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सामाजिक समरसता का भारत पूरे विश्व की आवश्यकता : प्रो. विश्वकर्मा

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने कहा कि भारत सिर्फ एक देश नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने के लिए एक अपरिहार्य आवश्यकता भी है, इसलिए इसका समर्थ और सशक्त होना अति आवश्यक है। भारत के समर्थ और सशक्त होने के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि जहां सामाजिक समरसता अपने उच्च स्तर पर दिखे। सामाजिक समरसता का भारत पूरे विश्व की आवश्यकता है। सामाजिक समरसता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने ऋषियों और संतों की उस परंपरा से प्रेरित होना होगा जिन्होंने हमें समरस और समर्थ समाज की विरासत दी थी। यह सबके लिए गौरवपूर्ण अनुभूति है कि समरस समाज के लिए नाथपंथ, इसके आभिर्भावक शिवावतार महायोगी गोरखनाथ और इस परंपरा के संवहन से अहर्निश एवं अद्यतन जुड़ी गोरक्षपीठ की मार्गदर्शक भूमिका इस लक्ष्य की ओर उन्मुख है।

प्रो. विश्वकर्मा मंगलवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के तीसरे दिन 'सामाजिक समरसता : महायोगी गोरखनाथ और नाथपंथ के विशेष संदर्भ सन्दर्भ में’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। सभ्यता के प्रादुर्भाव काल से ही भारत पूरी दुनिया में अन्य देशों से बिल्कुल भिन्न रहा है। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि भारतवर्ष पूरे विश्व में श्रेष्ठतम है। इसका कारण यह है कि एकमात्र ऐसा देश है जिसके समाज का निर्माण ऋषियों, मुनियों एवं संतों की चिंतन परंपरा से हुआ है। संतों की चिंतन परंपरा ने ही मनुष्य को एक समाज के रूप में सबसे विचारवान प्राणी बनाया। मनुष्यता को केंद्र में रखकर हमारे ऋषियों और संतों ने समाज को जो विरासत दी, उसकी सबसे अमूल्य निधि रही समरसता। संतो द्वारा बनाए गए हमारे समाज की ही विशेषता थी कि हमें वसुधैव कुटुंबकम का दर्शन विरासत में प्राप्त हुआ।

प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि जब हमारी विरासत सामाजिक समरसता को लेकर इतनी समृद्धि थी तो यह विचारणीय प्रश्न है कि आज हमें इसे लेकर अलग से चिंतन क्यों करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की सामाजिकता और सामाजिक चिंतन प्रणाली का एक दौर ऐसा भी था जब विदेशी अध्येता भारत का दर्शन करने और यहां के विचार-दर्शन का अध्ययन करने आते थे। उन्होंने कहा कि वाह्य आक्रमण, धर्म परिवर्तन जैसे कारण ही सामाजिक समरसता कम होने के लिए जिम्मेदार नहीं है बल्कि सबसे बड़ा कारण हमारा संतों की परंपरा से विलग होना रहा है।

विकृति के बाजार में संस्कृति की शंखनाद हैं संत

प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने हरेक कालखंड में संतों की भूमिका महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संत विकृति के बाजार में संस्कृति की शंखनाद हैं। संत की भूमिका उस धोबी की है जो सत्संग के धोबीघाट पर मनुष्यों की कलुषता के दाग को धो डालता है। इस महत्वपूर्ण भूमिका के परिपेक्ष में देखें तो समाज में सबसे बड़ा योगदान हमें नाथपंथ की तरफ से देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि नाथपंथ के संतों ने सिर्फ सामाजिक आंदोलन का ही नेतृत्व नहीं किया है बल्कि स्वाधीनता के आंदोलन में भी समाज को सही दिशा दिखाई है। देश जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब शिवावतार योगी गोरखनाथ के अनुयायी नाथपंथी योगी सारंगी लेकर समाज को जगाने के लिए निकल पड़े थे।

अस्पृश्यता और जातिवाद के खिलाफ महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का योगदान अतुलनीय

प्रो. विश्वकर्मा ने कहा कि गोरख पीठ के पेठाधीश्वरों ने सामाजिक समरसता को मजबूत करने मेंअथक प्रयास किए हैं। इस पीठ के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने जातिवाद और अस्पृश्यता से मुक्ति के लिए जो योगदान दिए हैं, वह अतुलनीय हैं। महंतद्वय के नेतृत्व में आगे बढ़ा राम मंदिर का आंदोलन वास्तव में सामाजिक समरसता को भी प्रतिबिंबित करता है। जिस प्रकार भगवान राम ने अपने जीवन में निषादराज, शबरी आदि के माध्यम से सामाजिक समरसता का आदर्श प्रस्तुत किया था उसी तरह राम मंदिर को लेकर चलाए गए अभियान में भी महंत अवेद्यनाथ जी ने दलितों, वंचितों को आगे लाकर सामाजिक समरसता को यथार्थ रूप में स्थापित किया। उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति सबके साथ रहने की अर्थात कौटुंबिक संस्कृति है। इस संस्कृति को आगे बढ़ाने में नाथपंथ की विशेष भूमिका सदैव परिलक्षित हुई है। वर्तमान में नाथपंथ का नेतृत्व करने वाली गोरक्षपीठ ने सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षा, चिकित्सा और सेवा के अनेक प्रकल्पों को भी आगे बढ़ाया है।

