एस जयशंकर का पाकिस्तान दौरा, क्या बोली पाकिस्तानी मीडिया?

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भारत के विदेश मंत्री मंगलवार को एससीओ समिट में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद पहुंचे थे। बैठक में हिस्सा लेने और पाकिस्तान में करीब 24 घंटे गुजारने के बाद वह बुधवार को वापस लौट आए। इस दौरान जयशंकर की पाक नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई लेकिन पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और दूसरे नेताओं से उनकी अनौपचारिक बातचीत जरूर हुई। जयशंकर ने इस्लामाबाद से दिल्ली लौटते हुए मेहमाननवाजी के लिए शहबाज शरीफ और पाक सरकार का शुक्रिया भी अदा किया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर के पाकिस्तान दौरे की खूब चर्चा है।पाकिस्तान के मीडिया में जयंशकर को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने एस जयशंकर और शहबाज शरीफ की मुलाकात पर प्रकाशित अपनी खबर को शीर्षक दिया है- एक दशक की चुप्पी के बाद, एससीओ शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान और भारत ने 20 सेकंड का संक्षिप्त मुलाकात की है।अखबार ने डिनर से पहले दोनों नेताओं के हाथ मिलाने के संदर्भ में लिखा, 'दोनों नेताओं ने 20 सेकंड से भी कम समय तक चली संक्षिप्त मुलाकात में हाथ मिलाया और एक-दूसरे का अभिवादन किया।'

पाकिस्तान ने न्यूज नेटवर्क जिओ टीवी ने अपनी जयशंकर के पाकिस्तान दौरे को दुर्लभ दौरा बताया है। जिओ टीवी ने लिखा है, 'जयशंकर मंगलवार दोपहर इस्लामाबाद के नजदीक एक एयरबेस पर पहुंचे, जहां उनका स्वागत एक निम्न स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने किया, जबकि बाकी नेताओं का स्वागत वरिष्ठ मंत्रियों ने किया था। उनके आने के कुछ घंटे बाद उनका स्वागत पीएम शहबाज शरीफ ने किया जिस दौरान दोनों नेताओं ने हाथ मिलाए। इस दौरान दोनों के चेहरों पर गंभीर भाव थे।

जिओ न्यूज ने शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी पर पूर्व राजदूत मलीहा लोधी के हवाले से लिखा, 'मेरा मानना है कि भारतीय विदेश मंत्री के बहुपक्षीय दौरे से भारत और पाकिस्तान के बीच बर्फ नहीं पिघलेगी। हमारा गतिरोध बहुत गहरा है और इस तरह की बैठक से स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता। 

बता दें कि विदेश मंत्री जयशंकर 8 साल 10 महीने बाद पाकिस्तान जाने वाले भारत के पहले नेता हैं। इसलिए भी ये दौरा खास है। उनसे पहले 25 दिसंबर 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के दौरे पर गए थे। तब मोदी एक सरप्राइज विजिट पर लाहौर पहुंचे थे। उन्होंने पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात की थी। उनके इस दौरे के बाद से भारत के किसी भी प्रधानमंत्री या मंत्री ने पाकिस्तान की यात्रा नहीं की है।

मोदी के दौरे के एक साल बाद ही 2016 में 4 आतंकी उरी में भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर में घुस गए थे। इस हमले में भारतीय सेना के 19 जवान शहीद हो गए थे। तब से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया था। 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते और खराब हो गए। हालांकि इन सब के बावजूद पिछले साल गोवा में एससीओ देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भारत आए थे।

भारत-कनाडा विवादःजानें क्या है कनाडा के इन दोस्तों का रूख

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भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंध सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। कनाडा ने एक बार फिर आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के अधिकारियों का हाथ है। इन आरोपों के बाद कनाडा और भारत के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गया है। दोनों देशों ने एकदूसरे के कई टॉप राजनयिकों को निकाल दिया है। 

भारत के साथ बढ़ते विवाद के बीच ट्रूडो ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें कहा कि निज्जर हत्याकांड में भारतीय एजेंट्स की संलिप्तता को लेकर कनाडा ने अपने फाइव आईज के सभी सहयोगियों के साथ जानकारी साझा की है।फाइव आईज अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का खुफिया संगठन है।

अमेरिका ने क्या कहा?

