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पंजाब में 'गुमनाम' विभागः20 महीने कागजों पर चला धालीवाल का मंत्रालय, जानें कैसे सच्ची आई सामने

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पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। इसी आम आदमी पार्टी की सरकार में एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां एक मंत्री के पास वो विभाग था जिसका अस्तित्व ही नहीं है। यह जानकारी खुद पंजाब सरकार के एक संशोधन से सामने आई है। संशोधन की जानकारी गजट नोटिफिकेशन के जरिए दी गई है। इसमें बताया गया है कि मंत्री कुलदीप धालीवाल के पास डिपार्टमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स और एनआईआई अफेयर्स था। जिनमें से डिपार्टमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स अस्तित्व में नहीं है।

एक दिन पहले ही भगवंत मान सरकार ने 21 अफसरों के ट्रांसफर करने के साथ-साथ मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल से प्रशासनिक सुधार मंत्रालय छीन लिया। अब यह जानकारी सामने आ रही है कि जिस प्रशासनिक सुधार मंत्रालय को धालीवाल से छीना गया है वो वास्‍तव में कहीं था ही नहीं। यह मंत्रालय केवल कागजों पर चल रहा था। सीएम भगवंत मान को 20 महीने बाद होश आया।

धालीवाल से अब तक कुल तीन विभाग वापिस लिए जा चुके हैं। इससे पहले ग्रामीण विकास एवं पंचायत और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग भी उनसे वापिस लिया गया था। कुलदीप सिंह धालीवाल के पास एनआरई मामलों के साथ प्रशासनिक सुधार मंत्रालय भी था, लेकिन अब करीब 20 महीने बाद पंजाब सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया है कि ये विभाग है ही नहीं करता है। सरकार ने आधिकारिक तौर पर ये मान लिया है कि इस तरीके के किसी विभाग का कोई अस्तित्व ही नहीं था।

प्रशासनिक सुधार मंत्रालय में ना किसी अफसर की नियुक्ति की गई थी और ना ही कोई कर्मचारी पंजाब सरकार के इस विभाग के अंतर्गत काम कर रहे थे। मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को प्रशासनिक सुधार मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था। अब पंजाब के राज्यपाल ने सीएम भगवंत मान की सलाह पर एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके तहत कहा गया है कि अब धालीवाल केवल एनआरआई मामलों के मंत्रालय को संभालेंगे। बताया जा रहा है कि 20 महीनों तक प्रशासनिक सुधार विभाग और एनआरआई विभाग कुलदीप सिंह धारीवाल के पास था।

इस बीच, विपक्षी दलों ने शनिवार को आप सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि आप सरकार शासन को लेकर कितनी गंभीर है। पंजाब भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा ने कहा, यह सरकार के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है कि एक ऐसा विभाग आवंटित किया गया है, जो अस्तित्व में नहीं है। उन्होंने कहा कि न तो इसे आवंटित करने वालों को, और न ही जिन्हें विभाग आवंटित किया गया था, उन्हें इस तथ्य की जानकारी थी कि यह विभाग अस्तित्व में नहीं है।

आतिशी और संजय सिंह को राहत, कोर्ट फीस नहीं चुकाने पर संदीप दीक्षित की मानहानि याचिका खारिज

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कार्यवाहक मुख्यमंत्री आतिशी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने आतिशी और संजय सिंह के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ दायर मानहानि के केस को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट में यह याचिका नई दिल्ली से कांग्रेस प्रत्याशी रहे संदीप दीक्षित ने दायर की थी. वहीं, केस की कोर्ट फीस नहीं भरने पर इसे खारिज कर दिया.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सिविल मानहानि केस की कोर्ट फीस जमा नहीं की है. इसलिए याचिका पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है. दरअसल संदीप दीक्षित ने 10 करोड़ के हर्जाने की मांग करते हुए सिविल मानहानि केस दायर किया था. याचिका में उनका कहना है कि आतिशी और संजय सिंह ने उन पर चुनाव के दौरान पैसे लेने और भाजपा से मिलीभगत करने का झूठा आरोप लगाया था.

क्या है पूरा मामला?

याचिका में कहा गया था कि आतिशी और संजय सिंह ने संदीप दीक्षित पर पैसे लेने और बीजेपी के साथ सांठगांठ करने का झूठा और बेबुनियाद आरोप लगाया. यह शिकायत 26 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आतिशी और संजय सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया गया था कि संदीप दीक्षित AAP को हराने के लिए बीजेपी से ‘करोड़ों रुपए’ लिए.

साथ ही याचिका में आतिशी पर प्रेस कॉन्फ्रेंस को अपने एक्स पर शेयर करने पर भी आपत्ति जताई गई थी. कैप्शन में लिखा था ‘कांग्रेस दिल्ली चुनाव में बीजेपी की मदद कर रही है’.व हीं, इसके बाद राउज एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 2 जनवरी की तारीख निर्धारित की थी. साथ ही आतिशी और संजय सिंह को एक कानूनी नोटिस भेज कर पोस्ट को हटाने को कहा गया था.

संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों हारे

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र सबेस हॉट सीटों में सुमार थी. यहां से तीन प्रमुख पार्टियों की ओर से बड़े-बड़े कद्दावर नेता मैदान में है. कांग्रेस से पूर्व सीएम शिला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित, आम आदमी पार्टी से राष्ट्रीय संयोजक औैर मुख्यमंत्री उम्मीदवार, पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और बीजेपी के पूर्व सांसद और दिल्ली के मुख्यमंत्री रहें साहिब सिंह के बेटे परवेश वर्मा चुनाव में थे.

हालाकिं, चुनाव में बीजेपी के परवेश वर्मा ने बाजी मारी, संदीप दीक्षित और अरविंद केजरीवाल को हार का सामन करन पड़ा. केजरीवाल साल 2013 से इस से विधायक थे. उससे पहले यहां से लगातार शिला दीक्षित जीत दर्ज करती रहीं थी. नई दिल्ली सीट पर बीजेपी के परवेश वर्मा ने कुल 4089 वोटों के अतर से केजरीवाल को हराया. प्ररवेश वर्मा को 30,088 और अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले. वहीं,. संदीप दीक्षित को कुल 4,568 वोट मिले.

रविंद्र नेगी ने मनीष सिसोदिया पर लगाया गंभीर बड़ा आरोप, वीडियो शेयर कर कहा- सोफा, AC, TV सब उठा ले गए

#mla_ravindra_negi_made_a_big_allegation_on_manish_sisodia

दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए। जिसमें पिछले 11 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) की करारी हार हुई। वहीं बीजेपी 27 सालों के बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। एक तरह जहां दिल्ली में नए सीएम को लेकर हलचल तेज है दूसरी ओर बीजेपी विधायक ने पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर चोरी का गंभीर आरोप लगाए हैं।

पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज से मौजूदा भाजपा विधायक रविंद्र सिंह नेगी ने आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक और उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया पर बड़ा आरोप लगाया है। विधायक रविंद्र नेगी ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी से पटपड़गंज के पूर्व विधायक मनीष सिसोदिया ने चुनाव से पहले ही अपना असली चेहरा दिखा दिया था। उन्होंने अपनी पोस्ट में यह भी लिखा कि मनीष सिसोदिया विधानसभा कैंप कार्यालय से एसी, टीवी (AC,TV) टेबल, कुर्सी और पंखे जैसे सामान सब चुरा ले गए।

