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि राजधानी में ट्रकों की एंट्री कैसे रोकी जा रही है। इस पर दिल्ली सरकार ने कहा कि सभी मालवाहक वाहनों को रोका जा रहा है। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वीडियो में ट्रक वाले कह रहे हैं कि पुलिस को 200 रुपये देकर एंट्री कर रहे हैं।

दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा कि पिछले आदेश का अनुपालन दिखाया जाए, जिसमें हमने कहा था कि आप टीमें बनाएं और सुनिश्चित करें कि इन चीजों की निगरानी हो और उन पर नियंत्रण रखा जाए। आपका हलफनामा बहुत अस्पष्ट है। यह भी नहीं बताया कि कितने चेकपोस्ट बनाए हैं। ⁠अगर वहां तैनात अधिकारियों को आवश्यक वस्तुओं की छूट के बारे में पता नहीं है तो आप जो प्रतिबंध बता रहे हैं वह पूरी तरह से मनमाना है। सभी कर्मचारियों को स्पष्ट बताया जाए कि क्या सामान लेकर जा रहे ट्रकों की एंट्री हो सकती है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में भयानक रूप ले रहे प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए कुछ दिशानिर्दश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि वे दिल्ली में प्रवेश के सभी 113 बिंदुओं पर तुरंत चेकपॉइंट स्थापित करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवेश बिंदुओं पर तैनात कर्मियों को आवश्यक वस्तुओं के अंतर्गत स्वीकार्य वस्तुओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 113 प्रवेश बिंदुओं में से 13 प्रमुख प्रवेश बिंदुओं पर निगरानी रखी जाती है ताकि ग्रैप चरण IV के खंड A और B का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लगभग 100 प्रवेश बिंदु मानव रहित हैं और ट्रकों के प्रवेश की जांच करने वाला कोई नहीं है।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर के दूसरे राज्यों से 3 दिन में हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने यह बताने को कहा था कि उन्होंने इस मामले में अब तक क्या कार्रवाई की है। कोर्ट ने एनसीआर के सभी राज्य के 12वीं तक की कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में चलाने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकार दफ्तरों में 50% कर्मचारियों के साथ काम करने पर भी विचार करें।

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों को बंद करने के आदेश

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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार गहराती जा रही है। दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट रूम के अंदर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 990 से ऊपर है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर एक्यूआई 400 से नीचे चला जाता है, तब भी जीआरएपी का चौथा चरण उसके अगले आदेश तक लागू रहेगा और उसने सभी एनसीआर राज्यों को जीआरएपी का चौथा चरण लागू करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलावा एनसीआर में भी सभी स्कूल कॉलेज बंद करने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राज्य और केंद्र का संवैधानिक दायित्व है कि नागरिक प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रैप चरण 3 और 4 के सभी खंडों के अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाने चाहिए कि स्थिति सामान्य हो जाए। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष गुरुवार तक आदेश के पालन को लेकर हलफनामा दाखिल करें। शुक्रवार को सुनवाई होगी।

ग्रैप 4 की निगरानी के लिए टीम गठित करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी एनसीआर सरकारों को ग्रैप चरण 4 को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने सभी एनसीआर राज्यों को ग्रैप 4 के तहत जरूरी कामों की निगरानी के लिए तत्काल टीमों का गठन करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि वे ग्रैप 4 में दिए गए कदमों पर तुरंत निर्णय लें और अगली सुनवाई की तारीख से पहले उन्हें उसके समक्ष रखें। कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर सरकारों को इस कदम के उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी निर्देश दिया।

12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए

कोर्ट ने एनसीआर राज्यों को आदेश दिया कि 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए और सभी कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में संचालित किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य प्राथमिकता होनी चाहिए और यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है कि वे प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करें।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग पर भी सवाल

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि एक्यूआई 400 पार करने के बावजूद ग्रैप स्टेज 3 और स्टेज 4 को लागू करने में देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि 12 नवंबर को एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया था, लेकिन ग्रैप स्टेज 3, 14 नवंबर को लागू किया गया और स्टेज 4 आज सुबह ही प्रभावी हो पाया।

