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नेपाल के 100 रुपए के नोट पर भारत में क्यों मचा है “बवाल”?

#controversyovermapofnepalnewrs100note 

नेपाल ने 100 रुपए का नया नोट जारी करने की घोषणा की। पड़ोसी देश की इस घोषणा से भारत “भड़क” गया है। दरअसल, नेपाल ने जिस नए नोट को जारी करने की घोषणा का है, उसमें एक नक्शा शामिल है। जिसमें भारत के तीन इलाकों को अपना बताया गया है। उस नक्शे में लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी के विवादास्पद क्षेत्र शामिल हैं। वैसे बता दें कि नेपाल ने पहली बार ऐसी हिमाकत नहीं की है। चीन की छत्रछाया में नेपाल ने भारत पर अपनी “नापाक नजर” पहले भी डाली है। हालांकि, भारत पहले ही इन क्षेत्रों को कृत्रिम रूप से विस्तारित करार दे चुका है। 

बता दें कि प्रधानमंत्री प्रचंड की अगुआई वाली नेपाल की सरकार ने 100 रुपए के नोट को फिर डिजाइन करने और उसके बैकग्राउंड में छपे पुराने मैप को बदलने की मंजूरी दी गई है। नेपाल की ओर से नोट में भारत के इलाके दिखाए जाने वाले अवैध फैसले का औपचारिक ऐलान भी कर दिया गया है। इन नोट में नेपाल का वो नया नक्शा दिखाया जाएगा, जो उसने 18 जून, 2020 को जारी किया था। जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा के नाम शामिल थे। नेपाल सरकार की प्रवक्ता और सूचना एवं संचार मंत्री रेखा शर्मा ने कैबिनेट फैसले के बारे में जानकारी देते हुए मीडियाकर्मियों को बताया, "प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक में 100 रुपये के नोट में नेपाल का नया नक्शा छापने का निर्णय लिया गया, जिसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को दर्शाया जाएगा।" उन्होंने कहा, "हमारे पास 100 के पुराने नोट खत्म होने वाले हैं. चूंकि पिछले डिज़ाइन में पुराना नक़्शा था, इसलिए जब हमने उसे छापा तो ऐसा लगा जैसे हमें नए नक़्शे के बारे में मालूम नहीं है।"

भारत की प्रतिक्रिया

इस कदम की प्रतिक्रिया में, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विवादित भारतीय क्षेत्रों को अपने नए 100 रुपये के नोट पर डालने के नेपाल के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि इस पर भारत की स्थिति स्पष्ट है और नेपाल ने अपनी मर्जी से कार्रवाई की। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भले ही दोनों देश सीमा मुद्दों पर बात कर रहे हैं, लेकिन नेपाल की कार्रवाई से जमीनी स्तर पर चीजें नहीं बदलेंगी। उन्होंने कहा, मैंने वह रिपोर्ट देखी। मैंने इसे विस्तार से नहीं देखा है, लेकिन मुझे लगता है कि हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है। नेपाल के साथ, हम एक स्थापित मंच के माध्यम से अपनी सीमा मामलों पर चर्चा कर रहे थे और फिर उसके बीच में, उन्होंने एकतरफा फैसला किया। लेकिन अपनी तरफ से कुछ करने से वे हमारे बीच की स्थिति या जमीनी हकीकत को बदलने वाले नहीं हैं।

2020 में नेपाल ने अपडेट किया था नक्शा

18 जून 2020 को नेपाल ने अपने संविधान में संशोधन करके रणनीतिक रूप से महत्वपूर्व तीन क्षेत्रों लिपुलेख, कालापनी और लिंपियाधुरा को शामिल करके देश के राजनीतिक मानचित्र को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी की थी। इस पर भारत तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भारत ने इसे "एकतरफा कृत्य" बताते हुए कहा था कि "नेपाल द्वारा क्षेत्रीय दावों का 'कृत्रिम विस्तार' अस्थिर है।"

आखिर कहां है विवाद?

