May 10 2024, 17:58
*भगवान श्रीकृष्ण जन्म की कथा सुन भाव विभोर हुये श्रोता*
*रमन वर्मा*
पिसावां (सीतापुर) ससुरदीपुर के राम जानकी मंदिर पर चल रही श्रीमद भागवत कथा के दौरान कथा वाचक पँ बालकृष्ण पांडेय ने श्रीकृष्ण जन्म कथा सुनाते हुये कहा कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह धूमधाम से किया और खुशी से विवाह की सभी रस्मों को निभाया।
जब बहन को विदा करने का समय आया तो कंस देवकी और वासुदेव को रथ में बैठाकर स्वयं ही रथ चलाने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस तेरा काल होगा
। आकाशवाणी सुनते ही कंस अपनी बहन को मारने जा रहा था तभी वासुदेव ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें अपनी बहन देवकी से कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है।
इसलिए वे अपनी आठवीं संतान को कंस को सौंप देंगे। कंस ने वासुदेव की बात मान ली, लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद डाल दिया। जब भी देवकी की कोई संतान होती तो कंस उसे मार देता इस तरह से कंस ने एक-एक करके देवकी की सभी संतानों को मार दिया।
इसके बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया। श्री कृष्ण के जन्म लेते ही कारागार में एक तेज प्रकाश छा गया।
कारागार के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी सैनिको को गहरी नींद आ गई। वासुदेव और देवकी के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि उन्होंने ही कृष्ण रूप में जन्म लिया तो
विष्णु जी ने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें इसी समय गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दें और उनकी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें। वासुदेव जी गोकुल में कृष्ण जी को यशोदा जी के पास रख आए वहां से कन्या को ले आये और कंस को दे दी।
वह कन्या कृष्ण की योगमाया थी। जैसे ही कंस ने कन्या को मारने के लिए उसे पटकना चाहा कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। इसके बाद भविष्यवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने जन्म ले लिया है।
May 26 2024, 18:34