क्रोनिक लिवर डिजीज इलाज एवं बचाव
कानपुर।लिवर से जुड़ी बीमारियां भारत में तेजी से एक बड़ी हेल्थ समस्या बनती जा रही है. हाल के आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में लिवर डिजीज से होने वाली मौतों में करीब 18-20 फीसदी भारत में थीं. लिवर डिजीज को अलग-अलग एक्यूट कंडीशन में बांटा जा सकता है। एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस के ज्यादातर मामलों में स्वत: नियंत्रण किया जा सकता है, और क्रोनिक लिवर डिजीज में सिरोसिस व उससे जुड़ी स्थितियां होती हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत में लिवर ट्रांसप्लांट एंड बिलियरी साइंसेज, रोबोटिक सर्जरी के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर शालीन अग्रवाल ने बताया कि हालांकि एक्यूट लिवर डिजीज कुछ मामलों में जानलेवा हो सकती है लेकिन क्रोनिक लिवर डिजीज (सिरोसिस) हमारे देश के हेल्थ केयर सिस्टम को काफी प्रभावित कर रहा है। लिवर डिजीज के ज्यादातर मामलों में मुख्य रूप से चार बड़े कारण होते हैं।
हेपेटाइटिस बी और सी से होने वाला क्रोनिक इंफेक्शन, क्रोनिक एल्कोहल एब्यूज, डायबिटीज और मोटापा. हेपेटाइटिस बी और सी के साथ इंफेक्शन अनस्क्रीन ब्लड प्रोडक्ट के ट्रांसफ्यूजन के कारण होता है, इंफेक्टेड नीडल्ड के दोबारा इस्तेमाल से होता है, सीरींज और ग्रसित व्यक्ति के साथ सेक्सुअल संबंध स्थापित करने से इंफेक्शन होते हैं. इसके अलावा, शराब का सेवन, डायबिटीज और मोटापा जैसी खराब लाइफस्टाइल से भी नुकसान होता है। जब से हेपेटाइटिस सी के लिए एंटी वायरल इलाज आया है, ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुरक्षित तरीके से हो रहा है, हेपेटाइटिस बी के लिए पूरी दुनिया में वैक्सीनेशन उपलब्ध है।
तब से हेपेटाइटिस बी और सी के साथ क्रोनिक लिवर डिजीज के मामलों में काफी तेजी से गिरावट आई है। वहीं दूसरी तरफ शराब के सरेआम सेवन खराब लाइफस्टाइल और खाने-पीने की खराब आदतों के चलते शराब और मोटापे से जुड़े लिवर डिजीज के मामलों में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
क्रोनिक लिवर डिजीज काफी लंबे समय तक एसिम्पटोमेटिक रही है। हालांकि ब्लड टेस्ट, पेट के अल्ट्रासाउंड और अल्ट्रासाउंड इलास्टोग्राफी के जरिए इसे आसानी से डायग्नोज किया जा सकता है. इसमें प्रारंभिक लक्षण आमतौर पर कमजोरी और थकान के रूप में सामने आते हैं। हालांकि ये अस्पष्ट होते हैं। वहीं एक बार जब लिवर खराब होने लगता है तो मरीज को आमतौर पर पीलिया (आंखों और मूत्र का पीला होना) हो जाती है, पेट या चेस्ट कैविटी में तरल पदार्थ जमा हो जाता है। खून की उल्टियां होने लगती हैं या मल काला भी हो सकता है. इसके अलावा कभी-कभी न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे इधर-उधर की बातचीत, भटकाव या फिर कोमा की स्थिति भी पैदा हो सकती है। सिरोसिस वाले मरीजों में शुरुआती लक्षण कैंसर युक्त ट्यूमर के रूप में होती है।
हालांकि लिवर फेल का इलाज मुश्किल है लेकिन इसकी रोकथाम आसानी से की जा सकती है। शराब से ज्यादा सेवन से बचना चाहिए, स्वस्थ लाइफस्टाइल प्रैक्टिस को अपनाना चाहिए जैसे कि रेगुलर एक्सरसाइज करें, फैटी और प्रोसेस्ड फूड खाने से बचें, अपने शरीर का वजन लगातार चेक करते रहें, हेपेटाइटिस बी के लिए वैक्सीनेशन कराएं और सुरक्षित ट्रांसफ्यूजन प्रैक्टिस अपनाएं। इस तरह की सावधानियों से क्रोनिक लिवर डिजीज के असर को कम किया जा सकता है और मृत्यु दर व बीमारी को कम किया जा सकता है।
ऊपर जिन लक्षणों की चर्चा की गई है ये एडवांस लिवर डिजीज के संकेत हैं। एल्कोहोलिक लिवर पेशंट के लिए शराब का सेवन पूरी तरह से रोकना बेहद जरूरी है। इसमें शुरुआती इलाज दवाओं से होता है, जिसकी मदद से शरीर की सूजन, फ्लूड जमा होना, दिमागी स्थिति और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट ब्लीडिंग को कंट्रोल किया जा सकता है. जिन मरीजों खून की उल्टी की समस्या रहती है। उनके लिए एंडोस्कोपिक इलाज ही बेहतर माना जाता है।
लिवर ट्रांसप्लांट सबसे कारगर और अंतिम उपाय माना जाता है सिम्पटोमैटिक सिरोसिस के मामलों में लिवर ट्रांसप्लांट का सक्सेस रेट 90 फीसदी से भी ज्यादा रहता है. लिवर के इलाज में अन्य सभी थेरेपी का इस्तेमाल लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है जबकि लिवर ट्रांसप्लांट में ग्रसित लिवर को नए व स्वस्थ लिवर से बदल दिया जाता है जिससे मरीज को न सिर्फ राहत मिलती है बल्कि उसे नए जीवन की अनुभूति होती है। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आमतौर पर कोई करीबी रिश्तेदार लिवर डोनेट करते हैं, या फिर किसी ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों की परमिशन से उसके लिवर का इस्तेमाल किया जाता है। या फिर मानव कल्याण के लिए अपने मृत परिजनों के अंगों का दान करने वाले भी इस पुण्य क्रिया का हिस्सा बनते हैं।
सफल लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद व्यक्ति सामान्य जीवन गुजार सकता है. हालांकि ऐसे मरीज को कुछ इम्यूनोसप्रोसिव दवाएं लेनी पड़ती हैं. ये दवाएं उसी तरह होती हैं जैसे रोज डायबिटीज या ब्लड प्रेशर की मेडिसिन ली जाती है।
Jan 01 2024, 18:08