विधायक रविंद्र नेगी ने आगे लिखा कि इनकी भ्रष्टाचार की हदें अब भी पार नहीं हुईं। अब ये अपनी असलियत और चोरी छिपाने की राजनीति में माहिर हो गए हैं। हम जनता के हक की रक्षा करेंगे और ऐसे भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करेंगे। आगे कहा कि हम इस मामले में मनीष सिसोदिया को कानूनी नोटिस भेजने वाले हैं।

बता दें कि हाल ही में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। भाजपा ने 70 सीटों में से 48 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है। वहीं,आम आदमी पार्टी को सिर्फ 22 सीटें ही मिली हैं। उधर, भारतीय जनता पार्टी अब मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी में जुटी हुई है

निकाय चुनाव में दिखी आम आदमी पार्टी की धमक: पालिका अध्यक्ष सहित 4 वार्डों में जमाया कब्जा, बीजेपी-कांग्रेस को मात देकर हासिल की कुर्सी

बिलासपुर- छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव में हर ओर भाजपा का जादू चला तो वहीं कांग्रेस सभी 10 नगर निगमों में बुरी तरह से हार गई है. इस बीच बिलासपुर जिले में आम आदमी पार्टी (AAP) का जलवा देखने को मिला. बोदरी नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष पद पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया है. आप की प्रत्याशी नीलम विजय वर्मा ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीत लिया है.

इसके साथ ही यहां के 4 वार्डों में भी आप के प्रत्याशी जीतकर पार्षद बने हैं. आप की छत्तीसगढ़ में पहली बार इस जीत के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है.

बता दें कि इस पालिका के चुनाव में नवनिर्वाचित पालिका अध्यक्ष नीलम वर्मा के पति विजय वर्मा कांग्रेस से बागी होकर आम आदमी पार्टी की टिकट पर यहां से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा था, जिसमें उन्हें जीत मिली है.

बोदरी नगर पालिका परिषद के 15 वार्डों में से 9 वार्डों में भाजपा के प्रत्याशी विजयी रहे, जबकि 4 वार्डों में आम आदमी पार्टी और 2 वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत मिली है.

नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत, कांग्रेस का सूपड़ा साफ, 10 निगम, 49 पालिका और 114 नगर पंचायत का जानिए अंतिम परिणाम

रायपुर- छत्तीसगढ़ में हुए नगरीय निकाय चुनावों के नतीजे लगभग साफ हो चुके हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को करारी शिकस्त दी है। नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत तीनों ही निकायों में भाजपा का दबदबा देखने को मिला। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) को उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले, जबकि निर्दलीय प्रत्याशियों ने कुछ सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। आइए जानते हैं किस निकाय में किसे जीत मिली है।

नगर निगम चुनाव परिणाम

इस बार राज्य के कुल 10 नगर निगमों में भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज कर ली, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों का खाता भी नहीं खुल सका। भाजपा की इस प्रचंड जीत ने विपक्ष को करारा झटका दिया है।

नगर पालिका चुनाव परिणाम

नगर पालिका चुनावों में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया और कुल 49 में से 35 सीटों पर कब्जा जमाया। कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें मिलीं, जो तखतपुर, मुंगेली, कटघोरा, महासमुंद, बागबाहरा, सुरजपुर, मंदिर हसौद और अभनपुर में हासिल हुईं। आम आदमी पार्टी (AAP) को मात्र एक सीट (बोदरी) से संतोष करना पड़ा। वहीं, 5 सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों के खाते में गईं, जिनमें अहिवारा, सक्ती, पेंड्रा, अकलतरा और सिमगा शामिल हैं।

नगर पंचायत चुनाव परिणाम

नगर पंचायत चुनावों में भी भाजपा ने अपना परचम लहराया और कुल 114 सीटों में से 81 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं, जबकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) को सिर्फ 1 सीट हासिल हुई। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशियों ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की।

गौरतलब है कि इन चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत ने यह साबित कर दिया है कि राज्य की राजनीति में उसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि वह अधिकांश सीटों पर हार गई। वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) की उम्मीदें भी धराशायी हो गईं, क्योंकि उन्हें सिर्फ एक सीट मिली। निर्दलीय प्रत्याशियों ने 15 सीटें जीतकर कुछ क्षेत्रों में अपनी मजबूती दिखाई। कुल मिलाकर, इन चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है।

दिल्ली में नॉन ऑफिशियल स्टाफ पर गिर सकती है गाज, मुख्य सचिव ने जारी किया नोटिस

दिल्ली के मुख्य सचिव ने दिल्ली सरकार के मातहत (अधीनस्थ) आने वाले सभी विभागों को इस बाबत एक नोटिस जारी किया है कि उनके यहां जितने भी नॉन ऑफिशियल स्टाफ है उनकी लिस्ट बनाई जाए और उसे लिस्ट को जल्द से जल्द सौंपी जाए. दरअसल, केजरीवाल सरकार में अलग-अलग विभागों में कई तरह के नॉन ऑफिशियल स्टाफ की नियुक्ति हुई थी यह नोटिस उसी को लेकर है.

संभव है नई सरकार के बनते के साथ ही दिल्ली सरकार में कार्यरत इन लोगों पर गाज गिरे और सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इन्हें नौकरी से हटाया भी जा सकता है. हाल ही में दिल्ली की सीएम आतिशी के ऑफिस में काम करने वाला शख्स 5 लाख कैश के साथ पकड़ा गया था. जिस शख्स को पकड़ा गया था, उसका नाम गौरव है. 5 लाख रुपये के साथ उसे गिरीखंड नगर में पकड़ा गया था.

केजरीवाल सरकार में बड़े पैमाने पर नॉन ऑफिशियल स्टाफ की नियुक्ति हुई थी. अब सरकार बदल गई है, केजरीवाल की सरकार से उसी की लिस्ट मांगी गई है. दिल्ली में बीजेपी को करीब 27 साल बाद प्रचंड जीत हासिल हुई है. भारतीय जनता पार्टी ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है.वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

आप के खाते में केवल 22 सीटें गई हैं. अब दिल्ली का नया मुख्यमंत्री कौन होगा. इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, 20 फरवरी से पहले दिल्ली के सीएम का शपथ ग्रहण समारोह की संभावना है.

केजरीवाल का ‘शीशमहल’ बनेगा सरकारी गेस्ट हाउस

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ‘शीशमहल’ अब सरकारी गेस्ट हाउस में तब्दील हो सकता है. दिल्ली सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बंगले को सरकारी गेस्ट हाउस बनाने का प्रस्ताव रखा है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद यह गेस्ट हाउस बन जाएगा. यह बंगला 6, फ्लैग स्टाफ रोड पर स्थित है और 9 साल तक केजरीवाल का निवास था. इस गेस्ट हाउस में सरकारी कार्यक्रम और आने वाले अधिकारियों के लिए ठहरने की सुविधा होगी. बीजेपी ने केजरीवाल के बंगले के नवीनीकरण पर विवाद उठाया था.

प्रचंड जीत के बाद BJP ने किया SIT गठन का ऐलान

दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बीजेपी ने SIT गठन का ऐलान किया है. बीजेपी ने नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) बनाने की घोषणा की है. दिल्ली भाजपा प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि पार्टी भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता रखती है और घोटालों में शामिल लोगों को जवाबदेह ठहराया जाएगा.

दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी भाजपा की डबल इंजन सरकार:केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल

डेस्क:–दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस परिणाम का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों में जनता के भरोसे को दिया जाता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली की जनता ने पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों पर भरोसा दिखाया है और जनता ने AAP के कुशासन को खत्म कर दिया है। भाजपा की डबल इंजन की सरकार दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी और यमुना नदी को साफ करेगी।

भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी ने इस पल की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि दिल्ली के लोग दिवाली मना रहे हैं। लंबे समय के बाद दिल्ली में भाजपा की सरकार बन रही है। दिल्ली के लोग एक समृद्ध और विकसित दिल्ली का सपना देखते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में दिल्ली की जनता का यह सपना पूरा होगा। भाजपा नेता गौरव वल्लभ ने भी चुनाव परिणामों पर अपनी राय रखी और कहा कि दिल्ली की जनता ने दिल्ली में भ्रष्टाचार करने वाले सभी लोगों को परास्त कर दिया है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने "ऐतिहासिक" जीत दर्ज की, 70 में से 48 सीटें जीतीं और आम आदमी पार्टी से सत्ता छीन ली। बता दें कि BJP पार्टी ने अभी तक दिल्ली के लिए किसी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। भाजपा 27 साल बाद राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में लौटी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP ने 22 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार एक भी सीट जीतने में विफल रही।
दिल्ली चुनाव 2025: बीजेपी की बड़ी जीत, 40 साल में पहली बार NCR में एक ही पार्टी की सरकार

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का भारतीय जनता पार्टी (BJP) का करीब 3 दशक पुराना सपना कल शनिवार को तब पूरा हो गया जब पार्टी ने 70 में से 48 सीटों पर कब्जा जमा लिया. आम आदमी पार्टी (22 सीट) को समेटते हुए बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है. यह जीत इस मायने में भी बेहद खास है क्योंकि 40 साल में पहली बार दिल्ली-NCR में आने वाले सभी राज्यों में किसी एक राजनीतिक दल की सरकार हो गई, साथ ही उत्तर भारत में आने वाले ज्यादातर राज्यों में डबल इंजन की सरकार आ गई है.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के साथ ही 4 दशक बाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र के साथ-साथ दिल्ली-NCR में शासन करने वाली पहली पार्टी बन गई है. बीजेपी साल 1985 के बाद पहली बार दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सभी नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) राज्यों पर भी राज करेगी. उत्तर भारत के अन्य राज्यों उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार है.

कितना बड़ा है दिल्ली-NCR

दिल्ली-NCR जो करीब 55,144 वर्ग किलोमीटर (Sq km) एरिया में फैला हुआ है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 46 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. यह देश के सबसे अहम आर्थिक गलियारों में से एक है. दिल्ली-NCR क्षेत्र में दिल्ली के अलावा नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे चर्चित औद्योगिक क्षेत्र आते हैं.

बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 1998 से ही दूर थी, लेकिन अब उसकी सत्ता देश की राजधानी में हो गई है. दिल्ली के अलावा राजधानी से सटे अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पहले से ही बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने जहां दिल्ली में 10 साल से अधिक समय से सत्ता में रही AAP सरकार को हटाया वहीं सटे 3 राज्यों में भी उसकी 5 साल से अधिक समय से सरकार चल रही है.

40 सालों में पहली बार डबल इंजन सरकार

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, राजस्थान में भजन लाल शर्मा और हरियाणा में नायब सिंह सैनी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. अब दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. पिछले 40 सालों से यह पहली बार होगा जब कोई एक पार्टी केंद्र समेत इन 4 राज्यों में शासन करने जा रही है.

इससे पहले 1985 में ऐसा आखिरी बार हुआ था जब सत्तारुढ़ पार्टी का केंद्र के साथ-साथ दिल्ली से सटे राज्यों में भी सरकार थी. केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस सबसे बड़ी जीत के साथ काबिज हुई थी. 1984 के दिसंबर में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और 400 से अधिक सीट जीतने में कामयाब रही.

1985 में क्या था माहौल

राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. फिर नए साल 1985 में देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इसी साल यूपी में भी चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल हुई और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने थे. इसी तरह राजस्थान में भी चुनाव हुए कांग्रेस को बड़ी जीत मिली. उसने तब बीजेपी को हराया. हरि देव जोशी मुख्यमंत्री बने.

इसी तरह हरियाणा में 1982 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी और 1985 के वक्त भजन लाल ही मुख्यमंत्री थे. तब दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश जरूर था, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था नहीं थी. 1992 में दिल्ली में पूर्ण विधानसभा की व्यवस्था बनी और 1993 में पहली बार चुनाव कराए गए थे.

किसलिए हुआ दिल्ली-NCR का गठन

1985 में यानी आज से 40 साल पहले उत्तराखंड अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, और यहां पर कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन 2025 में उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में देश के नक्शे पर है और यहां बीजेपी का शासन है. बीजेपी उत्तराखंड में भी लगातार दूसरी जीत के साथ सत्ता पर काबिज है. इसी तरह उत्तर भारत के अन्य राज्यों पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में गैर बीजपी पार्टी शासन कर रही है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (The National Capital Region Planning Board (NCRPB) की स्थापना 1985 में NCRPB एक्ट 1985 के तहत की गई थी. इसके गठन का मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास के लिए प्लानिंग करना, योजना के कार्यान्वयन को लेकर समन्वय करना था. साथ ही निगरानी करने, अव्यवस्थित विकास से बचने के लिए भूमि उपयोग नियंत्रण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सामंजस्यपूर्ण नीति भी तैयार करना शामिल था.

1985 के बाद अब दिल्ली समेत उससे सटे राज्यों में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी की सरकार आ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में अक्सर डबल इंजन वाली सरकार का जिक्र करते हैं. अब दिल्ली में भी बीजेपी की अगुवाई वाली डबल इंजन की सरकार आ गई है.

दिल्ली चुनाव में महिला उम्मीदवारों का कैसा रहा प्रदर्शन, जानें

दिल्ली चुनाव उलटफेर भरे परिणाम के साथ खत्म हो गया. भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल के सूखे को खत्म करते हुए सत्ता पर कब्जा जमा लिया है. चुनाव में कई अप्रत्याशित परिणाम भी आए जिनका असर लंबे समय तक दिल्ली की राजनीति में दिख सकता है. 2025 के चुनाव में दिल्ली में रिकॉर्ड संख्या में महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन जीत के मामले में उसकी किस्मत बहुत खास रही. चुनाव में खुद मुख्यमंत्री आतिशी को कालकाजी सीट से लगातार उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन अंत में उन्हें जीत मिली.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में अब तक 3 महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन जहां तक महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात है तो जमीनी हकीकत इसके उलट है. दिल्ली चुनाव में 70 विधानसभा सीटों पर 699 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महज 14 फीसदी उम्मीदवार महिलाएं थीं. दिल्ली में 96 महिलाओं ने अपनी दावेदारी पेश की थी. लेकिन सीएम आतिशी समेत महज 5 महिलाओं को ही जीत नसीब हो सकी.

AAP-कांग्रेस की सबसे अधिक महिला प्रत्याशी

दिल्ली के पूर्ण विधानसभा बनने के बाद इस चुनाव में सबसे अधिक महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 8 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, तो आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस दोनों ने 9-9 महिलाओं को मौका दिया था.

AAP और कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने कम महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. लेकिन सबसे अधिक जीत (4 सीट) उसी के खाते में आई. बीजेपी की ओर से 4 महिला तो AAP की ओर से एक महिला प्रत्याशी को जीत मिली है.