सामाजिक समरसता नाथपंथ का मूल : डॉ. पद्मजा सिंह

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग की सहायक आचार्य डॉ. पद्मजा सिंह ने कहा कि सामाजिक समरसता नाथपंथ का मूल है। समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए इसके कार्यों की विस्तृत श्रृंखला है। उन्होंने कहा कि भारत में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद महायोगी गोरखनाथ जी ने उस कालखंड में किया जब सामाजिक विखंडन तेजी से बढ़ रहा था। महायोगी गोरखनाथ जी ऐतिहासिक युग में भारतीय इतिहास के ऐसे पहले तपस्वी हैं जिन्होंने विशुद्ध योगी होते हुए भी सामाजिक चेतना का नेतृत्व किया। वास्तव में उन्होंने नाथपंथ का पुनर्गठन ही सामाजिक पुनर्जागरण और समरसता को बढ़ाने के लिए किया। उन्होंने सामाजिक समरसता की वह लौ प्रज्ज्वलित की जिसकी लपटें जाति-पांति, छुआछूत, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, पुरुष-स्त्री, विषमताओं और क्षेत्रीयतावाद जैसी प्रवृत्तियों को निरंतर जलाती रहीं हैं।

नाथपंथ के विचार-दर्शन ने एक ऐसी योगी परंपरा को जन्म दिया जिसने भारतीय संस्कृति की एकाकार सामाजिक चिंतन की प्रतिष्ठा को ही अपना उद्देश्य बना लिया और इसे नाथपंथ की अध्यक्षीय पीठ गोरक्षपीठ के प्रकल्पों में देखा जा सकता है। डॉ. पद्मजा सिंह ने कहा कि गोरक्षपीठ की यह विशेषता है कि इसके कपाट सभी के लिए खुले रहते हैं। इस पीठ के सभी महंत बिना भेदभाव समाज में सभी के यहां, सभी के साथ पानी पीते हैं, भोजन करते हैं और अपने भंडारे में सभी के साथ भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। उन्होंने गोरक्षपीठ के मूर्धन्य पीठाधीश्वरद्वय ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालने के साथ ही इन दोनों महान विभूतियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अवदान तथा सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए किए गए अविस्मरणीय कार्यों को विस्तार से रेखांकित किया।

किसी के साथ भेदभाव नहीं करता नाथपंथ : सतुआ बाबा

सम्मेलन को संबोधित करते हुए काशी से आए महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा ने कहा कि नाथपंथ सबका और सबके लिए है। यह पंथ किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है। इसकी विशेषता को कोई भी गोरक्षपीठ आकर देख सकता है। गोरक्षपीठ न सदैव समाज को जोड़ने और समरसता बढ़ाने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने का काम किया है। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जबलपुर से आए महंत नरिसंह दास ने कहा कि सामाजिक समरसता की जो अलख शिवावतार गुरु गोरखनाथ ने जगाई थी, वह नाथपंथ के संतों के लिए आज भी पथप्रदर्शक है। उन्होंने कहा विगत सौ सालों में सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए गोरक्षपीठ और इसके पीठाधीश्वरों, विशेषकर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने जो कार्य किए हैं, वे अनिर्वचनीय हैं। अपने गुरुजनों का अनुसरण कर वर्तमान पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी भी सामाजिक समरसता के आयाम को नई ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य प्रमथनाथ मिश्र, संचालन माधवेंद्र राज, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी ने किया। इस अवसर पर दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महंत सुरेशदास, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी विलासनाथ, कटक उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ,सवाई आगरा से आए ब्रह्मचारी दासलाल, अयोध्या से आए महंत राममिलनदास, देवीपाटन शक्तिपीठ, तुलसीपुर के महंत मिथलेशनाथ, कालीबाड़ी के महंत रविन्द्रदास आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

ईद ए मिलाद पर गांवों कस्बों में निकाला गया भव्य जुलूस

खजनी गोरखपुर। कस्बे सहित आसपास के गांवों ?कस्बों तथा कस्बा संग्रामपुर उनवल नगर पंचायत में ईद-ए-मिलादुन्नबी के मौके पर जुलूस-ए- मुहम्मदी निकाला गया। जिसमें शामिल मुस्लिम समुदाय के लोगों ने डीजे की धुनों पर पुरजोश अंदाज में मदरसों से निकल कर गलियों मोहल्लों से गुजरते हुए, "सरकार की आमद मरहब्बा" "हुजूर की आमद मरहब्बा" "हिंदुस्तान जिंदाबाद" "इस्लाम जिंदाबाद" के नारे लगाए जिससे पूरा इलाका गूंज उठा। जलसे की शुरूआत तिलावत-ए-कुरान-ए-पाक से की गई।

बताया गया कि पैगंबर हजरत मुहम्मद के यौमे पैदाइश के मौके पर इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह त्योहार हर साल रबी अल-अव्वल के तीसरे महीने के बारहवें दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान सभी मस्जिदों और मदरसों को खूबसूरत तरीके से सजाया गया।

हाजी शहाबुद्दीन, मौलाना जहीरूद्दीन, कारी रियाजुद्दीन, ने बताया कि सरकार आज ही के दिन पैदा हुए थे, उन्होंने दुनियां को नेकी, ईमानदारी, और अ़म्न का पैगाम दिया है।

जुलूस सबेरे नमाज के बाद आयतें और नातिया कलाम गाते हुए कस्बे से डोहरियां,

भिटहाँ,तेतरियां, विश्वनाथपुर, छताईं, कटघर, बेलडांड़, मझगांवां, सतुआभार, साखडांड़, जाखां, बसडीला, केवटली, बंगला पांडेय, पिपरां बनवारी, रामपुर, सहिजनां, गहना, बघैला, महुरांव आदि गांवों में होकर मदरसे पर पहुंचा। जुलूस में