वैसे तो भारत के साथ नेपाल की सीमा 1850 किलोमीटर की है, लेकिन जिस जमीन को लेकर विवाद है वो करीब 300 वर्ग किलोमीटर का टुकड़ा है। यहीं पर लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और काला पानी का वो इलाका मौजूद है जो है तो भारत का लेकिन इस पर नेपाल की गिद्ध दृष्टि है. इसके पीछे भी दिमाग चीन का बताया जा रहा है। दरअसल भारत नेपाल और चीन सीमा से लगे इलाके में नदियों से मिलकर बनी एक घाटी है, जो नेपाल और भारत में बहने वाली महाकाली नदी का उद्गम स्थल है। इस इलाके को काला पानी भी कहते हैं। यहीं पर लिपुलेख दर्रा भी है और यहां से उत्तर-पश्चिम की तरफ कुछ दूरी पर एक और दर्रा है, जिसे लिम्पियाधुरा कहते हैं।

18 महीने बाद चीन ने भारत में नियुक्ति किया राजदूत, अब तक औपचारिक एलान नहीं

#xi_appoints_senior_diplomat_xu_feihong_as_china_s_new_envoy_to_india 

भारत में क़रीब डेढ़ साल बाद चीन ने अपना नया राजदूत भेजने की तैयारी की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 18 महीने की देरी के बाद शुई फ़ीहॉन्ग को भारत में नया राजदूत नियुक्त किया है। चीन की ओर से फेइहोंग को भारत में चीन का राजदूत नियुक्त करने की अबतक आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। हालांकि, चीन के विदेश मंत्रालय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को पुष्टि की है कि अफगानिस्तान और रोमानिया में चीन के राजदूत रहे फेइहोंग अब भारत में देश के नए राजदूत होंगे।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने लिखा है कि 60 वर्षीय शुई जल्दी ही नई दिल्ली में अपना पद संभाल लेंगे। वह यहां सन विडॉन्ग की जगह लेंगे, जो भारत में अपना कार्यकाल अक्टूबर 2022 में ही पूरा करके जा चुके हैं। सन विडॉन्ग, भारत के कार्यकाल से पहले पाकिस्तान में भी चीन के राजदूत रह चुके थे और फ़िलहाल उप विदेश मंत्री हैं और चीन की दक्षिण एशिया पॉलिसी को संभालना उनके ज़िम्मे है।

फेइहोंग की नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब भारत में आम चुनाव हो रहे हैं और लंबे समय से चल रहे सैन्य गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक स्तर पर दीर्घकालिक वार्ता चल रही है।

बता दें कि पूर्वी लद्दाख के पेगोंग त्सो झील इलाके में पांच मई 2020 को हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आ गया है। पूर्वी लद्दाख की घटना के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते लगभग ठहर गए हैं। सैन्य गतिरोध को दूर करने के लिए अब तक कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की वार्ता हो चुकी है। चीन की सेना के मुताबिक दोनों पक्ष चार बिंदुओं गलवान घाटी, पेंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग और जियानान दबान (गोगरा) इलाके से सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमत हो चुके हैं। भारत, चीन की जनवादी मुक्ति सेना पर देपसांग और डेमचोक इलाके से पीछे हटने का दबाव बना रहा है। भारत का कहना है कि सीमा पर असमान्य स्थिति के रहते चीन के साथ रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते हैं।