इस बीच,अमेरिका ने भारत और कनाडा के बीच विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।अमेरिका ने कहा है कि भारत को निज्जर हत्याकांड के मामले में कनाडा की ओर से लगाए जा रहे आरोपों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने मंगलवार को कहा कि भारत पर लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं।मिलर ने कहा, हम चाहते हैं कि भारत सरकार कनाडा के साथ जांच में मदद करे। निश्चित तौर पर उन्होंने ऐसा नहीं किया है। उन्होंने वैकल्पिक रास्ता चुना है।

भारत और कनाडा दोनों अमेरिका के अहम सहयोगी देश हैं। लेकिन इस मामले में फिलहाल अमेरिका कनाडा का साथ देता नज़र आ रहा है। पिछले साल सितंबर में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रूडो ने अपने देश की संसद में भारत के 'एजेंटों' पर निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप लगाए थे। उस समय भी अमेरिका ने भारत से इसकी जांच में सहयोग करने की अपील की थी।

न्यूजीलैंड ने बरती सतर्कता

फाइव आईज सहयोगी न्यूजीलैंड ने भारत-कनाडा राजनयिक तनाव के बीच कनाडा का समर्थन किया है लेकिन भारत के खिलाफ टिप्पणी नहीं की है। न्यूजीलैंड के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा है कि अगर आरोप सिद्ध हो जाए तो बहुत चिंताजनक होगा।हालांकि, मंत्री ने अपने बयान में भारत का नाम नहीं लिया है और बड़ी ही सतर्कता से न्यूजीलैंड का पक्ष रखा है।

विंस्टन पीटर्स ने एक्स पर लिखा, 'कनाडा ने न्यूजीलैंड को अपने दक्षिण एशियाई समुदाय के लोगों के खिलाफ हिंसा और उन्हें मिल रही धमकियों के संबंध में चल रही आपराधिक जांच के बारे में हमें जानकारी दी है। कनाडा के आरोप अगर सिद्ध होते हैं बहुत चिंताजनक होगा।साथ ही, हम न्यूजीलैंड या विदेश में चल रही आपराधिक जांच पर टिप्पणी नहीं करते हैं, लेकिन हम कहना चाहेंगे कि यह महत्वपूर्ण है कि कानून के शासन और न्यायिक प्रक्रियाओं का सम्मान किया जाए और उनका पालन किया जाए।

ब्रिटेन ने क्या कहा?

जस्टिन ट्रूडो ने इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए सोमवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर को फोन किया था। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक़ इस बातचीत के दौरान स्टार्मर ने 'रूल ऑफ लॉ’ को अहमियत देने की बात की। हालांकि ब्रिटेन की ओर से जारी इस बयान में भारत का सीधा संदर्भ नहीं दिया गया था लेकिन इसमें भारत पर लगाए गए आरोपों की कनाडा में चल रही जांच का ज़िक्र है। दोनों ने निज्जर हत्याकांड की जांच का निष्कर्ष सामने आने तक एक दूसरे के संपर्क में रहने का वादा किया।

ऑस्ट्रेलिया ने साफ किया अपना रुख़

ऑस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में अपना रुख़ साफ कर दिया है। फाइव आइज़ अलायंस के सदस्य देशों में शामिल ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने हालांकि मंगलवार को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान भारत-कनाडा के बीच विवाद सवालों के जवाब नहीं दिए। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामले और व्यापार मंत्रालय ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया कनाडा में चल रही जांच से जुड़े आरोपों की जांच और वहां की न्यायिक प्रक्रिया पर अपना नजरिया बता दिया है। मंत्रालय ने एक्स पर लिखा, "हमारा सिद्धांत ये है कि सभी देशों की संप्रभुता कानून के नियमों का सम्मान होना चाहिए।''

पराली जलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-मुकदमा चलाने से क्यों कतरा रहे?