आतिशी-अरविंद के खिलाफ कई महिला प्रत्याशी

मौजूदा मुख्यमंत्री आतिशी ने कालकाजी सीट से कड़े मुकाबले में 3,521 मतों के अंतर से जीत हासिल की. यहां से 4 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं. कांग्रेस की अलका लांबा, भारतीय राष्ट्रवादी पार्टी की तान्या सिंह और भीम सेना की संघमित्रा ने भी अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. इसके अलावा चुनाव जीतने वाली अन्य 4 महिला प्रत्याशी बीजेपी की प्रत्याशी थीं. कांग्रेस का तो चुनाव में खाता तक नहीं खुला.

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं. वह इस बार भी इस सीट पर मैदान में उतरे थे, उनके खिलाफ सबसे अधिक 23 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें 4 महिला प्रत्याशी भी शामिल थीं. अनुराधा राणा, अनिता, डॉक्टर अभिलाषा और भावना निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इन 4 महिलाओं को कुल मिले वोटों को जोड़ दिया जाए तो इन्हें महज 169 वोट ही मिल सके थे. इन दोनों ही हाई प्रोफाइल सीटों पर 8 महिलाएं मैदान में उतरी थीं.

वजीरपुर सीट पर शीला को मिले महज 63 वोट

वजीरपुर सीट पर भी 3 महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महिला को ही जीत मिली. बीजेपी की पूनम शर्मा ने AAP के राजेश गुप्ता को 11 हजार से अधिक वोटों से हराया. कांग्रेस की रागिनी नायक तीसरे नंबर पर रहीं. गरीब एकता पार्टी की शीला देवी को महज 63 वोट मिले और सबसे नीचे रहीं.

इसी तरह ओखला से कांग्रेस की प्रत्याशी अरीबा खान को 12739 वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहीं. अरीबा कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान की बेटी हैं.

दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार महज 5 महिलाएं ही पहुंच सकी हैं. यहां के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो पिछले 3 दशकों में दिल्ली विधानसभा में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव आया जरूर लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार कम ही रहा है. 1993 से लेकर अब तक हुए 8 चुनावों में महज 2 बार (1998 और 2020) ही विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दहाई के आंकड़े को पार कर सका है.

1998 में मिली थी सबसे अधिक जीत

साल 1993 में, सिर्फ 3 महिलाएं विधानसभा के लिए चुनी गई थीं, जो विधानसभा का महज 4.3 फीसदी हिस्सा थीं. जबकि दिल्ली के इतिहास में साल 1998 सबसे अच्छा रहा क्योंकि इस चुनाव में सबसे अधिक 9 महिला प्रत्याशियों को जीत नसीब हुई थी. जो कुल सीटों का 12.9 फीसदी हिस्सा थीं. फिर दिल्ली की महिलाएं इस नंबर के करीब कभी नहीं आ सकीं.

आगे के चुनावों में महिलाएं इस संख्या को कभी छू भी नहीं सकीं. 2003 के चुनाव में 7 महिलाएं चुनी गईं, जबकि 2008 और 2013 में इस संख्या में तेजी से कमी आई और महज 3 ही रह गई. हालांकि 2015 के चुनाव में इस मामले में मामूली सुधार हुआ, और छह महिलाएं जीत हासिल करने में कामयाब रहीं.

1998 के बाद 2020 में बेस्ट प्रदर्शन

दिल्ली में हुए 2020 के चुनाव में इस संख्या में थोड़ा सा बदलाव हुआ और 8 महिला प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहीं, और यह कुल प्रतिनिधित्व का 11.4 फीसदी हिस्सा था. अब 2025 के चुनाव में यह आंकड़ा फिर सिमट गया. महज 5 महिला प्रत्याशी ही चुनाव जीत सकीं. विधानसभा में यह संख्या महज 7.1 फीसदी ही रहा. यह हाल तब है जब दिल्ली की कमान एक महिला के हाथों में थीं.

दिल्ली देश का अकेला ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है जिसने रिकॉर्ड 3 महिला मुख्यमंत्री दिए. 1998 में बीजेपी की सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. फिर कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद शीला दीक्षित 1998 में मुख्यमंत्री बनीं. वह लगातार 3 कार्यकाल यानी 15 साल तक मुख्यमंत्री बनीं रहीं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की राजनीतिक विफलता: एक विश्लेषण

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन खो दी, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी स्थिति मजबूत की। कांग्रेस, जो दिल्ली में एक समय प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी, अब अपनी पहचान बनाने में नाकाम रही। इस लेख में हम कांग्रेस की विफलता के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे और इसे भारतीय राजनीति के संदर्भ में समझेंगे।

1. नेतृत्व संकट और रणनीति की कमी

कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेतृत्व का संकट था। अरविंद सिंह लवली जैसे नेताओं के बावजूद, कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट और प्रभावशाली नेतृत्व नहीं था। AAP के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से गहरे स्तर पर जुड़कर प्रभावी नेतृत्व का उदाहरण पेश किया, जबकि कांग्रेस इससे पूरी तरह से चूक गई। पार्टी के भीतर कई आंतरिक मतभेद थे, जिससे न केवल एकजुटता की कमी महसूस हुई, बल्कि सही रणनीति भी लागू नहीं हो पाई।

2. स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देना

दिल्ली में मुद्दे स्थानीय स्तर पर अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे एयर पॉल्यूशन, जल संकट, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाएं। AAP ने इन मुद्दों को प्रमुखता दी और उन्हें चुनावी प्रचार का केंद्र बनाया। वहीं, कांग्रेस का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित था, जैसे बीजेपी की नीतियों की आलोचना, जो दिल्ली के स्थानीय समस्याओं से मेल नहीं खाती थी। परिणामस्वरूप, कांग्रेस दिल्ली के मतदाताओं के साथ सही तरीके से जुड़ने में नाकाम रही।

3. आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी

कांग्रेस पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी ने पार्टी की चुनावी ताकत को कमजोर कर दिया। पार्टी में कई बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ, और विभिन्न गुटों के बीच की लड़ाई ने कांग्रेस के प्रचार अभियान को प्रभावित किया। कांग्रेस का संगठन कमजोर था, जिससे पार्टी को अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत करने में कठिनाई हुई। यह कमजोरी पार्टी के दिल्ली चुनाव परिणामों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालने वाली थी।

4. AAP और BJP का मजबूत प्रभाव

AAP और BJP दोनों ने 2025 के दिल्ली चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूती से स्थापित किया। AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं को लेकर अपने वादों को महत्व दिया, जो दिल्ली के मतदाताओं के लिए आकर्षक थे। वहीं, बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय मुद्दों को दिल्ली के चुनावी मैदान में प्रभावी ढंग से रखा। कांग्रेस इन दोनों पार्टी के मुकाबले कहीं पीछे रह गई, क्योंकि पार्टी न तो स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दे पाई, और न ही प्रभावी प्रचार अभियान चला पाई।

5. कांग्रेस को पुनः समीक्षा और सुधार की आवश्यकता

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की विफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी को अपनी रणनीतियों और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है। कांग्रेस को एक स्पष्ट और प्रभावी नेतृत्व तैयार करना होगा, जो दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। इसके साथ ही, पार्टी को आंतरिक मतभेदों को समाप्त करके एकजुट होना होगा। यदि कांग्रेस इन बदलावों को स्वीकार कर सकती है, तो वह भविष्य में दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को फिर से पा सकती है। 

इस चुनाव ने यह भी दिखाया कि कांग्रेस को अपनी छवि और कार्यशैली को नए तरीके से प्रस्तुत करना होगा, ताकि वह दिल्ली के मतदाताओं के बीच फिर से विश्वास पैदा कर सके।

