कर्नाटक विधानसभा में हिंदुत्व से नहीं बन सकी बात, डिटेल में पढ़िए, इस चुनाव में दिग्गज राजनीतिक विश्लषकों को और क्या क्या दिए संदेश
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने 224 सदस्यीय विधानसभा में 135 सीटों पर जीत हासिल की। आंकड़ों के मुताबिक, चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 43 फीसदी रहा, जो 1989 के विधानसभा चुनावों के बाद से राज्य में सबसे अधिक है। 2018 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर वाली भाजपा इस बार कांग्रेस से 69 सीटों से पिछड़ गई। वहीं जनता दल (सेक्युलर) ने 1999 में चुनावी राजनीति में उतरने के बाद से वोट शेयर के मामले में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया। इन आंकड़ों के अलावा कर्नाटक चुनाव के तीन बड़े संदेश हैं।
‘अहिंदा’ की वापसी
कांग्रेस के जोरदार प्रदर्शन को ‘अहिंदा’ से जोड़कर देखा जा रहा है। अहिंदा एक कन्नड़ शब्द है। इसमें अल्पसंख्यक को अल्पसंख्यतारू, पिछड़ों के लिए हिंदुलीदावारू जबकि दलितों के लिए दलितारू शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इन तीनों के मिलने से अहिंदा शब्द बनता है। इस नीति का इस्तेमाल दिग्गज कांग्रेस नेता देवराज उर्स ने 1970 के दशक में किया।
उन्होंने इस तरीके का इस्तेमाल, राज्य के दो प्रमुख समुदायों लिंगायत और वोक्कालिगा के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए किया। क्या इस नीति का कोई सांख्यिकीय आधार है कि कांग्रेस की वर्तमान जीत अहिंदा की वापसी की पुष्टि करती है? इसका जवाब एक्सिस एग्जिट पोल के सामाजिक-समूहवार समर्थन के आंकड़ों से मिलता है। इसमें कांग्रेस के समग्र वोट शेयर की सटीक भविष्यवाणी की गई थी। अहिंदा समुदायों के बीच कांग्रेस ने भारी वोट शेयर हासिल किया।
वोट शेयर का क्षेत्रवार विश्लेषण स्पष्ट करता है कि मध्य और दक्षिणी कर्नाटक को लिंगायतों और वोक्कालिगाओं का बड़ा गढ़ माना जाता है। इन दोनों क्षेत्रों में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की और लिंगायत या वोक्कालिगा समुदाय ने भाजपा या जद (एस) का समर्थन नहीं किया। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि गैर-लिंगायत और गैर-वोक्कालिगा मतदाता भी इन दोनों दलों से कांग्रेस में स्थानांतरित हो गया।
हिंदुत्व से नहीं बनी बात
स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से लेकर चुनाव अभियान में बजरंग बली का आह्वान करने तक, भाजपा ने इन चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंदुत्व की पैरवी की। नतीजे बताते हैं कि यह रणनीति कारगर साबित नहीं हुई। इस तर्क के समर्थन में तीन कारकों को देखा जा सकता है। पहला कारक यह है कि कांग्रेस को राज्य के हर उपक्षेत्र में वोट शेयर के मामले में फायदा हुआ।
दूसरा, भाजपा ने तटीय कर्नाटक में भी वोट शेयर खो दिया, जहां हमेशा बड़े स्तर पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होता रहा है। तीसरा, भाजपा का मानना रहा कि आक्रामक हिंदुत्व के सहारे वह उन क्षेत्रों में भी कुछ आधार हासिल कर सकती है, जहां वह ऐतिहासिक रूप से कमजोर रही है।
सत्ता विरोधी लहर के बीच चुनावी गारंटी
इन चुनाव में कांग्रेस ने गरीबों को राहत देने के उद्देश्य से कई आर्थिक वादे किए। पार्टी की पांच गारंटी में महिलाओं और बेरोजगारों के लिए नकद हस्तांतरण, मुफ्त खाद्यान्न और सब्सिडी वाली बिजली और एलपीजी सिलेंडर शामिल हैं। ये आर्थिक वादे कारगर रहे और गरीबों की बहुलता वाले क्षेत्रों में कांग्रेस की सीटों में इजाफा हुआ।
May 15 2023, 15:03