बिहार साहित्य महोत्सव के समापन सत्र के मुख्य वक्ता रहे डॉ विद्यासागर 'दिनकर वाग्विभूति सम्मान' से हुए सम्मानित
संजीव सिंह बलिया। बाबू जगजीवन राम संसदीय अध्ययन केन्द्र एवं राजनीतिक शोध संस्थान पटना में आयोजित बिहार साहित्य महोत्सव 2025 के समापन के अवसर पर 'राष्ट्र निर्माण में बिहार के हिन्दी साहित्यकारों का योगदान' विषयक व्याख्यान सत्र को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित करते हुए डॉ विद्यासागर उपाध्याय ने कहा कि प्राचीन काल में सिताब दियारा क्षेत्र में जब गंगा सरयू और तमसा का संगम हुआ करता था,तब महर्षि बाल्मीकि का आश्रम भी वहीं था।इसी भूमि पर क्रीड़ा करते क्रौंच पक्षी को अचानक आहत देख कर संसार की प्रथम कविता अनुष्टुप छंद में महर्षि वाल्मिकि के मुख से प्रस्फुटित हुई,और आदि कवि कहे गए।महर्षि बाल्मीकि ही प्रभु राम को बक्सर लेकर आए जहां हजारों ऋषियों की हत्यारिन ताड़का का वध हुआ और राष्ट्र निर्माण की नींव पड़ी।महात्मा गांधी जब 1915 में अफ्रीका से भारत आए तब उनकी कोई विशेष पहचान नहीं थी।लेकिन स्वयं गांधी ने अपनी आत्म कथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में कई बार इस बात का उल्लेख किया है कि बिहार के राजकुमार शुक्ल के बार-बार प्रयास करने के वजह से वो चम्पारण गए और भारत में पहला सफल सत्याग्रह हुआ। चम्पारण सत्याग्रह ने गांधी को पहचान दिया और आगे चलकर राष्ट्र निर्माण के पथ प्रदर्शक बने। बिहार के ही शिवपूजन सहाय एक प्रसिद्ध कहानीकार उपन्यासकार, सम्पादक थेजिनके उपन्यास 'देहाती दुनिया' को कई आलोचक प्रथम आंचलिक उपन्यास मानते हैं।बिहार की थाती राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर और उनके योगदान को कौन नहीं जानता।उनका साहित्य ओज और औदात्य का साहित्य है तभी तो उन्हें 'युग चारण' और "काल के चारण' की संज्ञाओं से विभूषित किया गया। हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है। जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ? वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है। कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली,पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे।आंचलिक उपन्यासों से धूम मचाने वाले फणीश्वर नाथ रेणु को आजादी के बाद के प्रेमचंद की उपाधि दी गई है। राम वृक्ष बेनीपुरी, बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया। 'हिमालय', 'तरुण भारत', 'कर्मवीर', 'जनता', 'तूफ़ान', 'नई धारा' आदि पत्रिकाओं का संपादन किया और राष्ट्रप्रेम का अलख जगाते रहे। इनका जीवन तो क्रांतिकारिक गतिविधियों के कारण कारावास में अधिक व्यतित हुआ। इनका उपन्यास ‘पतितों के देश में’ कारावास काल को आधार बना के ही लिखा गया है।प्रगतिवादी कवि नागार्जुन के स्वर में तो व्यंग की धार कुछ अधिक ही है। ख़ुद ही सब कुछ सुनते जाओ, ख़ुद ही सब कुछ कहते जाओ।ठंड लगे तो गुदमा ओढ़ो, भूख लगे तो मक्खन खाओ। राजनीति का लफड़ा छोड़ो, बस, बाबा पर ध्यान जमाओ। आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री,राजा राधिकारमण सिंह,आलोचक नलिन विलोचन शर्मा जैसे असंख्य बिहार के साहित्यकार हैं जिनकी राष्ट्र निर्माण में अप्रतिम भूमिका है।सत्र की मुख्य अतिथि पूर्व विधायक पूर्व प्राचार्य एवं विदुषी रचनाकार प्रोफेसर उषा सिन्हा, नामचीन शायर नसीम अख्तर और अध्यक्ष कमल किशोर वर्मा ने डॉ विद्यासागर उपाध्याय को स्मृति चिन्ह,अंगवस्त्र,स्मारिका और दिनकर वाग्विभूति सम्मान पत्र से सम्मानित किया।कार्यक्रम में भारत और नेपाल के अनेक ख्यातिलब्ध साहित्यकार उपस्थित रहे। डॉ विद्यासागर उपाध्याय को उनकी उपलब्धियों हेतु डॉ सावित्री मिश्रा, डॉ शिवराज पाल सिंह, डॉ विमला व्यास, डॉ अरविन्द कुमार उपाध्याय, डॉ पुलकित कुमार मंडल, डॉ सरस्वती प्रसाद पाण्डेय, डॉ जनार्दन राय, फतेह चंद बेचैन,नन्द जी नन्दा, जितेन्द्र स्वाध्यायी,मुकेश चंचल,मजहर मनमौजी, शैलेन्द्र मिश्र, नवचंद्र तिवारी आदि ने बधाई दिया है।
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Feb 22 2025, 18:32