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देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास रहने वालों पर फिर प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने वालों के खिलाफ सख्ती न बरतने पर पंजाब और हरियाणा सरकार पर नाराजगी जाहिर की है।सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के दोषी पाए गए अधिकारियों पर मुकदमा नहीं चलाने पर बुधवार को हरियाणा और पंजाब सरकारों को फटकार लगाई। साथ ही राज्य के मुख्य सचिवों को 23 अक्तूबर को पेश होने और स्पष्टीकरण देने को कहा।

जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि पराली जलाने की घटनाओं के खिलाफ एक भी मुकदमा नहीं चलाया गया है, जबकि अदालत ने पहले भी ऐसी चूक के लिए पंजाब और हरियाणा को फटकार लगाई थी।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने पर हरियाणा और पंजाब सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को निर्देश दिया। पीठ ने कहा, यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है। अगर मुख्य सचिव किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं तो हम उनके खिलाफ भी समन जारी करेंगे। अगले बुधवार को हम मुख्य सचिव को बुलाकर सारी बातें पूछेंगे। कुछ नहीं किया गया है, पंजाब सरकार ने भी ऐसा ही किया। यह रवैया पूरी तरह से अवहेलना करने का है।

बेंच ने सख्त लहजे में कहा, इसरो आपको पराली जलाए जाने की रियल टाइम जानकारी देता है लेकिन आपके अधिकारी यह लिख देते हैं कि उन्हें उस जगह पर ऐसा कुछ नहीं दिखा। सिर्फ दिखावे के लिए कुछ लोगों पर थोड़ा सा जुर्माना लगा दिया जाता है। इससे साफ नजर आता है कि आप लोग कार्रवाई करना ही नहीं चाहते।

कोर्ट ने आगे कहा कि हर साल अक्टूबर-नवंबर में पराली जलाना दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की बड़ी वजह बनता है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) एक्ट की धारा 14 में प्रदूषण करने वालों की गिरफ्तारी, सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन पंजाब और हरियाणा ने आज तक किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की है। पिछले तीन वर्षों में आपने एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है। CAQM का कहना है कि 2021 में अपने गठन के बाद से उसने दोनों राज्यों को कई बार निर्देश जारी किए, पर उन्होंने उसकी उपेक्षा कर दी।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशों को लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं करने पर CAQM की खिंचाई की। सुप्रीम कोर्ट ने CAQM के सदस्यों की पर्यावरण से जुड़े मामलों में विशेषज्ञता पर भी सवाल उठाया। कोर्ट ने जानकारी मांगी है कि क्या विशेषज्ञ संस्थाओं के प्रतिनिधि भी बैठक में शामिल हो सकते हैं। कोर्ट ने पिछली बैठक में 7 सदस्यों के उपस्थित न रहने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि ऐसे सदस्यों को कमीशन से हटा देना बेहतर होगा।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के खतरे से निपटने के लिए CAQM को अधिक सक्रिय होने की जरूरत है।

'साउथ चाइना सी' को लेकर मुखर भारत, जानें चीन को क्यों गुजरेगी नागवार

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पश्चिमी प्रशांत सागर का साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन सागर बीते कई सालों से चर्चा में है। इस इलाक़े को चीन अपना कहता है। साउथ चाइना सी एक ऐसा इलाका जहां विस्तारवादी चीन अपनी धौंस दिखाता रहता है। आस-पास के देशों को आए दिन परेशान करता रहता है। एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वो यहां कृत्रिम द्वीप बना रहा है। कम से कम तीन द्वीपों का सैन्यीकरण कर चुका है। यहां, मामला केवल चीन का होता तो विवाद नहीं था लेकिन साउथ चाइना सी के आसपास के देश भी इसके कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं। 

इस बीच अभी हाल ही में संपन्न आसियान-भारत सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र के देशों के भौगोलिक संप्रभुता को समर्थन दिया। ईस्ट एशिया सम्मेलन में पीएम मोदी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाईना सी को लेकर वह सारी बातें कहीं, जो इस क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपना रहे चीन को नागवार गुजर सकती है।

साउथ चाइना सी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का नाम लिए बिना बड़ी नसीहत दी। मोदी ने समूचे हिंद प्रशांत क्षेत्र को कानून सम्मत बनाते हुए यहां की समुद्री गतिविधियों को संयुक्त राष्ट्र के संबंधित कानून (अनक्लोस) से तय होने की मांग की और साउथ चाईना सी के संदर्भ में एक ठोस व प्रभावी आचार संहिता बनाने की भी बात कही। आसियान के सभी दस सदस्य देश भी इसकी मांग कर रहे हैं।