अत्ताउल्लाह खान, हबीउद्दीन खान, जमीर उल्लाह, गुड्डू अहमद, मुमताज, शमशाद

अब्दुल रहमान, अब्बास, डॉक्टर के.अली, यूसुफ, सुबराती, कमरूद्दीन, अरशद, अलीनाद खाँ, मुर्तजा,असगर आदि दर्जनों शामिल हुए।

अठारह शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति रहा भारत : प्रो. अमरेश दूबे

गोरखपुर, 16 सितंबर। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. अमरेश दूबे ने कहा कि भारत पहले विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति था और उसी स्थिति को पुनर्प्राप्त करना है। आर्थिक स्थिति में हम पहले पायदान पर थे और पुनः पहले स्थान पर ही आना है। सुखद स्थिति यह है कि आजादी के बाद दशकों तक गरीबी और भुखमरी की चपेट में रहने के बाद देश बीते दस सालों से उसी रोडमैप पर आगे बढ़ चला है जिससे वह पहली शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में प्रतिष्ठित था।

प्रख्यात अर्थवेत्ता प्रो. दूबे सोमवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के दूसरे दिन ‘विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर बढ़ता भारत’ विषयक सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने दो हजार वर्षों की विश्व की अर्थव्यवस्था को लेकर हुए एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि पहली शताब्दी में आठ-नौ देशों के पास विश्व की 70 प्रतिशत संपदा पर अधिकार था। इसमें भारत का हिस्सा अकेले 35 प्रतिशत था जबकि चीन की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी। तबसे लेकर अठारहवीं शताब्दी के अंत तक यही स्थिति बनी रही। अर्थात हम पहली आर्थिक शक्ति थे इसलिए आज बात तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पर करने की बजाय चर्चा इस पर होनी चाहिए कि हम अपनी पहले नम्बर की स्थिति को कैसे दोबारा प्राप्त करें।

प्रो. दूबे ने कहा कि औद्योगिक क्रांति के दौर में अंग्रेजी शासन में उत्पादन प्रक्रिया को तीव्रतम करने के लिए भारत की संपदा को बाहर भेजना शुरू किया। दूसरा आजादी मिलने के बाद भी भारत में सोवियत यूनियन की तर्ज पर वामपंथी आर्थिक नीति का अनुसरण होने लगा। कालांतर में इसका प्रभाव यह हुआ आजादी मिलने के बाद भी 1970 में विश्व स्तर पर संपदा के मामले में भारत की हिस्सेदारी महज 2.5 प्रतिशत रह गई। उन्होंने कहा कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसकी गिनती दुनिया के सबसे गरीब देशों में थी जबकि एक अंग्रेज विद्वान ने अपने अध्ययन में कहा था कि अठारहवीं शताब्दी में अविभाजित भारत के मुर्शिदाबाद का एक सामान्य व्यक्ति रहन-सहन और खाने-पीने के मामले में लंदन के सामान्य व्यक्ति से अधिक संपन्न था।

प्रो. दूबे ने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो विश्वेश्वरैया जी के नेतृत्व में आर्थिक पुनर्निर्माण, गरीबी और भुखमरी से मुक्ति के लिए नेशनल डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया गया लेकिन 1950 में गणराज्य बनने के बाद देश में इस कमेटी की अनुशंसाओं को दरकिनार कर सोवियत यूनियन वाली प्लानिंग को अपनाया जाना शुरू कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि गरीबी पर कुछ असर नहीं पड़ा। गरीबी हटाओ का नारा तो दिया गया लेकिन देश में आर्थिक संपदा बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया गया। जबकि यह तथ्यपूर्ण सत्य है कि बिना संपदा बढ़ाए गरीबी नहीं हटाई जा सकती।

प्रो. दूबे ने आजादी के बाद से अब तक की आर्थिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि 2013 तक अर्थव्यवस्था के मामले में उतार चढ़ाव के बीच पॉलिसी पैरालिसिस वाली स्थिति रही। पर, 2014 से पिछले दस सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आर्थिक संपदा बढ़ाने और गरीबी हटाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समावेशी कदम उठाए हैं। जिस देश में 1974 में गरीबी 55 से 65 प्रतिशत तक रही हो, वहां के लोग अब गर्व कर सकते हैं कि भारत मे 2023 में गरीबी एक प्रतिशत से भी नीचे रह गई है। उन्होंने कहा कि देश की आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। बीते सात सालों से यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ ही विकास के जो समावेशी प्रयास किए हैं, वे अभूतपूर्व हैं। इससे यह तय हो गया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पुराना गौरव दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में उत्तर प्रदेश ही निभाने जा रहा है।

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक दिशा व दशा का निर्धारण करती है। पिछले कुछ वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था सुधरी है, जिसके कारण आज दुनिया में भारत की सुनी जा रही है। पहले वह देश शक्तिशाली होता था जिसके पास सेनाएं व युद्ध उपकरण अधिक होते थे, किंतु आज वह देश शक्तिशाली है जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है। इसी कारण से पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत विश्व में मजबूती से खड़ा है और आगे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से अगले तीन वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर है। तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर भारत न केवल विश्व में मजबूती से प्रस्तुत होगा बल्कि प्रत्येक भारतीय की आय दर में भी वृद्धि होगी। इस दिशा में विचार करने पर हमें अपने बीच में एक चक्रवर्ती उदाहरण के रूप में हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलते हैं, जो अपने कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को चरमोत्कर्ष पर ले जा रहे है।