क्या है 'क्लोरोपिक्रिन', रूस पर लगा यूक्रेन के खिलाफ इस्तेमाल का आरोप*
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अमेरिका ने रूस पर “रासायनिक हथियार संधि” का उल्लंघन करते हुए यूक्रेन की फौज के खिलाफ रासायनिक हथियार “क्लोरोपिक्रिन” का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।अमेरिकी विदेश विभाग ने 1 मई को रूस पर “रासायनिक हथियार संधि” का उल्लंघन करते हुए यूक्रेनी बलों के खिलाफ रासायनिक हथियार का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। अमेरिकी बयान में कहा गया है कि रूस, यूक्रेन के खिलाफ खतरनाक आंसू गैस का भी उपयोग कर रहा है, जिससे किसी शख्स के देखने की क्षमता खत्म हो सकती है, यानी वो अंधा हो सकता है। ऐसे मामले भी रासायनिक हथियार संधि का उल्लंघन है। इसके साथ ही मास्को के खिलाफ नए प्रतिबंधों की भी घोषणा की। *'क्लोरोपिक्रिन' क्या है* यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, रासायनिक यौगिक क्लोरोपिक्रिन का उपयोग युद्ध एजेंट और कीटनाशक दोनों के रूप में किया जाता है। अगर यह सांस के साथ अंदर चला जाए तो यह स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है। सीडब्ल्यूसी के तहत निगरानी रखने वाली संस्था, रासायनिक हथियार निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू) का कहना है कि रासायनिक हथियार ऐसे पदार्थ हैं, जिसके विषैले और रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल किसी की मौत के लिए या नुक़सान पहुंचाने के लिए किया जाता है। सीडब्ल्यूसी के तहत युद्ध में इस रसायन का इस्तेमाल साफ़ तौर से प्रतिबंधित है और ओपीसीडब्ल्यू ने इसे चोकिंग एजेंट बताया है। *गैस और तरल, दोनों ही रूपों में हो सकता है इसका इस्तेमाल* क्लोरोपिक्रिन को नाइट्रोक्लोरोफॉर्म और पीएस के रूप में भी जाना जाता है। यह एक केमिकल कंपाउंड है, जिसका इस्तेमाल जानलेवा कीटनाशक और नेमाटाइडाइड के रूप में किया जाता है। इसकी खासियत है कि यह गैस और लिक्विड दोनों ही रूपों में इस्तेमाल हो सकता है। इसकी एक छोटी सी बूंद भी इंसान के लिए जानलेवा हो सकती है। गैस के रूप में इसकी जरा सी मात्रा भी शरीर के अंदर जाने पर किसी को भी मौत की नींद सुलाने के लिए काफी होती है। *यदि आप क्लोरोपिक्रिन के संपर्क में आते हैं तो क्या होता है?* क्लोरोपिक्रिन के संपर्क में आने पर आंखों, त्वचा, श्वसन पथ और जठरांत्र संबंधी मार्ग में गंभीर जलन होती है। कुछ प्रभावों में आंखों की क्षति, मुंह, ग्रासनली और पेट में जलन, सांस लेने में तकलीफ, मतली, चक्कर आना और त्वचा का नीला पड़ना शामिल हैं। सीडीसी के अनुसार, गंभीर संपर्क में आने पर, इससे फुफ्फुसीय एडिमा हो सकती है, एक ऐसी स्थिति जिसमें फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जिससे संभवतः मृत्यु हो सकती है। एक बार रसायन के संपर्क में आने वाले व्यक्ति बाद के जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। हालांकि, एनआईएच के अनुसार, इसे कार्सिनोजेन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है और इसलिए, क्लोरोपिक्रिन के दीर्घकालिक या बार-बार संपर्क के माध्यम से विकासात्मक या प्रजनन विषाक्तता पैदा करने की संभावना अनिश्चित बनी हुई है।
हरियाणा में खतरे में बीजेपी सरकार? 3 निर्दलीय विधायकों ने बदला पाला*
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हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार से मंगलवार को तीन निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई।भाजपा की सरकार से अपना समर्थन वापस लेने वालों में दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान, नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर और पुंडरी से निर्दलीय विधायक रणधीर गोलन के नाम शामिल हैं। ये सभी विधायक पहले बीजेपी के साथ थे। अब इन्होंने कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया है। बताया जा रहा है कि भाजपा से नाराज तीनों निर्दलीय विधायकों के सरकार से समर्थन वापसी के पीछे विधानसभा चुनाव की टिकट है। तीनों ही विधायकों को इस बात का आभास हो गया था कि सरकार को समर्थन देने के बावूजद भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं देगी। इसलिए विधानसभा चुनाव में अपनी टिकट पक्की करने के लिए तीनों ने सरकार से बागी होते हुए कांग्रेस में अपनी टिकट पक्की करने की कोशिश की है। *निर्दलीय विधायकों ने क्या कहा?* कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायकों का कहना है कि बीजेपी सरकार की नीति जन विरोधी रही है। इसके कारण उन्होंने कांग्रेस को बाहरी समर्थन देने का फैसला किया। वह अब कांग्रेस का पूर्ण रूप से समर्थन देने का काम करेंगे। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान ने कहा कि बीजेपी सरकार जेजेपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार चला रही थी, लेकिन आज बीजेपी की प्रदेश सरकार अल्पमत में है। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए। उन्हें अब सरकार में रहने का कोई अधिकार नहीं है। पूर्व सीएम और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि तीन निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। यह जन समर्थन में फैसला लिया गया है। कांग्रेस लगातार प्रदेश में मजबूत हो रही है। *अल्पमत में बीजेपी की सरकार* बता दें कि हरियाणा विधानसभा 90 विधायकों वाली विधानसभा है। फिलहाल विधानसभा में 88 विधायक हैं। इसमें से बीजेपी के 40, कांग्रेस के 30 और जेजेपी के 10 विधायक हैं। इनके अलावा हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के एक और इनेलो के एक विधायक भी हैं। वहीं 6 निर्दलीय विधायक भी विधानसभा में हैं। इस समय बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूट चुका है। वहीं निर्दलीय विधायकों के सहारे सरकार चला रही बीजेपी की प्रदेश सरकार की मुश्किल बढ़ गई है। बीजेपी से नाराज चल रहे तीन निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस को समर्थन देने से बीजेपी की प्रदेश सरकार अल्पमत में आ गई है। अब बीजेपी के पास 40 अपने विधायक और 3 अन्य विधायकों का साथ है। *ऐसे समझें पूरा गणित* मौजूदा विधानसभा : 88 सदस्य बहुमत का आंकड़ा : 45 सदस्य सरकार के साथ : 43 MLA बहुमत के लिए कमी : 2 MLA (बीजेपी के अपने विधायक 40 हैं। दो निर्दलीय और HLP का एक विधायक बीजेपी के साथ हैं) (जेजेपी के बागी विधायकों से सरकार को उम्मीद)
*एअर इंडिया एक्सप्रेस की 70 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसिल, 300 केबिन क्रू कैसे पड़े बीमार?*
#air_india_express_cancels_flights_due_to_cabin_crew_shortage

