बगैर कांग्रेस महागठबंधन की कोई विसात नहीं, मोदी का विकल्प केवल कांग्रेस पार्टी।।
जहानाबाद पूर्णिया में 25 फरवरी को महागठबंधन की रैली आयोजित की गई है।
यह रैली ऐसे समय में आयोजित की गई है ,जब कांग्रेस पार्टी का महाधिवेशन पूर्व से ही छत्तीसगढ़ के रायपुर में निर्धारित है। इधर , देखा जा रहा है कि महागठबंधन द्वारा आयोजित रैली में न तो राहुल गांधी की तस्वीर पोस्टरों में दिख रही है और न ही सोनिया गांधी की। और तो और कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व का भी फोटो इस रैली के पोस्टरों से गायब है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह चाचा भतीजे की जोड़ी से पूरे देश में चुनाव जीतना संभव है?
आखिर कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के बगैर यह कैसे मुमकिन हो पायेगा? कांग्रेस अकेले दम पर पूरे देश में 300 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडने और जितने के लिए सक्षम है। क्या बिहार की मात्र 40 सीटों से पूरा देश फतह हो जायेगा? दरअसल, मालूम तो यह पड़ता है की महागठबंधन द्वारा आयोजित यह रैली मात्र चाचा और भतीजे को एक दूसरे से ठगने ठगाने के लिए बुलाई गई है। असल में यह दोनों पूर्व से भी एक दूसरे को ठग ही रहे हैं। कोई चाचा को देश का प्रधानमंत्री बनाकर ठग रहा है तो कोई भतीजे को बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर।
दोनों इस बात को भली भांति समझ रहे हैं कि हम लोग एक दूसरे को केवल ठग रहे हैं। फिर भी यह दौर यहां बदस्तूर जारी है।
जरा समझिए कि कांग्रेस जहां पूरे देश में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही है। ऐसी परिस्थितियों में बिहार में कांग्रेस को नजर अंदाज करना कहां तक जायज है। इन्हें तो चाहिए कि मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए सभी मिल जुलकर कांग्रेस के नेतृत्व को मजबूत करें। दरअसल, कांग्रेस किसी जात की नहीं अपितु एक बड़े जमात की पार्टी है। जहां सवर्ण भी है और पिछड़ा भी, दलित भी है तो अकलियत समाज भी। इन्हीं कारणों से कांग्रेस पार्टी की स्वीकार्यता सर्व समाज में है।
इसलिए किसी भी परिस्थिति में कांग्रेस को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। 2019 के आम चुनाव के दौर को जरा याद कीजिए। जहां उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड को मिलाकर लगभग 134 लोकसभा सीटों में बीजेपी को 115 सीटें प्राप्त हुई थी। तब जदयू एनडीए का हिस्सा हुआ करती थी, और लेफ्ट पार्टियों ने भी अलग चुनाव लडा था। लेकिन जिस प्रकार से इस बार महागठबंधन की स्थिति बनी है जिसमें लगभग कई पार्टियां शामिल हैं ।
उससे तो ऐसा लगता है कि अगर बिहार , झारखंड और यूपी में समाजवादी पार्टी, आरएलडी और अन्य दल एक साथ आकर चुनाव लड़ गए तो यहां बीजेपी 10_20 में सिमट कर रह जायेगी। हालांकि, बीजेपी भी इसके लिए कोई कम जुगत नहीं भिड़ा रही। वो छोटे छोटे दलों को अपने साथ जोड़कर एक बड़े वोटबैंक को अपने पाले में लेना चाहती है। ऐसे में महागठबंधन में एक समन्वय बनाकर सभी पार्टियों के साथ मिलकर खुद को और भी मजबूत स्थिति में लाने की जरूरत पर बल देना चाहिए। इधर, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी बीजेपी की स्थिति डावा डोल होने वाली है।
और दक्षिण भारत में तो चाहे आंध्र हो या फिर तेलंगाना या तमिलनाडु और केरल। इन तमाम जगहों से बीजेपी लगभग गायब है। इन तमाम परिस्थितियों के मद्देनजर ऐसी छोटी बड़ी लगभग सभी पार्टियां जो की बीजेपी के विरुद्ध है और वो मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहती है।
उन्हें चाहिए कि सभी मिलकर कांग्रेस नेतृत्व के हाथों को मजबूत करे। ताकि इन फासीवादी और कम्यूनल ताकत को सत्ता से बेदखल किया जा सके। इसका माद्दा केवल कांग्रेस में ही है। इसके अलावा किसी भी दल की इतनी ताकत नहीं कि वो आज की वर्तमान सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंके।
जहानाबाद से बरुण कुमार
Feb 24 2023, 18:40