सम्मेलन की अध्यक्षता गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने की।।इस अवसर पर सम्मेलन को गुरुधाम वाराणसी से पधारे श्रीमद् जगद्गुरु अनंतानन्द द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. रामकमल दास वेदांती, नासिक महाराष्ट्र से पधारे योगी विलासनाथ, कटक उड़ीसा से पधारे महंत शिवनाथ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सम्मेलन में आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. रामजन्म सिंह, वैदिक मंगलाचरण डॉ रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय व गौरव तिवारी तथा संचालन माधवेंद्र राज ने किया। इस अवसर पर सुग्रीव किला अयोध्या से स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य, सवाई आगरा से ब्रह्मचारी दासला ,रावत मंदिर अयोध्या धाम से महंत राम मिलन दास, सतुआ बाबा आश्रम काशी से महंत संतोष दास, देवीपाटन शक्तिपीठ तुलसीपुर से महंत मिथिलेश नाथ, महंत रवींद्र दास, काशी से योगी रामनाथ आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

इंजीनियर्स से पर याद किए गए भारत रत्न एमजी विश्वसरैया, विभिन्न कार्यक्रमों का हुआ आयोजन

गोरखपुर। भारत रत्न एम०जी० विश्वसरैया की जयंती "इंजीनियर्स दिवस" एसोसिएशन आॅफ प्रोफेशन ग्रेजुएट सिविल इंजीनियर्स के तत्वावधान में धूमझ्रधाम से मनाया गया।

एसोसिएशन आॅफ प्रोफेशन ग्रेजुएट सिविल इंजीनियर्स सिटी चैप्टर गोरखपुर के द्वारा शहर के एक प्रतिष्ठित होटल कोर्टयार्ड बाय मैरियट नौका बिहार गोरखपुर में धूमझ्रधाम से मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० मंगलेश श्रीवास्तव, मेयर गोरखपुर महानगर एवं उपाध्यक्ष गोरखपुर विकास प्राधिकरण गोरखपुर के आनंद वर्धन रहें।

कार्यक्रम का शुभारंभ सर्वप्रथम भारत रत्न एवं प्रख्यात इंजीनियर श्री एम० जी० विश्वसरैया के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से प्रारंभ हुआ। तत्पश्चात मुख्य अतिथियों का स्वागत माल्यार्पण, अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह एसोसिंशन के अध्यक्ष ई० आशुतोष चंद्रा, सचिव ई० पवनेश कुमार के द्वारा किया गया। एसोसिएशन के चेयरमैन ई० आशुतोष चंद्रा ने मुख्य अतिथियों का स्वागत भाषण के द्वारा किया। मुख्य अतिथि, अन्य तकनीकी संस्थाओं से पधारे सम्मानित इंजीनियर्स बंधुओ का और अन्य उपस्थित अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आप लोगों की उपस्थिति हम लोगों को गौरवान्वित करती है।

ई० आशुतोष चंद्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस कार्यक्रम में उपस्थित हमारे दोनो मुख्य अतिथि मेयर डॉ० मंगलेश श्रीवास्तव तथा उपाध्यक्ष आनंद वर्धन की उपस्थिति हमारे एसोसिएशन के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी है। ई० पवनेश कुमार ने असोसिएशन आॅफ प्रोफेशन ग्रेजुएट सिविल इंजीनियर्स के बारे चर्चा करते हुए कहा कि इसकी स्थापना 2005 में बहुत के संख्या के साथ प्रारंभ हुआ जो इस समय पूरे भारत वर्ष में 45 शहरों में इंजीनियरों का ग्रुप बनाकर राष्ट्र की सेवा में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहा है। ई० त्रिपाठी ने यह भी अवगत कराया कि वर्तमान समय में एसोसिएशन आॅफ प्रोफेशन ग्रेजुएट सिविल इंजीनियर्स सिटी चैप्टर गोरखपुर में करीबझ्रकरीब 70 इंजीनियर्स सरकारी विभाग, प्राइवेट सेक्टर जनमानस आदि के लिए अपनीझ्रअपनी सेवा प्रदान कर रहें है, जो महानगर एवं निकटवर्ती जनपदों में मिल का पत्थर साबित हो रहा है। हम सभी इंजीनियर्स बंधुओ का विराजमान अपने दोनो मुख्य अतिथियों से निवेदन है कि हम लोग महानगर के विकास में आप लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते आ रहें हैं। हम लोग चाहते हैं कि जो हमे कार्य करने में अभिलेख, विभागीय सूचना को समय से उपलब्ध कराने की कृपा करें जिससे महानगर अन्य जनपदों में इंजीनियरिंग कार्यों को पूर्ण रूप से संचालित करने में अपनी सहभागिता प्रदान करते रहें।

मुख्य अतिथि डॉ० मंगलेश श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में कहा कि एम०जी० विश्वसरैया ने एक प्रख्यात इंजीनियर रहते हुए देश के लिए बड़े से बड़े निर्माण कार्य को पूर्ण किया। उन्होंने कर्नाटक राज्य में बिंद्रावन गार्डन का उदाहरण देते हुए विश्वसरैया जी के कार्यों का सराहना किया। कार्यक्रम के दूसरे अतिथि उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण गोरखपुर के आनंद वर्धन ने कहा कि देश के निर्माण में इंजीनियरों का बहुत बड़ा योगदान है साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि इंजीनियरिंग की शिक्षा कठिन तो है लेकिन जीवन में मैनेजमेंट करते हुए अपने कार्यों को सुचारू रूप से पूर्ण किया जा सकता है।

अंत में दोनो अतिथियों ने एसोसिएशन के ई० आशुतोष चंद्रा, ई० ए० एन० त्रिपाठी, ई० पवनेश कुमार को धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि समाज सेवा में आप लोगों के कार्यों को भुलाया नही जा सकता है तथा आप लोगों का एसोसिएशन दिन प्रति दिन आगे बढ़ता रहे और समाज सेवा करता रहे। साथ ही साथ उपाध्यक्ष महोदय ने आप लोगों के लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे। नियमानुसार आपलोगो ले समस्त आपत्तियों का निवारण किया जाता रहेगा।