पहले भारत और आसियान ने चीन को साउथ चाइना सी में खुराफातों से बाज आने का संदेश दिया तो वह तिलमिला उठा। भारत और आसियान की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में जो भी विवाद हैं, उनका अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसा से समाधान होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की नसीहत के बाद चीन तिलमिला गया। 

आसियान बैठक के दूसरे ही दिन पीएम मोदी ने दूसरी बार उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19वें ईस्ट एशिया समिट में अपने संबोधन में पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए दक्षिण चीन सागर की स्थिरता के महत्व पर जोर दिया। पीएम मोदी ने कहा, एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिण चीन सागर की शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के हित में है।

चीन को पहले भी दिए कड़े संदेश

ये पहला मौका था जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साउथ चाइना सी को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी बात रखी है। हालांकि, इसी साल मई में दक्षिण चीन सागर में भारतीय युद्धपोतों को तैनात कर भारत ने चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की। भारतीय नौसेना ने चीन पर नकेल कसने के लिए दक्षिण चीन सागर में पूर्वी बेड़े को तैनात किया हुआ है। 

भारत साल 2021 के बाद हुआ ज्यादा सक्रिय

भारत ने वर्ष 2021 के बाद से साउथ चाइना सी के करीबी देशों के साथ नौसैनिक संबंधों को लेकर ज्यादा सक्रियता दिखाना शुरू किया है। इसको गलवन घाटी में चीनी सैनिकों के घुसपैठ और भारत व चीन के सैनिकों के बीच जून, 2020 में हुए हिंसक झड़पों से जोड़ कर भी देखा जाता है। मार्च, 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की फिलीपींस, दक्षिण कोरिया और जापान यात्रा को भी साउथ चाइना सी को लेकर भारत के नये रूख के तौर पर देखा जाता है।

चीन के क्यों अहम है साउथ चाइना सी?

अब सवाल ये है कि साउथ चाइना सी चीन के लिए इतना अहम क्यों है? दरअसल, साउथ चाइना सी में क़रीब 250 छोटे-बड़े द्वीप हैं। लगभग सभी द्वीप निर्जन हैं। इनमें से कुछ ज्वार भाटे के कारण कई महीने पानी में डूब रहते, तो कुछ अब पूरी तरह डूब चुके हैं। ये इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई और फ़िलीपीन्स से घिरा है। इंडोनेशिया के अलावा अन्य सभी देश इसके किसी न किसी हिस्से को अपना कहते हैं।

चीन दावा करता है कि दो हज़ार साल पहले चीनी नाविकों और मछुआरों ने इस इलाक़े को सबसे पहले ढ़ूंढा, इसे नाम दिया और यहां काम शुरू किया।दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1939 से लेकर 1945 तक साउथ चाइनी सी के पूरे इलाक़े पर जापान का कब्ज़ा था। जापान की हार के बाद चीन ने इस पर फिर से कब्ज़ा करने के लिए अपने नौसेनिक युद्धपोत यहां भेजे। युद्ध के बाद चीनी सरकार ने आधिकारिक तौर पर एक मानचित्र जारी किया। जिसमें एक लकीर के जरिए तीस लाख वर्ग किलोमीटर के साउथ चाइना सी के एक बड़े हिस्से और लगभग सभी द्वीपों को अपने हिस्से में दिखाया। इस लकीर को नाइन डैश लाइन कहा जाता है। हालांकि चीन ने इस लकीर को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

साउथ चाइना सी को लेकर मौजूदा चीनी सरकार के दावे के केंद्र में अब भी वही मानचित्र और अनसुलझा विवाद है। हालांकि, चीन के लिए समुद्र का ये टुकड़ा सिर्फ़ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उसने ऐतिहासिक तौर पर इसे अपना कहा है। दरअसल इसके पीछे ठोस आर्थिक कारण है। चीन कहता है कि साउथ चाइना सी में मुल्कों की दिलचस्पी तब हुई जब वहां उसने तेल की खोज शुरू की।कई देशों की दिलचस्पी इस इलाक़े में बढी है क्योंकि उनका मानना है कि इस जगह पर उन्हें कच्चे तेल की खजाना मिल सकता है। इस इलाके में असल में कितना तेल मिल सकता है इसे लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। 