एयर इंडिया एक्सप्रेस लगातार विवादों में बना हुआ है। इस बीच एअर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस से उड़ान भरने वाले लोगों के लिए बुधवार की सुबह बेहद परेशानियों वाली रही। इन दोनों एयरलाइंस ने अपनी 70 से अधिक फ्लाइट्स कैंसल कर दी।12 घंटे में 70 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसिल होने की वजह जानकर आप हैरान हो जाएंगे। रिपोर्ट्स के अनुसार एयरलाइन के सीनियर क्रू मेंबर ने आखिरी मिनट पर ‘मास सिक लीव’ ले लिया।ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एयरलाइंस के इतने सारे कर्मचारियों ने अचानक से छुट्टी क्यों ले ली। एयर इंडिया एक्सप्रेस के प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए कहा कि एयरलाइन के केबिन क्रू के एक ग्रुप ने कल रात अंतिम समय में बीमार होने की सूचना दी है, जिसकी वजह से उड़ान में देरी होने के साथ फ्लाइट कैंसल करनी पड़ी हैं। जबकि हम इन घटनाओं के पीछे के कारणों को समझने के लिए क्रू के साथ बातचीत कर रहे हैं। एयरलाइन टीमें सक्रिय रूप से इस इश्यू को देख रही है और समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है। इसके आगे वह कहते हैं कि हम इसके लिए अपने मेहमानों से माफी मांगते हैं। रद्दीकरण से प्रभावित मेहमानों को पूर्ण धन-वापसी या किसी अन्य तिथि के लिए मानार्थ पुनर्निर्धारण की पेशकश की जाएगी। आज हमारे साथ उड़ान भरने वाले मेहमानों से अनुरोध है कि वे हवाई अड्डे पर जाने से पहले यह जांच लें कि उनकी उड़ान प्रभावित हुई है या नहीं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, एयरलाइंस के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भी सिक लीव ली है, जिनकी संख्या तकरीबन 300 बताई जा रही है। बताया जा रहा है कि नए अपॉइंटमेंट नियमों के बाद प्रोटेस्ट देखने को मिल रहा है, जिसके नतीजतन कल तकरीबन 300 केबिन क्रू ने सिक लीव ली है। सूत्रों के मुताबिक, एअर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में विलय होने वाला है, इसलिए दोनों एयरलाइंस के पायलट और केबिन क्रू को लग रहा है कि उनकी जॉब खतरे में है। इसलिए सभी लोग प्रोटेस्ट कर रहे हैं। बीती रात से यह प्रोटेस्ट बड़ा हो गया है, जिसके कारण 70 से ज्यादा फ्लाइट कैंसल हुई हैं। इनमें मिडल ईस्ट और गल्फ देशों की सबसे ज्यादा फ्लाइट शामिल हैं।
लोकसभा चुनाव: तीसरे चरण में भी कम हुई वोटिंग, मात्र 64.58 फीसदी मतदान, यूपी में पड़े सबसे कम वोट