बता दें कि रविवार को ही दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर 460 एक्यूआई की सीमा को पार कर गया था। हालात को देखते हुए उसी समय केंद्र सरकार की समिति ने दिल्ली एनसीआर में ग्रैप-4 लागू करने के आदेश जारी कर दिए थे. यह आदेश आज सोमवार की सुबह आठ बजे से लागू किए गए हैं। इस आदेश के तहत दिल्ली एनसीआर में पहली से 6 वीं तक के स्कूलों को तत्काल बंद करने और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करने के आदेश दिए गए थे। साथ ही कई तरह की अन्य पाबंदियां भी लागू की गई थी।

कौन हैं मोजतबा खामेनेई? जो बन सकते हैं ईरान के अगले सुप्रीम लीडर

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दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देशों में से एक ईरान में बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। पहले तो ये देश इजरायल के साथ युद्ध में व्यस्त है। इजराइल से जंग के बीच ईरान की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत मल रहे हैं। अचानक से सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई द्वारा अपने बेटे मोजतबा को उत्तराधिकारी बनाए जाने की खबर ने सब को चौंका दिया है।

ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया है।बताया जा रहा है कि यह फैसला 26 सितंबर को हुई एक सीक्रेट बैठक में लिया गया। दरअसल, वर्तमान में अयातुल्लाह अली खामेनेई की उम्र 85 वर्ष है। वह लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहहे हैं। ऐसे में वह ईरान के सर्वोच्च नेता का पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं, ताकि मोजतबा उनके जीवनकाल में ही देश का नेतृत्व संभाल सकें।

सर्वसम्मति से नेता चुने गए मोजतबा

इजराइली मीडिया आउटलेट वाईनेट न्यूज ने ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को एक गुप्त बैठक के दौरान कथित तौर पर उनके पिता के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 सितंबर को सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के अनुरोध पर ईरान के विशेषज्ञों की सभा के 60 सदस्यों की बैठक बुलाई गई थी, जिन्होंने उन्हें अपने उत्तराधिकार के संबंध में तत्काल और गोपनीय निर्णय लेने का निर्देश दिया था। सर्वसम्मति से, सभा ने खामेनेई के बेटे मोजतबा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना।

सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए गुप्त बैठक

ईरान इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए इस फैसले को गुप्त रखा गया था। इसमें कहा गया है, व्यापक सार्वजनिक विरोध के डर से विधानसभा ने निर्णय पर अधिकतम गोपनीयता बनाए रखने का संकल्प लिया और सदस्यों को किसी भी लीक के लिए गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई थी।

परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी

ऐसा माना जा रहा है कि अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ संभावित सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर ने इन चरम उपायों को लागू किया गया। बैठक के बारे में कोई भी जानकारी लीक होने पर विधानसभा सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी।

एक महीने तक छिपाकर रखा गया फैसला

देश में अशांति को रोकने के लिए असेंबली के विचार-विमर्श का विवरण एक महीने से अधिक समय तक छिपाया गया था। मोजतबा के चयन ने उनके सरकारी अनुभव और आधिकारिक भूमिकाओं की कमी के कारण चिंताएं पैदा की हैं। हालांकि, पिछले दो वर्षों में, उन्हें शासन के आंतरिक कामकाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगातार तैनात किया गया है, जो सत्ता के सुचारू हस्तांतरण को सुनिश्चित करने के लिए अली खामेनेई द्वारा एक सुनियोजित प्रयास का संकेत देता है।

कौन है मोजतबा खामेनेई?

मोजतबा खामेनेई अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर, 1969, मशहद ईरान में हुआ था। उन्होंने धर्मशास्त्र की पढ़ाई की और 1999 में मौलवी बनने की पढ़ाई की। मोजतबा की पहचान एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में है। वह सर्वोच्च नेता के कार्यालय में एक कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका निभाते हैं। 2005 और 2009 में ईरान के चुनावों में मोजतबा महमूद अहमदीनेजाद के समर्थक थे और कथित तौर पर 2009 में अहमदीनेजाद की जीत में भी उनका हाथ था। अहमदीनेजाद की जीत के बाद जून 2009 में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें मोजतबा ने कथित तौर पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने वालों का नेतृत्व किया। हालांकि, बाद में अहमदीनेजाद के साथ उनके संबंध खराब हो गए जब उन्होंने मोजतबा खामेनेई पर सरकारी खजाने से धन के गबन का आरोप लगाया।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

#govtcannottakeoverallprivatepropertiesrulessupremecourt

सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक पक्षपात कि की निंदा, संवेदनशीलता का किया आह्वान

