*क्या रूस और चीन की दोस्ती में दरार लाने की कोशिश में हैं ट्रंप?*
अमेरिका और रूस को दो ध्रुव कहा जाता रहा है। ये दोनों देश खुद को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। जिसने इन दोनों देशों को आमने-सामने लगाकर खड़ा कर दिया। हालांकि, बीते कुछ समय में इस तरह के हालात पैदा हुए है, जिससे पूरी दुनिया हैरान है। अमेरिका और रूस करीब आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दशकों पुरानी अमेरिकी विदेश नीति से उलट, रूस के करीब जा रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं क्या अमेरिका एक बड़ी नई रणनीति पर काम कर रहा है? क्या ये रूस को चीन से दूर करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है?
चीन और रूस के बीच संबंधों में गर्मजोशी कोई छुपी बात नहीं है। यूक्रेन पर हमले के कुछ हफ़्ते पहले रूस और चीन ने अपने संबंधों को सीमाओं से परे बताया था। युद्ध के दौरान जब रूस पश्चिम के कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहा था तो चीन से पुतिन को मदद मिलती रही। लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने यूक्रेन के मामले में अपनी नीति में जो यू-टर्न लिया है, उसे चीन को असहज करने वाला बताया जा रहा है। यूक्रेन-रूस जंग में चीन, ईरान और उत्तर कोरिया की क़रीबी बढ़ी है। ट्रंप को लगता है कि अमेरिका की गलत नीतियों के कारण ऐसा हुआ है।
अब, ट्रंप प्रशासन रूस के करीब जाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के इस कदम ने न केवल यूरोपीय सहयोगियों को चिंतित कर दिया है, बल्कि चीन में भी हलचल मचा दी है। चीन और रूस के बीच की बढ़ती साझेदारी को कमजोर करने की ट्रंप की कोशिशें यह दिखाती हैं कि वाशिंगटन अब चीन को सबसे बड़ा खतरा मान रहा है। जानकारों की मानें तो रूस की तरफ अमेरिका का झुकाव, एक बड़े रणनीतिक खेल का हिस्सा है। ट्रंप की इस योजना को ‘रिवर्स निक्सन’ कहा जा रहा है। यह वही रणनीति है, जिसका इस्तेमाल 1970 के दशक में अमेरिका ने सोवियत संघ को कमजोर करने के लिए किया था।
*क्या है ‘रिवर्स निक्सन’?*
रिचर्ड निक्सन 1969 से 1974 तक अमेरिका के राष्ट्रपति थे। निक्सन के कार्यकाल को शीत युद्ध की मानसिकता से निकल कम्युनिस्ट शासन वाले देशों से संबंध ठीक करने के रूप में भी देखा जाता है। रिचर्ड निक्सन ने हेनरी किसिंजर को विदेश मंत्री बनाया था। किसिंजर चीन से संबंध सामान्य करने के हिमायती थे। तब किसिंजर को लगता था कि चीन से संबंध सामान्य कर सोवियत यूनियन और चीन के बीच दरार का फायदा उठाना चाहिए।यह वही समय था, जब चीन और सोवियत संघ में सीमा पर तनाव चल रहा था। निक्सन ने सोवियत यूनियन और चीन के बीच दरार को मौक़े के रूप में देखा था। अब रूस-चीन की दोस्ती इतनी मजबूत हो गई है कि ट्रंप इसे तोड़कर अमेरिका के लिए मौके के रूप में देख रहे हैं। निक्सन और ट्रंप में कई समानताएं हैं। रिचर्ड निक्सन भी रिपब्लिकन पार्टी से थे और ट्रंप भी इसी पार्टी से हैं। निक्सन भी हार्डलाइनर दक्षिणपंथी थे और ट्रंप भी ऐसे ही हैं। निक्सन भी रूस और चीन के बीच दरार का फ़ायदा उठाना चाहते थे और ट्रंप भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं।
*क्या चीन और रूस को अलग कर सकते हैं ट्रंप?* हेनरी किसिंजर ने ट्रंप को पहले कार्यकाल में सलाह दी थी कि चीन को अलग-थलग करने के लिए रूस से संबंध सुधारना चाहिए। कहा जाता है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में रूस के साथ ऐसा नहीं कर पाए थे क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रंप को पुतिन की कठपुतली कहना शुरू कर दिया था। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल अक्तूबर में टकर कार्लसन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि एक चीज़ जो आप कभी नहीं चाहेंगे कि हो, वो है रूस और चीन का एक साथ आना। ट्रंप ने कहा था, मैं दोनों को अलग करने जा रहा हूँ और मुझे लगता है कि मैं ये कर सकता हूँ। यह हमारी मूर्खता है कि हमने चीन और रूस को एक साथ कर दिया।
*लगातार रूस का समर्थन*
रूस को लेकर सबसे बड़ा बदलाव 12 फरवरी को देखने को मिला, जब ट्रंप ने राष्ट्रपति पुतिन के साथ 90 मिनट तक फोन पर बात की। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर ज़ेलेंस्की पर शांति समझौते पर सहमत होने के लिए दबाव डाला और अमेरिका की ओर से बिना कोई सुरक्षा गारंटी दिए यूक्रेन के इलाके को रूस के हवाले करने की अपील की।ट्रंप ने यह भी कहा कि जंग के बाद यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं बन पाएगा। यही नहीं, यूक्रेन जंग शुरू होने की तीसरी वर्षगांठ पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में भी अमेरिका ने रूस का पक्ष लिया था। अमेरिका ने इस दौरान रूस की निंदा करने से इनकार किया था।
*चीन को क्या हो सकता है नुकसान?*
बीजिंग और मॉस्को का रिश्ता पिछले कुछ सालों में मजबूत हुआ है। रूस, चीन के लिए ऊर्जा का बड़ा स्रोत है और दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग भी बढ़ा है। लेकिन ट्रंप की ‘रिवर्स निक्सन’ नीति इन संबंधों को प्रभावित कर सकती है। अगर अमेरिका रूस को चीन से अलग करने में सफल हो जाता है, तो चीन न केवल भू-राजनीतिक रूप से कमजोर हो जाएगा, बल्कि उसे पश्चिमी देशों से और ज्यादा दबाव का सामना करना पड़ेगा। चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है। अगर रूस अमेरिका की तरफ झुकता है, तो चीन के लिए सस्ते तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
Mar 18 2025, 18:45