#loksabhaelections2024votingpercentageinthirdphase

लोकसभा चुनावों के तीसरे चरण में 11 राज्यों की 93 लोकसभा सीटों के लिए मंगलवार को वोटिंग हुई। चुनाव आयोग के मुताबिक तीसरे चरण में करीब 64.58% वोटिंग दर्ज की गई। इससे पहले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 66% मतदान रिकॉर्ड किया गया था। यहां पहले दो चरणों की तरह, तीसरे दौर में भी 2019 की तुलना में कम मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया।

चुनाव आयोग के वोटर टर्नआउट ऐप पर रात 11.45 बजे तक के आंकड़ों के अनुसार, इस चरण में असम में 81.7% के साथ सबसे अधिक मतदान हुआ। सबसे कम उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर मतदान हुआ, जहां 2019 में 60% के मुकाबले 57.3% मतदान हुआ। इसके बाद बिहार (58.2%) और गुजरात (59.2%) का स्थान रहा। गुजरात में सूरत को छोड़कर सभी सीटों पर मतदान हुआ। सूरत सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए। जबकि पश्चिम बंगाल की चार सीटों पर 75.8% मतदान हुआ, यह पांच साल पहले हुए 81.7% से बहुत कम था।

कहां कितने पड़े वोट?

• कुल मतदान- 64.58 प्रतिशत

• उत्तर प्रदेश- 57.34 प्रतिशत

• बिहार- 58.18 प्रतिशत

• गुजरात- 59.51 प्रतिशत

• महाराष्ट्र- 61.44 प्रतिशत

• मध्य प्रदेश- 66.05 प्रतिशत

• दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव- 69.87 प्रतिशत

• कर्नाटक- 70.41 प्रतिशत

• छत्तीसगढ़- 71.06 प्रतिशत

• गोवा- 75.20 प्रतिशत

• पश्चिम बंगाल- 76.52 प्रतिशत

• असम- 81.71 प्रतिशत

तीसरे चरण के समापन के साथ अब 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 283 संसदीय क्षेत्रों में मतदान समाप्त हो गया है। चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि तीनों चरणों में यूपी और बिहार में मतदान प्रतिशत सबसे कम रहा। हालांकि तीसरे चरण में छत्तीसगढ़, कर्नाटक और गोवा में मतदान प्रतिशत में वृद्धि देखी गई।जबकि अगले चार चरण 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को होंगे। मतगणना चार जून को होगी।