ई० अजय श्रीवास्तव ने एम०जी० विश्वसरैया जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए आप को प्रख्यात इंजीनियर बताते हुए कहा कि विश्वसरैया जी की इच्छा थी की मेरा जन्मदिवस इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाय, जिसका हम सभी इंजीनियर्स बंधुओ सहृदय से पालन करते हुए आ रहें हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं प्रायोजक अंकुर प्रतिष्ठान के डायरेक्टर अंकुर जालान एवं भुवनेश्वर जी रहें।

कार्यक्रम में चेयरमैन आई०ई० आई०, ई० गोविंद पाण्डेय, ई० पवन कुमार मिश्रा ने भी कार्यक्रम में अपना उद्बोधन दिया। अंत में एसोसिएशन के सचिव ई० पवनेश कुमार ने सभी अतिथियों का आभार ज्ञापित किया।

कार्यक्रम में ई० सतीश सिंह, ई० आर०सी० पाण्डेय, ई० ए०एन० त्रिपाठी, ई० अजय श्रीवास्तव, ई० के०के० श्रीवास्तव, ई०राजेश सिंह, ई० सुनील सिंह, ई० शाह आलम ई० किशोरी लाल, ई० संदीप वर्मा, ई०रजत श्रीवास्तव, ई० अमित कुमार, ई० करुणेश श्रीवास्तव, ई० सी०पी० पाण्डेय, ई० सौरभ श्रीवास्तव, ई० सूरज मणि त्रिपाठी, ई०इरफान तथा उनके परिवार व बच्चे अन्य विभागों के इंजीनियर्स, मीडिया कर्मी आदि लोग उपस्थित रहें।

दीनदयाल अध्यक्ष, सृष्टि उपाध्यक्ष और समीक्षा महामंत्री निर्वाचित



*गोरखपुर, 15 सितंबर। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर में शनिवार शाम छह बजे से रात दस बजे तक ऑनलाइन हुए छात्र संसद के चुनाव नतीजे आ गए हैं। दीनदयाल गुप्ता को अध्यक्ष, सृष्टि यादव को उपाध्यक्ष, समीक्षा कुमारी को महामंत्री और अनामिका पांडेय को पुस्तकालय मंत्री चुना गया है। 



महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय ऐसा पहला विश्वविद्यालय बन गया है जहां स्वनिर्मित सॉफ्टवेयर से छात्र संसद का ऑनलाइन चुनाव कराया गया है। voting.mgug.ac.in नामक यह सॉफ्टवेयर देश में शिक्षण संस्थानों के छात्र संसद चुनाव के लिए बनाया गया पहला सॉफ्टवेयर है। गोरखनाथ विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन पढ़ाई के साथ छात्र संसद चुनाव कराकर एक नजीर पेश की है। शनिवार शाम छह बजे से रात दस बजे तक हुए ऑनलाइन मतदान के बाद परिणाम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जारी कर दिया गया। 



मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. विमल कुमार दूबे ने बताया कि छात्र संसद के चुनाव में कुल 743 छात्र-छात्राओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। अध्यक्ष पद पर दीनदयाल गुप्ता ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अनिकेत मल्ल को 104 मतों के अंतर से पराजित किया। उपाध्यक्ष पद पर सृष्टि यादव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आर्यन यादव से 87 मत अधिक प्राप्त किया और निर्वाचित हुईं। महामंत्री पद पर समीक्षा कुमारी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सुंदरी को 32 मतों से पराजित किया। पुस्तकालय मंत्री पद पर अनामिका पांडेय विजयी रहीं। अदिति वर्मा को 180 मतों से पराजित किया। चुनाव प्रक्रिया विश्वविद्यालय के आईटी विभाग के सहयोग से पूरी हुई। छात्र संसद के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों को विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ. अतुल वाजपेयी और कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव ने बधाई दी है।

सेना में लेफ्टिनेंट बने गौरांग क्षेत्र में हर्ष, शुभचिंतकों ने दी बधाई

खजनी गोरखपुर। इलाके के बसडीला गांव के मूल निवासी शिक्षक पिता गिरजेश और मां सुचित्रा कुमार के पुत्र गौरांग ने भारतीय सेना में चयन के लिए होने वाली अखिल भारतीय प्रतियोगिता में 11वां स्थान हासिल कर लैफ्टिनेट पद पर चयनित हुए। गौरांग की इस उपलब्धि पर गांव और आसपास के लोगों ने हर्ष जताया है।

स्थानीय मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान गौरांग ने बताया कि मैं भारतीय सेना के कोर आॅफ ईएमई में लेफ्टिनेंट पद पर 27 सितंबर को ज्वाइन करूंगा। उन्होंने कहा कि मैंने जो मुकाम हासिल किया है वह मेरे नाना- नानी तथा माता-पिता की देन है। दादाजी गणपति राम शर्मा भारतीय सेना के सूबेदार पद से सेवानिवृत हुए, दादा दिनेश राम शर्मा डाक घर में इंस्पेक्टर पद पर तैनात थे बड़े पापा विनोद शर्मा भूमि विकास बैंक में चेयरमैन हैं, सभी की प्रेरणा, आशिर्वाद से ही मुझे यह मुकाम हासिल हुआ है।

