झारखंड विंधानसभा चुनाव 2024: कल्पना सोरेन की भाजपा को खुली चुनौती,अगर भाजपा को हिम्मत है तो सरना धार्मिक कोड का समर्थन करे.
झारखंड डेस्क
रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है और राजनीतिक पार्टियां चुनावी अखाड़े में जमकर पसीना बहा रही हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से एक-दूसरे पर जमकर प्रहार किए जा रहे हैं.
इस बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने बीजेपी को चुनौती दी है कि अगर उसमें हिम्मत है तो वह सरना धार्मिक कोड का समर्थन करे.
यही नहीं, उन्होंने बीजेपी को भर्ती नीति, आदिवासी अधिकारों और ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का समर्थन करने को लेकर भी चुनौती दी है.
कल्पना सोरेन ने धनबाद जिले के टुंडी में रविवार को एक चुनावी रैली को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी झूठे वादे करती है, जिसे झारखंड के लोग समझ गए हैं. इसके लिए भगवा पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. जेएमएम विधायक का कहना है कि सीएम हेमंत सोरेन आदिवासियों, ओबीसी और महिलाओं के अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं.
दरअसल, झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री रहते हुए चंपई सोरेन सरना धर्म को लेकर आवाज उठा चुके हैं. यह राज्य की आदिवासी आबादी के बीच लंबे समय से लंबित और भावनात्मक मांग है. चंपई सोरेन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. प्रकृति की पूजा पर केंद्रित सरना आदिवासी धर्म मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम और पश्चिम बंगाल में आदिवासी समुदायों की ओर से मनाया जाता है.
अभी इस धर्म को लेकर कोई अलग कोड नहीं था. केवल हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के पास अपना खुद का कोड है. 2011 की जनगणना में लगभग 50 लाख लोगों ने अपना धर्म सरना के रूप में दर्ज किया था.
सरना धर्म क्या है?
झारखंड में आदिवासी खुद को एक अलग धार्मिक समूह से संबंधित मानते हैं और प्रकृति की पूजा करते हैं. सरना धर्म का पवित्र ग्रंथ जल, जंगल, जमीन है और इसके मानने वाले वन क्षेत्रों की रक्षा करने में विश्वास करते हैं. साथ ही पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं. सरना धर्म के लोग मूर्ति पूजा नहीं करते हैं, न ही वे वर्ण व्यवस्था, स्वर्ग-नरक आदि की अवधारणा का पालन करते हैं.
आदिवासियों की क्या रही है मांग?
आदिवासी कहते आए हैं कि वे अपने लिए एक अलग सरना धार्मिक कोड की लगातार मांग कर रहे हैं. इसके लिए वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य को पत्र भी लिख चुके हैं. झारखंड के मूल निवासी प्रकृति की पूजा करने वाले हैं और हिंदू, मुस्लिम या ईसाई नहीं हैं. कई सर्वे और रिपोर्ट में सामने आया था कि पूरे देश में 50 लाख से अधिक आदिवासी लोगों ने 2011 की जनगणना में अपना धर्म सरना बताया था, जबकि ये कोई कोड नहीं था.
Oct 22 2024, 06:49