#sc_condemns_gender_bias_in_public_offices_calls_for_sensitisation

Supreme court of India

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सार्वजनिक कार्यालयों में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, तथा महिला प्रतिनिधियों को कमतर आंकने के बजाय उनका समर्थन करने के लिए प्रशासनिक प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया। सार्वजनिक कार्यालयों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक आदेशों और विधायी प्रयासों के बावजूद प्रशासनिक संरचनाओं में महिलाओं को प्रणालीगत पक्षपात का सामना करना पड़ता है। 

इसने पूर्वाग्रह के एक परेशान करने वाले पैटर्न को नोट किया, विशेष रूप से महिला नेताओं के खिलाफ, टिप्पणी करते हुए: "एक देश के रूप में, हम सार्वजनिक कार्यालयों सहित सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्य को साकार करने का प्रयास कर रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से निर्वाचित निकायों में पर्याप्त महिला प्रतिनिधि हैं।"

अदालत ने कहा कि इस तरह की बाधाएं जड़ जमाए हुए भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाती हैं और अधिक समावेशी राजनीतिक परिदृश्य की ओर प्रगति को बाधित करती हैं। पीठ ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधि, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिला को हटाने को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उन महिलाओं के प्रयासों की अनदेखी करता है जो ऐसे पदों को हासिल करने और बनाए रखने के लिए करती हैं। हम दोहराना चाहेंगे कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले को इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, खासकर जब यह ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से संबंधित हो। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि ये महिलाएं जो ऐसे सार्वजनिक पदों पर कब्जा करने में सफल होती हैं, वे काफी संघर्ष के बाद ही ऐसा करती हैं" ।

अदालत ने कड़े बयान तब दिए जब उसने आदेश दिया कि मनीषा रवींद्र पानपाटिल को उनके कार्यकाल के अंत तक महाराष्ट्र के जलगांव जिले के विचखेड़ा की सरपंच के रूप में बहाल किया जाए। इसके फैसले ने स्थानीय अधिकारियों के फैसले को पलट दिया, जिन्होंने सरकारी जमीन पर रहने के दावे पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था - एक आरोप जिसे अदालत ने निराधार पाया। पानपाटिल फरवरी 2021 में निर्वाचित हुई थीं। 

अपने आदेश में, अदालत ने सरकारी अधिकारियों से शासन में महिलाओं के लिए अधिक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने का आह्वान किया, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसने प्रशासनिक निकायों के लिए “खुद को संवेदनशील बनाने और अधिक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काम करने” की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने पाया कि निजी शिकायतकर्ताओं की कार्रवाई, जिन्होंने पानपाटिल की अयोग्यता की मांग की थी, एक महिला सरपंच द्वारा गांव की ओर से निर्णय लेने और अधिकार का प्रयोग करने के प्रतिरोध से प्रेरित थी। इसने कहा, “यह हमें एक क्लासिक मामला लगता है, जहां गांव के निवासी इस तथ्य से सहमत नहीं हो सके कि अपीलकर्ता, एक महिला होने के बावजूद, उनके गांव के सरपंच के पद पर चुनी गई थी।” लिंग-आधारित बहिष्कार के एक पैटर्न पर प्रकाश डालते हुए, अदालत ने टिप्पणी की कि अस्पष्ट दावों के आधार पर और उचित तथ्य-जांच के बिना पानपाटिल को हटाना, स्थानीय शासन में महिलाओं की भूमिकाओं के प्रति आधिकारिक उदासीनता के एक व्यापक मुद्दे को रेखांकित करता है। 

Dynamic Start for UTSAV Interior & Furniture Expo MMRDA BKC: Over 10k Enthusiastic Visitors Thrilled by Premium Offerings

Mumbai, 10th August 2024: Utsav Exhibition (Consumer, Interior & Furniture Expo) at MMRDA BKC delighted more than 10,000 visitors on its opening day with a grand showcase of premium brands and the presence of prominent content creators. Organized by Expo India Exhibition Pvt Ltd, a stalwart in the exhibition industry for over 25 years, the event has become the epicenter of the International Furniture, Home Decor & Consumer Exhibition, boasting an extensive range of products from kitchenware and appliances to lifestyle, fashion, and health products.

The exhibition, which started on August 9th and will conclude on August 15th, 2024, has already garnered widespread attention and praise. As one of Maharashtra's largest trade fair events, Utsav has attracted participants from diverse industries, creating a dynamic platform for interaction and commerce.

Ace journalist and renowned content creator Rajveer Singh on Instagram) immersed himself in the exhibition, engaging with exhibitors and organizers to gain insights into the showcased brands and the overall event experience.