पंजाब में 'गुमनाम' विभागः20 महीने कागजों पर चला धालीवाल का मंत्रालय, जानें कैसे सच्ची आई सामने

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पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। इसी आम आदमी पार्टी की सरकार में एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां एक मंत्री के पास वो विभाग था जिसका अस्तित्व ही नहीं है। यह जानकारी खुद पंजाब सरकार के एक संशोधन से सामने आई है। संशोधन की जानकारी गजट नोटिफिकेशन के जरिए दी गई है। इसमें बताया गया है कि मंत्री कुलदीप धालीवाल के पास डिपार्टमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स और एनआईआई अफेयर्स था। जिनमें से डिपार्टमेंट ऑफ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स अस्तित्व में नहीं है।

एक दिन पहले ही भगवंत मान सरकार ने 21 अफसरों के ट्रांसफर करने के साथ-साथ मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल से प्रशासनिक सुधार मंत्रालय छीन लिया। अब यह जानकारी सामने आ रही है कि जिस प्रशासनिक सुधार मंत्रालय को धालीवाल से छीना गया है वो वास्‍तव में कहीं था ही नहीं। यह मंत्रालय केवल कागजों पर चल रहा था। सीएम भगवंत मान को 20 महीने बाद होश आया।

धालीवाल से अब तक कुल तीन विभाग वापिस लिए जा चुके हैं। इससे पहले ग्रामीण विकास एवं पंचायत और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग भी उनसे वापिस लिया गया था। कुलदीप सिंह धालीवाल के पास एनआरई मामलों के साथ प्रशासनिक सुधार मंत्रालय भी था, लेकिन अब करीब 20 महीने बाद पंजाब सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया है कि ये विभाग है ही नहीं करता है। सरकार ने आधिकारिक तौर पर ये मान लिया है कि इस तरीके के किसी विभाग का कोई अस्तित्व ही नहीं था।

प्रशासनिक सुधार मंत्रालय में ना किसी अफसर की नियुक्ति की गई थी और ना ही कोई कर्मचारी पंजाब सरकार के इस विभाग के अंतर्गत काम कर रहे थे। मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को प्रशासनिक सुधार मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था। अब पंजाब के राज्यपाल ने सीएम भगवंत मान की सलाह पर एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके तहत कहा गया है कि अब धालीवाल केवल एनआरआई मामलों के मंत्रालय को संभालेंगे। बताया जा रहा है कि 20 महीनों तक प्रशासनिक सुधार विभाग और एनआरआई विभाग कुलदीप सिंह धारीवाल के पास था।

इस बीच, विपक्षी दलों ने शनिवार को आप सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि आप सरकार शासन को लेकर कितनी गंभीर है। पंजाब भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा ने कहा, यह सरकार के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है कि एक ऐसा विभाग आवंटित किया गया है, जो अस्तित्व में नहीं है। उन्होंने कहा कि न तो इसे आवंटित करने वालों को, और न ही जिन्हें विभाग आवंटित किया गया था, उन्हें इस तथ्य की जानकारी थी कि यह विभाग अस्तित्व में नहीं है।

आतिशी और संजय सिंह को राहत, कोर्ट फीस नहीं चुकाने पर संदीप दीक्षित की मानहानि याचिका खारिज

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कार्यवाहक मुख्यमंत्री आतिशी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने आतिशी और संजय सिंह के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ दायर मानहानि के केस को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट में यह याचिका नई दिल्ली से कांग्रेस प्रत्याशी रहे संदीप दीक्षित ने दायर की थी. वहीं, केस की कोर्ट फीस नहीं भरने पर इसे खारिज कर दिया.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सिविल मानहानि केस की कोर्ट फीस जमा नहीं की है. इसलिए याचिका पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है. दरअसल संदीप दीक्षित ने 10 करोड़ के हर्जाने की मांग करते हुए सिविल मानहानि केस दायर किया था. याचिका में उनका कहना है कि आतिशी और संजय सिंह ने उन पर चुनाव के दौरान पैसे लेने और भाजपा से मिलीभगत करने का झूठा आरोप लगाया था.

क्या है पूरा मामला?

याचिका में कहा गया था कि आतिशी और संजय सिंह ने संदीप दीक्षित पर पैसे लेने और बीजेपी के साथ सांठगांठ करने का झूठा और बेबुनियाद आरोप लगाया. यह शिकायत 26 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आतिशी और संजय सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया गया था कि संदीप दीक्षित AAP को हराने के लिए बीजेपी से ‘करोड़ों रुपए’ लिए.

साथ ही याचिका में आतिशी पर प्रेस कॉन्फ्रेंस को अपने एक्स पर शेयर करने पर भी आपत्ति जताई गई थी. कैप्शन में लिखा था ‘कांग्रेस दिल्ली चुनाव में बीजेपी की मदद कर रही है’.व हीं, इसके बाद राउज एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 2 जनवरी की तारीख निर्धारित की थी. साथ ही आतिशी और संजय सिंह को एक कानूनी नोटिस भेज कर पोस्ट को हटाने को कहा गया था.

संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों हारे

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र सबेस हॉट सीटों में सुमार थी. यहां से तीन प्रमुख पार्टियों की ओर से बड़े-बड़े कद्दावर नेता मैदान में है. कांग्रेस से पूर्व सीएम शिला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित, आम आदमी पार्टी से राष्ट्रीय संयोजक औैर मुख्यमंत्री उम्मीदवार, पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और बीजेपी के पूर्व सांसद और दिल्ली के मुख्यमंत्री रहें साहिब सिंह के बेटे परवेश वर्मा चुनाव में थे.

हालाकिं, चुनाव में बीजेपी के परवेश वर्मा ने बाजी मारी, संदीप दीक्षित और अरविंद केजरीवाल को हार का सामन करन पड़ा. केजरीवाल साल 2013 से इस से विधायक थे. उससे पहले यहां से लगातार शिला दीक्षित जीत दर्ज करती रहीं थी. नई दिल्ली सीट पर बीजेपी के परवेश वर्मा ने कुल 4089 वोटों के अतर से केजरीवाल को हराया. प्ररवेश वर्मा को 30,088 और अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले. वहीं,. संदीप दीक्षित को कुल 4,568 वोट मिले.

रविंद्र नेगी ने मनीष सिसोदिया पर लगाया गंभीर बड़ा आरोप, वीडियो शेयर कर कहा- सोफा, AC, TV सब उठा ले गए

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दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए। जिसमें पिछले 11 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) की करारी हार हुई। वहीं बीजेपी 27 सालों के बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। एक तरह जहां दिल्ली में नए सीएम को लेकर हलचल तेज है दूसरी ओर बीजेपी विधायक ने पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर चोरी का गंभीर आरोप लगाए हैं।

पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज से मौजूदा भाजपा विधायक रविंद्र सिंह नेगी ने आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक और उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया पर बड़ा आरोप लगाया है। विधायक रविंद्र नेगी ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी से पटपड़गंज के पूर्व विधायक मनीष सिसोदिया ने चुनाव से पहले ही अपना असली चेहरा दिखा दिया था। उन्होंने अपनी पोस्ट में यह भी लिखा कि मनीष सिसोदिया विधानसभा कैंप कार्यालय से एसी, टीवी (AC,TV) टेबल, कुर्सी और पंखे जैसे सामान सब चुरा ले गए।

विधायक रविंद्र नेगी ने आगे लिखा कि इनकी भ्रष्टाचार की हदें अब भी पार नहीं हुईं। अब ये अपनी असलियत और चोरी छिपाने की राजनीति में माहिर हो गए हैं। हम जनता के हक की रक्षा करेंगे और ऐसे भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करेंगे। आगे कहा कि हम इस मामले में मनीष सिसोदिया को कानूनी नोटिस भेजने वाले हैं।