*एस्ट्राजेनेका का बड़ा फैसला, दुनियाभर से कोरोना वैक्सीन वापस मंगाई गई
#astrazeneca_withdrawing_corona_vaccine सुरक्षा को लेकर उपजे विवाद के बीच दिग्गज दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका ने अपनी कोरोना वैक्सीन को वापस लेनी शुरू की है।कंपनी ने कहा है कि वह दुनियाभर से अपनी वैक्सजेवरिया वैक्सीन को वापस मंगा रही है। बता दें कि कुछ दिनों पहले ही फर्मास्‍यूटिकल कंपनी एस्‍ट्राजेनेका ने एक कोर्ट में वैक्‍सीन के खतरनाक साइड इफेक्‍ट की बात स्‍वीकार की थी। इसके बाद कंपनी की ओर से यह कदम उठाया गया है।हालांकि, इसके लिए एस्ट्राजेनेका ने वैक्सीन के साइड इफेक्ट का तर्क नहीं दिया है बल्कि मार्केट में आई अपडेटेड वैक्सीन का हवाला दिया। साथ ही साथ कंपनी का दावा है कि उसकी वैक्सीन की मांग कम हो गई है। दिग्‍गज दवा निर्माता कंपनी एस्‍ट्राजेनेका ने कुछ दिनों पहले ही ब्रिटेन की एक अदालत में कोरोना वैक्‍सीन के साइड इफेक्‍ट की बात स्‍वीकार की थी। 50 से ज्‍यादा लोगों ने एस्‍ट्राजेनेका की ओर से विकसित कोरोना वैक्‍सीन के साइड इफेक्‍ट को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। एस्‍ट्राजेनेका की वैक्‍सीन वैक्‍सजेव्रिया को लेकर सवाल उठाए गए थे। हालांकि, कंपनी का कहना है कि वैक्सजेव्रिया वैक्‍सीन का साइड इफेक्‍ट रेयर है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दिनों में ब्रिटेन और दूसरे देशों में भी वैक्सीन को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दिनों में ब्रिटेन और दूसरे देशों में भी वैक्सीन को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। टेलीग्राफ के अनुसार, वैक्सीन वापस लेने के लिए कंपनी का आवेदन 5 मार्च को किया गया था और 7 मई को प्रभावी हुआ। कंपनी ने यह भी कहा कि वह यूरोप के भीतर वैक्सीन वैक्सजेवरिया के मार्केटिंग ऑथराइजेशन को वापस लेने के लिए आगे बढ़ेगी। एस्ट्राजेनेका ने कहा, ‘चूंकि कई प्रकार की कोविड वैक्सीन विकसित की गई हैं इसलिए उपलब्ध अपडेटेड टीकों की संख्या अधिक है। इससे वैक्सजेवरिया वैक्सीन की मांग में गिरावट आई है। इसकी वजह से अब इसकी मैन्युफैक्चरिंग या सप्लाई नहीं की जा रही है। ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मास्यूटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका का यह कदम ऐसे वक्त सामने आया है, जब कंपनी ने बीते दिनों ही स्वीकार किया है कि कुछ मामलों में कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट सामने आए हैं और इसकी वजह से कुछ लोगों में थ्रंबोसिस थ्रंबोसाइटोपीनिया सिंड्रोम बीमारी के लक्षण देखे गए हैं, जिसमें लोगों में खून के थक्के जमने लग जाते हैं। एस्ट्राजेनेका कंपनी कोविड वैक्सीन को लेकर कई मुकदमों का सामना कर रही है। आरोप है कि कोविड वैक्सीन लगने के बाद कई लोगों की जान गई है। जैमी स्कॉट नामक एक व्यक्ति ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। स्कॉट का आरोप है कि वैक्सीन लेने के बाद उसके शरीर में खून के थक्के जमने की समस्या हुई और दिमाग में भी ब्लीडिंग हुई। इससे उसके मस्तिष्क को नुकसान हुआ। ऐसे ही कंपनी के खिलाफ 50 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। कंपनी ने भी कोर्ट में लिखित दस्तावेजों में स्वीकार किया कि कोरोना वैक्सीन के कुछ दुर्लभ मामलों में साइड इफेक्ट दिख सकते हैं। बता दें कि यूके स्थित फार्मा कंपनी ने भारत सरकार को वैक्सीन देने के लिए वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) से हाथ मिलाया। सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविशील्ड नाम से वैक्सीन का निर्माण किया। भारत में 80 फीसदी लोगों को कोरोना की कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई है। वैक्सीन के साइड इफेक्ट की बात सामने आने के बाद देश में कई सवाल खड़े किए गए और केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की गई। इस बीच पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें कोविशील्ड वैक्सीन के दुष्प्रभावों की जांच के लिए एक मेडिकल एक्सपर्ट पैनल बनाने का निर्देश जारी करने की मांग की गई।
ममता सरकार को हाई कोर्ट से राहत, बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में हाई तोक्ट के फैसले पर लगाई अंतरिम रोक
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पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इसमें शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सीबीआई अपनी जांच जारी रखे, लेकिन कर्मचारी-उम्मीदवारों पर कोई एक्शन न ले। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस साल 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की 25 हजार 753 नियुक्तियों को अवैध करार दे दिया था। साथ ही इन शिक्षकों को 7-8 साल के दौरान मिली सैलरी 12% इंटरेस्ट के साथ लौटाने के निर्देश भी दिए थे। इसके लिए कोर्ट ने 6 हफ्ते का समय दिया था।

बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि जब भर्ती प्रक्रिया पर पहले से सवाल उठ रहे थे तो नई नियुक्तियां क्यों की गईं?

अदालत में वकील नीरज कौशल कौल ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शिक्षकों और छात्रों के अनुपात को देखकर ही भर्तियां की गईं थीं। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने भी 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा है। राज्य सरकार के दूसरे वकील जयदीप गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि यह शीर्ष अदालत के ही फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने का फैसला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि शिक्षक भर्ती से जुड़ी कॉपियां क्यों खत्म की गईं? जिसके जवाब में वकील ने कहा कि कॉपियां अब नहीं मिल सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फिर पूछा का आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग अपना भरोसा खो देंगे।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को व्यवस्थागत धोखाधड़ी बताया। कोर्ट ने कहा कि आज नौकरियों की कमी है। अगर जनता का भरोसा चला गया तो कुछ नहीं बचेगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों ने मेनटेन किया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था। बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।

पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती को रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई है। कहा है कि वैध और अवैध भर्तियों को अलग करने की जरूरत है। तौर-तरीके पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तय किए जाएंगे। सिर्फ उन्हीं अभ्यर्थियों को वेतन लौटाने की जरूरत है, जिनकी भर्ती अवैध है, यह हमारे फैसले पर निर्भर करेगा। 16 जुलाई से मामले में रेगुलर सुनवाई होगी।
ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत, बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में हाई तोक्ट के फैसले पर लगाई अंतरिम रोक
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पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इसमें शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सीबीआई अपनी जांच जारी रखे, लेकिन कर्मचारी-उम्मीदवारों पर कोई एक्शन न ले। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस साल 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की 25 हजार 753 नियुक्तियों को अवैध करार दे दिया था। साथ ही इन शिक्षकों को 7-8 साल के दौरान मिली सैलरी 12% इंटरेस्ट के साथ लौटाने के निर्देश भी दिए थे। इसके लिए कोर्ट ने 6 हफ्ते का समय दिया था।

बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि जब भर्ती प्रक्रिया पर पहले से सवाल उठ रहे थे तो नई नियुक्तियां क्यों की गईं?

अदालत में वकील नीरज कौशल कौल ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि शिक्षकों और छात्रों के अनुपात को देखकर ही भर्तियां की गईं थीं। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने भी 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध नहीं कहा है। राज्य सरकार के दूसरे वकील जयदीप गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि यह शीर्ष अदालत के ही फैसले के विपरीत है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने का फैसला हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि शिक्षक भर्ती से जुड़ी कॉपियां क्यों खत्म की गईं? जिसके जवाब में वकील ने कहा कि कॉपियां अब नहीं मिल सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फिर पूछा का आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग अपना भरोसा खो देंगे।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को व्यवस्थागत धोखाधड़ी बताया। कोर्ट ने कहा कि आज नौकरियों की कमी है। अगर जनता का भरोसा चला गया तो कुछ नहीं बचेगा। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि डेटा उसके अधिकारियों ने मेनटेन किया था और इसकी उपलब्धता के बारे में पूछा गया था। बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।

पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती को रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाई है। कहा है कि वैध और अवैध भर्तियों को अलग करने की जरूरत है। तौर-तरीके पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से तय किए जाएंगे। सिर्फ उन्हीं अभ्यर्थियों को वेतन लौटाने की जरूरत है, जिनकी भर्ती अवैध है, यह हमारे फैसले पर निर्भर करेगा। 16 जुलाई से मामले में रेगुलर सुनवाई होगी।
व्लादिमीर पुतिन ने बनाया रिकॉर्ड, फिर बने रूस के राष्ट्रपति, पांचवीं बार ली शपथ
#vladimir_putin_oath_as_russia_president_fifth_times


व्लादिमीर पुतिन ने पांचवी बार मॉस्को में राष्ट्रपति पद की शपथ ली। इसके साथ ही एक बार फिर रूस की कमान अपने हाथ में ले ली।राष्ट्रपति चुनाव के लिए रूस में 15 से 17 मार्च तक मतदान हुए थे। जिसके बाद 18 मार्च को चुनाव के नतीजे सामने आए थे, जिसमें पुतिन ने 87 प्रतिशत वोट हासिल कर एक बार फिर सत्ता हासिल की।दुनिया के सबसे दिग्गज और ताकतवर नेताओं में शुमार रूस के राष्ट्रपति के रूप में व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को क्रेमलिन में एक भव्य समारोह में अपना पांचवां कार्यकाल शुरू किया।जोसेफ स्टालिन के बाद क्रेमलिन के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले नेता के रूप में, पुतिन का नया कार्यकाल 2030 तक चलेगा।

शपथ ग्रहण के बाद समारोह को संबोधित करते हुए पुतिन ने कहा कि रूस का नेतृत्व करना एक पवित्र कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि इस कठिन अवधि के बाद रूस एक बार फिर मजबूती के साथ उभरेगा।  पुतिन ने कहा कि रूस अन्य देशों के साथ संबंध विकसित करने के लिए तैयार है। रूस को हर खतरे और चुनौती को मुहंतोड़ जबाव देने के लिए तैयार होना होगा।

राष्ट्रपति के तौर पर पांचवीं बार शपथ लेने के साथ ही पुतिन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। पुतिन ने शपथ लेने के बाद पहले पहले ही संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि यह पश्चिमी देशों पर निर्भर है कि वह रूस से बातचीत करना चाहते हैं या फिर रूस के विकास में बाधा डालने की कोशिश करते हुए हमारे गुस्से का शिकार होना चाहते हैं। पुतिन ने पश्चिम का नाम लेकर अप्रत्यक्ष तौर पर नाटो को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर हम पर दबाव डालना जारी रखा तो तबाही के लिए तैयार रहें।

पुतिन ने कहा कि यदि वे बातचीत करना चाहते हैं तो उसमें सुरक्षा और रणनीतिक स्थिरता जैसे मुद्दे शामिल होने चाहिए. जो भी बातचीत हो वो समान शर्तों पर होनी चाहिए और उसमें अहंकार और खुद को सुपीरियर मानने जैसा भाव नहीं होना चाहिए।

बता दें कि देश में जनमत संग्रह के जरिए तीन दिन तक मतदान की प्रक्रिया चली थी। मतदान सर्वेक्षक संस्था पब्लिक ओपिनियन फाउंडेशन (एफओएम) के एग्जिट पोल के मुताबिक, पुतिन ने 87.8% वोट हासिल किए। यह रूस के सोवियत इतिहास के बाद का सबसे बड़ा परिणाम है। रशियन पब्लिक ओपिनियन रिसर्च सेंटर (वीसीआईओएम) ने पुतिन को 87% पर रखा है। नतीजों के अनुसार, कम्युनिस्ट उम्मीदवार निकोलाई खारितोनोव दूसरे स्थान पर रहे। निकोलाई को महज 4% वोट ही मिले। वहीं नवागंतुक व्लादिस्लाव दावानकोव तीसरे और लियोनिद स्लतस्की चौथे स्थान पर रहे।