Utsav Exhibition witnessed visitors and also brands interacting & clicking pictures with several prominent instagram content creators who attended the exhibition on August 9th. These creators included Bollywood actress winning photographer and some very creative & renowned influencers like and exhibition also featured an impressive lineup of exhibitors, showcasing renowned brands such as Shree Guruji Products, Kytes India, Andros India, Ruchira Exports, Ammarzo, Rajasthan Hastakala Bedsheets, Orient Ceramics, Hakim Afghan Dryfruits from Afghanistan, D’Sunnar Jewellery, Being You Cosmetics, Rajasthani Jewellery, Shabreen Designer, Usha International, Dimple Creation, Jutie Pie, Mangalam Organics, Fashion Icon, Humaira Collection, Mojari Master, Punjabi Jutti, Nature’s Bell, Timeless Treasure, Magic Steam Iron, Cristalli Jewellery, Nakshi Art, Jimmy Bags, Swad Foods, Supreme Foods, Borges India, Sunpure Oil, Chitale Bandhu, Gadre Foods, Home Interiors, Comfy Living, INWOFU, PureWoods Furniture, Om Artifacts, SpaceMagic, Carpet Home Décor, Aasif Handicraft, Vintage Art, Chisti Marble, Devis Modular Kitchen, Indian Handicraft, Veer Fitness, and Godrej Security Solutions.

Rajveer's interactions with Utsav's Organisers, Mr Javed (Director), Kruti Galia, Bini Prajapati, and Altaf Shaikh, revealed their gratitude to visitors and exhibitors for making the exhibition a resounding success. With over 10,000 visitors on the opening day, the event witnessed families flocking in for a delightful shopping experience.

As Utsav Exhibition enters its final week, exclusive and exciting offers tempt you to visit the exhibition for purchasing unique products. Attendees are encouraged to experience the excellence showcased by premium brands. With huge discounts on a diverse range of products catering to various lifestyle needs, the exhibition promises an unparalleled shopping experience for all.

One more exciting week awaits you to grab the opportunity to visit Utsav Exhibition at BKC, MMRDA Grounds, near Asian Heart Hospital, from 12 noon to 9 pm.

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ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణపై సుప్రీం కీలక తీర్పు

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది..

ఎస్సీ, ఎస్టీ రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణకు దేశ అత్యున్నత న్యాయస్థానం సుప్రీంకోర్టు (Supreme Court) గ్రీన్ సిగ్నల్ ఇచ్చింది. విద్యాసంస్థల్లో ప్రవేశాలు, ప్రభుత్వ ఉద్యోగాల్లో ఎస్సీ, ఎస్టీలకు కేటాయించిన రిజర్వేషన్లను ఉప వర్గీకరణ చేసే అధికారం.. ఆయా రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలకు ఉంటుందని సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వెలువరించింది. 6:1 మెజారిటీతో సీజేఐ జస్టిస్ డి.వై. చంద్రచూడ్ నేతృత్వంలోని రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఈ తీర్పును వెల్లడించింది. గురువారం నాడు వర్గీకరణపై సుదీర్ఘ విచారణ జరిపిన ఏడుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం.. ఎస్సీ, ఎస్టీ వర్గీకరణ సమర్థనీయమని స్పష్టం చేసింది. కాగా.. ఈ వర్గీకరణను మెజారిటీ సభ్యులు సమర్థించగా.. జస్టిస్‌ బేలా త్రివేది మాత్రం వ్యతిరేకించారు. ఎస్సీలు చాలా వెనుకబడిన వర్గాలుగా ఉన్నారని.. విద్య, ఉద్యోగాల్లో రిజర్వేషన్ల వర్గీకరణ అవసరం ఉందని.. వర్గీకరణచేసే వెసులుబాటు రాష్ట్రాలకు ఉండాలని సుప్రీం స్పష్టం చేసింది. ఈ మేరకు 2004లో ఐదుగురు సభ్యులు ఇచ్చిన తీర్పును తాజా తీర్పు తర్వాత ధర్మాసనం పక్కనబెట్టింది. ఈ తీర్పును అనుసరించి తదుపరి మార్గదర్శకాలను అనుసరించాలని ప్రభుత్వాలకు న్యాయస్థానం సూచించింది.