बता दें कि हाल ही में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। भाजपा ने 70 सीटों में से 48 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है। वहीं,आम आदमी पार्टी को सिर्फ 22 सीटें ही मिली हैं। उधर, भारतीय जनता पार्टी अब मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी में जुटी हुई है

निकाय चुनाव में दिखी आम आदमी पार्टी की धमक: पालिका अध्यक्ष सहित 4 वार्डों में जमाया कब्जा, बीजेपी-कांग्रेस को मात देकर हासिल की कुर्सी

बिलासपुर- छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव में हर ओर भाजपा का जादू चला तो वहीं कांग्रेस सभी 10 नगर निगमों में बुरी तरह से हार गई है. इस बीच बिलासपुर जिले में आम आदमी पार्टी (AAP) का जलवा देखने को मिला. बोदरी नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष पद पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया है. आप की प्रत्याशी नीलम विजय वर्मा ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीत लिया है.

इसके साथ ही यहां के 4 वार्डों में भी आप के प्रत्याशी जीतकर पार्षद बने हैं. आप की छत्तीसगढ़ में पहली बार इस जीत के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है.

बता दें कि इस पालिका के चुनाव में नवनिर्वाचित पालिका अध्यक्ष नीलम वर्मा के पति विजय वर्मा कांग्रेस से बागी होकर आम आदमी पार्टी की टिकट पर यहां से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा था, जिसमें उन्हें जीत मिली है.

बोदरी नगर पालिका परिषद के 15 वार्डों में से 9 वार्डों में भाजपा के प्रत्याशी विजयी रहे, जबकि 4 वार्डों में आम आदमी पार्टी और 2 वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत मिली है.

नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत, कांग्रेस का सूपड़ा साफ, 10 निगम, 49 पालिका और 114 नगर पंचायत का जानिए अंतिम परिणाम

रायपुर- छत्तीसगढ़ में हुए नगरीय निकाय चुनावों के नतीजे लगभग साफ हो चुके हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को करारी शिकस्त दी है। नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत तीनों ही निकायों में भाजपा का दबदबा देखने को मिला। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) को उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले, जबकि निर्दलीय प्रत्याशियों ने कुछ सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। आइए जानते हैं किस निकाय में किसे जीत मिली है।

नगर निगम चुनाव परिणाम

इस बार राज्य के कुल 10 नगर निगमों में भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज कर ली, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों का खाता भी नहीं खुल सका। भाजपा की इस प्रचंड जीत ने विपक्ष को करारा झटका दिया है।

नगर पालिका चुनाव परिणाम

नगर पालिका चुनावों में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया और कुल 49 में से 35 सीटों पर कब्जा जमाया। कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें मिलीं, जो तखतपुर, मुंगेली, कटघोरा, महासमुंद, बागबाहरा, सुरजपुर, मंदिर हसौद और अभनपुर में हासिल हुईं। आम आदमी पार्टी (AAP) को मात्र एक सीट (बोदरी) से संतोष करना पड़ा। वहीं, 5 सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों के खाते में गईं, जिनमें अहिवारा, सक्ती, पेंड्रा, अकलतरा और सिमगा शामिल हैं।

नगर पंचायत चुनाव परिणाम

नगर पंचायत चुनावों में भी भाजपा ने अपना परचम लहराया और कुल 114 सीटों में से 81 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं, जबकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) को सिर्फ 1 सीट हासिल हुई। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशियों ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की।

गौरतलब है कि इन चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत ने यह साबित कर दिया है कि राज्य की राजनीति में उसका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि वह अधिकांश सीटों पर हार गई। वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) की उम्मीदें भी धराशायी हो गईं, क्योंकि उन्हें सिर्फ एक सीट मिली। निर्दलीय प्रत्याशियों ने 15 सीटें जीतकर कुछ क्षेत्रों में अपनी मजबूती दिखाई। कुल मिलाकर, इन चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है।

दिल्ली में नॉन ऑफिशियल स्टाफ पर गिर सकती है गाज, मुख्य सचिव ने जारी किया नोटिस

दिल्ली के मुख्य सचिव ने दिल्ली सरकार के मातहत (अधीनस्थ) आने वाले सभी विभागों को इस बाबत एक नोटिस जारी किया है कि उनके यहां जितने भी नॉन ऑफिशियल स्टाफ है उनकी लिस्ट बनाई जाए और उसे लिस्ट को जल्द से जल्द सौंपी जाए. दरअसल, केजरीवाल सरकार में अलग-अलग विभागों में कई तरह के नॉन ऑफिशियल स्टाफ की नियुक्ति हुई थी यह नोटिस उसी को लेकर है.

संभव है नई सरकार के बनते के साथ ही दिल्ली सरकार में कार्यरत इन लोगों पर गाज गिरे और सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इन्हें नौकरी से हटाया भी जा सकता है. हाल ही में दिल्ली की सीएम आतिशी के ऑफिस में काम करने वाला शख्स 5 लाख कैश के साथ पकड़ा गया था. जिस शख्स को पकड़ा गया था, उसका नाम गौरव है. 5 लाख रुपये के साथ उसे गिरीखंड नगर में पकड़ा गया था.

केजरीवाल सरकार में बड़े पैमाने पर नॉन ऑफिशियल स्टाफ की नियुक्ति हुई थी. अब सरकार बदल गई है, केजरीवाल की सरकार से उसी की लिस्ट मांगी गई है. दिल्ली में बीजेपी को करीब 27 साल बाद प्रचंड जीत हासिल हुई है. भारतीय जनता पार्टी ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है.वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

आप के खाते में केवल 22 सीटें गई हैं. अब दिल्ली का नया मुख्यमंत्री कौन होगा. इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, 20 फरवरी से पहले दिल्ली के सीएम का शपथ ग्रहण समारोह की संभावना है.

केजरीवाल का ‘शीशमहल’ बनेगा सरकारी गेस्ट हाउस

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ‘शीशमहल’ अब सरकारी गेस्ट हाउस में तब्दील हो सकता है. दिल्ली सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बंगले को सरकारी गेस्ट हाउस बनाने का प्रस्ताव रखा है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद यह गेस्ट हाउस बन जाएगा. यह बंगला 6, फ्लैग स्टाफ रोड पर स्थित है और 9 साल तक केजरीवाल का निवास था. इस गेस्ट हाउस में सरकारी कार्यक्रम और आने वाले अधिकारियों के लिए ठहरने की सुविधा होगी. बीजेपी ने केजरीवाल के बंगले के नवीनीकरण पर विवाद उठाया था.

प्रचंड जीत के बाद BJP ने किया SIT गठन का ऐलान

दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बीजेपी ने SIT गठन का ऐलान किया है. बीजेपी ने नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) बनाने की घोषणा की है. दिल्ली भाजपा प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि पार्टी भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता रखती है और घोटालों में शामिल लोगों को जवाबदेह ठहराया जाएगा.

दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी भाजपा की डबल इंजन सरकार:केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल

डेस्क:–दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस परिणाम का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों में जनता के भरोसे को दिया जाता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली की जनता ने पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों पर भरोसा दिखाया है और जनता ने AAP के कुशासन को खत्म कर दिया है। भाजपा की डबल इंजन की सरकार दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी और यमुना नदी को साफ करेगी।

भाजपा सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी ने इस पल की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि दिल्ली के लोग दिवाली मना रहे हैं। लंबे समय के बाद दिल्ली में भाजपा की सरकार बन रही है। दिल्ली के लोग एक समृद्ध और विकसित दिल्ली का सपना देखते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में दिल्ली की जनता का यह सपना पूरा होगा। भाजपा नेता गौरव वल्लभ ने भी चुनाव परिणामों पर अपनी राय रखी और कहा कि दिल्ली की जनता ने दिल्ली में भ्रष्टाचार करने वाले सभी लोगों को परास्त कर दिया है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने "ऐतिहासिक" जीत दर्ज की, 70 में से 48 सीटें जीतीं और आम आदमी पार्टी से सत्ता छीन ली। बता दें कि BJP पार्टी ने अभी तक दिल्ली के लिए किसी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। भाजपा 27 साल बाद राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में लौटी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP ने 22 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार एक भी सीट जीतने में विफल रही।
दिल्ली चुनाव 2025: बीजेपी की बड़ी जीत, 40 साल में पहली बार NCR में एक ही पार्टी की सरकार

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का भारतीय जनता पार्टी (BJP) का करीब 3 दशक पुराना सपना कल शनिवार को तब पूरा हो गया जब पार्टी ने 70 में से 48 सीटों पर कब्जा जमा लिया. आम आदमी पार्टी (22 सीट) को समेटते हुए बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है. यह जीत इस मायने में भी बेहद खास है क्योंकि 40 साल में पहली बार दिल्ली-NCR में आने वाले सभी राज्यों में किसी एक राजनीतिक दल की सरकार हो गई, साथ ही उत्तर भारत में आने वाले ज्यादातर राज्यों में डबल इंजन की सरकार आ गई है.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के साथ ही 4 दशक बाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र के साथ-साथ दिल्ली-NCR में शासन करने वाली पहली पार्टी बन गई है. बीजेपी साल 1985 के बाद पहली बार दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सभी नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) राज्यों पर भी राज करेगी. उत्तर भारत के अन्य राज्यों उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार है.

कितना बड़ा है दिल्ली-NCR

दिल्ली-NCR जो करीब 55,144 वर्ग किलोमीटर (Sq km) एरिया में फैला हुआ है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 46 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. यह देश के सबसे अहम आर्थिक गलियारों में से एक है. दिल्ली-NCR क्षेत्र में दिल्ली के अलावा नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे चर्चित औद्योगिक क्षेत्र आते हैं.

बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 1998 से ही दूर थी, लेकिन अब उसकी सत्ता देश की राजधानी में हो गई है. दिल्ली के अलावा राजधानी से सटे अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पहले से ही बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने जहां दिल्ली में 10 साल से अधिक समय से सत्ता में रही AAP सरकार को हटाया वहीं सटे 3 राज्यों में भी उसकी 5 साल से अधिक समय से सरकार चल रही है.

40 सालों में पहली बार डबल इंजन सरकार

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, राजस्थान में भजन लाल शर्मा और हरियाणा में नायब सिंह सैनी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. अब दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. पिछले 40 सालों से यह पहली बार होगा जब कोई एक पार्टी केंद्र समेत इन 4 राज्यों में शासन करने जा रही है.

इससे पहले 1985 में ऐसा आखिरी बार हुआ था जब सत्तारुढ़ पार्टी का केंद्र के साथ-साथ दिल्ली से सटे राज्यों में भी सरकार थी. केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस सबसे बड़ी जीत के साथ काबिज हुई थी. 1984 के दिसंबर में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और 400 से अधिक सीट जीतने में कामयाब रही.

1985 में क्या था माहौल

राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. फिर नए साल 1985 में देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इसी साल यूपी में भी चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल हुई और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने थे. इसी तरह राजस्थान में भी चुनाव हुए कांग्रेस को बड़ी जीत मिली. उसने तब बीजेपी को हराया. हरि देव जोशी मुख्यमंत्री बने.

इसी तरह हरियाणा में 1982 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी और 1985 के वक्त भजन लाल ही मुख्यमंत्री थे. तब दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश जरूर था, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था नहीं थी. 1992 में दिल्ली में पूर्ण विधानसभा की व्यवस्था बनी और 1993 में पहली बार चुनाव कराए गए थे.

किसलिए हुआ दिल्ली-NCR का गठन

1985 में यानी आज से 40 साल पहले उत्तराखंड अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, और यहां पर कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन 2025 में उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में देश के नक्शे पर है और यहां बीजेपी का शासन है. बीजेपी उत्तराखंड में भी लगातार दूसरी जीत के साथ सत्ता पर काबिज है. इसी तरह उत्तर भारत के अन्य राज्यों पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में गैर बीजपी पार्टी शासन कर रही है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (The National Capital Region Planning Board (NCRPB) की स्थापना 1985 में NCRPB एक्ट 1985 के तहत की गई थी. इसके गठन का मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास के लिए प्लानिंग करना, योजना के कार्यान्वयन को लेकर समन्वय करना था. साथ ही निगरानी करने, अव्यवस्थित विकास से बचने के लिए भूमि उपयोग नियंत्रण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सामंजस्यपूर्ण नीति भी तैयार करना शामिल था.

1985 के बाद अब दिल्ली समेत उससे सटे राज्यों में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी की सरकार आ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में अक्सर डबल इंजन वाली सरकार का जिक्र करते हैं. अब दिल्ली में भी बीजेपी की अगुवाई वाली डबल इंजन की सरकार आ गई है.

दिल्ली चुनाव में महिला उम्मीदवारों का कैसा रहा प्रदर्शन, जानें

दिल्ली चुनाव उलटफेर भरे परिणाम के साथ खत्म हो गया. भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल के सूखे को खत्म करते हुए सत्ता पर कब्जा जमा लिया है. चुनाव में कई अप्रत्याशित परिणाम भी आए जिनका असर लंबे समय तक दिल्ली की राजनीति में दिख सकता है. 2025 के चुनाव में दिल्ली में रिकॉर्ड संख्या में महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन जीत के मामले में उसकी किस्मत बहुत खास रही. चुनाव में खुद मुख्यमंत्री आतिशी को कालकाजी सीट से लगातार उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन अंत में उन्हें जीत मिली.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में अब तक 3 महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन जहां तक महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात है तो जमीनी हकीकत इसके उलट है. दिल्ली चुनाव में 70 विधानसभा सीटों पर 699 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महज 14 फीसदी उम्मीदवार महिलाएं थीं. दिल्ली में 96 महिलाओं ने अपनी दावेदारी पेश की थी. लेकिन सीएम आतिशी समेत महज 5 महिलाओं को ही जीत नसीब हो सकी.

AAP-कांग्रेस की सबसे अधिक महिला प्रत्याशी

दिल्ली के पूर्ण विधानसभा बनने के बाद इस चुनाव में सबसे अधिक महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 8 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, तो आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस दोनों ने 9-9 महिलाओं को मौका दिया था.

AAP और कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने कम महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. लेकिन सबसे अधिक जीत (4 सीट) उसी के खाते में आई. बीजेपी की ओर से 4 महिला तो AAP की ओर से एक महिला प्रत्याशी को जीत मिली है.