शांति सुरक्षा व्यवस्था के लिए क्षेत्राधिकारी के साथ पैदल गस्त

खजनी गोरखपुर। त्योहारों में शांति सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता रखने के लिए एसएसपी गोरखपुर डॉक्टर गौरव ग्रोवर के निदेर्शानुसार क्षेत्राधिकारी दरवेश कुमार के मार्गदर्शन तथा थानाध्यक्ष सदानंद सिन्हा के नेतृत्व में आज शाम खजनी थाने की पुलिस टीम ने कस्बे के बांसगांव माल्हनपार मार्ग, सिकरीगंज मार्ग, गोरखपुर मार्ग तथा उनवल नगर पंचायत में पैदल गस्त करते हुए स्थानीय व्यापारियों एवं आम लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिलाते हुए आगामी ईद-ए-मिलादुन्नबी और गणेश उत्सव पूजा में शांति व्यवस्था बनाए रखने का विश्वास दिलाया।

क्षेत्राधिकारी ने कहा कि अराजक तत्वों और अपराधियों के साथ सख्ती से निबटा जाएगा। सड़क सुरक्षा और यातायात व्यवस्था को लेकर बताया कि इलाके में बिना ड्राइविंग लाइसेंस के नाबालिग लड़कों को दो पहिया वाहन पर एक से अधिक सवारियों के साथ अथवा बिना हेलमेट के वाहन चलाते हुए पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी। उन्होंने स्थानीय लोगों से शांति व्यवस्था में सहयोग की अपील करते हुए जागरूक रहने और किसी भी प्रकार की संदिग्ध घटना होने पर पुलिस को सूचित करने की अपील की।

भारत ने दिया है ‘जियो और जीने दो’ का सच्चा लोकतंत्र : सीएम योगी

गोरखपुर, 15 सितंबर। मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुनिया में जब सभ्यता, संस्कृति और मानवीय मूल्यों के प्रति आग्रह नहीं था तब भारत मे सभ्यता, संस्कृति और मानवीय जीवन मूल्य चरम पर थे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति प्राचीन काल से लेकर अर्वाचीन काल तक लोकतांत्रिक मूल्यों से परिपूर्ण रही है। इसका उद्देश्य किसी का हरण करना या किसी पर जबरन शासन करना नहीं था बल्कि इसकी भावना ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की रही है। इसका नया स्वरूप आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ के संकल्प में दिखता है। हमारी ऋषि परंपरा जियो और जीने दो की रही है क्योंकि यही सच्चा लोकतंत्र है और इस मूल्यपरक लोकतंत्र को किसी और ने नहीं बल्कि भारत ने दिया है।

सीएम योगी रविवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के पहले दिन ‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का अभिनंदन करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लोकतंत्र को लेकर वैदिक कालखंड से लेकर रामायणकालीन और महाभारतकालीन अनेक उद्धरण देखने को मिलते हैं। भारत के लोकतंत्र में प्राचीन समय से लेकर आज तक जनता की आवाज और जनता के हित को ही सर्वोपरि रखा गया है। भारतीय सभ्यता में हमेशा ही यह कह गया है कि प्रजा का सुख ही राजा का दायित्व है। रामायण काल में भगवान श्रीराम ने भी अक्षरशः जनता की आवाज को महत्व दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने भी खुद को कभी राजा नहीं समझा। उनके समय में वरिष्ठ व्यक्ति के नेतृत्व में गणपरिषद शासन का कार्य देखती थी। द्वारिका में जब अंतर्द्वंद्व प्रारंभ हुआ तब इस परिषद के सदस्य आपस में लड़कर मर-मिट गए। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने परिषद के सदस्यों की दुर्गति पर कहा था कि राज्य के नियम प्रत्येक नागरिक पर समान रूप से लागू होते हैं।

लोकतंत्र में जनता का हित ही सर्वोच्च

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कुछ लोगों पर गुलामी की मानसिकता आज भी हावी है। जबकि भारत में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन समय से ही गहरी रही हैं। उन्होंने बताया कि भारत तब गुलाम हुआ जब लोकतंत्र की विरासत को संजोने में चूक हुई। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजा को सत्ताच्युत करने का अधिकार जनता के प्रतिनिधित्व वाले परिषद के पास होता था। लोकतंत्र में यह स्पष्ट है कि जनता का हित ही सर्वोच्च है। प्राचीन काल में देखें तो वैशाली गणराज्य इसका एक उदाहरण है जहां पूरी व्यवस्था जनता के हितों के लिए समर्पित थी।

संविधान को देंगे सर्वोच्च सम्मान तो और मजबूत होगा लोकतंत्र

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज सभी भारतीयों को अपने लोकतंत्र पर और लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलकर तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था पर गौरव की अनुभूति करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र तभी तक सुरक्षित है जब तक हमारा संविधान सुरक्षित है। संविधान को पवित्र भावना से, जाति, मत, मजहब, क्षेत्र से ऊपर उठकर इसे सुरक्षित-संरक्षित रखने का दायित्व सभी लोगों को उठाना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम संविधान को सर्वोच्च सम्मान देते हुए आगे बढ़ेंगे तो हमारा लोकतंत्र और मजबूत-पुष्ट होगा।

भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही चल रहा लोकतंत्र : हरिवंश नारायण

‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि लोकतंत्र के संस्कार पांच हजार वर्ष पुराने भारतीय मूल्यों से गढ़े गए हैं। सही मायने में भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही लोकतंत्र चल रहा है।