इसके अलावा यहां एक अलग तरह की संपदा है जो चीन के लिए महत्वपूर्ण है। यहां तीस हज़ार प्रकार की मछलियां हैं। और मत्स्य उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर करीब 15 फीसदी मछली उत्पादन करता है और ये काम होता है साउथ चाइना सी से।इस कारण इस इलाक़े में तनाव बढ़ा है और इससे निपटने के लिए चीन यहां अपनी स्थिति और मज़बूत करना चाहता है।

*कनाडा में हिंदुओं को निशाना बनाने की प्लानिंग, जगमीत सिंह की लाइन अपना सकते हैं, जस्टिन ट्रूडो*

जस्टिन ट्रूडो समर्थित खालिस्तानी तत्वों द्वारा उत्पीड़न से बचने के लिए, भारत द्वारा वापस बुलाए गए छह भारतीय राजनयिकों ने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा के कनाडा में भारतीय राजनयिक प्रतिनिधित्व घटकर नौ रह जाएगे, जबकि मोदी सरकार द्वारा छह राजनयिकों को निष्कासित किए जाने और शनिवार दोपहर तक कनाडा छोड़ने के लिए कहे जाने के बाद भी भारत में कनाडाई प्रतिनिधित्व के 15 राजनयिक ही रहेंगे। जब भारत और कनाडा के संबंध ट्रूडो की राजनीति से प्रभावित नहीं थे, तब भारत के ओटावा में 12 निवासी राजनयिक और दिल्ली में 62 निवासी कनाडाई राजनयिक हुआ करते थे। जबकि कनाडाई सरकार ने आपराधिक मामलों के माध्यम से राजनयिकों को निशाना न बनाने की अलिखित परंपरा को तोड़ा है, प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से जगमीत सिंह की खालिस्तान समर्थक न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का पक्ष लेने और अपने राजनीतिक लाइन का उपयोग करके कनाडाई हिंदुओं को निशाना बनाने की उम्मीद है, क्योंकि वे सिखों के साथ-साथ मुस्लिमों के भी विरोधी हैं। ट्रूडो से यह भी उम्मीद की जाती है कि वे 18 जून, 2023 को आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को निशाना बनाने के लिए अन्य कनाडाई राजनीतिक दलों से समर्थन मांगेंगे। अपने कट्टरपंथी सिख समर्थकों पर नज़र रखने वाले कनाडाई पीएम ने भारत के साथ कूटनीतिक युद्ध पर फाइव आईज अलायंस को जानकारी देकर एंग्लो-सैक्सन पश्चिम का समर्थन भी मांगा है। पर्दे के पीछे, पाकिस्तान और उसके गहरे राज्य भारत और कनाडाई संबंधों के बीच दरार को और बढ़ाने के लिए नेशनल काउंसिल ऑफ कैनेडियन मुस्लिमों के माध्यम से काम कर रहे हैं। कनाडा पर नज़र रखने वालों का कहना है कि अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए, ट्रूडो आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर मामले में भारत को फंसाने के लिए विदेशी हस्तक्षेप आयोग और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) का उपयोग करेंगे। एक शीर्ष राजनयिक ने कहा, "अगर निज्जर पर यह इतना स्पष्ट मामला था, जैसा कि जस्टिन ट्रूडो कह रहे हैं, तो जांच एजेंसी रॉयल माउंटेड कैनेडियन पुलिस ने आज तक आरोप-पत्र क्यों दायर किया है? कनाडा सरकार ने खालिस्तान टाइगर फोर्स आतंकवादी की हत्या में भारतीय एजेंटों को जोड़ने वाले कोई सबूत क्यों नहीं साझा किए हैं?" यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कनाडा में खालिस्तानी वोटों की तलाश में, ट्रूडो प्रतिबंधित एसएफजे के वकील के बयानों का उपयोग विदेशी हस्तक्षेप आयोग में भारत को दोषी ठहराने के लिए करेंगे, क्योंकि जांच ने किसी भी विरोधी संगठन को सार्वजनिक सुनवाई में शामिल होने की अनुमति नहीं दी। पीएम जस्टिन ट्रूडो को सुरक्षा मंत्री के आयोग के समक्ष गवाही देने के एक दिन बाद 16 अक्टूबर को आयोग के समक्ष पेश होना है। एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने कहा, "यह एकतरफा जांच है एक दिखावा और पूरा विचार भारत और उसकी सरकार को बदनाम करना है।" जबकि आरसीएमपी ने निज्जर हत्या मामले में
एस जयशंकर ने घर में घुसकर पाकिस्तान को धोया, बोले- आतंकवाद और व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते

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पाकिस्तान शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट की मेजबानी कर रहा है। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने समिट में हिस्सा लेने इस्लामाबाद में हैं। उन्होंने अपनी स्पीच में पाकिस्तान को खूब सुनाया। पाकिस्तान का नाम लिए बगैर विदेश मंत्री ने कहा कि अगर आतंकी घटनाएं जारी रहेंगी तो फिर व्यापारिक गतिविधियों को भी बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। इस तरह जयशंकर ने बिना नाम लिए पाकिस्तान को उसी के घर में लताड़ लगाई।

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में जयशंकर ने एससीओ परिषद के शासनाध्यक्षों की 23वीं बैठक को संबोधित किया। अपने संबोधन की शुरुआत में एस जयशंकर ने कहा, ''सबसे पहले, मैं इस वर्ष एससीओ शासनाध्यक्ष परिषद की अध्यक्षता के लिए पाकिस्तान को बधाई देना चाहता हूं। भारत ने सफल अध्यक्षता के लिए अपना पूरा समर्थन दिया है।'

एस जयशंकर ने कहा कि हम विश्व मामलों में एक कठिन समय पर मिल रहे हैं। दो बड़े संघर्ष चल रहे हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने वैश्विक परिणाम हैं। कोविड महामारी ने विकासशील दुनिया में कई लोगों को बुरी तरह तबाह कर दिया है। विभिन्न प्रकार के व्यवधान 'चरम जलवायु घटनाओं से लेकर आपूर्ति श्रृंखला अनिश्चितताओं और वित्तीय अस्थिरता तक' विकास को प्रभावित कर रहे हैं। ऋण एक गंभीर चिंता का विषय है, भले ही दुनिया एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने में पीछे रह गई हो। प्रौद्योगिकी बहुत आशाजनक है, साथ ही साथ कई नई चिंताएं भी पैदा कर रही है।

विदेश मंत्री ने एससीओ देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने, विश्वास, दोस्ती और अच्छे पड़ोसी बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि एससीओ संगठन के सामने आतंकवाद, अलगावाद और कट्टरपंथ से लड़ने की साझा चुनौती है। पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि अगर विश्वास की कमी है या सहयोग पर्याप्त नहीं है। दोस्ती कम हो गई है और अच्छे पड़ोसी की भावना गायब है तो निश्चित रूप से आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। साथ ही यह तभी संभव है जब हम पूरी ईमानदारी से चार्टर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें, तभी हम आपसी सहयोग और प्रतिबद्धता के फायदों को पूरी तरह से महसूस कर सकते हैं। यह सिर्फ हमारे फायदे के लिए नहीं है। 

इससे पहले पाकिस्तान ने एक बार फिर यहां कश्मीर राग अलापा। हर बार की तरह पाकिस्तान को इस मुद्दे पर चीन का खुला साथ मिला। चीन ने कहा कि यह इतिहास का बचा हुआ मुद्दा है जिसे हल करने की जरूरत है।पाकिस्तान में हो रहे एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति के साथ मीटिंग में पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और समृद्धि के लिए चीन के अटूट समर्थन की पुष्टि की। संयुक्त बयान में कहा गया, दोनों देशों ने दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व और सभी लंबित विवादों के समाधान की जरूरत पर जोर दिया और किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध किया।

बयान में आगे चीनी पक्ष ने दोहराया कि जम्मू और कश्मीर का विवाद इतिहास से बचा हुआ है। इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर, प्रासंगिग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के मुताबिक शांतिपूर्वक हल किया जाना चाहिए।