సామాజిక న్యాయం లక్ష్యంగా భారత రాజ్యాంగం దేశంలో విడిపోయి ఉన్న కులాలను చాలా శాస్త్రీయంగా అంటే ఎస్సీ, ఎస్టీ, బీసీ, ఎఫ్.సి.లుగా వర్గీకరించింది. షెడ్యూల్ కులాలకు సంబంధించి అంటరానితనానికి గురవుతున్న కులాలను ఒకే గొడుగు కిందికి తీసుకొచ్చి వారికి రిజర్వేషన్ అవకాశాలు కల్పించింది. అయితే ఇలా కులపరంగా రిజర్వేషన్ పొందుతున్న తరగతుల్లో మాలలే అగ్ర భాగాన ఉన్నారని ఆరోపిస్తూ, ఈ తేడాను సవరించాలని ఎమ్మార్పీఎస్ ఉద్యమం చేస్తూ ఎ, బి, సి, డి కేటగిరీల వారీగా ఎస్సీలను వర్గీకరించాలని కొన్నేళ్లుగా ప్రభుత్వాలు, న్యాయస్థానాలను కోరుతూ వస్తోంది. ఇదిలా ఉంటే.. పంజాబ్‌ ప్రభుత్వం తీసుకువచ్చిన ‘ద పంజాబ్‌ షెడ్యూల్డ్‌ క్యాస్ట్స్‌ అండ్‌ బ్యాక్‌వర్డ్‌ క్లాసెస్‌ (రిజర్వేషన్‌ ఇన్‌ సర్వీసెస్‌) యాక్ట్‌-2006’ను సవాలు చేస్తూ పదుల సంఖ్యలో ధర్మాసనంకు పిటిషన్లు వచ్చాయి. ఇందులో ఎమ్మార్పీఎస్‌ వ్యవస్థాపక అధ్యక్షుడు మందకృష్ణ మాదిగ పిటిషినర్‌గా ఉన్నారు.

ప్రస్తుతం కేంద్ర ప్రభుత్వం ఎస్సీలకు 22.5% రిజర్వేషన్‌ కల్పిస్తుండగా.. పంజాబ్‌లో అది 25శాతంగా ఉంది. పంజాబ్‌ రిజర్వేషన్ల చట్టంలోని సెక్షన్‌ 4(5) ప్రకారం.. ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో వాల్మీకి, మజ్హబీ సిక్కులు పోటీలో ఉంటే.. వారికి ప్రాధాన్యతనిస్తూ 50% కోటాను కేటాయించాలి. ఈ చట్టం వల్ల ఎస్సీల్లోని ఇతర కులస్థులు ఉద్యోగావకాశాలను కోల్పోతున్నారని, ఇది రాజ్యాంగ విరుద్ధమంటూ పంజాబ్‌-హరియాణా హైకోర్టులో పిటిషన్లు దాఖలయ్యాయి. 2010లో పంజాబ్‌ సర్కారుకు వ్యతిరేకంగా హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది. 2011లో పంజాబ్‌ సర్కారు దీనిపై సుప్రీంకోర్టులో అప్పీల్‌కు వెళ్లగా.. ఇతర పిటిషనర్లు సైతం వ్యాజ్యాలను దాఖలు చేశారు. 2020 ఆగస్టు 27న జస్టిస్‌ అరుణ్‌ మిశ్రా(ప్రస్తుతం రిటైర్‌ అయ్యారు) నేతృత్వంలోని త్రిసభ్య ధర్మాసనం ఈ విషయాన్ని పరిశీలించేందుకు విస్తృత రాజ్యాంగ ధర్మాసనం అవసరమని స్పష్టం చేశారు. అసలు.. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల వర్గీకరణ చేయొచ్చా? అనే అంశంపై న్యాయపరమైన ప్రశ్నలను పరిశీలించేందుకు ఏడుగురు సభ్యుల సుప్రీంకోర్టు రాజ్యాంగ ధర్మాసనం ఏర్పాటైంది. ఇందులో చీఫ్‌ జస్టిస్‌ డీవై చంద్రచూడ్‌తోపాటు.. జస్టిస్‌ బీఆర్‌ గవాయి, జస్టిస్‌ విక్రమ్‌నాథ్‌, జస్టిస్‌ బేలా.ఎం.త్రివేది, జస్టిస్‌ పంకజ్‌ మిత్తల్‌, జస్టిస్‌ మనోజ్‌ మిశ్రా, జస్టిస్‌ సతీశ్‌చంద్ర మిశ్రాల ధర్మాసనం ఈ విచారణను ప్రారంభించింది.