आतिशी-अरविंद के खिलाफ कई महिला प्रत्याशी

मौजूदा मुख्यमंत्री आतिशी ने कालकाजी सीट से कड़े मुकाबले में 3,521 मतों के अंतर से जीत हासिल की. यहां से 4 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं. कांग्रेस की अलका लांबा, भारतीय राष्ट्रवादी पार्टी की तान्या सिंह और भीम सेना की संघमित्रा ने भी अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. इसके अलावा चुनाव जीतने वाली अन्य 4 महिला प्रत्याशी बीजेपी की प्रत्याशी थीं. कांग्रेस का तो चुनाव में खाता तक नहीं खुला.

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं. वह इस बार भी इस सीट पर मैदान में उतरे थे, उनके खिलाफ सबसे अधिक 23 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें 4 महिला प्रत्याशी भी शामिल थीं. अनुराधा राणा, अनिता, डॉक्टर अभिलाषा और भावना निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इन 4 महिलाओं को कुल मिले वोटों को जोड़ दिया जाए तो इन्हें महज 169 वोट ही मिल सके थे. इन दोनों ही हाई प्रोफाइल सीटों पर 8 महिलाएं मैदान में उतरी थीं.

वजीरपुर सीट पर शीला को मिले महज 63 वोट

वजीरपुर सीट पर भी 3 महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महिला को ही जीत मिली. बीजेपी की पूनम शर्मा ने AAP के राजेश गुप्ता को 11 हजार से अधिक वोटों से हराया. कांग्रेस की रागिनी नायक तीसरे नंबर पर रहीं. गरीब एकता पार्टी की शीला देवी को महज 63 वोट मिले और सबसे नीचे रहीं.

इसी तरह ओखला से कांग्रेस की प्रत्याशी अरीबा खान को 12739 वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहीं. अरीबा कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान की बेटी हैं.

दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार महज 5 महिलाएं ही पहुंच सकी हैं. यहां के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो पिछले 3 दशकों में दिल्ली विधानसभा में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव आया जरूर लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार कम ही रहा है. 1993 से लेकर अब तक हुए 8 चुनावों में महज 2 बार (1998 और 2020) ही विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दहाई के आंकड़े को पार कर सका है.

1998 में मिली थी सबसे अधिक जीत

साल 1993 में, सिर्फ 3 महिलाएं विधानसभा के लिए चुनी गई थीं, जो विधानसभा का महज 4.3 फीसदी हिस्सा थीं. जबकि दिल्ली के इतिहास में साल 1998 सबसे अच्छा रहा क्योंकि इस चुनाव में सबसे अधिक 9 महिला प्रत्याशियों को जीत नसीब हुई थी. जो कुल सीटों का 12.9 फीसदी हिस्सा थीं. फिर दिल्ली की महिलाएं इस नंबर के करीब कभी नहीं आ सकीं.

आगे के चुनावों में महिलाएं इस संख्या को कभी छू भी नहीं सकीं. 2003 के चुनाव में 7 महिलाएं चुनी गईं, जबकि 2008 और 2013 में इस संख्या में तेजी से कमी आई और महज 3 ही रह गई. हालांकि 2015 के चुनाव में इस मामले में मामूली सुधार हुआ, और छह महिलाएं जीत हासिल करने में कामयाब रहीं.

1998 के बाद 2020 में बेस्ट प्रदर्शन

दिल्ली में हुए 2020 के चुनाव में इस संख्या में थोड़ा सा बदलाव हुआ और 8 महिला प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहीं, और यह कुल प्रतिनिधित्व का 11.4 फीसदी हिस्सा था. अब 2025 के चुनाव में यह आंकड़ा फिर सिमट गया. महज 5 महिला प्रत्याशी ही चुनाव जीत सकीं. विधानसभा में यह संख्या महज 7.1 फीसदी ही रहा. यह हाल तब है जब दिल्ली की कमान एक महिला के हाथों में थीं.

दिल्ली देश का अकेला ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है जिसने रिकॉर्ड 3 महिला मुख्यमंत्री दिए. 1998 में बीजेपी की सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. फिर कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद शीला दीक्षित 1998 में मुख्यमंत्री बनीं. वह लगातार 3 कार्यकाल यानी 15 साल तक मुख्यमंत्री बनीं रहीं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की राजनीतिक विफलता: एक विश्लेषण

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक जमीन खो दी, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी स्थिति मजबूत की। कांग्रेस, जो दिल्ली में एक समय प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी, अब अपनी पहचान बनाने में नाकाम रही। इस लेख में हम कांग्रेस की विफलता के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे और इसे भारतीय राजनीति के संदर्भ में समझेंगे।

1. नेतृत्व संकट और रणनीति की कमी

कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेतृत्व का संकट था। अरविंद सिंह लवली जैसे नेताओं के बावजूद, कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट और प्रभावशाली नेतृत्व नहीं था। AAP के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से गहरे स्तर पर जुड़कर प्रभावी नेतृत्व का उदाहरण पेश किया, जबकि कांग्रेस इससे पूरी तरह से चूक गई। पार्टी के भीतर कई आंतरिक मतभेद थे, जिससे न केवल एकजुटता की कमी महसूस हुई, बल्कि सही रणनीति भी लागू नहीं हो पाई।

2. स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देना

दिल्ली में मुद्दे स्थानीय स्तर पर अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे एयर पॉल्यूशन, जल संकट, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाएं। AAP ने इन मुद्दों को प्रमुखता दी और उन्हें चुनावी प्रचार का केंद्र बनाया। वहीं, कांग्रेस का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित था, जैसे बीजेपी की नीतियों की आलोचना, जो दिल्ली के स्थानीय समस्याओं से मेल नहीं खाती थी। परिणामस्वरूप, कांग्रेस दिल्ली के मतदाताओं के साथ सही तरीके से जुड़ने में नाकाम रही।

3. आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी

कांग्रेस पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे आंतरिक मतभेद और संगठनात्मक कमजोरी ने पार्टी की चुनावी ताकत को कमजोर कर दिया। पार्टी में कई बार नेतृत्व परिवर्तन हुआ, और विभिन्न गुटों के बीच की लड़ाई ने कांग्रेस के प्रचार अभियान को प्रभावित किया। कांग्रेस का संगठन कमजोर था, जिससे पार्टी को अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत करने में कठिनाई हुई। यह कमजोरी पार्टी के दिल्ली चुनाव परिणामों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालने वाली थी।

4. AAP और BJP का मजबूत प्रभाव

AAP और BJP दोनों ने 2025 के दिल्ली चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूती से स्थापित किया। AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं को लेकर अपने वादों को महत्व दिया, जो दिल्ली के मतदाताओं के लिए आकर्षक थे। वहीं, बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय मुद्दों को दिल्ली के चुनावी मैदान में प्रभावी ढंग से रखा। कांग्रेस इन दोनों पार्टी के मुकाबले कहीं पीछे रह गई, क्योंकि पार्टी न तो स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दे पाई, और न ही प्रभावी प्रचार अभियान चला पाई।

5. कांग्रेस को पुनः समीक्षा और सुधार की आवश्यकता

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस की विफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी को अपनी रणनीतियों और नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता है। कांग्रेस को एक स्पष्ट और प्रभावी नेतृत्व तैयार करना होगा, जो दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। इसके साथ ही, पार्टी को आंतरिक मतभेदों को समाप्त करके एकजुट होना होगा। यदि कांग्रेस इन बदलावों को स्वीकार कर सकती है, तो वह भविष्य में दिल्ली में अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को फिर से पा सकती है। 

इस चुनाव ने यह भी दिखाया कि कांग्रेस को अपनी छवि और कार्यशैली को नए तरीके से प्रस्तुत करना होगा, ताकि वह दिल्ली के मतदाताओं के बीच फिर से विश्वास पैदा कर सके।