श्री हरिवंश ने कहा कि खुलकर अपनी बात रखना ही लोकतंत्र का यथार्थ है और यह मूल्य भारत की हजारों वर्षों की परंपरा में निहित रहे। भारतीय लोकतंत्र में जनता को हर प्रकार की आजादी के साथ खामी को भी ठीक करने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मूल्यों से प्रभावित लोगों ने ही भारतीय लोकतंत्र को आयातित समझने की भूल की है। इस भूल का कारण यह रहा कि भारतीय लोकतंत्र को यूनान को नजर से देखने की आदत डाली गई। उन्होंने कहा कि भारत को आजादी मिलने के बाद कई विदेशी विद्वानों ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र टिकेगा नहीं और आज उसका जवाब यह है कि अगले साल हम संविधान लागू होने का अमृत वर्ष मनाने जा रहे हैं। श्री हरिवंश ने कहा कि आज भारत अपने को लोकतंत्र की जननी के वास्तविक नजरिये से दुनिया के सामने पेश कर रहा है। पहले इस विषय पर चर्चा नहीं होती थी। आज भारत ने जी-20 सम्मेलन का माध्यम से इस पर बात की। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भारतीय लोकतंत्र को लेकर महत्वपूर्ण विमर्श को ऐसे आयोजनों से आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत में रही है त्याग और नैतिकता की परंपरा

राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि भारत में वेद, पुराण, उपनिषद की और ऋषियों की परंपरा के मूल्य थे। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म मार्गदर्शक की भूमिका में था इसलिए हमारे यहां आतताई शासकों का वर्णन नहीं मिलता है। राजा, देवता, जनता सभी धर्म से बंधे थे। भारत मे त्याग और नैतिकता की परंपरा रही है। इसीलिए राजा सर्वशक्तिमान होकर भी स्वेच्छाचारी नहीं था। चक्रवर्ती सम्राट को भी धर्मदंड से चेतावनी दी जाती थी।

अब्राहम लिंकन के 2700 पूर्व प्रजातंत्र का उल्लेख

श्री हरिवंश ने कहा कि अब्राहम लिंकन द्वारा लोकतंत्र की परिभाषा देने से 2700 वर्ष पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है। अशोक के धौली शिलालेख में लिखा है, सारी प्रजा मेरी संतान है। यह सब लोकतंत्र के मूल्य ही तो हैं। अथर्ववेद में भी लोकतांत्रिक प्रणाली का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकार थॉमसन ने कहा था कि लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस के नियम भारत की पुरानी सभाओं से लिए गए लगते हैं। जार्ज बर्नाड शॉ ने भी आश्चर्य जताते हुए कहा था कि ग्रीक और रोम की सभ्यता मिट गई लेकिन भारत की सभ्यता, संस्कृति कैसे बची रही, यह रहस्यमय है। वास्तव में इसका सीक्रेट यह है कि भारत की सभ्यता और संस्कृति वेदों, पुराणों की है, ऋषियों की है। भारत की सभ्यता, संस्कृति पुराने मूल्यों से बची रही।

प्राचीनकाल के गांवों में थी आत्मशासन की व्यवस्था

हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि भारत को लोकतंत्र की जननी इसलिए कहा जाता है कि यहां प्राचीनकाल से गांव स्तर तक लोकतंत्र सम्मत आत्मशासन की व्यवस्था थी। जनजातीय क्षेत्रों में भी लोकतांत्रिक मूल्यों वाली स्थानीय परिषदें थीं। भारत के भक्ति आंदोलन ने भी लोकतंत्र की अलख जगाकर इसे सम्पुष्ट किया।

अब जाकर बना 100 साल का रोडमैप

राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि भारत में आजादी के बाद अब जाकर देश के अगले सौ साल का रोडमैप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बना है। उन्होंने देश को 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए एक लाख युवाओं को राजनीति में आने का आह्वान किया है। जबकि चीन ने 1947-48 में ही अपने लिए सौ साल की कार्ययोजना बना ली थी। सत्तर के दशक में चूक हुई और चीन हमसे पांच गुना आगे बढ़ गया।

रामराज की संकल्पना को साकार कर रहे सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रामराज की संकल्पना साकार करने वाला बताते हुए श्री हरिवंश ने कहा कि रामराज की स्पिरिट योगी जी में दिखती है। समान रूप से सबको न्याय, सुरक्षा के पुरातन भारतीय मूल्य योगी जी की कार्यपद्धति में नजर आते हैं। राज्यसभा के उपसभापति ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की पुण्य स्मृति को नमन करते हुए कहा कि अतीत के महापुरुषों को याद करना भविष्य के लिए प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण में इन दोनों गोरक्षपीठाधीश्वरों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का जीवन भारतीय मूल्यों के प्रति समर्पित रहा।

भारत में लोकतांत्रिक शासन की परंपरा अति प्राचीन : प्रो. सदानंद

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानन्द गुप्त ने कहा कि भारत में लोकतांत्रिक शासन की परंपरा अति प्राचीन है। भारत में लोकतंत्र का सिद्धांत वेदों से निकला है। लोकतंत्र का वर्णन ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी मिलता है। ऋग्वेद में 40 बार और अथर्ववेद में 9 बार गणतंत्र शब्द का उल्लेख है। विश्व मे सबसे पहले कहीं लोकतंत्र के भाव का प्रादुर्भाव हुआ तो वह भारत ही है।

सम्मेलन को सवाई, आगरा के ब्रह्मचारी दास लाल और सुग्रीव क़िलाधीश अयोध्या के स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, अयोध्या से आए महंत सुरेश दास, कटक से आए महंत शिवनाथ, काशी से आए महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा, मिथिलेशनाथ, राममिलन दास, कर्नाटक से आए भयंकरनाथ, अहमदाबाद से आए कमलनाथ, रविंद्रदास आदि भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