ఈ కేసులో పిటిషనర్లు 2004 నాటి ‘ఈవీ చిన్నయ్య వర్సెస్‌ స్టేట్‌ ఆఫ్‌ ఆంధ్రప్రదేశ్‌’ కేసులో సుప్రీంకోర్టు ఐదుగురు సభ్యుల ధర్మాసనం తీర్పును ఉటంకించారు. రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలు ఎస్సీ, ఎస్టీల్లో వర్గీకరణ చేయడం రాజ్యాంగ విరుద్ధమని, అలాంటి నిర్ణయాలు భారత రాజ్యాంగంలోని 14వ అధికరణ(చట్టం ముందు అంతా సమానులే)ను ఉల్లంఘిస్తోందని 2004 నాటి తీర్పు స్పష్టం చేస్తోంది. దీనికి తోడు.. ఎస్సీ కులాల గుర్తింపు బాధ్యత పార్లమెంట్‌కు మాత్రమే ఉంటుందని, ఆయా కులాలను రాజ్యాంగంలోని ఆర్టికల్‌ 341 మేరకు రాష్ట్రపతి మాత్రమే నోటిఫై చేస్తారని పిటిషనర్లు తమ వ్యాజ్యాల్లో పేర్కొనడం జరిగింది. ఇదంతా ఈ ఏడాది ఫిబ్రవరిలో జరిగింది. ఈ క్రమంలోనే.. ఇవాళ 2004 నాటి ఈవీ చిన్నయ్య తీర్పును వ్యతిరేకిస్తూ.. రాష్ట్రాలు ఉపవర్గీకరణ చేసుకునేందుకు అనుమతి కల్పిస్తున్నట్లు సీజేఐ ధర్మాసనం స్పష్టంచేసింది.

ఎస్సీ రిజర్వేషన్లలో క్యాటగిరి చేసుకునే అంశంపై పంజాబ్ ప్రభుత్వం, తెలుగు రాష్ట్రాల నుంచి ఎమ్మార్పీఎస్ సుప్రీంకోర్టు ఆశ్రయించిన విషయం తెలిసిందే. తాజా తీర్పుతో ఆయా వర్గాలు, నేతలు సంతోషం వ్యక్తం చేస్తున్నారు. ఈ తీర్పును కేంద్ర మంత్రి కిషన్ రెడ్డి స్వాగతిస్తున్నట్లు తెలిపారు. పేదలకు న్యాయం జరగాలన్నదే మోదీ సర్కార్ ఉద్దేశమని.. ప్రభుత్వ ఫలాలు అందరికీ అందాలని చెప్పుకొచ్చారు.

మరోవైపు.. సుప్రీంకోర్టు తీర్పుపై ఎమ్మార్పీఎస్ అధినేత మంద కృష్ణ మాదిగ స్పందిస్తూ భావోద్వేగానికి లోనయ్యారు. మీడియా ఎదుటే ఆయన కంటనీరు పెట్టుకున్నారు. ‘మా 30 ఏళ్ల పోరాటానికి న్యాయం జరిగింది. సుప్రీంకోర్టు తీర్పు న్యాయాన్ని బతికించింది. ఈ ప్రక్రియ వేగవంతానికి ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ చొరవ తీసుకున్నారు. అమిత్‌షా, వెంకయ్యనాయుడు, కిషన్‌రెడ్డికి ధన్యవాదాలు. వర్గీకరణ చేసిన ఆంధ్రప్రదేశ్ ముఖ్యమంత్రి నారా చంద్రబాబుకు ప్రత్యేక ధన్యవాదాలు. ఈ విజయాన్ని అమరులకు అంకితం ఇస్తున్నాం. రిజర్వేషన్ల సిస్టమ్ ఇప్పుడు రెండో అడుగు వేయబోతుంది. తెలుగు రాష్ట్రాల్లో వర్గీకరణ అనివార్యం. వర్గీకరణకు సంబంధించిన జీవోలు వచ్చిన తర్వాతే ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి. ఉద్యోగ నోటిఫికేషన్లు సరిచేసుకోవాల్సిన అవసరం ఉంది. రీ-నోటిఫికేషన్లు ఇవ్వాలి’ అని కేంద్ర, రాష్ట్ర ప్రభుత్వాలను మందకృష్ణ మాదిగ కోరారు. వర్గీకరణకు జనాభా లెక్కలతో పనిలేదని మరోసారి గుర్తు చేశారు. త్వరలో విజయోత్సవ సభ.. ఇందుకు సహకరించిన వారికి కృతజ్ఞత సభలు ఉంటాయని మందకృష్ణ వెల్లడించారు.