नायब सिंह सैनी ही होंगे हरियाणा के सीएम, चुने गए विधायक दल के नेता, कल शपथ ग्रहण

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हरियाणा में बीजेपी ने विधायक दल का नेता चुन लिया है। नायब सिंह सैनी एक बार फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में हुई बैठक में नायब सिंह सैनी को सर्वसम्मित से फिर से मुख्यमंत्री चुना गया। गुरुवार यानी 17 अक्टूबर को हरियाणा में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह होगा।

आज गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें उन्हें नेता चुना गया। हरियाणा प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, सह-प्रभारी विप्लव देब, केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर भी बैठक में मौजूद रहे। अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को इस बैठक के लिए बतौर केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था। पंचकूला के बीजेपी ऑफिस में बैठक हुई।

शाह ने कहा कि बैठक में एक ही प्रस्ताव मिला जो नायब सिंह सैनी के नाम का था। मैं उनका नाम घोषित करता हूं। नायब सैनी को बहुत बहुत बधाई देता हूं।

बीजेपी के अनिल विज और राव इंद्रजीत सिंह ने भी सीएम पद पर दावेदारी ठोकी थी। लेकिन पार्टी ने एक बार फिर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया है। मीटिंग में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। अनिल विज और मनोहर लाल खट्टर ने सैनी के नाम का प्रस्ताव रखा।

सैनी गुरुवार को पंचकूला में शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। गृहमंत्री अमित शाह रात को चंडीगढ़ के ललित होटल में रुकेंगे। गुरुवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद पीएम नरेंद्र मोदी हरियाणा राजभवन में मीटिंग लेंगे। भाजपा ने अपने सभी 48 विधायकों को अगले दो दिन चंडीगढ़ में ही रहने के निर्देश जारी किए हैं। होटल ललित और हरियाणा राजभवन सेक्टर-6 में काफी संख्या में पुलिस फोर्स को तैनात किया गया है।वहीं होटल हयात में छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। इनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, नगालैंड और पुड्डूचेरी के सीएम शामिल हैं।

उमर ने ली जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ, कांग्रेस कैबिनेट में नहीं हुई शामिल

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अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में उमर अब्दुल्ला ने आज शपथ ली। श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने उमर और उनके मंत्रियों को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश के पहले और जम्मू-कश्मीर में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं।

सुरिंदर कुमार चौधरी बने उपमुख्यमंत्री

उमर अब्दुल्ला ने सुरिंदर कुमार चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया है। उन्होंने नौशेरा से चुनाव लड़ा और बीजेपी नेता रविंदर रैना को हराया। उमर अब्दुल्ला के अलावा पांच कैबिनेट मंत्रियों ने शपथ ली है, जिसमें सतीश शर्मा, सकीना येतू, जावेद डार, सुरिंदर चौधरी और जावेद राणा शामिल हैं।

भारत सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर-उमर

शपथ ग्रहण से पहले उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘मैं 6 साल का कार्यकाल पूरा करने वाला आखिरी मुख्यमंत्री था. अब मैं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का पहला मुख्यमंत्री बनूंगा। 6 साल तक सेवा की, मैं इससे काफी खुश हूं। मुझे उम्मीद है कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी है। हम लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हैं और ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करके शुरू करना होगा। बहुत कुछ करना है, लोगों को एक हौसला देना है कि उनकी हुकूमत है, उनकी आवाज सुनी जाएगी। 5-6 साल हो गए कोई लोगों को सुनने के लिए तैयार नहीं था। हमारा फर्ज बनेगा कि हम उनकी बात सुने और उस पर अमल करें। हमारी कोशिश रहेगी कि हम लोगों के उम्मीदों के बराबर आएं।’

एनसी ने जीती हैं 42 सीटें

जम्मू-कश्मीर में 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42, बीजेपी को 29, कांग्रेस को 6, पीडीपी को 3, जेपीसी को 1, सीपीआईएस को 1, AAP को 1, जबकि 7 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली है। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा है।

हरियाणा में कौन होगा सीएम? दावेदारों की भरमार, आज विधायक दल की बैठक में होगा फैसला

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हरियाणा में लगातार दो बार सरकार चलाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सूबे के चुनावी इतिहास का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए लगातार तीसरी बार सत्ता मे लौटी है।बीजेपी ने सूबे में सरकार गठन की कवायद तेज कर दी है। शपथग्रहण के लिए 17 अक्टूबर की तारीख तय हो चुकी है। ऐसे में बुधवार यानी आज पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई गई है जिसमें विधायक दल का नया नेता चुना जाएगा। विधायक दल की बैठक के लिए बीजेपी ने गृह मंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री मोहन यादव को पर्यवेक्षक बनाया है।