टीबी का लक्षण दिखे तो जांच कराएं, जनपद को टीबी मुक्त बनाएं-सीडी

गोरखपुर( दो सप्ताह से अधिक की खांसी हो, बुखार आए या बलगम में खून आने समेत टीबी का कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जांच कराएं। टीबी का सम्पूर्ण इलाज सरकारी तंत्र में मौजूद है। सभी लोग सहयोग करके ही जनपद को टीबी मुक्त बना सकते हैं। मुख्य विकास अधिकारी संजय कुमार मीना ने जनपदवासियों से यह अपील की है । उन्होंने नौ सितम्बर से शुरू होकर बीस सितम्बर तक चलने वाले सक्रिय क्षय रोग खोजी (एसीएफ) अभियान को सफल बनाने की अपील की। उधर, इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस) के माध्यम से जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव भी अभियान की सफलता में जनसहयोग की अपील कर रहे हैं।

डॉ यादव ने बताया कि जिले में तीन सदस्यों की स्वास्थ्य टीम जनपद की बीस फीसदी आबादी के बीच जाकर टीबी के संभावित रोगियों को ढूंढ रही है। इस टीम में आशा कार्यकर्ता के साथ दो अन्य सदस्य हैं । यह टीम संभावित मरीजों का मौके पर बलगम इकट्ठा कर रही है और बलगम के खाली पेट वाले दूसरे सैम्पल के लिए संभावित मरीजों को डिब्बा भी देती है। बलगम के दो सैम्पल की जांच करके टीबी मरीजों की खोज की जा रही है। जिन मरीजों में बलगम से टीबी की पुष्टि नहीं होती है उनकी एक्स रे और सीबीनॉट जांच करवा कर बीमारी का पता लगाया जाता है। प्रत्येक पुष्ट टीबी मरीज की भी सीबीनॉट जांच कराई जाती है ताकि पता लगाया जा सके कि वह ड्रग सेंसिटिव (डीएस) टीबी मरीज है या फिर ड्रग रेसिस्टेंट(डीआर) टीबी मरीज। डीएस टीबी मरीजों का इलाज छह माह में पूर्ण हो जाता है, जबकि डीआर टीबी मरीजों के इलाज में डेढ़ से दो साल तक का समय लग जाता है। जांच और इलाज की समस्त सुविधा सरकारी अस्पतालों में मौजूद है।

मुख्य विकास अधिकारी ने लोगों से अपील की है कि वह अभियान में जुटी टीम का सहयोग करें। अगर किसी को लक्षण है तो वह खुद आगे आए और जांच कराए। उन्होंने कहा कि हम सभी लोगों की भी जिम्मेदारी है कि लक्षण वाले मरीजों के बारे में आशा कार्यकर्ता और टीम को जरूर बताएं। ऐसा करने से उनका समय से जांच और इलाज होगा। इससे वह मरीज तो ठीक होंगे ही, साथ में इस बीमारी का संक्रमण भी रुक सकेगा।

8684 मरीज हैं उपचाराधीन

जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ यादव ने बताया कि इस समय 8684 टीबी मरीजों का जिले में उपचार चल रहा है। इनमें से 372 डीआर टीबी मरीज हैं। अगर डीएस टीबी का मरीज भी बीच में दवा बंद कर देते हैं या अनियमित इलाज लेते हैं तो वह डीआर टीबी का मरीज बन सकते हैं। ऐसे मरीजों का इलाज जटिल होता है। डीआर टीबी मरीज से संक्रमित होने वाले नये मरीज भी डीआर टीबी के मरीज बन जाते हैं। अगर समय से नये मरीजों को खोज कर उपचार शुरू कर दिया जाए तो दो से तीन हफ्ते में उपचाराधीन मरीजों से संक्रमण की आशंका नहीं रह जाती है।

चोरी की घटना में केस दर्ज कर जांच में जुटी पुलिस

खजनी गोरखपुर। बीते शुक्रवार को थाना क्षेत्र के बरपार बरगाह गांव के रहने वाले मरहूम अब्दुल रहीम के पुत्र के घर में देर रात 10 बजे के बाद छत के रास्ते भीतर घुसे चोरों ने कीमती गहने और नकद डेढ़ लाख रूपए चुरा लिए। थाने में दी गई तहरीर में पीड़ित मोनू उर्फ जुलकर नैन ने पुलिस को बताया है कि घटना की रात 10 बजे के समय पूरा परिवार भोजन करके सो रहा था।

घर में घुसे चोरों ने 2 हार, 2 पीस मांग टीका, 3 अंगूठी, एक चैन, 4 चार जोड़ी पायल, 2 जोड़ी पाजेब, 2 जोड़ी नथिया, एक जोड़ी कमर बंद, 2 जोड़ी झुमका, तीन जोड़ी कान के टप्स, एक जोड़ी कान की झाली तथा एक लाख पचास हजार रूपए कैश चोरी हो गए। खटपट की आवाज सुनकर नींद जागे परिवार के लोगों को रात में 12 बजे के समय कुछ आवाज सुनाई दी। घर के भीतर जाने पर सारा सामान गायब मिला। आसपास खोजबीन करने के साथ ही तत्काल 112 नम्बर पर स्थानीय पुलिस को सूचना दी गई।

खजनी पुलिस ने थानाध्यक्ष सदानंद सिन्हा के निर्देश पर मुकदमा अपराध संख्या 361/2024 के तहत बीएनएस की धाराओं 305, 331में केस दर्ज कर जांच पड़ताल शुरू कर दी है। थानाध्यक्ष के अनुसार पुलिस को अभी तक चोरों का कोई सुराग नहीं मिला है।

इलाके में लगातार हो रही चोरी की घटनाएं पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।