विधायक दल की बैठक के बाद ही तय होगा कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। बीजेपी की जीत के बाद से अनिल विज और राव इंद्रजीत सिंह का नाम सीएम पद के लिए चर्चा में है। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदारी की वजह से ही अमित शाह खुद पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं ताकि कोई गड़बड़ी न हो। हालांकि, चुनाव के दौरान पंचकूला में अमित शाह कह चुके हैं कि नायब सिंह ही अगले मुख्यमंत्री रहेंगे।

अमित शाह ज्यादातर चुनावी राज्यों में संगठन से रणनीति तक पार्टी के पेंच दुरुस्त करने का दायित्व निभाते आए हैं। पार्टी में चाणक्य’ की भूमिका निभाते आए हैं, लेकिन इस बार अमित शाह जैसे दिग्गज नेता को पर्यवेक्षक बनाए जाने के बाद अटकलों का बाजार गर्म है। क्या पार्टी फिर से कोई सरप्राइजिंग फेस लाने की तैयारी में तो नहीं है?

बता दें कि बीजेपी ने हरियाणा में 48 सीटों पर जीत दर्ज की है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी अकेले दम पर बहुमत हासिल कर लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी कर चुकी है। पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के तौर पर किसी का चेहरा आगे नहीं किया गया था। हलांकि, सियासी जानकारों की मानें तो विधानसभा चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से हटाकर केंद्र की राजनीति में लाना और नायब सिंह सैनी को सीएम बनाने का दांव बीजेपी के लिए रामबाण साबित हुआ।

फिर कश्मीर मुद्दे पर एक साथ आए पाकिस्तान-चीन, दूसरों की जमीन हड़पने वाले ने भारत को दी नसीहत

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पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में दो दिवसीय शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन शुरू हो गया है। 15 से 16 अक्टूबर तक चलने वाले इस शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान अपनी मेजबानी दिखा दुनियाभर में अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, पाकिस्तान ने एक बार फिर यहां कश्मीर राग अलापा। वहीं, हर बार की तरह पाकिस्तान को इस मुद्दे पर चीन का खुला साथ मिला। चीन ने कहा कि यह इतिहास का बचा हुआ मुद्दा है जिसे हल करने की जरूरत है।

पाकिस्तान में हो रहे एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग पहुंचे हैं। ली कियांग ने पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ अलग-अलग मीटिंग की। दोनों देशों की ओर से जारी जॉइंट स्टेटमेंट में कश्मीर का मुद्दा उठाया गया है।

पाकिस्तान ने चीन को सुनाया दुखड़ा

ली कियांग ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति के साथ मीटिंग में पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और समृद्धि के लिए चीन के अटूट समर्थन की पुष्टि की। संयुक्त बयान में कहा गया, दोनों देशों ने दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व और सभी लंबित विवादों के समाधान की जरूरत पर जोर दिया और किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध किया। पाकिस्तानी पक्ष ने चीनी पक्ष को जम्मू-कश्मीर की स्थिति के नवीनतम घटनाक्रम से अवगत कराया।

शांतिपूर्वक हल की सलाह

बयान में आगे चीनी पक्ष ने दोहराया कि जम्मू और कश्मीर का विवाद इतिहास से बचा हुआ है। इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर, प्रासंगिग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के मुताबिक शांतिपूर्वक हल किया जाना चाहिए।

आतंकवाद से निपटने के पाक के प्रयासों की प्रशंसा

चीनी पक्ष ने आतंकवाद से निपटने में पाकिस्तान के निरंतर प्रयासों और जबरदस्त बलिदानों तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में उसके योगदान की सराहना की। दोनों पक्षों ने शून्य-सहिष्णुता के दृष्टिकोण के साथ आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का मुकाबला करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई साथ ही आतंकवाद-रोधी कार्य में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने और आतंकवाद-रोधी कार्य के राजनीतिकरण और साधनीकरण का संयुक्त रूप से विरोध करने पर सहमति व्यक्त की।